बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 चित्रकला - भारतीय वास्तुकला का इतिहास-II बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 चित्रकला - भारतीय वास्तुकला का इतिहास-IIसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 चित्रकला - भारतीय वास्तुकला का इतिहास-II - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- किशनगढ़ शैली की विशेषताएँ संक्षेप में लिखिए।
सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
1. किशनगढ़ शैली में प्रकृति चित्रण किस प्रकार का है?
2. किशनगढ़ शैली की भवन सज्जा कैसी थी ?
उत्तर-
किशनगढ़ शैली की विशेषताएँ
1. नारी चित्रण - किशनगढ़ शैली की मुख्य विशेषता नारी चित्रण है। जिस सुन्दर ढंग से नारी का चित्रण हुआ है। उसकी काँगड़ा शैली की नारी से तुलना की जा सकती है। नारी का सौन्दर्य चित्रण करने में इस शैली के चित्रकारों ने कमाल कर दिखाया है। इसी से इस शैली का मूल्यांकन हुआ है। चेहरे कोमलता लिए हुए हैं तथा कहीं भी भारीपन या रूक्षता नहीं है। स्त्रियों को लताओं के समान पतला, लचकदार व छरहरे शरीर का चित्रित किया है। चेहरे भी लम्बे हैं जिनमें माथा ऊंचा और पीछे की ओर है, नाक लम्बी व नुकीली है होठ जरा कटावदार मोटे व आगे की ओर निकले हुये हैं। ठोड़ी भी थोड़ी लम्बी है। चेहरे त्रिकोणाकार हैं।
नेत्रों की बनावट तो किशनगढ़ शैली में विशिष्ट स्थान रखती है। खंजन पक्षी के आकार के पीछे तक लम्बे खिंचे हुए नेत्र तथा धनुषाकार भृकुटी अति सुन्दर बनी हैं। गर्दन भी लम्बी बनी है, हाथ और उंगलियाँ भी लम्बी तथा सुन्दर बनी हैं। बालों को एक लट कान के पास छूती हुई, विशेषतया किशनगढ़ में ही मिलती है। पुरुष और नारी दोनों आकृतियों में कन्धों तक लटकी हुई केश राशी बनी है। क्षीण कटि तथा उन्नत वक्ष हैं।
2. रात्रि के दृश्य - मेवाड़ शैली की भाँति इस शैली में रात्रि के दृश्य को बहुत निपुणता के साथ चित्रित किया गया है। पीले रंग प्रकाश जो दीपकों से किया गया है सुन्दर है। चाँदनी रात के दृश्य बहुत ही आकर्षक हैं।
3. वेश-भूषा - स्त्रियों की वेश-भूषा के अधिकतर लहंगा चोली व पारदर्शी चुन्नी हैं। परन्तु कहीं-कहीं साड़ी भी बनाई गयी हैं। पुरुषों के वस्त्र में सिर पर पगड़ी है जो औरंगजेब के समय की है ऊँची बनाई गयी है जिसमें झब्बा भी लगाया गया है। पजामा तथा वही राजपूती पटका बनाया गया है। धार्मिक चित्रों में कृष्ण को पीतवसन पहले दिखाया गया है।
अलंकार एवं आभूषण भी रत्नजटित हैं। माथे पर झूमर, गले में मोतियों की माला तथा पूर्णतया, गला विभिन्न प्रकार मालाओं से लदा हुआ है। कानों में कुण्डल मोतियों से बने हैं। हाथों व उंगलियों तक में पूर्णतया आभूषण तथा अंगूठियाँ बनाई हैं। बाजूबन्द व चूड़ियाँ बहुत सुन्दर ढंग से चित्रित की गयी है।
4. प्रतीकात्मक चित्र - इस शैली में राधा और कृष्ण को आत्मा और परमात्मा के रूप में दर्शाया गया है।
5. नौका विहार - इस शैली में नौका विहार के बहुत सुन्दर चित्र हैं जिनमें सजीवता तथा गति हैं। लाल रंग की छोटी-छोटी नौकायें अधिकतर बनी हैं।
6. रंग योजना - इस शैली में रंगों को अधिकतर बिना मिश्रित किये लगाया गया है, जिनमें लाल, पीले व नीले रंग का प्रयोग मुख्य है। वैसे हरा, कला और सफ़ेद रंग भी प्रयोग हुआ है और सोने, चाँदी के रंगों का प्रयोग हुआ है।
7. रेखा सौन्दर्य - किशनगढ़ शैली के चित्रों में गतिमान तथा लयपूर्ण रेखायें देखने को मिलती हैं। ये रेखायें बारीक हैं तथा कोमलता लिये हुए हैं।
8. प्रकृति चित्रण - किशनगढ़ शैली में प्रकृति चित्रण बहुत भावुकता से दिखाया गया है। राधाकृष्ण के प्रेमी-प्रेमिका के चित्रण की पृष्ठभूमि में जो लता, वृक्ष आदि का सजीव चित्रण है, उसने उस वातावरण में चार चाँद लगा दिये हैं। ऊंचा क्षितिज बनाकर वनस्पति की महत्ता को प्रकट किया है। कहीं-कहीं क्षितिज बनाया ही नहीं है, केवल वृक्ष व लताओं को इतना घना बनाया गया है कि बहुत रोमांचक वातावरण प्रतीत होता है। झील के दृश्यों में भी चित्रकारों ने प्राकृतिक सौन्दर्य को बड़ी सफलता से चित्रित किया है।
9. भीड़-भाड़ के चित्र - कुछ चित्रों में बहुत भीड़-भाड़ बनाई गयी है जैसे कि 'गोवर्द्धन धारण' चित्र है इसमें अगणित आकृतियाँ हैं। स्त्री व पुरुष दोनों ओर हैं, कृष्ण बीच में गोवर्द्धन पर्यंत को एक उंगली पर उठाये खड़े हैं, परन्तु विशेषता यह है कि हर आकृति तथा चेहरे बिल्कुल एक से सुन्दर हैं तथा चित्र पूर्णतया सन्तुलित हैं।
10. बड़े चित्र - प्राय: इस शैली के चित्र थोड़े बड़े बने हैं। अन्य शैलियों में लघु चित्र ही
11. भवन सज्जा - भवन सज्जा बहुत सुन्दर है जिसमें गुम्बद, जालियाँ तथा खिड़कियाँ बहुत आकर्षक हैं।
यह शैली, रूप नगर व किशनगढ़ दो स्थानों पर विकसित हुई। कुछ दिन तो नागरी दास भी रूप नगर रहे थे, परन्तु उसके बाद उनके पुत्र सरदार सिंह ने राजधानी ही रूप नगर में बना ली थी, जहाँ कि किशनगढ़ के चित्रकार रहने लगे थे।
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