| शब्द का अर्थ | 
					
				| आर्ष					 : | वि० [सं० ऋषि+अण्] १. ऋषियों से संबंधित। ऋषियों का। २. ऋषियों का बनाया हुआ। ३. वैदिक रचनाओं और स्तोत्रों से संबंधित। ४. जो ऋषियों द्वारा प्रचिलित होने के कारण ही मान्य हो। जैसे—आर्ष प्रयोग। | 
			
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				| आर्ष-प्रयोग					 : | पुं० [सं० कर्म० स०] भाषा के क्षेत्र में, किसी पद या शब्द का ऐसा प्रयोग जो व्याकरण के नियमों से ठीक न सिद्ध न होने पर भी इसलिए प्रचलित तथा मान्य हो कि प्राचीन ऋषि आदि ऐसा प्रयोग कर गये हैं। | 
			
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				| आर्षभ					 : | वि० [सं० ऋषभ+अण्] ऋषभ संबंधी। ऋषभ का। पुं० ऋषभ का वंशज। | 
			
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				| आर्ष-विवाह					 : | पुं० [सं० कर्म० स०] स्मृतियों के अनुसार आठ प्रकार के विवाहों में से तीसरा जिसमें कन्या का पिता वर से दो गौएँ या बैल शुल्क के रूप में लेकर उसे अपनी कन्या देता था। | 
			
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				| आर्षेय					 : | वि० [सं० ऋषि+ढक्-एय] १. ऋषियों से संबंध रखने या उनमें होनेवाला। २. पूज्य। मान्य। ३. उत्तम। श्रेष्ठ। पुं० १. ऋषियों का गोत्र। २. मंत्र-दृष्टा ऋषि। ३. यजन-याजन और अध्ययन-अध्यापन आदि जो ऋषियों के कार्य है। | 
			
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