| शब्द का अर्थ | 
					
				| आना					 : | अ० [सं० आगमन, पुं० हिं० आगवन, आवना] १. किसी चीज का कहीं से चलकर इस ओर (अर्थात् वक्ता की ओर) उपस्थित, प्राप्य या वर्त्तमान होना। आगमन होना। जैसे—अतिथि आना, बरसात आना, हवा आना आदि। मुहावरा—आ धमकना=अचानक या सहसा आ पहुँचना। आ पड़ना=(क) सहसा आ पहुँचना। (ख) सहसा गिर पड़ना। आ पड़ना=(क) टूट पड़ना। (ख) विपत्ति या संकट आना। आ बनना=(क) घटना के रूप में उपस्थित होना। घटित होना। उदाहरण—आइ बना भल सकल समाजू।—तुलसी। (ख) लाभ उठाने का अच्छा अवसर हाथ आना। आ लगना=किसी स्थान या ठिकाने पर पहुँचना। आ लेना=(क) पकड़ लेना। (ख) पास पहुँचना। पद—आता जाता=इधर या इस ओर आने तथा उधर या उस ओर जानेवाला। आना-जाना=(क) जन्म-मृत्यु। (ख) मिलना जुलना। आया गया=(क) वह जो किसी काम से आय और चला जाए। (ख) अतिथि। २. उत्पन्न होकर सामने उपस्थित होना। घटित होना। जैसे—पौधे में फल या फूल आना। ३. गुण योग्यता आदि की अभिवृद्धि या विकास होना। जैसे—जवानी आना। ४. ज्ञान या जानकारी होना। जैसे—अँगरेजी या हिन्दी आना। ५. अनुभूति होना। जैसे—यह नया विचार अभी मस्तिष्क में आया है। ६. किसी अवस्था या स्थिति में पहुँचना या होना। जैसे—गाड़ी के नीचे आना। किसी निश्चय पर आना। पुं० [सं० आणक] १. रुपयें का सोलहवाँ अंश या भाग। २. किसी चीज का सोलहवाँ अंश या भाग। जैसे—व्यापार में चार आने का हिस्सा। प्रत्यय-[फा०आन] होनेवाला। अवधि पर होनेवाला। जैसे—रोज़ाना, सलाना। | 
			
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				| आनाकारी					 : | स्त्री० [सं० अनाकर्णन] १. कोई बात सुनकर भी न सुनी के समान करना। २. टाल-मटोल या हीला-हवाला। स्त्री०-काना-फूसी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| आनाथ्य					 : | पुं० [सं० अनाथ+ष्यञ्] अनाथ होने की अवस्था या भाव। अनाथता। | 
			
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				| आनाय					 : | पुं० [सं० आ√नी+घञ्] जाल। फंदा। | 
			
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				| आनाह					 : | पुं० [सं० आ√नह् (बाँधना)+घञ्] [वि० आनाहिक] १. बाँदना। २. मलावरोध से पेट फूलने का एक रोग। कब्जियत। ३. (कपड़े आदि की) लंबाई। | 
			
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