बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 चित्रकला - भारतीय वास्तुकला का इतिहास-II बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 चित्रकला - भारतीय वास्तुकला का इतिहास-IIसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 चित्रकला - भारतीय वास्तुकला का इतिहास-II - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- जहाँगीर प्रकृति प्रेमी था' इस कथन को सिद्ध करते हुए उत्तर दीजिए।
सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
1. जहाँगीर में कलात्मक संवेदनाएँ कहाँ से प्राप्त हुई थी?
2. जहाँगीर के प्रकृति प्रेम पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर-
शहंशाह अकबर के पश्चात् उनका उत्तराधिकारी जहाँगीर मुगल सिंहासन पर 1605 ई० में आरूढ़ हुआ। विद्वान् ऐसा मानते हैं कि राजनैतिक सांस्कृतिक एवं कलात्मक जगत में जिन विशिष्टताओं को अकबर ने प्रारम्भ किया वह अपने चरमोत्कर्ष पर जहाँगीर के समय में दिखाई देती हैं।
अकबर के समान ही उनके पुत्र जहाँगीर अत्यन्त कुशल शासक थे। अकबर के समान ही उन्होंने प्रचलित परम्पराओं को संजोया और शास्त्रीय कला के ऐसे चित्रों का निर्माण कराया जो देश विदेश के विभिन्न संग्रहालयों की शोभा बढ़ा रहे हैं।
जहाँगीर हिन्दू माँ के सपूत थे इसलिए भारतीय संवेदनाएँ उन्हें जन्मजात रूप में मिली थी। इसलिए उन्होंने जिन चित्रों का निर्माण कराया वह उच्च कलात्मक मूल्यों की कसौटी पर खरे उतरते हैं।
इनके चित्रों में प्रयुक्त प्रत्येक तत्व नए विकास तत्वों को स्पष्ट करता है। इसी कारण मानवीय अनुभूतियाँ एवं पात्रों के पार्श्व में निहित भावनाओं की विशिष्ट अभिव्यञ्जना तत्कालीन चित्रों का मूल है।
वाचस्पति गैरोला के शब्दों में भारत में यद्यपि मुगल शैली का समारम्भ अकबर के शासन में हुआ, किन्तु उसमें उच्च कलात्मक ध्येयों और नए विकास तत्वों का समावेश हुआ जहाँगीर के समय में मानवीय अभीप्साओं आचरणों और भावनाओं के ठीक अनुरूप चित्र जहाँगीर के ही समय में बने । जहाँगीर के समय में जिन रंगों का निर्माण हुआ और उनका जिस ढंग से उपयोग किया गया वह अपूर्व था । रंगों के अतिरिक्त रेखाओं की दिशा में भी जहाँगीर कालीन चित्रकारों ने अपनी विशेषता का परिचय दिया। वस्त्राभूषणों की योजना करते हुए उनकी दृष्टि यथार्थ पर रही। इस प्रकार अंग-प्रत्यंग का चित्रण करने विशेषतया मीनाकृत आँखों सम्पूर्ण मुखाकृति और हाथों का चित्रण करने में जहाँगीर कालीन चित्रकार बड़े निपुण थे।
इस प्रकार यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि जहाँगीर के समय का प्रत्येक चित्र कला की विशिष्टताओं को पूर्णरूपेण प्रकट करता है। इस काल के चित्रों में अलंकारिकता के साथ स्वाभाविकता का समावेश एक पृथक् सौंदर्य का सृजन करता प्रतीत होता है।
ऐसा सौंदर्य जिसे निहारने हेतु बाह्य चक्षु के स्थान पर सूक्ष्म दृष्टि (माइक्रोस्कोपिक आइज) की आवश्यकता है। जहाँगीर के व्यक्तित्व का वास्तविक परिचय उनके आत्म चरित पुस्तक तुजुक -ए-जहाँगीरी से मिलता है।
जहाँगीर का प्रकृति प्रेम
जहाँगीर एक महान् शासक होने के साथ-साथ अद्भुत कला पारखी और समाज सुधारक थे। वह प्रकृति से बहुत प्रेम करते थे और उसके सान्निध्य में रहना पसन्द करते थे ।
प्रकृति निरीक्षण हेतु वह पर्वतों पर भी विचरण के लिए जाते थे। उनके इरा प्रकृति प्रेमी गुण का प्रभाव उनके समय के बने चित्रों में स्पष्टतया दृष्टिगोचर होता है। इस चित्रों में प्रकृति आकृतियों को सहयोगी बनकर उनके लिए एक वातावरण उपस्थित करती है।
प्रकृति के प्रति जहाँगीर की संवेदनाओं के मूल में नूरजहाँ की भावना - प्रवण प्रवृत्ति के लक्षण दिखायी देते हैं। नूरजहाँ प्रकृति चित्रों से विशेष रूप से आकृष्ट होती थी। इसीलिए जहाँगीर ने मंसूर को सैकड़ों पुष्पों को चित्रित करने का आदेश दिया। प्रत्येक पुष्प एक नवीन सौंदर्य को प्रस्तुत कर प्रत्येक को मन्त्रमुग्ध करता है।
इसी प्रकृति का ही एक अंग हैं पशु-पक्षी, जो मूक रहकर अपने सामीप्य एवं संवेदनाओं से मानव के साथ एक प्रकार का सम्बन्ध स्थापित कर लेते हैं।
जहाँगीर को पशु-पक्षियों से भी विशेष लगाव था। पुष्पों के चित्रों के साथ-साथ उस्ताद मंसूर ने पशु-पक्षियों का भी भावनापूर्ण चित्रण किया। इन पशु-पक्षियों का चित्रण कही मानवाकृतियों के सहयोगी रूप में हैं तो कहीं व्यक्तिगत रूप में।
ये सभी चित्र इतने स्वाभाविक एवं यथार्थवादी हैं कि मानों फोटोग्राफ हों । जहाँगीर पशु-पक्षियों से इतना प्रेम करते थे कि एक बार शीतल जल में स्नान करते हुए एक हाथी को काँपते हुए देखकर उन्होंने उसके लिए तालाब का पानी गर्म करवाया।
इतिहास साक्षी है कि अकबर के समय में प्रचलित शास्त्रीय परम्पराओं को और अधिक परिमार्जित कर जहाँगीर काल के कलाकारों ने आगे बढ़ाया। इसलिए इस समय ईरानी प्रभाव कम होता गया परन्तु पूर्णतः समाप्त नहीं हुआ।
जहाँगीर कालीन चित्रों में प्राकृतिक वास्तविकता की प्रमुखता दी गयी है। इस समय के चित्रों में कलम की बारीकी व उत्कृष्टता चित्रों को तकनीकी कौशल की विशिष्टता प्रदान करने में पूर्णत: समर्थ है।
यही कारण है कि वस्तुगत सूक्ष्मता को चित्रों का प्रमुख आधार बना कर कलाकारों ने एक परिपक्व शैली का निर्वाह किया है। इनके चित्रों में राजसी भव्यता एवं शान-शौकत के साक्षात् दर्शन होते हैं।
वस्त्रों का आलेखन भवनों की नक्काशी कालीन के डिजाइन, आभूषणों की सज्जा वैभवपूर्ण दरबार आदि सभी से शान-ए-शौकत दिखायी देती है । प्रायः चित्रों में आकृतियों की भीड़-भाड़ है।
किसी-किसी चित्र में तो 65-70 आकृतियाँ हैं परन्तु इस सन्दर्भ में आकृतियों का चुनाव परिप्रेक्ष्य की कुशलता आदि के माध्यम से संयोजन में संतुलन प्रस्तुत किया गया है।
सहयोग इस प्रकार निश्चित रूप से यह कहा जा सकता है कि जहाँगीर काल के प्रत्येक चित्र के पार्श्व में कलाकार की उच्च रूचि एवं पारखी दृष्टि अपना महत्व सिद्ध करती है।
इसी संदर्भ में यहाँ रामकृष्ण दास का प्रस्तुत वास्तव्य जिज्ञासु वास्तव में बहुत ठीक है वह बड़ा ही सहृदय सुरूचि सम्पन्न पहले दर्जे का चित्रप्रेमी प्रकृति-सौंदर्य उपासक, वृक्ष-खग-मृग विज्ञानी संग्रहकर्ता विशद वर्णनाकार और सबसे अधिक पक्का और प्रज्ञावादी था।
वास्तव में जहाँगीर अन्य सम्राटों से पृथक एक ऐसे शासक थे जो अपनी प्रतिभा एवं व्यक्तित्व को पहचानते थे। इसी कारण जहाँगीर प्रतिदिन अपने कलाकारों के कार्यों को परखते थे।
इसलिए वह इसमें इतने निपुण हो गए थे कि वह प्रत्येक कलाकार के कार्यों को पहचान जाते थे। यहाँ तक कि एक ही चित्र में कार्य करने वाले प्रत्येक कलाकार के तूलिका संघातों को देखकर भी वह कलाकारों के नाम बता देते थे।
इसी सन्दर्भ में जहाँगीर ने आत्मचरित में एक स्थान पर लिखा था, "मेरी चित्र की रूचि और पहचान यहाँ तक बढ़ गयी है कि प्राचीन और नवीन उस्तादों में से जिस किसी का काम मेरे देखने में आता है मैं उसका नाम सुने बिना ही झट उसे पहचान लेता हूँ कि अमुक उस्ताद का बनाया है। यदि एक चित्र में कई चेहरे हों और हरेक अलग-अलग चित्रकार का बनाया हुआ हो तो में जान सकता हूँ कि कौन सा चेहरा किसने बनाया है और यदि एक ही चेहरे में आँखे किसी की और भवें किसी की बनायी हुई हों तो भी मैं पहचान लूँगा कि बनाने वाले कौन हैं । "
अकबर के सदृश जहाँगीर ने अपनी परिकल्पनाओं को चित्रकारों द्वारा साकार कराया। उन्होंने न केवल चित्रकारों को सम्मानित किया वरन् उन्हें पर्याप्त धनराशि एवं पुरस्कार भी प्रदान किये ताकि वह निश्चितता से सुन्दर कलाकृतियों का सृजन कर सकें।
ईरानी चित्रकार आकारिजा तथा उनके पुत्र अबुल हसन उस समय के उत्कृष्ट कलाकार थे जिन्होंने ईरानी कलम की विशिष्टताओं कों भारतीय चित्रों में समाहित किया जिसका कारण था कि हिन्दू तथा मुस्लिम कलाकारों के साथ-साथ ईरानी कलाकार सभी मिलकर कार्य करते थे।
इन कलाकारों में उस्ताद मंसूर, विशन दास, मनोहर, दौलत. मोहम्मद मुराद, गोवर्धन, मोहम्मद नादिर आदि प्रमुख थे जिन्हें जहाँगीर दिव्य रत्न मानते थे।
केवल इतना ही नहीं जहाँगीर अपने दरबारियों तथा कलाकारों को विशेष उपाधियों से भी विभूषित करते थे जैसे अबुल हसन को उन्होंने 'नादिर उल जमा' मंसूर को नादिर उल असर, शरीफ खाँ को अमीर उल उमरा की उपाधि से विभूषित किया।
जहाँगीर ने अपने समय के उत्कृष्ट चित्रों का एलबम तैयार करवाया था । अकबर की सुलह-कुल नीति के कारण जहाँगीर के समय तक आते-आते धार्मिक संकीर्णताएँ लगभग समाप्त हो चुकी थीं।
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