| शब्द का अर्थ | 
					
				| बंक					 : | वि० [सं० वक्र, वंक] १. टेढ़ा। तिरछा। २. जिसमें पुरुषार्थ और विक्रम हो। ३. दुर्गम। ४. विकट। पुं० दे० ‘बाँकरा’। पुं० अस्थि। हड्डी। उदाहरण—मचक्कहिं रीढंक बंक अमाप।—कविराज सूर्यमल। पुं० [अं० बैक] वह महाजनी संस्था जो मुख्य रूप से सूद पर रुपयों के लेन-देन का काम करती हो। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| बंकर					 : | वि० [सं० बंक] १. वंक। टेढ़ा। २. तीव्र। ३. विकट। पुं० [सं० व्यंकट] हनुमान। | 
			
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				| बंकनाल					 : | स्त्री० [हिं० बंक+नाल] १. सुनारों की एक नली जो बहुत बारीक टुकड़ों की जोड़ाई करने के समय चिराग की लौ फूँकने के काम आती है। बगनहा। २. कोई टेढ़ी पतली नली। ३. हठयोग में शंखिनी नाड़ी का एक नाम। | 
			
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				| बंकराज					 : | पुं० [हिं० बंक+राज] एक प्रकार का साँप। | 
			
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				| बंकवा					 : | पुं० [सं० बंक] एक तरह का बढ़िया अगहनिया धान। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| बंकसाल					 : | पुं० [देश] जहाज का वह बड़ा कमरा जिसमें मस्तूलों पर चढ़ायी जानेवाली रस्सियाँ या जंजीरें ठीक करके रखी जाती है। | 
			
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				| बंका					 : | वि० [सं० वंक] [भाव० बंकाई] १. टेढ़ा। तिरछा। २. दुर्गम। ३. विकट। ४. पराक्रमी। ५. बाँका। | 
			
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				| बंकाई					 : | स्त्री० [हिं० बंक+आई (प्रत्यय)] टेढ़ापन। तिरछापन। वक्रता। | 
			
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				| बंकी					 : | स्त्री०=बाँक। | 
			
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				| बंकुर					 : | वि० [भाव० बंकुरता]=बंक (वक्र)। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| बंकुरा					 : | वि०=बंक। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| बँकैअन					 : | अव्य० , पुं०=बकैयाँ। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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