प्राचीन भारतीय और पुरातत्व इतिहास >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 प्राचीन भारतीय इतिहास बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 प्राचीन भारतीय इतिहाससरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 प्राचीन भारतीय इतिहास - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- प्राचीन काल में प्रचलित विधवा विवाह पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर-
विधवा विवाह
वैदिक साहित्य के अन्तर्गत विधवा विवाह का भी उल्लेख मिलता है। सबसे पहले अथर्ववेद में विधवा विवाह का संकेत प्राप्त होता है। इसमें यह उल्लेख है कि यदि किसी स्त्री का पहले क्षत्रिय या वैश्य पति है तो उसकी मृत्यु के पश्चात् यदि वह किसी ब्राह्मण से विवाह कर ले तो ऐसा पति वास्तविक कहा जायेगा। अथर्ववेद में यह भी उल्लेख प्राप्त होता है यदि कोई स्त्री एक पति से विवाह करने के पश्चात् दूसरे से विवाह करती है और वे दोनों एक बकरी एवं भात की पांच थालियाँ दे दें तो वे एक-दूसरे से अलग नहीं होंगे। इस प्रकार स्पष्ट है कि अथर्ववेद के काल में विधवा विवाह को वर्जित नहीं माना गया है। वशिष्ठ के अनुसार कोई ब्राह्मण स्त्री पति के विदेश जाने पर 5 वर्ष से अधिक प्रतिक्षा न करते हुए चाहे तो किसी निकट सम्बन्धी से पुनः विवाह कर सकती थी। कौटिल्य ने कुल मास तक ही प्रतिक्षा की बात कही हैं।
बौद्ध साहित्य में स्त्रियों के पुनर्विवाह के अनेक उल्लेख प्राप्त होते हैं। 'उच्चांग जातक' में यह कहा गया है कि स्त्री सुगमतापूर्वक दूसरे पति की प्राप्ति कर सकती है। नन्द जातक में इस तरह का उल्लेख किया गया है कि एक पति भयभीत है कि उसकी मृत्यु के पश्चात् उसकी स्त्री पुनर्विवाह कर लेगी तथा इस स्थिति में उसके पुत्र को कुछ भी सम्पत्ति प्राप्त नही होगी। वेंसतर जातक में एक पति अपनी मृत्यु के पहले ही पत्नी को पुनर्विवाह का परामर्श देता है जिससे कि उसकी युवावस्था नष्ट न हो।
ई० पूर्व 300 से 200 ई० पूर्व के मध्य तक विधवा विवाह का प्रचलन कम होने लगा और उसे बुरा कहा जाने लगा। 'अंगुत्तर निकाय' में यह चित्रण है कि एक पत्नी पति से प्रतिज्ञा कराती है कि वह उसकी मृत्यु के पश्चात् पुनर्विवाह नहीं करेगा। सन्यास के विचारधारा के फलस्वरूप विधवा विवाह का विरोध 200 ई० के पश्चात् निरन्तर बढ़ता गया। नारद स्मृति में परस्पर विरोधी उल्लेख दिखाई पड़ते हैं। प्रसिद्ध गुप्त सम्राट चन्द्रगुप्त द्वितीय (375 ई० से 414 ई० तक) ने अपने बड़े भाई की मृत्यु के पश्चात् उसकी विधवा पत्नी से विवाह किया था। 600 ई० से भारतीय समाज में विधवा विवाह के विरोध की भावना बढ़ती गयी और उस समय के स्मृति के लेखकों ने विधवा विवाह की कड़ी भर्त्सना की। पुराणों में विधवा विवाह का कड़ा विरोध किया गया है। 1000 ई० से बाल विधवा के पुनर्विवाह पर भी प्रतिबन्ध लगा दिये गये।
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