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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 गृह विज्ञान

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :200
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2782
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 गृह विज्ञान - सरल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- वस्त्र निर्माण में काम आने वाले रेशों का चयन करते समय किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?

उत्तर -

वस्त्रों का निर्माण विभिन्न प्रकार के रेशों (Fabrics) के द्वारा किया जाता है। रेशों का चयन करते समय बहुत सी बातों का ध्यान रखना चाहिए, जैसे उनके भौतिक तथा रासायनिक गुणों का। रेशे अगर वस्त्रों के निर्माण के लिए अनिवार्य गुण नहीं रखते हैं एवं इसके बावजूद भी हम इनका उपयोग वस्त्रों के निर्माण में करते हैं तो इन रेशों से बने वस्त्र अल्प अवधि तक ही रहेंगे, ये अधिक दिन तक टिक नहीं पायेंगे। वस्त्रों के निर्माण के लिए रेशों में निम्नलिखित गुणों का होना अनिवार्य होता है-

पर्याप्त दृढ़ता (Proper Strength) - वस्त्रों के निर्माण में वही रेशे उपयुक्त होंगे या प्रयोग में लाये जा सकते हैं, जिनमें मजबूती हो। ये वस्त्रों को लम्बी अवधि तक उपयोग के लिए बनाते हैं। वस्त्रों को बनाते समय रेशों को अत्यधिक खींचा-तानी तथा तनाव सहना पड़ता है, अगर रेशें मजबूत होंगे तभी वो ये खींच-तान सह सकेंगे, अन्यथा वे टूट जायेंगे। इसलिए वस्त्रों के निर्माण के लिए रेशों का मजबूत होना आवश्यक होता है। कभी-कभी कमजोर रेशे भी मिलकर एक मजबूत कपड़े का निर्माण कर देते हैं।

लम्बाई (Length) - वस्त्रों के निर्माण के लिए लम्बे रेशे उपयुक्त होते हैं क्योंकि लम्बे रेशे से अटूट धागा बनाना आसान होता है। रेशे की लम्बाई जितनी अधिक होगी, उससे उतना ही चिकना धागा बनेगा। छोटे रेशे से बने धागे के छोर अधिकतर ऊपर की तरफ की तरफ आ जाते हैं जिससे इन धागों से बनने वाले कपड़े अक्सर खुरदरे होते हैं। छोटे रेशे की अपेक्षा लम्बे रेशे से बने कपड़े अधिक मजबूत होते हैं। लम्बे रेशों से बने कपड़े उत्तम कोटि के होते हैं।

कंपास का रेशा बहुत ही छोटा होता है, इसके कुछ रेशे तो केवल आधे इंच तक के ही होते हैं इसके बावजूद इससे बहुत उपयोगी वस्त्र बनाये जाते हैं। सिल्क के रेशे जो लगभग चार हजार फिट तक लम्बे होते हैं उनसे भी बहुत सुन्दर वस्त्र बनाये जाते हैं। लम्बे रेशों का उपयोग अच्छी कोटि के वस्त्रों के निर्माण में किया जाता है जबकि छोटे रेशों का उपयोग निम्न कोटि या साधारण वस्त्रों के निर्माण में किया जाता है।

आपस में जुड़ने की क्षमता (Cohesiveness of Spinnability) - रेशे बहुत छोटे और सूक्ष्म होते हैं इसलिए अगर इनमें आपस में जुड़ने का गुण होता है तो ये बहुत मजबूत हो जायेंगे तथा ये वस्त्रों के निर्माण कार्य के लिए भी बहुत उपयोगी सिद्ध होते हैं। इन धागों से बटाई की क्रिया के द्वारा लम्बे धागे बनाये जा सकते हैं। कपास में आपस में जुड़ने का गुण पाया जाता है।

प्रत्यास्थता (Elasticity) - सूक्ष्म रेशों को आपस में जोड़कर लम्बे धागे का निर्माण किया जाता है। इसके लिए इन्हें खींचकर या बटाई के द्वारा लम्बा किया जाता है। इस प्रक्रिया में इन पर अत्यधिक खिचाव और तनाव पड़ता है। इस कारण से इनमें प्रसारित होने का गुण होना चाहिए, जिससे वो इस खिंचाव या तनाव से टूटे नहीं। वस्त्रों के निर्माण काल में भी इन सूक्ष्म धागों पर खिंचाव और तनाव पड़ता है। इन धागों में खिंचाव तथा तनाव को सहन करने की क्षमता तभी होगी जब इन धागों का निर्माण उन सूक्ष्म रेशों से हुआ हो जिसमें प्रत्यास्थता का गुण विद्यमान हो। प्रत्यास्थता का गुण धागों को खिंचाव तथा तनाव सहन करने की क्षमता प्रदान करता है।

प्रतिस्कंदता (Resilency) - रेशों में प्रतिस्कंदता का गुण होना चाहिए, इस गुण की वजह से कपड़ो में सिकुड़न नहीं आती है। इस गुण की वजह से कपड़ों को मोड़ने के बाद पुनः इसे सीधा करना आसान होता है, ये आसानी से अपने पूर्ण रूप में आ जाते हैं।

लचीलापन (Flexibility) - रेशों में लचीलापन होना अच्छा होता है, यह गुण इन्हें खिंचाव और तनाव को सहन करने की क्षमता प्रदान करता है। बटाई और कटाई के समय लचीलापन का गुण रेशों और धागों में होने वाले खिंचाव को सहन करने की क्षमता प्रदान करता है। रेशों का यह गुण वस्त्रों की सुन्दरता बढ़ाने, उसमें प्लेट डालने, झालर (लेस) लगाने आदि में मदद करता है, जिससे वस्त्रों का सौन्दर्य और अधिक बढ़ जाता है।

'कोमलता (Softness) - रेशों के कोमल होने से उससे बनने वाले वस्त्र भी कोमल होते हैं, जिससे इन रेशों से बनने वाले परिधान पहनने में बहुत ही आरामदायक होते हैं और पहनने वाले को बहुत पंसद आते हैं। कठोर रेशों से बनने वाले धागे से डोरी, रस्सी, बोरी, टाट आदि वस्तुएँ बनायी जाती हैं। परिधान बनाने के लिए सामान्यतः कोमल रेशो का ही उपयोग किया जाता हैं।

चमक तथा क्रांति (Luster) - जिन वस्त्रों में प्राकृतिक चमक होती है, उनके रेशों में भी प्राकृतिक चमक होती है। प्राकृतिक चमक युक्त रेशों से बने धागे तथा इन धागों से बने परिधान की चमक अलग ही होती है। इसलिए प्राकृतिक चमक वाले रेशों से बने परिधान अत्यन्त सुन्दर तथा प्राकृतिक क्रांति लिये हुए होते हैं। रेशों में यह गुण होने से यह वस्त्रों की खूबसूरती बढ़ा देता है।

अवशोषकता (Absorbency) - रेशों में नमी और आर्द्रता को अवशोषित करने का गुण होना चाहिए। नमी और आर्द्रता को अवशोषित करने की वजह से इन रेशों से बने वस्त्र जल्दी गंदे हो जाते हैं तथा इनकी सफाई भी नियमित रूप से होती रहती है। आसानी से धोने और सुखाने की वजह से यह वस्त्र सभी को पसंद आते हैं तथा यह स्वास्थ्य के लिए भी बहुत लाभदायक होते हैं। नमी को ग्रहण करना तथा नमी को मुक्त करने का गुण रेशों में होने से इन्हें पानी द्वारा भी काफी हद तक साफ किया जा सकता है। नमी और आर्द्रता अवशोषित करने वाले रेशों से बने वस्त्र पसीने को आसानी से सोख लेते हैं। इन रेशों से बने वस्त्र पसीने को आसानी से उड़ा देते हैं। इन रेशों से बने वस्त्र शरीर को शीतलता तथा स्वच्छता प्रदान करते हैं इसलिए ये स्वास्थ्य के लिए बहुत उत्तम होते हैं।

विद्युतीय संवाहिता (Electrical Conductivity) - वस्त्र बनाने में उन्हीं रेशों का उपयोग किया जाता है जो इलेक्ट्रिक चार्ज को संवाहित करने की क्षमता रखते हैं। जिन रेशों में यह गुण विद्यमान नहीं होता है, उनमें इलेक्ट्रिक चार्ज को वस्त्र की सतह पर केन्द्रित कर दिया जाता है जिससे इलेक्ट्रिक चार्ज उत्पन्न हो जाता है। कई तहों में सिन्थेटिक कपड़ों का उपयोग करके इलेक्ट्रिक चार्ज उत्पन्न किया जाता है।

समसमानता (Uniformity) - रेशे लम्बाई, आकार एवं व्यास में जब एकरूपता रखते हैं तो इनकी व्यावसायिक उपयोगिता बढ़ जाती है। एकरूपता से रेशों की कताई क्षमता भी बढ़ जाती है। प्राकृतिक रेशों में समसमानता विभिन्न रूप में होती है जिसे छांटकर और इसकी समानता का ध्यान रखकर इसकी लच्छियाँ बनायी जाती हैं। संश्लेषित रेशों को आकार, व्यास और आकृति में समानता लाने के लिए कृत्रिम रूप से नियंत्रित किया जाता है।

शोधक पदार्थों तथा क्रियाओं के अनुकूल प्रतिक्रिया (Favourable Reaction to Cleansing Materials and Process) - वस्त्रों का प्रयोग हम रोज करते हैं, जिसकी वजह से वो रोज ही गंदे हो जाते हैं। कभी-कभी इन पर दाग-धब्बे भी लग जाते हैं, जिसे साफ करने के लिए रसायनों का भी कभी-कभी उपयोग करना पड़ता है। वस्त्रों को साफ करने वाले शोधक कई प्रकार के होते हैं। इसमें से कुछ क्षारीय, अम्लीय तथा उदासीन भी होते हैं। कुछ शोधक कोमल तथा प्राकृतिक भी होते हैं। वस्त्रों को स्वच्छ करने के लिए शोधक पदार्थ की आवश्यकता पड़ती है। शोधक का उपयोग करते समय इस बात का विशेष ध्यान रखना पड़ता है कि ये वस्त्रों के भौतिक तथा रासायनिक गुणों को किसी भी तरह से कोई हानि ना पहुँचायें। वस्त्र धुलने के बाद पुराने जैसे नहीं लगने चाहिए अर्थात् वस्त्र धुलने के बाद भी नये जैसे ही लगने चाहिए, ऐसा तभी हो सकता है जब उस वस्त्र को बनाने में उपयोग किये गये रेशे शोधक के प्रति अनुकूल प्रतिक्रिया दें। रेशों में अनुकूल शोधक पदार्थों के प्रति अनुकूल प्रतिक्रिया देने का गुण विद्यमान होना चाहिए। जो रेशे धुलाई के बाद सिकुड़ जाते हैं उनमें आकार का स्थायित्व नहीं रहता है। सिकुड़ने के बाद कपड़े की लम्बाई, चौड़ाई आदि घट जाती है जिसकी वजह से कपड़े का आकार बिगड़ जाता है और वो पहले जैसा नहीं रहता है, उसकी सुन्दरता कम हो जाती है। ऐसे कपड़े कभी-कभी पहनने वाले की नाप से छोटे भी हो जाते हैं। इसलिए रेशों में शोधक के प्रति अनुकूल प्रतिक्रिया होनी चाहिए, जिससे वो धुलाई के बाद भी पहले की ही तरह रहें।

घनत्व और विशिष्ट गुरुत्व (Density and Specific Gravity) - उच्च घनत्व वाले रेशों से कपड़े बनाये जाते हैं। सारे वस्त्र उपयोगी रेशे ओलफिन रेशे से भारी होते हैं। हल्के रेशों की क्षेत्र क्षमता अधिक होती है। उच्च घनत्व वाले रेशों का उपयोग करके भारी वस्त्रों का निर्माण किया जाता है। कम घनत्व वाले रेशों से हल्के कपड़ों का निर्माण किया जाता है। रेशों के इस गुण की वजह से कपड़े हल्के होकर भी गर्म रहते हैं।

अपघर्षण प्रतिरोधक क्षमता (Abrasion Resistance) - यह रेशे का एक महत्वपूर्ण भौतिक गुण है जो रेशों को घिसावट का सामना करने की क्षमता प्रदान करता है। जिन रेशों में अपघर्षण प्रतिरोधक क्षमता नहीं पायी जाती है, वो कमजोर होते हैं तथा जल्दी ही टूट जाते हैं इसलिए रेशों में अपघर्षण प्रतिरोधक क्षमता होनी चाहिए।

रासायनिक, वातावरणीय अवस्था तथा जीवाणु के प्रति प्रतिरोध (Resistance to Chemicals, Environmental Conditions and Biological Organism) - वस्त्रों के निर्माण के लिए रेशों में कुछ विशेषताएँ और होनी चाहिए, जैसे उनमें प्रज्वलन सम्बन्धी विशेषताएँ, रसायनों के लिए प्रतिक्रिया, ताप पर उनका व्यवहार (उच्च ताप, मध्यम ताप तथा निम्न ताप पर) सूक्ष्म जीवाणुओं के प्रति प्रतिक्रिया, वातावरणीय अवस्थाओं पर असर, आदि गुण भी रेशों में होने चाहिए।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- विभिन्न प्रकार की बुनाइयों को विस्तार से समझाइए।
  2. प्रश्न- निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। 1. स्वीवेल बुनाई, 2. लीनो बुनाई।
  3. प्रश्न- वस्त्रों पर परिसज्जा एवं परिष्कृति से आप क्या समझती हैं? वस्त्रों पर परिसज्जा देना क्यों अनिवार्य है?
  4. प्रश्न- वस्त्रों पर परिष्कृति एवं परिसज्जा देने के ध्येय क्या हैं?
  5. प्रश्न- निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। (1) मरसीकरण (Mercercizing) (2) जल भेद्य (Water Proofing) (3) अज्वलनशील परिसज्जा (Fire Proofing) (4) एंटी-सेप्टिक परिसज्जा (Anti-septic Finish)
  6. प्रश्न- परिसज्जा-विधियों की जानकारी से क्या लाभ है?
  7. प्रश्न- विरंजन या ब्लीचिंग को विस्तापूर्वक समझाइये।
  8. प्रश्न- वस्त्रों की परिसज्जा (Finishing of Fabrics) का वर्गीकरण कीजिए।
  9. प्रश्न- कैलेण्डरिंग एवं टेण्टरिंग परिसज्जा से आप क्या समझते हैं?
  10. प्रश्न- सिंजिइंग पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  11. प्रश्न- साइजिंग को समझाइये।
  12. प्रश्न- नेपिंग या रोयें उठाना पर टिप्पणी लिखिए।
  13. प्रश्न- निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखिए - i सेनफोराइजिंग व नक्काशी करना।
  14. प्रश्न- रसॉयल रिलीज फिनिश का सामान्य परिचय दीजिए।
  15. प्रश्न- परिसज्जा के आधार पर कपड़े कितने प्रकार के होते हैं?
  16. प्रश्न- कार्य के आधार पर परिसज्जा का वर्गीकरण कीजिए।
  17. प्रश्न- स्थायित्व के आधार पर परिसज्जा का वर्गीकरण कीजिए।
  18. प्रश्न- वस्त्रों की परिसज्जा (Finishing of Fabric) किसे कहते हैं? परिभाषित कीजिए।
  19. प्रश्न- स्काउअरिंग (Scouring) या स्वच्छ करना क्या होता है? संक्षिप्त में समझाइए |
  20. प्रश्न- कार्यात्मक परिसज्जा (Functional Finishes) किससे कहते हैं? संक्षिप्त में समझाइए।
  21. प्रश्न- रंगाई से आप क्या समझतीं हैं? रंगों के प्राकृतिक वर्गीकरण को संक्षेप में समझाइए एवं विभिन्न तन्तुओं हेतु उनकी उपयोगिता का वर्णन कीजिए।
  22. प्रश्न- वस्त्रोद्योग में रंगाई का क्या महत्व है? रंगों की प्राप्ति के विभिन्न स्रोतों का वर्णन कीजिए।
  23. प्रश्न- रंगने की विभिन्न प्रावस्थाओं का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  24. प्रश्न- कपड़ों की घरेलू रंगाई की विधि की व्याख्या करें।
  25. प्रश्न- वस्त्रों की परिसज्जा रंगों द्वारा कैसे की जाती है? बांधकर रंगाई विधि का विस्तार से वर्णन कीजिए।
  26. प्रश्न- बाटिक रंगने की कौन-सी विधि है। इसे विस्तारपूर्वक लिखिए।
  27. प्रश्न- वस्त्र रंगाई की विभिन्न अवस्थाएँ कौन-कौन सी हैं? विस्तार से समझाइए।
  28. प्रश्न- वस्त्रों की रंगाई के समय किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
  29. प्रश्न- डाइरेक्ट रंग क्या हैं?
  30. प्रश्न- एजोइक रंग से आप क्या समझते हैं?
  31. प्रश्न- रंगाई के सिद्धान्त से आप क्या समझते हैं? संक्षिप्त में इसका वर्णन कीजिए।
  32. प्रश्न- प्राकृतिक डाई (Natural Dye) के लाभ तथा हानियाँ क्या-क्या होती हैं?
  33. प्रश्न- प्राकृतिक रंग (Natural Dyes) किसे कहते हैं?
  34. प्रश्न- प्राकृतिक डाई (Natural Dyes) के क्या-क्या उपयोग होते हैं?
  35. प्रश्न- छपाई की विभिन्न विधियों का वर्णन कीजिए।
  36. प्रश्न- इंकजेट (Inkjet) और डिजिटल (Digital) प्रिंटिंग क्या होती है? विस्तार से समझाइए?
  37. प्रश्न- डिजिटल प्रिंटिंग (Digital Printing) के क्या-क्या लाभ होते हैं?
  38. प्रश्न- रंगाई के बाद (After treatment of dye) वस्त्रों के रंग की जाँच किस प्रकार से की जाती है?
  39. प्रश्न- स्क्रीन प्रिटिंग के लाभ व हानियों का वर्णन कीजिए।
  40. प्रश्न- स्टेन्सिल छपाई का क्या आशय है। स्टेन्सिल छपाई के लाभ व हानियों का वर्णन कीजिए।
  41. प्रश्न- पॉलीक्रोमैटिक रंगाई प्रक्रिया के बारे में संक्षेप में बताइए।
  42. प्रश्न- ट्रांसफर प्रिंटिंग किसे कहते हैं? संक्षिप्त में समझाइए।
  43. प्रश्न- पॉलीक्रोमैटिक छपाई (Polychromatic Printing) क्या होती है? संक्षिप्त में समझाइए।
  44. प्रश्न- भारत की परम्परागत कढ़ाई कला के इतिहास पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  45. प्रश्न- सिंध, कच्छ, काठियावाड़ और उत्तर प्रदेश की चिकन कढ़ाई पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  46. प्रश्न- कर्नाटक की 'कसूती' कढ़ाई पर विस्तार से प्रकाश डालिए।
  47. प्रश्न- पंजाब की फुलकारी कशीदाकारी एवं बाग पर संक्षिप्त लेख लिखिए।
  48. प्रश्न- टिप्पणी लिखिए : (i) बंगाल की कांथा कढ़ाई (ii) कश्मीर की कशीदाकारी।
  49. प्रश्न- कच्छ, काठियावाड़ की कढ़ाई की क्या-क्या विशेषताएँ हैं? समझाइए।
  50. प्रश्न- कसूती कढ़ाई का विस्तृत रूप से उल्लेख करिए।
  51. प्रश्न- सांगानेरी (Sanganeri) छपाई का विस्तृत रूप से विवरण दीजिए।
  52. प्रश्न- कलमकारी' छपाई का विस्तृत रूप से वर्णन करिए।
  53. प्रश्न- मधुबनी चित्रकारी के प्रकार, इतिहास तथा इसकी विशेषताओं के बारे में बताईए।
  54. प्रश्न- उत्तर प्रदेश की चिकन कढ़ाई का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  55. प्रश्न- जरदोजी कढ़ाई का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  56. प्रश्न- इकत शब्द का अर्थ, प्रकार तथा उपयोगिता बताइए।
  57. प्रश्न- पोचमपल्ली पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  58. प्रश्न- बगरू (Bagru) छपाई का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  59. प्रश्न- कश्मीरी कालीन का संक्षिप्त रूप से परिचय दीजिए।
  60. प्रश्न- भारत के परम्परागत वस्त्रों पर संक्षिप्त में एक टिप्पणी लिखिए।
  61. प्रश्न- भारत के परम्परागत वस्त्रों का उनकी कला तथा स्थानों के संदर्भ में वर्णन कीजिए।
  62. प्रश्न- चन्देरी साड़ी का इतिहास व इसको बनाने की तकनीक बताइए।
  63. प्रश्न- हैदराबाद, बनारस और गुजरात के ब्रोकेड वस्त्रों की विवेचना कीजिए।
  64. प्रश्न- बाँधनी (टाई एण्ड डाई) का इतिहास, महत्व बताइए।
  65. प्रश्न- टाई एण्ड डाई को विस्तार से समझाइए |
  66. प्रश्न- कढ़ाई कला के लिए प्रसिद्ध नगरों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  67. प्रश्न- पटोला वस्त्रों का निर्माण भारत के किन प्रदेशों में किया जाता है? पटोला वस्त्र निर्माण की तकनीक समझाइए।
  68. प्रश्न- औरंगाबाद के ब्रोकेड वस्त्रों पर टिप्पणी लिखिए।
  69. प्रश्न- गुजरात के प्रसिद्ध 'पटोला' वस्त्र पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  70. प्रश्न- पुरुषों के वस्त्र खरीदते समय आप किन बातों का ध्यान रखेंगी? विस्तार से समझाइए।
  71. प्रश्न- वस्त्रों के चुनाव को प्रभावित करने वाले तत्वों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  72. प्रश्न- फैशन के आधार पर वस्त्रों के चुनाव को समझाइये।
  73. प्रश्न- परदे, ड्रेपरी एवं अपहोल्स्ट्री के वस्त्र चयन को बताइए।
  74. प्रश्न- वस्त्र निर्माण में काम आने वाले रेशों का चयन करते समय किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
  75. प्रश्न- रेडीमेड (Readymade) कपड़ों के चुनाव में किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
  76. प्रश्न- अपहोल्सटरी के वस्त्रों का चुनाव करते समय किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
  77. प्रश्न- गृहोपयोगी लिनन (Household linen) का चुनाव करते समय किन-किन बातों का विशेष ध्यान रखने की आवश्यकता पड़ती है?
  78. प्रश्न- व्यवसाय के आधार पर वस्त्रों के चयन को स्पष्ट कीजिए।
  79. प्रश्न- सूती वस्त्र गर्मी के मौसम के लिए सबसे उपयुक्त क्यों होते हैं? व्याख्या कीजिए।
  80. प्रश्न- अवसर के अनुकूल वस्त्रों का चयन किस प्रकार करते हैं?
  81. प्रश्न- मौसम के अनुसार वस्त्रों का चुनाव किस प्रकार करते हैं?
  82. प्रश्न- वस्त्रों का प्रयोजन ही वस्त्र चुनाव का आधार है। स्पष्ट कीजिए।
  83. प्रश्न- बच्चों हेतु वस्त्रों का चुनाव किस प्रकार करेंगी?
  84. प्रश्न- गृह उपयोगी वस्त्रों के चुनाव में ध्यान रखने योग्य बातें बताइए।
  85. प्रश्न- फैशन एवं बजट किस प्रकार वस्त्रों के चयन को प्रभावित करते हैं? समझाइये |
  86. प्रश्न- लिनन को पहचानने के लिए किन्ही दो परीक्षणों का वर्णन कीजिए।
  87. प्रश्न- ड्रेपरी के कपड़े का चुनाव कैसे करेंगे? इसका चुनाव करते समय किन-किन बातों पर विशेष ध्यान दिया जाता है?
  88. प्रश्न- वस्त्रों की सुरक्षा एवं उनके रख-रखाव के बारे में विस्तार से वर्णन कीजिए।
  89. प्रश्न- वस्त्रों की धुलाई के सामान्य सिद्धान्त लिखिए। विभिन्न वस्त्रों को धोने की विधियाँ भी लिखिए।
  90. प्रश्न- दाग धब्बे कितने वर्ग के होते हैं? इन्हें छुड़ाने के सामान्य निर्देशों को बताइये।
  91. प्रश्न- निम्नलिखित दागों को आप किस प्रकार छुड़ायेंगी - पान, जंग, चाय के दाग, हल्दी का दाग, स्याही का दाग, चीनी के धब्बे, कीचड़ के दाग आदि।
  92. प्रश्न- ड्राई धुलाई से आप क्या समझते हैं? गीली तथा शुष्क धुलाई में अन्तर बताइये।
  93. प्रश्न- वस्त्रों को किस प्रकार से संचयित किया जाता है, विस्तार से समझाइए।
  94. प्रश्न- वस्त्रों को घर पर धोने से क्या लाभ हैं?
  95. प्रश्न- धुलाई की कितनी विधियाँ होती है?
  96. प्रश्न- चिकनाई दूर करने वाले पदार्थों की क्रिया विधि बताइये।
  97. प्रश्न- शुष्क धुलाई के लाभ व हानियाँ लिखिए।
  98. प्रश्न- शुष्क धुलाई में प्रयुक्त सामग्री व इसकी प्रयोग विधि को संक्षेप में समझाइये?
  99. प्रश्न- धुलाई में प्रयुक्त होने वाले सहायक रिएजेन्ट के नाम लिखिये।
  100. प्रश्न- वस्त्रों को स्वच्छता से संचित करने का क्या महत्व है?
  101. प्रश्न- वस्त्रों को स्वच्छता से संचयित करने की विधि बताए।

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