बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 राजनीति विज्ञान बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 राजनीति विज्ञानसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 राजनीति विज्ञान : लोक प्रशासन
प्रश्न- बजट किसे कहते है? एक स्वस्थ बजट के महत्वपूर्ण सिद्धान्त बताइए।
अथवा
बजट के प्रमुख सिद्धान्त क्या हैं?
अथवा
बजट के पाँच महत्वपूर्ण सिद्धान्तों की विवेचना कीजिए।
उत्तर -
बजट का अर्थ
प्रत्येक कार्यपालिका राजकीय कार्यों को संचालित करने के लिए प्रतिवर्ष आय-व्यय का हिसाब बजट के रूप में प्रस्तुत करती है। भारत के संविधान में बजट शब्द कहीं भी उल्लिखित नहीं है बल्कि संविधान के अनुच्छेद (112) में कहा गया है कि "राष्ट्रपति प्रत्येक वित्तीय वर्ष के सम्बन्ध में संसद के दोनों सदनों के समक्ष एक वार्षिक वित्तीय विवरण (Annual Financial Statement) रखवाएगा। यही वार्षिक वित्तीय विवरण जिसमें सरकार की प्रवृत्तियों और व्यय का विवरण होता है बजट कहलाता है। बजट शब्द की उत्पत्ति फ्रेंच भाषा के 'बजट' या 'बोजते' (Bougette) शब्द से हुई है जिसका उसी भाषा में अर्थ 'एक चमड़े का थैला' होता है। यह शब्द सर्वप्रथम 1773 में इंग्लैण्ड की संसद में जब वित्त मन्त्री ने अपनी वित्तीय योजनाओं को कॉमन सभा के सम्मुख प्रस्तुत किया तो पहली बार व्यंग के रूप में यह कहा गया कि वित्त मन्त्री ने अपना बजट अर्थात् चमड़े का थैला खोला। आज सामान्य अर्थों में बजट का मतलब वार्षिक आय तथा व्यय का विवरण होता है।
बजट के महत्वपूर्ण सिद्धान्त
प्रशासकीय और वित्तीय प्रबन्धन के लिए बजट एक महत्वपूर्ण एवं प्रभावी साधन है। अपने महत्व के कारण बजट का निर्माण भी बजट निर्माण के सिद्धान्तों के अनुरूप ही होना चाहिए। यद्यपि बजट निर्माण के कोई पूर्व निर्धारित या सर्वमान्य सिद्धान्त नहीं हैं किन्तु कुछ प्रमुख देशों के बजट सम्बन्धी दीर्घ अनुभव के आधार पर कुछ निम्नलिखित सिद्धान्त बनाए गए हैं
(1) बजट निर्माण में कार्यपालिका की महत्वपूर्ण भूमिका - प्रशासकीय प्रबन्धन का मुख्य उत्तरदायित्व मुख्य कार्यपालिका का ही होता है अतः यह वित्तीय आवश्यकता के सम्बन्ध में भली-भांति बता सकती है। इसलिए बजट बनाने का कार्यभार मुख्य रूप से कार्यपालिका पर ही होना चाहिए। परन्तु बजट बनाने की एक लम्बी प्रक्रिया है, इसलिए उसे विशिष्ट निकायों द्वारा सलाह व सहायता दी जानी चाहिए। भारत में वित्त विभाग बजट बनाने में मुख्य कार्यपालिका को सहायता देता है। सरकार में यह सिद्धान्त कार्यपालिका की सिफारिश के बिना स्वीकृति के लिए कोई भी मांग प्रस्तुत नहीं की जा सकती। यह धारणा इस सिद्धान्त को भी स्पष्ट करती है कि बजट बनाना कार्यपालिका का दायित्व है और इसे ही इस दायित्व को निभाना चाहिए।
(2) जनता के सुझावों के लिए बजट का प्रचार तथा प्रकाशन आवश्यक - सरकार बजट का निर्माण जनत के लिए करती है तथा सरकार द्वारा बनाए गए बजट का सीधा प्रभाव जनता पर पड़ता है अतः यह आवश्यक है कि बजट निर्माण एवं पारित होने की विभिन्न अवस्थाओं जैसे कार्यपालिका द्वारा बजट बनाया जाना, व्यवस्थापिका के समक्ष रखा जाना, व्यवस्थापिका द्वारा क्रियान्वित किया जाना इत्यादि का पर्याप्त प्रचार व प्रकाशन किया जाना चाहिए ताकि जनता बजट में प्रस्तावित योजनाओं एवं कार्यक्रमों के सम्बन्ध में अपने सुझाव देकर भागीदारी को सुनिश्चित कर सके।
(3) कर लगाने सम्बन्धी संसद का एकाधिकार - कोई भी कर संसद या विधायिका की स्वीकृति के बिना नहीं लगाया जा सकता है। कार्यपालिका अपनी इच्छा से या आदेश से कोई कर नहीं लगा सकती है, उसे अपने सभी कर प्रस्ताव एक बिल के रूप में संसद के समक्ष प्रस्तुत करने होते हैं और इनकी संसद द्वारा स्वीकृति होने पर ही जनता से इन करों की वसूली की जा सकती है।
(4) व्यय पर विधायिका का नियन्त्रण - राजकीय व्यय के सम्बन्ध में विधायिका या संसद का नियन्त्रण अत्यधिक महत्वपूर्ण रहता है। प्रत्येक सरकारी व्यय को संसद की स्वीकृति आवश्यक होती है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद (226) में इस सिद्धान्त को स्वीकार करते हुए यह कहा गया है कि भारत सरकार को प्राप्त होने वाली सम्पूर्ण आय, सब प्रकार के ऋणों के भुगतान के रूप में प्राप्त समस्त धनराशियां केन्द्र अथवा राज्य सरकार की संचित निधि में जमा की जाएँगी और इस विधि से कोई भी राशि तब तक नहीं निकाली जा सकती जब तक कि संसद द्वारा पारित किसी कानून से उसकी स्वीकृति न ले ली गई हो।
(5) वार्षिक सत्र का सिद्धान्त - बजट निर्माण में यह प्रतिबद्धता रहती है कि वह केवल एक सत्र या एक वित्तीय वर्ष के लिए ही स्वीकृत किया जाय। इस सत्र की समाप्ति पर बजट द्वारा स्वीकृत कर- प्रस्ताव समाप्त हो जाते हैं और अगले वर्ष के लिए फिर से नया बजट स्वीकृत कराना पड़ता है।
(6) सन्तुलित, लचीला एवं स्पष्टता का सिद्धान्त - बजट निर्माण में इस बात का भी विशेष ध्यान रखा जाता है कि बजट सन्तुलित होना चाहिए अर्थात् आय तथा व्यय के मध्य सन्तुलन होना चाहिए। अत्यधिक घाटे का बजट तथा अत्यधिक लाभ का बजट दोनों ही दोषपूर्ण माने जाते हैं। साथ ही बजट में इतना लचीलापन होना चाहिए ताकि उसमें आवश्यक परिवर्तन किया जा सके। बजट की भाषा एवं रूपरेखा इतनी सरल एवं स्पष्ट होनी चाहिए ताकि एक आम नागरिक भी उसे पढकर या सुनकर समझ सके।
(7) शुद्धता, व्यापकता एवं एकता का सिद्धान्त - बजट निर्माण करते समय बजट के अनुमानों का विशुद्ध होना अत्यन्त महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि इसके अभाव में एक अच्छा बजट नहीं बनाया जा सकता है। बजट की सफलता के लिए आवश्यक है कि बजट व्यापक हो अर्थात् सरकार द्वारा प्रस्तावित सभी योजनाएँ तथा कार्यक्रमों को अच्छी प्रकार से वर्णित किया जाना चाहिए। सरकार की आय तथा व्यय का सही विवरण स्पष्ट रूप से दिया जाना चाहिए। साथ ही सरकार की सभी आमदनियों को एक सामान्य निधि में रखा जाना चाहिए तथा शासन के समस्त विभागों की आय तथा व्यय से सम्बन्धित एक ही बजट होना चाहिए, जबकि भारत में सामान्य बजट तथा रेल बजट तैयार किए जाते हैं।
(8) मितव्ययिता का सिद्धान्त - बजट का मितव्ययी होना भी उसकी सफलता का आवश्यक तत्व है। बजट के सभी अनुमान मितव्ययिता के सिद्धान्त का दृढ़ता से पालन करते हुए बनाए जाने चाहिए। एक भी पैसे का अनावश्यक दुरुपयोग, अपव्यय या बर्बादी नहीं होनी चाहिए यदि किसी योजना को क्रियान्वित करने के लिए एक से अधिक साधन विकल्प के रूप में हों तो सबसे कम खर्चीले साधन को ही चुना जाना चाहिए।
उपरोक्त सिद्धान्तों का पालन बजट निर्माण एवं उनके क्रियान्वयन में करते रहने से कोई भी देश अपनी वित्तीय व्यवस्था मजबूत बनाए रख सकता है तथा कार्यपालिका को आकस्मिक अथवा पूरक अनुदान मांगे रखने की पद्धति का सहारा नहीं लेना पड़ता तथा देश की अर्थव्यवस्था को वित्तीय संकट से बचाए रखा जा सकता है।
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