| शब्द का अर्थ | 
					
				| शून्य					 : | वि० [सं० शूना+यत्०] [भाव० शून्यता] १. जिसमें कुछ न हो। खाली। जैसे—शून्यगर्भ। २. जिसका कोई आकार या रूप न हो। निराकार। ३. जिसका अस्तित्व न हो। ४. जो वास्तविक न हो। असत्। ५. समस्त पदों के अन्त में, रहित। जैसे—ज्ञानशून्य। पुं० १. खाली स्थान। अवकाश। २. आकाश। ३. एकांत स्थान। ४. गणित में अभाव सूचक चिन्ह। ५. बिंदु। बिंदी। ६. अभाव। ७. विष्णु। ८. स्वर्ग। ९. ईश्वर। परमात्मा। १॰. विज्ञान में ऐसा अवकाश जिसमें वायु भी न हो। | 
			
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				| शून्य-गर्भ					 : | वि० [सं० ब० स०] १. जिसके गर्भ में कुछ न हो। २. मूर्ख। ३. निस्सार। पुं० पपीता। | 
			
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				| शून्य-चक्र					 : | पुं० [सं० मध्य० स०] हठ योग में सहस्रार चक्र का एक नाम (नाथ-पंथी)। | 
			
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				| शून्यता					 : | स्त्री० [सं० शून्य+तल्-टाप्] १. शून्य होने की अवस्था या भाव। २. अभाव। | 
			
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				| शून्यत्व					 : | पुं० [सं० शून्य+त्व] शून्यता। | 
			
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				| शून्य-दृष्टि					 : | स्त्री० [सं० कर्म० स०] ऐसी दृष्टि जिससे सूचित होता हो कि मन में नाम को भी कोई भाव नहीं है। | 
			
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				| शून्यपथ					 : | पुं० [सं० कर्म० ब० स० वा] आकाश। | 
			
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				| शून्यपाल					 : | पुं० [सं० शून्य√पाल् (पालन करना)+णिच-अच्] १. प्राचीन काल में वह व्यक्ति जो राजा की अविद्यमानता, असमर्थता या अल्पवयस्कता के कारण अस्थायी रूप से राज्य का प्रधान बनाया जाता था। २. स्थानापन्न अधिकारी। | 
			
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				| शून्य-बहरी					 : | स्त्री० [सं०] सोन बहरी। (रोग) | 
			
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				| शून्य-मंडल					 : | पुं० [सं० कर्म० स०] हठ योग में सहस्रार चक्र का एक नाम। | 
			
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				| शून्य-मध्य					 : | वि० [सं० ब० स०] जिसके मध्य में शून्य या अवकाश हो। | 
			
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				| शून्य-मनस्क					 : | वि० [सं० ब० स०-कप्] अन्यमनस्क। | 
			
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				| शून्य-मूल					 : | पुं० [सं० ब० स०] १. प्राचीन भारत में सेना की एक प्रकार की व्यूह-रचना। २. ऐसी सेना जिसका वह केन्द्र नष्ट हो गया हो जहाँ से सिपाही आते रहे हों। (कौ०) | 
			
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				| शून्यवाद					 : | पुं० [सं० शून्य√वद्+घञ्] [वि० शून्यवादी] बौद्धों की महायान शाखा माध्यमिक नामक विभाग का मत या सिद्धान्त जिसमें संसार को शून्य और उसके सब पदार्थों को सत्ताहीन माना जाता है (विज्ञानवाद से भिन्न)। | 
			
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				| शून्यवादी (दिन्)					 : | पुं० [सं० शून्य√वद्+णिनि] १. शून्यवाद का अनुयायी। २. बौद्ध। ३. नास्तिक वि० शून्यवाद-संबंधी। | 
			
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				| शून्यहर					 : | पुं० [सं० शून्य√हृ (हरण करना)अच्] १. प्रकाश।। उजाला। २. सोना। स्वर्ण। | 
			
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				| शून्य-हृदय					 : | वि० [सं० ब० स०] १. अनवधान। २. खुले दिलवाला। | 
			
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				| शून्या					 : | स्त्री० [सं० शून्य+अच्—टाप्] १. नलिका या नली नाम का गंध द्रव्य। २. बाँझ स्त्री। ३. थूहड़। | 
			
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				| शून्यालय					 : | स्त्री० [सं० कर्म० स०] एकांत स्थान। | 
			
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				| शून्यावस्था					 : | स्त्री० [सं० कर्म० स०] नाथ-पंथ में वह अवस्था जिसमें आत्मा सून्य चक्र या सहस्रार में पहुँचकर सब द्वन्द्वों से मुक्त हो जाती है। | 
			
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				| शून्याशून्य					 : | पुं० [सं० ब० स०] जीवमुक्ति। | 
			
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