शब्द का अर्थ
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पाश :
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पुं० [सं०√पश् (बाँधना)+घञ्] १. वह चीज जिससे किसी को फँसाया या बाँधा जाय। जैसे—जंजीर, रस्सी आदि। २. रस्सी से बनाया जानेवाला वह घेरा जिसमें गागर आदि को फँसाकर कूएँ में लटकाया जाता है। ३. पशु-पक्षियों को फँसाकर पकड़ने का जाल। ४. बंधन। ५. समस्त पदों के अंत में (क) सुन्दरता और सजावट के लिए अच्छी तरह बाँधकर तैयार किया हुआ रूप। जैसे—कर्णपाश। (ख) अधिकता और बाहुल्य। जैसे—केश-पाश। ५. वरुण देवता का अस्त्र जो फंदे के रूप में माना गया है। ६. दे० ‘फाँस’। प्रत्य० [फा०] छिड़कनेवाला। जैसे—गुलाब पाश। पुं० किसी चीज का अंश या खंड। टुकड़ा। पद—पाश-नाश। (देखें) |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
पाश-कंठ :
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वि० [सं० ब० स०] जिसके गले में फाXस या बंधन पड़ा हो। |
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समानार्थी शब्द-
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पाशक :
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पुं० [सं० √पश+णिच्+ण्वुल्—अक] १. जाल। फंदा। २. चौपड़ खेलने का पाशा। |
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समानार्थी शब्द-
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पाश-क्रीड़ा :
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स्त्री० [तृ० त०] जूआ। द्यूत। |
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समानार्थी शब्द-
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पाशOर :
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पुं० [ष० त०] वरुण देवता। (जिनका अस्त्र पाश है)। |
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पाशन :
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पुं० [सं०√पश+णिच्+ल्युट्—अन] १. रस्सी। २. बंधन। |
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समानार्थी शब्द-
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पाश-पाश :
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अव्य० [फा०] टुकड़े-टुकड़े। चूर-चूर। |
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पाश-पीठ :
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पुं० [ष० त०] बिसात (चौसर खेलने की)। |
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समानार्थी शब्द-
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पाश-बंध :
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पुं० [स० त०] फंदा। |
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पाश-बंधक :
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पुं० [सं०] बहेलिया। चिड़ीमार। |
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पाश-बंधन :
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पुं० [स० त०] १. जाल। २. फंदा। |
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पाश-बद्ध :
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भू० कृ० [स० त०] जाल या फंदे में फँसा हुआ। |
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पाश-भृत् :
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पुं० [सं पाश√भृ (धारण)+क्विप्, तुक्] वरुण (देवता)। |
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पाश-मुद्रा :
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स्त्री० [मध्य० स०] हाथ की तर्जनी और अंगूठे के सिरों को सटाकर बनाई जानेवाली एक तरह की मुद्रा। (तंत्र) |
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पाशव :
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वि० [सं० पशु+अण्] १. पशु-संबंधी। पशुओं का। २. पशुओं की तरह का। पशुओं का-सा। जैसे—पाशव आचरण। पुं० पशुओं का झुंड। |
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पाशवता :
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स्त्री०=पशुता। उदा०—प्रेम शक्ति से चिर निरस्त्र हो जावेगी पाशवता।—पंत। |
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पाशवान् (वत्) :
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वि० [सं० पाश+मतुप्, वत्व] [स्त्री० पाशवती] जिसके पास पाश या फंदा हो। पाशवाला। पशधारी। पुं० वरुण (देवता)। |
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पाशवासन :
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पुं० सं० पाशव—आसन कर्म० स०] एक प्रकार का आसन या बैठने की मुद्रा। |
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पाशविक :
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वि० [पशु+ठञ्—इक] १. पशुओं की तरह का। ३. (आचरण) जो पशुओं के आचरण जैसे हो। |
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पाश-हस्त :
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पुं० [ब० स०] १. वरुण। २. यम। |
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पाशांत :
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पुं० [सं०=पार्श्व-अन्त, पृषो० सिद्धि] सिले हुए कपड़े का पीठ की ओर पड़नेवाला अंश। |
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पाशा :
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पुं० [तु०] तुर्किस्तान में बड़े बड़े अधिकारियों और सरदारों को दी जानेवाली उपाधि। |
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पाशिक :
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पुं० [सं० पाश+ठक्—इक] चिड़ीमार। बहेलिया। |
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पाशित :
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भू० कृ० [सं० पाश+णिच्+क्त] पाश में या पाश से बँधा हुआ। पाशबद्ध। |
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पाशी (शिन्) :
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वि० [सं० पाश+इनि] १. जो अपने पास पाश या फंदा पखता हो। पाशवाला। पुं० १. वरुण देवता। २. यम। ३. बहेलिया। ४. अपराधियों के गले में फँदा या फाँसी लगाकर उन्हें प्राण-दंड देनेवाला व्यक्ति, जो पहले प्रायः चांडाल हुआ करता था। स्त्री० [फा०] १. जल या तरल पदार्थ छिड़कने की क्रिया या भाव। जैसे—गुलाब-पाशी। २. खेत आदि को जल से सींचने की क्रिया। जैसे—आब-पाशी। |
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पाशुपत :
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वि० [सं० पशुपति-अण्] १. पशुपति-संबंधी। पशुपति या शिव का। पुं० १. पशुपति या शिव के उपासक एक प्रकार के शैव। २. एक तंत्र शास्त्र जो शिव का कहा हुआ माना जाता है। ३. अथर्ववेद का एक उपनिषद्। ४. अगस्त का फूल। |
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पाशुपत-दर्शन :
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पुं० [कर्म० स०] एक प्राचीन दर्शन जिसमें पशुपति, पाशु और पशु इन तीन सत्ताओं को मुख्य माना गया था और जिसमें पशु के पाश से मुक्त होने के उपाय बतलाये गये हैं। |
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पाशुपत-रस :
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पुं० [कर्म० स०] वैद्यक में एक प्रकार का रसौषध। |
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पाशुपतास्त्र :
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[पाशुपत-अस्त्र, कर्म० स०] शिव का एक भीषण शूलास्त्र जिसे अर्जुन ने तपस्या करके प्राप्त किया था। |
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पाशुपाल्य :
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पुं० [सं० पशुपाल+ष्यञ्] पशुपालन। |
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पाशु-बंधक :
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पुं० [सं० पशुबंध+ठक्—क] यज्ञ में वह स्थान जहाँ बलि पशु बाँधा जाता था। |
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पाश्चात्य :
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वि० [सं० पश्चात्+त्यक्] १. पीछे का। पिछला। २. पीछे होनेवाला। ३. पश्चिम दिशा का। ४. पश्चिमी महादेश में होने अथवा उससे संबंध रखनेवाला। पौरस्य का विपर्याय। जैसे—पाश्चात्य दर्शन, पाश्चात्य साहित्य। |
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पाश्चात्यीकरण :
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पुं० [सं० पाशचात्य+च्वि, ईत्व√कृ+ल्युट्—अन] किसी देश या जाति को पाश्चात्य सभ्यता के साँचे में ढालना या पाश्चात्य ढंग का बनाना। (वेस्टर्नाइज़ेशन) |
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पाश्या :
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स्त्री० [सं० पाश+यत्+टाप्] पाश। जाल। |
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पाशु :
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पुं०=पाश।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) अव्य०=पास। |
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पाश :
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पुं० [सं०√पश् (बाँधना)+घञ्] १. वह चीज जिससे किसी को फँसाया या बाँधा जाय। जैसे—जंजीर, रस्सी आदि। २. रस्सी से बनाया जानेवाला वह घेरा जिसमें गागर आदि को फँसाकर कूएँ में लटकाया जाता है। ३. पशु-पक्षियों को फँसाकर पकड़ने का जाल। ४. बंधन। ५. समस्त पदों के अंत में (क) सुन्दरता और सजावट के लिए अच्छी तरह बाँधकर तैयार किया हुआ रूप। जैसे—कर्णपाश। (ख) अधिकता और बाहुल्य। जैसे—केश-पाश। ५. वरुण देवता का अस्त्र जो फंदे के रूप में माना गया है। ६. दे० ‘फाँस’। प्रत्य० [फा०] छिड़कनेवाला। जैसे—गुलाब पाश। पुं० किसी चीज का अंश या खंड। टुकड़ा। पद—पाश-नाश। (देखें) |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
पाश-कंठ :
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वि० [सं० ब० स०] जिसके गले में फाXस या बंधन पड़ा हो। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
पाशक :
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पुं० [सं० √पश+णिच्+ण्वुल्—अक] १. जाल। फंदा। २. चौपड़ खेलने का पाशा। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
पाश-क्रीड़ा :
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स्त्री० [तृ० त०] जूआ। द्यूत। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
पाशOर :
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पुं० [ष० त०] वरुण देवता। (जिनका अस्त्र पाश है)। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
पाशन :
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पुं० [सं०√पश+णिच्+ल्युट्—अन] १. रस्सी। २. बंधन। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
पाश-पाश :
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अव्य० [फा०] टुकड़े-टुकड़े। चूर-चूर। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
पाश-पीठ :
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पुं० [ष० त०] बिसात (चौसर खेलने की)। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
पाश-बंध :
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पुं० [स० त०] फंदा। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
पाश-बंधक :
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पुं० [सं०] बहेलिया। चिड़ीमार। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
पाश-बंधन :
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पुं० [स० त०] १. जाल। २. फंदा। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
पाश-बद्ध :
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भू० कृ० [स० त०] जाल या फंदे में फँसा हुआ। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
पाश-भृत् :
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पुं० [सं पाश√भृ (धारण)+क्विप्, तुक्] वरुण (देवता)। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
पाश-मुद्रा :
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स्त्री० [मध्य० स०] हाथ की तर्जनी और अंगूठे के सिरों को सटाकर बनाई जानेवाली एक तरह की मुद्रा। (तंत्र) |
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पाशव :
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वि० [सं० पशु+अण्] १. पशु-संबंधी। पशुओं का। २. पशुओं की तरह का। पशुओं का-सा। जैसे—पाशव आचरण। पुं० पशुओं का झुंड। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
पाशवता :
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स्त्री०=पशुता। उदा०—प्रेम शक्ति से चिर निरस्त्र हो जावेगी पाशवता।—पंत। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
पाशवान् (वत्) :
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वि० [सं० पाश+मतुप्, वत्व] [स्त्री० पाशवती] जिसके पास पाश या फंदा हो। पाशवाला। पशधारी। पुं० वरुण (देवता)। |
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उपलब्ध नहीं |
पाशवासन :
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पुं० सं० पाशव—आसन कर्म० स०] एक प्रकार का आसन या बैठने की मुद्रा। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
पाशविक :
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वि० [पशु+ठञ्—इक] १. पशुओं की तरह का। ३. (आचरण) जो पशुओं के आचरण जैसे हो। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
पाश-हस्त :
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पुं० [ब० स०] १. वरुण। २. यम। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
पाशांत :
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पुं० [सं०=पार्श्व-अन्त, पृषो० सिद्धि] सिले हुए कपड़े का पीठ की ओर पड़नेवाला अंश। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
पाशा :
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पुं० [तु०] तुर्किस्तान में बड़े बड़े अधिकारियों और सरदारों को दी जानेवाली उपाधि। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
पाशिक :
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पुं० [सं० पाश+ठक्—इक] चिड़ीमार। बहेलिया। |
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समानार्थी शब्द-
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पाशित :
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भू० कृ० [सं० पाश+णिच्+क्त] पाश में या पाश से बँधा हुआ। पाशबद्ध। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
पाशी (शिन्) :
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वि० [सं० पाश+इनि] १. जो अपने पास पाश या फंदा पखता हो। पाशवाला। पुं० १. वरुण देवता। २. यम। ३. बहेलिया। ४. अपराधियों के गले में फँदा या फाँसी लगाकर उन्हें प्राण-दंड देनेवाला व्यक्ति, जो पहले प्रायः चांडाल हुआ करता था। स्त्री० [फा०] १. जल या तरल पदार्थ छिड़कने की क्रिया या भाव। जैसे—गुलाब-पाशी। २. खेत आदि को जल से सींचने की क्रिया। जैसे—आब-पाशी। |
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उपलब्ध नहीं |
पाशुपत :
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वि० [सं० पशुपति-अण्] १. पशुपति-संबंधी। पशुपति या शिव का। पुं० १. पशुपति या शिव के उपासक एक प्रकार के शैव। २. एक तंत्र शास्त्र जो शिव का कहा हुआ माना जाता है। ३. अथर्ववेद का एक उपनिषद्। ४. अगस्त का फूल। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
पाशुपत-दर्शन :
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पुं० [कर्म० स०] एक प्राचीन दर्शन जिसमें पशुपति, पाशु और पशु इन तीन सत्ताओं को मुख्य माना गया था और जिसमें पशु के पाश से मुक्त होने के उपाय बतलाये गये हैं। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
पाशुपत-रस :
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पुं० [कर्म० स०] वैद्यक में एक प्रकार का रसौषध। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
पाशुपतास्त्र :
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[पाशुपत-अस्त्र, कर्म० स०] शिव का एक भीषण शूलास्त्र जिसे अर्जुन ने तपस्या करके प्राप्त किया था। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
पाशुपाल्य :
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पुं० [सं० पशुपाल+ष्यञ्] पशुपालन। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
पाशु-बंधक :
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पुं० [सं० पशुबंध+ठक्—क] यज्ञ में वह स्थान जहाँ बलि पशु बाँधा जाता था। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
पाश्चात्य :
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वि० [सं० पश्चात्+त्यक्] १. पीछे का। पिछला। २. पीछे होनेवाला। ३. पश्चिम दिशा का। ४. पश्चिमी महादेश में होने अथवा उससे संबंध रखनेवाला। पौरस्य का विपर्याय। जैसे—पाश्चात्य दर्शन, पाश्चात्य साहित्य। |
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पाश्चात्यीकरण :
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पुं० [सं० पाशचात्य+च्वि, ईत्व√कृ+ल्युट्—अन] किसी देश या जाति को पाश्चात्य सभ्यता के साँचे में ढालना या पाश्चात्य ढंग का बनाना। (वेस्टर्नाइज़ेशन) |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
पाश्या :
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स्त्री० [सं० पाश+यत्+टाप्] पाश। जाल। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
पाशु :
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पुं०=पाश।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) अव्य०=पास। |
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समानार्थी शब्द-
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