बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2B इतिहास - मध्यकालीन एवं आधुनिक सामाजिक एवं आर्थिक इतिहास (1200 ई.-1700 ई.) बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2B इतिहास - मध्यकालीन एवं आधुनिक सामाजिक एवं आर्थिक इतिहास (1200 ई.-1700 ई.)सरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2B इतिहास - मध्यकालीन एवं आधुनिक सामाजिक एवं आर्थिक इतिहास (1200 ई.-1700 ई.) - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- मुगलकाल के दौरान बैंकिंग प्रणाली के विकास और कार्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर -
मुगलकाल के दौरान बैंकिंग प्रणाली
मुगलकालीन भारत में बैंकिंग व्यवस्था का जिसे आज हम एक सुस्पष्ट रूप में देखते हैं, कहीं पर नामोनिशान भी नहीं था। देश में आन्तरिक और बन्दरगाहों पर व्यापार एक सुनियोजित संगठित दलालों के वर्ग द्वारा व्यवस्थित था जो दोनों ही व्यापारिक पार्टियों से कमीशन प्राप्त करते थे और इस प्रकार वस्तु मूल्य में बढ़ोत्तरी हो जाती थी। जब अलाउद्दीन खिलजी ने दिल्ली में बाजार नियन्त्रण की नीति अपनाई तो उसे इस वर्ग का कठोरता के साथ दमन करना पड़ा। परन्तु अलाउद्दीन खिलजी की मृत्यु के साथ ही उसके बाजार नियन्त्रण की नीति भी समाप्त हो गई। ऐसे में इस वर्ग ने पुनः अपनी गतिविधियों को आरम्भ कर दिया। फिरोज तुगलक के शासन तक इनकी गतिविधियाँ इतनी व्याप्त हो चुकी थीं कि इनको एक कानूनी रूप देना आवश्यक हो गया।
व्यापारियों द्वारा अलग-अलग प्रदेश में अपनी एजेन्सियाँ खोली गईं जहाँ पर उनके कारिन्दे उनके धन्धे को व्यवस्थित करते थे। लौकिक बैंकर्स आज की बैंकिंग व्यवस्था के अनुरूप ऋण देते थे तथा हुण्डियाँ जमा करते थे, और वे इसके लिए ब्याज अथवा अपना कमीशन लेते थे। बाण्ड अथवा अन्ध पत्र स्वीकार किए जाते थे जिनको इस समय 'तमस्सुक' कहते थे। राज्य की ओर से इन पर निर्धारित ब्याज लेने की आज्ञा थी और सम्भावित झगड़ों का निर्णय अदालत के द्वारा किया जाता था। इस काल में ब्याज पर ऋण देने तथा व्यापारिक प्रतिष्ठानों को धन उधार देने का एक विशेष वर्ग था। ये 'साहू' तथा 'महाराज' जो ऋण देने वाले तथा बैंकर थे उच्च वर्ग में अत्यधिक लोकप्रिय थे क्योंकि उच्च वर्ग अत्यधिक खर्चीला था और आये दिन इनको ऋण की आवश्यकता रहती थी। यद्यपि यह निश्चय करना कि वे कितना ब्याज लेते थे कठिन है। परन्तु अमीर खुसरो के विवरण से ऐसा आभास होता है कि बड़ी धनराशि पर 10 प्रतिशत व छोटी धनराशि पर 20 प्रतिशत वार्षिक ब्याज वसूल करते थे।
मुगल शासकों के समय में भी कोई व्यवस्थित बैंकिंग प्रथा नहीं थी। औरंगजेब जो कट्टर धर्मपरायण था, उसके अनुसार ब्याज लेना इस्लामी कानून के विरुद्ध था इसलिए औरंगजेब ने ऋण देने को प्रोत्साहन नहीं दिया जिसके फलस्वरूप बैंकिंग व्यवस्था को आघात पहुँचा। इसलिए वित्तदाता का काम 'सर्राफों' ने अपने हाथ में ले लिया और इनके द्वारा स्थापित संस्थाओं को 'कोठी' के नाम से जाना जाने लगा। राज्य मोटे रूप से तीन निम्नांकित शर्तों के पालन करने पर ऋण देने की अनुमति देता था-
(1) राज्य द्वारा निर्धारित ब्याज की दरों पर ही ऋण दिया जायेगा।
(2) राज्य से ऋण देने में कोई प्रतिस्पर्द्धा न होगी।
(3) किसी भी नये धन्धे को शुरु करने के पहले भासक और सम्बन्धित अधिकारियों से विचार करना आवश्यक होगा।
ये संस्थाएँ ही हुण्डियाँ लेती और देती थीं और पुराने सिक्कों के बदले में नये सिक्के देती थीं। इस समस्त कार्य के लिए वे कुछ बट्टा अथवा कटौती काटती थीं। इतिहासकार डॉ० वीरा का यह विवरण कि "काफी समय से स्थानीय सर्राफ व्यापारिक केन्द्रों में बड़े पैमाने पर वित्तीय लेन-देन करते चले आ रहे थे तथा इस वर्ग में लोगों की इतनी आस्था थी कि देश तथा विदेश में इनकी हुण्डियाँ आसानी से चल जाती थीं" अधिक ठीक मालूम पड़ता है। ये वर्ग जमाकर्ता से धन को सुरक्षित रखने के एवज में कुछ धन वसूल करते थे। विभिन्न प्रदेशों में इनके कारिन्दे नियुक्त थे जो मुनीमों की देख-रेख में कार्य करते थे तथा अपना हिसाब आदि निश्चित अवधि के बाद प्रस्तुत करते थे। जहाँगीर के समय में बैंकिंग व्यवस्था का विकास सूरत के वीरजी बोहरा की प्रतिभा के फलस्वरूप हुआ था। वह सूरत में ईस्ट इण्डिया कम्पनी का ऋणदाता था। इसके साथ ही उसने अपनी शाखाएँ बुरहानपुर अहमदाबाद, आगरा आदि में स्थापित कर रखी थीं। जहाँगीर के समय में ऋण आदि देने के नियमों में कुछ छूट दे दी गई थी जिसके कारण अनेक कोठियों की स्थापना सम्भव हो सकी थी। भिन्न-भिन्न राज्यों में बट्टे की दर भिन्न-भिन्न थी। लाहौर में सूरत की हुण्डियों पर सवा प्रतिशत, अहमदाबाद में 1 से डेढ़ प्रतिशत, बुरहानपुर में ढाई प्रतिशत और पटना में 10 और 7 प्रतिशत बट्टा था। हुण्डियाँ 'दशमी' की अपेक्षा जोखिम हुआ करती थीं। हुण्डियाँ 40 दिन के बाद ही सिमट सकती थी तथा रास्ते में जोखिम के विरुद्ध कुछ अतिरिक्त धन लेकर बीमा कर दिया जाता था। इरफान हबीब के अनुसार दरों में उतार-चढ़ाव संभवत दो विशिष्ट स्थानों के मध्य अदायगी की रकम की मात्रा के अनुपात में होता था। मुगल साम्राज्य के व्यापक विस्तार की स्थिति में बहुधा अधिकारियों को निजी तौर पर तथा प्रशासनिक स्तर पर एक स्थान से दूसरे स्थान पर भारी मात्रा में रकम भेजने की बराबर आवश्यकता पड़ती थी। यह कार्य भी सर्राफा के माध्यम से ही किया जाता था। इसमें कोई संशय नहीं कि मुगलकाल में भारत में बैंक में रुपया जमा करने की व्यवस्था किसी न किसी रूप में विद्यमान रही होगी। कुछ ऐसे सर्राफ अवश्य थे जिनके द्वारा यहाँ रुपया जमा किया जाता था तथा ऋण दिया जाता था। व्यापारिक आयोजन में विशेष कर मुद्रा विनिमय एवं ऋण सम्बन्धी कार्यों अथवा साहूकारी आदि में बढ़ते हुए व्यापार में समुचित वित्तीय सहायता एवं ऋण सम्बन्धी सुविधाओं का होना आवश्यक था। यद्यपि आज की भाँति उस काल में बैंकिंग व्यवस्था का अभाव था, फिर भी ऋण सम्बन्धी सुविधाएँ सुचारु रूप से मौजूद थी।
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- प्रश्न- सल्तनतकालीन सामाजिक-आर्थिक दशा का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सल्तनतकालीन केन्द्रीय मन्त्रिपरिषद का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- दिल्ली सल्तनत में प्रांतीय शासन प्रणाली का वर्णन कीजिए।
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- प्रश्न- दिल्ली सल्तनत काल में उलेमा वर्ग की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- सल्तनतकाल में सुल्तान व खलीफा वर्ग के बीच सम्बन्धों की विवेचना कीजिये।
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- प्रश्न- दिल्ली सल्तनत के स्वरूप की समीक्षा कीजिए।
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- प्रश्न- जजिया और जकात नामक कर क्या थे?
- प्रश्न- दिल्ली सल्तनत में राज्य की आय के प्रमुख स्रोत क्या थे?
- प्रश्न- दिल्ली सल्तनतकालीन भू-राजस्व व्यवस्था पर एक लेख लिखिए।
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- प्रश्न- दिल्ली सल्तनतकालीन न्याय-व्यवस्था पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'उलेमा वर्ग' पर एक टिपणी लिखिए।
- प्रश्न- दिल्ली सल्तनत के पतन के कारणों में सल्तनत का विशाल साम्राज्य तथा मुहम्मद तुगलक और फिरोज तुगलक की दुर्बल नीतियाँ प्रमुख थीं। स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- विदेशी आक्रमण और केन्द्रीय शक्ति की दुर्बलता दिल्ली सल्तनत के पतन का कारण बनी। व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- अलाउद्दीन की प्रारम्भिक कठिनाइयाँ क्या थीं? अलाउद्दीन के प्रारम्भिक जीवन पर प्रकाश डालते हुए यह स्पष्ट कीजिए कि उसने इन कठिनाइयों से किस प्रकार निजात पाई?
- प्रश्न- अलाउद्दीन खिलजी के आर्थिक सुधार व बाजार नियंत्रण नीति का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- अलाउद्दीन की दक्षिण विजय का विवरण दीजिए। उसकी दक्षिणी विजय की सफलता के क्या कारण थे?
- प्रश्न- अलाउद्दीन की दक्षिण नीति के क्या उद्देश्य थे, क्या वह उनकी पूर्ति में सफल रहा?
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- प्रश्न- अलाउद्दीन की दक्षिण नीति के क्या उद्देश्य थे, क्या वह उनकी पूर्ति में सफल रहा?
- प्रश्न- खिलजी शासकों के काल में स्थापन्न कला के विकास पर टिपणी लिखिए।
- प्रश्न- अलाउद्दीन खिलजी का एक वीर सैनिक व कुशल सेनानायक के रूप में मूल्याँकन कीजिए।
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- प्रश्न- अलाउद्दीन खिलजी की राजनीति क्या थी?
- प्रश्न- अलाउद्दीन खिलजी का शासक के रूप में मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- अलाउद्दीन की हिन्दुओं के प्रति नीति स्पष्ट करते हुए तत्कालीन हिन्दू समाज की स्थिति पर प्रकाश डालिए।
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- प्रश्न- अलाउद्दीन खिलजी की महत्त्वाकांक्षाओं को बताइये।
- प्रश्न- अलाउद्दीन खिलजी के आर्थिक सुधारों का लाभ-हानि के आधार पर विवेचन कीजिये।
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- प्रश्न- भक्ति आन्दोलन से आप क्या समझते हैं? इसके कारणों, विशेषताओं और मध्यकालीन भारतीय समाज पर प्रभाव का मूल्याँकन कीजिए।
- प्रश्न- मध्यकालीन भारत के सन्दर्भ में भक्ति आन्दोलन को बतलाइये।
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- प्रश्न- सूफी धर्म का समाज पर क्या प्रभाव पड़ा।
- प्रश्न- राष्ट्रीय संगठन की भावना को जागृत करने में सूफी संतों का महत्त्वपूर्ण योगदान है? विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- सूफी मत की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भक्ति आन्दोलन के प्रभाव व परिणामों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- भक्ति साहित्य पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- भक्ति आन्दोलन पर एक निबन्ध लिखिए।
- प्रश्न- भक्ति एवं सूफी सन्तों ने किस प्रकार सामाजिक एकता में योगदान दिया?
- प्रश्न- भक्ति आन्दोलन के कारण बताइए
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- प्रश्न- "डोमिगो पेस" द्वारा चित्रित मध्यकाल भारत के विषय में बताइये।
- प्रश्न- "मध्ययुग एक तरफ महिलाओं के अधिकारों का पूर्णतया हनन का युग था, वहीं दूसरी ओर कई महिलाओं ने इसी युग में अपनी विशिष्ट उपस्थिति दर्ज करायी" कथन की विवेचना कीजिये।
- प्रश्न- मुस्लिम काल की शिक्षा व्यवस्था का अवलोकन कीजिये।
- प्रश्न- नूरजहाँ के जीवन चरित्र का संक्षिप्त वर्णन कीजिए। उसकी जहाँगीर की गृह व विदेशी नीति के प्रभाव का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- सल्तनत काल में स्त्रियों की दशा कैसी थी?
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- प्रश्न- मुगलकालीन आइन-ए-दहशाला प्रणाली को विस्तार से समझाइए।
- प्रश्न- मुगलकाल में भू-राजस्व का निर्धारण किस प्रकार किया जाता था? विस्तार से समीक्षा कीजिए।
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- प्रश्न- मुगलकाल में भू-राजस्व के अतिरिक्त लागू अन्य करों का विस्तार से वर्णन कीजिए।
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- प्रश्न- मुगल शासन में कृषि संसाधन का वर्णन करते हुए करारोपण के तरीके को समझाइए।
- प्रश्न- मुगल शासन के दौरान खुदकाश्त और पाहीकाश्त किसानों के बीच भेद कीजिए।
- प्रश्न- मुगलकाल में भूमि अनुदान प्रणाली को समझाइए।
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- प्रश्न- अकबर के भूमि सुधार के क्या प्रभाव हुए? संक्षिप्त विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- मुगलकाल में भू-राजस्व में राहत और रियायतें विषय पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- मुगलों के अधीन हुए भारत में विदेशी व्यापार के विस्तार पर एक निबंध लिखिए।
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- प्रश्न- मुगलकालीन व्यापारिक मार्गों और यातायात के लिए अपनाए जाने वाले साधनों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- मुगलकाल में व्यापारी और महाजन की स्थितियों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- 18वीं शताब्दी में मुगल शासकों का यूरोपीय व्यापारिक कम्पनियों के मध्य सम्बन्ध स्थापित कीजिए।
- प्रश्न- मुगलकालीन तटवर्ती और विदेशी व्यापार का संक्षिप्त वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- मुगलकाल में मध्य वर्ग की स्थिति का संक्षिप्त विवेचन कीजिये।
- प्रश्न- मुगलकालीन व्यापार के प्रति प्रशासन के दृष्टिकोण पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- मुगलकालीन व्यापार में दलालों की स्थिति पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- मुगलकालीन भारत की मुद्रा व्यवस्था पर एक विस्तृत लेख लिखिए।
- प्रश्न- मुगलकाल के दौरान बैंकिंग प्रणाली के विकास और कार्यों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- मुगलकाल के दौरान प्रयोग में लाई जाने वाली हुण्डी व्यवस्था को समझाइए।
- प्रश्न- मुगलकालीन मुद्रा प्रणाली पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- मुगलकाल में बैंकिंग और बीमा पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- मुगलकाल में सूदखोरी और ब्याज की दर का संक्षिप्त विवेचन कीजिये।
- प्रश्न- मुगलकालीन औद्योगिक विकास में कारखानों की भूमिका का विस्तार से वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- औरंगजेब के समय में उद्योगों के विकास की रूपरेखा का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- मुगलकाल में उद्योगों के विकास के लिए नियुक्त किए गए अधिकारियों के पद और कार्यों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- मुगलकाल के दौरान कारीगरों की आर्थिक स्थिति का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- 18वीं सदी के पूर्वार्ध में भारतीय अर्थव्यवस्था की प्रवृत्ति की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- मुगलकालीन कारखानों का जनसामान्य के जीवन पर क्या प्रभाव पड़ा?
- प्रश्न- यूरोपियन इतिहासकारों के नजरिए से मुगलकालीन कारीगरों की स्थिति प