| शब्द का अर्थ | 
					
				| आस्था					 : | स्त्री० [सं० आ√स्था+अङ्] १. कहीं स्थिति होने की अवस्था, साधन या स्थान। २. किसी महान या पूज्य व्यक्ति या देवता में होनेवाली विश्वासपूर्ण भावना। ३. सभा का अधिवेशन। बैठक। ४. अवलंब। सहारा। ५. प्रयत्न। ६. वचन। वादा। | 
			
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				| आस्थाता (तृ)					 : | पुं० [सं० आ√स्था+तृच्] १. वह जो अच्छी तरह से या दृढ़तापूर्वक खड़ा हो। २. वह जो ऊपर चढ़ता हो या चढ़ा हो। आरोही। | 
			
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				| आस्थान					 : | पुं० [सं० आ√स्था+ल्युट्]१. स्थान। जगह। २. बैठने का स्थान। बैठक। ३. दरबार। सभा। ४. दे० ‘आस्थान मंडप’। | 
			
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				| आस्थान-मंडप					 : | पुं० [ष० त०] १. प्राचीन भारत में, राजकुमार का वह भवन जिसमें राजा के सामने लोग उपस्थित होकर निवेदन करते थे। दरबार आम। २. दे० ‘आस्थानिका’। | 
			
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				| आस्थानिका					 : | स्त्री० [सं० ] बैठने का कोई विशेष स्थान। (सीट) | 
			
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				| आस्थानी					 : | स्त्री० [सं० आ√स्था+ल्युट्-अन-ङीष्] १. किसी भवन का वह अंश या भाग जिसमें लोग कोई महत्त्व की बात सुनने के लिए एकत्र हों। (आँडिटोरियम)।२. दे० ‘आस्थान मंडप’। | 
			
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				| आस्थापन					 : | पुं० [सं० आ√स्था+णिच्+पुक्+ल्युट्-अन] १. अच्छी तरह से कोई चीज बैठाने, रखने या स्थापित करने की क्रिया या भाव। २. वैद्यक में स्नेह-वस्ति। ३. पौष्टिक औषध। ताकत की दवा। | 
			
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