| शब्द का अर्थ | 
					
				| पाप					 : | पुं० [सं०√पा (रक्षा करना)+प] [वि० पापी] १. धर्म और नीति के विरुद्ध किया जानेवाला ऐसा निंदनीय आचरण या काम जो इस लोक में भी और पर-लोक में भी सब तरह से बुरा और हानिकारक हो और जिसके फलस्वरूप मनुष्य को नरक भोगना पड़ता हो। ‘पुण्य’ का विपर्याय। गुनाह। विशेष—हमारे यहाँ पाप का क्षेत्र दुष्कर्मों की तुलना में बहुत विस्तृत माना गया है। धर्म-शास्त्रों के अनुसार दुष्कर्म करना तो पाप है ही, उचित और कर्त्तव्य कर्म न करना भी पाप माना गया है। साधारणतः दुष्कर्मों का फल जो इसी लोक में मिलता है; पर पाप के फलस्वरूप मनुष्य को मरने के बाद भी नरक में रहकर उसका दंड भोगना पड़ता है। यह कायिक, मानसिक और वाचिक तीनों प्रकार का माना गया है। पापों के फल-भोग से बचने के लिए शास्त्रों में प्रायश्चित्त का विधान है। पद—पाप की गठरी या मोट=किसी व्यक्ति के जन्म भर के सब पाप। मुहा०—पाप काटना=पापों के दुष्परिणामों या प्रभाव का प्रायश्चित्त करना या दंड-भोग से क्षीण या नष्ट होना। पाप कमाना=ऐसे दुष्कर्म करना जो पाप समझे जाते हों और जितना फल भोगने के लिए नरक में जाना पड़े। पाप काटना=किसी प्रकार पापों के दुष्परिणामों का अंत या नाश करना। पाप बटोरना=दे० ऊपर ‘पाप कमाना’। २. पूर्व जन्म में किये हुए पापों के फलस्वरूप प्राप्त होनेवाली वह बुरी अवस्था जिसमें उन पापों का दंड या बहुत अधिक कष्ट भोगने पड़ते हों। जैसे—ईश्वर करे, हमारे पाप शांत हों। मुहा०—पाप उदय होना=ऐसी बुरी अवस्था या समय आना जब अनेक प्रकार के कष्ट ही कष्ट मिलते हों। दुर्दशा के अथवा बुरे दिन आना। जैसे—न जाने हमारे कब के पापों के उदय हुआ था कि ऐसा नालायक लड़का मिला। पाप पड़ना=ऐसी बुरी स्थिति उत्पन्न होना जिससे बहुत अधिक कष्ट या दुःख भोगना पड़े। उदा०—सीरैं जतननु सिसिर रितु, सहि बिरहिन तनु-ताप। बसिबै कौं ग्रीषम दिननु पर्यो परोसिनि पापु।—बिहारी। ३. ऐसी अवस्था, जिसमें किसी काम का वैसा ही दुष्परिणाम भोगना पड़ता हो जैसा पापपूर्ण कर्म का। जैसे—मैं देखता हूँ कि यहाँ तो सच बोलना भी पाप है। मुहा०—पाप लगना=ऐसी स्थिति आना या होना कि जिसमें मनुष्य पापों के फलभोग का भागी बनता हो। जैसे—पापी के संसर्ग से भी मनुष्य को पाप लगता है। ४. कोई ऐसा काम या बात जिससे मुनष्य को बहुत कष्ट भोगना अथवा दुःखी होना पड़ता हो। जैसे—तुमने तो जान-बूझकर यह मुकदमेबाजी का पाप अपने साथ लगा रखा है। मुहा०—पाप काटना=बहुत बड़ी झंझट या बखेड़ा दूर करना। ५. अपराध। कसूर। ६. बुरी बुद्धि या बुरा विचार। ७. अनिष्ट। अहित। खराबी। ८. दे० ‘पापग्रह’। वि० १. पाप करनेवाला। पापी। २. दुराचारी। ३. कमीना। नीच। ४. दुष्ट। पाजी। ५. अमांगलिक। अशुभ। जैसे—पाप-ग्रह। | 
			
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				| पापक					 : | वि० [सं० पाप+कन्] १. पापा-युक्त। २. पाप करनेवाला। पापी। | 
			
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				| पाप-कर					 : | वि० [ष० त०]=पापी। | 
			
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				| पाप-कर्म (न्)					 : | पुं० [कर्म० स०] धार्मिक दृष्टि से ऐसा बुरा और निंदनीय काम जिसे करने से पाप लगता हो। वि० पाप करनेवाला। पापी। | 
			
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				| पापकर्मी (र्मिन्)					 : | वि० [सं० पापकर्म] [स्त्री० पापकर्मिणी] पाप करनेवाला। पापी। | 
			
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				| पाप-कल्प					 : | वि० [सं० पाप-कल्पप्] पापी। पुं० खोटा और नीच व्यक्ति। | 
			
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				| पाप-क्षय					 : | पुं० [ष० त०] १. ऐसी स्थिति जिसमें किये हुए पापों का फल नहीं भोगना पड़ता। पापों का होनेवाला अंत या क्षय। २. तीर्थ, जहाँ जाने से पापों का क्षय या नाश होता है। | 
			
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				| पाप-गति					 : | वि० [ब० स०] १. जो किये हुए पापों का फल भोग रहा हो। २. अभागा। | 
			
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				| पाप-ग्रह					 : | पुं० [कर्म० स०] मंगल, शनि, केतु, राहु आदि अशुभ ग्रह जिनकी दशा लगने पर लोग दुःख पाते हैं। | 
			
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				| पापघ्न					 : | वि० [सं० पाप√हन् (हिंसा)+टक्] पापों का नाश करनेवाला। पुं० तिल (जिसके दान करने से पापों का क्षय होना माना जाता है)। | 
			
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				| पापघ्नी					 : | स्त्री० [सं० पापघ्न+ङीप्] तुलसी। | 
			
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				| पाप-चंद्रमा					 : | पुं० [सं० कर्म० स०] फलित ज्योतिष के अनुसार विशाखा और अनुराधा नक्षत्रों के दक्षिण भाग में स्थित चन्द्रमा। | 
			
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				| पापचर					 : | वि० [सं० पाप√चर् (गति)+ट] [स्त्री० पापचरा] पापपूर्ण आचरण करनेवाला। पापी। | 
			
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				| पाप-चर्य					 : | पुं० [ब० स०] १. पापी (व्यक्ति)। २. राक्षस। | 
			
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				| पापचारी (रिन्)					 : | वि० [सं० पाप√चर्+णिनि] [स्त्री० पापचारिणी]=पाप-चर्य। | 
			
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				| पाप-चेता (तस्)					 : | वि० [ब० स०] जो स्वभावतः पापपूर्ण आचरण करने की बातें सोचता हो। | 
			
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				| पापचेली					 : | स्त्री० [सं० पाप√चेल्+अच्+ङीष्] पाठा लता। | 
			
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				| पापचैल					 : | पुं० [कर्म० स०] अशुभ या अमंगल सूचक वस्त्र। वि० [ब० स०] जो उक्त प्रकार के वस्त्र पहने हो। | 
			
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				| पाप-जीव					 : | वि० [कर्म० स०] पापी। पुं० पुराणानुसार स्त्री, शूद्र, हूण और शवर आदि जीव जिनका संसर्ग कष्टदायक कहा गया है। | 
			
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				| पापड़					 : | पुं० [सं० पर्पट, प्रा० पप्पड़] उर्द, मूँग आदि दालों, मैदे, चौरेठे आदि अन्नों अथला आलू की बनी हुई एक तरह की मसालेदार पतली चपाती जिसे तल या भूनकर भोजन आदि के साथ खाया जाता है। मुहा०—पापड़ बेलना=(क) कोई काम इस रूप में करना कि वह बिगड़ जाय। (ख) किसी प्रयोजन की सिद्धि के लिए तरह-तरह के और कष्टसाध्य काम करना। (प्रायः ऐसा कामों से सिद्धि नहीं होती)। जैसे—आप सब पापड़ बेल कर बैठे हैं। वि० १. पापड़ की तरह पतला या महीन। २. पापड़ की तरह सूखा और भुरभुरा। | 
			
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				| पापड़ा					 : | पुं० [सं० पर्पट] १. छोटे आकार का एक पेड़ जो मध्य-प्रदेश बंगाल, मद्रास आदि में उत्पन्न होता है। इसकी लकड़ी से कंघियाँ और खराद की चीजें बनाई जाती हैं। २. दे० ‘पित्त-पापड़ा’। | 
			
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				| पापड़ा-खार					 : | पुं० [सं० पर्पटक्षार] केले के पेड़ को जलाकर तैयार किया हुआ क्षार। | 
			
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				| पापड़ी					 : | स्त्री० [हिं० पापड़ा] एक प्रकार का पेड़ जो मध्यप्रदेश, पंजाब और मदरास में बहुत होता है। | 
			
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				| पापदर्शी (र्शिन्)					 : | वि० [सं० पाप√दृश् (देखना)+णिनि] पापपूर्ण दृष्टि से देखनेवाला। बुरी निगाहवाला। | 
			
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				| पाप-दृष्टि					 : | वि० [ब० स०] १. जिसकी दृष्टि पापमय हो। २. अमंगलकारिणी या अशुभ दृष्टिवाला। स्त्री० पाप-पूर्ण दृष्टि। | 
			
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				| पाप-धी					 : | वि० [ब० स०] जिसकी बुद्धि पापमय या पापासक्त हो। पापकर्मों में मन लगानेवाला। पापमति। पापचेता। | 
			
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				| पाप-नक्षत्र					 : | पुं० [कर्म० स०] फलित ज्योतिष में, ज्येष्ठा आदि कुछ नक्षत्र जो अनिष्टकारक या बुरे माने गये हैं। | 
			
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				| पाप-नामा (मन्)					 : | वि० [ब० स०] १. अशुभ नामवाला। २. जिसकी सब जगह निंदा या बदनामी होती हो। बदनाम। | 
			
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				| पाप-नाशक					 : | वि० [ष० त०] पापों का नाश करनेवाला। | 
			
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				| पाप-नाशन					 : | वि० [ष० त०] पाप का नाश करनेवाला। पापनाशी। पुं० १. प्रायश्चित्त जिससे पाप नष्ट होते हैं। २. विष्णु। ३. शिव। | 
			
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				| पाप-नाशिनी					 : | स्त्री० [सं० पापनाशिन्+ङीष्] १. शमी वृक्ष। २. काली तुलसी। | 
			
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				| पापनाशी (शिन्)					 : | वि० [सं० पाप√नश् (नष्ट होना)+ णिच्+णिनि] [स्त्री० पापनाशिनी] पापों का नाश करनेवाला। | 
			
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				| पाप-निश्चय					 : | वि० [ब० स०] जिसने पाप करने का निश्चय कर लिया हो। खोटा काम करने को तैयार। पाप करने को कृतसंकल्प। | 
			
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				| पाप-पति					 : | पुं० [कर्म० स०] स्त्री का उपपति या यार। | 
			
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				| पाप-पुरुष					 : | पुं० [कर्म० स० या मध्य० स०] १. पापी प्रकृतिवाला पुरुष। दुष्ट। २. तंत्र में कल्पित पुरुष जिसका सारा शरीर पाप या पापों से ही बना हुआ माना जाता है। ३. पद्म पुराण के अनुसार ईश्वर द्वारा सारे संसार के दमन के उद्देश्य से रचा हुआ पापमय पुरुष। | 
			
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				| पाप-फल					 : | वि० [ब० स०] (कर्म) जिसका परिणाम बुरा हो और जिसे करने पर पाप लगता हो। | 
			
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				| पाप-बुद्धि					 : | वि० [ब० स०] जिसकी बुद्धि-सदा पापकर्मों की ओर रहती हो। | 
			
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				| पाप-भक्षण					 : | पुं० [ब० स०] काल-भैरव। | 
			
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				| पापभाक् (ज्)					 : | वि० [सं० पाप√भज् (भजना)+ण्वि] पापी। | 
			
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				| पाप-भाव					 : | वि० [ब० स०]=पाप-मति। | 
			
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				| पाप-मति					 : | वि० [ब० स०] जो स्वभावतः पाप-कर्म करता हो। पाप-बुद्धि। पापचेता। | 
			
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				| पाप-मना (नस्)					 : | वि० [ब० स०] जिसके मन में पापपूर्ण विचारों का निवास हो। | 
			
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				| पाप-मित्र					 : | पुं० [कर्म० स०] बुरे कामों में लगाने या बुरी सलाह देनेवाला मित्र। | 
			
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				| पाप-मोचन					 : | पुं० [ष० त०] पापों को दूर या नष्ट करना। | 
			
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				| पाप-मोचनी					 : | स्त्री० [ष० त०] चैत्र कृष्णपक्ष की एकादशी। | 
			
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				| पाप-यक्ष्मा (क्ष्मन्)					 : | पुं० [कर्म० स०] राजयक्ष्मा या क्षय नामक रोग। तपेदिक। | 
			
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				| पाप-योनि					 : | वि० [कर्म० स०] बुरी या हीन योनि में उत्पन्न होनेवाला। जैसे—कीट, पतंग आदि। स्त्री० बुरी या हीन योनि। | 
			
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				| पापर					 : | पुं०=पापड़।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) पुं० [अं० पाँपर] १. कंगाल। २. ऐसा व्यक्ति जिसे अपनी निर्धनता प्रमाणित करने पर दीवानी में बिना रसूम दिये मुकदमा चलाने की अनुमति मिली हो। | 
			
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				| पाप-रोग					 : | पुं० [मध्य० स०] १. वैद्यक में कुछ विशिष्ट भीषण या विकट रोग जो पूर्व जन्मों के पापों के फल-स्वरूप होनेवाले माने गये हैं। जैसे—कोढ़, क्षयरोग, लकवा आदि। २. मसूरिका या वसन्त नामक रोग। छोटी माता। | 
			
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				| पापरोगी (गिन्)					 : | वि० [पाप रोग+इनि] [स्त्री० पापरोगिणी] जिसे कोई पाप-रोग हुआ हो। | 
			
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				| पापर्द्धि					 : | स्त्री० [सं० पाप-ऋद्धि, ब० स०] आखेट। मृगया। शिकार। | 
			
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				| पापल					 : | वि० [सं० पाप√ला (लेना)+क] जो पाप का कारण हो। पाप उत्पन्न करनेवाला। पुं० एक प्रकार की पुरानी नाप या परिणाम। | 
			
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				| पापलेन					 : | पुं० [अं० पाँपलिन] मारकीन की तरह का परन्तु उससे कुछ बढ़िया सूती कपड़ा। | 
			
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				| पाप-लोक					 : | पुं० [ष० त०] [वि० पापलोक्य] १. ऐसा लोक जिसमें पापकर्मों की अधिकता हो। २. नरक, जिसमें पापी लोग पापों का फल भोगने के लिए भेजे जाते हैं। | 
			
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				| पाप-वाद					 : | पुं० [ष० त०] अशुभ या अमांगलिक शब्द। | 
			
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				| पाप-विनाशन					 : | पुं० [ष० त०] पाप-मोचन। | 
			
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				| पाप-शमनी					 : | वि०, स्त्री० [ष० त०] पापों का शमन या नाश करनेवाली। स्त्री० शमी वृक्ष। | 
			
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				| पाप-शील					 : | वि० [ब० स०] [भाव० पापशीलता] जो स्वभावतः पापकर्मों की ओर प्रवृत्त रहता हो। | 
			
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				| पाप-शोधन					 : | पुं० [ष० त०] १. पाप से शुद्ध होने की क्रिया या भाव। पापनिवारण। २. तीर्थ-स्थान। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| पाप-संकल्प					 : | वि० [ब० स०] जिसने पाप करने का पक्का इरादा या संकल्प कर लिया हो। | 
			
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				| पाप-सूदन					 : | पुं० [सं० पाप√सूद् (नष्ट करना)+णिच्+ल्यु—अन] एक प्राचीन तीर्थ। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| पाप-हर					 : | वि० [ष० त०] पापनाशक। पापहारक। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| पापहा (हन्)					 : | वि० [सं० पाप√हन्+क्विप्] पापनाशक। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| पापांकुशा					 : | स्त्री० [पाप-अंकुश, च० त०,+टाप्] आश्विन् शुक्ला एकादशी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| पापांत					 : | पं० [पाप-अंत, ब० स०] पुराणानुसार एक तीर्थ का नाम। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| पापा					 : | स्त्री० [सं० पाप+टाप्] १. बुद्धग्रह की उस समय की गति जब वह हस्त, अनुराधा अथवा ज्येष्ठा नक्षत्र में रहता है। पुं० [देश०] एक प्रकार का छोटा कीड़ा जो ज्वार, बाजरे आदि की फसल में प्रायः अधिक वर्षा के कारण लगता है। पुं० [अनु०] १. पाश्चात्य देशों में बच्चों की एक बोली में एक शब्द जिससे वे बाप को संबोधित करते हैं। बाबा। बाबू। २. प्राचीन काल में बिशप पादरियों और आज-कल केवल यूनानी पादरियों के एक विशेष वर्ग की सम्मान-सूचक उपाधि। | 
			
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				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| पापाख्या					 : | स्त्री० [सं० पाप+आ√ख्या (कहना)+क+टाप्] दे० ‘पापा’ (बुद्ध की गति)। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| पापाचार					 : | वि० [पाप-आचार, ब० स०] पाप कर्म करनेवाला। पापी। पुं० [ष० त०] पापपूर्ण आचरण। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| पापाचारी (रिन्)					 : | वि० [सं० पापाचार+इनि] पापपूर्ण आचरण या कर्म करनेवाला। पापी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| पापात्मा (त्मन्)					 : | वि० [पाप-आत्मन्, ब० स०] जिसकी आत्मा या मन सदा पापकर्मों की ओर रहता हो; अर्थात् बहुत बड़ा पापी। बड़े बड़े पाप करनेवाला। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| पापाधम					 : | पुं० [पाप-अधम, स० त०] पापियों में भी अधम अर्थात् महापापी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| पापानुबंध					 : | पुं० [पाप-अनुबन्ध, ष० त०] पाप का कुफल या दुष्परिणाम। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| पापानुवसित					 : | वि० [पाप-अनुवसित, तृ० त०] १. पापी। २. पापपूर्ण। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| पापापनुत्ति					 : | स्त्री० [पाप-अपनुत्ति, ष० त०] प्रायश्चित्त। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| पापारंभ					 : | वि० [पाप-आरंभ, ब० स०] दुष्कर्म करनेवाला। पापी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| पापारंभक					 : | वि० [पाप-आरंभिक, ष० त०] जो पापकर्म करना चाहता हो। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| पापार्त्त					 : | वि० [पाप-आर्त्त, तृ० त०] जो आपने पाप-कर्मों के फल से बहुत ही दुःखी हो। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| पापाशय					 : | वि० [पाप-आशय, ब० स०] जिसके मन में पाप हो। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| पापाह					 : | पुं० [पाप-अहन्, कर्म० स०, टच्] १. अशौच या सूतक के दिन का समय। २. अशुभ या बुरा दिन। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| पापिष्ठ					 : | वि० [सं० पाप+इष्ठन्] बहुत बड़ा पापी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| पापी (पिन्)					 : | वि० [सं० पाप+इनि] [स्त्री० पापिनी] १. पाप में रत या अनुरक्त। पाप करनेवाला। पातकी। अघी। २. लाक्षणिक और व्यंग्य के रूप में, क्रूर, निर्मोही या निर्दय। जैसे—पिया पापी न जागे, जगाय हारी।—लोकगीत। पुं० वह जो पाप करता हो या जिसने कोई पाप किया हो। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| पापीयस्					 : | वि० [सं० पाप+ईयसुन्] [स्त्री० पापीयसी] पापी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| पापोश					 : | स्त्री० [फा०] जूता। उपानह। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| पापोशकार					 : | पुं० [फा०] [भाव० पापोशकारी] जूते बनानेवाला व्यक्ति। मोची। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| पाप्मा (प्मन्)					 : | वि० [सं०√आप् (व्याप्त करना)+ मनिन्; नि० सिद्धि] पापी। पुं० पाप। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| पापघ्न					 : | वि० [सं० पामन्√हन् (नष्ट करना)+टक्] पामा रोग का नाश करनेवाला। पुं० गंधक। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| पाप					 : | पुं० [सं०√पा (रक्षा करना)+प] [वि० पापी] १. धर्म और नीति के विरुद्ध किया जानेवाला ऐसा निंदनीय आचरण या काम जो इस लोक में भी और पर-लोक में भी सब तरह से बुरा और हानिकारक हो और जिसके फलस्वरूप मनुष्य को नरक भोगना पड़ता हो। ‘पुण्य’ का विपर्याय। गुनाह। विशेष—हमारे यहाँ पाप का क्षेत्र दुष्कर्मों की तुलना में बहुत विस्तृत माना गया है। धर्म-शास्त्रों के अनुसार दुष्कर्म करना तो पाप है ही, उचित और कर्त्तव्य कर्म न करना भी पाप माना गया है। साधारणतः दुष्कर्मों का फल जो इसी लोक में मिलता है; पर पाप के फलस्वरूप मनुष्य को मरने के बाद भी नरक में रहकर उसका दंड भोगना पड़ता है। यह कायिक, मानसिक और वाचिक तीनों प्रकार का माना गया है। पापों के फल-भोग से बचने के लिए शास्त्रों में प्रायश्चित्त का विधान है। पद—पाप की गठरी या मोट=किसी व्यक्ति के जन्म भर के सब पाप। मुहा०—पाप काटना=पापों के दुष्परिणामों या प्रभाव का प्रायश्चित्त करना या दंड-भोग से क्षीण या नष्ट होना। पाप कमाना=ऐसे दुष्कर्म करना जो पाप समझे जाते हों और जितना फल भोगने के लिए नरक में जाना पड़े। पाप काटना=किसी प्रकार पापों के दुष्परिणामों का अंत या नाश करना। पाप बटोरना=दे० ऊपर ‘पाप कमाना’। २. पूर्व जन्म में किये हुए पापों के फलस्वरूप प्राप्त होनेवाली वह बुरी अवस्था जिसमें उन पापों का दंड या बहुत अधिक कष्ट भोगने पड़ते हों। जैसे—ईश्वर करे, हमारे पाप शांत हों। मुहा०—पाप उदय होना=ऐसी बुरी अवस्था या समय आना जब अनेक प्रकार के कष्ट ही कष्ट मिलते हों। दुर्दशा के अथवा बुरे दिन आना। जैसे—न जाने हमारे कब के पापों के उदय हुआ था कि ऐसा नालायक लड़का मिला। पाप पड़ना=ऐसी बुरी स्थिति उत्पन्न होना जिससे बहुत अधिक कष्ट या दुःख भोगना पड़े। उदा०—सीरैं जतननु सिसिर रितु, सहि बिरहिन तनु-ताप। बसिबै कौं ग्रीषम दिननु पर्यो परोसिनि पापु।—बिहारी। ३. ऐसी अवस्था, जिसमें किसी काम का वैसा ही दुष्परिणाम भोगना पड़ता हो जैसा पापपूर्ण कर्म का। जैसे—मैं देखता हूँ कि यहाँ तो सच बोलना भी पाप है। मुहा०—पाप लगना=ऐसी स्थिति आना या होना कि जिसमें मनुष्य पापों के फलभोग का भागी बनता हो। जैसे—पापी के संसर्ग से भी मनुष्य को पाप लगता है। ४. कोई ऐसा काम या बात जिससे मुनष्य को बहुत कष्ट भोगना अथवा दुःखी होना पड़ता हो। जैसे—तुमने तो जान-बूझकर यह मुकदमेबाजी का पाप अपने साथ लगा रखा है। मुहा०—पाप काटना=बहुत बड़ी झंझट या बखेड़ा दूर करना। ५. अपराध। कसूर। ६. बुरी बुद्धि या बुरा विचार। ७. अनिष्ट। अहित। खराबी। ८. दे० ‘पापग्रह’। वि० १. पाप करनेवाला। पापी। २. दुराचारी। ३. कमीना। नीच। ४. दुष्ट। पाजी। ५. अमांगलिक। अशुभ। जैसे—पाप-ग्रह। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| पापक					 : | वि० [सं० पाप+कन्] १. पापा-युक्त। २. पाप करनेवाला। पापी। | 
			
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				| पाप-कर					 : | वि० [ष० त०]=पापी। | 
			
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				| पाप-कर्म (न्)					 : | पुं० [कर्म० स०] धार्मिक दृष्टि से ऐसा बुरा और निंदनीय काम जिसे करने से पाप लगता हो। वि० पाप करनेवाला। पापी। | 
			
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				| पापकर्मी (र्मिन्)					 : | वि० [सं० पापकर्म] [स्त्री० पापकर्मिणी] पाप करनेवाला। पापी। | 
			
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				| पाप-कल्प					 : | वि० [सं० पाप-कल्पप्] पापी। पुं० खोटा और नीच व्यक्ति। | 
			
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				| पाप-क्षय					 : | पुं० [ष० त०] १. ऐसी स्थिति जिसमें किये हुए पापों का फल नहीं भोगना पड़ता। पापों का होनेवाला अंत या क्षय। २. तीर्थ, जहाँ जाने से पापों का क्षय या नाश होता है। | 
			
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				| पाप-गति					 : | वि० [ब० स०] १. जो किये हुए पापों का फल भोग रहा हो। २. अभागा। | 
			
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				| पाप-ग्रह					 : | पुं० [कर्म० स०] मंगल, शनि, केतु, राहु आदि अशुभ ग्रह जिनकी दशा लगने पर लोग दुःख पाते हैं। | 
			
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				| पापघ्न					 : | वि० [सं० पाप√हन् (हिंसा)+टक्] पापों का नाश करनेवाला। पुं० तिल (जिसके दान करने से पापों का क्षय होना माना जाता है)। | 
			
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				| पापघ्नी					 : | स्त्री० [सं० पापघ्न+ङीप्] तुलसी। | 
			
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				| पाप-चंद्रमा					 : | पुं० [सं० कर्म० स०] फलित ज्योतिष के अनुसार विशाखा और अनुराधा नक्षत्रों के दक्षिण भाग में स्थित चन्द्रमा। | 
			
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				| पापचर					 : | वि० [सं० पाप√चर् (गति)+ट] [स्त्री० पापचरा] पापपूर्ण आचरण करनेवाला। पापी। | 
			
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				| पाप-चर्य					 : | पुं० [ब० स०] १. पापी (व्यक्ति)। २. राक्षस। | 
			
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				| पापचारी (रिन्)					 : | वि० [सं० पाप√चर्+णिनि] [स्त्री० पापचारिणी]=पाप-चर्य। | 
			
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				| पाप-चेता (तस्)					 : | वि० [ब० स०] जो स्वभावतः पापपूर्ण आचरण करने की बातें सोचता हो। | 
			
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				| पापचेली					 : | स्त्री० [सं० पाप√चेल्+अच्+ङीष्] पाठा लता। | 
			
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				| पापचैल					 : | पुं० [कर्म० स०] अशुभ या अमंगल सूचक वस्त्र। वि० [ब० स०] जो उक्त प्रकार के वस्त्र पहने हो। | 
			
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				| पाप-जीव					 : | वि० [कर्म० स०] पापी। पुं० पुराणानुसार स्त्री, शूद्र, हूण और शवर आदि जीव जिनका संसर्ग कष्टदायक कहा गया है। | 
			
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				| पापड़					 : | पुं० [सं० पर्पट, प्रा० पप्पड़] उर्द, मूँग आदि दालों, मैदे, चौरेठे आदि अन्नों अथला आलू की बनी हुई एक तरह की मसालेदार पतली चपाती जिसे तल या भूनकर भोजन आदि के साथ खाया जाता है। मुहा०—पापड़ बेलना=(क) कोई काम इस रूप में करना कि वह बिगड़ जाय। (ख) किसी प्रयोजन की सिद्धि के लिए तरह-तरह के और कष्टसाध्य काम करना। (प्रायः ऐसा कामों से सिद्धि नहीं होती)। जैसे—आप सब पापड़ बेल कर बैठे हैं। वि० १. पापड़ की तरह पतला या महीन। २. पापड़ की तरह सूखा और भुरभुरा। | 
			
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				| पापड़ा					 : | पुं० [सं० पर्पट] १. छोटे आकार का एक पेड़ जो मध्य-प्रदेश बंगाल, मद्रास आदि में उत्पन्न होता है। इसकी लकड़ी से कंघियाँ और खराद की चीजें बनाई जाती हैं। २. दे० ‘पित्त-पापड़ा’। | 
			
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				| पापड़ा-खार					 : | पुं० [सं० पर्पटक्षार] केले के पेड़ को जलाकर तैयार किया हुआ क्षार। | 
			
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				| पापड़ी					 : | स्त्री० [हिं० पापड़ा] एक प्रकार का पेड़ जो मध्यप्रदेश, पंजाब और मदरास में बहुत होता है। | 
			
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				| पापदर्शी (र्शिन्)					 : | वि० [सं० पाप√दृश् (देखना)+णिनि] पापपूर्ण दृष्टि से देखनेवाला। बुरी निगाहवाला। | 
			
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				| पाप-दृष्टि					 : | वि० [ब० स०] १. जिसकी दृष्टि पापमय हो। २. अमंगलकारिणी या अशुभ दृष्टिवाला। स्त्री० पाप-पूर्ण दृष्टि। | 
			
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				| पाप-धी					 : | वि० [ब० स०] जिसकी बुद्धि पापमय या पापासक्त हो। पापकर्मों में मन लगानेवाला। पापमति। पापचेता। | 
			
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				| पाप-नक्षत्र					 : | पुं० [कर्म० स०] फलित ज्योतिष में, ज्येष्ठा आदि कुछ नक्षत्र जो अनिष्टकारक या बुरे माने गये हैं। | 
			
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				| पाप-नामा (मन्)					 : | वि० [ब० स०] १. अशुभ नामवाला। २. जिसकी सब जगह निंदा या बदनामी होती हो। बदनाम। | 
			
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				| पाप-नाशक					 : | वि० [ष० त०] पापों का नाश करनेवाला। | 
			
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				| पाप-नाशन					 : | वि० [ष० त०] पाप का नाश करनेवाला। पापनाशी। पुं० १. प्रायश्चित्त जिससे पाप नष्ट होते हैं। २. विष्णु। ३. शिव। | 
			
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				| पाप-नाशिनी					 : | स्त्री० [सं० पापनाशिन्+ङीष्] १. शमी वृक्ष। २. काली तुलसी। | 
			
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				| पापनाशी (शिन्)					 : | वि० [सं० पाप√नश् (नष्ट होना)+ णिच्+णिनि] [स्त्री० पापनाशिनी] पापों का नाश करनेवाला। | 
			
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				| पाप-निश्चय					 : | वि० [ब० स०] जिसने पाप करने का निश्चय कर लिया हो। खोटा काम करने को तैयार। पाप करने को कृतसंकल्प। | 
			
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				| पाप-पति					 : | पुं० [कर्म० स०] स्त्री का उपपति या यार। | 
			
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				| पाप-पुरुष					 : | पुं० [कर्म० स० या मध्य० स०] १. पापी प्रकृतिवाला पुरुष। दुष्ट। २. तंत्र में कल्पित पुरुष जिसका सारा शरीर पाप या पापों से ही बना हुआ माना जाता है। ३. पद्म पुराण के अनुसार ईश्वर द्वारा सारे संसार के दमन के उद्देश्य से रचा हुआ पापमय पुरुष। | 
			
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				| पाप-फल					 : | वि० [ब० स०] (कर्म) जिसका परिणाम बुरा हो और जिसे करने पर पाप लगता हो। | 
			
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				| पाप-बुद्धि					 : | वि० [ब० स०] जिसकी बुद्धि-सदा पापकर्मों की ओर रहती हो। | 
			
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				| पाप-भक्षण					 : | पुं० [ब० स०] काल-भैरव। | 
			
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				| पापभाक् (ज्)					 : | वि० [सं० पाप√भज् (भजना)+ण्वि] पापी। | 
			
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				| पाप-भाव					 : | वि० [ब० स०]=पाप-मति। | 
			
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				| पाप-मति					 : | वि० [ब० स०] जो स्वभावतः पाप-कर्म करता हो। पाप-बुद्धि। पापचेता। | 
			
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				| पाप-मना (नस्)					 : | वि० [ब० स०] जिसके मन में पापपूर्ण विचारों का निवास हो। | 
			
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				| पाप-मित्र					 : | पुं० [कर्म० स०] बुरे कामों में लगाने या बुरी सलाह देनेवाला मित्र। | 
			
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				| पाप-मोचन					 : | पुं० [ष० त०] पापों को दूर या नष्ट करना। | 
			
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				| पाप-मोचनी					 : | स्त्री० [ष० त०] चैत्र कृष्णपक्ष की एकादशी। | 
			
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				| पाप-यक्ष्मा (क्ष्मन्)					 : | पुं० [कर्म० स०] राजयक्ष्मा या क्षय नामक रोग। तपेदिक। | 
			
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				| पाप-योनि					 : | वि० [कर्म० स०] बुरी या हीन योनि में उत्पन्न होनेवाला। जैसे—कीट, पतंग आदि। स्त्री० बुरी या हीन योनि। | 
			
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				| पापर					 : | पुं०=पापड़।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) पुं० [अं० पाँपर] १. कंगाल। २. ऐसा व्यक्ति जिसे अपनी निर्धनता प्रमाणित करने पर दीवानी में बिना रसूम दिये मुकदमा चलाने की अनुमति मिली हो। | 
			
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				| पाप-रोग					 : | पुं० [मध्य० स०] १. वैद्यक में कुछ विशिष्ट भीषण या विकट रोग जो पूर्व जन्मों के पापों के फल-स्वरूप होनेवाले माने गये हैं। जैसे—कोढ़, क्षयरोग, लकवा आदि। २. मसूरिका या वसन्त नामक रोग। छोटी माता। | 
			
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				| पापरोगी (गिन्)					 : | वि० [पाप रोग+इनि] [स्त्री० पापरोगिणी] जिसे कोई पाप-रोग हुआ हो। | 
			
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				| पापर्द्धि					 : | स्त्री० [सं० पाप-ऋद्धि, ब० स०] आखेट। मृगया। शिकार। | 
			
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				| पापल					 : | वि० [सं० पाप√ला (लेना)+क] जो पाप का कारण हो। पाप उत्पन्न करनेवाला। पुं० एक प्रकार की पुरानी नाप या परिणाम। | 
			
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				| पापलेन					 : | पुं० [अं० पाँपलिन] मारकीन की तरह का परन्तु उससे कुछ बढ़िया सूती कपड़ा। | 
			
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				| पाप-लोक					 : | पुं० [ष० त०] [वि० पापलोक्य] १. ऐसा लोक जिसमें पापकर्मों की अधिकता हो। २. नरक, जिसमें पापी लोग पापों का फल भोगने के लिए भेजे जाते हैं। | 
			
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				| पाप-वाद					 : | पुं० [ष० त०] अशुभ या अमांगलिक शब्द। | 
			
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				| पाप-विनाशन					 : | पुं० [ष० त०] पाप-मोचन। | 
			
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				| पाप-शमनी					 : | वि०, स्त्री० [ष० त०] पापों का शमन या नाश करनेवाली। स्त्री० शमी वृक्ष। | 
			
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				| पाप-शील					 : | वि० [ब० स०] [भाव० पापशीलता] जो स्वभावतः पापकर्मों की ओर प्रवृत्त रहता हो। | 
			
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				| पाप-शोधन					 : | पुं० [ष० त०] १. पाप से शुद्ध होने की क्रिया या भाव। पापनिवारण। २. तीर्थ-स्थान। | 
			
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				| पाप-संकल्प					 : | वि० [ब० स०] जिसने पाप करने का पक्का इरादा या संकल्प कर लिया हो। | 
			
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				| पाप-सूदन					 : | पुं० [सं० पाप√सूद् (नष्ट करना)+णिच्+ल्यु—अन] एक प्राचीन तीर्थ। | 
			
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				| पाप-हर					 : | वि० [ष० त०] पापनाशक। पापहारक। | 
			
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				| पापहा (हन्)					 : | वि० [सं० पाप√हन्+क्विप्] पापनाशक। | 
			
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				| पापांकुशा					 : | स्त्री० [पाप-अंकुश, च० त०,+टाप्] आश्विन् शुक्ला एकादशी। | 
			
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				| पापांत					 : | पं० [पाप-अंत, ब० स०] पुराणानुसार एक तीर्थ का नाम। | 
			
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				| पापा					 : | स्त्री० [सं० पाप+टाप्] १. बुद्धग्रह की उस समय की गति जब वह हस्त, अनुराधा अथवा ज्येष्ठा नक्षत्र में रहता है। पुं० [देश०] एक प्रकार का छोटा कीड़ा जो ज्वार, बाजरे आदि की फसल में प्रायः अधिक वर्षा के कारण लगता है। पुं० [अनु०] १. पाश्चात्य देशों में बच्चों की एक बोली में एक शब्द जिससे वे बाप को संबोधित करते हैं। बाबा। बाबू। २. प्राचीन काल में बिशप पादरियों और आज-कल केवल यूनानी पादरियों के एक विशेष वर्ग की सम्मान-सूचक उपाधि। | 
			
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				| पापाख्या					 : | स्त्री० [सं० पाप+आ√ख्या (कहना)+क+टाप्] दे० ‘पापा’ (बुद्ध की गति)। | 
			
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				| पापाचार					 : | वि० [पाप-आचार, ब० स०] पाप कर्म करनेवाला। पापी। पुं० [ष० त०] पापपूर्ण आचरण। | 
			
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				| पापाचारी (रिन्)					 : | वि० [सं० पापाचार+इनि] पापपूर्ण आचरण या कर्म करनेवाला। पापी। | 
			
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				| पापात्मा (त्मन्)					 : | वि० [पाप-आत्मन्, ब० स०] जिसकी आत्मा या मन सदा पापकर्मों की ओर रहता हो; अर्थात् बहुत बड़ा पापी। बड़े बड़े पाप करनेवाला। | 
			
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				| पापाधम					 : | पुं० [पाप-अधम, स० त०] पापियों में भी अधम अर्थात् महापापी। | 
			
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				| पापानुबंध					 : | पुं० [पाप-अनुबन्ध, ष० त०] पाप का कुफल या दुष्परिणाम। | 
			
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				| पापानुवसित					 : | वि० [पाप-अनुवसित, तृ० त०] १. पापी। २. पापपूर्ण। | 
			
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				| पापापनुत्ति					 : | स्त्री० [पाप-अपनुत्ति, ष० त०] प्रायश्चित्त। | 
			
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				| पापारंभ					 : | वि० [पाप-आरंभ, ब० स०] दुष्कर्म करनेवाला। पापी। | 
			
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				| पापारंभक					 : | वि० [पाप-आरंभिक, ष० त०] जो पापकर्म करना चाहता हो। | 
			
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				| पापार्त्त					 : | वि० [पाप-आर्त्त, तृ० त०] जो आपने पाप-कर्मों के फल से बहुत ही दुःखी हो। | 
			
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				| पापाशय					 : | वि० [पाप-आशय, ब० स०] जिसके मन में पाप हो। | 
			
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				| पापाह					 : | पुं० [पाप-अहन्, कर्म० स०, टच्] १. अशौच या सूतक के दिन का समय। २. अशुभ या बुरा दिन। | 
			
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				| पापिष्ठ					 : | वि० [सं० पाप+इष्ठन्] बहुत बड़ा पापी। | 
			
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				| पापी (पिन्)					 : | वि० [सं० पाप+इनि] [स्त्री० पापिनी] १. पाप में रत या अनुरक्त। पाप करनेवाला। पातकी। अघी। २. लाक्षणिक और व्यंग्य के रूप में, क्रूर, निर्मोही या निर्दय। जैसे—पिया पापी न जागे, जगाय हारी।—लोकगीत। पुं० वह जो पाप करता हो या जिसने कोई पाप किया हो। | 
			
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				| पापीयस्					 : | वि० [सं० पाप+ईयसुन्] [स्त्री० पापीयसी] पापी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| पापोश					 : | स्त्री० [फा०] जूता। उपानह। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| पापोशकार					 : | पुं० [फा०] [भाव० पापोशकारी] जूते बनानेवाला व्यक्ति। मोची। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| पाप्मा (प्मन्)					 : | वि० [सं०√आप् (व्याप्त करना)+ मनिन्; नि० सिद्धि] पापी। पुं० पाप। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| पापघ्न					 : | वि० [सं० पामन्√हन् (नष्ट करना)+टक्] पामा रोग का नाश करनेवाला। पुं० गंधक। | 
			
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