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ध्वज  : पुं० [सं०√ध्वज् (गति)+अच्] १. बाँस आदि की तरह की कोई लंबी, सीधी लकड़ी। डंडा। २. वह डंडा जिसके सिरे पर कपड़ा लगाकर झंडा बनाया जाता है। ३. झंडा। ध्वजा। पताका। ४. किसी वस्तु या व्यक्ति का चिह्न या निशान। जैसे—देव-ध्वज, मकर-ध्वज् सीम-ध्वज आदि। ५. व्यापारियों आदि का परिचायक वह चिह्न या निशान, जो उनकी वस्तुओं आदि पर अंकित हो। (ट्रेड मार्क) ६. सन्तान उत्पन्न करने की इंद्रियाँ—भग और लिंग। ७. अपने कुल या वर्ग का ऐसा प्रधान या श्रेष्ठ व्यक्ति जो उसका भूषण अथवा मान-मर्यादा बढ़ानेवाला हो। (यौ० पदों के अन्त में) जैसे—वंशध्वज। ८. वह जो ध्वजा या पताका लेकर राजा, सेना आदि के आगे-आगे चलता हो। ९. मद्य बनाने और बेचनेवाला व्यक्ति। शौंडिक। १॰.. वह घर या मकान जो किसी विशिष्ट पदार्थ या स्थान के पूर्व में स्थित हो। ११. वह डंडा जिस पर साधु आदि प्राचीन काल में खोपड़ी टाँग कर अपने साथ ले चलते थे। १२. खाट या चारपाई की पाटी १३. आडंबर। ढोंग। १४. मिथ्या अभिमान।
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ध्वजक  : पुं० [सं० ध्वज+कन्] सैनिक या नौ-सैनिक झंडा। (स्टैंडर्ड)
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ध्वज-दंड  : पुं० [ष० त०] वह डंडा जिसके सिरे पर पताका का कपड़ा लगा रहता है।
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ध्वज-पट  : पुं० [ष० त०] झंडा। पताका।
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ध्वज-पात  : पुं० [ष० त०]=ध्वज-भंग।
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ध्वज-पोत  : पुं० [मध्य० स०] बेड़े का वह जहाज जिस पर उसका नौ-सेनापति यात्रा करता है और जिस पर उसका झंडा फहराता है। (फ्लैगशिप)
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ध्वज-भंग  : पुं० [ष० त०] १. वह स्थिति जिसमें पुरुष में स्त्री-संभोग की शक्ति नहीं रह जाती। २. क्लीवता। नपुंसकता। हिजड़ापन।
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ध्वज-मूल  : पुं० [ष० त०] चुंगीधर की सीमा। (कौ०)
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ध्वज-यष्टि  : स्त्री० [ष० त०]=ध्वज-दंड।
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ध्वजांशुक  : पुं० [ध्वज-अंशुक, ष० त०] दे ‘ध्वज-पट’।
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ध्वजा  : स्त्री० [सं० ध्वज] १. झंडा। पताका। २. मालखंभ की एक प्रकार की कसरत। ३. छन्दशास्त्र में ठगण का पहला भेद, जिसमें पहले लघु और तब गुरु होता है।
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ध्वजादि  : पुं० [ध्वज-आदि, ब० स०] फलित ज्योतिष में, एक प्रकार की गणना, जिसमें नौ कोष्ठकों का ध्वजा के आकार का एक चक्र बनाया जाता है और तब उसके आधार पर प्रश्नों के उत्तर या फल कहे जाते हैं।
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ध्वजारोपण  : पुं० [ध्वज-आरोपण, ष० त०] झंड़ा गाड़ना या लगाना।
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ध्वजाहृत  : पुं० [ध्वज-आहृत, तृ० त०] १. वह धन जो शत्रु को युद्ध में जीतकर प्राप्त किया गया हो। २. पंद्रह प्रकार के दासों में से वह दास जो लड़ाई में जीतकर प्राप्त किया या लाया गया हो।
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ध्वजिक  : पुं० [सं० ध्वज+ठन्—इक] ढोंगी। पाखंड़ी।
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ध्वजिनि  : स्त्री० [सं० ध्वजिन्+ङीप्] १. सेना की एक टुकड़ी जिसका परिमाण कुछ लोग ‘वाहिनी’ का दूना बताते हैं। २. पांच प्रकार की सीमाओं में से वह सीमा, जिस पर वृक्षों आदि के रूप में चिह्न या निशान लगे हों।
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ध्वजी (जिन्)  : वि० [सं० ध्वज+इनि] [स्त्री० ध्वजिनी] १. जो हाथ में ध्वजा या पताका लिये हुए हो। २. जिस पर कोई चिह्न या निशान हो। पुं० १. वह जो सेना के आगे ध्वजा लेकर चलता हो। २. युद्ध। लड़ाई। संग्राम। ३. ब्राह्मण। ४. घोड़ा। ५. मोर। ६. साँप। ७. पर्वत। पहाड़।
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ध्वजोत्थान  : पुं० [ध्वज-उत्थान, ष० त०] १. ध्वजा उठाना या फहराना। २. प्राचीन भारत का इन्द्रध्वज नामक महोत्सव।
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