| शब्द का अर्थ | 
					
				| आच					 : | पुं० [सं० सच=संधान करना] हाथ। (डिं०)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| आचमन					 : | पुं० [सं० आ√चम् (पान)+ल्युट्-अन] [वि० आचमनीय भू० कृ० आचमित] १. जल पीना। पान करना। २. हिन्दुओं में धार्मिक कृत्य आरम्भ करने के समय दाहिने हाथ की हथेली में थोड़ा जल लेकर मंत्र पढ़ते हुए उसे पीना। ३. नेत्र-बाला नामक ओषधि। | 
			
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				| आचमनक					 : | पुं० [सं० आचमन+कन्] १. वह जल जो आचमन के लिए हाथ में लिया जाता है। २. [ब० स०] उगालदान। | 
			
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				| आचमनी					 : | स्त्री० [सं० आचमन+ङीष्] कलछी के आकार का बहुत छोटा चम्मच जिससे आचमन करते तथा चरणामृत आदि देते हैं। | 
			
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				| आचमनीय					 : | वि० [सं० आ√चम्+अनीयर्] आचमन के योग्य (जल)। | 
			
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				| आचमित					 : | भू० कृ० [सं० आचान्त] आचमन किया हुआ। पिया हुआ। | 
			
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				| आचय					 : | पुं० [सं० आ√चि(चयन)+अच्] १. चयन। २. संचय। | 
			
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				| आचयक					 : | वि० [सं० आचायक] १. चयन करने या चुननेवाला। २. संकलन संचय या संग्रह करनेवाला। | 
			
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				| आचरज					 : | पुं० =अचरज।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| आचरजित					 : | भू० कृ० =आश्चर्यित।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| आचरण					 : | पुं० [सं० आ√चर् (गति)+ल्युट्-अन] [भू० कृ० आचरित] १. चलना या चलकर कहीं पहुँचना। २. कोई कार्य आरंभ करके चलाना या आगे बढ़ाना। अनुष्ठान। ३. जीवन-यात्रा में किये जाने वाले वे सभी कार्य या व्यापार जिनका संबंध और लोगों से भी होता है और जो लोक में नैतिक दृष्टि से आँके जाते है। चाल-चलन। (काँन्डक्ट) जैसे—(क) तुम्हारा यह आचरण ठीक नहीं है। (ख) आपको अपने विद्यार्थियों के आचरण पर ध्यान रखना चाहिए। ४. गाड़ी, छकड़ा रथ या ऐसी ही कोई सवारी। | 
			
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				| आचरण-पंजी					 : | स्त्री० [सं० ष०त०] वह पुस्तिका जिसमें कर्मचारियों के आचरण, चाल-चलन व्यवहार आदि से संबंधित बातें लिखी जाती है। (कैरेक्टर बुक) | 
			
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				| आचरण-पुस्तिका					 : | स्त्री०=आचरण पंजी। | 
			
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				| आचरणीय					 : | वि० [सं० आ√चर्+अनीयर] (कार्य या व्यवहार) जिसका आचरण किया जा सकता हो या करना उचित हो। | 
			
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				| आचरन					 : | पुं० =आचरण।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| आचरना					 : | स० [सं० आचरण] कार्य या व्यवहार के रूप में लाना। आचरण करना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| आचरित					 : | भू० कृ० [सं० आ√चर्+क्त] १. आचरण या व्यवहार के रूप में लाया हुआ। २. वि० नियमित और निर्दिष्ट। पुं० १. प्राचीन भारत में दिया हुआ ऋण वसूल करने की वह परिपाटी जिसमें या तो ऋणी के दरवाजे पर बैठकर धरना दिया जाता था या उसकी स्त्री पुत्र आदि ले लिये जाते थे। २. दे० ‘जीवक’ (कोरियर) | 
			
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				| आचर्य					 : | वि० [सं० आ√चर्+यत्] आचरणीय। | 
			
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				| आचान					 : | अव्य० =अचान। | 
			
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				| आचानक					 : | अव्य० =अचानक। | 
			
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				| आचाम					 : | पुं० [सं० आ√चम्+घञ्] १. पका हुआ चावल। भात। २. माँड। ३. आचमन। | 
			
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				| आचार					 : | पुं० [सं० आ√चर्+घञ्] [वि० आचारिक] १. आचरण। २. आचरण या व्यवहार का वह परिष्कृत नैतिक रूप जो कुछ नियमों, रूढियों, सिद्धान्तों आदि के आधार पर स्थित होता है। और जिसका अनुसरण या पालन लोक में आवश्यक समझा जाता है। ३. उक्त के आधार पर लोक में प्रचलित रीति व्यवहार आदि। जैसे—लोकाचार, शास्त्रोक्त आचार आदि। ४. उत्तम चरित्र शील और स्वभाव। ५. बहुत दिनों से चली आई परिपाटी, प्रथा या रीति। रूढ़ व्यवहार। ६. एक जगह से दूसरी जगह आने जाने की क्रिया या इसी प्रकार का और कोई अन्योन्याश्रित या पारस्परिक व्यवहार। जैसे—पत्राचार-पत्र व्यवहार। | 
			
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				| आचारज					 : | पुं० =आचार्य। | 
			
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				| आचारजी					 : | स्त्री० [सं० आचार्य] १. आचार्य होने की अवस्था या भाव। २. आचार्य का कार्य या पद। ३. पुरोहित का कर्म या व्यवसाय। पुरोहिताई। | 
			
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				| आचार-तंत्र					 : | पुं० [ष० त०] बौद्धों के चार तंत्रों में से एक। | 
			
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				| आचार-दीप					 : | पुं० [ष० त०] आरती की दीया। | 
			
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				| आचारवान्					 : | वि० [सं० आचार+मतुप्, वत्व] [स्त्री० आचारवती] १. जो अच्छे और शुद्ध आचार का पालन करता हो। २. अच्छे तथा शुद्ध आचरणवाला। | 
			
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				| आचार-विचार					 : | पुं० [द्वं० द्व० स०] लौकिक क्षेत्र में किया जानेवाला आचरण और उनसे संबंध रखनेवाला विचार। | 
			
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				| आचार-वेदी					 : | स्त्री० [ष० त०] १. पुण्य भूमि। २. आर्यावर्त्त। | 
			
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				| आचार-शास्त्र					 : | पुं० [ष० त०] नीति शास्त्र (देखें)। | 
			
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				| आचार-हीन					 : | वि० [तृ० त०] १. शास्त्रों में बतलाये हुए आचार न करनेवाला। २. आचरण भ्रष्ट। | 
			
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				| आचारिक					 : | वि० [सं० आचार+ठक्-इक] १. आचार संबंधी। २. (प्रथा या रीति) जो किसी कुल समाज आदि में बहुत दिनों से आचार के रूप में चली आ रही हो। (कस्टमरी) | 
			
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				| आचारी (रिन्)					 : | वि० [सं० आचार+इनि] [स्त्री० आचरिणी] अच्छे आचरण और शुद्ध आचार-विचार वाला। पुं० रामानुज संप्रदाय का वैष्णव आचार्य। | 
			
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				| आचार्य					 : | पुं० [सं० आ√चर्+ण्यत्] [स्त्री० आचार्यानी] १. वह जो आचार (नियमों सिद्धातों आदि) का अच्छा ज्ञाता हो और दूसरों को उसकी शिक्षा देता हो। २. वह जो कर्मकाण्ड का अच्छा ज्ञाता हो और यज्ञों आदि में मुख्य पुरोहित का काम करता हो। ३. यज्ञोपवीत संस्कार के समय गायत्री मंत्र का उपदेश करनेवाला। ४. प्राचीन भारत में, वेद शास्त्रों आदि का बहुत बड़ा ज्ञाता या पंडित। जैसे—शंकराचार्य, वल्लभाचार्य आदि। ५. आज-कल किसी महाविद्यालय का प्रधान अधिकारी और अध्यापक। (प्रिंसिपल) ६. किसी विषय का बहुत बड़ा ज्ञात या पंडित। जैसे—आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी, आचार्य रामचंद्र शुक्ल आदि। | 
			
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				| आचार्या					 : | स्त्री० [सं० आचार्य+टाप्] १. स्त्री आचार्य या गुरु। २. पूजनीय तथा विदुषी स्त्री। ३. स्त्री। | 
			
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				| आचार्यानी					 : | स्त्री० [सं० आचार्य+ङीष्, आनुक्] आचार्य की पत्नी। | 
			
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				| आचिंत्य					 : | वि० [सं० आ√चिन्त् (स्मृति)+यत्] १. सब प्रकार से चिंतन करने योग्य। २. अचिंत्य। पुं० परमेशवर। | 
			
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				| आचिज्ज					 : | पुं० =आश्चर्य। | 
			
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				| आचित					 : | वि० [सं० आ√चि(चयन)+क्त] व्याप्त। | 
			
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				| आचूषण					 : | पुं० [सं० आ√चूस् (चूसना)+ल्युट्-अन] १. अच्छी तरह चूसना। २. शरीर के किसी अंग में तुंबीं लगाकर उसमें का दूषित रक्त चूसना। | 
			
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				| आच्छन्न					 : | भू० कृ० [सं० आ√छद् (ढकना)+क्त] १. जिस पर आवरण पड़ा हो। ढका हुआ। आवृत्त। २. ऊपर से छाया हुआ। ३. छिपा हुआ। तिरेहित। | 
			
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				| आच्छादक					 : | वि० [सं० आ√छद्+णिच्+ण्वुल्-अक] आच्छादन करने या ऊपर से ढकनेवाला। पुं० वह वस्तु जिससे ढका जाए। | 
			
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				| आच्छादन					 : | पुं० [सं० आ√छद्+णिच्+ल्युट्-अन] १. ढकने की क्रिया या भाव। २. ढकने की वस्तु। आवरण। ३. वस्त्र। कपड़ा। ४. छाजन। | 
			
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				| आच्छादित					 : | भू० कृ० [सं० आ√छद्+णिच्+क्त] १. ढका हुआ। आवृत्त। २. छाया हुआ। | 
			
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				| आच्छादी (दिन्)					 : | पुं० [सं० आ√छद्+णिच्+णिनि] आच्छादक। | 
			
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				| आच्छिप्त					 : | वि० =आक्षिप्त। | 
			
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				| आच्छेद					 : | पुं० [सं० आ√छिद् (काटना)+घञ्] १. काटना। २. काट-छाँट। | 
			
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				| आच्छेदन					 : | पुं० [सं० आ√छिद्+ल्युट-अन] काटना या छेदना। | 
			
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				| आच्छोटन					 : | पुं० [सं० आ√स्फुट् (बजाना)+ल्यट्-अन, पृषो० सिद्धि] १. चुटकी बजाना। २. आखेट करना। शिकार खेलना। | 
			
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