| शब्द का अर्थ | 
					
				| आपत्					 : | स्त्री० [सं० अ√पद् (गति)+क्विप्]=आपद्। | 
			
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				| आपत्काल					 : | पुं० [सं० ष० त०] [वि० आपत्कालिक] १. आपत्ति या विपत्ति का समय। २. बुरा दिन या समय। कुसमय। | 
			
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				| आपत्कृत-ऋण					 : | पुं० [सं० आपत्-कृत, स० त० आपत्कृत-ऋण, कर्म० स०] आपत्ति काल में लिया जानेवाला ऋण। | 
			
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				| आपत्ति					 : | स्त्री० [सं० आ√पद्+क्तिन्] १. कष्ट। क्लेश। दुःख। २. अचानक आकर उपस्थित होने वाली ऐसी स्थिति जिसमें बहुत कुछ मानसिक कष्ट या चिंता और आर्थिक शारीरिक आदि हानियाँ हों या हो सकती हों। आफत। मुसीबत। ३. किसी काम या बात के अनुचित अव्यावहारिक नीति-विरुद्ध या हानिकारक जान पड़ने पर उसे रोकने के उद्देश्य से कही जानेवाली विरोधी बात। (आँब्जेक्शन) ४. सार्वजनिक भाषणों आदि के समय वक्ता की उक्त प्रकार की अथवा कोई अनुचित या संदिग्ध बात सामने आने पर श्रोताओं की ओर से कहा जानेवाला ‘आपत्ति’ शब्द जो इस बात का सूचक होता है कि हमें इस कथन या बात के ठीक होने में संदेह है। (क्वेश्चन) | 
			
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				| आपत्ति-पत्र					 : | पुं० [ष० त०] वह पत्र जिसमें किसी कार्य या विषय के संबंध में अपनी आपत्ति और मत-भेद लिखा हो। (पेटिशन आफ आब्जेक्शन) | 
			
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				| आपत्य					 : | वि० [सं० अपत्य+अण्] अपत्य संबंधी। पुं० अपत्य या संतान होने की अवस्था या भाव। संतानत्व। | 
			
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