| शब्द का अर्थ | 
					
				| आक्षेप					 : | पुं० [सं० आ√क्षिप्+घञ्] [कर्ता आक्षेपक] १. दूर हटाना या फेकना। २. किसी के ऊपर कुछ गिरना या गिराना। ३. किसी के आचरण, कथन या कार्य के संबंध में कही जानेवाली कोई ऐसी अप्रिय कटु या कठोर बात जिससे वह कुछ दोषी सिद्ध हो या मन में लज्जित हो। व्यंग्यपूर्ण दोषारोपण। ४. साहित्य में, एक अर्थालंकार जिसमें पहले कोई बात कहकर फिर अपवाद रूप में उसका प्रतिषेध किया जाता है। (पैरालैप्सिस) जैसे—(क) जदपि कवित रस एकौ नाँही। राम-प्रताप प्रकट एहिं मांही। (ख) उपकार तो दुर्जनों का भी करना चाहिए, पर होता है वह ऊपर में बीज बोने के ही समान। ५. एक बात रोग जिसमें हाथ पैर रह-रहकर ऐंठतें और काँपते हैं। (कन्वल्शन) | 
			
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				| आक्षेपक					 : | वि० [सं० आ√क्षिप्+ण्वुल्-अक] १. गिराने फेकने या दूर हटानेवाला। २. आक्षेप या व्यंग्यपूर्ण आपत्ति करनेवाला। पुं० आक्षेप नामक वात रोग। | 
			
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				| आक्षेपण					 : | पुं० [सं० आ√क्षिप्+ल्युट्-अन] [भू० कृ० आक्षिप्त] १. गिराना, दूर हटाना या फेकना। २. व्यग्यपूर्ण आपत्ति या आक्षेप करना। | 
			
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				| आक्षेपी (पिन्)					 : | वि० [सं० आ√क्षिप्+णिनि]=आक्षेपक। | 
			
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