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आगंतव्य  : वि० [सं० आ√गम् (जाना)+तव्यम्] १. जो आने को हो। २. जिसके आने की संभावना हो।
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आगंता (तृ)  : वि० [सं० आ√गम् (जाना)+तृच्] आनेवाला।
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आगंतु  : वि० [सं० आ√गम्+तनु]=आगंतुक।
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आगंतुक  : वि० [सं० आगन्तु+कन्] १. जो कही से आया हो। आया हुआ। अचानक यों ही कही इधर-उधर से या भूल-भटककर आ जानेवाला। जिसके घूमने का कोई निश्चित उद्देश्य या निश्चित दिसा न हो। जैसे—आंगुतक पक्षी या पशु। ३. कहीं से अनावस्यक रूप से आकर बीच मे मिल जाने वाला। प्रक्षिप्त। ४. (रोग) जो शरीर के किसी भीतरी दोष के कारण नहीं बल्कि ऊपरी या बाहरी कारणों से उत्पन्न हुआ हो। जैसे—आगंतुक ज्वर या व्रण (देखें)। पुं० अतिथि। पाहुना।
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आगंतुक-ज्वर  : पुं० [कर्म० स०] १. वह ज्वर जो चोट, परिश्रम भूत-प्रेत आदि की बाधा के कारण आता हो। २. वह ज्वर जो शरीर में हुए किसी दूसरे रोग के फलस्वरूप आता हो। (सिम्पैथेटिक फीवर)
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आगंतुक-व्रण  : पुं० [कर्म० स०] वह फोड़ा या व्रण जो केवल आघात या चोट लगने के कारण हुआ हो। शरीर के भीतरी विकार के कारण न हुआ हो।
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आग  : स्त्री० [सं० अग्नि, प्रा० अग्गि, अग्गी, गु० मरा० आग, मै० सिं० आगि, का० ओगुन, पं० अग्ग, बँ० आगुन, सिंह, अग] १. ताप और तेज का वह पुंज जो किसी चीज (कपड़ा कोयला लकड़ी आदि) के जलने से समय अंगारे या लपट के रूप में दिखाई देता है और जिसमें से प्रायः कुछ धुआँ तथा प्रकाश निकलता रहता है। किसी चीज के जलते रहने की दशा। विशेष—हमारे यहाँ इसकी गिनती पाँच तत्त्वों या भूतों में हुई है, पर पाश्चात्य वैज्ञानिक इसे शक्ति मात्र मानते है। तत्त्व या भूत नहीं मानते, क्योंकि यह कोई द्रव्य या पदार्थ नहीं है। मुहावरा—आग कँजियाना=आग झवाना (दे)। आग गाड़ना-अंगारों या जलते हुए कोयलों को राख में दबाना, जिससे व अधिक समय तक जलते रहे। आग जलाना=ऐसी क्रिया करना जिससे आग उत्पन्न हो। आग जिलाना-बुझती हुई आग फिर से तेज करना या सुलगाना। आग जोड़ना=आग जलाना। आग झवाँना=दहकते हुए कोयलों का धीरे-धीरे ठंडा पड़ना या बुझने को होना। आग झाड़ना=चकमक या पत्तर की रगड़ से चिनगारियाँ उत्पन्न करना। आग दिखाना=(क) गरम करने सुखाने आदि के लिए कोई चीज आग के पास ले जाना। (ख) दे० आग देना। आग देना-किसी चीज को जलाने के लिए आग से उसका संयोग कराना। जैसे—आतिशबाजी, चिंता या तोप में आग देना। आग धोना=अंगारों या जलते हुए कोयलों पर चढ़ी हुई राख इस लिए हटाना कि वे फिर से दहकनें लगे। आग लगाना=(क) किसी चीज को जलाने के लिए उसपर या उसमें आग रखना। (ख) भारी उपद्रव खड़ा करना। आग लेने आना-बहुत ही थोड़ी देर के लिए आना या आते ही इतनी जल्दी लौट जाना मानों आग की चिनगारियाँ ही लेने आयें हों, और कोई काम न हो। (स्त्रियों का वाक्य व्यंग्य) आग सुलगाना-आग जलाना और हवा की सहायता से उसे तेज करना। अग्नि प्रज्वलित करना। पद—आग का आग=(क) सुनारों की अँगीठी। (ख) आतिशबाजी। २. इमारतों, जंगलों आदि का इस प्रकार जलना कि वे नष्ट हो जाए। जैसे—इस सप्ताह नगर में तीन जगह आग लगी। ३. किसी पदार्थ में रहनेवाली या कहीं से निकलने वाली किसी प्रकार की बहुत अधिक गरमी या ताप। मुहावरा—आग फूँकना=किसी पदार्थ का शरीर पर लगकर या उसके अंदर पहुँचकर बहुत अधिक गरमी या ताप उत्पन्न करना। जैसे—इस कंबल (या दवा की पुड़िया) ने तो शरीर में आग फूँक दी। आग बरसना-प्राकृतिक रूप से बहुतअधिक गरमी पड़ना। जैसे—जेठ में तो यहाँ आग बरसती है। ४. लाक्षणिक रूप में मनोविकारों विचारों आदि की अथवा स्वाभाव की ऐसी तीव्रता, उग्रता या विकटता जो घातक नाशक या हानिकारक परिणाम उत्पन्न करनेवाली हो। मुहावरा—आग खाना और अँगारे उगलना=पहले तो बहुत अधिक अनुचित कार्य करके दुर्भाव या द्वेष बढ़ाना और तब ऐसी बातें करना कि बिगाड़ और विरोध और भी बढ़े। आग फाँकना-अपने हाथ में दुर्भाव, दुर्विचार आदि भरते रहना। आग बबूला या आग भभूका होना=बहुत अधिक क्रोध के आवेश में होना। आग बोना-ऐसा अनुचित कार्य करना जिससे आगे चलकर बहुत अधिक कष्ट संताप या हानि हो। जैसे—तुमने भी उसकी चुगली खाकर अच्छी आग बोई है। आग में कूदना=जानबूझकर किसी आपत्ति या संकटपूर्ण स्थिति में पड़ना या सम्मिलित होना। (किसी के) आग में झोकना=विपत्ति या संकटपूर्ण स्थिति में डालना। जैसे—बिना सोचे-समझे संबंध करके उन्होंने लड़की को आग में झोक दिया। आग में मूतना=ऐंठ या शेखी के कारण ऐसा निंदनीय काम करना जिससे हर हालत में खराबी ही खराबी हो। (चीज या बात में) आग लगना-(क) बहुत बुरी तरह से नष्ट होना। जैसे—आजकल तो हमारे रोजगार में आग लग गई है। (ख) बहुत दुर्लभ या महँगा होना। जैसे—आजकल तो अनाज में आग लगी हुई है। आग लगाना=पारस्परिक व्यवहार के क्षेत्र में, ऐसी स्थिति उत्पन्न करना जिससे बहुत अधिक वैर-विरोध बढ़े और विनाश हो। (किसी चीज या बात में) आग लगाना=(क) बहुत बुरी तरह से नष्ट करना। जैसे—दो ही वर्षों में उन्होंने लाखों की सम्पत्ति में आग लगी दी। (ख) उपेक्षा या तिरस्कार दूर हटाना। (स्त्रियाँ) जैसे—आग लगाओं ऐसो मेंल-जोल (या धन-दौलत) को। पानी में आग लगाना=जहाँ किसी तरह से खराबी या बुराई न हो सकती हो, वहाँ भी बहुत बड़ी खराबी या बुराई खड़ी कर देना। आग लगाकर पानी के लिए दौड़ना=पहले तो कोई अनिष्ट स्थिति खड़ी करना तब उसके शमन या शांत का उपाय अथवा प्रयत्न करना। आग लगने पर कुँआ खोदना-जब कोई विकट स्थिति सामने आकर बहुत उग्र रूप धारण कर ले, तब उसके शमन या शांति का प्रयत्न करना। पद—आग का पुतला=बहुत ही उग्र और क्रोधी स्वभाव का आदमी। आग के मोल-बहुत अधिक मँहगा। जैसे—आजकल तो अनाज आग के मोल हो रहा है। ५. आवश्यकता, ईर्ष्या, क्रोध, प्रेम, विरह आदि के प्रबल आवेग के कारण होने वाला ऐसा मानसिक या शारीरिक कष्ट, जिसका शमन तत्काल अपेक्षित हो। मुहावरा—आग पर लोटना=उक्त कारणों में से किसी के फलस्वरूप बहुत अधिक मानसिक कष्ट या संताप भोगना या सहना। (मनकी) आग बुझाना=ऐसा काम करना जिससे मानसिक कष्ट या संताप दूर हो। जैसे—उसने भी खूब गालियाँ देकर मन की आग बुझा ली। आग भड़कना=(क) मन में दबा हुआ कष्ट, क्षोभ वेदना या वैमनस्य फिर से प्रबल होना। जैसे—इस छोटी सी घटना से फिर दोनों भाइयों में फिर से आग भड़की है। (ख) उक्त कारणों से कोई भारी उत्पात या उपद्रव खड़ा होना। जैसे—आजकल एशिया के कई देशों में परतंत्रता के विरूद्ध खूब आग भड़की है। (शरीर में) आग लगना=बहुत ही उत्तेजक, कष्टदायक या घातक मनोविकार उत्पन्न होना। जैसे—उसे देखते ही हमें तो आग लग जाती है। आग होना=दे आग बबूला होना। पद—पेट की आग=(क) क्षुधा। भूख। (ख) संतान के प्रति होनेवाली ममता या स्नेह। ६.आग्नेय अस्त्रों आदि के द्वारा विकट रूप से होनेवाला निरंतर प्रहार। मुहावरा—आग बरसना=युद्ध क्षेत्र में बहुत अधिक गोले गोलियाँ बरसना। जैसे—सन्ध्या होते ही युद्धक्षेत्र में आग बरसने लगी। वि० १. आग की तरह बहुत गरम। अति उष्ण। जैसे—तुम्हारी हथेली तो आग हो रही है। २. गरमी या ताप उत्पन्न करनेवाला। पुं० [सं० अग्र] १. ऊख की ऊपरी भाग जिसमें पत्तियाँ होती है। अगौरी। २. हल के अगले भाग के वे गड्ढे जिनमें रस्सी फसाकर जुएँ में बाँधते है। पुं०=आगा (अलगा भाग)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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आगड़ा  : पुं० [१] गेहूँ, ज्वार आदि की वह बाल जिसके दाने रोग आदि के कारण नष्ट हो गये हों।
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आगण  : पुं० [सं० आग्रहायण] अगहन। मार्गशीर्ष। (डि०)।
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आगणन  : पुं० [सं० आ√गण(गिनना)+ल्युट्-अन] [भू० कृ० आगणित] १. (वस्तु या व्यक्ति) किसी अन्य स्थान से आया हुआ। २. प्राप्त। ३. घटित। पुं० १. अतिथि। मेहमान। २. दे० ‘आयात’।
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आगत-पतिका  : स्त्री० [ब० स० कप्-टाप्] साहित्य में वह नायिका जिसका पति परदेश से लौट आया हो।
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आगत-स्वागत  : पुं० [ष० त०] घर आये हुए अतिथि का किया जानेवाला आदर-सत्कार या आव भगत।
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आगति  : स्त्री० [सं० आ√गम्(जाना)+क्तिन्] कहीं जाने या पहुँचने की क्रिया या भाव। अवाई। आगमन।
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आगपीछा  : पुं०=आगा-पीछा।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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आगबाण  : पुं०=अग्नि बाण।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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आगम  : पुं० [सं० आ√गम् (जाना)+घञ्] [वि० आगमिक] १. किसी वस्तु या व्यक्ति के कहीं से आने उपस्थित होने पहुँचने आदि की क्रिया या भाव। अवाई। आगमन। जैसे—अर्थागम। उदाहरण—संध्या कौ आगम भयो-सूर। २. किसी प्रकार का अविर्भाव, उपद्रव या उत्पत्ति। ३. मिलन। समागम। ४. स्त्री०-प्रसंग। संभोग। ५. आनेवाला समय। भविष्य। ६. भविष्य में होनेवाली घटना या उत्पन्न होनेवाली स्थिति। मुहावरा—आगम जताना=भविष्य में होनेवाली घटना की सूचना देकर उसके संबंध में सचेत करना। ७. भावी कार्य घटना आदि के संबंध में पहले से किया जानेवाला प्रबंध या व्यवस्था। उपक्रम। मुहावरा—आगम करना या बाँधना=पहले से किसी काम या बात का प्रबंध या व्यवस्था करना। ८. भविष्य में होनेवाली बातों का सचेत करनेवाला उल्लेख चर्चा या वर्णन। ९. धन आदि की होनेवाली आमदनी। आय। १. राज्य को प्राप्त होनेवाला कर या राजस्व। ११. भारतीय हिंदुओं के वेद शास्त्र आदि प्रमाणिक और मान्य धर्म-ग्रंथ। १२. किसी धर्म के वे सब प्रामाणिक और मान्य ग्रंथ जिसके अनुसार उस धर्म के अनुयायी अपना आचरण और व्यवहार करते हों। (स्किपचर्स) १३. धार्मिक आचरण व्यवहार में माने जानेवाले शब्द प्रमाण। १४. व्याकरण में, कोई ऐसा अक्षर या वर्ण जो शब्द को कोई विशिष्ट रूप बनाने के लिए ऊपर या बाहर से आया हो अथवा लाया जाए। (आँगमेण्ट) १५. तंत्र शास्त्र का वह अंग जिसमें सृष्टि प्रलय देवताओं के पूजन सिद्धि पुरश्चरण आदि का वर्णन होता है। १६. आधुनिक विधिक क्षेत्र में, वह अधिकार या अधिकार-पत्र जिसके आधार पर कोई व्यक्ति किसी वस्तु या संपत्ति का उत्तराधिकारी अथवा स्वामी होता है। (टाइटिल) वि० आगे चलकर आने या होनेवाला। भावी।
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आगमजानी  : वि० [सं० आगमज्ञानी] जो भविष्य में होनेवाली घटनाएँ पहले से जानता हो।
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आगमज्ञानी (निन्)  : वि० [सं० आगम-ज्ञान, ष० त०+इनि] जिसे आगम या भविष्य की सब बातों का ज्ञान हो।
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आगमन  : पुं० [सं० आ√गम् (जाना)+ल्युट्-अन] १. कहीं से चलकर आने या पहुँचने की क्रिया या भाव। अवाई। आगति। २. किसी कार्य या भात के लिए नये सिरे से सामने आने या होने की क्रिया या भाव। (एडवेण्ड) ३. प्राप्ति। लाभ।
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आगमना  : अ० [सं० आगमन] आना या आकर पहुँचना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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आगम-पतिका  : स्त्री०=आगत-पतिका।
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आगम-वक्ता (क्तृ)  : वि० [ष० त०] भविष्य की बातें कहने या बतलाने वाला। पुं० ज्योतिषी।
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आगम-वाणी  : स्त्री० [ष० त०] भविष्य वाणी। (दे०)।
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आगम-विद्या  : स्त्री० [ष० त०] वेद-विद्या।
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आगम-वृद्ध  : वि० [स० त०] जिसे वेद-शास्त्रों या धर्म-ग्रंथों का बहुत अधिक ज्ञान हो।
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आगम-सोची  : वि० [सं० आगम+हिं० सोचना] आगे या भविष्य में होनेवाली बातों का पहले से ही विचार करनेवाला। दूरदर्शी।
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आगमित  : भू० कृ० [सं० आ√गम् (ज्ञान)+णिच्+क्त] (ग्रन्थ या विषय) जिसका अच्छी तरह से अध्ययन किया गया हो। अधीत।
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आगमी (मिन्)  : पुं० [सं० आगम+इनि] वह जो आगम या भविष्य की बातें जानता या बतलाता हो। जैसे—ज्योतिषी या भविष्यवक्ता।
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आगर  : पुं० [सं० आकर-खान] [स्त्री०आगरी] १. खान। २. वह जिसमें गुण या विशेषता बहुत अधिक मात्रा में हो। भंडार। उदाहरण—एहन सुंदरि गुन क आगरि।—विद्यापति। ३. रहने की जगह। जैसे—घर झोपड़ी मकान आदि। ४. कोष। खजाना। ५.व ह गड्डा जिसमें खार पानी भरकर नमक जमाया जाता है। वि० [सं० आकर-श्रेष्ठ] १. उत्तम। श्रेष्ठ। २. कुशल। दक्ष। ३. चतुर। होशियार। अव्य०१. बहुत अधिक। २. बहुत बढ़कर या आगे। ३. आगे सामने। स्त्री० अगरी (अर्गल)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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आगरा  : वि० [हिं० आगे] [स्त्री० आगरी] १. किसी की तुलना में बहुत अधिक आगे बढ़ा हुआ। बढ़-चढ़ा। उदाहरण—सील सिंगार गुन सबनितें आगरी।—हितहरिवंश। २. बहुत। अधिक।
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आगरी  : पुं० [सं० आकर] १. खान में काम करनेवाला मजदूर। २. वह नमक बनाने का काम करता हो। नोनिया। लोनिया।
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आगल  : वि० [हिं० अगला] १. सबसे आगे जानेवाला। २. बढ़ा-चढ़ा। अव्य० आगे। सामने। पुं०=अर्गल।
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आगला  : वि०=अगला। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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आगलित  : भू० कृ० [सं० आ√गल् (क्षरित होना)+क्त] १. डूबता हुआ। २. उदास। खिन्न। ३. मुरझाया हुआ। म्लान। ४. नीचे की ओर लाया हुआ।
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आगवन  : पुं० =आगमन।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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आगवाह  : पुं० [सं० अग्निवाह-धूम] धुआँ। (डि०)।
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आगस्ती  : वि० [सं० अगस्त्य+अण्+ङीष्, यलोप] =आगस्त्य। स्त्री० दक्षिण दिशा।
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आगस्त्य  : वि० [सं० अगस्त्य+यञ्,यलोप] १. अगस्त्य मुनि से संबंध रखनेवाला। २. दक्षिण दिशा संबंधी। ३. अगस्त्य नामक पेड़ से उत्पन्न। पुं० १. अक प्रसिद्ध मुनि। २. उक्त मुनि के वंशज। ३. दक्षिण दिशा। ४. एक वृक्ष का नाम।
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आगा  : पुं० [सं० अग्र, पा० अग्ग] १. किसी चीज के आगे या सामने का भाग। जैसे—कुरते, मकान या सेना का आगा। मुहावरा—(स्त्री का) आगा भारी होना=गर्भवती होना। पद—आगा-पीछा-(दे०)। २. आगे रहकर चलने या बढ़नेवाला अंश। जैसे—आक्रमण करनेवालों का आगा। मुहावरा—आगा सँभालना=आगे होकर आरंभिक कठिनाइयों आदि का सामना करना। ३. भविष्य में आनेवाला समय या उसमें होनेवाला कार्य। जैसे—हमें तो आगा अँधेरा दिखाई देता है। मुहावरा—(किसी का) आगा मारना=आगे बढ़कर कार्य गति वृद्धि आदि में पूरी तरह से बाधक होना। ४. आगे बढ़कर किया जानेवाला स्वागत। मुहावरा—आगातागा लेना=आदर सत्कार करना। पुं० [तु० आगा] १. मालिक। सरदार। २. काबुली। अफगान।
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आगाता (तृ)  : वि० [सं० आ√गै(गाना)+तृच्] कुछ गाकर कार्य सिद्धि या प्राप्त करनेवाला।
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आगाध  : वि० [सं० अगाध+अण्] १. बहुत अधिक गहरा। २. जिसका क्षेत्र या विस्तार बहुत अधिक हो। जैसे—आगाध विषय।
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आगान  : पुं० [सं० आ-गान-बात] १. गाकर कहीं जानेवाली बात। २. वृत्तांत। हाल।
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आगा-पीछा  : पुं० [हिं० आगा+पीछा] १. आगे और पीछे का अंश या बाग। २. इस बात का विचार कि किसी काम में आगे बढ़ने पर क्या होगा और पीछे रहने या हटने में क्या होगा। ३. उक्त स्थिति में मन में होनेवाला असमंजस। दुबिधा।
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आगामिक  : वि० [सं० आगामिन्+क] १. आनेवाला। २. आनेवाला भविष्य या समय सं संबंध रखनेवाला। भावी।
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आगामी (मिन्)  : वि० [सं० आ√गम्+णिनि] [स्त्री० आगामिनी] १. आने या पहुँचनेवाला। २. आगे चलकर या भविष्य में होनेवाला। ३. वर्त्तमान के तत्त्काल उपरांत या बाद में आने या होनेवाला। जैसे—आगामी वर्ष या सप्ताह।
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आगामुक  : वि० [सं० आ√गम्(जाना)+उकञ्] =आगामिक।
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आगार  : पुं० [सं०√अग् (टेढ़ी चाल)+घञ्, आग√ऋ (गति)+अण्] [वि० आगारिक] १. रहने का स्थान। घर। मकान। २. किसी विशेष कार्य के लिए नियत घर का कोई भाग। कमरा। कोठरी। जैसे—भोजनागार, शयनागार आदि। ३. ऐसा स्थान जहाँ चीजें इकट्ठा करके रखी जाती हों। जैसे—अस्त्रागार। ४. भवन। मंदिर। ५. कोश। खजाना।
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आगाह  : वि० [फा०] [भाव० आगाही] १. जिसे सचेत रहने के लिए पहले से किसी बात की सूचना मिल चुकी हो। २. जिसे सूचित कर दिया गया हो। ३. परिचित। अव्य० [हिं० आगे] आगे या पहले से। उदाहरण—चाँद गहन आगाह जनावा।—जायसी।
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आगाही  : स्त्री० [फा०] १. पहले से मिलने वाली जानकारी या सूचना। २. जानकारी। सूचना।
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आगि  : स्त्री०=आग। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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आगिआ  : स्त्री० =आज्ञा।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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आगिल  : वि० [हिं० आगे] १. आगे का। अगला। २. भविष्य में होनेवाला। भावी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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आगिला  : वि०=अगला।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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आगिवर्त्त  : पुं०=अग्निवर्त्त (मेघ का एक भेद)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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आगी  : स्त्री०=आग।
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आगुआ  : पुं० [हिं० आगे] औजारों, शस्त्रों आदि की मूठ के सिरे का गोल भाग।
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आगू  : पुं० =आगा। अव्य०=आगे।
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आगृहीत  : भू० कृ० [सं० आ√ग्रह (ग्रहण करना)+क्त, संप्रसारण] १. निकाला हुआ। २. कहीं जमा किये हुए धन में से निकाला या लिया हुआ (धन)। (ड्रान)
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आगृहीती (तिन्)  : वि० [सं० आगृहीत+इनि] १. जमा किए हुए धन में से कुछ निकालने या लेने वाला। (ड्रायर) २. दे० ‘आग्राहक’।
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आगे  : अव्य० [सं० अग्रे, प्रा० पं० अग्गे० गुज० अगवो० सिं० अगिआँ० अगी, बँ० आगे, का० आगे० ओग्] १. जिस ओर मुँह का अगला भाग हो, उस ओर, सामनेवाले भाग की ओर। समक्ष। संमुख। सामने। जैसे—(क) आगे देखकर चला करो। (ख) बड़ों के आगे इस तरह बढ़-बढ़कर बोलना ठीक नहीं। मुहावरा—(किसी चीज या बात का) आगे आना=(क) उपस्थित या घटित होना। जैसे—जो कुछ मैंने कहा था, वहीं सब आगे आया। (ख) किसी बात के परिणाम या फल के रूप में उपस्थित या घटित होनेवाला। बदला मिलना। जैसे—जैसा करोगे वैसा तुम्हारें आगे आयेगा। (किसी के) आगे आना=मुकाबला या सामना करने के लिए आकर उपस्थित होना। जैसे—देखें कौन उसके आगे आता हैं। (किसी को) आगे करना=(क) आगे की ओर चलाना या बढ़ाना। (ख) अगुआ नेता या मुखिया बनाना। जैसे—जब कोई बात होगी तब तुम्हीं को आगे कर देगें। आगे का पैर पीछे पड़ना=घबराहट चिंता भय आदि के कारण आगे बढ़ने का साहस न होना। (किसी के) आगे डालना, देना या रखना=किसी को खिलाने, देने आदि के लिए उसके सामने उपस्थित करना। जैसे—उसने अपना सारा भोजन उस भिखमंगे के आगे डाल (दे या रख) दिया। (किसी के) आगे निकलना=प्रतियोगिता या होड़ में किसी के आगे बढ़ जाना। श्रेष्ठ सिद्ध होना। जैसे—दरजे में तुम्हीं सब के आगे निकलोगे। आगे बढ़कर (किसी को) लेना-कुछ दूर आगे बढ़कर आगंतुक का स्वागत करना। आगे बढ़ना या होना=औरो की तुलना में सबसे पहले किसी काम या बात में सम्मिलित या साहयक होना। जैसे—उस संकट की स्थिति में वही सबसे आगे बढ़ा था। (किसी के) आगे(कुछ) होना-बाल=बच्चा या संतान होना। जैसे—कौन कहे तुम्हारें आगे दो चार बाल-बच्चे हैं। पद—आगे का कपड़ा=(क) आँचल। (ख) घूँघट। (स्त्रियाँ) २. किसी की उपस्थिति में या सामने। जैसे—तुम सब के आगे मेरी निंदा करते फिरते हो। ३. जीवित रहने या वर्त्तमान होने की दशा में। जैसे—तुम्हारे आगे जो कुछ होगा वहां हो जायगा, नहीं तो बाद में कोई कुछ न करेगा। ४. इसके अनंतर उपरांत या बाद। जैसे—अब आगे कै सुनो हवाल। -आल्हा। ५. आनेवाले समय में। भविष्य में। जैसे—आगे जो होगा देखा जायगा। पद—आगे आगे=भविष्य में। जैसे—आगे आगे देखिए होता है क्या। मुहावरा—आगे को-कुछ दिनों बाद। भविष्य में। जैसे—समझ लो आगे को ऐसा न होने पावे। आगे चलकर=भविष्य में। जैसे—कौन जाने आगे चलकर क्या होगा। ६. इससे पहले। जैसे—आगे हमारी बात सुन लो, तब अपनी कहना। ७. कुछ दूर और आगे बढ़ने पर। जैसे—आगे एक तालाब मिलेगा। पद—आगे पीछे (देखें)।
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आगे-पीछे  : अव्य० [हिं० आगे+पीछे] १. कभी आगे की ओर कभी पीछे की ओर। जैसे—जब देखो तब तुम उन्हीं के आगे पीछे लगे रहते हो। २. आगे भी और पीछे भी। जैसे—दस-पाँच आदमी सदा उनके आगे-पीछे लगे रहते हैं। ३. एक के बाद एक। निश्चित क्रम से। जैसे—सब लड़के आगे-पीछे होकर चलें। ४. आस-पास इधर-उधर। जैसे—अच्छी तरह देखो पुस्तक वहीं कही आगे पीछे होगी। ५.कभी (अथवा कहीं) पहले और कभी (अथवा कहीं) बाद में। जैसे—आगे-पीछे सभी को यहाँ से चलना है। ६. अव्यवस्थित क्रम से। इधर-उधर। तितर-बितर। जैसे—लड़कों ने सब कागज आगे पीछे कर दिये। ७. अवकाश या फुरसत मिलने पर। जैसे—पले अपना पाठ याद करो और काम आगे पीछे होते रहेगें। ८. पारिवारिक संबंध के विचार से। नाते रिश्ते में। जैसे—जब तुम्हारें आगे पीछे कोई है ही नही तब क्यों व्यर्थ इतना परिश्रम करते हों।
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आगो  : पुं० १. -आगा। २. =अगवानी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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आगौ  : अव्य० [सं० अग्र] १. आगे या सामने। २. आगे बढ़कर।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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आगौन  : पुं० =आगमन।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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आगौल  : पुं० [हिं० आगा=अगला भाग] सेना का अगला भाग।
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आग्नीध्र  : पुं० [सं० अग्नि√इन्ध्र (दीप्ति)+क्विप्, अग्नीत-शरण० ष० त०+रण्, भ० आदेश] १. यज्ञ की अग्नि जलाने का स्थान। २. यज्ञ की अग्नि प्रज्वलित करना। ३. अग्निहोत्र करनेवाला यजमान। ४. स्वायंभुवमनु के बारह लड़कों में से एक।
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आग्नेय  : वि० [सं० अग्नि+ढक्-एय] [स्त्री० आग्नेयी] १. अग्नि संबंधी। आग का। २. जिसका देवता अग्नि हो। ३. अग्नि से उत्पन्न। ४. जिसमें से आग निकलती हो। जैसे—आग्नेय अस्त्र, आग्नेय पर्वत आदि। ५. आग भड़काने या ज्वाला उत्पन्न करनेवाला। पुं० १. अग्नि के पुत्र कार्तिकेय। २. ब्राह्मण जिनकी उत्पत्ति अग्नि से मानी गई है। ३. पूर्व और दक्षिण के बीच की दिशा। अग्निकोण। ४. किष्किंधा के पास का एक पुराना देश जिसकी राजधानी माहिष्मती थी। ५. ज्वालामुखी पर्वत। ६. अग्नि का दीपन करने वाली ओषधि या औषध। ७. भाषा विज्ञान के अनुसार भारत के दक्षिण पूर्व में बोली जानेवाली भाषाओं का एक वर्ग जिसमें इंडोनेशिया और उसके आस-पास के द्वीपों में बोली जाने वाली भाषाएँ सम्मिलित हैं। ८. खून या रक्त, जिसकी उत्पत्ति शरीर की अग्नि या ताप से मानी गई है। ९. कोई ऐसा कीड़ा जिसके काटने से शरीर में जलन होती हो। १. अग्नि पुराण का एक नाम। ११. कृतिका नक्षत्र। १२. सोना। स्वर्ण। १३. चांद्र मास के पक्ष की पहली तिथि। प्रतिपदा।
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आग्नेय अस्त्र  : पुं० [कर्म० स०] वे अस्त्र जो किसी प्रकार की अग्नि या ताप के संयोग से चलते या चलाये जाते हैं। (फायर आर्म्स) जैसे—तोप बन्दूक आदि।
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आग्नेय स्नान  : पुं० [सं० कर्म० स०] सारे शरीर में भस्म या राख पोतना।
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आग्नेयास्त्र  : पुं० [आग्नेय-अस्त्र, कर्म० स०] ऐसा अस्त्र जो अग्नि की सहायता से चलता हो। जैसे—तोप बन्दूक आदि। (फायर आर्म्स)
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आग्नेयी  : स्त्री० [सं० आग्नेय+ङीष्] पूर्व और दक्षिण के बीच की दिशा। अग्नि-कोण।
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आग्रह  : पुं० [आ√ग्रह (ग्रहण करना)+अप्] १. किसी से विनयपूर्वक तथा बार-बार यह कहना कि आप अमुक काम इस रूप में करे। २. किसी बात पर जोर देते हुए तथा अड़ते हुए यह कहना कि यह बात ऐसी ही है अथवा इसी रूप में होनी चाहिए। हठ।
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आग्रहण  : पुं० [सं० आ√ग्रह+ल्युट्-अन] [कर्ता आग्राहक, भू० कृ० आगृहीत] जमा किये हुए धन में से रुपये निकालना या लेना। (ड्रॉ)।
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आग्रहायण  : पुं० [सं० अग्रहायण+अण्-ङीष् आग्रहायणी+अण्] १. अगहन मास। मार्गशीर्ष। २. मृगशिरा नक्षत्र।
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आग्रही (हिन्)  : वि० [सं० आग्रह+इनि] आग्रह करनेवाला।
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आग्राहक  : वि० [सं० आ√ग्रह+ण्वुल्-अक] जमा किये हुए धन में से कुछ या सब धन निकालनेवाला। (ड्रॉअर)
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