शब्द का अर्थ
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आध :
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वि० [हिं० आधा] दे० आधा। पद—एक आध=बहुत ही थोड़ा या कम। कदाचित एक या दो। |
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आधमर्ण्य :
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पुं० [सं० अधर्मण+ष्यज्] अधमर्ण या ऋणी होने की अवस्था या भाव। |
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आधर्मिक :
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वि० [सं० अधर्म+ठञ्-इक] १. जो धार्मिक न हो। २. जो धर्म-संगत आचरण न करता हो। जैसे—अन्यायी, असाधु आदि। |
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आधर्षण :
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पुं० [सं० आ√धृप् (पीड़न)+ल्युट्-अन] [भू० कृ० आधर्षित] न्यायालय द्वारा अभियुक्त को अपराधी ठहराना और दंड देना। (कन्विक्शन) |
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आधर्षित :
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भू० कृ० [सं० आ√धृष्+क्त] १. न्यायालय द्वारा अपराधी या दोषी ठहराया हुआ हो। २. दंड़ित। (कन्विक्टेड) |
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आधा :
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वि० [सं० अर्ध, प्रा० अड्ढ, पा० अद्ध, गु० आड़, का० मरा० सिह० अड] १. किसी वस्तु के दो बराबर भागों में से हर एक। पद |
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आधाझारा :
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पुं० [सं० आधाट] अपामार्ग या चिचड़ा नाम का पौधा। |
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आधाता (तृ) :
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वि० [सं० आ√धा(धारण करना)+तृच्] कहीं से कोई चीज लाकर रखने या स्थापित करनेवाला। आधान करनेवाला। पुं० १. अध्यापक। शिक्षक। २. वह जो कोई चीज किसी के पास गिरवी या बंधक रखे। |
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आधा-तीहा :
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वि० [हिं० आधा+तिहाई] आधे या तिहाई के लगभग। आधे से कुछ कम या तिहाई से कुछ अधिक। |
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आधान :
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पुं० [सं० आ√धा+ल्युट्-अन] १. बैठाने, रखने या स्थापित करने की क्रिया या भाव। जैसे—अग्नि या गर्भ का आधान। २. गर्भ। उदाहरण—कितिक दिवस अंतरह रहिय आधान राखि उर।—चंदबरदाई। ३. गर्भाधान से पहले होनेवाला एक संस्कार। ४. ग्रहण करना। लेना। ५. वह अवकाश पात्र या स्थान जिसमें कोई चीज रखी जाए या रखी जा सके। पात्र। (रिसेप्टेकल) ६. घेरा। ७. प्रयत्न। ८. कोई चीज किसी के पास बंधक या रेहन रखना। |
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आधानवती :
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वि० स्त्री० [सं० आधान+मतुप्० वत्व-ङीष्] गर्भवती। |
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आधानिक :
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पु० [सं० आधान+ठञ वत्व-ङीष्] गर्भाधान से पहले होनेवाला एक संस्कार। |
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आधायक :
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पुं० [सं० आ√धा+ण्वुल्-अक] १. आधान करने (लाकर रखने, बैठाने या स्थापित करने) वाला। जैसे—दोषाधायक-दोष से युक्त करनेवाला। २. प्रभावित करनेवाला। ३. देनेवाला। |
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आधार :
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पुं० [सं० आ√धृ (धारण)+घञ्] १. नीचे की वस्तु जिसके ऊपर कोई दूसरी वस्तु टिकी ठहरी या रखी हो। जैसे—इस जल का आधार यह घड़ा (या लोटा) है। २. वह जो किसी को किसी प्रकार का आश्रय या सहारा देता हो। जैसे—जीवन का आधार भोजन है। ३. वह जिसके बल पर कोई काम या बात चलती या होती है। अवलंब। भरोसा। सहारा। जैसे—(क) जल-पान कर लिया, इससे दिन भर के लिए आधार हो गया। (ख) यहाँ तो बस भगवान का ही आधार है। ४. जड़। नींव। बुनियाद। ५. आधान। पात्र। ६. वृक्ष का थाँवला। थाला। आल-बाल। ७. व्याकरण में अधिकरण कारक। ८. योगशास्त्र में शरीर के अंदर के छः चक्रों में से एक जिसका स्थान गुदा का ऊपरी भाग कहा गया है। यह लाल रंग का और चार दलों वाला माना गया है। और इसके देवता गणेश कहे गये हैं। ९. ज्यामिति में वह रेखा या तल जिस पर कोई आकृति या घनपिंड ठहरा हुआ या स्थित माना जाता है। (बेस)। |
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आधारक :
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पुं० [सं० आधार+कन्] १. वह जिसके ऊपर कोई ढाँचा खड़ा हो। आधार। नींव। |
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आधारण :
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पुं० [सं० आ√धृ+णिच्+ल्युट्-अन] धारण करने या अपने ऊपर लेने की क्रिया या भाव। |
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आधार-रूपा :
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स्त्री० [सं० ब० स० टाप्] गले का एक आभूषण। |
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आधार-शक्ति :
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स्त्री० [ष० त०] १. सृष्ट उत्पन्न करनेवाली मूल प्रकृति। २. माया। |
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आधार-शिला :
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स्त्री० [ष० त०] वह पहला पत्थर जो नींव में रखा जाता है और जिसके ऊपर भवन या इमारत बनता है। (फाउन्डेशन स्टोन) |
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आधार-स्तंभ :
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पुं० [ष० त०] वह जिसके ऊपर किसी का सारा ढाँचा या अस्तित्व आश्रित हो। |
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आधाराधेयभाव :
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पुं० [सं० आधार-आधेय, द्व० स० आधाराधेय-भाव, ष० त०] परस्पर उस प्रकार का भाव या संबंध, जैसा आधार और आधेय में होता है। |
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आधारिक :
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वि० [सं० आधार+ठक्-इक] १. आधार-संबंधी। २. जो किसी काम या बात के लिए आधारस्वरूप हो। (बेसिक) जैसे—आधारिक भाषा। आधारिक शिक्षा। |
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आधारिक-भाषा :
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स्त्री० [कर्म० स०] किसी भाषा का वह बहुत हलका और सब के समझने योग्य रूप जिसमें थोड़े से परम प्रचलित शब्दों से ही सब काम चलाये जाते हैं। (बेसिक लैग्वेज) विशेष—ऐसी भाषा का मुख्य उद्देश्य यह होता है कि अन्य भाषा-भाषियों में सहज में उसका यथेष्ट प्रचार हो सके। |
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आधारित :
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वि० [सं० आधार+णिच्+क्त] जो किसी के आधार पर टिका या ठहरा हो। किसी को आधार बनाकर उस पर आश्रित रहनेवाला। आधृत। |
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आधारी (रिन्) :
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पुं० [सं० आधार+इनि] [स्त्री०आधारिणी] १. वह जो किसी आधार पर ठहरा या टिका हो। २. लकड़ी का वह ढाँचा जिसके सहारे साधु लोग बैठते है। टेवकी। |
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आधा-सीसी :
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स्त्री० [हिं० आधा+सीस(शीर्ष) =सिर] आधे सिर का दर्द। अध-कपारी। |
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आधि :
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स्त्री० [सं० आ√धा (धारण करना)+कि] १. मानसिक कष्ट या चिंता। २. धरोहर या बंधक के रूप में रखी हुई चीज। ३. आशा। ४. लक्षण। ५. रहने की जगह। आवास। |
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आधिक :
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वि० [हिं० आधा+एक] १. आधे के लगभग। आधे से कुछ ही कम या अधिक। २. अल्प। थोड़ा। अव्य० प्रायः। लगभग।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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आधिकरणिक :
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वि० [सं० आधिकरण+ठक्-इक] अधिकरण संबंधी। जैसे—आधिकरणिक विक्रय। (कोर्ट सेल)। पुं० अधिकरण विक्रय। (कोर्ट आँफिसर) |
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आधि-कर्त्ता (र्तृ) :
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पुं० [सं० ष० त०] किसी के पास कोई चीज गिरवी या बंधक रखनेवाला व्यक्ति। |
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आधिकरिक :
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वि० [सं० अधिकार+ठक्-इक] १. अधिकार संबंधी। २. किसी अधिकारी के द्वारा या अधिकारपूर्वक किया या कहा हुआ। (आँथॉरिटेटिव) ३. सरकारी। (आँफिशल) पुं० १. वह जिसे कोई विशेष अधिकार प्राप्त हो और वह उस अधिकार का प्रयोग करता हो। अधिकारी। (आँथॉरिटी) २. परमात्मा। ३. दृष्य-काव्य में मूल कथा-वस्तु। |
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आधिकारिकी :
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स्त्री० [सं० आधिकारिक से] व्यक्तियों का वह वर्ग या समूह जो किसी कार्य या विषय से संबंध रखनेवाली सब बातों का नियंत्रण और संचालन करता हो। (आँथॉरिटी)। |
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आधिक्य :
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पुं० [सं० अधिक+ष्यञ्] मान, मात्रा आदि में अधिक होने की अवस्था या भाव। अधिकता। |
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आधिदैविक :
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वि० [सं० अधिदेव+ठञ्-इक] १. दैव, प्रकृति आदि के द्वारा प्राप्त होनेवाला। (दुख ताप या कष्ट) देवता-कृत। २. जो साधारणतः प्राकृतिक या लोक गत न हो, बल्कि उससे बहुत बढ़-चढ़कर हो। (सुपर नेचुरल) |
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आधि-वर्त्ता (र्तृ) :
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पुं० [ष० त०] वह जिसके पास कोई चीज गिरवी या रेहन रखी जाए। |
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आधिपत्य :
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पुं० [सं० अधिपति+ष्यञ्] १. अधिपति होने की अवस्था या भाव। २. किसी वस्तु पर प्राप्त होनेवाला ऐसा अधिकार जो किसी को उस वस्तु के संबंध में सब कुछ कहने में समर्थ करता हो। (पजेशन)। |
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आधि-भोग :
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पुं० [ष० त०] धरोहर या बंधक रखी हुई वस्तु का उपभोग या उपयोग। |
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आधिभौतिक :
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वि० [सं० अधिभूत+ठञ्-इक] आधिभूतों अर्थात् भौतिक पदार्थों और जीव-जंतुओं आदि के कारण या उसके द्वारा उत्पन्न होनेवाला। जैसे—आधिभौतिक ताप-भौतिक पदार्थों या जीव-जंतुओं के कारण मनुष्य को होनेवाला कष्ट या रोग। |
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आधिराज्य :
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पुं० [सं० अधिराज+ष्यञ्] अधिराज होने की अवस्था या भाव। |
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आधि-व्याधि :
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स्त्री० [द्व० स०] मानसिक कष्ट या चिंता और शारीरिक पीड़ा। दुःख और वेदना। |
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आधीन :
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वि०=अधीन।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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आधीनता :
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स्त्री०=अधीनता।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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आधुनिक :
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वि० [सं० अधुना+ठञ्-इक] १. जो इधर थोड़े समय से ही चला निकला या अस्तित्व में आया हो। हाल का। जैसे—आधुनिक युग आधुनिक साहित्य। २. जिसपर वर्त्तमानकाल की बातों या विशेषताओं की पूरी छाप पड़ी हो। सांप्रतिक। (मार्डन) जैसे—आधुनिक पहनावा। आधुनिक शिष्टाचार। |
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आधुनिका :
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स्त्री० [सं० आधुनिक+टाप्] आधुनिक सभ्यता के अनुसार रहने और आचरण करनेवाली स्त्री। |
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आधूत :
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वि० [सं० आ√धू (काँपना)+क्त] १. काँपता हुआ। कंपित। २. विकल। व्याकुल। पुं० पागल। विक्षिप्त। |
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आधूपन :
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पुं० [सं० आ√धूप् (तपाना)+ल्युट्-अन] धूएँ से ढँकना या आवृत्त करना। |
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आधूमित :
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भू० कृ० [सं० आ-धूम, प्रा० स,०+इतच्] धुएँ से आवृत्त या ढका हुआ। |
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आधूस्र :
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वि० [सं० प्रा० स०] जिसका रंग धुएँ जैसा काला हो। |
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आधृत :
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वि० अव्य० [सं० आ√धृ (धारण)+क्त] आधारित। |
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आधेक :
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[हिं० आधा+एक] आधे के लगभग। प्रायः आधा। |
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आधेय :
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पुं० [सं० आ√धा (धारण करना)+यत्] वह जो किसी आधार पर ठहरा बना या रहता हो। वि० १. ठहराने या स्थापित किये जाने के योग्य। २. रचने योग्य। ३. रेहन रखे जाने के योग्य। |
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आधोफर :
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पुं० [?] छज्जा। (डिं०) |
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आधोरण :
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पुं० [सं० आ√धोर्+ल्यु-अन] महावत। हाथीवान। |
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आध्मान :
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पुं० [सं० आ√ध्मा (शब्द करना)+ल्युट्-अन] [भू० कृ० आध्मात] १. पेट फूलने का रोग। अफरा। २. जलोदर रोग। |
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आध्यात्मिक :
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वि० [सं० अध्यात्म+ठञ्-इक] [भाव० आध्याम्मिकता] जिसमें आत्मा और ब्रह्म के संबंध तथा स्वरूप का विचार या विवेचन हो। अध्यात्म से संबंध रखनेवाला। भौतिक लौकिक आदि से भिन्न। (स्पिरिचुअल) |
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आध्यात्मिकी :
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स्त्री० [सं० आध्यात्म से] वह विद्या जिसमें हर वस्तु के आध्यात्मिक स्वरूप पर विचार किया जाता है। (स्प्रिचुअलिज्म) |
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आध्यापक :
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पुं० [सं० अध्यापक+अण्] =अध्यापक। |
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आध्यायिक :
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पुं० [सं० अध्याय+ठञ्-इक] १. वह जो वेदों का अध्ययन करता हो। २. वह जो बराबर अध्ययन करता रहता हो। वि० अध्ययन संबंधी। |
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आध्यासिक :
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वि० [सं० अध्यास+ठक्-इक] धोखे या भूल से आरोपित किया या माना हुआ। अयथार्थ और कल्पित। जैसे—रस्सी को साँप समझना आध्यासिक भ्रम है। |
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