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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 हिन्दी - साहित्यशास्त्र और हिन्दी आलोचना

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :200
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2784
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 हिन्दी - साहित्यशास्त्र और हिन्दी आलोचना- सरल प्रश्नोत्तर

खण्ड क

अध्याय - 1   
भारतीय काव्यशास्त्र

काव्य प्रयोजन

प्रश्न- काव्य के प्रयोजन पर प्रकाश डालिए।

अथवा
काव्य के प्रयोजन के विषय में भारतीय काव्यशास्त्रियों के चिन्तन पर प्रकाश डालते हुये काव्य के प्रमुख प्रयोजन बताइए।

सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
1. मम्मट के आधार पर काव्य-प्रयोजनों का नाम लिखिए और किसी एक काव्य-प्रयोजन की व्याख्या कीजिए।
अथवा
श्री काव्य प्रयोजन का अर्थ स्पष्ट कीजिये।
अथवा
2. 'शिवेतरक्षतये' से आपका क्या आशय है? किन आचार्यों ने इसे महत्वपूर्ण काव्य प्रयोजन माना है?
अथवा
आचार्य मम्मट के काव्य-प्रयोजन का परिचय देते हुए समीक्षा कीजिए।

उत्तर -

काव्य प्रयोजन : मानव जीवन के सभी क्रियाकलाप उद्देश्यपूर्ण होते हैं। संस्कृत की यह लोकोक्ति इसी तथ्य को प्रमाणित करती है - 'प्रयोजनमनुदिश्य मन्दोऽपि न प्रवर्तते अर्थात् बिना प्रयोजन के मन्द बुद्धि (मूर्ख) भी कोई कार्य नहीं करता। साहित्यकार तो अपनी सृजन-क्षमता के कारण ब्रह्मा के समान माना गया है, फिर उसका कार्य प्रयोजन विहीन कैसे हो सकता है? इस प्रयोजन को इस प्रकार भी कहा जा सकता है कि साहित्यकार क्यों लिखता है? इस प्रकार काव्य (साहित्य) - सृजन में साहित्यकार के जो भी उद्देश्य रहते हैं, वे ही काव्य (साहित्य) के प्रयोजन कहलाते हैं।

भारतीय संस्कृत आचार्यों द्वारा बताये गये प्रयोजन

भरतमुनि : भरतमुनि के काल तक नाट्य और काव्य में कोई अन्तर नहीं था। अतः उनके द्वारा बताये गये प्रयोजन नाट्य के संदर्भ में ही है, पर उन्हें 'साहित्य/काव्य के संदर्भ में भी देखा जा सकता वस्तुतः वे अपनी ग्रन्थ-रचना का प्रयोजन इस प्रकार बताते हैं-

दुःखार्त्ताना श्रमार्त्तानां शोक कर्त्तानां तपस्वि नाम्।
विश्राम जननं लोके नाट्यमेतद् भविष्यति ॥

अर्थात् यह नाट्यशास्त्र भविष्य में संसार के दुःखों से, श्रम से, शोक से पीड़ित तपस्वियों (लोगों) सुख प्रदान करने वाला होगा। इस प्रकार भरतमुनि 'लोकहित' या 'लोकमंगल' को ही महत्व देते प्रतीत होते हैं। उन्होंने 'स्वान्तः सुखाय' का उल्लेख नहीं किया है। यह बात अलग है कि वे 'रसास्वादन' का विवेचन करते समय 'हर्षादिग्वधिगच्छन्ति' कहकर आनन्द को पूर्ण रूप से स्वीकार करते हैं।

भामह :

अलंकारवादी भामह के अनुसार- 

धर्मार्थकाम मोक्षेषु वैचक्षण्यं कलासु च।।
करोति प्रीतिं कीर्ति च साधुकाव्य निबन्धम् ॥

उनके अनुसार - धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति काव्य का प्रयोजन है। साथ ही कलाओं में विलक्षणता, कीर्ति और प्रीति भी प्रयोजन ही है, जिससे कवि रचना करके अपने यश को संसार में अमर रखना चाहता है।

वामन : वामन ने दो काव्य प्रयोजन बताये - कीर्ति और प्रीति (आनन्द)। उन्होंने कर्ता की दृष्टि से ही विचार किया है। वे काव्य प्रयोजन के दो रूप मानते हैं-

दृष्ट प्रयोजन : यह आनन्द अथवा प्रीति की उपलब्ध कराता है।
अदृष्ट प्रयोजन : इससे यश या कीर्ति प्राप्त होती है

'काव्य सद् दृष्टा दृष्टार्थ प्रीति-कीर्ति हेतुत्वात्।'   --काव्यालंकार सूत्र

दण्डी : दण्डी ने प्रयोजन की चर्चा नहीं की है, पर उन्होंने 'शब्द' के महत्व की जो चर्चा की ज्ञान का प्रकाश देने वाला, यश को स्थायित्व प्रदान करने वाला - इस आधार पर साहित्य का प्रयोजन ज्ञान और यश की प्राप्ति स्वीकार किया जा सकता है

इदमन्धं तमः कृत्स्नं जायेत भुवनत्रयम।
यदि शब्दाहृयं ज्योंरासान्न दीप्यते।।

कुन्तक : आपके अनुसार-

धर्मादिसाधनोपायः सुकुमारक्रमोदितः।
काव्य बन्धोऽभिजातानां हृदयाहादकारक।।

अर्थात् काव्य आह्लाद उत्पन्न करने वाला तथा धर्मादि सिद्धि का मार्ग है वे आगे यह भी कहते हैं कि काव्यामृत सहृदयों के अन्तःकरण में चर्तुवर्ग - रूप फल के अस्वाद से भी बढ़कर चमत्कार उत्पन्न करने वाला होता है

चर्तुवर्ग फलास्वादमप्यपतिक्रम्प तद्विदाम्।
काव्यामृतसेनान्तश्चमत्कारी वितन्यते

इस प्रकार काव्य के प्रयोजन माने गये-

(1) चर्तुवर्ग की प्राप्ति
(2) व्यवहार और औचित्य का परिज्ञान
(3) अद्वितीय अंतश्चमत्कार की प्राप्ति।

आपके अनुसार चर्तुवर्ग की प्राप्ति अन्य शास्त्रों से भी हो सकती है, किन्तु काव्य से कोमल बुद्धि के लोग भी लाभ उठा सकते हैं, जबकि शास्त्र के द्वारा यह सबके लिए संभव नहीं हो सकता।

रुद्रट : रुद्रट ने काव्य के प्रयोजनों की चर्चा (काव्यालंकार) की है। उनके अनुसार- युगान्त तक रहने वाला यश स्तुत्यादि द्वारा धन प्राप्ति, विपत्ति-नाश, आनन्द-प्राप्ति, आप्तकामना और पुरुषार्थ चतुष्टय की प्राप्ति ही काव्य का प्रयोजन है।

आनन्दवर्द्धन : ये ध्वनिवादी थे, अतः इन्होंने काव्य प्रयोजनाओं का पृथक रूप से कोई विचार नहीं किया है। इन्होंने मात्र यही कहा है-

'तेन ब्रूमः सहृदय मनः प्रीयते तत्स्वरूपम्।
(मनः प्रीयते कहकर ये मनोरंजन को ही महत्व देते 

अभिनव गुप्त : इन्होंने भी ध्वनि सिद्धान्त की व्याख्या करते हुए कहा कि कवि को दो फल प्राप्त होते हैं - कीर्ति और प्रीति। कीर्ति भी प्रीति (आनन्द) का कारण है। अतः ये प्रीति को ही महत्व देते हैं।

राजशेखर : ये भी काव्य के प्रयोजनाओं की चर्चा कवि और सामाजिक दोनों दृष्टियों के आधार पर करते हैं - सामाजिक (सहृदय) की दृष्टि से काव्य का प्रयोजन आनन्द की प्राप्ति है और कवि की दृष्टि से अक्षय कीर्ति।

पंडितराज जगन्नाथ : आपने प्रीति (आनन्द) तथा गुरु-राजा-देवता की प्रसन्नता को काव्य का प्रयोजन स्वीकार किया है- 

तत्र कीर्तिः परमाह्लाद गुरूराज देवता।
प्रसादाद्यनेक प्रयोजनकस्य काव्यस्य व्युत्पत्तेः ॥

मम्मट : भारतीय काव्यशास्त्र में इस दृष्टि से मम्मट की सर्वाधिक मान्यता है।

'काव्यप्रकाश' में आपने काव्य प्रयोजन का उल्लेख निम्नवत् किया है-

"सफल प्रयोजन - मौलिमूतं समन्तरमेव रसास्वादन
समुद्रभूतं विगलित वेद्यान्तरमानन्दम्।'

मम्मट के अनुसार : प्रयोजन सृष्टा और सहृदय दोनों के लिए है। आपने 6 सर्वाधिक मान्य प्रयोजन की चर्चा संक्षेप में की है जो निम्नवत् हैं- 

(1) यश: यश की कामना, जिसे लोकेषणा की भावना भी कहा गया है, मानव की महत्वपूर्ण कामना है। अतः यश काव्य-सृजन की प्रमुख प्रेरक शक्ति स्वीकार की जा सकती है। मिल्टन के अनुसार- 'अन्तिम निर्बलता यश है।

(2) अर्थ : पुरुषार्थ चतुष्टय का एक भाग है और लौकिक जीवन में सर्वाधिक महत्वपूर्ण तत्व है अतः अर्थ-प्राप्ति की कामना काव्य सृजन की प्रेरणा बन सकती है। डा. गुलाबराय के अनुसार लेखकों का ध्येय अपने ग्रन्थों की पाठ्यक्रमों में लगवा कर अथवा जनता के मनोरंजनार्थ कहानी, उपन्यास आदि लिखकर उनकी बिक्री से अर्थोपार्जन होता है।

(3) व्यवहार कुशलता : लोक व्यवहार शून्य व्यक्ति समाज में आदर नहीं पाता। यह ज्ञान व्यक्ति को शास्त्र, कहानी, उपन्यास, काव्य-सूक्तियाँ आदि से ही प्राप्त हो सकता है।

(4) अनिष्ट निवारण : इसके दो रूपों की मान्यता है -

(अ) सृष्टा की अनिष्ट निवारण के बाद कल्याण की कामना - देवस्तुति आदि से संभव होती है। मम्मटानुसार - मयूर कवि ने सूर्य से कोढ़ निवारण की प्रार्थना 'सूर्यसतक' में की। तुलसी ने 'हनुमान बाहुक अपनी बाहु-पीड़ा निवारणार्थ ही रचा था।

(ब) समाज कल्याण की भावना - इसमें देश और समाज का हित निहित होता है।

(5) आनन्द (सद्यः परिनिर्वृति) : डॉ. रामद्वत भारद्वाज इसे काव्य का मुख्य उद्देश्य मानते हैं। काव्य के आस्वादन से जो रस-रूपी आनन्द मिलता है, वही इसका लक्ष्य है।

(6) कान्ता-सम्मत उपदेश : प्रिया के मधुर शब्दों का प्रभाव शीघ्र होता है। शास्त्र में तीन वचनों का उल्लेख हैं-

प्रभु-सम्म - इन उपदेशों में लोक-व्यवहार की नीति रहती है जो वेदादि में पायी जाती है
सहृदय-सम्मत:
इसमें पुराणों के उपदेश गिने जा सकते हैं।
कान्ता-सम्मत -
इसमें प्रेम मिश्रित उपदेश रहता है। काव्य में मधुरता होती है, वह शीघ्र प्रभाव डालती है।

चतुर्वर्ग फल प्राप्ति : काव्यशास्त्र की रूपरेखा में इसे 'शिवेतरक्षतये के अन्तर्गत स्वीकार किया जाता है।

आचार्य मम्मट द्वारा निर्दिष्ट काव्य-प्रयोजन सर्वाधिक स्वीकृत है। वे काव्य के निम्नलिखित प्रयोजन बताते हैं-

काव्यं यशसेऽर्थकृते व्यवहारविदे शिवेतरक्षतये।
सद्यः परनिर्वृतये कान्तासम्मितययोपदेशयुजे ॥

अर्थात् यश की प्राप्ति, अर्थ का उत्पादन, लोक-व्यवहार का बोधन, अनिष्ट का नाशन, अलौकिक आनन्द की प्राप्ति और स्त्रियोचित सरस पद्धति से कर्त्तव्याकर्त्तव्य का उपदेश देना ही काव्य का प्रयोजन है।

आचार्य मम्मट ने अपने छः काव्य प्रयोजनों में से 'सद्यः परनिर्वृत' अर्थात् काव्य पठन अथवा नाटक प्रेक्षण के साथ ही तुरन्त परम आनन्द रसास्वादों की प्राप्ति कोव्य का सर्वप्रमुख प्रयोजन माना है। इसके बाद दूसरा स्थान उपदेश भी प्रेयसी के द्वारा दिये गये उपदेश के समान एवं सहज मान्य होता है।

इसके बारे में मुख्य प्रश्न यह है कि इन प्रयोजनों में से किन प्रयोजनों का अधिकारी कवि है तथा किन प्रयोजनों का अधिकारी सहृदय है। 'साद्यः परनिर्वृतये की व्याख्या के द्वारा इस प्रश्न का समाधान हो जाता है कि यश, धन तथा रोग नाश का सीधा सम्बन्ध कवि से है तथा व्यवहार कान्ता सम्मति उपदेश का सीधा सम्बन्ध सहृदय के साथ है लेकिन काव्यों के अध्ययन तथा अध्यापन के द्वारा कोई सहृदय भी यश एवं अर्थ की प्रप्ति कर सकता है इसी प्रकार कोई कवि भी अपनी रचना के माध्यम उवहारिक ज्ञान एवं प्रदेश ग्रहण कर सकता है। अतः यह कहा जा सकता है कि सहृदय व्यक्ति तथा कवि दोनों ही उपचार के द्वारा दो दो प्रयोजनों के अधिकारी माने जा सकते हैं। इस सन्दर्भ में एक प्रचलित कथा है कि गोस्वामी तुलसीदास जी को हनुमान बाहुक की रचना करने पर बाहुपीड़ा रोग से छुटकारा मिल गया था। यद्यपि यह कथन इस वैज्ञानिक में मान्य नहीं हो सकता है।

इसी प्रकार रसास्वाद प्रयोजन की प्राप्ति मम्मट के टीकाकारों के अनुसार सहृदय व्यक्ति को ही होती है। यदि कवि को भी अपने काव्य में रसास्वाद की प्राप्ति होती है तो उसे तत्काल सहृदय भी मानना होगा।

हिन्दी आचार्य

(1) कुलपति : आपके प्रयोजन संबंधी लक्षण मम्मट के आधार पर ही हैं, जैसे-

जस, सम्पत्ति, आनन्द अति, दुक्खनि डारै खोई।
होत कक्ति तै चतुरई, जगत वाम बस होइ।

(2) देव : ये यश को महत्व प्रदान करते हैं -

ऊँच-नीच अरु कर्म बस, चलो जात संसार।
रहत भव्य भगवत जस, नव्य काव्य सुखसार ॥

(3) भिखारीदास : ये अर्थ, यश और आनन्द को महत्व देते हैं। ये कवियों के जीवन की स्थिति प्रस्तुत करते हुए कहते हैं

एक लहैं, तप पुंजन के फल, ज्यों तुलसी अरु सूर गुसाई।
एक लहैं बहु सम्पत्ति के शव, भूषन ज्यों वर बीर बड़ाई।
एकह को जस ही सौं प्रयोजन, है रसखानि रहीम की नाई।
दास कवितन्ह की चरचा बुद्धिबन्तन को सुखहै सब ठाई ॥

(4) तुलसीदास : यद्यपि तुलंसी काव्यशास्त्र परम्परा में नहीं गिने जाते, फिर भी आपने ग्रंथारम्भ के समय अपने ग्रंथ का प्रयोजन स्पष्ट करते हुए 'स्वान्तः सुखाय' की चर्चा के साथ उसे लोक हित' के समर्थित माना है।

(5) सुमित्रानन्दन पन्त : पन्त जी भी 'स्वान्तः सुखाय' और 'परजन हिताय' के समर्थक हैं।

(6) आचार्य रामचन्द्र शुक्ल : प्रायः सुनने में आता है कि कविता का उद्देश्य मनोरंजन है। पर कविता का अन्तिम लक्ष्य जगत के मार्मिक पक्षों का प्रत्यक्षीकरण, उनके साथ मनुष्य हृदय का सामंजस्य स्थापन है।

(7) डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी : "मैं साहित्य को मनुष्य की दृष्टि से देखने का पक्षपाती हूँ। जो वाग्जाल मनुष्य को दुर्गति, हीनता और परमुखापेक्षिता से बचा सके, जो उसकी आत्मा को तेजोद्दीप्त न कर सके, जो उसके हृदय को परदुखकातर और संवेदनशील न बना सके, उसे साहित्य कहने में मुझे संकोच होता है।"

(8) डॉ. गुलाबराय : "सब प्रयोजनों में वही उत्तम है, जो आत्मा की व्यापक से व्यापक और अधिक से अधिक सम्पन्न अनुभूति में सहायक हो।"

(6) आचार्य नन्ददुलारे वाजपेयी : "काव्यानुभूति स्वतः एक अखण्ड आत्मिक व्यापार है। काव्य का प्रयोजन मनोरंजन, सामाजिक वैषम्य से दूर भागना अथवा पलायन भी नहीं हो सकता, क्योंकि वैसी अवस्था में आत्मानुभूति के प्रकाशन का पूरा अवसर रचयिता को नहीं मिल सकेगा।"

(10) डॉ. नगेन्द्र : "साहित्य का प्रयोजन आत्माभिव्यक्ति है। कवि या लेखक के हृदय में जो भाव या विचार उठते हैं, उन्हें वह प्रकाशित करना चाहता है।"

(11) डॉ. रामधारी सिंह दिनकर : आपके अनुसार भी प्रयोजन आत्माभिव्यक्ति ही है। उनके अनुसार बसन्त का गुलाब और कवि का स्वप्न अपने मन में पूर्ण होता है, वह किसी को कुछ सिखाने के लिए नहीं होता।

पाश्चात्य-चिन्तक : अरस्तू काव्य का प्रयोजन 'आनन्द' को स्वीकार करते हुए उसे समाजोन्मुखी बनाने के पक्षधर हैं।

प्लेटो : सौन्दर्य और नैतिकता को आधार मानकर भारतीय सौन्दर्य एवं शिवम् के निकट दिखाई देते हैं।

होरेस : ये आनन्द और लोक-कल्याण को ही प्रयोजन स्वीकार करते हैं।

मैथ्यू आर्नल्ड : ये जीवन की व्याख्या करना ही साहित्य का प्रयोजन स्वीकार करते हैं। लोकमंगल और साहित्य प्रयोजन: लोकमंगल से तात्पर्य लोक-कल्याण से ही है। इनमें दो बांतें मूल रूप से सामने आयीं। पहली 'स्वान्तः सुखाय' या आनन्द की प्राप्ति, दूसरी जनहित की भावना। मम्मट द्वारा गिनाये गये, प्रयोजनों में से 'व्यवहार ज्ञान', 'शिवेतरक्षतये' और 'कान्ता-सम्मत उपदेश' लोकमंगल से संबंध रखते हैं।

कलाकार सेवा का उद्देश्य लेकर नहीं लिखता। यदि वह इस उद्देश्य को सामने रखकर लिखेगा तो वह कृति उत्कृष्ट कलाकृति नहीं बन सकेगी। वह तो युगानुरूप स्थिति से प्रभावित होकर जो भी लिखता है, उससे मानव कल्याण स्वतः हो जाता है।

स्वान्तः सुखाय : काव्य का प्रयोजन स्वान्तः सुखाय है या परजन हिताय, का प्रश्न पर्याप्त विवादित हो चुका है, किन्तु यह मानने में कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए कि कलाकार पर किसी प्रकार का विचार आरोपित नहीं किया जा सकता। वह अपने आनन्द के लिए आनन्द में ही डूब कर लिखता है, पर कलाकार विशिष्ट होता है। वह जीवन जगत के प्रति सचेष्ट होता है अतः वह मात्र स्वान्तः सुखाय में नहीं डूब सकता। विश्व का कोई चिन्तन सर्वथा आत्मकेन्द्रित, स्वार्थ केन्द्रित एवं निजी सुखभोग को मान्यता नहीं देता। अपने सुखोपभोग के साथ जनकल्याण अपेक्षित है। अतएव काव्य रचना में स्वान्तः सुखाय प्रयोजन के साथ परजन हिताय का भाव भी अपेक्षित है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- काव्य के प्रयोजन पर प्रकाश डालिए।
  2. प्रश्न- भारतीय आचार्यों के मतानुसार काव्य के प्रयोजन का प्रतिपादन कीजिए।
  3. प्रश्न- हिन्दी आचायों के मतानुसार काव्य प्रयोजन किसे कहते हैं?
  4. प्रश्न- पाश्चात्य मत के अनुसार काव्य प्रयोजनों पर विचार कीजिए।
  5. प्रश्न- हिन्दी आचायों के काव्य-प्रयोजन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए?
  6. प्रश्न- आचार्य मम्मट के आधार पर काव्य प्रयोजनों का नाम लिखिए और किसी एक काव्य प्रयोजन की व्याख्या कीजिए।
  7. प्रश्न- भारतीय आचार्यों द्वारा निर्दिष्ट काव्य लक्षणों का विश्लेषण कीजिए
  8. प्रश्न- हिन्दी के कवियों एवं आचार्यों द्वारा प्रस्तुत काव्य-लक्षणों में मौलिकता का अभाव है। इस मत के सन्दर्भ में हिन्दी काव्य लक्षणों का निरीक्षण कीजिए 1
  9. प्रश्न- पाश्चात्य विद्वानों द्वारा बताये गये काव्य-लक्षणों का उल्लेख कीजिए।
  10. प्रश्न- आचार्य मम्मट द्वारा प्रदत्त काव्य-लक्षण की विवेचना कीजिए।
  11. प्रश्न- रमणीयार्थ प्रतिपादकः शब्दः काव्यम्' काव्य की यह परिभाषा किस आचार्य की है? इसके आधार पर काव्य के स्वरूप का विवेचन कीजिए।
  12. प्रश्न- महाकाव्य क्या है? इसके सर्वमान्य लक्षण लिखिए।
  13. प्रश्न- काव्य गुणों की चर्चा करते हुए माधुर्य गुण के लक्षण स्पष्ट कीजिए।
  14. प्रश्न- मम्मट के काव्य लक्षण को स्पष्ट करते हुए उठायी गयी आपत्तियों को लिखिए।
  15. प्रश्न- 'उदात्त' को परिभाषित कीजिए।
  16. प्रश्न- काव्य हेतु पर भारतीय विचारकों के मतों की समीक्षा कीजिए।
  17. प्रश्न- काव्य के प्रकारों का विस्तृत उल्लेख कीजिए।
  18. प्रश्न- स्थायी भाव पर एक टिप्पणी लिखिए।
  19. प्रश्न- रस के स्वरूप का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  20. प्रश्न- काव्य हेतु के रूप में निर्दिष्ट 'अभ्यास' की व्याख्या कीजिए।
  21. प्रश्न- 'रस' का अर्थ स्पष्ट करते हुए उसके अवयवों (भेदों) का विवेचन कीजिए।
  22. प्रश्न- काव्य की आत्मा पर एक निबन्ध लिखिए।
  23. प्रश्न- भारतीय काव्यशास्त्र में आचार्य ने अलंकारों को काव्य सौन्दर्य का भूल कारण मानकर उन्हें ही काव्य का सर्वस्व घोषित किया है। इस सिद्धान्त को स्वीकार करने में आपकी क्या आपत्ति है? संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  24. प्रश्न- काव्यशास्त्रीय सम्प्रदायों के महत्व को उल्लिखित करते हुए किसी एक सम्प्रदाय का सम्यक् विश्लेषण कीजिए?
  25. प्रश्न- अलंकार किसे कहते हैं?
  26. प्रश्न- अलंकार और अलंकार्य में क्या अन्तर है?
  27. प्रश्न- अलंकारों का वर्गीकरण कीजिए।
  28. प्रश्न- 'तदोषौ शब्दार्थों सगुणावनलंकृती पुनः क्वापि कथन किस आचार्य का है? इस मुक्ति के आधार पर काव्य में अलंकार की स्थिति स्पष्ट कीजिए।
  29. प्रश्न- 'काव्यशोभाकरान् धर्मान् अलंकारान् प्रचक्षते' कथन किस आचार्य का है? इसका सम्बन्ध किस काव्य-सम्प्रदाय से है?
  30. प्रश्न- हिन्दी में स्वीकृत दो पाश्चात्य अलंकारों का उदाहरण सहित परिचय दीजिए।
  31. प्रश्न- काव्यालंकार के रचनाकार कौन थे? इनकी अलंकार सिद्धान्त सम्बन्धी परिभाषा को व्याख्यायित कीजिए।
  32. प्रश्न- हिन्दी रीति काव्य परम्परा पर प्रकाश डालिए।
  33. प्रश्न- काव्य में रीति को सर्वाधिक महत्व देने वाले आचार्य कौन हैं? रीति के मुख्य भेद कौन से हैं?
  34. प्रश्न- रीति सिद्धान्त की अन्य भारतीय सम्प्रदायों से तुलना कीजिए।
  35. प्रश्न- रस सिद्धान्त के सूत्र की महाशंकुक द्वारा की गयी व्याख्या का विरोध किन तर्कों के आधार पर किया गया है? स्पष्ट कीजिए।
  36. प्रश्न- ध्वनि सिद्धान्त की भाषा एवं स्वरूप पर संक्षेप में विवेचना कीजिए।
  37. प्रश्न- वाच्यार्थ और व्यंग्यार्थ ध्वनि में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  38. प्रश्न- 'अभिधा' किसे कहते हैं?
  39. प्रश्न- 'लक्षणा' किसे कहते हैं?
  40. प्रश्न- काव्य में व्यञ्जना शक्ति पर टिप्पणी कीजिए।
  41. प्रश्न- संलक्ष्यक्रम ध्वनि को सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।
  42. प्रश्न- दी गई पंक्तियों में में प्रयुक्त ध्वनि का नाम लिखिए।
  43. प्रश्न- शब्द शक्ति क्या है? व्यंजना शक्ति का सोदाहरण परिचय दीजिए।
  44. प्रश्न- वक्रोकित एवं ध्वनि सिद्धान्त का तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
  45. प्रश्न- कर रही लीलामय आनन्द, महाचिति सजग हुई सी व्यक्त।
  46. प्रश्न- वक्रोक्ति सिद्धान्त व इसकी अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  47. प्रश्न- वक्रोक्ति एवं अभिव्यंजनावाद के आचार्यों का उल्लेख करते हुए उसके साम्य-वैषम्य का निरूपण कीजिए।
  48. प्रश्न- वर्ण विन्यास वक्रता किसे कहते हैं?
  49. प्रश्न- पद- पूर्वार्द्ध वक्रता किसे कहते हैं?
  50. प्रश्न- वाक्य वक्रता किसे कहते हैं?
  51. प्रश्न- प्रकरण अवस्था किसे कहते हैं?
  52. प्रश्न- प्रबन्ध वक्रता किसे कहते हैं?
  53. प्रश्न- आचार्य कुन्तक एवं क्रोचे के मतानुसार वक्रोक्ति एवं अभिव्यंजना के बीच वैषम्य का निरूपण कीजिए।
  54. प्रश्न- वक्रोक्तिवाद और वक्रोक्ति अलंकार के विषय में अपने विचार व्यक्त कीजिए।
  55. प्रश्न- औचित्य सिद्धान्त किसे कहते हैं? क्षेमेन्द्र के अनुसार औचित्य के प्रकारों का वर्गीकरण कीजिए।
  56. प्रश्न- रसौचित्य किसे कहते हैं? आनन्दवर्धन द्वारा निर्धारित विषयों का उल्लेख कीजिए।
  57. प्रश्न- गुणौचित्य तथा संघटनौचित्य किसे कहते हैं?
  58. प्रश्न- प्रबन्धौचित्य के लिये आनन्दवर्धन ने कौन-सा नियम निर्धारित किया है तथा रीति औचित्य का प्रयोग कब करना चाहिए?
  59. प्रश्न- औचित्य के प्रवर्तक का नाम और औचित्य के भेद बताइये।
  60. प्रश्न- संस्कृत काव्यशास्त्र में काव्य के प्रकार के निर्धारण का स्पष्टीकरण दीजिए।
  61. प्रश्न- काव्य के प्रकारों का विस्तृत उल्लेख कीजिए।
  62. प्रश्न- काव्य गुणों की चर्चा करते हुए माधुर्य गुण के लक्षण स्पष्ट कीजिए।
  63. प्रश्न- काव्यगुणों का उल्लेख करते हुए ओज गुण और प्रसाद गुण को उदाहरण सहित परिभाषित कीजिए।
  64. प्रश्न- काव्य हेतु के सन्दर्भ में भामह के मत का प्रतिपादन कीजिए।
  65. प्रश्न- ओजगुण का परिचय दीजिए।
  66. प्रश्न- काव्य हेतु सन्दर्भ में अभ्यास के महत्व पर प्रकाश डालिए।
  67. प्रश्न- काव्य गुणों का संक्षित रूप में विवेचन कीजिए।
  68. प्रश्न- शब्द शक्ति को स्पष्ट करते हुए अभिधा शक्ति पर प्रकाश डालिए।
  69. प्रश्न- लक्षणा शब्द शक्ति को समझाइये |
  70. प्रश्न- व्यंजना शब्द-शक्ति पर प्रकाश डालिए।
  71. प्रश्न- काव्य दोष का उल्लेख कीजिए।
  72. प्रश्न- नाट्यशास्त्र से क्या अभिप्राय है? भारतीय नाट्यशास्त्र का सामान्य परिचय दीजिए।
  73. प्रश्न- नाट्यशास्त्र में वृत्ति किसे कहते हैं? वृत्ति कितने प्रकार की होती है?
  74. प्रश्न- अभिनय किसे कहते हैं? अभिनय के प्रकार और स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
  75. प्रश्न- रूपक किसे कहते हैं? रूप के भेदों-उपभेंदों पर प्रकाश डालिए।
  76. प्रश्न- कथा किसे कहते हैं? नाटक/रूपक में कथा की क्या भूमिका है?
  77. प्रश्न- नायक किसे कहते हैं? रूपक/नाटक में नायक के भेदों का वर्णन कीजिए।
  78. प्रश्न- नायिका किसे कहते हैं? नायिका के भेदों पर प्रकाश डालिए।
  79. प्रश्न- हिन्दी रंगमंच के प्रकार शिल्प और रंग- सम्प्रेषण का परिचय देते हुए इनका संक्षिप्त विवेचन कीजिए।
  80. प्रश्न- नाट्य वृत्ति और रस का सम्बन्ध बताइए।
  81. प्रश्न- वर्तमान में अभिनय का स्वरूप कैसा है?
  82. प्रश्न- कथावस्तु किसे कहते हैं?
  83. प्रश्न- रंगमंच के शिल्प का संक्षिप्त विवेचन कीजिए।
  84. प्रश्न- अरस्तू के 'अनुकरण सिद्धान्त' को प्रतिपादित कीजिए।
  85. प्रश्न- अरस्तू के काव्यं सिद्धान्त का विवेचन कीजिए।
  86. प्रश्न- त्रासदी सिद्धान्त पर प्रकाश डालिए।
  87. प्रश्न- चरित्र-चित्रण किसे कहते हैं? उसके आधारभूत सिद्धान्त बताइए।
  88. प्रश्न- सरल या जटिल कथानक किसे कहते हैं?
  89. प्रश्न- अरस्तू के अनुसार महाकाव्य की क्या विशेषताएँ हैं?
  90. प्रश्न- "विरेचन सिद्धान्त' से क्या तात्पर्य है? अरस्तु के 'विरेचन' सिद्धान्त और अभिनव गुप्त के 'अभिव्यंजना सिद्धान्त' के साम्य को स्पष्ट कीजिए।
  91. प्रश्न- कॉलरिज के काव्य-सिद्धान्त पर विचार व्यक्त कीजिए।
  92. प्रश्न- मुख्य कल्पना किसे कहते हैं?
  93. प्रश्न- मुख्य कल्पना और गौण कल्पना में क्या भेद है?
  94. प्रश्न- वर्ड्सवर्थ के काव्य-भाषा विषयक सिद्धान्त पर प्रकाश डालिये।
  95. प्रश्न- 'कविता सभी प्रकार के ज्ञानों में प्रथम और अन्तिम ज्ञान है। पाश्चात्य कवि वर्ड्सवर्थ के इस कथन की विवेचना कीजिए।
  96. प्रश्न- वर्ड्सवर्थ के कल्पना सम्बन्धी विचारों का संक्षेप में विवेचन कीजिए।
  97. प्रश्न- वर्ड्सवर्थ के अनुसार काव्य प्रयोजन क्या है?
  98. प्रश्न- वर्ड्सवर्थ के अनुसार कविता में छन्द का क्या योगदान है?
  99. प्रश्न- काव्यशास्त्र की आवश्यकता का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
  100. प्रश्न- रिचर्ड्स का मूल्य-सिद्धान्त क्या है? स्पष्ट रूप से विवेचन कीजिए।
  101. प्रश्न- रिचर्ड्स के संप्रेषण के सिद्धान्त पर प्रकाश डालिए।
  102. प्रश्न- रिचर्ड्स के अनुसार सम्प्रेषण का क्या अर्थ है?
  103. प्रश्न- रिचर्ड्स के अनुसार कविता के लिए लय और छन्द का क्या महत्व है?
  104. प्रश्न- 'संवेगों का संतुलन' के सम्बन्ध में आई. ए. रिचर्डस् के क्या विचारा हैं?
  105. प्रश्न- आई.ए. रिचर्ड्स की व्यावहारिक आलोचना की समीक्षा कीजिये।
  106. प्रश्न- टी. एस. इलियट के प्रमुख सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए। इसका हिन्दी साहित्य पर क्या प्रभाव पड़ा है?
  107. प्रश्न- सौन्दर्य वस्तु में है या दृष्टि में है। पाश्चात्य समीक्षाशास्त्र के अनुसार व्याख्या कीजिए।
  108. प्रश्न- हिन्दी आलोचना के उद्भव तथा विकासक्रम पर एक निबन्ध लिखिए।
  109. प्रश्न- स्वच्छंदतावाद से क्या तात्पर्य है? उसका उदय किन परिस्थितियों में हुआ?
  110. प्रश्न- साहित्य में मार्क्सवादी समीक्षा का क्या अभिप्राय है? विवेचना कीजिए।
  111. प्रश्न- आधुनिक साहित्य में मनोविश्लेषणवाद के योगदान की विवेचना कीजिए।
  112. प्रश्न- आलोचना की पारिभाषा एवं उसके स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
  113. प्रश्न- हिन्दी की मार्क्सवादी आलोचना पर प्रकाश डालिए।
  114. प्रश्न- हिन्दी आलोचना पद्धतियों को बताइए। आलोचना के प्रकारों का भी वर्णन कीजिए।
  115. प्रश्न- स्वच्छंदतावाद के अर्थ और स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
  116. प्रश्न- मनोविश्लेषवाद की समीक्षा दीजिए।
  117. प्रश्न- मार्क्सवाद की दृष्टिकोण मानवतावादी है इस कथन के आलोक में मार्क्सवाद पर विचार कीजिए?
  118. प्रश्न- नयी समीक्षा पद्धति पर लेख लिखिए।
  119. प्रश्न- विखंडनवाद को समझाइये |
  120. प्रश्न- यथार्थवाद का अर्थ और परिभाषा देते हुए यथार्थवाद के सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
  121. प्रश्न- कलावाद किसे कहते हैं? कलावाद के उद्भव और विकास पर प्रकाश डालिए।
  122. प्रश्न- बिम्बवाद की अवधारणा, विचार और उद्देश्य पर प्रकाश डालिए।
  123. प्रश्न- प्रतीकवाद के अर्थ और परिभाषा का वर्णन कीजिए।
  124. प्रश्न- संरचनावाद में आलोचना की किस प्रविधि का विवेचन है?
  125. प्रश्न- विखंडनवादी आलोचना का आशय स्पष्ट कीजिए।
  126. प्रश्न- उत्तर-संरचनावाद के उद्भव और विकास को स्पष्ट कीजिए।
  127. प्रश्न- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की काव्य में लोकमंगल की अवधारणा पर प्रकाश डालिए।
  128. प्रश्न- आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी की आलोचना दृष्टि "आधुनिक साहित्य नयी मान्यताएँ" का उल्लेख कीजिए।
  129. प्रश्न- "मेरी साहित्यिक मान्यताएँ" विषय पर डॉ0 नगेन्द्र की आलोचना दृष्टि पर विचार कीजिए।
  130. प्रश्न- डॉ0 रामविलास शर्मा की आलोचना दृष्टि 'तुलसी साहित्य में सामन्त विरोधी मूल्य' का मूल्यांकन कीजिए।
  131. प्रश्न- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की आलोचनात्मक दृष्टि पर प्रकाश डालिए।
  132. प्रश्न- आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी जी की साहित्य की नई मान्यताएँ क्या हैं?
  133. प्रश्न- रामविलास शर्मा के अनुसार सामंती व्यवस्था में वर्ण और जाति बन्धन कैसे थे?

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