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आश्रव  : पुं० [सं० आ√श्रु (सुनना, जाना)+अप्] १. किसी की कोई बात सुनकर उसके अनुसार काम करना। किसी के कहने पर चलना। २. अंगीकार या ग्रहण करना। ३. नदी की धारा या बहाव। ४. अपराध। दोष। ५. कष्ट। क्लेश। ६. जैन और बौद्ध दर्शनों में कोई ऐसी बात जो जीव के बंधन का कारण हो अथवा उसके मोक्ष में बाधक हो। जैसे—जैनों में पापाश्रव और पुण्याश्रव अथवा बौद्धों में अविद्याश्रव कायाश्रव आदि।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
 
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