शब्द का अर्थ
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संगी :
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पुं० [सं० संग+हि० ई (प्रत्यय)] [स्त्री० संगिनी] १. वह जो सदा या प्रायः संग रहता हो। साथी। २. दोस्त। मित्र। स्त्री० [देश] एक प्रकार का रेशमी कपड़ा। वि० [फा० संग=पत्थर] पत्थर का। |
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संगीत :
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पुं० [सं० सम्√ गै (गाना)+क्त] मधुर ध्वनियों या स्वरों का कुछ विशिष्ट नियमों के अनुसार और कुछ विशिष्ट लय में होनेवाला प्रस्फुटन। यह दो प्रकार का होता है—(क) कंठ्य संगीत और (ख) वाद्य संगीत। |
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संगीतक :
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पुं० [सं० संगीत+कन्] १. गान, नृत्य और वाद्य के द्वारा लोगों का मनोरंजन। २. एक प्रकार का अभिनयात्मक और संगीत प्रधान नृत्य। |
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संगीत-कला :
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स्त्री० [सं०] गाने-बजाने की विद्या। |
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संगीतज्ञ :
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पुं० [सं०] संगीत (कला तथा शास्त्र) में निपुण। |
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संगीत-रूपक :
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पुं० [सं०] आज-कल प्रायः रोडियों में प्रसारित होनेवाला एक प्रकार का छोटा नाटक या रूपक, जिसमें गीतों की प्रधानता होती है और जिसकी मुख्य कथा कहीं तो पात्रों के वार्तालाप के द्वारा और कहीं रूपक प्रस्तुत करनेवाले व्यक्ति की वार्ता से सम्बद्ध रूप में बतलाई जाती है। |
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संगीत-विद्या :
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स्त्री०=संगीत शास्त्र। |
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संगीत-शास्त्र :
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पुं० [सं०] वह शास्त्र जिसमें गाने-बजाने की रीतियों, प्रकारों आदि का विवेचना होता है। |
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संगीति :
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स्त्री० [सं० सम्√ गै (गाना)+क्तिन्] १. वार्तालाप। बातचीत। २. दे० ‘संगीत’। |
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संगीतिका :
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स्त्री० [सं०] पाश्चात्य शैली का ऐसा नाटक जिसका अधिकाँश संगीत के रूप में होता है। गेय नाटक। सांगीत (ऑपिरा)। |
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संगीन :
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वि० [फा०] [भाव० संगीनी] १. पत्थर का बना हुआ। जैसा—संगीन इमारत। २. मोटी तह या मोटे दलवाला। जैसा—संगीन पोत का कपड़ा। ३. पत्थर की तरह कठोर। ४. मजबूत। ५. घोर तथा दंडनीय (अपराध)। स्त्री० [फा०] लोहे का एक प्रकार का अस्त्र जो तिपहला और नुकीला होता है। |
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संगीनी :
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स्त्री० [फा०] संगीन होने की अवस्था, गुण या भाव। |
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