बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 भूगोल बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 भूगोलसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 भूगोल - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- सुदूर संवेदन की कार्य प्रणाली को चित्र सहित समझाइये |
उत्तर -
सुदूर संवेदन की कार्य प्रणाली
रिमोट सेन्सिंग मुख्यतः 8 चरणों के फलस्वरूप उपयोगी सिद्ध होता है। हम सभी जानते हैं कि पृथ्वी पर ऊर्जा का प्रमुख स्रोत सूर्य है जिस पर सभी जीव-जन्तु निर्भर रहते हैं। सूर्य से ऊर्जा विद्युत चुम्बकीय तरंगों (electromagnetic waves) के रूप में पृथ्वी पर आपतित ( incident ray) होती है। ये विद्युत चुम्बकीय तरंगें दृश्यमान (visible) तथा अदृश्यमान ( invisible), दोनों ही प्रकार की होती हैं। उपग्रह द्वारा इन्हीं विकिरणों का उपयोग मुख्य रूप से वस्तुओं को चिन्हित करने के लिए किया जाता है। अतः चरण A ऊर्जा स्रोत रिमोट सेन्सिंग में अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। चरण B में सूर्य से पृथ्वी पर विकिरणों के आपतन (incidence) के समय पृथ्वी के वातावरण से संचरण एवं घर्षण होता है। चरण C में पृथ्वी पर मौजूद वस्तुओं से इनका सम्पर्क होता है। चरण D में विकिरणों के धरातल से सम्पर्क के पश्चात् परावर्तन (reflection) होता है। आपतन के समय वातावरण में उपस्थित विभिन्न आकार के धूल कणों एवं बादलों से इनका परावर्तन एवं अपवर्तन की घटना होती है जो कि आसमान के नीले रंग, बादलों के सफेद, सूर्यास्त एवं सूर्योदय के समय लाल छटा के लिए उत्तरदायी होते हैं। ऐसे विकिरण जो सीधे पृथ्वी पर पहुँच जाते हैं उनका विभिन्न वस्तुओं जैसे कि जलाशय, मृदा, वनस्पति, अचल सम्पत्तियों आदि से परस्पर क्रिया होती है जिसके दौरान विकिरण के दृश्यमान सीमा (visible range) के स्पेक्ट्रम ( spectrum) का कुछ भाग वस्तु द्वारा अवशोषित कर लिया जाता है और कुछ परावर्तित हो जाता है। यह परावर्तित विकिरण पुनः वातावरण में मौजूद कणों से होते हुए उपग्रहों पर रिकॉर्ड (record) कर लिया जाता है और इस प्रकार चरण C (विकिरणों की धरातल से परस्पर सम्पर्क), चरण D ( विकिरणों के धरातल से सम्पर्क के पश्चात् परावर्तन ) (reflection ) एवं चरण E (उपग्रह द्वारा प्राप्त परावर्तित विकिरणों की रिकार्डिंग) की प्रक्रिया पूरी हो जाती है। उपग्रहीय तस्वीरों में विभिन्न वस्तुओं का अलग-अलग रंग होना दृश्यमान सीमा एवं अवरक्त (infrared) सीमा के किसी एक स्पेक्ट्रम के परावर्तन की क्रिया के द्वारा होता है। चरण E में पृथ्वी द्वारा परावर्तित की गयी विभिन्न विकिरणों का उपग्रह द्वारा रिकॉर्डिंग करने के पश्चात् चरण F में जानकारी के आँकड़ों को पृथ्वी पर उपस्थित धरातलीय स्टेशन पर प्रेषित कर दिया जाता है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान (ISRO) द्वारा प्रक्षेपित किये गये उपग्रहों से प्राप्त जानकारी के आँकड़ों को National Remote Sensing Centre (NRSC), सादनगर, हैदराबाद स्थित धरातलीय स्टेशन (ground receiving station) पर रिसीव करते हैं।
उपग्रहों से प्राप्त आँकड़ों में कई प्रकार की त्रुटियाँ रहती हैं--जैसे कि तस्वीरों के कुछ हिस्सों का पूर्ण रूप से काला हो जाना, वस्तुओं का अतिरंजन (exaggeration) या अभिरंजन (Stain) होना, तस्वीरों की प्रकाशीय गुणवत्ता (optical quality) में कमी होना इत्यादि। इन त्रुटियों को दूर करके अन्त में तस्वीरों को हार्ड कॉपी (hard copy ) या साफ्ट कॉपी (soft copy) में रूपान्तरित कर लिया जाता है। इस प्रकार चरण G की प्रक्रिया पूरी की जाती है। सम्पत्ति कर प्रबंधन में वस्तु विशेष जैसे कि बहुमंजिला इमारत के अतिरंजन की त्रुटि को सही करना विशेष महत्व रखता है। बहुमंजिला भवनों के अतिरंजित होने से भवन की ऊँचाई का सही मापन नहीं हो पाता है। ऐसे भवन जो कि उपग्रह में मौजूद सेंसर के ठीक नीचे होते हैं, उनमें अतिरंजन नहीं होता है जबकि सेंसर से जैसे-जैसे दूरी बढ़ती जाती है, भवनों की अतिरंजन त्रुटि बढ़ती जाती है। रोजाना सभी लोग सामान्य कैमरे से फोटो खींचते हैं। उसमें भी अतिरंजन की त्रुटि होती है। जो वस्तु कैमरे के पास होती है वह बड़ी दिखती है और जो दूर होती है वह छोटी दिखती है। इसी प्रकार यदि किसी भवन का फोटो लेते हैं तो यदि हम उसके विभिन्न आयाम अर्थात् लंबाई, चौड़ाई और ऊंचाई को स्केल से नापें तो वे उस अनुपात में नहीं होंगी जो कि वास्तव में हैं। इसी प्रकार उपग्रह से प्राप्त तस्वीरों में यह त्रुटियाँ होती हैं। अतिरंजित वस्तुओं की त्रुटि को दूर करके आर्थोफोटो का निर्माण किया जाता है।
आर्थोफोटो (Ortho photo) ऐसा उपग्रह अथवा विमान से लिया गया फोटो होता है। जिसे ज्यामितीय रूप से ठीक किया जा चुका है (Ortho rectified) ताकि इस फोटो में दिखाई गई वस्तुएं एकसमान स्केल (Scale) पर प्रदर्शित हों और इस फोटो को उसी प्रकार प्रयोग में लाया जा सके जैसे एक तकनीकी चित्रण ( Engineering drawing)/नक्शे अथवा मानचित्र को प्रयोग में लाया जाता है। इस प्रकार त्रुटि रहित आँकड़ों का प्रयोग करके विभिन्न शहरी इन्फ्रॉस्ट्रक्चर को सही ज्यामितीय स्वरूप में चिन्हित करके अन्त में जी० आई०एस० तकनीक के माध्यम से डेटाबेस प्रबंधन का कार्य किया जाता है और इस प्रकार चरण G की प्रक्रिया पूरी कर ली जाती है।
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- प्रश्न- भौगोलिक सूचना तंत्र के उद्देश्य बताइये।
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