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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 चित्रकला - भारतीय वास्तुकला का इतिहास-II

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2804
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 चित्रकला - भारतीय वास्तुकला का इतिहास-II - सरल प्रश्नोत्तर

 

अध्याय - 3
ढूंढाड़ - जयपुर, मारवाड़, किशनगढ़ स्कूल
Dhundhor - Jaipur, Marwar, Kishnangra School

ढूंढाड़ पश्चिमी भारत में राजस्थान राज्य का एक ऐतिहासिक क्षेत्र है। प्राचीन काल में जयपुर और उसके आस-पास के क्षेत्रों को ढूंढार कहा जाता था। अलवर, जयपुर और शेखावटी के अधिकांश भाग आज भी ढूंढार प्रदेश कहलाते हैं। ढूंढार शैली की चित्रकला ने समय-समय पर विभिन्न नए रूपों के माध्यम से अपने विकास की गति जारी रखी। धूंधर शैली अपनी विशिष्ट लोक कला चित्रकला शैली अपनी विशिष्ट चित्रकला के लिए बहुत लोकप्रिय थी। इनमें लघु पेटिंग की शानदार रचनाएँ हैं और आमतौर पर गोल चेहरे, बड़ी आँखें, लम्बी गर्दन और नुकीली नाक वाली खूबसूरत शासकों को चित्रित करती हैं। इन चित्रों में तत्कालीन शासकों और सम्राटों की डरा देने वाली गतिविधियों को दर्शाया गया है। इस शैली के सबसे पुराने उपलब्ध टुकड़े एम्बर में कब्रों पर 1600-1614 के आसपास बनाए गए भित्तिचित्र हैं। इसके अतिरिक्त बैराठ के तथाकथित मुगल उद्यान में इस शैली के भित्तिचित्र देखे जा सकते हैं। जिनमें राग-रागिनी, कृष्ण लीला, नायिका भेद, हाथी की सवारी, घुड़सवारी और ऊँट की सवारी जैसे विषयों को चित्रित किया गया है। इन पर मुगल शैली का स्पष्ट प्रभाव दिखता है।

प्रश्न- राजस्थानी शैली के विकास क्रम की चर्चा कीजिए।

सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
1. राजस्थानी शैली का विकास कैसे हुआ?
2. यह शैली किनके जीवन की व्याख्या करती दिखाई देती है?

उत्तर -

राजस्थान के शासको ने शौर्य, वीरता के साथ-साथ कला जगत् में भी अपनी अभिरूचि प्रदर्शित की शायद ही ऐसा कोई दरबार हो जहाँ से कलाकृतियों की रचना का उदगम न हुआ हो ।

राजस्थान रंगों का स्थान है। यहाँ के वातावरण से कलाकारों को चित्रण हेतु नए-नए वर्ण मिलते हैं जो अभिव्यक्ति में सहायक बनते हैं।

गैरोला के शब्दों में -  वास्तविकता तो यह है कि अपने प्राकृतिक निर्माण और मोहक वातावरण के कारण कला एवं काव्य की उद्भावना के लिए राजस्थान की धरती बड़ी ही उपयुक्त रही है। आज हम जिसको राजस्थान या राजपूत शैली के नाम से पुकारते है उसका निर्माण दूसरी अधिकांश चित्र शैलियों की भाँति न तो एक स्थान में हुआ और न ही उसके निर्माता कलाकार उँगलियों पर गिने जा सकते हैं। राजस्थान के जितने भी प्राचीन नगर और धार्मिक सांस्कृतिक स्थल हैं। उन सभी में एक साथ असंख्य आश्रित कलाकारों एवं स्वतन्त कलाकारों के द्वारा वर्षों तक निरन्तर कलाकृतियों का सृजन होता रहा।

राजस्थानी शैली का विकास

जैसा कि सर्वविदित है कि कला के विकास में राजस्थान में अर्थ व्यवस्था का एक बहुत बड़ा योगदान दिखायी देता है। जब मुगल साम्राज्य भारत में स्थापित हो चुका था, उस समय सूरत (गुजरात) व्यापार का महत्वपूर्ण बंदरगाह था। अहमदाबाद कॉटन, सिल्क आदि का प्रमुख गढ़ था।

यूरोप से यहाँ सामान आता था और यहाँ का सामान पश्चिम में जाता था ये रास्ता राजस्थान से होकर जाता था इन समान पर ड्यूटी लगती थी। इस समय यहाँ की उन्नत आर्थिक दशा को देखकर दिल्ली दरबार के कई कलाकार यहाँ आए और यहाँ की कला को विकसित करने में सहयोग दिया।

यदि सूक्ष्म रूप से अध्ययन करे तो ज्ञात होता है कि भारतीय संभ्यता संस्कृति एवं कला का एक अविराम इतिहास रहा है। प्रारम्भ से मानव अन्तर्मन की गूढ़ अभिव्यक्ति को पट पर साकार करता आया है जिसके पार्श्व में तत्कालीन परिवेश परिस्थितियाँ साहित्य आदि का विशिष्ट महत्व दिखायी देता है और 15वीं शताब्दी तक आते-आते भारत में एक निश्चित और व्यापक परम्परा का पुनरुत्थान दिखाई देने लगता है जिसने राजस्थानी शैली के विकास में सहयोग दिया। यह वह समय था जब भारत में धर्म साहित्य संगीत आदि प्राय: सभी क्षेत्रों में कलाकार रूढ़ता को त्याग कर नवजीवन का संचार कर रहे थे।

अपभ्रंश शैली की रूढ़ता समाप्त जयपुर हो चुकी थी और कलाकार प्रकृति धर्म साहित्य से प्रेरणा लेकर मानव मन की अनुपम अभिव्यक्ति को रमणीयता प्रदान करने में लगे थे। इसी समय कुछ कलाकार ईरान से भारत आए जिनके परम सहयोग से भारतीय कलाकारों को प्रेरणा मिली और साथ-साथ अपनी कला को परिष्कृत एवं परिमार्जित करने का अवसर भी मिला और एक नए परिवेश में विषयवस्तु की व्यापकता को अपनाते हुए आत्माभिव्यक्ति होने लगी।

रामनाथ के शब्दों में -  कलाकार जितनी स्वछन्दता से अपने हृदय की सुन्दर-सुन्दर कोमल अनुभूतियों को व्यक्त करना चाहता है। उसका कोई साधन उसे अपभ्रंश के युग में नहीं मिलता था। वैष्णववाद के प्रचार के साथ-साथ भक्ति और प्रेम की धाराएँ जनजीवन में प्रमुख हो गयी। वैष्णवों की भक्ति और प्रेम की इन भावनाओं को प्रदर्शित करने के लिए चित्रकला के सिद्धान्तों और विषयों में भी क्रान्तिकारी परिवर्तन हुए। कृष्ण भक्ति विषयक चित्र बनाने की एक नयी परिपाटी चल पड़ी। प्रेम और भक्ति के माध्यम से अब चित्रकला में लौकिक विषयों का भी चित्रण सम्भव हो गया और इससे चित्रकला की बहुमुखी प्रगति के द्वार खुल गए।

आरम्भ में राजस्थानी शैली राजाओं के मनोरंजन हेतु निर्मित की गयी और राजमहलों तक सीमित रही।

वाचस्पति गैरोला उस बात की पुष्टि करते हुए लिखते है, आरम्भ में चित्रों का उद्देश्य मनोरंजन की ही सीमित था। इसलिए इनका प्रचलन राजमहलों तक ही सीमित रहा। इस प्रकार की चित्रकारी के लिए राजमहलो में वेतन भोगी कलाकार होते थे। जो बहुधा वंशानुगत होते थे। किन्तु कभी-कभी अन्य कलाकार भी इस उद्देश्य के लिए बुलाए जाते थे। उनको नगद मूल्य दिया जाता था। इस प्रकार की कुछ सचित्र पांडुलिपियाँ भी मिली हैं जिनकी पुष्पिका में तीन हजार से लेकर छः हजार तक का मूल्य अंकित है।

राजपूत कला का अर्थ तत्कालीन कला से है जो राजस्थान की कोख में राजपूत राजाओं के आश्रय में जन्मी और भविष्य में उस प्रान्त की अमर धरोहर के रूप में देश-विदेश में विख्यात हुई। राजस्थानी कला वास्तव में भक्ति शौर्य और वैभव की त्रिवेणी बन कर अपने भीतर एक अथाह सागर को समेटे है।

चित्रों के मुख्य विषय कृष्ण लीला रागमाला नायिका भेद, बारहामासा, गीत-गोविन्द आदि थे जिसमें तत्कालीन समाज के जीवन के गूढ़ सत्य का दिग्दर्शन कलाकारों ने काल्पनिकता की तूलिका से अनुप्रेरित आलंकारिक शैली में किया। इस शैली का प्रत्येक अवयव स्वयं में परिपूर्ण है। एक ओर कलाकार की सूक्ष्म तूलिका की अभिव्यक्ति है तो दूसरी ओर तकनीक की विशिष्ट पहचान।

वास्तव में यह शैली राजपूत राजाओं के व्यक्तिगत जीवन तथा सांस्कृतिक एवं साहित्यिक परिवेश का दर्पण बन कर सच्चे अर्थो में लघुचित्रण परम्परा का एक गौरवमय इतिहास प्रस्तुत करती है। राजपूत राजाओं ने कलाकारों को प्रोत्साहन तथा आश्रय दिया।

गैरोला के अनुसार, -  'राजस्थान के राजदरबारों में कवियों कलाकारों और विद्वानों का बड़ा सम्मान रहा है। वे निरन्तर अपनी कला का सृजन कर रहे इसके लिए कलाकारों की वृत्तियाँ बँधी हुई थी। उन्हें यथेष्ट धनमान से सम्मानित किया जाता था तथा उन्हें जागीरें दी गयी थी। आज राजस्थान के विभिन्न भागों में विशाल चित्र संग्रहों के अतिरिक्त शिल्प और स्थापत्य के भी उत्कृष्ट नमूने देखने को मिलते हैं वहाँ के राजप्रासादों की विशाल अट्टालिकाओं और सामान्य घरों तक वहाँ के शिल्पियों तथा स्थपतियों के कौशल की सर्वत्र छाप दिखायी देती है।

राजपूत संरक्षकों का सम्बन्ध समकालीन मुगल दरवारों से भी था, इसलिए वह मुगलों की संस्कृति एवं कला से भी प्रभावित हुए। वास्तव में राजपूत राजाओं एवं सैनिकों के सहयोग से ही मुगल साम्राज्य भारत में अपनी जड़े जमा सकने में समर्थ बन सका ।

मुगल तथा राजस्थानी दोनों शैलियाँ एक दूसरे के समकालीन थी इसलिए दोनों ने एक दूसरे को प्रभावित किया। मुगल सम्राटों के आश्रय में यदि हिन्दू कलाकार कार्य कर रहे थे तो दूसरी ओर राजपूत कलम के विकास में भी मुगल दरबार से आए कलाकारों ने सहयोग दिया परन्तु आन्तरिक दृष्टि से दोनो शैलियाँ एक दूसरे से पृथक हैं।

और धीरे - धीरे राजपूतों और मुगल शासकों के आपसी सम्बन्ध समाप्त होने पर राजपूत कलम सर्वथा मुक्त हो गयी और कलाकारों की निजी परिकल्पना उनकी सुकोमल तूलिका पर्यवेक्षण शक्ति के आधार पर विषयों का एक ऐसा सागर प्रस्तुत करती है। जो अमूल्य है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- पाल शैली पर एक निबन्धात्मक लेख लिखिए।
  2. प्रश्न- पाल शैली के मूर्तिकला, चित्रकला तथा स्थापत्य कला के बारे में आप क्या जानते है?
  3. प्रश्न- पाल शैली की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
  4. प्रश्न- पाल शैली के चित्रों की विशेषताएँ लिखिए।
  5. प्रश्न- अपभ्रंश चित्रकला के नामकरण तथा शैली की पूर्ण विवेचना कीजिए।
  6. प्रश्न- पाल चित्र-शैली को संक्षेप में लिखिए।
  7. प्रश्न- बीकानेर स्कूल के बारे में आप क्या जानते हैं?
  8. प्रश्न- बीकानेर चित्रकला शैली किससे संबंधित है?
  9. प्रश्न- बूँदी शैली के चित्रों की विशेषताओं की सचित्र व्याख्या कीजिए।
  10. प्रश्न- राजपूत चित्र - शैली पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
  11. प्रश्न- बूँदी कोटा स्कूल ऑफ मिनिएचर पेंटिंग क्या है?
  12. प्रश्न- बूँदी शैली के चित्रों की विशेषताएँ लिखिये।
  13. प्रश्न- बूँदी कला पर टिप्पणी लिखिए।
  14. प्रश्न- बूँदी कला का परिचय दीजिए।
  15. प्रश्न- राजस्थानी शैली के विकास क्रम की चर्चा कीजिए।
  16. प्रश्न- राजस्थानी शैली की विषयवस्तु क्या थी?
  17. प्रश्न- राजस्थानी शैली के चित्रों की विशेषताएँ क्या थीं?
  18. प्रश्न- राजस्थानी शैली के प्रमुख बिंदु एवं केन्द्र कौन-से हैं ?
  19. प्रश्न- राजस्थानी उपशैलियाँ कौन-सी हैं ?
  20. प्रश्न- किशनगढ़ शैली पर निबन्धात्मक लेख लिखिए।
  21. प्रश्न- किशनगढ़ शैली के विकास एवं पृष्ठ भूमि के विषय में आप क्या जानते हैं?
  22. प्रश्न- 16वीं से 17वीं सदी के चित्रों में किस शैली का प्रभाव था ?
  23. प्रश्न- जयपुर शैली की विषय-वस्तु बतलाइए।
  24. प्रश्न- मेवाड़ चित्र शैली के उद्भव एवं विकास पर प्रकाश डालिए।
  25. प्रश्न- किशनगढ़ चित्रकला का परिचय दीजिए।
  26. प्रश्न- किशनगढ़ शैली की विशेषताएँ संक्षेप में लिखिए।
  27. प्रश्न- मेवाड़ स्कूल ऑफ पेंटिंग पर एक लेख लिखिए।
  28. प्रश्न- मेवाड़ शैली के प्रसिद्ध चित्र कौन से हैं?
  29. प्रश्न- मेवाड़ी चित्रों का मुख्य विषय क्या था?
  30. प्रश्न- मेवाड़ चित्र शैली की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए ।
  31. प्रश्न- मेवाड़ एवं मारवाड़ शैली के मुख्य चित्र कौन-से है?
  32. प्रश्न- अकबर के शासनकाल में चित्रकारी तथा कला की क्या दशा थी?
  33. प्रश्न- जहाँगीर प्रकृति प्रेमी था' इस कथन को सिद्ध करते हुए उत्तर दीजिए।
  34. प्रश्न- शाहजहाँकालीन कला के चित्र मुख्यतः किस प्रकार के थे?
  35. प्रश्न- शाहजहाँ के चित्रों को पाश्चात्य प्रभाव ने किस प्रकार प्रभावित किया?
  36. प्रश्न- जहाँगीर की चित्रकला शैली की विशेषताएँ लिखिए।
  37. प्रश्न- शाहजहाँ कालीन चित्रकला मुगल शैली पर प्रकाश डालिए।
  38. प्रश्न- अकबरकालीन वास्तुकला के विषय में आप क्या जानते है?
  39. प्रश्न- जहाँगीर के चित्रों पर पड़ने वाले पाश्चात्य प्रभाव की चर्चा कीजिए ।
  40. प्रश्न- मुगल शैली के विकास पर एक टिप्पणी लिखिए।
  41. प्रश्न- अकबर और उसकी चित्रकला के बारे में आप क्या जानते हैं?
  42. प्रश्न- मुगल चित्रकला शैली के सम्बन्ध में संक्षेप में लिखिए।
  43. प्रश्न- जहाँगीर कालीन चित्रों को विशेषताएं बतलाइए।
  44. प्रश्न- अकबरकालीन मुगल शैली की विशेषताएँ क्या थीं?
  45. प्रश्न- बहसोली चित्रों की मुख्य विषय-वस्तु क्या थी?
  46. प्रश्न- बसोहली शैली का विस्तार पूर्वक वर्णन कीजिए।
  47. प्रश्न- काँगड़ा की चित्र शैली के बारे में क्या जानते हो? इसकी विषय-वस्तु पर प्रकाश डालिए।
  48. प्रश्न- काँगड़ा शैली के विषय में आप क्या जानते हैं?
  49. प्रश्न- बहसोली शैली के इतिहास पर प्रकाश डालिए।
  50. प्रश्न- बहसोली शैली के लघु चित्रों के विषय में आप क्या जानते हैं?
  51. प्रश्न- बसोहली चित्रकला पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
  52. प्रश्न- बहसोली शैली की चित्रगत विशेषताएँ लिखिए।
  53. प्रश्न- कांगड़ा शैली की विषय-वस्तु किस प्रकार कीं थीं?
  54. प्रश्न- गढ़वाल चित्रकला पर निबंधात्मक लेख लिखते हुए, इसकी विशेषताएँ बताइए।
  55. प्रश्न- गढ़वाल शैली की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि की व्याख्या कीजिए ।
  56. प्रश्न- गढ़वाली चित्रकला शैली का विषय विन्यास क्या था ? तथा इसके प्रमुख चित्रकार कौन थे?
  57. प्रश्न- गढ़वाल शैली का उदय किस प्रकार हुआ ?
  58. प्रश्न- गढ़वाल शैली की विशेषताएँ लिखिये।
  59. प्रश्न- तंजावुर के मन्दिरों की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
  60. प्रश्न- तंजापुर पेंटिंग का परिचय दीजिए।
  61. प्रश्न- तंजावुर पेंटिंग की शैली किस प्रकार की थी?
  62. प्रश्न- तंजावुर कलाकारों का परिचय दीजिए तथा इस शैली पर किसका प्रभाव पड़ा?
  63. प्रश्न- तंजावुर पेंटिंग कहाँ से संबंधित है?
  64. प्रश्न- आधुनिक समय में तंजावुर पेंटिंग का क्या स्वरूप है?
  65. प्रश्न- लघु चित्रकला की तंजावुर शैली पर एक लेख लिखिए।

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