बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 मनोविज्ञान बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 मनोविज्ञानसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 मनोविज्ञान - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- शैशवावस्था में (0 से 2 वर्ष तक) शारीरिक विकास एवं क्रियात्मक विकास के मध्य अन्तर्सम्बन्धों की चर्चा कीजिए।
उत्तर -
क्रियात्मक विकास के मध्य अन्तर्सम्बन्ध
बालक के शारीरिक विकास तथा क्रियात्मक विकास का आपस में घनिष्ठ सम्बन्ध होता है । बालक का शारीरिक विकास जितना अच्छा होगा उतनी ही क्रियात्मक योग्यताएँ अधिक होंगी । क्रियात्मक विकास माँसपेशियों की क्रियाओं से सम्बन्धित होता है। माँसपेशियों पर नियन्त्रण ही क्रियात्मक विकास है क्योंकि बिना माँसपेशियों तथा नाड़ियों के समन्वय के क्रियात्मक योग्यताएँ नहीं पाई जाती हैं।
बच्चा प्रारम्भ में अपनी माँसपेशियों पर नियन्त्रण नहीं कर पाता है क्योंकि उस समय बच्चे का शारीरिक विकास पूर्ण नहीं होता। जैसे-जैसे शारीरिक विकास होता जाता है । बच्चा अपना माँसपेशियों पर नियन्त्रण करना सीख लेता है। जन्म के दो-तीन दिन बाद शिशु कभी आँखें खोलता है, कभी बन्द करता है। उसकी दृष्टि में समन्वय नहीं होता है। वह प्रकाश की ओर थोड़ी देर देख सकता है, कभी मुँह खोलता है, कभी बन्द कर लेता है। हाथ का अंगूठा या उँगलियों को चूसता है। ये सभी क्रियाएँ न तो नियन्त्रित होती हैं और न ही इनमें किसी प्रकार का समन्वय होता है। ये सभी क्रियाएँ उद्देश्यहीन होती हैं किन्तु जैसे-जैसे शारीरिक विकास होता जाता है माँसपेशियों में परिपक्वता आ जाती है और बच्चा इन सभी क्रियाओं पर नियन्त्रण करना सीख लेता है। ये क्रियाएँ ही आगे की परिष्कृत क्रियाओं और क्रियात्मक कौशलों के विकास का आधार होती हैं। बालक जितनी जल्दी माँसपेशियों पर नियन्त्रण प्राप्त कर लेता है तो वह उतनी जल्दी बाह्य वातावरण में स्वयं को समायोजित कर लेता है। क्रियात्मक विकास के फलस्वरूप बच्चा घुटने से चलना, पैर से चलना, दौड़ना, कूदना, कपड़े पहनना, खाना खाना विभिन्न क्रियात्मक क्रियाएँ करता है और ये सभी क्रियाएँ तभी सीख पाता है जब शारीरिक विकास अर्थात् माँसपेशियों में परिपक्वता आ गयी हो।
सभी बालकों का क्रियात्मक विकास की गति समान नहीं होती है। कुछ बालकों में क्रियात्मक विकास की गति तीव्र होती है, कुछ में सामान्य तथा कुछ बालकों का क्रियात्मक विकास कुंठित हो जाता है। लेकिन जिन बच्चों का शारीरिक विकास ठीक प्रकार से होता है उनका क्रियात्मक विकास भी ठीक होता है। यदि बच्चा बचपन से बीमार रहता है तो उसका शारीरिक विकास समय से नहीं हो पाता है । शारीरिक विकास ठीक से न हो पाने के कारण क्रियात्मक विकास भी विलम्ब हो जाता है क्योंकि बालक के अन्दर निश्चित समय में क्रियात्मक योग्यताओं और कौशलों का विकास होता है। अतः जो बालक बीमार रहते हैं उन्हें बीमारी की अवधि में उन क्रियात्मक कौशलों को सीखने का अवसर नहीं मिल पाता जिससे वह उस कौशल को सीखने में अपनी आयु के बालकों से पीछे रह जाते हैं। कई ऐसी बीमारियाँ हैं जैसे- टाइफाइड, निमोनिया आदि का प्रभाव बालक के शरीर पर काफी दिनों तक रहता है जिससे वे शारीरिक कमजोरी के कारण समय पर अपने शारीरिक कौशलों का विकास नहीं कर पाते । यदि बालक को कोई ऐसी बीमारी या चोट है जिसका प्रभाव सीधे-सीधे हाथ या पैर पर पड़ता है तो बालक सही समय पर हाथ और पैर के कौशलों का विकास नहीं कर पाता है । अतः माता-पिता को अपने बच्चों के स्वास्थ्य की देखभाल सही तरीके से करनी चाहिए जिससे बच्चा स्वस्थ रहे । बच्चा स्वस्थ रहेगा तो उसका शारीरिक विकास ठीक ढंग से होगा और बच्चा शारीरिक रूप से स्वस्थ रहेगा तो क्रियात्मक विकास भी सही समय पर पूर्ण होगा ।
बालकों की शारीरिक रचना तथा उसके क्रियात्मक विकास के बीच भी घनिष्ठ सम्बन्ध होता है क्योंकि बालकों के शरीर की लम्बाई तथा भार से उसका क्रियात्मक विकास प्रभावित होता है। बालकों का क्रियात्मक विकास अपनी निर्धारित आयु में हो इसके लिए यह जरूरी है कि शरीर के विभिन्न अंगों में उचित अनुपात हो जैसे कुछ बालक सामान्य की तुलना में अधिक पतले और लम्बे तथा कुछ मोटे और नाटे होते हैं। जिन बच्चों की मोटाई और वजन अधिक होता है वे सामान्य बालकों की तुलना में देर से बैठना, खड़े होना तथा चलना सीखते हैं । जो बच्चे दुबले-पतले और कमजोर होते हैं उनमें विभिन्न क्रियात्मक क्षमताएँ देर से विकसित होती हैं। जिन बालकों को किसी कारणवश संतुलित पौष्टिक भोजन नहीं मिल पाता उनकी अस्थि तथा माँसपेशियों का विकास भलीप्रकार से नहीं हो पाता है। माँसपेशियों का विकास पूर्ण न हो पाने के कारण क्रियात्मक विकास भी अपनी आयु के अनुरूप पूर्ण होता जाता है। प्रारम्भ में बच्चे की माँसपेशियाँ मजबूत नहीं होती हैं। माँसपेशियों के विकास के लिये आवश्यक है कि बालक की आयु के अनुसार विभिन्न क्रियाओं को स्वयं करने दें। क्रियाशीलता से माँसपेशियाँ मजबूत होती हैं लेकिन वे बालक जिनके माता-पिता अत्यधिक लाड़ प्यार के कारण आने बच्चे को हर समय गोद में रखते हैं तो ऐसे बालकों में खिसकने रेंगने, बैठने और चलने की क्रिया का विकास देर से होता है। अतः माता-पिता को चाहिए कि वे अपने बच्चों को जमीन पर खेलने, चलने, फिरने, उछलने कूदने आदि का पर्याप्त अवसर दें जिससे बच्चे के शरीर में मजबूती आती है और बच्चे का क्रियात्मक विकास भी ठीक समय पर होता है।
यद्यपि शारीरिक स्वास्थ्य पर क्रियात्मक विकास निर्भर करता है किन्तु दूसरी ओर क्रियात्मक विकास से शरीर स्वस्थ रहता है। जो बालक क्रियाशील होते हैं उनकी माँसपेशियाँ सुगठित तथा मजबूत होती हैं जिससे शरीर सुडौल व मजबूत बनता है । क्रियात्मक कौशलों के विकास से शरीर के साथ-साथ बालक का मन भी प्रसन्न रहता है क्योंकि अपने कौशलों की अभिव्यक्ति से बालक आत्म-सन्तोष प्राप्त करता है। अतः क्रियात्मक विकास बालक के अच्छे शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य का निर्धारण करता है ।
अतः निष्कर्ष रूप में हम कह सकते हैं कि शारीरिक विकास और क्रियात्मक विकास का आपस में घनिष्ठ सम्बन्ध है ।
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