शब्द का अर्थ
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नग :
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वि० [सं० न√गम् (जाना)+ड] १. न गमन करनेवाला। न चलने-फिरनेवाला। २. अचल। स्थिर। पुं० १. पर्वत। पहाड़। २. पेड़। वृक्ष। ३. साँप। ४. सूर्य। पुं० १. अ० नगीना का संक्षिप्त रूप। २. अदद या संख्या का सूचक एक शब्द। जैसे—चार नग गाँठे आई हैं। |
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नग-चाना :
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अ०, स०=नगिचाना। |
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नगज :
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वि० [सं० नग√जन् (उत्पत्ति)+ड] जो पहाड़ से उत्पन्न हो। जैसे—गेरू, शिलाजीत आदि। पुं० हाथी। |
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नगजा :
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स्त्री० [सं० नगज+टाप्] १.पार्वती। २.पाषाणभेदी लता। पखानभेद। |
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नगण :
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पुं० [सं० ष० त०] तीन लघु अक्षरों का एक गण। (पिंगल) जैसे—कमर,परम,मदन। विशेष—इस गण से छन्द का आरम्भ करना अशुभ माना गया है। |
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नगणा :
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स्त्री० [सं० ब० स० टाप्] मालकँगनी। |
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नगण्य :
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वि० [सं० अगण्य] १.जो गिनने या गिने जाने के योग्य न हो। जो किसी गिनती में न हो। २.बहुत ही तुच्छ या हीन |
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नगदंती :
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स्त्री० [सं०] विभीषण की स्त्री का नाम। |
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नगद :
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पुं० [अ० नक्द] १.सोने-चाँदी का सिक्का। २.रुपया-पैसा। ३.सिक्कों आदि के रूप में होने वाला खड़ा धन जो देन आदि के बदले में तुरंत चुकाया जाता हो। ‘उधार’ का विपर्याय। वि० १. (रुपया) जो तैयार या सामने हो। २.जिसका मूल्य रुपए-पैसे आदि के रूप में तुरन्त दिया या चुकाया जाय। ३.बढ़िया। क्रि० वि० तुरंत दिये हुए रुपए के बदले में। |
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नगद-नारायण :
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पुं० [हिं०+सं०] नगद रुपए। |
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नगदी :
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क्रि० वि० [हिं०नगद+ई (प्रत्य०)] नगद या सिक्के के रूप में। (इन्कैश) पुं० , वि० =नगद। |
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नगधर :
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पुं० [सं०] पर्वत धारण करनेवाले श्रीकृष्ण गिरिधर। |
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नगधरन :
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पुं० =नगधर।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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नग-नंदिनी :
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स्त्री० [सं० ष० त०] हिमालय पर्वत की पुत्री,पार्वती। |
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नगन :
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वि० =नग्न। (नंगा)। पुं० =नगण। |
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नग-नदी :
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स्त्री० [सं० मध्य० स०] पहाड़ी नदी (बरसाती नदी से भिन्न)। |
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नगना :
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स्त्री०-नग्ना। |
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नगनिका :
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स्त्री० [सं०] १.संकीर्ण राग का एक भेद। २.क्रीड़ा नामक वृत्त का दूसरा नाम जिसके प्रत्येक चरण में एक यगण और एक गुरु होता है। |
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नगनी :
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स्त्री० [सं० नग्न] १.ऐसी छोटी लड़की जिसमें अभी यौवन का कोई लक्षण न दिखाई देता हो और इसी लिए जो अपने शरीर का ऊपरी अंग नंगा रखकर घूम सकती हो। कन्या। लड़की। २.पुत्री। बेटी। ३.नंगी स्त्री। |
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नगन्निका :
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स्त्री०-नगनिका। |
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नग-पति :
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पुं० [सं० ष० त०] १.पर्वतों का राजा, हिमालय। २.शिव। ३.सुमेरु पर्वत। ४.चन्द्रमा। |
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नगपुंग :
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पुं० [सं० नागपाश] असमंजस की या विकट स्थिति। अंडस। उदाहरण-हाँ भले नगपुंग परे गढ़ीबै अब ए गढ़न महरि मुख जोए।—तुलसी। |
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नगफनी :
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स्त्री०-नागफनी। |
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नगभिद् :
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पुं० [सं० नग√भिद् (विदारण)+क्विप्] १.पखानभेदलता। २.इन्द्र। वि० [सं०] पत्थर तोड़नेवाला। |
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नग-भू :
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वि० [सं० ब० स०] जो पहाड़ से उत्पन्न हुआ हो। पुं० १.पहाड़ी जमीन। २.पाषाण भेदी लता। पखान भेद। |
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नगमा :
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पुं० [अ० नरमः.] १.सुरीली आवाज। २.गाया जानेवाला किसी प्रकार का मनोहर और सुरीला गीत या राग-रागिनी। |
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नगर :
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पुं० [सं० नग+र] १.मनुष्यों की वह बस्ती जो गाँवों,कस्बों आदि की तुलना में बहुत बड़ी हो। शहर। २.उक्त बस्ती का कोई मुहल्ला जो एक स्वतंत्र बस्ती के रूप में हो। जैसे—कमलानगर, नेहरूनगर, राजेन्द्रनगर। |
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नगर-कीर्तन :
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पुं० [सं० त०] नगर की गलियों,सड़कों आदि में घूम-घूमकर किया जानेवाला सामूहिक कीर्तन। |
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नगर-कोट :
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पुं० दे० ‘परकोटा’। |
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नगरघात :
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पुं० [सं० नगर√हन् (नष्ट करना)+अण्] हाथी। |
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नगरतीर्थ :
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पुं० [सं०] गुजरात प्रदेश में स्थित एक प्राचीन तीर्थ जहाँ किसी समय शिव का निवास माना जाता था। |
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नगर-नायिका :
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स्त्री० [मध्य० स०] वेश्या। रंडी। |
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नगर-नारी :
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स्त्री० [मध्य० स०] रंडी। वेश्या। |
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नगर-निगम :
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पुं० [ष० त०] दे० ‘नगर महापालिका।’ |
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नगरपाल :
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पुं० [सं० नगर√पाल् (रक्षा)+णिनि+अण्] १.प्राचीन भारत में वह अधिकारी जिसका कर्त्तव्य नगर की शांति और सुरक्षा की देख-रेख करना होता था। २.आधुनिक भारत में किसी नगर की नगरपालिका का चुना हुआ सदस्य। |
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नगर-पालिका :
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स्त्री० [सं०] आधुनिक नगर व्यवस्था में नगर निवासियों के निर्वाचित प्रतिनिधियों की वह संस्था जो सारे नगर के यातायात, स्वास्थ्य जल, नल रोशनी आदि का प्रबन्ध करने के लिए बनाई जाती है। (म्यूनिस्पैलिटी) |
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नगर-पिता (तृ) :
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पुं० =नगर-प्रमुख। |
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नगर-प्रमुख :
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पुं० [ष० त०] नगरपालिका या नगर-महापालिका का प्रधान प्रशासनिक अधिकारी। (मेयर) |
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नगरमर्दी (र्दिन्) :
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पुं० [सं० नगर√मृद् (कुचलना)+णिच्+णिनि] मतवाला हाथी। |
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नगर-महापालिका :
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स्त्री० [सं०] किसी बड़े नगर की स्वायत्त संस्था जिसे नगरापलिका को अपेक्षा कुछ अधिक अधिकार प्राप्त होते हैं। (कारपोरेशन)। |
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नगर-मार्ग :
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पुं० [ष० त०] नगर का सबसे बड़ा तथा चौड़ा बाजार। |
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नगर-मुस्ता :
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स्त्री० [सं०] नागरमोथा। |
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नगरवा :
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पुं० [?] ईख की एक प्रकार की बोआई जो मध्यप्रदेश के उन प्रान्तों में होती है जहाँ की मिट्टी काली या करैली होती है। इसमें खेतों को सींचने की आवश्यकता नहीं होती बल्कि बरसात के बाद उन ईख के अंकुर फूटते हैं तब जमीन पर इसलिए पत्तियाँ बिछा देते हैं कि उसका पानी सूख न जाय। पलवार। |
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नगरवासी (सिन्) :
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पुं० [सं० नगर√वस् (बसना)+णिनि] १.नगर या शहर में रहनेवाला। पुरवासी। २.नागरिक। |
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नगर-विवाद :
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पुं० [सं० त०] घर-गृहस्थी और संसार के झगड़े-बखेड़े। |
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नगर-वृद्ध :
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पुं० [सं० त] आधुनिक भारत में किसी नगरमहापालिका या नगरनिगम का वह अधिकारी जिसका दरजा नगर प्रमुख से कुछ छोटा और उसके चुने हुए सदस्यों से कुछ बड़ा होता है। (एल्डरमैन) |
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नगर-सन्निवेश :
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पुं० [ष० त०] नये नगर बनाने और उसके मार्ग भवन विभाग आदि निरूपित करने की कला या विद्या। (सिटी प्लैनिंग) |
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नगर-सेठ :
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पुं० [सं० +हिं०] नगर का सबसे बड़ा महाजन,सेठ या संपन्न व्यक्ति। |
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नगरहा :
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वि० [हिं० नगर+हा (प्रत्य०)] शहर में रहने या होनेवाला। पुं० नगर का निवासी। नागरिक। शहरी। |
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नगरहार :
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पुं० [सं०] उत्तर-पश्चिमी भारत के एक प्राचीन कपिश राज्य के अंतर्गत की एक नगरी जिसका वर्णन ह्वेन-सांग ने किया है। |
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नगराई :
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स्त्री० [हिं० नगर+आई (प्रत्य०)१.नागरिकता। शहरातीपन। २.चतुराई। चालाकी। |
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नगराधिप :
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पुं० [नगर-अधिप,ष० त०] नगर का प्रधान शासक। प्रशासक। |
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नगराध्यक्ष :
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पुं० [नगर-अध्यक्ष,ष० त०] नगर का प्रधान शासक। प्रशासक। |
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नगरी :
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स्त्री० [सं० नगर+ङीष्] छोटा नगर या शहर। पुं० [सं० नगरिन्] नगर में होने या रहनेवाला व्यक्ति। नागरिक। |
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नगरी-काक :
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पुं० [ष० त०] बक। |
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नगरीय :
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वि० [सं० नगर+छ-ईय] १.नगर संबंधी। २.नगर में बनने या होनेवाला। |
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नगरोत्था :
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स्त्री० [नगर-उत्थान, ब० स०] नागरमोथा। |
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नगरोपांत :
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पुं० [नगर-उपांत, ष० त०] नगर के आसपास का क्षेत्र या स्थान। उप-नगर। (सबर्ब) |
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नगरौका (कस्) :
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पुं० [नगर-ओकस,ब० स०] नागरिक। नगरवासी। |
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नगरौषधि :
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स्त्री० [नगर-ओषधि,मध्य० स०] केला। |
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नगवास :
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पुं० =नाग-पाश।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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नगवासी :
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स्त्री०=नागपाश।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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नग-वाहन :
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पुं० [ब० स०] शिव का एक नाम। |
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नग-स्वरूणी :
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स्त्री० [सं०] एक प्रकार का वर्ण वृत्त जिसके प्रत्येक चरण में क्रमशः एक जगण एक रगण एक लघु और एक गुरु होता है। इसे प्रमाणी और प्रमाणिका भी कहते हैं। |
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नगाटन :
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वि० [सं० नग√अट् (गति)+ल्युट्-अन] पहाड़ पर विचरण करनेवाला। पुं० बंदर। |
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नगाड़ा :
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पुं० [अ० नक्कारः] डुगडुगी की तरह का चमड़ा मढ़ा हुआ एक प्रकार का बहुत बड़ा प्रसिद्ध बाजा जो कभी तो अकेला और कभी ठीक उसी तरह के दूसरे बाजे के साथ प्रायः चोब (लकड़ी का छोटा डंडा) का आघात करके बजाया जाता है। डंका। धौंसा। |
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नगाधिप :
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पुं० [सं० नग-अधिप,ष० त०] १.पर्वतराज। हिमालय। २.सुमेरु पर्वत। |
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नगारा :
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पुं० =नगाड़ा। |
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नगारि :
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पुं० [सं० नग-अरि,ष० त०] इन्द्र। |
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नगावास :
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पुं० [सं० नग-आवास,ब० स०] मोर। |
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नगाश्रय :
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वि० [सं० नग-आश्रय,.ब० स०] पहाड़ पर रहनेवाला। पुं० हस्तिकंद। |
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नगी :
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स्त्री० [सं०] १.पर्वतराज हिमालय की कन्या पार्वती। २.पहाड़ पर रहनेवाली स्त्री। स्त्री० [हिं० नग] छोटा नग या रत्न।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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नगीच :
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क्रि० वि० =नजदीक। |
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नगीना :
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पुं० [सं० नग से फा० नगीनः] १. बहुमूल्य पत्थर आदि का वह रंगीन चमकीला टुकड़ा जो शोभा के लिए गहनों में जड़ा जाता है। मणि। रत्न। पद-नगीना सा=बहुत छोटा और सुन्दर। अँगूठी का नगीना=किसी बड़ी चीज के साथ अथवा उसमें रहनेवाली कोई छोटी सुन्दर, बहुमूल्य और आदरणीय वस्तु (प्रायः व्यक्तियों के लिए भी प्रयुक्त)। २. पुरानी चाल का एक प्रकार का चारखानेदार कपड़ा। |
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नगीनागर :
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पुं० दे० ‘नगीनासाज’। |
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नगीनासाज :
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पुं० [फा०] [भाव० नगीनासाजी] आभूषणों आदि में नगीने जड़नेवाला कारीगर। |
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नगेंद्र :
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पुं० [सं० नग-इन्द्र,ष० त०] पर्वतराज, हिमालय। |
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नगेश :
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पुं० [सं० नग-ईश,ष० त०] =नगेंद्र। |
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नगेशर :
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पुं० १.=नागेश्वर। २.=नाग केसर।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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नगोड़ा :
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वि० =निगोड़ा। |
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नगौक (स्) :
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पुं० [सं० नग-ओकस्,ब० स०] १.पक्षी। चिड़िया। २.शेर। सिंह। ३.कौआ। |
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नग्न :
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वि० [सं०√नज् (लजाना)+क्त] [भाव० नग्नता] नगा (सभी अर्थों मे देखें) पुं० १.एक प्रकार के दिगम्बर जैन साधु जो कौपीन पहनते हैं। २. ऐसी साहित्यिक रचना जिसमें कोई अलंकार और चमत्कार न हो। |
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नग्नक :
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पुं० [सं० नग्न+कन्]=नग्न। |
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नग्नकरण :
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पुं० [सं० नग्न+च्वि√कृ+ल्युट्-अन,मुम्] किसी को नंगा करने की क्रिया या भाव। |
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नग्न-क्षपणक :
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पुं० [कर्म० स०] बौद्ध भिक्षुओं का एक भेद या संप्रदाय। |
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नग्नजित् :
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पुं० [सं०] १.वैदिककाल में गान्धार के एक राजा। २.पुराणानुसार कोशल के एक राजा जिसकी सत्या नाम की कन्या श्रीकृष्ण को ब्याही थी। |
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नग्नता :
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स्त्री० [सं० नग्न+तल्-टाप्०] १.नंगे होने की अवस्था या भाव। नंगापन। २.सब कुछ प्रकट कर देने की अवस्था या स्थिति। |
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नग्नपर्ण :
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पुं० [ब० स०] एक प्राचीन देश का नाम। |
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नग्न-वाद :
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पुं० [ष० त०] वह सिद्धान्त या दृष्टिकोण जिसमें यह माना जाता है कि मनुष्य को नीरोग रहने के लिए कुछ समय तक अवश्य नंगे रहना चाहिए। (न्यूडिज्म) |
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नग्न-वादी (दिन्) :
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पुं० [सं० नग्नवाद+इनि] जो नग्नवाद का अनुयायी या समर्थक हो। (न्यूडिस्ट) |
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नग्नाट :
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पुं० [सं० नग्न√अट् (गति)+अच्] ऐसा जीव या प्राणी जो सदा नंगा रहता हो। |
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नग्निका :
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स्त्री० [सं० नग्न+कन्-टाप्,इत्व] १. निर्लज्ज स्त्री। २. वह लड़की जो रजस्वला न हुई हो। |
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नग्मा :
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पुं० दे० ‘नगमा’। |
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नग्र :
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पुं० =नगर। |
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नग्रोध :
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पुं० [सं० न्यग्रोध] बरगद का पेड़। वट वृक्ष। |
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