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अंकस्  : गु० अंक, आंक आकड़ों; सि० अंगु, का० आँख; सिंह० अंक; मरा० अंक] [वि० अंकनीय, अंकित अंक्य, भाव अंकन] १. बैठे हुए। मनुष्य का, सामने का कमर से घुटनों तक का उतना अंश, जितने में बच्चों आदि को बैठाया जाता है। कोड़। गोद। मुहा०—अंक देना, भरना या लगाना=(क) बच्चे आदि को प्रेमपूर्वक गोद आदि में बैठाना। (ख) गले लगाना, आलिंगन करना। अंक में नमाना या नमावना=अति प्रसन्न होना। फूले अंगों न समाना। उदा०—फूले फिरत अंक नहिं मावत।—सूर। २. कटि प्रदेश। कमर। ३. चिन्ह, छाप या निशान। ४. लेख। लिखावट। ५. संख्या के सूचक चिन्ह। (फिगर) जैसे—१, २, ३, ४ आदि। ६. खेल, परीक्षा आदि में योग्यता, सफलता आदि की सूचक इकाइयाँ। नम्बर जैसे—कबड्डी में सात अथवा गणित में दस अंक हमें मिले हैं। ७. अंश। उदा० एकहु अंक न हरि भजे रे सठ सूर गँवार।—तुलसी। ८. भाग्य। प्रारब्ध। ९. धब्बा। दाग। १. बच्चों को नजर लगने से बचाने के लिए उनके माथे पर लगाई जाने वाली बिन्दी। ११. शरीर। देह। १२. नाटक का एक खण्ड या भाग जिसमें कई दृश्य होते है। १३. रूपक के दस भेदों में से एक। १४. नौ की संख्या। १५. पत्र-पत्रिकाओं आदि का कोई निश्चित समय पर या समय विशेष पर होने वाला प्रकाशन (नम्बर)। १६. पर्वत। १७. दुःख। १८. पाप।
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अंकस  : पुं० [सं०√अञ्च् (गति) +असुन, कुत्व, अंकस्+अच्] १. शरीर। २. चिन्ह। वि० चिन्ह-युक्त।
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