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			| शब्द का अर्थ |  
				| नाराशंस					 : | वि० [सं० नर-आ√शंस् (स्तुति)+घञ् नाराशंस=पितर+अण्] मनुष्यों की प्रशंसा या स्मृति से संबंध रखनेवाला। पुं० १. वेद में के रुद्र दैवत्य मंत्र, जिनमें मनुष्यों की प्रशंसा की गई है। २. ऊम, और्व और काव्य, ये तीन पितृगण। ३. उक्त पितृगणों के निमित्त यज्ञ आदि में छोड़ा जानेवाला सोमरस। ४. एक तरह का पात्र जिससे यज्ञ में उक्त उद्देश्य से सोमरस छोड़ा जाता था। ५. पितर। |  
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| नाराशंसी					 : | स्त्री० [सं० नार-आशंसी, ष० त०] १. मनुष्यों की प्रशंसा या स्तुति। २. वेदों का वह मंत्र-भाग जिसमें अनेक राजाओं के दानों आदि का प्रशंसात्मक उल्लेख है। |  
				|  | समानार्थी शब्द- 
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