शब्द का अर्थ
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नै :
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स्त्री० [सं० नदी, प्रा० णई] नदी। स्त्री० [फा०] १. नरकट। नरसल। २. बाँस की नली। ३. हुक्के की निगाली। ४. बाँसुरी। विभ०=ने (कर्मकारक की विभक्ति) (व्रज०)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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नैऋत :
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वि०=नैर्ऋत्य। |
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नैक :
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वि० [सं० न-एक, सहसुपा स०]१. जो एक नहीं, बल्कि उससे कुछ अधिक हो। अनेक। २. जो अकेला न हो। पुं० विष्णु। वि०, अव्य०=नेक (जरा या थोड़ा)। |
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नैकचर :
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वि० [सं० नैक√चर् (गति)+ट] जो अकेला न चलता हो। फलतः झुंडों में रहनेवाला। जैसे-भेड़, हाथी, हिरन आदि। |
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नैकटिक :
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वि० [सं० निकट+ठक—इक]निकटवर्ती पास का। |
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नैकट्य :
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पुं० [सं० निकट+ष्यञ्]निकटता नजदीकी। |
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नैकधा :
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अव्य० [सं० नैकधाच्] अनेक प्रकारों से। अनेर रूपों में। |
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नैक-भेद :
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वि० [सं० ब० स०] विभिन्न प्रकार का। अलग तरह का। |
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नैक-श्रृंग :
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पुं० [सं० ब० स०] विष्णु। |
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नैकषेय :
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पुं० [सं० निकषा+ढक्–एय] रावण की माता,निकषा के वंशज। |
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नैकृतिक :
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वि० [सं० निकृतिठक्-इक] दूसरों की हानि करके निष्ठुरतापूर्वक जीविका चलानेवाला। २. कटु बातें कहनेवाला। कटु-भाषी। |
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नैगम :
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वि० [सं० निगम+अण्] १. निगम संबंधी। निगम का। २. वेदों अथवा अन्य धर्म ग्रन्थों में लिखा हुआ। ३. जिसमें ब्रह्म के स्वरूप आदि का प्रतिपादन हो। आध्यात्मिक। पुं० १. उपनिषद्। २. नय। नीति। |
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नैगम-नय :
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पुं० [सं० कर्म० स०]जैन दर्शन का यह तर्क या सिद्धान्त कि सामान्य के बिना विशेष और विशेष के बिना सामान्य नहीं रह सकता। |
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नैगमिक :
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वि० [सं० निगम+ठक्—इक] १. जिसका संबंध वेदों से हो। २. वेदों से निकला हुआ। |
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नैगमेय :
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पुं० [सं०] १. कार्तिकेय के एक अनुचर का नाम। २. दे० ‘नैगमेष’। |
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नैगमेष :
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पुं० [सं०] बालकों का एक ग्रह जिसका प्रकोप होने पर बच्चे रोते हैं, उनके मुंह से फेन गिरता है तथा ज्वर आदि विकार भी होते हैं। |
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नैघंटुक :
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पुं० [सं० निघंटु+ठक्—क] वैदिक शब्दों की वह शब्दावली जिसकी व्याख्या यास्क ने अपने निरुक्त में की है। |
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नैचा :
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पुं० [फा० नैचः] नरकट की नालियों का वह ढाँचा जो हुक्के में लगा होता है और जिसके द्वारा तम्बाकू का धुआँ खींचा जाता है। |
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नैचाबंद :
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पुं० [फा० नैचःबन्द] हुक्कों के नैचे बनानेवाला। |
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नैचाबंदी :
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स्त्री० [फा० नैचःबंदी] नैचा बनाने का काम और पारिश्रमिक। |
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नैचिक :
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पुं० [सं० नीचा+ठक्-इक] बैल का माथा। |
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नैचिकी :
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स्त्री० [सं० नीचि=गोशिरोभाग+कन्+अण्+ङीप्] अच्छी गाय। |
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नैची :
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स्त्री० [हिं० नीचा] कूएँ के पास की वह ढालुई जमीन जिस पर से बैल मोट खींचते समय नीचे आते-जाते रहते हैं। |
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नैचुल :
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वि० [सं० निचुल+अण्] निचुल संबंधी। हिज्जल वृक्ष-संबंधी। पुं० निचुल या हिज्जल का बीज या फल। |
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नैज :
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वि० [सं० निज+अण्] निज का। निजी। |
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नैटी :
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स्त्री० [देश] दुद्धी या दूधिया घास।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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नैड़ी :
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क्रि० वि०=नेड़े (नजदीक)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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नैड़ों :
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क्रि० वि०=नेड़े।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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नैतल :
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पुं० [सं० नितल+अण्] नीचे का लोक। |
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नैतल-सद्म(न) :
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पुं० [सं० ब० स०]नैतल में रहने वाले यम। |
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नैतिक :
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वि० [सं नीति+ठक—इक] [भाव० नैतिकता] १. नीति का। नीति संबंधी।जैसे- नैतिक विचार। २. नीति के अनुसार होने वाला। जैसे नैतिक उत्तर दायित्व। ३. युक्ति आचरण या व्यवहार से संबंध रखने वाला। जैसे नैतिक पतन। |
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नैतिकता :
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स्त्री० [सं० नैतिक+तल्-टाप्] नीति शास्त्र के सिद्धान्तों का होनेवाला ज्ञान तथा उनके अनुसार किया जानेवाला अच्छा आचरण। |
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नैत्य :
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वि० [सं० नित्य+अण्] १. नित्य संबंधी। नित्य का। २. नित्य या रोज होनेवाला। दैनिक। पुं० नियमित रूप से और नित्य किये जानेवाले काम। नित्य कर्म। |
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नैत्यक :
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वि०[सं० नैत्य+कन्]नित्य होने या किया जाने वाला। नैत्य। पुं० व्यापरिक अथवा कार्यालय संबंधी कार्यों का नित्य का बँधा हुआ क्रम। (रुटीन) |
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नैत्र :
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वि० [सं०] नेत्रों या आँखों से संबंध रखनेवाला। |
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नैत्रिकी :
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स्त्री० [सं० नेत्र से] आधुनिक चिकित्सा की वह शाखा जिसमें नेत्र-संबंधी रोगों और उनकी चिकित्सा प्रणाली की विवेचना होती है। (आप्थेलमॉलोजी)। |
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नैदाघ :
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वि० [सं० निदा+घ+अण्] १. निदाध संबंधी। निदाघ का। २. गरमी या ग्रीष्म ऋतु में होनेवाला। पुं० गरमी का मौसम। ग्रीष्म ऋतु। |
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नैदाघिक :
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वि० [सं० निदाघ+ठञ्-इक] नैदाघ। |
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नैदाघीय :
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वि० [सं० निदाघ+छण्-ईय]निदाघ-संबंधी। नैदाघ। |
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नैदानिक :
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वि० [सं० निदान+ठक्–इक] निदान संबंधी। रोगों के निदान से संबंध रखने वाला। (क्लिनिकल) पुं० वह जो विशिष्ट रूप से रोगों का निदान करता हो। |
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नैदानिकी :
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स्त्री०[ सं० नैदानिक से]रोगों का निदान करने की विद्या या शास्त्र। |
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नैदेशिक :
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वि० [सं० निदेश+ठक्-इक] १. निदेश संबंधी। २. निदेश का पालन करनेवाला। पुं० नौकर। सेवक। |
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नैद्र :
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वि० [सं० निद्रा+अण्] निद्रालु। |
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नैधन :
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वि० [सं० निधन+अण्] जिसका निधन या नाश होने को हो। नश्वर। पुं० जन्मकुण्डली में लग्न से आठवाँ घर जिसके आधार पर मृत्यु का विचार होता है (ज्यो०)। |
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नैधानी :
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स्त्री० [सं० निधान+अण्+ङीप्] भू-भाग अलग अलग दरसाने के लिए बनाई जानेवाली ऐसी सीमा जिसके कोयले,भूसी आदि से भरे हुए घड़े गड़े हों। (स्मृति)। |
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नैधेय :
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वि० [सं० निधि+ढक्-एय] निधि संबंधी। निधि का। |
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नैन :
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पुं० [सं० नयन] १. आँख। नयन। २. दीवार में से धूआँ निकलने का छेद। धूम-नेत्र। धमाला। पुं० [सं० नवनीत] मक्खन। पुं० अन्याय।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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नैन-पटी :
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स्त्री० [सं० नयन+पट] आँख या आँखों पर बाँधी जानेवाली पट्टी। |
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नैनसुख :
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पुं० [सं० नयन+सुख] एक प्रकार का सफेद सूती कपड़ा। |
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नैना :
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पुं० [सं० नयन] आँख। नेत्र। अ०=नवना। स०=नवाना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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नैनू :
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पुं० [हिं० नैन=आँख] पुरानी चाल की एक प्रकार की बूटीदार मलमल। पुं० [सं० नवनीत] मक्खन।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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नैपातिक :
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वि० [सं० निपात+ठक्-इक] निपात-संबंधी। |
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नैपाल :
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वि० [सं० नेपाल+अण्] नेपाल देश संबंधी। नेपाल का। पुं० १. नेपाल निंब। २. एक प्रकार की ईख। ३. नेपाल देश। |
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नैपालिक :
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वि० [सं० नेपाल+ठक्-इक] नेपाल में बनने,होने या रहनेवाला। पुं० ताँबा। |
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नैपाली :
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वि० [हिं० नैपाल] नैपाल देश का। पुं० १. नेपाल देश का निवासी। स्त्री० [सं०] १. नव-मल्लिका। निवारी। २. मैनसिल। ३. नील का पौधा। ४. एक प्रकार की निर्गुंडी। स्त्री० [हिं० नैपाल] नैपाल देश की बोली या भाषा। |
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नैपुण्य :
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पुं० [सं० निपुण+ष्यञ्] १. निपुणता। २. ऐसा कार्य या विषय जिसके लिए निपुणता आवश्यक हो। |
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नैभृत्य :
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पुं० [सं० निभृत+ष्यञ्] १. नम्रता। विनय। २. छिपाव। दुराव। ३. स्थिरता। |
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नैमंत्रणक :
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पुं० [सं० निमंत्रण+वुञ्–अक] बहुत से लोगों को बुलाकर कराया जानेवाला भोजन। भोज। दावत। |
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नैमय :
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पुं० [सं०] व्यवसायी। रोजगारी। |
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नैमित्त :
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वि० [सं० निमित्त+अण्] १. निमित्त संबंधी। २. निमित्त से उत्पन्न। ३. चिन्ह संबंधी। |
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नैमित्तिक :
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वि० [सं० निमित्त+ठक्–इक] १. जो किसी निमित्त से किया जाय। २.जो किसी प्रयोजन की सिद्धि के लिए हो। जैसे-नैमित्तिक कार्य। ३. आकस्मिक। अप्रायिक। पुं० ज्योतिषी। |
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नैमित्तिक प्रलय :
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पुं० [सं०] वेदांत के अनुसार प्रत्येक कल्प के अंत में होनेवाला तीनों लोकों का क्षय या पूर्ण विनाश। ब्राह्म प्रलय। |
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नैमित्तिक लय :
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पुं० [सं० कर्म० स०] एक प्रकार का प्रलय जिसमें बारह सूर्य उदित होते हैं और १॰॰ वर्ष अनावृष्टि होती है। (गरुड़ पुराण)। |
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नैमिश :
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पुं०=नैमिष। |
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नैमिष :
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वि० [सं० निमिष+अण्] १. निमिष संबंधी। २. क्षणिक। पुं० १. नैमिषारण्य तीर्थ। २. एक प्राचीन जाति जो महाभारत के समय यमुना के किनारे बसी थी। |
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नैमिषारण्य :
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पुं० [सं० नैमिष-अरण्य,कर्म० स०] एक प्राचीन वन जो आजकल के सीतापुर जिले में पड़ता है और एक प्रसिद्ध तीर्थ है। नीमखार। |
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नैमिषि :
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पुं० [सं० नि√मिष्+क,निमिष+इत्र्] नैमिषारण्य का निवासी। |
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नैमिषीय :
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वि० [सं० निमिष+छण्-ईय] निमिष संबंधी। निमिष का। |
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नैमिषेय :
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वि० [निमिष+ढक्—एय]१. नैमिष-संबंधी। २. नैमिषारण्य का। |
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नैमेय :
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पुं० [सं० नि√मि (लेनदेन) यत्+अण्] १. वस्तुओं का अदला-बदला। विनिमय। २. रोजगार। वाणिज्य। |
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नैयग्रोध :
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पुं० [सं० न्यग्रोध+अण्, ऐ-आगम] वट वृक्ष का फल। |
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नैयत्य :
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वि० [सं० नियत+ष्यञ्] नियत, प्रतिष्ठित या स्थिर होने की अवस्था, क्रिया या भाव। |
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नैयमिक :
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वि० [सं० नियम+ठक्-इक] १. नियम संबंधी। २. नियम के अनुसार होने या किया जानेवाला। |
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नैया :
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स्त्री०=नाव।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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नैयायिक :
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पुं० [सं० न्याय+ठक्-इक]न्याय दर्शन का ज्ञाता। न्यायवेत्ता। |
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नैरंग :
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पुं० [फा०] १. अद्भुत या विलक्षण चीज या बात। २. इंद्रजाल। जादू। ३. कपट। छल। धोखा। |
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नैरंगबाज :
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पुं० [फा०] [भाव० नैरंगबाजी] १. मायावी। जादूगर। २. कपटी। छल। धोखा। |
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नैरंगी :
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स्त्री० [फा०] १. दे० ‘नैरंग’। २. चालबाजी। धूर्तता। ३. चित्र की चंचलता। |
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नैरंजना :
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स्त्री० [सं०] फल्गु नदी का प्राचीन नाम। |
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नैरंतर्य :
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पुं० [सं० निरंतर+ष्यञ्] निरंतरता। |
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नैरंति :
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स्त्री० [सं० नैऋत्य] दक्षिण-पश्चिम के बीच की दिशा। नैऋत्य कोण। |
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नैर :
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पुं० [सं० नगर] १. नगर। शहर। २. जनपद। देश।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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नैरपेक्ष्य :
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पुं० [सं० निरपेक्ष+ष्यञ्] १. निरपेक्षता। २. उपेक्षा। |
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नैरयिक :
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वि० [सं० निरय+ठक्-इक] नरक संबंधी। २. नरक में रहने या होनेवाला। |
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नैरर्थ्य :
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पुं० [सं० निरर्थ+ष्यञ्] निरर्थकता। |
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नैरात्म्य :
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पुं० [सं० निरात्मन्+ष्यञ्]१. निरात्म होन की अवस्था या भाव। २. एक दार्शनिक सिद्धांत जिसमें यह प्रतिपादित किया जाता है कि वास्तव में आत्मा का कोई अस्तित्व नहीं है। (निहलिज्म) |
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नैरात्म्यवाद :
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पुं०=अनात्मवाद। |
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नैराश्य :
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पुं० [सं० निराश+ष्यञ्] १. निराश होने की अवस्था या भाव। ऐसी स्थिति जिसमें मनुष्य निराश हो जाता हो। ना-उम्मेदी। २. निराश होने के फलस्वरूप होनेवाली उदासी। |
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नैरास्य :
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पुं० [सं०] बाण चलाने का एक मंत्र। |
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नैरिक :
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वि० [सं० नीर+ठक्-इक] नीर या जल संबंधी। जैसे–नैरिक चिन्ह, नैरिक रेखा। |
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नैरिकेय :
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पुं० [सं०] वह विज्ञान या शास्त्र जिसमें जल विशेषतः भूतल के नीचे के जल के गुणों नियमों प्रवाहों विभाजनों आदि का विचार होता है। (हाइड्रॉलाजी)। |
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नैरुक्त :
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वि० [सं० निरुक्त+अण्]१. शब्दों की निरुक्ति या व्युक्त्पत्ति से संबंध रखने वाला। २. निरुक्त शास्त्र सं संबंध रखने वाला। पुं०१.वह व्यक्ति जो शब्दों की निरुक्ति या व्युत्पत्ति जानता हो। २. वह ग्रंथ जिसमें शब्दों की निरुक्ति या व्युत्पत्ति बतलाई गयी हो। |
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नैरुक्तिक :
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वि०, पुं० [सं० निरूक्त+ठक्-इक]=नैरुक्त। |
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नैरुज्य :
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पुं० [सं० निरुज+ष्यञ्] निरुज या निरोग होने की अवस्था या भाव। आरोग्य। तंदुरस्ती। स्वस्थता। |
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नैरूहिक :
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पुं० [सं० निरूह+ठक्-इक]एक तरह की वस्ति। (सुश्रुत) |
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नैर्ऋत :
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पुं० [सं० निर्ऋति+अण्] निर्ऋति-संबंधी। पुं० १. निर्ऋति की संतान अर्थात् राक्षस। २. नैऋत्य अर्थात् पश्चिम-दक्षिण कोण का स्वामी राहु। ३. मूल नक्षत्र। |
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नैर्ऋती :
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स्त्री० [सं० नैर्ऋत+ङीप्] १. दक्षिण-पश्चिम के मध्य की दिशा व कोण। २. दुर्गा। |
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नैर्ऋतेय :
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वि० [सं० निऋति++ढक्–एय] निर्ऋति संबंधी। पुं० निर्ऋति देवता के वंशज। |
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नैर्गुण्य :
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पुं० [सं० निर्गुण+ष्यञ्]१. निर्गुणता। २. कला कौशल आदि के ज्ञान का अभाव। ३. सत्त्व रज और तम तीनों गुणों से रहित होने की अवस्था या भाव। |
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नैर्देशिक :
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वि० [सं० निर्देश+ठक्–इक] १. निर्देश संबंधी। २. निर्देश के रूप में होनेवाला। ३. निर्देश का पालन करनेवाला। पुं० नौकर। भृत्य। |
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नैर्मल्य :
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पुं० [सं० निर्मल+ष्यञ्] १. निर्मलता। २. विषय-वासना आदि से रहित होना। |
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नैर्लज्य :
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पुं० [सं० निर्लज्य+ष्यञ्] निर्लज्जता। बेहयाई। |
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नैल्य :
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पुं० [सं० नील+ष्यञ्] नीले होने की अवस्था या भाव। नीलापन। |
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नैवासिक :
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वि० [सं० निवास+ठक्-इक] १. निवास संबंधी। २. निवास के अनुकूल या योग्य। (स्थान) |
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नैवेद्य :
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पुं० [सं० निवेद+ष्यञ्] देवता या मूर्ति को भेंट की या चढ़ाई हुई खाद्य वस्तु। भोग। क्रि० प्र०-लगाना। |
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नैवेशिक :
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वि० [सं० निवेश+ठक्-इक] निवेश संबंधी। पुं० १. गृहस्थी के उपकरण या पात्र। २. ब्राह्मण को दी जानेववाली भेंट। |
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नैश :
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वि० [सं० निशा+अण्] १. निशा संबंधी। निशा का। २. रात में किया या होनेवाला। ३. अंधकार-पूर्ण। |
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नैशिक :
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वि० [सं० निशा+ठञ्-इक] निश्चल होने की अवस्था या भाव। निश्चलता। स्थिरता। |
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नैश्चित्य :
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पुं० [सं० निश्चित+ष्यञ्]१. निश्चित होने की अवस्था या भाव। निश्चिति। २. निश्चय। |
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नैश्श्रेयस(सिक) :
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वि० [सं० निश्श्रेयस्+अण्, निश्श्रेयस्+ठक्-इक] १. कल्याणकारक। २. मोक्ष दायक। |
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नैषध :
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वि० [सं० निषध+अण्] निषध-देश संबंधी। निषध देश का। पुं० १. निषध देश का राजा। २. राजा नल। ३. निषध देश का निवासी। ४. श्री हर्षकृत एक प्रसिद्ध संस्कृत काव्य जिसमें निषध देश के राजा नल की कथा है। |
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नैषधीय :
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वि० [सं० नैषध+छ-ईय] १. नैषध संबंधी। २. राजा नल के संबंध का। |
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नैषध्य :
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पुं० [सं० निषध+ण्य] राजा नल का वंशज। |
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नैषाद, नैषादि :
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पुं० [सं० निषाद+अण्, निषाद+इञ्] निषाद का वंशज। |
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नैषेचनिक :
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पुं० [सं० निषेचन+ठक्-इक] राज्याभिषेक के अवसर पर दिया जानेवाला उपहार (कौ०)। |
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नैष्कर्म्य :
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पुं० [सं० निष्कर्मन्+ष्यञ्] १. निष्कर्म होने की अवस्था या भाव। २.कर्मों का परित्याग। निष्क्रियता। ३. आसक्ति और फल की कामना छोड़कर कार्य करना। ४. अकर्मण्यता और आलस्य। ५. आत्मज्ञान। |
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नैष्किक :
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वि० [सं० निष्क+ठक्-इक]१. निष्क-संबंधी। निष्क का। २. निष्क देकर खरीदा या मोल लिया हुआ। पुं० टकसाल का प्रधान अधिकारी। |
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नैष्कतिक :
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वि०[सं० निष्कृति+ठक्-इक] दूसरे की हानि करके अपना प्रयोजन सिद्ध करने वाला स्वार्थी। |
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नैष्क्रमण :
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पुं० [सं० निष्क्रमण+अण्]निष्क्रमण नामक कृत्य या संस्कार। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
नैष्ठिक :
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वि० [सं० निष्ठा+ठक-इक][स्त्री० नैष्ठिकी]१. निष्ठावान। निष्ठायुक्त। २. अंतिम और निश्चित रूप में किया जाने वाला। (डेफिनिट) ३. निश्चित। ४. दृढ़। पक्का। ५. सर्वोत्तम। ६. परिपूर्ण। पुं० ऐसा ब्रह्मचारी जो उपनयन संस्कार होने पर आजीवन गुरु के आश्रम में रहकर व्रह्मचर्य का पालन करे। |
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नैष्ठुर्य :
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पुं० [सं० निष्ठुर+ष्यञ्]=निष्ठुरता। |
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नैष्ठ्य :
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वि० [सं० निष्ठा+ण्य] निष्ठायुक्त। आचरणशील। |
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नैसर्गिक :
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वि० [सं० निसर्ग+ठक्-इक] [स्त्री० नैसर्गिकी] १. निसर्ग या प्रकृति से संबंध रखने या उससे होनेवाला। प्राकृतिक। २. निसर्ग से उत्पन्न। ३. स्वाभाविक। |
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नैसर्गिकी :
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स्त्री० [सं० नैसर्गिक से]१. वे बातें या विचार जो निसर्ग से संबंध रखती या उससे उत्पन्न होती हों। २. दार्शनिक क्षेत्रों में यह धारणा या विश्वास कि सारी सृष्टि वास्तविक है और इसमें कोई अलौकिक या दैवी तत्त्व अथवा भाव नहीं है। कला पक्ष और साहित्य में यह सिद्धांत कि संसार में नैसर्गिक या प्राकृतिक रूप में जो कुछ वस्तुतः होता हुआ दिखाई देता है उसका अंकन या चित्रण ज्यों का त्यों उसी रूप में होना चाहिए; और उसमें आदर्शों, नैतिक विचारों आदि का आरोप नहीं किया जाना चाहिए। ४. आधुनिक धार्मिक क्षेत्र में, यह धारणा या विश्वास कि मनुष्यों में धर्म तत्त्व का आविर्भाव किसी अलौकिक या दैवी शक्ति की प्रेरणा से नहीं हुआ है, और मनुष्य ने धर्म संबंधी सभी भावनाएँ तथा विचार नैसर्गिक या प्राकृतिक जगत से ही लिए हैं। (नैचुरलिज्म, उक्त सभी अर्थों में) |
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नैसर्गिकी दशा :
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स्त्री० [सं० व्यस्त पद] फलित ज्योतिष में ग्रहों की एक प्रकार की दशा। |
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नैसना :
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स० [सं० नाशन] नष्ट करना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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नैसा :
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वि० [सं० अनिष्ट] [स्त्री० नैसी] अनैसा। बुरा। खराब।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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नैसुक :
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वि०=नेसुक (थोड़ा)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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नैहर :
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पुं० [सं० ज्ञाति, प्रा० णाति,णाई=पिता+हिं० घर] विवाहिता स्त्री की दृष्टि से उसके पिता का घर। माँ-बाप का घर। पीहर। मायका। ‘ससुराल’ का विपर्याय। |
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