| शब्द का अर्थ | 
					
				| आपी					 : | पुं० [सं० आप्य] पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र। अव्य० आप ही। स्वतः। स्वयं। (बोल-चाल)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| आपीड़					 : | पुं० [सं० आ√पीड़ (दबाना)+अच्] १. ऊपर से दबाकर बैठाई या लगाकर रखी हुई चीज। २. सिर पर पहनने या बाँधने का कपड़ा या गहना। जैसे—पगड़ी मुकुट आदि। ३. वास्तु में छाजन के बाहर पाख से निकली हुई बँडेरी का अँश। मँगौरी। ४. एक प्रकार का विषम वृत्त जिसके पहले चरण में ८, दूसरे चरण में १२, तीसरे चरण में १६ और चौथे चरण में २0 अक्षर होते हैं। वि० १. दबानेवाला। २. कष्ट देनेवाला। | 
			
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				| आपीडन					 : | पुं० [सं० आ√पीड़+ल्युट्-अन] [भू० कृ० आपीड़ित] १. कसकर या जोर से दबाना या बाँधना। २. कष्ट देना। पीड़ित करना। | 
			
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