| शब्द का अर्थ | 
					
				| शोषण					 : | पुं० [सं०√शुष् (शोकना)+ल्युट्—अन] [वि० शोषी, शोषनीय] १. एक पदार्थ का किसी दूसरे पदार्थ में से उसका जलीय या तरल अंश धीरे धीरे खींचकर अपने अन्दर करना या लेना। सोखना। (ऐब्जार्पशन) २. सुखाना। ३. किसी चीज की ताजगी या हरापन धीरे धीरे कम यो दूर करना। ४. परोक्ष उपायों से किसी की कमाई या धन धीरे धीरे अपने हाथ में करना। (एक्सप्लाएटेशन) ५. न रहने देना। दूर करना। ६. क्षीण या दुबला करना। ७. कामदेव के पाँच बाणों में से एक जो मनुष्य को चिंतित करके उसका रक्त शोखनेवाला कहा गया है। ८. सोंठ। ९. सोना पाढ़ा। १॰. पिप्पली। | 
			
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				| शोषणीय					 : | वि० [सं०√शुष् (सोखना)+अनीयर्] जिसका शोषण हो सके या होने को हो। | 
			
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