बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2A अर्थशास्त्र - पर्यावरणीय अर्थशास्त्र बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2A अर्थशास्त्र - पर्यावरणीय अर्थशास्त्रसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2A अर्थशास्त्र - पर्यावरणीय अर्थशास्त्र - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- पीगू के कल्याणवादी अर्थशास्त्र की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
उत्तर -
प्रो. पीगू ने कल्याणवादी अर्थशास्त्र को निश्चित रूप प्रदान किया। ये पहले अर्थशास्त्री थे जिन्होंने अपनी पुस्तक 'Economics of Welfare' में कल्याणवादी अर्थशास्त्र का वैज्ञानिक क्रमबद्ध अध्ययन किया। प्रो. पीगू को कल्याणवादी अर्थशास्त्री का जन्मदाता कहा जाता है। इसको परिभाषित करते हुए एक अर्थशास्त्री ने लिखा है कि -
“कल्याणवादी अर्थशास्त्र प्रो. पीगू से आरम्भ हुआ। उससे पहले हमारे पास 'आनन्द अर्थशास्त्र' था तथा उससे पहले 'धन अर्थशास्त्र'।
प्रो. पीगू के अनुसार कल्याण से आशय उन सन्तुष्टियों और उपयोगिताओं से है जो कि उसको वस्तुओं और सेवाओं के प्रयोग से प्राप्त होती है। इनके अनुसार व्यक्ति की चेतना में कल्याण की भावना का समावेश होता है। सामान्य कल्याण अत्यन्त जटिल, विस्तृत और अव्यावहारिक धारणा है, अतः प्रो. पीगू द्वारा अपने अध्ययन की सीमा को आर्थिक कल्याण तक ही सीमित रखा है। इन्होंने आर्थिक कल्याण को समान कल्याण का वह भाग माना जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से मुद्रा के मापदण्ड से सम्बन्धित किया जाता है। दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि आर्थिक कल्याण से आशय एक व्यक्ति द्वारा विनिमय योग्य वस्तुओं और सेवाओं के प्रयोग से प्राप्त सन्तुष्टि या उपयोगिता से है।
(Pigouian Welfare Conditions)
पीगू के अनुसार कल्याण की निम्नलिखित दो दशायें हैं
(1) आर्थिक कल्याण राष्ट्रीय आय की मात्रा का फलन है यदि वास्तविक राष्ट्रीय आय को अधिकतम किया जाता है तो सामाजिक कल्याण भी अधिकतम होगा, परन्तु साधनों की पूर्ति का होना आवश्यक है अन्यथा ऐसा न होगा। वास्तविक राष्ट्रीय आय में वृद्धि का अर्थ सन्तुष्टि की अधिकतम मात्रा से लगाया जाता है तथा राष्ट्रीय कमी का अर्थ सन्तुष्टि की कम मात्रा से लगाया जाता है, राष्ट्रीय आय में वृद्धि से सामाजिक कल्याण में वृद्धि तथा राष्ट्रीय आय में कमी से सामाजिक कल्याण में कमी होती है। अतः सामाजिक कल्याण को अधिक करने के लिए राष्ट्रीय आय में वृद्धि आवश्यक है, जिसके लिए साधनों का अनुकूलतम वितरण करना होगा।
प्रो. पीगू ने कल्याण को अधिकतम बनाने के सम्बन्ध में कहा है -
(i) 'सीमान्त व्यक्तिगत शुद्ध उत्पादन' सीमान्त सामाजिक शुद्ध उत्पादन के बराबर हो। (ii) सभी उद्योगों में 'सीमान्त व्यक्तिगत शुद्ध उत्पादन' बराबर हो ताकि उत्पादन के साधन एक उद्योग से दूसरे को हस्तान्तरित न हों।
(2) आर्थिक कल्याण के ऊपर आय के वितरण का भी प्रभाव पड़ता है- राष्ट्रीय आय की स्थिरात्मक अवस्था में आय का अमीरों से गरीबों को हस्तान्तरण कल्याण में वृद्धि पहुँचाता है। इस प्रकार के हस्तान्तरण से गरीबों की स्थिति सुदृढ़ होती है जबकि अमीरों को कोई विशेष असर नहीं होता है। कल्याण की यह दशा पीगू की द्वैध धारणाओं, 'सन्तुष्टि के लिए समान क्षमता' तथा 'आय की ह्रासमान समान उपयोगिता' पर आधारित है।
प्रथम धारणा के अनुसार, गरीब लोगों को मूलभूत प्रकृति में उपभोग की अधिक क्षमतायें हैं। द्वितीय धारणा के अनुसार, अमीरों से गरीबों का आय का हस्तान्तरण गरीबों की आवश्यकताओं की पूर्ति करके उन्हें सन्तुष्टि प्रदान करता है, जिससे सामाजिक कल्याण में वृद्धि होगी। अतः पीगू के अनुसार, 'सामाजिक कल्याण में वृद्धि के लिए आय के वितरण की समानता आवश्यक है।
पीगू का कल्याणकारी अर्थशास्त्र कुछ प्रमुख मान्यताओं पर आधारित है जो निम्नलिखित हैं-
(1) उपयोगिता की अन्तः वैयक्तिक तुलनायें असम्भव नहीं हैं,
(2) उपयोगिता को मुद्रा रूपी पैमाने से मापा जाना सम्भव है,
(3) मुद्रा के सम्बन्ध में उपयोगिता ह्रास नियम लागू नहीं होता है,
(4) प्रत्येक उपभोक्ता का उद्देश्य अपनी सन्तुष्टि को अधिकतम करना होता है, अतः वह विवेकपूर्ण ढंग से कार्य करता है,
(5) उपभोक्ता द्वारा किसी भी वस्तु के क्रय के दौरान मुद्रा की सीमान्त उपयोगिता स्थिर रहती है।
पीगू के कल्याणवादी अर्थशास्त्र की कुछ आलोचनाएं भी की गई जो निम्नलिखित हैं -
(1) मुद्रा का दोषपूर्ण मापदण्ड - पीगू का कल्याणवादी अर्थशास्त्र मुद्रा के मापदण्ड पर आधारित है। कीमत में परिवर्तन के साथ-साथ मुद्रा के मूल्य में भी परिवर्तन होता रहता है, अतः यह मापदण्ड सन्तोषजनक नहीं है।
(2) सन्तुष्टि की समान क्षमता - प्रो. रॉबिन्स का मत यह है कि सन्तुष्टि की समान क्षमता की धारणा नैतिक सिद्धान्त पर आधारित है, न कि वैज्ञानिक प्रदर्शन पर। वास्तव में पीगू का कल्याणवादी सिद्धान्त वास्तविक तथा वैज्ञानिक अध्ययन न होकर आदर्शवादी अध्ययन है।
(3) 'अधिकतम' की अस्पष्ट धारणा - पीगू का कल्याणवादी सिद्धान्त कल्याण को अधिकतम करने पर जोर देता है किन्तु वह अधिकतम की धारणा को स्पष्ट नहीं करता है।
(4) राष्ट्रीय आय कल्याण का उचित मापदण्ड नहीं - राष्ट्रीय आय की गणना करना बहुत ही मुश्किल कार्य है। राष्ट्रीय आय में वृद्धि होने से कल्याण में भी वृद्धि हो, यह निश्चित नहीं है। यह सम्भव है कि स्फीति के कारण राष्ट्रीय आय में तो वृद्धि हो जाये परन्तु गरीबों की दशा और भी दयनीय हो जाये।
(5) नीति विषयक सम्बन्ध - पीगू का सिद्धान्त कल्याणकारी अर्थशास्त्र और नीतिशास्त्र के सम्बन्धों की व्याख्या करने में असफल रहा, जबकि कल्याणवादी अर्थशास्त्र और नीतिशास्त्र का घनिष्ट सम्बन्ध है। कल्याणवादी अर्थशास्त्र में मूल्य निर्णय तथा अन्तः वैयक्तिक तुलनायें की जाती हैं क्योंकि यह आदर्शवादी अध्ययन है।
(6) राष्ट्रीय आय से सम्बद्ध - राष्ट्रीय आय की धारणा वस्तुगत है जबकि पीगू का विचार व्यक्तिगत है। इस प्रकार उसने वस्तुगत और व्यक्तिगत विचारों को एक साथ सम्बद्ध कर दिया है। आधुनिक अर्थशास्त्रियों की दृष्टि से यह उचित नहीं है।
(7) आय का समान वितरण - पीगू का सिद्धान्त यह कहता है कि कल्याण को अधिक करने के लिए आय का समान वितरण आवश्यक रूप से किया जाना चाहिए जबकि आलोचकों का कहना यह है कि समान वितरण से पूँजी निर्माण की दर हतोत्साहित होती है।
उपरोक्त आलोचनाओं के बावजूद भी यह स्पष्ट है कि प्रो. पीगू ने कल्याणवादी अर्थशास्त्र के क्षेत्र में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। इसके सम्बन्ध में एक प्रसिद्ध अर्थशास्त्री प्रो. दत्ता ने लिखा है कि "पीगू ने वह प्राप्त किया जिसे प्रो. मार्शल अपने लिखित कार्यों से प्राप्त नहीं कर सके।"
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