| शब्द का अर्थ | 
					
				| आज्य					 : | पुं० [सं० आ√अंज् (दीप्ति)+क्यप्] १. वह घी जिससे आहुति दी जाए। २. दूध या तेल, जो घी के स्थान पर आहुति में दिया जाए। ३. यज्ञ में दी जानेवाली हवि। ४. प्रातः कालीन यज्ञ का एक स्त्रोत। | 
			
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				| आज्यपा					 : | पुं० [सं० आज्य√पा (पीना)+क्विप्] सात प्रकार के पितरों में से एक जो पुलस्त्य के पुत्र वैश्यों के पितर हैं। | 
			
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				| आज्य-भाग					 : | पुं० [सं० ष० त०] यज्ञ में अग्नि और सोमदेव को दी जाने वाली घृत की दो आहुतियाँ। | 
			
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				| आज्य-भुक्					 : | पुं० [सं० आज्य√भुज् (खाना)+क्विप्] १. अग्नि। २. देवता। | 
			
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				| आज्य-स्थाली					 : | स्त्री० [सं० ष० त०] वह यज्ञ पात्र जिसमें हवन के लिए घी रखा जाता है। | 
			
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