| शब्द का अर्थ | 
					
				| ठठ					 : | पुं० १.=ठट्ठ। २. =ठाठ। | 
			
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				| ठठई					 : | वि० [हिं० ठठ्ठा] हँसी-ठठ्ठा करनेवाला। स्त्री०=ठठ्ठा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| ठठकना					 : | अ०=ठिठकना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| ठठकान					 : | स्त्री०=ठिठकान।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| ठठकारी					 : | स्त्री० [हिं० ठाठ+फा० कारी] वह टट्टी जिसकी आड़ में शिकार किया जाता है। | 
			
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				| ठठना					 : | अ० [हिं० ठाठ] १. खड़ा या स्थित रहना या होना। २. किसी चीज के अंदर घुसकर ठहर या रुक जाना। अड़ना। ३. निश्चित होना। ४. ठाठ से युक्त होना। सुसज्जित होना। स० १. खड़ा या स्थित रहना। ठहराना। २. निश्चित करना। ३. सुसज्जित करना। सजाना। ४. बनाना। रचना। स० [हिं० ठठ] ठठ अर्थात् दल या समूह बनाना। | 
			
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				| ठठनि					 : | स्त्री० [हिं० ठाठ] १. ठठने की क्रिया या भाव। २. ठाठ। सजावट। ३. बनावट। रचना। | 
			
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				| ठठरी					 : | स्त्री० [हिं० ठाठ] १. मनुष्य या पशु के शरीर में की हड्डियों का पूरा ढाँचा। कंकाल। २. किसी कृति या रचना का ढांचा। ३. अरथी, जिस पर मुरदा ले जाया जाता है। ४. घास, भूसा आदि बाँधने का जाल। | 
			
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				| ठठवा					 : | पुं० [हिं० टाट] एक तरह का मोटा कपड़ा। इकतारा। लमगजा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| ठठा					 : | पुं०=ठठ्ठा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| ठठाना					 : | स० [अनु० ठकठक] १. आघात करना। २. खूब अच्छी तरह किसी को मारना-पीटना। अ० [हिं० ठठ्ठा या अनु० ठह-ठह-हँसने का शब्द] इस प्रकार खूब जी खोलकर हँसना या मुँह से ठह-ठह या इसी प्रकार का कोई और शब्द स्वतः निकलने लगे। अ० [हिं० ठाठ] कोई चीज या बात खूब ठाठ से, अच्छी तरह या बहुत अधिक होना। उदाहरण–चारों ओर छाई हुई ठठाती हुई अव्यवस्था के बीच से उसे हटाने के लिए उसे खींचने लगा।–अज्ञेय। | 
			
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				| ठठिया					 : | स्त्री० [देश०] राजस्थान के कुछ भागों में होनेवाली एक प्रकार की भाँग। | 
			
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				| ठठियार					 : | पुं० [देश०] चौपायों को चरानेवाला चरवाहा। (नैपालतराई) | 
			
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				| ठठियाना					 : | स० [हिं० ठठना] १. सुसज्जित करना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) २. किसी से सब कुछ लेकर उसे कंगाल या निर्धन करना। | 
			
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				| ठठियारा					 : | वि० [हिं० ठठियाना] जिसके पास कुछ भी न रह गया हो।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) उदाहरण–तस सिंगार सब लीन्हेसि मोहि कीन्हेसि ठठियारि।–जायसी। | 
			
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				| ठठिरनि					 : | स्त्री० [हिं० ठठेरा का स्त्री० रूप] ठठेरिन। | 
			
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				| ठठुकना					 : | अ०=ठिठकना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| ठठेर-मंजारिका					 : | दे० ‘ठठेरा’ के अंतर्गत पद ‘ठठेरे की बिल्ली’। | 
			
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				| ठठेरा					 : | पुं० [अनु० ठन-ठन] [स्त्री० ठठेरिन, ठठेरी] १. वह कारीगर जो ताँबे, पीतल आदि के बरतन बनाता हो। २. उक्त प्रकार के बरतन बेचनेवाला दूकानदार।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) पद–ठठरे-ठठेरे बदलाई=ऐसे दो आदमियों के बीच का व्यवहार जो चालाकी, धूर्त्तता, बल आदि में एक दूसरे से कम न हों। ठठेरे की बिल्ली=ऐसा व्यक्ति जो कोई अरुचिकर या विकट काम देखते-देखते या सुनते-सुनते उसका अभ्यस्त हो गया हो। ३. एक प्रकार की चिड़िया जिसके बोलने पर ऐसा जान पड़ता है कि कोई ठठेरा ताँबा या पीतल पीटकर उसके बरतन बना रहा है। पुं० [हिं० ठाँठ] ज्वार, बाजरे आदि का डंठल। | 
			
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				| ठठेरिन					 : | स्त्री० [हिं० ‘ठठेरा’ का स्त्री० रूप] ठठेरे की स्त्री। ठठेरी। | 
			
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				| ठठेरी					 : | स्त्री० [हिं० ठठेरा] १. ठठेरे की स्त्री। २. ठठेरे का काम या व्यवसाय। वि० ठेरों का। ठठेरों से संबंध रखनेवाला। जैसे–ठठेरी बाजार। | 
			
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				| ठठोल					 : | वि० [हिं० ठठोली] ठठोली करने वाला। हंसोड़। पुं०=ठठोली। | 
			
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				| ठठोली					 : | स्त्री० [हिं० ठठ्ठा] किसी को हँसी का पात्र या हास्यास्पद बनाने के लिए उसके संबंध में कही जानेवाली कोई कुतूहलजनक तथा व्यंग्यपूर्ण परन्तु हँसी की बात। | 
			
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				| ठठ्ठ					 : | पुं० [सं० तट, हिं० टट्ठी या सं० स्थाता] १. एक स्थान पर स्थित बहुत सी वस्तुओं का समूह। २. बहुत से लोगों का जमावड़ा या भीड़-भाड़। उदाहरण–पियें भट्ट के ठठ्ठ अस गुजरातिन के वृन्द।–भारतेन्दु। | 
			
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				| ठठ्ठा					 : | पुं० [हिं० ठठाना] १. वह परिहास या हँसी-दिल्लगी जो कुतूहल जनक या विलक्षण बातों के आधार पर केवल मनोविनोद के लिए होती है। (बैन्टर) २. परिहास। हंसी-मजाक। क्रि० प्र०–उड़ाना।–करना। | 
			
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