शब्द का अर्थ
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धूर :
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स्त्री० [सं० धुर] जमीन की एक नाप जो एक बिस्वांसी के बराबर होती है। बिस्वे का बीसवाँ भाग। स्त्री० [?] एक प्रकार की घास। स्त्री०=धूल।a अव्य०=धुर। पुं० [?] बादल। |
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समानार्थी शब्द-
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धूरकट :
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पुं० दे० ‘धुरकुट’। |
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धूरजटी :
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पुं०=धूर्जटि। |
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धूर-डाँगर :
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पुं० [देश०] पशु, विशेषतः सींगोवाला पशु। |
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धूरत :
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वि०=धूर्त।a |
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धूर-धान :
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पुं०=धूल-धानी। |
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धूर-धानी :
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स्त्री०=धूल-धानी।a |
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धूर-यात्रा :
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स्त्री०=धूलियात्रा।a |
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धूर-संझा :
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स्त्री० [सं० धूलि+संध्या] गोधूलि का समय। |
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धूरा :
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पुं० [हिं० धूर] १. धूल। गर्द। २. महीन चूर्ण। बुकनी। ३. रोगी के हाथ-पैर ठंढे हो जाने पर गरम राख या सोंठ आदि के चूर्ण से वे अंग धीरे-धीरे मलने की क्रिया, जिससे हाथ-पैर में फिर से गरमाहट आ जाती है। क्रि० प्र०—करना—देना। ४. अपना स्वार्थ सिद्ध करने के लिए की जाने वाली चापलूसी या मीठी-मीठी बातों से दिया जाने वाला भुलावा। क्रि० प्र०—करना।—देना। |
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धूरि :
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स्त्री०=धूल। उदा०—जब आवत संतोष धन, सब धन धूरि समान।—तुलसी। |
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धूरि-क्षेत्र :
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पुं० [सं० धूलि+क्षेत्र] जगत। संसार। उदा०—धूरि क्षेत्र में आइ कर्म करि हरिपद पावै।—नन्ददास।b |
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धूरिया बेला :
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पुं० [हिं० धूर+बेला] एक प्रकार का बेला (पौधा और फूल)। |
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धूरिया-मलार :
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पुं० [धूरिया ?+सं० मल्लार] सम्पूर्ण जाति का एक प्रकार का मल्लार जिसमें सब शुद्ध स्वर लगते हैं। |
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धूरे :
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अव्य० १. धौरे। २. धीरे। |
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धूर्जटि :
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पुं० [सं० धूर्-जटि ब० स०] शिव। महादेव। |
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धूर्त :
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वि० [सं०√धूर्व् (हिंसा)+तन्] [भाव० धूर्तता] १. जो कपट या छलपूर्ण आचरण करके अथवा चालाकी या दाँव-पेंच के द्वारा अपना काम इस प्रकार निकाल लेता हो कि लोगों को सहसा उसके वास्तविक स्वरूप का पता तक न चलने पाता हो। बहुत बड़ा चालाक। २. कपटी। छली। धोखेबाज। ३. दुष्ट। पाजी। पुं० १. साहित्य में, शठ नायक का एक भेद। २. जुआरी जो तरह-तरह के दाँव-पेंच करता है। ३. चोर नामक गंध-द्रव्य। ४. लोहे की मैल या मोरचा। ५. धतूरा। ६. विट् लवण। |
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धूर्तक :
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पुं० [सं० धूर्त+कन] १. जुआरी। २. गीदड़। ३. कौरव्य कुल का एक नाग। |
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धूर्त-चरित :
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पुं० [ष० त०] १. धूर्तों का चरित्र। २. [ब० स०] संकीर्ण नाटक का एक भेद। |
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धूर्तता :
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स्त्री० [सं० धूर्त+तल्—टाप्]धूर्त होने की अवस्था, गुण या भाव। दुष्ट उद्देश्य से की जाने वाली चालाकी। |
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धूर्त-मानुषा :
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स्त्री० [धूर्त=हिंसित-मानुष ब० स०, टाप्] रास्ना लता। |
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धूर्त-रचना :
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स्त्री० [ष० त०] छल-कपट। |
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धूर्धर :
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वि० [सं० धूर्-धर ष० त०] १. बोझा ढोनेवाला। भारवाही। २. दे० ‘धुरंधर’। |
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धूर्य :
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पुं० [सं०=धूर्य पृषो० सिद्धि] विष्णु। |
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धूर्वह :
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वि० [सं० धूर्—वह ष० त०, पृषो० दीर्घ ] १. भार वहन करनेवाला। २. कार्य का दायित्व अपने ऊपर लेनेवाला। पुं० बोझ ढोनेवाला पशु। |
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धूर्वी :
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स्त्री० [सं० धूर्√अज् (गति)+क्विप्, वी आदेश] रथ का अग्रभाग। |
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