शब्द का अर्थ
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दौर :
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पुं० [अ०] १. चक्कर। फेरा। २. वह क्रम, व्यवस्था अथवा समय जिसमें उपस्थित व्यक्ति कोई काम एक बार बारी-बारी से संपादित करे। जैसे—(क) शराब का पहला दौर। (ख) मुशायरे का दूसरा या तीसरा दौर। ३. अच्छे और बुरे अथवा सौभाग्य और दुर्भाग्य के दिनों का चलता रहनेवाला चक्र। ४. प्रताप और वैभव अथवा उसके फलस्वरूप चारों ओर फैलनेवाला आतंक या दबदबा। पद—दौर-दौरा (दे०)। स्त्री०=दौड़।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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दौर-दौरा :
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पुं० [फा०] किसी की ऐसी प्रधानता या प्रबलता जिसके सामने और बातें या लोग दबे रहते हों। जैसे—आज-कल राजनीतिक नेताओं का दौर-दौरा है। |
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दौरना :
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अ०=दौड़ना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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दौरा :
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पुं० [अ० दौर] १. चारों ओर घूमने की क्रिया। चक्कर। भ्रमण। २. बराबर इधर-उधर या चारों ओर घूमते-फिरते रहने की अवस्था या दशा। ३. ऐसा आना-जाना जो समय-समय पर बराबर होता रहता हो। सामयिक आगमन। फेरा। जैसे—कभी-कभी इधर भी उनका दौरा हो जाता है। ४. जाँच-पड़ताल, निरीक्षण आदि के लिए अधिकारी का केन्द्र से चलकर आस-पास के स्थानों में घूमने या फेरा लगाने की क्रिया। मुहा०—दौरे पर रहना या होना=जाँच-पड़ताल या देख-भाल के लिए केन्द्र से बाहर रहना या आस-पास के स्थानों में घूमना। ५. जिले के प्रधान न्यायाधीश या जज के द्वारा होनेवाली फौजदारी अभियोगों की वह सुनवाई जो प्रायः आदि से अंत तक बराबर एक साथ होती है। मुहा०—(किसी को) दौरा सुपुर्द करना=निम्नस्थ अधिकारी का संगीन मुदकमें के अभियुक्त को विचार तथा निर्णय के लिए सेशन जज के पास भेजना। ६. बार-बार होती रहनेवाली बात का किसी एक बार होना। ऐसी बात होना जो समय-समय पर प्रायः होती रहती है। ७. किसी ऐसे रोग का होनेवाला कोई उत्कट आक्रमण जो प्रायः या बीच-बीच में होता रहता हो। जैसे—पागलपन, मिरगी या सिर के दर्द का दौरा। पुं० [सं० द्रोण] [स्त्री० अल्पा० दौरी] बाँस की पट्टियों, बेंत आदि का बना हुआ टोकरा। |
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दौरा जज :
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पुं० [हिं० दौरा+अ० जज] किसी जिले का वह प्रधान न्यायाधिकारी (जज) जो फौजदारी से संगीन मुकदमे सुनता और उनका निर्णय करता हो। (सेशन्स जज) |
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दौरात्म्य :
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पुं० [सं० दुरात्मन्+ब्यञ्] १. दुरात्मा होने की अवस्था, भाव या वृत्ति। २. दुर्जनता। |
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दौरादौर :
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क्रि० वि०, स्त्री०=दौड़ा-दौड़। |
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दौरान :
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पुं० [फा०] १. दौर। चक्र। २. काल का चक्र। दिनों का फेर। ३. उतना समय जितने में कोई काम बराबर चलता या होता रहता हो। भोगकाल। जैसे—बुखार के दौरान में वे कभी-कभी बेहोश भी हो जाते थे। ४. दो घटनाओं के बीच का समय। ५. पारी। फेरा। बारी। |
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दौराना :
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स०=दौड़ना। |
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दौरति :
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पुं० [सं० ?] क्षति। हानि। |
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दौरी :
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स्त्री० [हिं० दौरा का स्त्री० अल्पा०] १. बाँस या मूँज को छोटी टोकरी। छोटा दौरा। २. वह टोकरी जिसकी सहायता से खेतों में सिंचाई के लिए पानी डालते हैं। ३. खेतों में उक्त प्रकार से पानी सींचने की क्रिया। |
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दौर्गन्ध्य :
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पुं० [सं० दुर्गंध+ष्यञ्] दुर्गंध। |
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दौर्ग :
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वि० [सं० दुर्ग+अण्] १. दुर्ग-संबंधी। दुर्ग का। २. दुर्गा-संबंधी। दुर्गा का। |
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दौर्गत्य :
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पुं० [सं० दुर्गेति+ष्यञ्] दुर्गति होने की अवस्था या भाव। दुर्दशा। |
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दौर्ग्य :
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पुं० [सं० दुर्ग+ष्यञ्] कठिनता। |
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दौर्ग्रह :
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पुं० [सं० दुर्ग्रह+अण्] अश्वमेध यज्ञ। |
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दौर्जन्य :
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पुं० [सं० दुर्जन+ष्यञ्] दुर्जनता। |
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दौर्बल्य :
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पुं० [सं० दुर्बल+ष्यञ्] दुर्बल होने की अवस्था या भाव। दुर्बलता। |
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दौर्भाग्य :
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पुं० [सं० दुर्भग+ष्यञ्] दुर्भाग्य। |
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दौर्मनस्य :
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पुं० [सं० दुर्मनस्+ष्यञ्] १. ‘दुर्मनस’ होने की अवस्था या भाव। २. दुर्जनता। |
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दौर्य :
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पुं० [सं० दूर+ष्यञ्] ‘दूर’ का भाव। दूरता। दूरी। |
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दौर्योधनि :
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पुं० [सं० दुर्योधन+इत्र्] दुर्योधन के कुल में उत्पन्न व्यक्ति। दुर्योधन का वंशज। |
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दौर्वृत्य :
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पुं० [सं० दुर्वृत्त+ष्यञ्] १. दुर्वृत्त होने की अवस्था या भाव। २. दुराचार। |
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दौर्हार्द :
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पुं० [सं० दुर्हृद्+अण्] १. दुर्हृद होने की अवस्था या भाव। २. दुष्ट स्वभाव। ३. किसी के प्रति मन में होने वाला दुर्भाव, द्वेष और वैर। |
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दौर्हृद :
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पुं० [सं० दुर्हृद्+अण्] १. दुर्हृदय होने की अवस्था या भाव। २. मन या हृदय की खोटाई। दुष्टता। ३. दे ‘दोहद’। |
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दौर्हृदय :
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पुं० [सं० दुर्हृदय+अण्] १. दुर्हृदय होने की अवस्था या भाव। २. शत्रुता। |
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दौर्हृदिनी :
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स्त्री० [सं० दौर्हृद+इनि-ङीप्] गर्भवती स्त्री। गर्भिणी। लाक्षणिक अर्थ में कोई अमूल्य तथा महत्त्वपूर्ण चीज। |
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