| शब्द का अर्थ | 
					
				| रंद					 : | पुं० [सं० रंघ्र] १. झरोखा। रोशनदान। २. किले की दीवार में वह मोखा या झरोखा जिसमें से बाहर गोले फेंके जाते थे। स्त्री० [हिं० रँदना या फा० ] वह छीलन जो लकड़ी को रँदने पर निकलती है। | 
			
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				| रँदना					 : | स० [हिं० रंदा+ना (प्रत्यय)] १. रंदे से छीलकर लकड़ी की सतह चिकनी और समतल करना। २. छीलना। तराशना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| रंदा					 : | पुं० [सं० रंदन=काटना, चीरना मि० फा० रंद] बढ़इयों का एक औजार जिससे वे लकड़ी की सतह छीलकर चिकनी और समतल करते हैं। | 
			
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