शब्द का अर्थ
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निकलंक :
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वि० [सं० निष्कलंक] जिसे या जिसमें कोई कलंक न हो। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
निकलंकी :
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वि०=निष्कलंक। पुं०=कल्कि (अवतार)। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
निकल :
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स्त्री० [अं.] एक तरह की सफेद मिश्रित धातु, जिसके सिक्के आदि ढाले जाते हैं। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
निकलना :
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अ० [हिं० ‘निकालना’ का अ०] १. अंदर या भीतर से बाहर आना या होना। निर्गत होना। जैसे–आज हम सबेरे से ही घर से निकले हैं। संयो० क्रि०–आना।–जाना।–पड़ना। मुहा०–(किसी व्यक्ति का घर से) निकल जाना=इस प्रकार कहीं दूर चले जाना कि लोगों को पता न चले। जैसे–कई बरस हुए, उनका लड़का घर से निकल गया था। (किसी स्त्री का घर से) निकल जाना=पर-पुरुष के साथ अनुचित संबंध होने पर उसके साथ चले या भाग जाना। (कोई चीज कहीं से) निकल जाना=इस प्रकार दूर या बाहर हो जाना कि फिर से आने या लौटने की संभावना न रहे। जैसे–गली, मुहल्ले या शहर की गंदगी निकल जाना। २. कहीं छिपी, दबी या रुकी हुई चीज प्राप्त होना या सामने आना। पायजाना। मिलना। जैसे–(क) उसके घर चोरी का माल निकला था। (ख) जंगलों और पहाड़ों में से बहुत-सी चीजें निकलती हैं। (ग) इस प्रणाली में बहुत से दोष निकले, इसलिए इसका परित्याग कर दिया गया। संयो० क्रि०–आना। ३. किसी प्रकार की परिधि, मर्यादा, सीमा आदि में से छूटकर या और किसी प्रकार बाहर आना या होना। जैसे–(क) जेल में से कैदी निकलना। (ख) कुएँ में से पानी निकलना। (ग) किसी प्रकार के दोष आदि के कारण दल, बिरादरी, संस्था आदि से निकलना। मुहा०–(कोई चीज हाथ से) निकल जाना=खोने, चोरी जाने आदि के कारण अधिकार, स्वामित्व आदि से इस प्रकार बाहर हो जाना कि फिर से प्राप्त होने की संभावना न रहे। जैसे–अँगूठी या कलम हाथ से निकल जाना। (कोई अवसर, कार्य या बात हाथ से) निकल जाना=असावधानता, प्रमाद, भूल आदि के कारण अधिकार, कृतित्व आदि से इस प्रकार बाहर हो जाना कि फिर उसके संबंध से कुछ किया न जा सके। जैसे–अब तो वह बात हमारे हाथ से निकल गई; हम उसके लिए कुछ नहीं कर सकते। ४. किसी प्रकार के अधिकार, नियंत्रण, बंधन आदि से रहित होने पर किसी ओर प्रवृत्त होने के लिए बाहर आना। जैसे–(क) कमान में से तीर या बंदूक में से गोली निकलना। (ख) फंदे से गला निकलना। ५. किसी चीज में पड़ी, मिली या लगी हुई अथवा व्याप्त वस्तु का उससे छूटकर या और किसी प्रकार अलग, दूर या बाहर होना। जैसे–(क) कपड़े में से मैल या रंग निकलना। (ख) पत्तियों या फलों में से रस अथवा बीजों में से तेल निकलना। (ग) दूध या मलाई में से घी या मक्खन निकलना। संयो० क्रि०–आना।–जाना। ६. उत्पत्ति या निर्माण के स्थान अथवा उद्गम के स्थान से बाहर होकर प्रकट या प्रत्यक्ष होना। सामने आना। जैसे–(क) अंडे या गर्भ में से बच्चा निकलना। (ख) पेड़ में से डालियाँ या डालियों में से पत्तियाँ अथवा मसूड़ों में से दाँत निकलना। (ग) विश्वविद्यालय में से योग्य स्नातक निकलना। संयो० क्रि०–आना।–पड़ना। ७. किसी अज्ञात स्थान, स्थिति आदि से बाहर होकर सामने आना। आगे आकर उपस्थित होना या दिखाई देना। जैसे–आज न जाने कहाँ से इतनी च्यूँटियाँ (या मक्खियाँ) निकल आईं (या निकल पड़ी) हैं। संयो० क्रि०–आना।–पड़ना। ८. किसी पदार्थ या स्थान में से कोई नई रचना, वस्तु या स्थिति उत्पन्न अथवा प्राप्त होना। जैसे–(क) इस कपड़े में से दो कुर्तों के सिवा एक टोपी भी निकलेगी। (ख) यह दालान तोड़ दिया जाय तो इसमें तीन दुकानें निकलेंगी। (ग) जंगल कट जाने पर खेती-बारी और बस्ती के लिए जगह निकल आती है। संयो० क्रि०–आना।–जाना। ९. शरीर में छिपे या दबे हुए विकार या विष का रोग के रूप में प्रकट या प्रत्यक्ष होना। जैसे–गरमी, चेचक, या मुहाँसा निकलना। विशेष–इस अर्थ में इस क्रिया का प्रयोग कुछ विशिष्ट प्रकार के ऐसे ही रोगों या विकारों के संबंध में ही होता है जो किसी प्रकार के विस्फोट के रूप में होते हैं। १॰. शरीर अथवा उसके किसी अंग से कोई तरल पदार्थ बाहर आना। जैसे–(क) शरीर से पसीना निकलना। (ख) फोड़े में से पीब या मवाद निकलना। (ग) नाक या मुँह से खून निकलना। ११. किसी बड़ी राशि में से कोई छोटी राशि कम होना या घटना। जैसे–(क) इस रकम में से तो सौ रुपए ब्याज के निकल गए। (ख) सेर भर घी तो टीन में से चूकर निकल गया। संयो० क्रि०–जाना। १२. किसी गूढ़ तत्त्व, बात या विषय के आशय, उद्देश्य, रहस्य या रूप का स्पष्टीकरण होना। कोई बात खुलना या प्रकट होना। जैसे–(क) किसी पद, वाक्य या श्लोक का अर्थ निकलना। (ख) किसी काम के लिए मुहूर्त निकलना। संयो० क्रि०–आना। १३. किसी ऐसी चीज या बात का नये सिरे से आविर्भूत, प्रगट या प्रत्यक्ष होना जो पहले न रही हो या सामने न आई हो। जैसे–(क) किसी प्रदेश में ताँबे या सोने की खान निकलना। (ख) नया कानून, कायदा, प्रथा या हुकुम निकलना। (ग) उपाय तरकीब या युक्ति निकलना। संयो० क्रि०–आना।–जाना। १४. किसी नई वस्तु-रचना का प्रस्तुत होकर उपयोग में आने के योग्य होना। जैसे–(क) कहीं से कोई नहर या सड़क निकलना। (ख) दीवार में नई खिड़की निकलना। (ग) यातायात के सुभीते के लिए किसी प्रदेश या प्रांत में रेल निकलना। १५. किसी चीज के किसी अंग या अंश का असाधारण रूप से आगे या बाहर की ओर बढ़ा हुआ होना अथवा सब की दृष्टि के सामने होना। जैसे–(क) उस मकान में दाहिनी तरफ एक बरामदा निकला है। (ख) उनकी दीवार में एक नई खिड़की निकली है। संयो० क्रि०–आना। १६. अपने कर्तव्य, निश्चय, वचन आदि का ध्यान छोड़कर अलग या दूर हो जाना। लगाव या संपर्क बाकी न रहने देना। जैसे–तुम तो यों ही दूसरों का गला फँसाकर (या वादा करके) निकल जाते हो। संयो० क्रि०–जाना।–भागना। १७. पुस्तकों, विज्ञापनों, समाचार-पत्रों आदि के संबंध में छपकर प्रकाशित होना या सर्वसाधारण के सामने आना। जैसे–(क) किसी विषय की कोई नई पुस्तक निकलना। (ख) समाचार-पत्रों में विज्ञापन या सूचना निकलना। (ग) कहीं से कोई नया मासिक-पत्र निकलना। १८. बिकनेवाली चीजों के संबंध में, खपत या बिक्री होना। जैसे–उनकी दूकान पर जितना माल आता है, सब निकल जाता है। १९. किसी स्थान पर स्थित किसी तत्त्व या बात का अपने पूर्व में बना न रहना। अलग, दूर या नष्ट हो जाना। जैसे–इस एक दवा से ही हमारे कई रोग निकल गए। संयो० क्रि०–जाना। २0. कुछ पशुओं के संबंध में सधाये या सिखाये जाने पर इस योग्य होना कि जुताई, ढुलाई, सवारी आदि के काम में ठीक तरह से आ सके। जैसे–यह घोड़ा अच्छी तरह निकल गया है; अर्थात् गाड़ी में जोते जाने या सवारी के काम में आने के योग्य हो गया है। २१. हिसाब-किताब होने पर कोई रकम किसी के जिम्मे बाकी ठहरना। जैसे–अभी सौ रुपए और तुम्हारे नाम निकलते हैं। २२. कोई अभिप्राय या उद्देस्य सफल या सिद्ध होना। मनोरथ पूर्ण होना। जैसे–किसी से कोई काम या मतलब निकलना। संयो० क्रि०–आना।–जाना। २३. किसी जटिल प्रश्न या समस्या की ठीक मीमांसा होना। हल होना। जैसे–गणित के ऐसे प्रश्न सब लोगों से नहीं निकल सकते। संयो० क्रि०–आना।–जाना।–सकना। २४. कंठ से उच्चारित होना। जैसे–गले से स्वर निकलना, मुँह से आवाज या बात निकलना। संयो० क्रि०–आना।–जाना। विशेष–उक्त के आधार पर लाक्षणिक रूप में इस क्रिया का प्रयोग बाजों आदि के संबंध में भी होता है। जैसे–मृदंग में से शब्द या सारंगी में से राग अथवा स्वर निकलना। मुहा०–(कोई बात मुँह से) निकल जाना=असावधानी के कारण या आकस्मिक रूप से उच्चारित होना। जैसे–मुँह से कोई अनुचित बात निकल जाना। २५. चर्चा, प्रसंग या बात के संबंध में, आरंभ होना। छिड़ना। जैसे–(क) बात-चीत या व्याख्यान में वहाँ और भी कई प्रसंग निकले। (ख) बात निकलने पर मुझे भी कुछ कहना ही पड़ा। संयो० क्रि०–आना।–जाना। २६. ग्रह, नक्षत्र का आकाश में उदित होकर क्षितिज से ऊपर और आँखों के सामने आना। जैसे–चंद्रमा, तारे या सूर्य निकलना। संयो० क्रि०–आना।–जाना। २७. किसी व्यक्ति या कुछ लोगों का किसी मार्ग से होते हुए किसी ओर चलना, जाना या बढ़ना। जैसे–जुलूस, बरात या यात्रियों का दल (किसी ओर से) निकलना। २८. समय के संबंध में, व्यतीत होना। गुजरना। बीतना। जैसे–(क) हमारे दिन भी जैसे-तैसे निकल रहे हैं। (ख) अब बरसात निकल जायगी। संयो० क्रि०–जाना। २९. निर्विवाद और स्पष्ट रूप से ठीक ठहरना। प्रमाणित या सिद्ध होना। जैसे–(क) उनका यह लड़का तो बहुत लायक निकला। (ख) आपकी भविष्यद्वाणी ठीक निकली। |
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समानार्थी शब्द-
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निकलवाना :
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स० [हिं० निकालना का प्रे०] १. किसी को कुछ निकालने में प्रवृत्त करना। २. जोर या जबरदस्ती से किसी को छिपाकर रखी हुई कोई चीज उपस्थित करने के लिए बाध्य करना। |
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समानार्थी शब्द-
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निकलाना :
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स०=निकलवाना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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समानार्थी शब्द-
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