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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 भूगोल

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :200
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2776
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 भूगोल - सरल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- नियोजन के आधार एवं आयाम कौन से हैं? वर्णन कीजिए।

उत्तर -

नियोजन का आधार

नियोजन के कई आधार हो सकते हैं परन्तु यहां हम नियोजन के सिर्फ पारिस्थितिक और सामाजिक-आर्थिक आधार की चर्चा कर रहे हैं।

(क) नियोजन का पारिस्थितिक आधार

समस्त प्राकृतिक जीवों का उनके वातावरण के साथ अंतर्सम्बन्ध वर्णन करने वाला शास्त्र पारिस्थितिक विज्ञान कहलाता है। वो सब स्थितियां, पारिस्थितियां और प्रभाव जो किसी एक जीव या जीवों के समूह के विकास को प्रभावित करती हैं पर्यावरण कहलाती है। अतः पारिस्थितिकी और पर्यावरण, जीवों और व्यवस्थाओं जो उन पर असर डालती है, के सन्दर्भ में, एक दूसरे के साथ घनिष्ट रूप से सम्बन्धित है। भौगोलिक रूप से, भूमि और समुद्र के बीच पदार्थ का विनियम दो मुख्य भौतिक- भौगोलिक प्रक्रियाओं द्वारा प्रारम्भ होता है।

मनुष्य और प्रकृति के बीच अंतर्क्रिया अपृथकनीय है। यह सामान्य रूप से जीवन और विशेषतया पर्यावरण के बीच अंतर्क्रिया का उच्चतम स्वरूप है। करोड़ों वर्षों से अधिक समय में विकसित हुए जीवन के रूपों की विविधता और उनकी भिन्न, अक्सर विषम पर्यावरण सम्बन्धी स्थितियों से सामंजस्य आश्चर्यजनक है। मनुष्य का प्रकृति के साथ सामंजस्य उस समय प्रारम्भ हुआ जब उसने अपने को प्राकृतिक पर्यावरण से पृथक कर लिया था। मनुष्य और प्रकृति के बीच सम्बन्ध उसके आवास के भीतर गढ़े जाते हैं।

मनुष्य - प्रकृति अंतर्क्रिया का अनुभव नियोजन की सदियों पुरानी परिपाटी है। प्रकृति का सर्वोत्तम उपयोग करने के लिए, मनुष्य पारिस्थितिक व्यवस्था में आवश्यक समायोजन करता आ रहा है। पारिस्थितिक व्यवस्था को संतुलन में रखते हुए, लोगों के कल्याण के लिए नियोजन के कुछ उदाहरण हैं- जंगली पशुओं को पालतू बनाना, प्राकृतिक वनस्पति से लाभकारी पौधों को चुनना, पर्वताय ढलानों को सीढ़ीदार बनाना, सिंचाई के लिए नदियों को वश में करना या बाढ़ नियंत्रण इत्यादि। मानवीय निवास स्थान जल स्रोतों के कार्यस्थलों के बहुत निकट सान्निध्य में और सुरक्षा तथा गातिशीलता को विचार में रखते हुए योजनाबद्ध किए गए थे। अधिकांश प्राथमिक धन्धे जैसे कृषि, बागवानी, रेशम उत्पादन इत्यादि उत्पादकता के स्वाभाविक विचार पर आधारित हैं। इसी तरह से कुछ गौण उत्पादन तन्त्र जैसे सॉफ्टवेयर, कागज, कई स्वच्छंद उद्योग इत्यादि की रूपरेखा भी इस तरह से बनाई गई कि वो पारिस्थितिक व्यवस्था में न्यूनतम बाधा उत्पन्न करे। तथापि, मानव की बढ़ती हुई जरुरतों और वाणिज्य का ध्यान रखने से पारिस्थितिक व्यवस्था को गम्भीर क्षति पहुँची है। बड़े पैमाने पर विकासात्मक गतिविधियां, वनोन्मूलन, संरचनात्मक परिवर्तन, अवशेष सृजन आदि ने रिक्तीकरण, भू-मण्डलीय उष्मा, हिमक्षेत्रों का पिघलना, समुद्री स्तर में बढ़ोत्तरी, प्राकृतिक आपदाओं की गति तेज कर दी है।

(ख) नियोजन का सामाजिक-आर्थिक आधार

पृथ्वी की जनसंख्या में तेजी से वृद्धि हो रही है और 6 अरब के बिन्दु से ऊपर हो गई है। लोगों की हमेशा बढ़ती हुई जरूरतों को पूरा करने के लिए, प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग बढ़ेगा। इसलिए, एक निश्चित पारिस्थितिक व्यवस्था में संसाधन उपयोग के दायरे और मानव की जरूरतों के बीच साम्य बनाए रखना आवश्यक है। सतत् पोषणीय विकास के लिए सामाजिक-आर्थिक नियोजन को पारिमित्र बनाए रखना है। प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करने के अलावा, स्थानीय परिवेश, गलियों, नालियों, पार्क, खेल के मैदान, खुली जगह इत्यादि को भू-दृश्यों और वृक्षारोपण के साथ विकसित करने के दीर्घीकृत प्रयत्न करने की जरूरत है। वृक्षारोपण की रूपरेखा; भू-विज्ञान सम्बन्धी ढांचे, भू-आकृति, जलवायु सम्बन्धी स्थितियां, मृदा, जल निकास प्रणाली और प्राकृतिक वनस्पति के आधार पर बनानी चाहिए। बौने, मध्यम और बड़े वृक्षों की देशी किस्मों का रोपण उपलब्ध जगह, पौधों की स्थितियों, स्थानीय मौसम और जलवायु सम्बन्धी स्थितियों के आधार पर करना चाहिए। स्थानीय पर्यावरण को प्रौन्नत और बनाए रखने के लिए लोगों की मदद अनिवार्य है। बदले में स्वास्थ्यपूर्ण स्थानीय पारिस्थितिकीय व्यवस्था स्थानीय लोगों की बहुत सी जरूरतों को पूरा करती है और साथ ही हरित परिवेश का सुखद दृश्य प्रस्तुत करती है।

स्थानीय क्षेत्र नियोजन के आयाम

(क) मूलभूत और उच्चतर आवश्यकताएँ

"स्थानीय" समुदाय का कल्याण लोगों की मूलभूत और साथ ही उच्चतर आवश्यकताओं को पूरा करने पर निर्भर करता है। मूलभूत आवश्यकताओं में सुरक्षित पेय जल, बेसिक शिक्षा और स्वास्थ्य देखभाल, परिवहन और संचार सुविधाओं इत्यादि के अलावा खाद्य पदार्थ, कपड़ा और मकान शामिल हैं। उच्चतर जरूरतों में अभी और ज्यादा उच्च क्रम के सुख-साधन, सेवाएं और सुविधाएं इत्यादि शामिल हैं। उच्चतर जरूरतें समाज को कुशल, सेवा - अभिमुख और गतिशील बनाने में मदद करती हैं। जबकि मूलभूत जरूरतें जीवित रहने के लिए आवश्यक हैं, नियोजन की प्रक्रिया का उद्देश्य लोगों और स्थानों की मांगों को पूरा करना है। नियोजन की कई योजनाओं को लोगों की सामान्य और साथ ही प्रकार्यात्मक जरूरतों को पूरा करने के लिए बनाया जाता है। तथापि, जनसंख्या वृद्धि और गतिविधियों का विशिष्ट स्थलों पर केन्द्रीयकरण नियोजन प्रक्रिया के लिए चुनौती पेश करता है।

(ख) जनसंख्या वृद्धि और भावी नियोजन

जिन स्थानों पर जनसंख्या वृद्धि सामान्य रहती हैं, वहां प्रकार्यात्मक गतिविधियां सामान्यतः अपरिवर्तित रहती हैं और नियोजन की योजना सफल हो जाती है। उदाहरण के लिए, सिविल लाइन्स, माल रोड, छावनी बस्तियां इत्यादि स्थानीय जनसंख्या की वृद्धि के साथ सुख-साधनों और सुविधाओं के समान और प्रकार्यों तथा गतिविधियों के केन्द्रीयकरण के बीच असाधारण सन्तुलन पेश करते हैं। इसके विपरीत, उन स्थानीय क्षेत्रों में, जहां जनसंख्या में वृद्धि ज्यादा है और गतिविधियों का केन्द्रीयकरण अबाधित जारी रहता है, नियोजन का सम्पादन सामान्यतः बुरा रहता है। उदाहरणार्थ, व्यस्त बाजार, औद्योगिक स्थल, परिवहन जंक्शन, झुग्गी-झोपड़ी की बस्तियां इत्यादि तुलनात्मक रूप से जनसंख्या में ज्यादा वृद्धि और गतिविधियों का ज्यादा केन्द्रीयकरण प्रकट करते हैं। यह संकुलन और भीड़-भाड़ को बढ़ावा देता है जो कि नियोजन की असफलता को प्रतिबिम्बित करता है।

ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों में पर्याप्त रोजगार अवसरों की अनुपस्थिति में अधिकांश ग्रामीण युवा शहरों की ओर जाने लगते हैं। यह मूल स्थानों में आर्थिक स्थिति को और कमजोर और गंतव्य स्थानों में जनसंख्या के केन्द्रीयकरण को बढ़ावा देता है। प्रवासी जनसंख्या की सीमित देय क्षमता के कारण ये समूह में इकट्ठे रहते हैं, परन्तु शहरों में ये पर्याप्त सस्ता श्रम उपलब्ध कराते हैं। जनसंख्या वृद्धि और सेवाओं, सुविधाओं और सुख-साधनों के बीच असंतुलन से गंदगी, सार्वजनिक स्वास्थ्य में कमी और सबसे अधिक, स्थानीय पर्यावरण प्रदूषित होता है। अतः, नियोजन की व्यवस्था इन क्षेत्रों में बढ़ती हुई स्थानीय मांगों को पूरा नहीं कर पाती।

(ग) स्थायित्व और विकास के लिए आर्थिक आधार

किसी क्षेत्र का आर्थिक विकास स्थानीय क्षेत्र नियोजन का दूसरा आयाम है। इसका लक्ष्य उत्पादन व सेवाओं के स्तर को बढ़ाना, रोजगार सृजन, संशोधित बाजार तंत्र, अनुकूल मूल्य / कीमत नीति, परिवहन और सम्प्रेषण की दक्ष प्रणालियां इत्यादि है। आर्थिक रूप से, उन्नत क्षेत्र सामान्यतः प्राकृतिक संरक्षण और पारिस्थितिक सुधारों में काफी विनियोग करने में सक्षम होते हैं। इसी तरह यदि क्षेत्रों का आर्थिक आधार अच्छा है तो सामाजिक आधारिक ढांचा और सुविधाएं भी सृजित की जा सकती है।

लगभग सभी क्षेत्र-ग्रामीण और शहरी, प्राकृतिक सामर्थ्य/ अंत: शक्ति से सम्पन्न होते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में प्राथमिक गतिविधियां प्रमुख स्थान रखती हैं जबकि गौण और सेवा - प्रधान गतिविधियां शहरी क्षेत्रों में प्रमुख होती हैं। आर्थिक वृद्धि की गति प्रौद्योगिकीय विकास और संस्थागत तन्त्र के द्वारा तेज हो जाती है। कृषि का यांत्रिकीकरण और उद्योगों का आधुनिकीकरण प्रौद्योगिकीय विकास के उदाहरण हैं, जबकि वित्तीय, शैक्षणिक और नीति सम्बन्धी सहायता, क्षेत्र का आर्थिक आधार सुधारने के लिए संस्थागत भूमिकाएँ हैं। उत्पादकों, उपभोक्ताओं, सेवा प्रदान कर्ताओं और कर्मचारियों के हितों जैसे मुद्दों का नियोजन में ध्यान रखना चाहिए। आर्थिक पैकेज के स्वाभाविक परिणास्वरूप रोजगान सृजन और आय का दर्जा, बचत और विनियोग की क्षमताएं बढ़ेंगी। यह देखने में आया है कि बहुत से आर्थिक पैकेज समय के साथ लाभकारी बन जाते हैं। शिलांग का सरकण्डे का कार्य (Reed works), मोरादाबद के पीतल के बर्तन, वाराणसी और कांजीवरम का रेशम व जरी का काम और सांगानेर का बंधनी का काम, लखनऊ का कढ़ाई का काम इत्यादि सफल कहानियों के कुछ उदाहरण हैं जिनको आर्थिक नियोजन की सहायता मिल गई थी। अतः, स्थानीय क्षेत्र के उत्पाद और सेवाएं उस स्थान की पहचान और लोगों की आर्थिक समृद्धि को प्रदर्शित करते हैं।

(घ) नियोजन में लोगों की सहभागिता

लोगों की जागरूकता और स्थानीय क्षेत्र नियोजन में उनकी सहभागिता समुदाय हितों की सुरक्षा कर सकती हैं और साथ ही स्थानीय पारिस्थितिकीय सन्तुलन भी बनाए रखती हैं। जिस नियोजन योजना में स्थानीय लोग जुड़े होते हैं, उसकी असफलता के अवसर न्यूनतम होते हैं क्योंकि भ्रष्टाचार, शोषण और कु-प्रबन्ध काफी समय तक रूक जाता है। इसके अलावा, उपरोक्त लोग क्योंकि सीधे लाभार्थी होते है, तो वो क्षेत्रीय विकास और सामाजिक कल्याण बनाए रखने के प्रति जिम्मेदार रवैया रखते हैं। जब स्थानीय लोग योजना तैयार करते हैं और अपनी प्राथमिकताएं निर्धारित करते हैं तो यह लोगों के लाभ को अधिकतम और नियोजन की लागत को न्यूनतम रखते हैं। यह ज्यादा सम्भव है कि नियोजन विकासात्मक गतिविधियों में वृद्धि के चक्र और विविधताओं को बढ़ाएगा।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- प्रादेशिक भूगोल में प्रदेश (Region) की संकल्पना का विस्तृत वर्णन कीजिए।
  2. प्रश्न- प्रदेशों के प्रकार का विस्तृत वर्णन कीजिये।
  3. प्रश्न- प्राकृतिक प्रदेश को परिभाषित कीजिए।
  4. प्रश्न- प्रदेश को परिभाषित कीजिए एवं उसके दो प्रकारों का उल्लेख कीजिए।
  5. प्रश्न- प्राकृतिक प्रदेश से क्या आशय है?
  6. प्रश्न- सामान्य एवं विशिष्ट प्रदेश से क्या आशय है?
  7. प्रश्न- क्षेत्रीयकरण को समझाते हुए इसके मुख्य आधारों का वर्णन कीजिए।
  8. प्रश्न- क्षेत्रीयकरण के जलवायु सम्बन्धी आधार कौन से हैं? वर्णन कीजिए।
  9. प्रश्न- क्षेत्रीयकरण के कृषि जलवायु आधार कौन से हैं? इन आधारों पर क्षेत्रीयकरण की किसी एक योजना का भारत के संदर्भ में वर्णन कीजिए।
  10. प्रश्न- भारत के क्षेत्रीयकरण से सम्बन्धित मेकफारलेन एवं डडले स्टाम्प के दृष्टिकोणों पर प्रकाश डालिये।
  11. प्रश्न- क्षेत्रीयकरण के भू-राजनीति आधार पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  12. प्रश्न- डॉ० काजी सैयदउद्दीन अहमद का क्षेत्रीयकरण दृष्टिकोण क्या था?
  13. प्रश्न- प्रो० स्पेट के क्षेत्रीयकरण दृष्टिकोण पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  14. प्रश्न- भारत के क्षेत्रीयकरण से सम्बन्धित पूर्व दृष्टिकोण पर प्रकाश डालिये।
  15. प्रश्न- प्रादेशिक नियोजन से आप क्या समझते हैं? इसके उद्देश्य भी बताइए।
  16. प्रश्न- प्रादेशिक नियोजन की आवश्यकता क्यों है? तर्क सहित समझाइए।
  17. प्रश्न- प्राचीन भारत में नियोजन पद्धतियों पर लेख लिखिए।
  18. प्रश्न- नियोजन तथा आर्थिक नियोजन से आपका क्या आशय है?
  19. प्रश्न- प्रादेशिक नियोजन में भूगोल की भूमिका पर एक निबन्ध लिखो।
  20. प्रश्न- हिमालय पर्वतीय प्रदेश को कितने मेसो प्रदेशों में बांटा जा सकता है? वर्णन कीजिए।
  21. प्रश्न- भारतीय प्रायद्वीपीय उच्च भूमि प्रदेश का मेसो विभाजन प्रस्तुत कीजिए।
  22. प्रश्न- भारतीय तट व द्वीपसमूह को किस प्रकार मेसो प्रदेशों में विभक्त किया जा सकता है? वर्णन कीजिए।
  23. प्रश्न- "हिमालय की नदियाँ और हिमनद" पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  24. प्रश्न- दक्षिणी भारत की नदियों का वर्णन कीजिए।
  25. प्रश्न- पूर्वी हिमालय प्रदेश का संसाधन प्रदेश के रूप में वर्णन कीजिए।
  26. प्रश्न- भारत में गंगा के मध्यवर्ती मैदान भौगोलिक प्रदेश पर विस्तृत टिप्पणी कीजिए।
  27. प्रश्न- भारत के उत्तरी विशाल मैदानों की उत्पत्ति, महत्व एवं स्थलाकृति पर विस्तृत लेख लिखिए।
  28. प्रश्न- मध्य गंगा के मैदान के भौगोलिक प्रदेश पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  29. प्रश्न- छोटा नागपुर का पठार पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  30. प्रश्न- प्रादेशिक दृष्टिकोण के संदर्भ में थार के मरुस्थल की उत्पत्ति, महत्व एवं विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  31. प्रश्न- क्षेत्रीय दृष्टिकोण के महत्व से लद्दाख पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
  32. प्रश्न- राजस्थान के मैदान पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  33. प्रश्न- विकास की अवधारणा को समझाइये |
  34. प्रश्न- विकास के प्रमुख कारक कौन-कौन से हैं? वर्णन कीजिए।
  35. प्रश्न- सतत् विकास का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
  36. प्रश्न- सतत् विकास के स्वरूप को समझाइये |
  37. प्रश्न- सतत् विकास के क्षेत्र कौन-कौन से हैं? वर्णन कीजिए।
  38. प्रश्न- सतत् विकास के महत्वपूर्ण सिद्धान्त एवं विशेषताओं पर विस्तृत लेख लिखिए।
  39. प्रश्न- अल्प विकास की प्रकृति के विभिन्न दृष्टिकोण समझाइए।
  40. प्रश्न- अल्प विकास और अल्पविकसित से आपका क्या आशय है? गुण्डरफ्रैंक ने अल्पविकास के क्या कारण बनाए है?
  41. प्रश्न- विकास के विभिन्न दृष्टिकोणों पर संक्षेप में टिप्पणी कीजिए।
  42. प्रश्न- सतत् विकास से आप क्या समझते हैं?
  43. प्रश्न- सतत् विकास के लक्ष्य कौन-कौन से हैं?
  44. प्रश्न- आधुनिकीकरण सिद्धान्त की आलोचना पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
  45. प्रश्न- अविकसितता का विकास से क्या तात्पर्य है?
  46. प्रश्न- विकास के आधुनिकीकरण के विभिन्न दृष्टिकोणों पर प्रकाश डालिये।
  47. प्रश्न- डॉ० गुन्नार मिर्डल के अल्प विकास मॉडल पर विस्तृत लेख लिखिए।
  48. प्रश्न- अल्प विकास मॉडल विकास ध्रुव सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए तथा प्रादेशिक नियोजन में इसकी सार्थकता को समझाइये।
  49. प्रश्न- गुन्नार मिर्डल के प्रतिक्षिप्त प्रभाव सिद्धांत की व्याख्या कीजिए।
  50. प्रश्न- विकास विरोधी परिप्रेक्ष्य क्या है?
  51. प्रश्न- पेरौक्स के ध्रुव सिद्धान्त पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  52. प्रश्न- गुन्नार मिर्डल के सिद्धान्त की समीक्षा कीजिए।
  53. प्रश्न- क्षेत्रीय विषमता की अवधारणा को समझाइये
  54. प्रश्न- विकास के संकेतकों पर टिप्पणी लिखिए।
  55. प्रश्न- भारत में क्षेत्रीय असंतुलन की प्रकृति का वर्णन कीजिए।
  56. प्रश्न- क्षेत्रीय विषमता निवारण के उपाय क्या हो सकते हैं?
  57. प्रश्न- क्षेत्रीय विषमताओं के कारण बताइये। .
  58. प्रश्न- संतुलित क्षेत्रीय विकास के लिए कुछ सुझाव दीजिये।
  59. प्रश्न- क्षेत्रीय असंतुलन का मापन किस प्रकार किया जा सकता है?
  60. प्रश्न- क्षेत्रीय असमानता के सामाजिक संकेतक कौन से हैं?
  61. प्रश्न- क्षेत्रीय असंतुलन के क्या परिणाम हो सकते हैं?
  62. प्रश्न- आर्थिक अभिवृद्धि कार्यक्रमों में सतत विकास कैसे शामिल किया जा सकता है?
  63. प्रश्न- सतत जीविका से आप क्या समझते हैं? एक राष्ट्र इस लक्ष्य को कैसे प्राप्त कर सकता है? विस्तारपूर्वक समझाइये |
  64. प्रश्न- एक देश की प्रकृति के साथ सामंजस्य से जीने की चाह के मार्ग में कौन-सी समस्याएँ आती हैं?
  65. प्रश्न- सतत विकास के सामाजिक घटकों पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
  66. प्रश्न- सतत विकास के आर्थिक घटकों का विस्तृत विवरण प्रस्तुत कीजिए।
  67. प्रश्न- सतत् विकास के लिए यथास्थिति दृष्टिकोण के बारे में समझाइये |
  68. प्रश्न- सतत विकास के लिए एकीकृत दृष्टिकोण के बारे में लिखिए।
  69. प्रश्न- विकास और पर्यावरण के बीच क्या संबंध है?
  70. प्रश्न- सतत विकास के लिए सामुदायिक क्षमता निर्माण दृष्टिकोण के आयामों को समझाइये |
  71. प्रश्न- सतत आजीविका के लिए मानव विकास दृष्टिकोण पर संक्षिप्त चर्चा कीजिए।
  72. प्रश्न- सतत विकास के लिए हरित लेखा दृष्टिकोण का विश्लेषण कीजिए।
  73. प्रश्न- विकास का अर्थ स्पष्ट रूप से समझाइये |
  74. प्रश्न- स्थानीय नियोजन की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  75. प्रश्न- भारत में नियोजन के विभिन्न स्तर कौन से है? वर्णन कीजिए।
  76. प्रश्न- नियोजन के आधार एवं आयाम कौन से हैं? वर्णन कीजिए।
  77. प्रश्न- भारत में विभिन्न पंचवर्षीय योजनाओं में क्षेत्रीय उद्देश्यों का विवरण प्रस्तुत कीजिए।
  78. प्रश्न- आर्थिक विकास में नियोजन क्यों आवश्यक है?
  79. प्रश्न- भारत में नियोजन अनुभव पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  80. प्रश्न- भारत में क्षेत्रीय नियोजन की विफलताओं पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  81. प्रश्न- नियोजन की चुनौतियां और आवश्यकताओं पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  82. प्रश्न- बहुस्तरीय नियोजन क्या है? वर्णन कीजिए।
  83. प्रश्न- पंचायती राज व्यवस्था के ग्रामीण जीवन पर पड़ने वाले प्रभाव की विवेचना कीजिए।
  84. प्रश्न- ग्रामीण पुनर्निर्माण में ग्राम पंचायतों के योगदान की विवेचना कीजिये।
  85. प्रश्न- संविधान के 72वें संशोधन द्वारा पंचायती राज संस्थाओं में जो परिवर्तन किये गये हैं उनका उल्लेख कीजिये।
  86. प्रश्न- पंचायती राज की समस्याओं का विवेचन कीजिये। पंचायती राज संस्थाओं को सफल बनाने हेतु सुझाव भी दीजिये।
  87. प्रश्न- न्यूनतम आवश्यक उपागम की व्याख्या कीजिये।
  88. प्रश्न- साझा न्यूनतम कार्यक्रम की विस्तारपूर्वक रूपरेखा प्रस्तुत कीजिये।
  89. प्रश्न- भारत में अनुसूचित जनजातियों के विकास हेतु क्या उपाय किये गये हैं?
  90. प्रश्न- भारत में तीव्र नगरीयकरण के प्रतिरूप और समस्याओं की विवेचना कीजिए।
  91. प्रश्न- पंचायती राज व्यवस्था की समस्याओं की विवेचना कीजिये।
  92. प्रश्न- प्राचीन व आधुनिक पंचायतों में क्या समानता और अन्तर है?
  93. प्रश्न- पंचायती राज संस्थाओं को सफल बनाने हेतु सुझाव दीजिये।
  94. प्रश्न- भारत में प्रादेशिक नियोजन के लिए न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम के महत्व का वर्णन कीजिए।
  95. प्रश्न- न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम के सम्मिलित कार्यक्रमों का वर्णन कीजिए।
  96. प्रश्न- भारत के नगरीय क्षेत्रों के प्रादेशिक नियोजन से आप क्या समझते हैं?

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