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प्राचीन भारतीय और पुरातत्व इतिहास >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 प्राचीन भारतीय इतिहास

बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 प्राचीन भारतीय इतिहास

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :200
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2793
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 प्राचीन भारतीय इतिहास - सरल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- अशोक के प्रशासनिक सुधारों की संक्षिप्त विवेचना कीजिए।

अथवा
अशोक ने क्या प्रशासनिक सुधार किए?

उत्तर- 

एक महान विजेता एवं सफल धर्म प्रचारक होने के साथ ही साथ अशोक एक कुशल प्रशासक भी था। उसने किसी नयी शासन व्यवस्था को जन्म नहीं दिया, अपितु अपने पितामह चन्द्रगुप्त मौर्य द्वारा स्थापित शासन व्यवस्था में ही आवश्यकतानुसार परिवर्तन एवं सुधार कर उसे अपनी नीयितों के अनुकूल बना दिया। जैसा कि अशोक कलिंग युद्ध के पश्चात् बौद्ध धर्म ग्रहण किया तथा उसके जीवन का मुख्य उद्देश्य धम्म का अधिकाधिक प्रचार हो गया। अशोक का धम्म प्रजा के नैतिक एवं भौतिक उत्थान का सबल माध्यम था। धम्मविषयक इस मूलभूत अवधारणा के फलस्वरूप परम्परागत प्रशासनिक ढांचे में सुधार की आवश्यकता प्रतीत हुई तथा उसने कुछ नए पदाधिकारियों की भी नियुक्ति की।

सम्राट तथा मन्त्रिपरिषद् - अशोक एक विस्तृत साम्राज्य का एकछत्र शासक था। उसने 'देवानाम् प्रिय' की उपाधि ग्रहण की। शास्त्री के अनुसार इसका उद्देश्य पुरोहितों का समर्थन प्राप्त करना था। इसके विपरीत रोमिला थापर का विचार है कि इस उपाधि का लक्ष्य राजा की दैवी शक्ति को अभिव्यक्त करना तथा अपने को पुरोहितों की मध्यस्थता से दूर करना था। उल्लेखनीय है कि अशोक के लेखों में 'पुरोहित' का उल्लेख नहीं मिलता। चन्द्रगुप्त के समय में यह एक महत्वपूर्ण पद था। इससे भी सूचित होता है कि पुरोहितों का राजनैतिक मामलों में हस्तक्षेप समाप्त हो चुका था। सिद्धान्ततः निरंकुश एवं सर्वशक्ति सम्पन्न होते हुए भी अशोक एक प्रजावत्सल सम्राट था। वह अपनी प्रजा को पुत्रवत् मानता था और इस प्रकार राजत्व के सम्बन्ध में उसकी धारणा पितृपरक थी। वह प्रजाहित को सर्वाधिक महत्त्व देता था। अपने छठें शिलालेख में अशोक अपनी इस भावना को व्यक्त करते हुए कहता है- “सर्वलोकहित मेरा कर्तव्य है, ऐसा मेरा मत है। सर्वलोकहित से बढ़कर दूसरा काम नहीं है। मैं जो कुछ भी पराक्रम करता हूँ वह इसलिए कि भूतों के ऋण से मुक्त हो जाऊँ। मैं उनको इस लोक में सुखी बनाऊँ और वे दूसरे लोक में स्वर्ग प्राप्त कर सकें।" इन पंक्तियों से स्पष्ट है कि राजत्व विषयक उसके आदर्श कितने उदात्त थे।

तीसरे तथा छठे शिलालेख से मन्त्रिपरिषद् के कार्य पर प्रकाश पड़ता है। तीसरे लेख से पता चलता है कि परिषद् के आदेश विधिवत् लिखे जाते थे जिन्हें स्थानीय अधिकारी जनता तक पहुँचाते थे। छठे शिलालेख से पता चलता है कि सम्राट के मौलिक आदेशों तथा विभागीय अध्यक्षों द्वारा आवश्यक विषयों पर लिए गए निर्णयों के ऊपर मन्त्रिपरिषद् विचार करती थी। उसे इनमें संशोधन करने अथवा बदल देने तक के लिए सम्राट से सिफारिश करने का अधिकार था। अशोक कहता है कि यदि इस प्रकार की स्थिति उत्पन्न हो अथवा किसी विषय पर मन्त्रिपरिषद् में मतभेद हो तो इसकी सूचना उसे तुरंत भेजी जाए। राजकीय आदेशों को पुनर्विवचार अथवा परिवर्तन के लिए सम्राट के पास भेजना यह सिद्ध करता है कि मन्त्रिपरिषद् मात्र सलाहकारी संस्था ही नहीं थी अपितु उसे वास्तविक एवं विस्तृत अधिकार प्राप्त थे।

प्रान्तीय शासन - प्रशासन की सुविधा के लिए अशोक का विशाल साम्राज्य अनेक प्रांतों में  विभाजित था। उसके अभिलेख में पांच प्रांतों के नाम मिलते हैं-

(1) उत्तरापथ (राजधानी - तक्षशिला)
(2) अवन्तिरट्ठ ( उज्जयिनी )
(3) कलिंग (तोसलि)
(4) दक्षिणापथ (सुवर्णागिरि) और
(5) प्राच्य अथवा पूर्वी प्रदेश (पाटलिपुत्र )

इनके अतिरिक्त और भी प्रान्त रहे होंगे। राजनीतिक महत्त्व के प्रांतों में राजकुल से सम्बन्धित व्यक्तियों को ही राज्यपाल नियुक्त किया जाता था। उन्हें 'कुमार' तथा 'आर्यपुत्र' कहा जाता था। तक्षशिला, सुवर्णागिरि, कलिंग एवं उज्जयिनी में इस प्रकार के कुमारों की नियुक्ति की गयी थी। दिव्यावदान से पता चलता है कि अशोक का पुत्र कुणाल तक्षशिला का राज्यपाल था। महावंश से पता चलता है कि उसने अपने छोटे भाई तिष्य को 'उपराजा' नियुक्त किया था जिसके भिक्षु हो जाने पर अशोक का पुत्र महेन्द्र इस पद पर नियुक्त हुआ। संभवतः 'उपराजा' का पद प्रधानमंत्री जैसा होता था। अन्य प्रांतों में दूसरे उच्च पदाधिकारी राज्यपाल नियुक्त किए गए थे। इन पदों पर नियुक्ति बिना किसी जाति अथवा धर्म के भेदभाव से की जाती थी। रुद्रदामन् प्रथम के गिरनार लेख से पता चलता है कि यवनजातीय तुषास्प काठियावाड़ प्रांत में अशोक का राज्यपाल था। लगता है छोटे प्रांत में राज्यपालों की नियुक्ति में स्थानीय व्यक्तियों को ही प्राथमिकता दी जाती थी। राज्यपाल को प्रान्तीय शासन में सहायता देने के लिए भी एक मन्त्रिपरिषद् होती थी। इसके अधिकार केन्द्रीय मन्त्रिपरिषद् से अधिक होते थे। यह प्रान्तीय शासकों के निरंकुशता पर नियंत्रण रखती थी। कभी-कभी यह सम्राट से सीधा आदेश प्राप्त कर उसे कार्यान्वित करं देती थी, जैसा कि अशोकावदान में दी गयी कुणाल को अन्धा बनाने की कथा से सूचित होता है। प्रांतों के अधीन जिलों के शासक होते थे जिनकी नियुक्ति सम्राट द्वारा न होकर स्वयं सम्बन्धित प्रांत के राज्यपाल द्वारा ही की जाती थी। यह बात सिद्धपुर लघु शिलालेख से सिद्ध होती है। इसमें अशोक इसला के महामात्रों को सीधे आदेश न देकर दक्षिण प्रांत के कुमार के माध्यम से ही आदेश प्रेषित करता है।

प्रशासनिक अधिकारी - अशोक के लेखों में उसके प्रशासन के कुछ महत्त्वपूर्ण पदाधिकारियों के नाम मिलते हैं। अशोक के तृतीय शिलालेख में तीन पदाधिकारियों के नाम मिलते हैं-युक्त, राजुक तथा प्रादेशिक।

युक्त - ये जिले के अधिकारी होते थे जो राजस्व वसूल करते तथा उसका लेखा-जोखा रखते थे और सम्राट की सम्पत्ति का भी प्रबन्ध करते थे। उन्हें उस कार्य में धन व्यय करने का भी अधिकार था जिससे राजस्व की वृद्धि हो सकती थी। अर्थशास्त्र में भी 'युक्त' नामक पदाधिकारी का उल्लेख है। वहाँ 'युक्त' का वर्णन लेखाकार के रूप में मिलता है। स्पष्ट है कि ये अधीनस्थ कर्मचारी थे जिनका एक कार्य वरिष्ठ अधिकारियों के निर्णयों को लिपिबद्ध करना तथा उसे मन्त्रिपरिषद् के सामने प्रस्तुत करना भी था। वे राजुक तथा प्रादेशिक के साथ दौरे पर जाते थे।

राजुक - बूलर ने बताया है कि इस पदाधिकारी का सम्बन्ध जातक ग्रन्थों के 'रज्जुग्राहक' (रस्सी पकड़ने वाला) से है। इस प्रकार के पदाधिकारी भूमि की पैमाइश करने के लिए अपने पास रस्सी रखते थें वे आजकल के बन्दोबस्त अधिकारी' की भाँति होते थे। राजुक का पद बड़ा महत्वपूर्ण होता था। वे कई लाख लोगों के ऊपर नियुक्त किए गए थे। अपने चौथे स्तम्भ लेख में अशोक राजुकों में पूर्ण विश्वास प्रकट करते हुए कहता है “जिस प्रकार माता-पिता योग्य धात्री के हाथों में बच्चे को सौंपकर आश्वस्त हो जाते हैं, उसी प्रकार मैंने ग्रामीण जनता के सुख के लिए राजुकों की नियुक्ति की है।” राजुक पहले केवल राजस्व विभाग का ही कार्य करते थे किन्तु बाद में उन्हें न्यायिक अधिकार भी प्रदान कर दिए गए। वे दण्डों में छूट भी दे सकते थे। राजुक अपने अधीन लोगों की सुख-सुविधा का ध्यान रखते तथा उन्हें उपहार आदि भी दिया करते थे। इस प्रकार राजुक की स्थिति आधुनिक शासन में जिलाधिकारी जैसी थी जिसे राजस्व तथा न्याय दोनों का ही कार्य देखना पड़ता था। यहाँ उल्लेखनीय है कि स्ट्रैबो मौर्य प्रशासन में मजिस्ट्रेट के एक ऐसे वर्ग का उल्लेख करता है जो नदियों की देखभाल करते थे, भूमि की पैमाइश करते थे तथा जिन्हें पुरस्कार एवं दण्ड देने का भी अधिकार था।

प्रादेशिक - यह मण्डल का प्रधान अधिकारी होता था। उसका कार्य आजकल के 'संभागीय आयुक्त' जैसा था। उसे न्याय का भी कार्य करना पड़ता था। ऐसा प्रतीत होता है कि प्रादेशिक ही अर्थशास्त्र में. उल्लिखित 'प्रदेष्टा' नामक पदाधिकारी था जिसे विभिन्न विभागों के अध्यक्षों के कार्यों की देख-रेख करना पड़ता था। इससे स्पष्ट है कि प्रादेशिक उपर्युक्त दोनों अधिकारियों में वरिष्ठ होता था। प्रादेशिक तथा राजुक अपने कार्यों में युक्त नामक अधीनस्थ अधिकारियों से सहायता प्राप्त करते थे। अपने तीसरे शिलालेख में अशोक कहता है कि उसने युक्त राजुक तथा प्रादेशिक को पंचवर्षीय दौरे पर जाने का आदेश दिया है। इस प्रकार के दौरे को 'अनुसंधान' कहा गया है। इनमें वे प्रशासनिक कार्यों के साथ-साथ धर्म प्रचार का भी कार्य करते थे ताकि लोगों का पारलौकिक जीवन सुखमय हो सके।

धम्म महापात्र - ये अशोक की अपनी कृति थे जिनकी नियुक्ति उसने अपने अभिषेक के तेरहवें वर्ष की थी। उनका कार्य विभिन्न सम्प्रदायों के बीच सामंजस्य बनाये रखना, राजा तथा उसके परिवार के सदस्यों से धम्मदान प्राप्त करना और उसकी समुचित व्यवस्था करना होता था। वे यह भी देखते थे कि किसी व्यक्ति को अनावश्यक दण्ड अथवा यातनाएँ तो नहीं दी गयी हैं।

स्वयाध्यक्ष - यह महिलाओं के नैतिक आचरण की देख रेख करने वाला अधिकारी होता था। लगता है कि उसका एक कार्य सम्राट के अन्तःपुर तथा महिलाओं के बीच धर्म प्रचार करना भी था।

ब्रजभूमिक - यह गोचर भूमि (ब्रज) में बसने वाले गोपों की देख-रेख करने वाला अधिकारी था। अर्थशास्त्र में गाय, भैंस, बकरी, भेड़, घोड़े, ऊँट आदि पशुओं को ब्रज कहा गया है। संभव है ब्रजभूमिक पशुओं के रक्षण तथा उनकी वृद्धि का भी ध्यान रखते हों।

न्याय-प्रशासन - न्याय - प्रशासन के क्षेत्र में अशोक ने सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण सुधार किए। धौली तथा जौगढ़ के प्रथम पृथक शिलालेख में वह नगर व्यवहारिकों को आदेश देता है कि वे बिना उचित कारण के किसी को कैद अथवा शारीरिक यातनाएँ न दे। वह उन्हें ईर्ष्या, क्रोध, निष्ठुरता, अविवेक, आलस्य आदि दुर्गुणों से मुक्त रहते हुए निष्पक्ष मार्ग का अनुकरण करने का उपदेश देता है। वह उन्हें याद दिलाता है कि अपने कर्त्तव्य का निष्ठापूर्वक पालन करने से वे स्वर्ग प्राप्त करेंगे तथा राजा के ऋण से भी मुक्त हो जावेंगे। पाँचवें शिलालेख से पता चलता है कि धर्ममहामात्र कैद की सजा पाये हुए व्यक्तियों का निरीक्षण करते थे। यदि उन्हें अकारण दण्ड मिला होता था तो वे मुक्त कर सकते थे। अपराधी का परिवार यदि बड़ा होता था तो उसे धन देते थे अथवा यदि अपराधी अधिक वृद्ध होता था तब भी उसे स्वतंत्र करा देते थे। अशोक प्रति पांचवें वर्ष न्यायाधीशों के कार्यों की जाँच के लिए महामात्रों को दौरे पर भेजा करता था। न्याय - प्रशासन में एकरूपता लाने के लिए अशोक ने अपने अभिषेक के 26वें वर्ष राजुकों को न्याय सम्बन्धी मामलों में स्वतन्त्र अधिकार प्रदान कर दिया। अब वे अपनी विवेकशक्ति के अनुसार अपराधी पर अभियोग लगा सकते तथा उसे दण्डित कर सकते थे। इसके पूर्व प्रादेशिक तथा नगर व्यावहारिक भिन्न-भिन्न प्रदेशों में न्याय का कार्य करते थे। इससे निर्णय सम्बन्धी भेदभाव बना रहता था, अतः इस दोष को दूर करने के लिए राजुकों को न्याय - प्रशासन के क्षेत्र में सर्वेसर्वा बना दिया गया तथा अन्य दो अधिकारियों को इससे मुक्त रखा गया। चौथे स्तम्भ लेख में अशोक कहता है- "मैंने उन्हें (राजुकों को) न्यायिक अनुसंधान तथा दण्ड में स्वतंत्र कर दिया है जिससे वे निर्भय होकर विश्वास के साथ अपना कार्य करें। वे सुख तथा दुःख के मूल कारणों का पता करें तथा जनपद के लोगों एवं निष्ठावानों को प्रेरित करें ताकि उन्हें इहलोक और परलोक में सुख मिल सके।' इस प्रकार न्याय प्रशासन में दण्डसमता एवं व्यवहार समता स्थापित हो गयी।

अशोक ने दण्डविधान को उदार बनाने का प्रयास किया। यद्यपि उसने मृत्युदण्ड समाप्त नहीं किया फिर भी मृत्युदण्ड पाये हुए व्यक्तियों को तीन दिनों की मोहलत (राहत) दी जाती थी ताकि वे अपने अपराधों पर पश्चाताप कर सकें तथा अपना पारलौकिक जीवन सुखमय बना सकें। इस अवधि में उसके सगे सम्बन्धी दण्ड को कम कराने के लिए राजुकों के पास आवेदन भी कर सकते थे। उसने अनेक अमानवीय यातनाओं को भी बन्द करवा दिया।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- वर्ण व्यवस्था से आप क्या समझते हैं? भारतीय दर्शन में इसका क्या महत्व है?
  2. प्रश्न- जाति प्रथा की उत्पत्ति एवं विकास पर प्रकाश डालिए।
  3. प्रश्न- जाति व्यवस्था के गुण-दोषों का विवेचन कीजिए। इसने भारतीय
  4. प्रश्न- ऋग्वैदिक और उत्तर वैदिक काल की भारतीय जाति प्रथा के लक्षणों की विवेचना कीजिए।
  5. प्रश्न- प्राचीन काल में शूद्रों की स्थिति निर्धारित कीजिए।
  6. प्रश्न- मौर्यकालीन वर्ण व्यवस्था पर प्रकाश डालिए। .
  7. प्रश्न- वर्णाश्रम धर्म से आप क्या समझते हैं? इसकी मुख्य विशेषताएं बताइये।
  8. प्रश्न- पुरुषार्थ क्या है? इनका क्या सामाजिक महत्व है?
  9. प्रश्न- संस्कार शब्द से आप क्या समझते हैं? उसका अर्थ एवं परिभाषा लिखते हुए संस्कारों का विस्तार तथा उनकी संख्या लिखिए।
  10. प्रश्न- सोलह संस्कारों का विस्तृत वर्णन कीजिए।
  11. प्रश्न- प्राचीन भारतीय समाज में संस्कारों के प्रयोजन पर अपने विचार संक्षेप में लिखिए।
  12. प्रश्न- प्राचीन भारत में विवाह के प्रकारों को बताइये।
  13. प्रश्न- प्राचीन भारत में विवाह के अर्थ तथा उद्देश्यों का उल्लेख कीजिए तथा प्राचीन भारतीय विवाह एक धार्मिक संस्कार है। इस कथन पर भी प्रकाश डालिए।
  14. प्रश्न- परिवार संस्था के विकास के बारे में लिखिए।
  15. प्रश्न- प्राचीन काल में प्रचलित विधवा विवाह पर टिप्पणी लिखिए।
  16. प्रश्न- प्राचीन भारतीय समाज में नारी की स्थिति पर प्रकाश डालिए।
  17. प्रश्न- प्राचीन भारत में नारी शिक्षा का इतिहास प्रस्तुत कीजिए।
  18. प्रश्न- स्त्री के धन सम्बन्धी अधिकारों का वर्णन कीजिए।
  19. प्रश्न- वैदिक काल में नारी की स्थिति का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  20. प्रश्न- ऋग्वैदिक काल में पुत्री की सामाजिक स्थिति बताइए।
  21. प्रश्न- वैदिक काल में सती-प्रथा पर टिप्पणी लिखिए।
  22. प्रश्न- उत्तर वैदिक में स्त्रियों की दशा पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  23. प्रश्न- ऋग्वैदिक विदुषी स्त्रियों के बारे में आप क्या जानते हैं?
  24. प्रश्न- राज्य के सम्बन्ध में हिन्दू विचारधारा का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  25. प्रश्न- महाभारत काल के राजतन्त्र की व्यवस्था का वर्णन कीजिए।
  26. प्रश्न- प्राचीन भारत में राज्य के कार्यों का वर्णन कीजिए।
  27. प्रश्न- राजा और राज्याभिषेक के बारे में बताइये।
  28. प्रश्न- राजा का महत्व बताइए।
  29. प्रश्न- राजा के कर्त्तव्यों के विषयों में आप क्या जानते हैं?
  30. प्रश्न- वैदिक कालीन राजनीतिक जीवन पर एक निबन्ध लिखिए।
  31. प्रश्न- उत्तर वैदिक काल के प्रमुख राज्यों का वर्णन कीजिए।
  32. प्रश्न- राज्य की सप्त प्रवृत्तियाँ अथवा सप्तांग सिद्धान्त को स्पष्ट कीजिए।
  33. प्रश्न- कौटिल्य का मण्डल सिद्धांत क्या है? उसकी विस्तृत विवेचना कीजिये।
  34. प्रश्न- सामन्त पद्धति काल में राज्यों के पारस्परिक सम्बन्धों का वर्णन कीजिए।
  35. प्रश्न- प्राचीन भारत में राज्य के उद्देश्य अथवा राज्य के उद्देश्य।
  36. प्रश्न- प्राचीन भारत में राज्यों के कार्य बताइये।
  37. प्रश्न- क्या प्राचीन राजतन्त्र सीमित राजतन्त्र था?
  38. प्रश्न- राज्य के सप्तांग सिद्धान्त की विवेचना कीजिए।
  39. प्रश्न- कौटिल्य के अनुसार राज्य के प्रमुख प्रकारों का वर्णन कीजिए।
  40. प्रश्न- क्या प्राचीन राज्य धर्म आधारित राज्य थे? वर्णन कीजिए।
  41. प्रश्न- मौर्यों के केन्द्रीय प्रशासन पर एक लेख लिखिए।
  42. प्रश्न- चन्द्रगुप्त मौर्य के प्रशासन की प्रमुख विशेषताएँ बताइए।
  43. प्रश्न- अशोक के प्रशासनिक सुधारों की संक्षिप्त विवेचना कीजिए।
  44. प्रश्न- गुप्त प्रशासन के प्रमुख अभिकरणों का उल्लेख कीजिए।
  45. प्रश्न- गुप्त प्रशासन पर विस्तृत रूप से एक निबन्ध लिखिए।
  46. प्रश्न- चोल प्रशासन पर एक निबन्ध लिखिए।
  47. प्रश्न- चोलों के अन्तर्गत 'ग्राम- प्रशासन' पर एक निबन्ध लिखिए।
  48. प्रश्न- लोक कल्याणकारी राज्य के रूप में मौर्य प्रशासन का परीक्षण कीजिए।
  49. प्रश्न- मौर्यों के ग्रामीण प्रशासन पर एक लेख लिखिए।
  50. प्रश्न- मौर्य युगीन नगर प्रशासन पर प्रकाश डालिए।
  51. प्रश्न- गुप्तों की केन्द्रीय शासन व्यवस्था पर टिप्पणी कीजिये।
  52. प्रश्न- गुप्तों का प्रांतीय प्रशासन पर टिप्पणी कीजिये।
  53. प्रश्न- गुप्तकालीन स्थानीय प्रशासन पर टिप्पणी लिखिए।
  54. प्रश्न- प्राचीन भारत में कर के स्रोतों का विवरण दीजिए।
  55. प्रश्न- प्राचीन भारत में कराधान व्यवस्था के विषय में आप क्या जानते हैं?
  56. प्रश्न- प्राचीनकाल में भारत के राज्यों की आय के साधनों की विवेचना कीजिए।
  57. प्रश्न- प्राचीन भारत में करों के प्रकारों की व्याख्या कीजिए।
  58. प्रश्न- कर की क्या आवश्यकता है?
  59. प्रश्न- कर व्यवस्था की प्राचीनता पर प्रकाश डालिए।
  60. प्रश्न- प्रवेश्य कर पर टिप्पणी लिखिये।
  61. प्रश्न- वैदिक युग से मौर्य युग तक अर्थव्यवस्था में कृषि के महत्व की विवेचना कीजिए।
  62. प्रश्न- मौर्य काल की सिंचाई व्यवस्था पर प्रकाश डालिए।
  63. प्रश्न- वैदिक कालीन कृषि पर टिप्पणी लिखिए।
  64. प्रश्न- वैदिक काल में सिंचाई के साधनों एवं उपायों पर एक टिप्पणी लिखिए।
  65. प्रश्न- उत्तर वैदिक कालीन कृषि व्यवस्था पर टिप्पणी लिखिए।
  66. प्रश्न- भारत में आर्थिक श्रेणियों के संगठन तथा कार्यों की विवेचना कीजिए।
  67. प्रश्न- श्रेणी तथा निगम पर टिप्पणी लिखिए।
  68. प्रश्न- श्रेणी धर्म से आप क्या समझते हैं? वर्णन कीजिए
  69. प्रश्न- श्रेणियों के क्रिया-कलापों पर प्रकाश डालिए।
  70. प्रश्न- वैदिककालीन श्रेणी संगठन पर प्रकाश डालिए।
  71. प्रश्न- वैदिक काल की शिक्षा व्यवस्था पर प्रकाश डालिए।
  72. प्रश्न- बौद्धकालीन शिक्षा व्यवस्था पर प्रकाश डालते हुए वैदिक शिक्षा तथा बौद्ध शिक्षा की तुलना कीजिए।
  73. प्रश्न- प्राचीन भारतीय शिक्षा के प्रमुख उच्च शिक्षा केन्द्रों का वर्णन कीजिए।
  74. प्रश्न- "विभिन्न भारतीय दार्शनिक सिद्धान्तों की जड़ें उपनिषद में हैं।" इस कथन की विवेचना कीजिए।
  75. प्रश्न- अथर्ववेद पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।

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