| शब्द का अर्थ | 
					
				| आगंतु					 : | वि० [सं० आ√गम्+तनु]=आगंतुक। | 
			
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				| आगंतुक					 : | वि० [सं० आगन्तु+कन्] १. जो कही से आया हो। आया हुआ। अचानक यों ही कही इधर-उधर से या भूल-भटककर आ जानेवाला। जिसके घूमने का कोई निश्चित उद्देश्य या निश्चित दिसा न हो। जैसे—आंगुतक पक्षी या पशु। ३. कहीं से अनावस्यक रूप से आकर बीच मे मिल जाने वाला। प्रक्षिप्त। ४. (रोग) जो शरीर के किसी भीतरी दोष के कारण नहीं बल्कि ऊपरी या बाहरी कारणों से उत्पन्न हुआ हो। जैसे—आगंतुक ज्वर या व्रण (देखें)। पुं० अतिथि। पाहुना। | 
			
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				| आगंतुक-ज्वर					 : | पुं० [कर्म० स०] १. वह ज्वर जो चोट, परिश्रम भूत-प्रेत आदि की बाधा के कारण आता हो। २. वह ज्वर जो शरीर में हुए किसी दूसरे रोग के फलस्वरूप आता हो। (सिम्पैथेटिक फीवर) | 
			
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				| आगंतुक-व्रण					 : | पुं० [कर्म० स०] वह फोड़ा या व्रण जो केवल आघात या चोट लगने के कारण हुआ हो। शरीर के भीतरी विकार के कारण न हुआ हो। | 
			
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