| शब्द का अर्थ | 
					
				| आहु					 : | पुं० [सं० आहव-ललकार] लड़ने आदि के लिए दी जानेवाली ललकार। चुनौती। प्रचरण। उदाहरण—गह्मौ राहु अति आहु करि, मनु ससि सूर समेत।—बिहारी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| आहुटि					 : | स्त्री०=आहट। | 
			
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				| आहुड़					 : | पुं० [सं० आहव] युद्ध। संग्राम।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| आहुति					 : | स्त्री० [सं० आ√हु+क्तिन्] १. यज्ञ या हवन की अग्नि प्रज्वलित रखने के लिए उसमें बार-बार कोई जलनेवाली अच्छी चीज डालते रहना। जैसे—घी, जौ या तिल की आहुति। २. उक्त प्रकार से यज्ञ या हवन की अग्नि में डालने की सामग्री, अथवा हर बार डाली जानेवाली उसकी मात्रा। जैसे—रूद्र की ११ आहुतियाँ दी जाती है। ३. किसी उद्देश्य की सिद्धि या कर्त्तव्य-पालन के लिए उसमें लगकर पूरी तरह से व्यय तथा समाप्त हो जानेवाली चीज। जैसे—स्वतंत्रता की रक्षा के लिए हजारों देशप्रेमियों ने अपने प्राणों की आहुति दे दी। | 
			
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				| आहुती					 : | स्त्री०=आहुति।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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