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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 गृह विज्ञान

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :200
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2783
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 गृह विज्ञान - सरल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- सामुदायिक विकास संगठन की सैद्धान्तिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिये।

उत्तर -

सामुदायिक विकास संगठन कार्य के सिद्धान्त

सामुदायिक विकास संगठन कार्य के कुछ प्रमुख सिद्धान्त निम्नलिखित हैं-

(1) स्वीकृति का सिद्धान्त - सामुदायिक संगठन कार्य का यह प्रथम एवं महत्वपूर्ण सिद्धान्त है जिसका ज्ञान कार्यकर्ता के लिए अत्यन्त आवश्यक है। कार्यकर्ता को चाहिए कि-

(i) वह समुदाय को उसी रूप में स्वीकार करें जिस रूप में समुदाय दिखाई देता है।

(ii) अपने को समुदाय से स्वीकार कराये अर्थात् कार्यकर्ता को अपने कार्य के प्राथमिक चरण में सामुदायिक सदस्यों द्वारा बतायी गई समस्या को ही नहीं बल्कि समुदाय की रूढ़ियों, परम्पराओं, सभ्यता-संस्कृति एवं सामुदायिक मूल्यों को गहराई से समझना चाहिए और सराहना चाहिए। क्योंकि प्रत्येक समुदाय की न केवल अपनी अलग संस्कृति होती है वरन् उस समुदाय के लोगों के लिए वह अन्य समुदाय की संस्कृति एवं सभ्यता से उत्तम होती है। इसलिए सामुदायिक संगठन कार्यकर्ता को समुदाय विशेष के प्रत्येक कार्य व्यवहार को भावनात्मक धरातल पर देखना चाहिए। इसके साथ-साथ कार्यकर्ता को अपने विचार-व्यवहार क्रिया-प्रतिक्रिया को समुदाय के व्यवहार से जोड़ते हुए दोनों में तालमेल स्थापित करना चाहिए और समुदाय के साथ अपने आपको इस प्रकार जोड़ना चाहिए ताकि समुदाय उसे अपना ले।

(2) मूलभूत आवश्यकताओं एवं उपलब्ध साधनों के ज्ञान का सिद्धान्त - सामुदायिक संगठन कार्यकर्ता समुदाय में सदस्यों के साथ एक मार्गदर्शक के रूप में कार्य करता है। इसलिए समुदाय को स्वीकार करने एवं अपने को समुदाय द्वारा स्वीकृत करने के पश्चात् उसे समुदाय की उन तमाम आवश्यकताओं का पता लगाना चाहिए जो समुदाय के सदस्यों की नजर में महत्वपूर्ण हों।

कार्यकर्ता को कभी भी अपने समुदाय की आवश्यकता या जिस समुदाय में वह कार्य कर चुका है कि आवश्यकता को प्रत्येक समुदाय की आवश्यकता नहीं मानना चाहिए। बल्कि जिस समुदाय में वह अब कार्य कर रहा है उसके द्वारा महसूस की गयी आवश्यकताओं का पता लगाना चाहिए। हो सकता है कि एक समुदाय के लिए सार्वजनिक टेलीफोन उसकी आवश्यकता हो और दूसरे के लिए उच्च शिक्षण संस्था सामाजिक कार्यकर्ता का मुख्य उद्देश्य सामुदायिक आवश्यकताओं एवं उपलब्ध साधनों में तालमेल स्थापित करना है। इसलिए सामुदायिक संगठन कार्यकर्ता को स्वयं समुदाय में एवं समुदाय के आस-पास कार्यरत सरकारी एवं गैर-सरकारी, स्वयं सेवी संस्थाओं द्वारा उपलब्ध विभिन्न साधनों का पता लगाना चाहिए तथा सामुदायिक कल्याण के विकास के लिए उन्हें संचालित करना चाहिए।

(3) व्यक्तिकरण का सिद्धान्त - एक बड़े सामुदायिक भू-भाग में विभिन्न सामाजिक एवं आर्थिक स्तर के लोग निवास करते हैं। विभिन्न सामाजिक-आर्थिक विशेषताओं के कारण इनकी समस्यायें भिन्न-भिन्न होती हैं। सामुदायिक संगठन कार्यकर्ताओं को समस्यागत विशेषताओं की भिन्नता को स्वीकार करते हुए उनमें व्याप्त विभिन्न समस्याओं का अध्ययन करना चाहिए तथा सभी की समस्याओं को समझने की कोशिश करनी चाहिए। सामुदायिक संगठन कार्यकर्ता को चाहिए कि वह सभी समूहों एवं उपसमूहों के सदस्यों से मिलकर उनकी समस्याओं का अध्ययन करे। विभिन्न एकत्रित समस्याओं के अध्ययनोपरान्त सामान्य एवं सार्वजनिक लाभ प्रदान करने वाली समस्याओं को प्राथमिकता दे। इसके साथ-साथ किसी वर्ग विशेष की अपनी सामाजिक-आर्थिक स्थिति के कारण अपनी समस्याएँ हो सकती हैं जो अन्य वर्गों से भिन्न हो सकती हैं। इसलिए कार्यकर्ता को वर्ग विशेष की विशेष समस्याओं का भी पता लगाना चाहिए।

(4) आत्म-संकल्प का सिद्धान्त - सामुदायिक संगठन कार्यकर्ता सामुदायिक सदस्यों के साथ कार्य कर उनकी योग्यता एवं ज्ञान का विकास उन्हें आत्म निर्भर बनाने में करता है। उसे सामुदायिक संगठन कार्य के प्रत्येक चरण में सदस्यों की शक्तियों एवं योग्यताओं का विकास आवश्यक दिशा में करते रहना चाहिए। उसे सदस्यों में अपनी समस्याओं एवं आवश्यकताओं को पहचानने, उपलब्ध विभिन्न साधनों का पता लगाने तथा दोनों के बीच आवश्यक तालमेल स्थापित करने के लिए आवश्यक निर्णय लेने का पूरा-पूरा खुला अवसर प्रदान करना चाहिए। कार्यकर्ता को आवश्यकतानुसार आवश्यक ज्ञान से उनका ज्ञानवर्द्धन तो अवश्य करना चाहिए। लेकिन उन्हें निर्णय लेने की पूर्ण स्वतन्त्रता देनी चाहिए। इससे वे अपने को जिम्मेदार महसूस करेंगे और अपने द्वारा लिये गये निर्णय के कार्यान्वयन एवं उसके उद्देश्य की प्राप्ति के लिये प्रयत्नशील रहेंगे।

(5) सीमाओं के बीच स्वतन्त्रता का सिद्धान्त - सामुदायिक संगठन कार्यकर्ता को समुदाय में लिये जा रहे प्रत्येक निर्णय में सदस्यों की इस प्रकार सहायता करनी चाहिए जिससे वे ऐसे निर्णय ले सकें जिसमें समुदाय के अधिकाधिक जरूरतमन्द लोगों का कल्याण हो सके। यदि कार्यकर्ता को लगे कि सामुदायिक सदस्य ऐसा निर्णय लेने जा रहे हैं जिससे समुदाय के किसी विशेष पक्ष या वर्ग के लोगों को ही लाभ होगा तो उस समय कार्यकर्ता को सामुदायिक शक्तियों को हाथ में रखने वाले प्रमुख सदस्यों के सहयोग एवं अपने चातुर्य से इसे रोकना चाहिए। यह समझदार कार्यकर्ता समुदाय में लिये जा रहे निर्णयों को आवश्यक मार्गदर्शन देता है, समुदाय अधिकाधिक लोगों के लिए उसे लाभकर बनाने का प्रयत्न करता है, सदस्यों का यथासम्भव ज्ञानवर्द्धने करता है तथा समुदाय की समस्याओं एवं आवश्यकताओं के सम्बन्ध में लिए जा रहे निर्णयों में आवश्यक परिवर्तन एवं नियन्त्रण स्थापित करने का प्रयास करता है।

(6) नियन्त्रित संवेगात्मक सम्बन्ध का सिद्धान्त - सामुदायिक संगठन कार्यकर्ता को सदस्यों की समस्याओं को सूक्ष्मता से ग्रहण करना चाहिए और अपने व्यावसायिक ज्ञान के आधार पर उनका प्रत्युत्तर देना चाहिए। समुदाय की समस्याओं, परिस्थितियों की सत्यता महसूस करते हुए उसे अपने प्रभावपूर्ण एवं कुशल ज्ञान से प्रभावपूर्ण एवं आवश्यक निर्णय लेना चाहिए। कार्यकर्ता को सामुदायिक सदस्यों की समस्याओं को सुनने में अपने ध्यान, ज्ञान, विचार एवं एकाग्रता को सदस्यों के ध्यान, ज्ञान, विचार एवं एकाग्रता के साथ जोड़ना चाहिये, लेकिन चिंतन एवं निर्णय के समय उसको अपने व्यावसायिक पक्षों को ध्यान में रखकर समस्या उन्मूलक प्रभावपूर्ण निर्णय लेना चाहिए।

(7) लचीले कार्यात्मक संगठन का सिद्धान्त - सामुदायिक संगठन कार्यकर्ता को चाहिए कि वह सभी सदस्यों को इकट्ठा कर एक ऐसे प्रभावपूर्ण संगठन का निर्माण कराये जिसमें समुदाय के विभिन्न क्षेत्रों में निवास करने वाले, विभिन्न जाति, धर्म एवं सामाजिक- आर्थिक वर्ग वाले सदस्य शामिल हों। कार्यकर्ता को इस प्रकार के संगठन के निर्माण में इसके आकार पर भी ध्यान देना चाहिए। आकार ऐसा होना चाहिए जो न ही अधिक बड़ा हो और न ही अधिक छोटा। संगठन के नेता का चुनाव कराने में भी सदस्यों की इस प्रकार सहायता करनी चाहिए जिससे वे ऐसे नेता का चुनाव करें जो संगठन की जिम्मेदारी निभाने, समुदाय की आवश्यकताओं एवं समस्याओं को पहचानने तथा समुदाय की स्वीकृति हासिल करने में निपुण हो साथ ही वह ऐसा भी हो जो विरोधी समूहों एवं उपसमूहों के तनावों को प्रभावकारी ढंग से रोक सके।

हर संगठन को एक व्यवस्थित नियम में बाँधने की आवश्यकता होती है जिससे संगठन के जिम्मेदार चयनित कार्यकर्ता कुछ समय तक कार्य करने के पश्चात अपनी जिम्मेदारियों से मुक्त हो सकें। संगठन के कर्मचारियों में संगठन के कार्यों का पूरा बंटवारा होना चाहिए। कार्यों के कार्यान्वयन तथा जिम्मेदार कर्मचारियों की जिम्मेदारियों को कम करने के लिए कुछ समितियों एवं उपसमितियों का निर्माण किया जाना चाहिए।

(8) उद्देश्यपूर्ण सम्बन्ध का सिद्धान्त - सामुदायिक संगठन कार्यकर्ता समुदाय में एक व्यावसायिक कार्यकर्ता के रूप में कार्य करता है। इसलिए उसे अपने व्यावसायिक उद्देश्य के विषय में सचेत रहना चाहिए। उसे सदस्यों में भी अपने उद्देश्य के विषय में पूर्ण चेतना पैदा करनी चाहिए। उद्देश्यपूर्ण सम्बन्धों की मजबूती के लिए आवश्यक है कि वह समुदाय के उन शक्तिशाली संगठनों, समूह एवं उपसमूह के सदस्यों से भी अपना प्रगाढ़ सम्बन्ध बनाये जिनसे किसी-न-किसी रूप से समुदाय प्रभावित हो सके।

अपने व्यावसायिक उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए आवश्यक है कि कार्यकर्ता अपने कार्य में नियमितता बरते। इस नियमितता को तब तक बनाये रखना चाहिए जब तक उसे विश्वास न हो जाये कि सामुदायिक सदस्यों में अब अपनी समस्याओं व आवश्यकताओं को पहचानने और आवश्यकताओं एवं उपलब्ध साधनों के बीच तालमेल स्थापित करने की आत्मशक्ति का विकास हो गया।

(9) प्रगतिशील कार्यक्रम सम्बन्धी अनुभव का सिद्धान्त - सामुदायिक संगठन कार्यकर्ता की कार्यक्रम के निर्धारण के समय उसके आधार बिन्दुओं को स्पष्ट करते हुए कार्यक्रम विकास की प्रक्रिया में सदस्यों की अभिरूचियों, आवश्यकताओं और योग्यताओं का पता लगाना चाहिए। सामुदायिक कार्यक्रम बाहरी संस्था द्वारा निश्चित नहीं होना चाहिए। 'कार्यकर्ता को उपलब्ध समुदाय कल्याण के स्तर को देखकर विभिन्न प्रकार के आवश्यक कार्यक्रमों की तरफ संकेत करना चाहिए। आरम्भ में संचालित कार्यक्रम समुदाय की योग्यता एवं क्षमता के अनुसार छोटे, आसान और अल्पकालीन होने चाहिए। इस प्रकार आसान कार्यक्रमों से आरम्भ कर जटिल एवं उपयोगी कार्यक्रमों को बनाने में सदस्यों की मदद करनी चाहिए। कार्यकर्ता को सदस्यों की सामूहिक योजना बनाने, कार्यक्रम तैयार करने, उनका क्रियान्वयन करने, संचालित कार्यक्रमों के मूल्यांकन करने एवं मूल्यांकन के आधार पर कार्यक्रमों में सुधार करने में सदस्यों का मार्गदर्शन करना चाहिए।

(10) जन सहभागिता का सिद्धान्त - सामुदायिक संगठन कार्यकर्ता को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि सामुदायिक संगठन कार्य सामुदायिक सदस्यों के लिए, सदस्यों के द्वारा और सदस्यों के साथ किया जाना है। किसी भी कार्यक्रम की सफलता के लिए सदस्यों की सहभागिता अत्यन्त आवश्यक है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए कार्यकर्ता को न केवल कार्यक्रम की योजना तैयार करने और उसके कार्यान्वयन में ही सदस्यों की सहभागिता पर बल देना चाहिए बल्कि समुदाय के अन्दर एवं आस-पास उपलब्ध साधनों को पहचानने और प्रत्येक चरण पर किए जाने वाले निर्णयों में भी उनकी सहभागिता को प्रोत्साहित करना चाहिए। इसमें ऐसे सभी लोगों को भी शामिल करना चाहिए जो औपचारिक रूप से समुदाय के कल्याण के लिए कार्यरत हों।

सामुदायिक कार्यकर्ताओं को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि सामुदायिक सदस्य सामुदायिक कल्याण योजनाओं एवं कार्यक्रमों को किसी बाहरी संस्था या संगठन का कार्यक्रम न समझ बैठें। यदि सामुदायिक सदस्य प्रत्येक निर्णय में सहभागी होंगे तो वे इसे अपना निर्णय एवं अपना कार्यक्रम मानकर इसे सफल बनाने में अपनी जिम्मेदारी महसूस करेंगे।

(11) साधन संचालन का सिद्धान्त - सामुदायिक कार्यकर्ता की सफलता के लिए आवश्यक है कि समुदाय के अन्दर एवं आसपास उपलब्ध विभिन्न सरकारी एवं गैर-सरकारी साधनों के अध्ययनोपरान्त इस बात का निर्णय लें कि समुदाय की आवश्यकता की प्राथमिकता के अनुसार वर्तमान परिस्थितियों में पहले किस साधन को, किसके द्वारा और किस प्रकार संचालित किया जाये। कार्यकर्ता को विभिन्न उपलब्ध साधनों के संचालित कराते समय, समुदाय के विभिन्न संगठनों में आवश्यक समन्वय स्थापित करते हुए साधन संचालन में उनकी शक्तियों को प्रयोग में लाना चाहिए। ऐसा करने में आने वाली समस्याओं से बचने तथा कार्यक्रम को बांधाहीन बनाने के लिए सतत प्रयत्नशील रहना चाहिए।

(12) मूल्यांकन का सिद्धान्त - कार्यक्रम आयोजन एवं संचालन के पश्चात् कार्यकर्ता को कार्यक्रम में रही कमियों एवं त्रुटियों का मूल्यांकन करना चाहिए। मूल्यांकन न केवल पिछले कार्यक्रमों में आयी हुई त्रुटियों को जानने के लिए उपयोगी है बल्कि नए कार्यक्रमों के आयोजन एवं कार्यान्वयन के लिए भी। मूल्यांकन से प्राप्त ज्ञान का उचित सदुपयोग नियोजित की जाने वाली कार्यक्रमों में करने से कार्यान्वयन में आने वाली बाधाओं की सम्भावनायें हट जाती हैं।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- सामुदायिक विकास से आप क्या समझते हैं? सामुदायिक विकास कार्यक्रम की विशेषताएँ बताइये।
  2. प्रश्न- सामुदायिक विकास योजना का क्षेत्र एवं उपलब्धियों का वर्णन कीजिए।
  3. प्रश्न- सामुदायिक विकास कार्यक्रम के उद्देश्यों को विस्तारपूर्वक समझाइए।
  4. प्रश्न- सामुदायिक विकास की विधियों को समझाइये।
  5. प्रश्न- सामुदायिक विकास कार्यक्रम के सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
  6. प्रश्न- सामुदायिक विकास की विशेषताएँ बताओ।
  7. प्रश्न- सामुदायिक विकास के मूल तत्व क्या हैं?
  8. प्रश्न- सामुदायिक विकास के सिद्धान्त बताओ।
  9. प्रश्न- सामुदायिक विकास कार्यक्रम की सफलता हेतु सुझाव दीजिए।
  10. प्रश्न- सामुदायिक विकास कार्यक्रम क्या है?
  11. प्रश्न- सामुदायिक विकास योजना संगठन को विस्तार से समझाइए।
  12. प्रश्न- सामुदायिक संगठन से आप क्या समझते हैं? सामुदायिक संगठन को परिभाषित करते हुए इसकी विभिन्न परिभाषाओं का वर्णन कीजिए।
  13. प्रश्न- सामुदायिक संगठन की विभिन्न परिभाषाओं के आधार पर तत्त्वों का वर्णन कीजिए।
  14. प्रश्न- सामुदायिक संगठन के विभिन्न प्रकारों को स्पष्ट कीजिए।
  15. प्रश्न- सामुदायिक विकास संगठन की सैद्धान्तिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिये।
  16. प्रश्न- सामुदायिक संगठन के विभिन्न उद्देश्यों का वर्णन कीजिए।
  17. प्रश्न- सामुदायिक संगठन की आवश्यकता क्यों है?
  18. प्रश्न- सामुदायिक विकास संगठन के दर्शन पर संक्षिप्त लेख लिखिए।
  19. प्रश्न- सामुदायिक विकास संगठन की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  20. प्रश्न- सामुदायिक विकास प्रक्रिया के अन्तर्गत सामुदायिक विकास संगठन कितनी अवस्थाओं से गुजरता है?
  21. प्रश्न- सामुदायिक विकास संगठन की विशेषताएँ बताइये।
  22. प्रश्न- सामुदायिक संगठन और सामुदायिक विकास में अंतर स्पष्ट कीजिए।
  23. प्रश्न- सामुदायिक विकास संगठन और सामुदायिक क्रिया में अंतर बताइये।
  24. प्रश्न- सामुदायिक विकास संगठन के प्रशासनिक ढांचे का वर्णन कीजिए।
  25. प्रश्न- सामुदायिक विकास में सामुदायिक विकास संगठन की सार्थकता एवं भूमिका का वर्णन कीजिए।
  26. प्रश्न- गृह विज्ञान प्रसार शिक्षा से आप क्या समझते हैं? गृह विज्ञान प्रसार शिक्षा का क्षेत्र समझाइये।
  27. प्रश्न- गृह विज्ञान प्रसार शिक्षा के उद्देश्यों का विस्तार से वर्णन कीजिये।
  28. प्रश्न- गृह विज्ञान प्रसार शिक्षा की विशेषताएँ समझाइयें।
  29. प्रश्न- ग्रामीण विकास में गृह विज्ञान प्रसार शिक्षा का महत्व समझाइये।
  30. प्रश्न- गृह विज्ञान प्रसार शिक्षा के क्षेत्र, आवश्यकता एवं परिकल्पना के विषय में विस्तार से लिखिए।
  31. प्रश्न- समेकित बाल विकास सेवा (ICDS) कार्यक्रम को विस्तार से समझाइए।
  32. प्रश्न- स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना के बारे में बताइए।
  33. प्रश्न- राष्ट्रीय कैडेट कोर (NCC) पर एक टिप्पणी लिखिये।
  34. प्रश्न- राष्ट्रीय सेवा योजना (N.S.S.) पर टिप्पणी लिखिये।
  35. प्रश्न- नेहरू युवा केन्द्र संगठन का परिचय देते हुए इसके विभिन्न कार्यक्रमों का वर्णन कीजिए।
  36. प्रश्न- नेहरू युवा केन्द्र पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
  37. प्रश्न- कपार्ट एवं गैर-सरकारी संगठन की विकास कार्यक्रम में महत्वपूर्ण घटक की भूमिका निभाते हैं? विस्तृत टिप्पणी कीजिए।
  38. प्रश्न- बाल कल्याण से सम्बन्ध रखने वाली प्रमुख संस्थाओं का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
  39. प्रश्न- हेल्प एज इण्डिया के विषय में आप क्या जानते हैं? यह बुजुर्गों के लिए किस प्रकार महत्वपूर्ण है? प्रकाश डालिए।
  40. प्रश्न- संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) से आप क्या समझते हैं? इसके कार्यों व महत्व पर प्रकाश डालिये।
  41. प्रश्न- बाल विकास एवं आप (CRY) से आप क्या समझते हैं? इसके कार्यों एवं मूल सिद्धान्तों पर प्रकाश डालिए।
  42. प्रश्न- CRY को मिली मान्यता एवं पुरस्कारों के विषय में बताइए।
  43. प्रश्न- बाल अधिकार का अर्थ क्या है?
  44. प्रश्न- बच्चों के लिए सबसे अच्छा एनजीओ कौन-सा है?
  45. प्रश्न- राष्ट्रीय बाल अधिकार दिवस कब मनाया जाता है?
  46. प्रश्न- नेतृत्व से आप क्या समझते है? नेतृत्व की प्रमुख विशेषताओं का विश्लेषण कीजिये।
  47. प्रश्न- नेतृत्व के विभिन्न प्रारूपों (प्रकारों) की विस्तृत विवेचना कीजिए।
  48. प्रश्न- नेतृत्व प्रशिक्षण से आप क्या समझते हैं? इसके महत्व पर प्रकाश डालिए।
  49. प्रश्न- नेतृत्व प्रशिक्षण की प्रमुख प्रविधियों का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
  50. प्रश्न- कार्यस्थल पर नेताओं की पहचान करने की विधियों का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
  51. प्रश्न- ग्रामीण क्षेत्रों में कितने प्रकार के नेतृत्व पाए जाते हैं?
  52. प्रश्न- परम्परागत ग्रामीण नेतृत्व की विशेषताएँ बताइये।
  53. प्रश्न- नेतृत्व प्रशिक्षण को किन बाधाओं का सामना करना पड़ता है?
  54. प्रश्न- नेतृत्व की प्रमुख विशेषताओं को बताइए।
  55. प्रश्न- नेतृत्व का क्या महत्व है? साथ ही नेतृत्व के स्तर को बताइए।
  56. प्रश्न- नेतृत्व प्रशिक्षक से आप क्या समझते हैं? एक नेतृत्व प्रशिक्षक में कौन-से गुण होने चाहिए? संक्षेप में बताइए।
  57. प्रश्न- एक अच्छा नेता कैसा होता है या उसमें कौन-से गुण होने चाहिए?
  58. प्रश्न- एक अच्छा नेता कैसा होता है या उसमें कौन-से गुण होने चाहिए?
  59. प्रश्न- विकास कार्यक्रम का अर्थ स्पष्ट करते हुए विकास कार्यक्रम के मूल्यांकन में विभिन्न भागीदारों के महत्व का वर्णन कीजिए।
  60. प्रश्न- विकास कार्यक्रम चक्र को विस्तृत रूप से समझाइये | इसके मूल्यांकन पर भी प्रकाश डालिए।
  61. प्रश्न- विकास कार्यक्रम तथा उसके मूल्यांकन के महत्व का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  62. प्रश्न- सामुदायिक विकास कार्यक्रम के प्रमुख घटक क्या हैं?
  63. प्रश्न- कार्यक्रम नियोजन से आप क्या समझते हैं?
  64. प्रश्न- कार्यक्रम नियोजन की प्रक्रिया का उदाहरण सहित विस्तृत वर्णन कीजिए।
  65. प्रश्न- अनुवीक्षण / निगरानी की विकास कार्यक्रमों में क्या भूमिका है? टिप्पणी कीजिए।
  66. प्रश्न- निगरानी में बुनियादी अवधारणाएँ और तत्वों का विस्तृत विवरण प्रस्तुत कीजिए।
  67. प्रश्न- निगरानी के साधन और तकनीकों का तुलनात्मक अध्ययन कीजिए।
  68. प्रश्न- मूल्यांकन डिजाइन (मूल्यांकन कैसे करें) को समझाइये |
  69. प्रश्न- मूल्यांकन के विभिन्न पहलुओं पर विस्तृत चर्चा कीजिए।
  70. प्रश्न- मूल्यांकन की विभिन्न विधियों का वर्णन कीजिए।
  71. प्रश्न- निगरानी का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
  72. प्रश्न- निगरानी के विभिन्न प्रकारों का वर्णन कीजिए।
  73. प्रश्न- निगरानी में कितने प्रकार के सूचकों का प्रयोग किया जाता है?
  74. प्रश्न- मूल्यांकन का अर्थ और विशेषताएँ बताइये।
  75. प्रश्न- निगरानी और मूल्यांकन के बीच अंतर लिखिए।
  76. प्रश्न- मूल्यांकन के विभिन्न प्रकारों को समझाइये।

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