| शब्द का अर्थ | 
					
				| उद्दिय					 : | पुं० [सं० क्षुधा] भूख। उदाहरण–मरत काल चलि सथ्य, धाम धामन अरु छद्दिय।–चंदबरदाई।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उ					 : | नागरी वर्णमाला का पाँचवाँ स्वर जो ह्रस्व है और जिसका दीर्घ रूप ‘ऊ’ है। भाषा-विज्ञान की दृष्टि से यह ह्रस्व, ओष्ठ्य, घोष तथा संवृत स्वर है। पूर्वी हिंदी में कुछ शब्दों के अंत में लगकर यह ‘भी’ का अर्थ देता है। जैसे—तरनिउ मुनि घरनी होई जाई।—तुलसी। पुं० [√अत्(सतत गमन)+डु] १. ब्रह्मा। २. शिव। ३. नर। मनुष्य। | 
			
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				| उँखार					 : | स्त्री० १. दे० ऊख। २. दे० ‘उखारी’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उँखारी					 : | स्त्री० =उखारी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उंगनी					 : | स्त्री० [हि० आंगना] गाड़ियों के पहियों में तेल देने या उन्हें आँगने की क्रिया या भाव। | 
			
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				| उँगल					 : | स्त्री० =उँगली। | 
			
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				| उँगली					 : | स्त्री० [सं० अंगुलि] हाथ या पैर के पंजो में से निकले हुए पाँच लंबे किंतु पतले अवयवों में से हर एक। (इन्हें क्रमशः अंगुष्ठ या अँगूठा, तर्जनी, मध्यमा, अनामिका तथा कनिष्ठिका या कानी उँगली कहते हैं) मुहावरा—(किसी की ओर) उँगली उठाना=(किसी के) कोई अनुचित काम करने पर उसकी ओर संकेत करते हुए उसकी चर्चा करना। उँगली चटकाना=उँगली को इस तरह खींचना, दबाना या मोड़ना कि उसमें से चट-चट शब्द निकले। उँगलियाँ चमकाना, नचाना या मटकाना=बात-चीत या लड़ाई के समय स्त्रियों की तरह हाथ और उँगलियाँ हिलाना या मटकाना। उँगली पकड़ते पहुँचा पकड़ना=थोड़ा सा अधिकार या सहारा मिलने पर सारी वस्तु या सत्ता पर अधिकार जमाना। थोड़ा-सा सहारा पाकर सब की प्राप्ति के लिए प्रयत्नशील होना। (किसी को) उँगलियों पर नचाना=(क) किसी ले जैसा चाहे वैसा काम करा लेना। (ख) जान-बूझकर किसी को तंग या परेशान करना। (किसी कृति पर) उंगली रखना=किसी कृति में कोई दोष बतलाना या उसकी ओर संकेत करना। उदाहरण—क्या कोई सहृदय कालिदास के कवि-कौशल उँगली रख सकता है ? कानो में उँगलियाँ देना=किसी परम अनुचित या निदंनीय बात की चर्चा होने पर उसके प्रति परम उदासीनता प्रकट करना। पाँचों उगलियाँ घी में होना=सब प्रकार से यथेष्ठ लाभ होने का अवसर आना। जैसे—अब तो आपकी पाँचों उँगलियाँ घी में हैं। पद-कानी उँगली-सबसे छोटी और अंतवाली उंगली। कनिष्ठिका। | 
			
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				| उँचन					 : | स्त्री० दे०‘उनचन’। | 
			
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				| उँचना					 : | स्त्री० दे०‘उनचना’। | 
			
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				| उँचान					 : | स्त्री० =उँचान।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उँचास					 : | वि० =उनचास।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उंछ					 : | स्त्री० [सं०√उञ्छ् (दाना बिनना)+घञ्] फसल कट जाने पर खेत में गिरे हुए दाने चुनने का काम। सीला बीनना। | 
			
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				| उंछ-वृत्ति					 : | स्त्री० [ष० त०] प्राचीन भारत में, त्योगियों की वह वृत्ति जिसमें वे फसल कट जाने पर गिरे हुए दाने चुनकर जीविका निर्वाह करते थे। | 
			
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				| उंछ-शील					 : | वि० [ब० स०] उंछ वृत्ति के द्वारा जीवन-निर्वाह करनेवाला। | 
			
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				| उँजरिया					 : | स्त्री० [हि० उजाला का पूर्वी रूप] १. उजाला। प्रकाश। २. चाँदनी रात। | 
			
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				| उँजियार					 : | पुं० [सं० उज्ज्वल] उजाला। प्रकाश। वि० [स्त्री० उँजियारी] १. उजला। सफेद। २. चमकता हुआ। प्रकाशमान। | 
			
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				| उँजेरा, उँजेला					 : | पुं० =उजाला। | 
			
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				| उँज्यारा					 : | वि० [स्त्री० उँज्यारी] =उजाला। पुं० =उजाला। | 
			
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				| उंझना					 : | अ० =उलझना। | 
			
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				| उँडेरना					 : | पुं० =उँड़ेलना। | 
			
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				| उँडेलना					 : | स० [?] १. कोई पदार्थ, विशेषतः तरल पदार्थ एक बरतन में से दूसरे बरतन में गिराना या डालना। ढालना। २. पात्र या बरतन में रखी हुई चीज इस प्रकार उलटना कि वह जमीन पर इधर-उधर बिखर जाए। | 
			
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				| उंदरी					 : | स्त्री० [सं० ऊर्ण(-बाल)+दर-(नाश करनेवाला)] एक रोग जिसमें सिर के बाल झड़ जाते हैं। | 
			
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				| उँदरू					 : | पुं० [सं० कुन्दरू] एक प्रकार की काँटेदार झाड़ी। ऐल। हैंस। | 
			
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				| उँदर					 : | पुं० [सं०√उन्द् (भीगना)+उर] चूहा। | 
			
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				| उंदुरकर्णी					 : | स्त्री० [ष० त० ङीष्] मूसाकानी नामकी लता। | 
			
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				| उंद्र					 : | पुं० [सं० उंदुर] चूहा। उदाहरण—उद्र कहों बिलइया घेरा।—गोरखनाथ।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उंबरी					 : | स्त्री० =उडुंबर (गूलर)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उँह					 : | अव्य० [अनु०] अस्वीकार, असहमति, उदासीनता, घृणा आदि का सूचक शब्द। जैसे—(क) उँह ऐसा मत करो। (ख) उँह ! जाने भी दो। | 
			
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				| उअना					 : | अ० [सं० उदय, हिं० उगना] उदित होना। उगना। उदाहरण—उयौ सरद राका-ससी, करति क्यों न चित चेतु।—बिहारी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उअर					 : | पुं० =उर (हृदय)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उआना					 : | स०१=०उगाना। २. =उठाना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उऋण					 : | वि० [सं० उच्-ऋण] जिसने अपना ऋण चुका दिया हो। जो ऋण से मुक्त हो चुका हो। | 
			
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				| उक					 : | वि० [सं० उक्ति] उक्ति। कथन। उदाहरण—बन जाए भले शुक की उक से।—निराला।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उकचन					 : | पुं० [सं० मुचकुंद] मुचकुंद का फूल। | 
			
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				| उकचना					 : | अ० [सं० उत्कीर्ण, पा० उक्कस-उखाड़ना] १. =उखड़ना। २. =उचड़ना। ३. =उचकना। स०१. =उखाड़ना। २. उचाड़ना। ३. =उठाना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उकटना					 : | स०=उघटना। | 
			
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				| उकटा					 : | वि०=उघटा। | 
			
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				| उकटा-पुराण					 : | पुं० =उघटा पुराण। | 
			
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				| उकठना					 : | अ० [हिं० काठ] १. सूखकर लकड़ी की तरह कड़ा होना या ऐंठना। २. उखड़ना। स०=उघटना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उकठा					 : | अ० [सं० अव+काष्ठ] १. जो सूखकर लकड़ी की तरह ऐंठ गया हो। २. शुष्क। सूखा। उदाहरण—मिलनि बिलोकि स्वामि सेवक की उकठे तरु फले फूले-तुलसी। वि० पुं० =उघटा।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उकड़ू					 : | पुं० [सं० उत्कृतोरु] तलवों और चूतड़ों के बल बैठने की वह मुद्रा जिसमें घुटने छाती से लगे रहते हैं। | 
			
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				| उकढ़ना					 : | अ०-कढ़ना (बाहर निकलना)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उकत					 : | स्त्री०=उक्ति। (कथन)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उकताना					 : | अ० [सं० आकुल, पुं० हिं० अकुलताना] बैठे-बैठे या कोई काम करते-करते जी घबरा जाना। ऊबना। | 
			
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				| उकती					 : | स्त्री० उक्ति। | 
			
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				| उकलना					 : | अ० [सं० उत्+कलन-खुलना, प्रा० उक्कल, गु० उकलवू, उकालो० मरा० उकल (णों)] कपड़े आदि की तह या लपेट खुलना। | 
			
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				| उकलवाना					 : | स० [हिं० उकेलना का प्रे०] उकेलने का काम दूसरे से कराना। | 
			
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				| उकलाई					 : | स्त्री० [सं० उद्रिरण, हिं० उगलना] १. उगलने की क्रिया या भाव। २ उल्टी। कै। स्त्री० [हिं० उकलना] उकलने या उकेलने की क्रिया, भाव या मजदूरी। | 
			
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				| उकलाना					 : | अ० [हिं० उकलाई] १. उगलना। उलटी करना। कै करना। अ० [सं० आकुल] आकुल होना। अकुलाना। उदाहरण—...जिवड़ों अति उकलावै।—मीराँ।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उकलेसरी					 : | पुं० [अंकलेश्वर (स्थान का नाम)] हाथ का बना एक प्रकार का कागज। | 
			
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				| उकवत					 : | पुं० [सं० उत्कोथ] एक प्रकार का चर्म रोग जिसमें छोटे-छोटे लाल दाने निकल आते हैं और बहुत खुजली तथा पीड़ा होती है। | 
			
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				| उकसना					 : | अ० [सं० उत्कष] १. नीचे से ऊपर को आना। उभरना। निकलना। २. अंकुरित होना। उगना। ३. ऊपर होने के लिए उचकना। उदाहरण—पुनि पुनि मुनि उकसहिं अकुलाहीं।—तुलसी। अ० [क्रि० उकसाना का अ० रूप] दूसरों द्वारा प्रेरित होना। | 
			
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				| उकसनि					 : | स्त्री० [हिं० उकसना] उकसने की अवस्था या भाव। | 
			
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				| उकसवाना					 : | स० [हिं० उकसना] उकसने या उकासने का काम किसी और से कराना। | 
			
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				| उकसाई					 : | स्त्री० [हिं० उकसाना] उकसाने की क्रिया भाव या मजदूरी। | 
			
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				| उकसाना					 : | स० [हिं० ‘उकसना’ का प्रे० रूप] [भाव० उकसाहट] १. किसी को कोई काम करने के लिए उत्साहित, उत्तेजित या प्रेरित करना। उभाड़ना। २. ऊपर या आगे की ओर बढ़ाना। जैसे—दीए की बत्ती उकसाना। ३. किसी को कहीं से उठाना या हटाना। (क्व०)। | 
			
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				| उकसाहट					 : | स्त्री० [हिं० उकसाना+आहट (प्रत्यय)] १. उकसाने की क्रिया या भाव। २. उत्तेजना। | 
			
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				| उकसौहाँ					 : | वि० [हिं० उकसना+औहाँ (प्रत्यय)] [स्त्री० उकसौही] उकसने, उभड़ने या बाहर निकलने की प्रवृत्ति रखनेवाला। उभड़ता हुआ। | 
			
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				| उकाब					 : | पुं० [अ०] गिद्ध की जाति का एक बड़ा पक्षी। गरुड़। | 
			
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				| उकार					 : | पुं० [सं० उ+कार] १. ‘उ’ स्वर। २. शिव। | 
			
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				| उकारांत					 : | वि० [सं० उकार-अंत, ब० स०] (शब्द) जिसके अंत में ‘उ’ स्वर हो। जैसे—शम्भु, भानु आदि। | 
			
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				| उकालना					 : | स० [सं० उत्कालन] उबालना। स०=उकेलना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उकास					 : | स्त्री० [सं० उकासना] उकासने की क्रिया या भाव। पुं०=अवकाश। | 
			
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				| उकासना					 : | स० [सं० उत्कर्षण] १. खींच या दबाकर बाहर निकालना। २. ऊपर की ओर ढकेलना या फेंकना। ३. उत्तेजित करना। ४. खोलना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उकासी					 : | स्त्री० [हिं० उकसना] उकासने की क्रिया या भाव। स्त्री० [सं० अवकाश] १. छुट्टी। २. अवकाश या छुट्टी के समय मनाया जानेवाला उत्सव।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उकिलन					 : | अ० =उगलना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उकीरना					 : | स० [सं० उत्कीर्णन] १. खोदकर उखाड़ना या निकालना। उदाहरण—इंदु के उदोत तें उकीरी ही सी काढ़ी, सब सारस सरस, शोभासार तें निकारी सी।—केशव। २. उभाड़ना। ३. दे० ‘उकेरना’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उकील					 : | पुं०=वकील।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उकुति					 : | =उक्ति।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उकुति-जुगुति					 : | पद=उक्ति-युक्ति।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उकुरु					 : | पुं० =उकड़ूँ। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उकुसना					 : | अ० =उकसना। स० [?] नष्ट करना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उकेरना					 : | स० [सं० उत्कीर्ण या उकीर्य] पत्थर, लकड़ी, लोहे आदि कड़ी चीजों पर छेनी आदि से नक्काशी करना या बेल-बूटे बनाना। (एनग्रेव)। | 
			
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				| उकेरी					 : | स्त्री० [हिं० उकेरना] १. उकेरने की कला या विद्या। २. उकेरने या खोदकर बेल-बूटे बनाने का काम। नक्काशी। (एनग्रेविंग) | 
			
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				| उकेलना					 : | स० [हिं० उकलना] १. लिपटी हुई चीज को छुड़ाना। २. उधेड़ना। ३. तह खोलना। | 
			
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				| उकौथ (ा)					 : | पुं० =उकवत। (रोग)। | 
			
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				| उकौना					 : | पुं० [हिं० ओकाई ?] गर्भवती स्त्री के मन में होनेवाली अनेक प्रकार की इच्छाएँ। दोहद। क्रि० प्र० उठना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उक्क					 : | अव्य० [हिं० उकड़ूँ ?] १. आगे। २. मुँह के बल। वि०=उत्कंठित।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उक्त					 : | वि० [सं०√वच् (बोलना)+क्त] १. कहा या बतलाया हुआ। २. जिसका वर्णन ऊपर या पहले हुआ हो। जो ऊपर या पहले कहा गया हो। (एफोरसेड)। | 
			
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				| उक्त-निमित्त					 : | वि० [ब० स०] [स्त्री० उक्त=निमित्ता] जिसका निमित्त या कारण स्पष्ट शब्दों में कहा गया हो। जैसे—उक्त निमित्ता। विशेषोक्ति। | 
			
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				| उक्त-प्रत्युक्त					 : | पुं० [द्व० स०] १. लास्य के दस अंगों में से एक। २. कोई कही हुई बात और उसका दिया हुआ उत्तर। बात-चीत। कथोपकथन। | 
			
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				| उक्ताक्षेप					 : | पुं० [उक्त-आक्षेप, तृ० त०] साहित्य में आक्षेप अंलकार का एक भेद, जिसमें किसी से कोई बात इस ढंग से कही जाती है कि उससे नहिक, निषेध या निवारण का भाव प्रकट होता है। जैसे—आप वहाँ जाइये न, मैं क्या मना करता हूँ। (अर्थात् आप वहाँ मत जाएँ) | 
			
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				| उक्ति					 : | स्त्री० [सं०√वच्+क्तिन्] १. किसी की कही हुई कोई बात। कथन। वचन। २. किसी की कही हुई कोई ऐसी अनोखी या महत्त्व की बात जिसका कहीं उल्लेख या चर्चा की जाय। (अटरेन्स) | 
			
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				| उक्ति-युक्ति					 : | स्त्री० [द्व० स०] किसी समस्या के निराकरण के लिए कही हुई कोई बात और बतलाई हुई तरकीब या उक्ति। क्रि० प्र०-भिड़ना।—लगाना। | 
			
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				| उक्ती					 : | स्त्री० =उक्ति।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उक्थ					 : | पुं० [सं०√वच्+थक्] १. उक्ति। कथन। २. सूक्ति। स्त्रोत्र। ३. एक प्रकार का यज्ञ। ४. वह दिन जब यज्ञ में उक्थ अर्थात् स्त्रोत्र पाठ होता है। ५. प्राण। ६. ऋणभक नाम की अष्टवर्गीय ओषधि। | 
			
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				| उक्थी (क्थिन्)					 : | वि० [सं० उक्थ+इनि] स्तोत्रों का पाठ करनेवाला। | 
			
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				| उक्षण					 : | पुं० [सं०√उक्ष् (सींचना)+ल्युट्-अन] [भू० कृ० उक्षित] जल छिड़कने की क्रिया या भाव। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उखटना					 : | अ० [हिं० उखड़ना ?] [सं० उत्कर्षण] १. लड़खड़ाकर गिरना या लड़खड़ाना। २. कुतरना। खोंटना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उखड़ना					 : | स० [सं० उत्खनन, प्रा० उक्खणन] १. ऐसी चीजों का अपने मूल आधार या स्थान से हटकर अलग होना जिनकी जड़ या नीचे वाला भाग जमीन के अंदर कुछ दूर तक गड़ा, जमा या फैला हो। जैसे—(क) आँधी से पेड़-पौधों का उखड़ना। (ख) जमीन में गड़ा हुआ खंबा उखड़ना। २. ऐसी चीजों का अपने आधार या स्थान से हटकर अलग होना जिनका नीचेवाला तल या पार्श्व कहीं अच्छी तरह जमा या बैठा हो। जमा, टिका,ठहरा या लगा न रहना। जैसे—(क) अँगूठी या हार में का नगीना उखड़ना। (ख) दीवार पर का पलस्तर या रंग उखड़ना। ३. दृढ़ता से खड़ी, जमी या लगी हुई चीज का अपने नियत स्थान से कट, टूट या हटकर अलग या इधर-उधर होना। जैसे—(क) कंधे या कोहनी की हड्डी उखड़ना। (ख) कुरसी या चौकी का पाया उखड़ना। (ग) युद्ध-क्षेत्र से सेना के पैर उखड़ना। ४. (आवश्यकता बाधा आदि के कारण) मिलने-जुलने, रहने-बैठने आदि के स्थान से हटकर लोगों का इधर-उधर या तितर-बितर होना। जैसे—(क) साधु-मंडली का डेरा-डंडा उखड़ना। (ख) आँधी-पानी या उपद्रव के कारण खेल, जलसा या मेला उखड़ना। (ग) पुलिस के भय से जुआरियों या शराबियों का अड्डा उखड़ना। ५. भिन्न-भिन्न अंगो, पक्षों, भागों आदि को जोड़ या मिलाकर रखनेवाले तत्त्वों का टूट-फूट कर अलग होना। जैसे—(क) गिलास या थाली का टाँका उखड़ना।(ख) कुरते या जूते की सीयन उखड़ना। (ग) परेते पर से गुड्डी या पतंग उखड़ना। ६. किसी प्रकार के सुदृढ़ आधार या स्वस्थ स्थिति से अस्त-व्यस्त, चंचल या विचलित होना। पहलेवाली अच्छी दशा या स्थिति में बाधा या व्यतिक्रम होना। जैसे—(क) किसी जगह से मन उखड़ना। (ख) बाजार (या समाज) से बनी हुई बात (या साख) उखड़ना। (ग) दूकान पर से ग्राहक उखड़ना। ७. बँधा हुआ क्रम, तार या सिलसिला इस प्रकार भंग होना कि कटुता या विरसता उत्पन्न हो। जैसे—(क) गाने में गवैये का दम या साँस उखड़ना। (ख) चलने या दौड़ने में घोड़े की चाल उखड़ना। ८. आपस की बात-चीत, लेन-देन या व्यवहार में अप्रिय और अवांछित रूप से उग्रता या कठोरता का सूचक परिवर्तन या विकार होना। सम स्थिति से हटकर विषम-स्थिति में आना या होना। जैसे—(क) अब तो आप जरा-जरा सी बात पर उखड़ने लगे हैं। (ख) उनसे मेल-जोल बनाये रखो, कहीं से उखडने मत दो। मुहावरा—उखड़ी उखड़ी बातें करना=सौजन्य या सौहार्द छोड़कर उदासीन या खिन्न भाव से बातें करना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उखड़वाना					 : | स० [उखड़ना का प्रे० रूप] किसी को कुछ या कोई चीज उखाड़ने में प्रवृत्त करना। उखाड़ने का काम किसी से कराना। | 
			
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				| उखभोज					 : | पुं० [हिं० ऊख+सं० भोज] =ईखराज।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उखम					 : | पुं० [सं० ऊष्मा] उष्णता। गरमी। उदाहरण—बैसाख ए सखि उखम लागे चंदन लेपत सरीर हो।—ग्राम्यगीत। | 
			
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				| उखमज					 : | वि० =ऊष्मज्। पुं० [सं० उष्मज्] उपद्रव, बखेड़ा आदि खड़ा करने के लिए मन में होनेवाला दुष्टतापूर्वक विचार। जैसे—तुम्हें भी बैठे-बैठे उखमज सूझा करता है।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उखर					 : | पुं० [हिं० ऊख] ऊख बोने के बाद हल पूजने की रीति जिसे हर-पुजी भी कहते है।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उखरना					 : | अ० =उखड़ना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उखराज					 : | पुं० =ईखराज।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उखरैया					 : | वि० [हिं० उखाड़ना] उखाडऩेवाला। उदाहरण—भूमि के हरैया उखरैया भूमि-घरनि के।—तुलसी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उखली					 : | स्त्री० =ऊखल। | 
			
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				| उखा					 : | उषा।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उखाड़					 : | स्त्री० [हिं० उखाड़ना] १. उखाड़ने की क्रिया या भाव। २. कुश्ती में, किसी का दाव या पेंच व्यर्थ करनेवाला कोई और दाँव या पेंच। | 
			
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				| उखाड़ना					 : | स० [सं० उत्खनन, प्रा० उक्खणन] १. ऐसी चीज खींच या निकाल कर अलग करना जिसकी जड़ या नीचे का भाग जमीन के अंदर गड़ा, जमा या धंसा हो। जैसे—पेड़-पौधे या कील-काँटे उखाड़ना। २. कहीं जमी, ठहरी या लगी हुई चीज खींचकर उसके आधार तल से अलग करना। जैसे—पुस्तक की जिल्द उखाड़ना। अंग के जोड़ पर से किसी की हड्डी उखाड़ना आदि। ३. किसी स्थान पर टिके या ठहरे हुए व्यक्ति को वहाँ से भगाने या हटने के लिए विवश करना। जैसे—दुश्मन के पाँव या पैर उखाड़ना, दरबार में से किसी दरबारी या मुसाहब को उखाड़ना। मुहावरा—(किसी को) जड़ से उखाड़ना=इस प्रकार दूर या नष्ट करना कि फिर अपने स्थान पर आकर ठहर या पनप न सके। | 
			
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				| उखाड़-पछाड़					 : | स्त्री० [हिं० उखाड़ना+पछाड़ना] १. कहीं किसी को उखाड़ने और कही किसी को पछाड़ने की क्रिया या भाव। २. कभी कहीं से कुछ इधर का उधर और कभी कहीं से उधर से इधर (अर्थात् अस्तव्यस्त या उलट-पुलट) करने की क्रिया या भाव। | 
			
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				| उखाड़ू					 : | वि० [हिं० उखाड़ना] प्रायः उखाड़ने का काम करता रहनेवाला। | 
			
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				| उखाणा					 : | पुं० [सं० उपाख्यान] कहावत। (राज०)(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उखारना					 : | स० =उखाड़ना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उखारी					 : | स्त्री० [हिं० ऊख] वह खेत जिसमें ऊख बोया गया हो। उदाहरण—बीच उखारा रम-सरा,रस काहे ना होत।—कबीर।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उखालिया					 : | पुं० [सं० उष+काल] व्रत आरंभ करने से पहले रात के पिछले पहर में किया जानेवाला अल्पाहार। सरगही। | 
			
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				| उखेड़					 : | स्त्री० =उखाड़। | 
			
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				| उखेड़ना					 : | स० =उखाडना। | 
			
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				| उखेरना					 : | स० [हिं० उखेड़ना]-उखाड़ना। स०=उकेरना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उखेरा					 : | पुं० =ऊख। (ईख)। | 
			
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				| उखेलना					 : | स० [सं० उल्लेखन] १. अंकित करना। लिखना। २. उकेरना (दे०)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उख्य					 : | वि० [सं० उखा+यत्] उबाला हुआ। पुं० हाँड़ी में उबाला हुआ मांस, जिसकी यज्ञ में आहुति दी जाती है। | 
			
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				| उगटना					 : | अ० =उघटना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उगत					 : | वि० =उक्त। स्त्री० =उक्ति। | 
			
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				| उगदना					 : | अ० [सं० उद्+गद-कहना] कहना। बोलना। (दलाल)। | 
			
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				| उगना					 : | अ० [सं० उद्गमन, प्रा० उग्गमन, गु० उगवूँ, मरा० उगणें० सि० उगणुँ०] १. वानस्पतिक क्षेत्र में, (क) जमीन के अंदर दबी हुई जड़ या पड़े हुए बीज में अंकुर, पत्ते शाखाएँ आदि निकलना। अंकुरति होना। जैसे—क्यारी में घास, खेत में गेहूँ याजमीन में पेड़ उगना। (ख) पेड़-पौधों के तनों, शाखाओं आदि में से निकलकर ऊपर आना या उठना। जैसे—पौधे में पत्ती या फेड़ में फूल उगना। २. प्राकृतिक कारणों से किसी तल के अंदर से निकलकर ऊपरी या बाहरी स्तर पर आना। जैसे—ठोढ़ी पर तिल उगना, गाल पर बाल या मसा उगना। ३. ग्रह, नक्षत्र आदि का क्षितिज से ऊपर आकर दिखाई देना। उदित होना। जैसे—चंद्रमा या सूर्य उगना। जैसे—रात में चाँदनी या दिन में धूप उगना। ५. किसी चीज का अपने आस-पास की चीजों में रहते हुए भी अपेक्षया अधिक आकर्षक, मोहक या सुंदर प्रतीत होना। सुशोभित होना। खिलना। उदाहरण—पँच-रँग रँग बेंदी उठै ऊगनि मुख—ज्योति। बिहारी। | 
			
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				| उगमन					 : | पुं० [सं० उद्धमन] पूर्व दिशा, जिधर से सूर्य उगता है। | 
			
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				| उगरना					 : | अ० [सं० उद्गरण] १. अंदर भरी हुई चीज का बाहर आना या निकाला जाना। जैसे—कुआँ उगरना-कुएँ काजल बाहर निकाला जाना। २. घर से बाहर होना। निकलना। उदाहरण—गबन करै कहँ उगरै कोई—जायसी। स०=उगलना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उगलना					 : | स० [सं० उदिगलन, प्रा० उग्गिलन, मरा० उगलणें] १. पेट में पहुँची या मुँह में डाली हुई चीज मुँह के रास्ते फिर से निकालना। जैसे—(क) अनपच होने पर खाया हुआ अन्न उगलना। (ख) कड़वी चीज मुँह में रखते ही उगल देना। २. चुरा, छिपा या दबा कर रखी हुई चीज (विवश होने पर) बाहर निकालना या औरों के सामने रखना। जैसे—मार पड़ते ही चोर ने सारा माल उगल दिया। ३. मन में अच्छी तरह छिपा या दबाकर रखी हुई बात दूसरों पर प्रकट करना। जैसे—उसे कुछ रुपयों का लालच दो, तो वह सारा भेद उगल देगा। | 
			
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				| उगलवाना					 : | स० [सं० उगलना का प्रे० रूप] किसी को कुछ उगलने में प्रवृत्त करना। | 
			
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				| उगलाना					 : | स० =उगलवाना। | 
			
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				| उगवना					 : | अ० =उगना। स० =उगाना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उगसाना					 : | स० =उकसाना। | 
			
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				| उगसारना					 : | स० [सं० अग्र+सारण ?] १. आगे या सामने रखना या लाना। २. किसी पर प्रकट या विदित करना। उदाहरण—संगै राजा दुख उगसारा। स०-उकसाना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उगहन					 : | पुं० [सं० उत्+ग्रह] उगने या विदित होने की क्रिया या भाव। उदाहरण—दीजै दरसन दान, उगहन होय जो पुन्य बल।—नंददास। | 
			
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				| उगहना					 : | स० =उगाहना। अ० =उगना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उगहनी					 : | स्त्री० =उगाही। | 
			
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				| उगाना					 : | स० [उगना का स०रूप] १. किसी बीज या पौधे, लता आदि को उगने में प्रवृत्त करना। ऐसा काम करना जिससे कोई चीज उगने लगे। २. उत्पन्न या पैदा करना। जैसे—यह दवा गंजी खोपड़ी पर भी बाल उगा देगी। | 
			
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				| उगार					 : | पुं० [हिं० उगारना] १. उगारने की क्रिया या भाव। २. धीरे-धीरे निचुड़कर इकट्ठा होनेवाला जल। ३. कपड़ा रँगने के बाद उसका निचोड़ा हुआ रंगीन पानी। पुं० =उद्गार।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उगारना					 : | स० [सं० उदगलन] १. कुएँ में ऊपर से पड़ी हुई मिट्टी ०या पुराना खराब पानी निकालकर उसकी सफाई करना। २. उद्धार करना। उबारना। स० दे० ‘उकासना’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उगाल					 : | पुं० [सं० उदगार, पा० उग्गाल] १. उगालने की क्रिया या भाव। २. वह वस्तु जो उगली या मुँह से बाहर निकाली गई हो। जैसे—थूक, पान का पीक आदि। ३. पुराने कपड़े। (ठगों की बोली)। | 
			
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				| उगालदान					 : | पुं० [हिं० उगाल+फा०दान(प्रत्यय)] काँसे, पीतल, मिट्टी आदि का एक प्रकार का पात्र या बरतन जिसमें उगाल (खखार, थूक, पीक आदि) गिराये या थूके जाते है। पीकदान। | 
			
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				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उगालना					 : | स०-१=उगलना। २. =उगलवाना। | 
			
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				| उगाला					 : | पुं० [हिं० उगाल] १. फसल में लगनेवाला एक प्रकार का कीड़ा। २. प्रायः या सदा पानी से तर रहनेवाली जमीन। पनमार। | 
			
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				| उगाहना					 : | स० [सं० उदग्रहण, प्रा० उग्गहन] १. किसी से धन या लेन प्राप्त करना। जैसे—कर या मालगुजारी उगाहना। २. सार्वजनिक कार्य के लिए सहायता के रूप में लोगों से थोड़ा-थोडा धन प्राप्त करना या माँगकर लेना। जैसे—चंदा उगाहना। ३. कही से प्रयत्नपूर्वक कुछ प्राप्त करना। उदाहरण—कोउ वेद वेदांत मथत रस सांत उगाहत।—रत्नाकर। | 
			
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				| उगाही					 : | स्त्री० [हिं० उगाहना] १. उगाहने की क्रिया या भाव। २. वह धन जो उगाहा जाए। कर, चंदे, दान आदि के रूप में इकट्ठा या प्राप्त किया हुआ धन। ३. भूमि का लगान। ४. एक तरह का लेन-देन या व्यवहार जिसमें महाजन ऋणी से अपना धन प्राप्त धन थोड़ा-थोड़ा करके या नियत समय पर वसूल करता है। | 
			
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				| उग्गार					 : | पुं० १. =उगाल। २. =उगार। | 
			
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				| उग्गाहा					 : | पुं० [सं० उगाथा, प्रा० उग्गाहा] आर्या छंद का एक भेद जिसके सम चरणों में अट्ठारह और विषम चरणों में बारह मात्राएँ होती है। | 
			
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				| उग्र					 : | वि० [सं० उच् (एकत्रित करना)+रक्, ग, आदेश] [भाव० उग्रता, स्त्री० उग्रा] १. जो अपने आकार-प्रकार, रूप-रंग आदि की विकरालता के कारण देखनेवालों के मन में आतंक, आशंका या भय का संचार करता हो। जैसे—एक ओर काली, नृसिंह, वराह आदि की उग्र मूर्तियाँ रखी थी। २. जो क्रोध, वैर-विरोध आदि के प्रसंगों में क्रूरता या निर्दयता का व्यवहार करनेवाला हो। बल-प्रयोग करके कष्ट या हानि पहुँचा सकनेवाला। जैसे—परशुराम का उग्र रूप देखकर सब लोग धर्रा गये। ३. जो अपनी तीव्र प्रकृति या कर्कश स्वभाव के कारण सहज में शांत न हो सकता हो और इसी लिए जिसके साथ निर्वाह या व्यवहार करना बहुत कठिन हो। जैसे—ठाकुर साहब ऐसे उग्र थे कि घर के बच्चे भी उनके पास जाने से डरते थे। ४. (कार्य या विचार) जिसमें शांति या सौम्यता के बदले आवेश, कठोरता, नृशंसता आदि बातें अधिक हों अथवा जो व्यवहारिक क्षेत्र में उत्कट या विकट रूप में सक्रिय रहता हो। जैसे—(क) अराजकों की उग्र विचारधारा। (ख) आतताइयों की उग्र कार्य-प्रणाली। (ग) विरोधियों का उग्र प्रदर्शन। ५. जो असाधारण रूप से घन, तीव्र या प्रबल होने के कारण अधिक कष्ट देनेवाला हो। काया या शरीर पर जिसका विशेष कष्टदायक परिणाम प्रभाव होता हो। जैसे—(क) जंगली जातियों के उपचार और चिकित्साएँ प्रायः उग्र होती है। (ख) पार्वती की उग्र तपस्या देखकर सब लोग घबरा गये। ६. जो अपनी प्रबलता, वेग आदि के कारण घातक या हानिकारक सिद्ध हो सकता हो। अति तीव्र और दुखद। जैसे—उग्र मनस्ताप, उग्र महामारी आदि। ७. जो अपनी मात्रा की अधिकता के कारण सहज में सहा न जा सके। जैसे—उग्र गंध। पुं० १. महादेव। शिव। २. विष्णु। ३. सूर्य। ४. क्षत्रिय पिता और शूद्र माता से उत्पन्न एक प्राचीन संकर जाति जिसका स्वभाव मन के अनुसार बहुत उग्र तथा क्रूर था। ५. ज्योतिष में, पूर्वाफाल्गुनी, पूर्वाषाढ़ा, पूर्वाभाद्रपद, मघा और भरणी ये पाँच नक्षत्र जो स्वभावतः उग्र माने जाते है। ६. पुराणानुसार एक दानव का नाम। ७. धृतराष्ट्र के एक पुत्र का नाम। ८. केरल देश का पुराना नाम। ९. सहिजन का वृक्ष। १. बछनाग या वत्सनाभ नामक विष। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उग्र-गंध					 : | पुं० [ब० स०] ऐसी वस्तु जिसकी गंध बहुत अधिक उग्र या तेज हो। जैसे—लहसुन, हींग आदि। | 
			
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				| उग्रगंधा					 : | स्त्री० [सं० उग्रगंध+टाप्] १. अजवायन। २. अजमोदा। ३. बच। ४. नकछिकनी। | 
			
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				| उग्रता					 : | स्त्री० [सं० उग्र+तलस्-टाप्] १. ‘उग्र’ होने की अवस्था या भाव। तेजी। प्रचंड़ता। २. मन की वह अवस्था जिसमें क्रोध आदि एक कारण दया, स्नेह आदि कोमल भावनाएँ बिलकुल दब जाती है। (साहित्य में यह एक संचारी भाव माना गया है)। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उग्र-धन्वा (न्वन्)					 : | पुं० [ब० स०] १. इद्र। २. शिव। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उग्रशेखरा					 : | स्त्री० [सं० उग्र-से खर,कर्म०स०+अच्-टाप्] उग्र अर्थात् शिव के मस्तक पर रहनेवाली, गंगा। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उग्रसेन					 : | पुं० [सं० ब० स०] १. मथुरा के राजा कंस के पिता का नाम। २. महाराज परीक्षित के एक पुत्र का नाम। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उग्रह					 : | पुं० [सं० उदग्रह] १. ग्रह या बंधन से मुक्त होने की क्रिया या भाव। २. ग्रहण से चंद्रमा या सूर्य के मुक्त होने की अवस्था या भाव। | 
			
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				| उग्रहना					 : | स० [सं० उग्रह] १. छोड़ना। त्यागना। २. उगलना। ३. दे० ‘उगाहना’। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उग्रा					 : | स्त्री० [सं० उग्र+टाप्] १. दुर्गा। महाकाली। २. अजवायवन। ३. बच। ४. नकछिकनी। ५. धनिया। ६. उग्र स्वभाववाली या कर्कशा स्त्री। ७. निषाद स्वर की पहली श्रुति। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उघटना					 : | स० [सं० उद्घाटन, प्रा० उग्घाटन] १. किसी का कोई भेद या रहस्य खोलना। प्रकट करना। उदाहरण—धीर वीर सुनि समुझि परस्पर बल उपाय उघटत निज हिय के।—तुलसी। २. आगे पड़ा हुआ परदा या आवरण हटाना। खोलकर सामने रखना या लाना। ३. दबी, बीती या भूली हुई पुरानी बातों की नये सिरे से चर्चा करना। ४. उक्ति या कथन के रूप में उपस्थित करना। कहना। उदाहरण—उघटहिं छन्द प्रबन्ध गीत पर राग तान बन्धान।—तुलसी। ५. अपने किये हुए उपकारों या दूसरों के अपराधों, दोषों आदि की खुलकर चर्चा करना। ६. किसी के पुराने दोषों, पापों आदि की चर्चा करते हुए उन्हें भला-बुरा कहना। निंदा करते हुए गालियाँ देना। उदाहरण—उघटति हौ तुम मात पिता लौ नहि जानौ तुम हमको।—सूर। विशेष—अंतिम दोनों अर्थों में इस शब्द का प्रयोग किसी को ताना देते हुए नीचा दिखाने के लिए होता है। अ० संगीत में, किसी के, गाने-बजाने, नाचने आदि के समय बराबर हर, ताल पर कुछ आघात या शब्द करना। ताल देना। उदाहरण—कोउ गावत कोउ नृत्य करत, कोउ उघटत, कोउ ताल बजावत।—सूर। | 
			
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				| उघटा					 : | वि० [हिं० उघटना] १. दबी या भूली हुई बातें कहकर भेद या रहस्य खोलनेवाला। २. अपने उपकारों या भलाइयों और दूसरे के अपकारों या बुराइयों की चर्चा करनेवाला अथवा ऐसी चर्चा करके ताना देते हुए दूसरे को नीचा दिखानेवाला। पुं० उघटने की क्रिया या भाव। | 
			
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				| उघटा-पुराण					 : | पुं० [हिं० उघटा+सं० पुराण] आपस में एक दोनों के पुराने दोषों और अपने किए हुए पुराने उपकारों का बार-बार अथवा विस्तारपूर्वक किया जाने वाला उल्लेख या कथन। (दूसरे को ताना देते हुए नीचा दिखाने के लिए)। | 
			
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				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उघड़ना					 : | अ० =उघरना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उघन्नी					 : | स्त्री० =उघरनी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उघरना					 : | अ० [सं० उद्घाटन] १. आवरण हट जाने पर, छिपी या दबी हुई वस्तु का प्रकट होना या सामने आना। प्रत्यक्ष, व्यक्त या स्पष्ट होना। उदाहरण—छीर-नीर बिबरन समय बक उघरत तेहि काल।—तुलसी। २. आवरण उतारकर नंगा होना। मुहावरा—उघरकर नाचना=लोक-लज्जा छोड़कर मनमाना, निंदनीय आचरण करना। ३. भेद या रहस्य खुलना। भंडा फूटना। उदाहरण—उघरहिं अंत न होहि निबाहू।—तुलसी। स० दे० ‘उघारना’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उघरनी					 : | स्त्री० [हिं० उघरना या उघारना] १. वह चीज जिससे कोई दूसरी चीज खोली जाए। २. कुंजी। चाभी। ताली। | 
			
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				| उघरारा					 : | वि० [हिं० उघरना] [स्त्री० उघरारी] १. जिसपर कोई आवरण न हो। खुला हुआ। २. जो बंद न हो। ३. नंगा। नग्न। पुं० खुला हुआ स्थान। मैदान। उदाहरण—पावस परखिं रहे उघरारैं। सिसिर समय बसि नीर मँझारें।—पद्माकर। | 
			
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				| उघाड़ना					 : | स० =उघारना। | 
			
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				| उघाड़ा					 : | वि० =उघारा। | 
			
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				| उघार					 : | पुं० [हिं० उघारना] उघारने की क्रिया या भाव। | 
			
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				| उघारना					 : | स० [सं० उद्घाटन] १. आगे पड़ा हुआ आवरण या परदा हटाना। अनावृत और फलतः प्रकट,व्यक्त या स्पष्ट करना। खोलना। उदाहरण—तब सिव तीसर नयन उघारा।—तुलसी। २. पहने हुए वस्त्र हटाकर नंगा करना। ३. (अंग) जिसका कार्य बंद हो उसका कार्य या व्यापार आरंभ करना। जैसे—किसी के आगे जीभ उघारना-जबान या मुँह खोलकर कुछ कहना या माँगना। नैन उघारना=आखें खोलकर देखना। (उदाहरण देखें ‘उघेलना’ में) ४. छिपी, दबी या धँसी हुई चीज ऊपर उठाना। उभारना। | 
			
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				| उघारा					 : | वि० [हिं० उघारना] [स्त्री० उघारी] १. जिसपर कोई आवरण या पर्दा न हो। खुला हुआ। २. जिसके शरीर पर वस्त्र न हो। नंगा। उदाहरण—आप तो कदम चढ़ि बैठे, हम जल माहिं उघारी।—गीत।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उघेड़ना					 : | स० [हिं० उघारना का स्था० रूप] १. खोलना। २. चिपकी, लगी या सटी हुई कोई चीज कहीं से हटाना। ३. ऊपर उठाना। उभारना। उदाहरण—जाय फँसी उकसी न उघारी।—देव।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उघेलना					 : | स० [हिं० उघारना का स्था० रूप] १. आगे पड़ा हुआ आवरण या पर्दा हटाना। उघारना। उदाहरण—सरद चंद मुख जानु उघेली।—जायसी। २. आगे पड़ी हुई चीज हटाकर रास्ता साफ करना। उदाहरण—अबहुँ उघेलु कान के रूई।—जायसी। ३. जिस अंग का कार्य बंद हो, उसका कार्य आरंभ करना। उदाहरण—कत तीतर बन जीभ उघेला।—जायसी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उचंत					 : | वि० पुं० =उचिंत। | 
			
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				| उचकन					 : | पुं० [सं० उच्च-करण] किसी वस्तु को ऊँचा करने के लिए उसके नीचे दिया या रखा जानेवाला कोई आधार या चीज। | 
			
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				| उचकना					 : | पुं० [सं० उच्च-ऊँचा+करण-करना] १. एड़ी उठाकर थोड़ा उछलकर या पंजों के बल खड़े होकर कोई ऊँची चीज देखने या पकड़ने का प्रयत्न करना। जैसे—भीड़ में से कुछ लोग उचक-उचक कर देखने लगे। २. उछलना। उदाहरण—यों कहिकै उचकी परजंक ते पूरि रही दृग वारि की बूँदें।—देव। स० उछल या झपटकर कोई चीज उठाना या छीनना। जैसे—तुम तो उचक्कों की तरह हर चीज उचक ले जाते हों। | 
			
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				| उचका					 : | अव्य० =औचक।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उचकाना					 : | स० [हिं० उचकना का स० रूप] १. कोई चीज ऊपर की ओर उठाना। ऊँचा करना। उदाहरण—बच्छस्थल उमगाइ ग्रीव उचकाइ चाप भिनि।—रत्नाकर। २. दे० ‘उछालना’। | 
			
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				| उचक्का					 : | पुं० [हिं० उचकना] [स्त्री० उचक्की] वह जो उचककर दूसरों की चीजें उठा-उठाकर भाग जाता हो। दूसरों का माल उठाकर भाग जानेवाला व्यक्ति। | 
			
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				| उचटना					 : | अ० [सं० उच्चाटन] १. किसी ऐसे आधार या स्तर पर से किसी वस्तु का अलग होना जिस पर वह चिपकी, लगी या सटी हो। जमी हुई वस्तु का उखड़ना। २. लाक्षणिक अर्थ में किसी कार्य, व्यक्ति या स्थान से जी ऊब जाना। मन घबरा जाना। विरक्त होना। | 
			
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				| उचटाना					 : | स० [हिं० उचटना का स०] १. ऐसा काम करना जिससे कोई लगी हुई चीज कहीं से उचटे। उखाड़ना। २. ऐसा उपाय या प्रयत्न करना जिससे किसी का मन कहीं से किसी ओर हटे। उदासीन या विरक्त करना। उदाहरण—चुगली करी जाइ उन आगे, हमतें वे उचटाए।—सूर। | 
			
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				| उचड़ना					 : | अ०१=उचटना। २. =उखड़ना। | 
			
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				| उचना					 : | अ० [सं० उच्च] १. ऊँचा होना। ऊपर उठना। २. दे०‘उचकना’। स० ऊँचा करना। ऊपर उठना। उदाहरण—अंगुरिनि उचि भरु भीति कै उलमि चितै चख लोल।—बिहारी। | 
			
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				| उचनि					 : | स्त्री० [सं० उच्च] १. ऊँचे या ऊपर उठे होने की अवस्था या भाव। २. उठान। उभार।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उचरंग					 : | पुं० [हिं० उघरना+अंग] उड़नेवाला कीड़ा। फतिंगा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उचरना					 : | स० [सं० उच्चारन०] १. उच्चारण करना। मुँह से शब्द निकालना। २. किसी से कुछ कहना। बोलना। उदाहरण—तब श्रीपति बानी उचरी।—सूर। अ० १. उच्चारित होना। मुँह से बोला जाना। २. लिखे हुए अक्षरों या लिपि का पढ़ा जाना। अ० =उचटना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उचराई					 : | स्त्री० [हिं० उचरना] १. उच्चारन करने की क्रिया, भाव या स्थिति। २. उच्चारण करने का पारिश्रमिक। | 
			
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				| उचलना					 : | अ० १=उचकना। २. =उचटना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उचाट					 : | पुं० [सं० उच्चाटन] ऐसी स्थिति जिसमें मन किसी बात से ऊब या उदासीन हो गया हो। मन का ऊब जाना अथवा न लगना। वि० [सं० उच्चाटन] १. जो उचट गया हो। २. उदासीन या विरक्त (मन)। जैसे—मन उचाट होना। | 
			
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				| उचाटना					 : | स० [हिं० उचटना] १. किसी का मन कहीं से या किसी की ओर विरक्त करना। उदाहरण—लोग उचाटे अमरपति कुटिल कुअवसर पाइ।—तुलसी। २. ध्यान भंग करना। ३. दे० ‘उचाड़ना’। | 
			
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				| उचाटी					 : | स्त्री० [सं० उच्चाट] मन उचटने की क्रिया या भाव। ऐसी स्थिति जिसमें मन किसी ओर से उदासीन या खिन्न हो गया हो। उचाट होने की अवस्था या भाव। उदाहरण—भइँ सब भवन काज ते भई उचाटी।—सूर।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उचाटू					 : | वि० [हिं० उचाट] उचाटनेवाला।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उचाड़ना					 : | स० [हिं० उचड़ना] किसी से चिपकी, लगी या सटी हुई वस्तु को उससे अलग करना या छुड़ाना। उखाड़ना। | 
			
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				| उचाढ़ी					 : | स्त्री० =उचाटी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उचाना					 : | स० [सं० उच्च-करण] १. ऊपर की ओर बढ़ाना। ऊँचा करना। २. उठाना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उचायत					 : | वि० पुं० =उचिंत।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उचारना					 : | स० [सं० उच्चारण] १. उच्चारण करना। २. कहना या बोलना। उदाहरण—मधुर मनोहर बचन उचारे। -तुलसी। स०=उचाड़ना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उचालना					 : | स० १. =उचाड़ना। २. =उछालना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उचिंत					 : | पुं० [हिं० उचना-उठाना(ऊपर से लेना)] १. लेन-देन की वह परिपाटी जिसमें कहीं से कुछ धन थोड़े समय के लिए इस रूप में लिया जाता है कि उसका पूरा हिसाब वह धन व्यय हो जाने के बाद में दिया जायगा। (सस्पेन्स) जैसे—अभी १00 उचिंत में दे दीजिए, हिसाब कल लिखा दूँगा। २. वह धन या रकम जो इस प्रकार दी या ली जाए। वि० (धन) जो उक्त प्रकार से दिया या लिया जाए। | 
			
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				| उचिंत खाता					 : | पुं० [हिं० उचिंत+खाता] पंजी या बही में वह खाता या विभाग जिसमें अस्थायी रूप से ऐसी रकमें लिखी जाती है जिनका ठीक या पूरा हिसाब बाद में होने को हो। (सस्पेंस एकाउंट) | 
			
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				| उचित					 : | वि० [सं० उच् (समवाय)+क्त] [भाव० औचित्य] १. जो किसी अवसर या परिस्थिति के अनुकूल या उपयुक्त हो। मुनासिब। वाजिब। जैसे—अपराधियों को उचित दंड मिलना चाहिए। २. जो व्यक्ति,स्थिति आदि के विचार से वैसा ही हो,जैसा साधारणतः होना चाहिए। ठीक। जैसे—आपने उनके साथ जो व्यवहार किया,वह उचित ही था। ३. जो आदर्श, न्याय आदि के विचार से वैसा ही हो, जैसा होना चाहिए। जैसे—उचित आलोचना, उचित दृष्टिकोण, उचित मार्ग आदि। ४. मात्रा या मान के विचार से उतना ही, जितना प्रसम रूप में होना चाहिए। जैसे—औषध की उचित मात्रा, यात्रा का उचित व्यय। | 
			
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				| उचिस्ट					 : | वि०=उच्छिष्ट।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उचेड़ना					 : | स० =उचाड़ना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उचौहाँ					 : | वि० [हिं० ऊँचा+औहाँ (प्रत्यय)] [स्त्री० उचौहीं] ऊपर की उठा हुआ, उभरा या तना हुआ।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उच्चंड					 : | वि० [सं० उद्√चण्ड्(कोप)+अच्] बहुत अधिक उग्र या चंड। प्रचंड। | 
			
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				| उच्च					 : | वि० [सं० उद्√चि(चयन करना)+ड] १. जिस का विस्तार ऊपर की ओर बहुत दूर तक हो। जैसे—उच्च शिखर। मुहावरा—उच्च के चंद्रमा होना=सौभाग्य और उन्नति के लिए उपयुक्त समय होना। २. जो किसी विशिष्ट मानक, मान या स्तर से आगे बढ़ा हुआ हो। जैसे—उच्च रक्त-चाप, उच्च विद्यालय,उच्च शिक्षा आदि। ३. जो अधिकार, पद आदि के विचार से औरों से ऊपर या उनसे बड़ा हों। जैसे—उच्च अधिकारी। ४. विभाग, श्रेणी आदि के विचार से औरों के आगे बढ़ा हुआ, ऊँचा और बड़ा। जैसे—उच्च आसन, उच्च कुल आदि। ५. आचार-विचार, नीति आदि की दृष्टि से महान। श्रेष्ठ। जैसे—उच्च आदर्श, उच्च विचार आदि। पुं० संगीत में, तार नामक सप्तक जो शेष दोनों सप्तकों से ऊँचा होता है। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उच्चक					 : | वि० [सं० उच्च+क] १. बहुत अधिक या सबसे अधिक ऊँचा। २. ऊँचाई के विचार से उस निश्चित सीमा तक पहुँचनेवाला जिससे आगे बढ़ना या ऊपर चढ़ना निषिद्ध या वर्जित हो। (सींलिग) जैसे—सरकार ने गेहूँ का उच्चक मूल्य १६) मन रखा है। | 
			
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				| उच्चतम					 : | वि० [सं० उच्च+तमप्] जो अपेक्षाकृत सबसे ऊँचा हो। जिससे बढ़कर ऊँचा कोई न हो।, अथवा हो ही न सकता हो। पुं० संगीत में, तार से भी ऊँचा सप्तक जो केवल बाजों में हो सकता है, गले की पहुँच के बाहर होता है। | 
			
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				| उच्चता					 : | स्त्री० [सं० उच्च+तल्-टाप्] १. उच्च होने की अवस्था या भाव। २. उत्तमता। श्रेष्ठता। | 
			
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				| उच्च-ताप					 : | पुं० [कर्म० स०] विज्ञान में, ३५॰º से अधिक का ताप। | 
			
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				| उच्च-न्यायालय					 : | पुं० [कर्म० स०] राज्य का वह प्रधान न्यायालय जिसमें कुछ विशेष प्रकार के मुकदमें चलाये जाते हैं तथा राज्य भर की छोटी अदालतों के निर्णयों का पुनर्विचार होता है। (हाई कोर्ट) | 
			
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				| उच्चय					 : | पुं० [सं० उद्√चि (चयन करना)+अच्] १. चयन या इकट्ठा करने की क्रिया या भाव। २. समूह। ढेर। ३. अभ्युदय। ४. त्रिकोण का पार्श्व भाग। | 
			
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				| उच्च रक्त-चाप					 : | पुं० [सं० उच्च-चाप, ष० त०, उच्च-रक्तचाप, कर्म० स०] रक्त चाप का वह रूप जिसमें शरीर के रक्त का वेग बहुत अधिक बढ़ जाता है। (हाई ब्लडप्रेशर)। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उच्चरण					 : | पुं० [सं० उद्√चर् (गति)+ल्युट-अन] [वि० उच्चरणीय, उच्चरित] ओष्ठ, कंठ, जिह्वा, तालु आदि के प्रयत्न से शब्द निकालने की क्रिया या भाव। गले से आवाज निकालना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उच्चरना					 : | स० [सं० उच्चारण] गले और मुँह से कहना या बोलना। उच्चारण करना। उदाहरण—यह दिन-रैन नाम उच्चरै।—तुलसी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उच्चरित					 : | भू० कृ० [सं० उद्√चर्+क्त] १. जिसका उच्चारण किया गया हो। २. कहा हुआ। | 
			
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				| उच्च-वर्ग					 : | पुं० [कर्म० स०] समाज का अधिकतम धनिक तथा सुखी वर्ग। (अपर क्लास) शेष दो वर्ग मध्यम और निम्न कहलाते हैं। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उच्चाकांक्षा					 : | स्त्री० [सं० उच्च-आकाक्षा, कर्म० स०] औरों से बहुत आगे बढ़ने अथवा कोई महत्त्वपूर्ण काम करने की आशंका। (एम्बिशन) | 
			
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				| उच्चाकांक्षी (क्षिन्)					 : | वि० [सं० उच्च-आ√कांक्ष्(चाहना)+णिनि] जिसके मन में बहुत बड़ी या उच्च आकांक्षा हो। (एम्बिशन) | 
			
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				| उच्चाट					 : | पुं० [सं० उद्√चट्(फूटना या फाड़ना)+घञ्] १. उचटने या उचाटने की क्रिया या भाव। २. चित्त का ऊब जाना और फलतः कहीं न लगना। उदासीनता। विरक्ति। उदाहरण—भई वृत्ति उच्चाट भभरि आई भरि छाती।—रत्नाकर। | 
			
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				| उच्चाटन					 : | पुं० [सं० उद्√चट्+णिच्+ल्युट्-अन] [वि० उच्चाटनीय, भू० कृ० उच्चाटित] १. कहीं चिपकी ,लगी या सटी हुई चीज खींचकर वहाँ से अलग करना या हटाना। उचाड़ना। २. उदासीनता या विरक्ति होना। मन उचटना। ३. एक प्रकार का तांत्रिक प्रयोग जिसमें मंत्र-यंत्र आदि के द्वारा किसी का मन किसी भी स्थान से या किसी व्यक्ति की ओर से हटाने का प्रयत्न किया जाता है। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उच्चाटित					 : | भू० कृ० [सं० उद्√चट्+णिच्+क्त] १. उखाड़ा हुआ। उचाड़ा हुआ। २. जिसके ऊपर उच्चाटन का प्रयोग किया गया हो। | 
			
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				| उच्चारण					 : | पुं० [सं० उद्√चर् (गति)+णिच्+ल्युट्-अन] १. मुँह से इस प्रकार शब्द निकालना कि औरों को सुनाई दे। २. मनुष्यों का गले और मुँह के भिन्न अंगों के संयोग से अक्षरों, व्यंजनों आदि के रूप में सार्थक शब्द निकालना। (आर्टिक्युलेन) विशेष—व्यावहारिक क्षेत्र में प्रायः ‘उच्चारण’ का प्रयोग केवल मनुष्यों के संबंध में और ‘उच्चरण’ का प्रयोग मनुष्यों के सिवा पशु-पक्षियों आदि के संबंध में भी होता है। ३. अक्षरों, वर्णों आदि के संयोग से बने हुए सार्थक शब्द कहने या बोलने का निश्चित और शुद्ध ढंग या प्रकार। (प्रोनन्सिएसन) जैसे—अभी तुम्हारा अँगरेजी (या संस्कृत) शब्दों का उच्चारण ठीक नहीं हो रहा है। | 
			
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				| उच्चारणीय					 : | वि० [सं० उद्√चर्+णिच्+अनीयर्] (शब्द) जिसका उच्चारण हो सकता हो या होना उचित हो। | 
			
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				| उच्चारना					 : | स० [सं० उच्चारण] मुँह से शब्द निकालना। उच्चारण करना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उच्चारित					 : | भू० कृ० [सं० उद्√चर्+णिच्+क्त] (शब्द) जिसका उच्चारण किया गया हो। | 
			
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				| उच्चार्य					 : | वि० [सं० उद्√चर्+णिच्+यत्] (शब्द) जिसका उच्चारण किया जा सके। | 
			
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				| उच्चार्यमाण					 : | वि० [सं० उद्√चर्+णिच्+शानच्] जिसका उच्चारण किया जाए अथवा किया जा सके। | 
			
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				| उच्चित्र					 : | वि० [सं० उद्-चित्र, ब० स०] जिसमें या जिसपर बेल-बूटे या दूसरी आकृतियाँ बनी या बनाई गयी हो। (फीगर्ड) जैसे—उच्चित्र वस्त्र। | 
			
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				| उच्चैः					 : | अव्य० ०[सं० उद्√चि(चयन करना)+डैस्] ऊँची आवाज में। ऊँचे स्वर से। | 
			
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				| उच्चैः श्रवा (वस्)					 : | पुं० [सं० ब० स०] इंद्र का सफेद घोड़ा, जो सात मुँहों और ऊँचे या खड़े कानोंवाला कहा गया है। वि० ऊँचा सुननेवाला। बहरा। | 
			
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				| उच्छन्न					 : | वि० [सं० उद्√छद् (ढाँकना)+क्त] काट, खोद या तोड़फोड़ कर नष्ट किया हुआ। | 
			
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				| उच्छरना					 : | अ० =उछलना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उच्छल					 : | वि० [सं० उद्√शल् (गति)+अच्] १. ऊपर की ओर उछलने या उड़नेवाला। उदाहरण—ज्वार मग्न कर उच्चल प्राणों के प्रवाह को आवर्तों के गंड शून्य इसमें क्या संशय।—सुमित्रानंदन पंत। २. लहराता या हिलता हुआ। | 
			
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				| उच्छलन					 : | पुं० [सं० उद्√शल्+ल्युट्-अन] [भू० कृ० उच्छलित] उछलना। तंरगित होना। पुं० [सं० ] [वि० उच्छलित्] जोर से ऊपर की ओर उठने अथवा उछलने की क्रिया या भाव। उछाल। | 
			
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				| उच्छलना					 : | अ० =उछलना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उच्छलिध्र					 : | पुं० =उच्छिलीध्र।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उच्छव					 : | पुं० =उत्सव।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उच्छादन					 : | पुं० [सं० उद्√छद्+णिच्+ल्युट्-अन] १. आच्छादन। २. शरीर पर सुगंधित द्रव्य मलना या लगाना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उच्छाव					 : | पुं० =उत्साह।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उच्चास					 : | पुं० =उच्छ्वास।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उच्छाह					 : | पुं० =उत्सव।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उच्छित्ति					 : | स्त्री० [सं० उद्√छिद् (काटना)+क्तिन्] नाश। विनाश। | 
			
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				| उच्छिन्न					 : | वि० [सं० उद्√छिद्+क्त] काट, खोद या तोड़-फोड़कर नष्ट किया हुआ। | 
			
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				| उच्छिलीध्र					 : | पुं० [सं० उद्-शिलीध्र, प्रा० स०] कुकुरमुत्ता नाम की वनस्पति। | 
			
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				| उच्छिष्ट					 : | वि० [सं० उद्√शिष् (बचना)+क्त] १. (खाद्य पदार्थ) जो किसी के भोजन करने के बाद उसके आगे बच गया हो। २. जो किसी ने खाकर जूठा कर दिया हो। ३. (कोई पदार्थ) जो किसी ने उपयोग या व्यवहार के उपरांत रद्दी या व्यर्थ समझकर छोड़ दिया हो। ४. अपवित्र। अशुद्ध। पुं० १. जूठी बची हुई चीज। जूठन। २. मधु। शहद। | 
			
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				| उच्छिष्ट भोजी (जिन्)					 : | वि० [सं० उच्छिष्ट√भुज् (खाना)+णिनि] जो दूसरों का झूठा छोड़ा हुआ अन्न खाता हो। जूठन खानेवाला। | 
			
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				| उच्छू					 : | पुं० [सं० उत्थान, पं० उत्थू] कोई चीज गले में फँसने अथवा नाक में पानी चढ़ जाने से आनेवाली एक प्रकार की खाँसी। | 
			
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				| उच्छृंखल					 : | वि० [सं० उद्-श्रंखला, ब० स०] [भाव० उच्छृंखलता] १. जो क्रमिक, व्यवस्थित या श्रृंखलित न हो। २. जिसका अपने ऊपर नियंत्रण या शासन न हो। ३. मनमाना काम करनेवाला। स्वेच्छाचारी। निरंकुश। ४. किसी का दबाव न माननेवाला। उद्दंड। | 
			
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				| उच्छेता (त्तृ)					 : | वि० [सं० उद्√छिद् (काटना)+तृच्] उच्छेद करनेवाला। | 
			
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				| उच्छेद					 : | पुं० [सं० उद्√छिद्+घञ्] १. जड़ से उखाड़ने अथवा काटकर अलग करने की क्रिया या भाव। २. नष्ट या समाप्त करना। ३. मत, सिद्धांत आदि का पूर्ण रूप से किया हुआ खंडन। | 
			
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				| उच्छेदन					 : | पुं० [सं० उद्√छिद्+ल्युट्-अन] १. जड़ से अच्छी तरह उखाड़ने अथवा काटकर अलग करने की क्रिया या भाव। २. खंडन। ३. नाश। | 
			
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				| उच्छेद-वाद					 : | पुं० [ष० त०] यह दार्शनिक सिद्धांत कि आत्मा वास्तव में कुछ भी नहीं। ‘शाश्वतवाद’ का विपर्याय। | 
			
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				| उच्छेदवादी (दिन्)					 : | वि० [सं० उच्छेद√वद्+णिनि] उच्छेदवाद संबंधी। पुं० वह जिसकी आस्था उच्छेदवाद में हो। | 
			
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				| उच्छेदी (दिन्)					 : | वि० [सं० उद्√छिद्+णिनि] उच्छेदन करनेवाला। | 
			
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				| उच्छ्वसन					 : | पुं० [सं० उद्+श्वस्(साँस लेना)+ल्युट-अन] गहरा, ठंढ़ा या लंबा साँस लेना। | 
			
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				| उच्छ्वसित					 : | वि० [सं० उद्√श्वस्+क्त] १. जो उच्छ्वास के रूप में बाहर आया हो। २. खिला हुआ। विकसित। | 
			
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				| उच्छ्वास					 : | पुं० [सं० उद्√श्वस्+घञ्] [वि० उच्छ्वसित, उच्छ्वासी] १. ऊपर की ओर छोड़ा या निकाला हुआ श्वास या साँस। २. सहसा कुछ गहराई से निकलकर ऊपर आनेवाला वह श्वास या साँस जो साधारण से कुछ अधिक खिंचा हुआ और लंबा होता है, आसपास के लोगों को थोड़ा बहुत सुनाई पड़ता है और प्रायः इस बात का सूचक होता है कि श्वास लेनेवाले के मन में कोई विशेष कष्ट या वेदना है अथवा उसके मन पर पड़ा हुआ भार कुछ हलका हुआ है। गहरा या लंबा साँस। आह भरना। उसास। ३. वह नली जिससे फूँककर हवा छोड़ी जाती है। ४. किसी चीज के सड़ने पर उसमें उठनेवाला खमीर। ५. मरण। मृत्यु। ६. ग्रंथ का कोई अध्याय, प्रकरण या विभाग। | 
			
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				| उच्छ्वासित					 : | भू० कृ० [सं० उच्छ्वास+इतच्] १. उच्छ्वास के रूप में बाहर आया या निकला हुआ। २. विकसित। प्रफुल्लित। | 
			
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				| उच्छ्वासी (सिन्)					 : | वि० [सं० उद्√श्वस्+णिनि] १. उच्छ्वास या ऊँची साँस लेनेवाला। आह भरनेवाला। २. प्रफुल्लित या विकसित होनेवाला। | 
			
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				| उछंग					 : | पुं० [सं० उत्संग, प्रा० उच्छंग] क्रोड़। गोद। कोरा। मुहावरा—उछंग (में) लेना=आलिंगन करना। गोंद लेना। | 
			
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				| उछकना					 : | अ० [हिं० उझकना-चौंकना] १. चकित होना। चौंकना। २. होश में आना। ३. दे०‘उचकना’।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उछक्का					 : | वि० [हिं० उछकना-उछलना] जगह-जगह उछलता फिरनेवाला। स्त्री० कुलटा या दुश्चरित्र स्त्री। | 
			
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				| उछटना					 : | अ० =उचटना। | 
			
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				| उछटाना					 : | स० [हिं० उचटना] १. उखाड़ना या उचाड़ना। २. कहीं से किसी का चित्त उचाट करना। | 
			
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				| उछरना					 : | अ० =उछलना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उछल-कूद					 : | स्त्री० [हिं० उछलना+कूदना] १. बार-बार उछलने या कूदने की क्रिया या भाव। २. बालकों की या बालकों जैसी कीड़ा। ३. अध्यवसाय, आवेग, उत्सुकता, व्यग्रता आदि का अनाचक ऐसा दिखौआ प्रयत्न जो अंत में प्रायः निरर्थक सिद्ध हो। जैसे—उछल-कूद तो तुमने बहुत की, पर फल कुछ न निकला। | 
			
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				| उछलना					 : | अ० [सं० उच्छलन, पं० उच्छलना, गुं० उचलगूँ, सिं० उछलणुँ] १. किसी ऊँचे स्थान पर पहुँचने के लिए पैरों के आधार पर अपने स्थान से सहसा और वेगपूर्वक ऊपर की ओर उठना या बढ़ना। जैसे—सिपाही का उछलकर घोड़े पर चढ़ना, बंदर का उछलकर छत पर पहुँचना। २. झटका या धक्का लगने पर कुछ वेगपूर्वक ऊपर उठना। जैसे—तेज हवा में नदी का पानी उछलना, लेकर चलने के समय बाल्टी या लोटे का दूध उछलना, पुल या पेड़ से टकराने के कारण गाड़ी का उछलकर गड्डे में जा गिरना। ३. सहसा चकित विशेष प्रसन्न होने की दशा में अथवा आवेग आदि के कारण शरीर या उसके कुछ अंगों का आधार पर से हिलकर कुछ ऊपर उठना। जैसे—(क) कमरे में साँप देखकर या मित्र के आने का समाचार सुनकर वह उछल पड़ा। (ख) पिता या माता के देखते ही बच्चे उछलने लगते हैं। ४. बार-बार या रह-रहकर ऊपर या सामने आना। जैसे—तुम लाख छिपाओ पर तुम्हारीं करतूत उछलती रहेगी। ५. चिन्ह या लक्षण दृष्टिगत या प्रत्यक्ष होना। सामने आना। उदाहरण—लागे नख उछरै रंगधारी।—जायसी। | 
			
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				| उछलाना					 : | स० [हिं० उछलना का प्रे० रूप] किसी को उछलने में प्रवृत्त करना। स० दे० ‘उछालना’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उछव					 : | पुं० =उत्सव। उदाहरण—आगमि सिसुपाल मंडिजै ऊछव।—प्रिथीराज।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उछाँटना					 : | स०१. दे ‘उचाटना’। २. दे० ‘छांटना’। | 
			
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				| उछार					 : | स्त्री० =उछाल।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उछारना					 : | स० =उछालना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उछाल					 : | स्त्री० [हिं० उछलना] १. उछलने या उछालने की क्रिया या भाव। २. उछलकर एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुँचने की क्रिया या भाव। मुहावरा—उछाल भरना या मारना=(क) जोर से ऊपर उठकर दूर जाना। (ख) ऊपर से नीचे की ओर कूदना। ३. उतना अंतर या दूरी जितनी एक बार में उछलकर पार की जाए। ४. वह ऊँचाई या सीमा जहाँ तक कोई चीज उछलकर पहुँचती हो। जैसे—ज्यों ज्य़ों हवा तेज होती हैं, त्यों-त्यों नदी के पानी की उछाल बढ़ती है। ५. ऊँचाई। उदाहरण—इक लख जोजन भानु तै है ससिलोक उछार।—विश्रामसागर। ६. संगीत में, स्थायी या पहला पद गा चुकने पर फिर से वही पद अथवा उसका कुछ अंश अपेक्षया ऊँचे स्वर में गाना। ७. उलटी। कै। वमन। | 
			
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				| उछाल छक्का					 : | स्त्री० [हिं० उछाल+छक्का-पंजा में का छक्का] व्यभिचारिणी। कुलटा। | 
			
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				| उछालना					 : | स० [सं० उच्छालन] १. वेगपूर्वक ऊपर की ओर फेकना। किसी को ऊपर उछलने में प्रवृत्त करना। जैसे—गेंद या फूल उछालना। २. ऐसा अनुचित या निंदनीय कार्य करना जिससे लोक में अपकीर्ति या उपहास हो। जैसे—(क) बाप-दादा का नाम उछालना=बड़ों के नाम पर कलंक लगाना। (ख) किसी की पगड़ी उछालना=किसी को अपमानित करके हास्यास्पद बनाना। | 
			
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				| उछाला					 : | पुं० [हिं० उछाल] १. उछलने या उछालने की क्रिया या भाव। २. खौलती हुई चीज में आनेवाला उबाल। ३. उलटी। कै। वमन। | 
			
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				| उछाव					 : | पुं० =उछाह। | 
			
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				| उछाह					 : | पुं० [सं० उत्साह, प्रा० उस्साह, सिं० उसा, मरा० उच्छाव] १. मन में होनेवाला उत्साह। उमंग। जोश। उदाहरण—इति असंक मन सदा उछाहू।—तुलसी। २. किसी काम के लिए होनेवाली गहरी लालसा या प्रबल उत्कंठा। पुं० [सं० उत्सव] १. आनंद या उत्सव के समय होनेवाली धूम-धाम। उदाहरण—संग संग सब भए उछाहा।-तुलसी। २. जैनों में रथयात्रा का उत्सव। | 
			
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				| उछाही					 : | वि० [हिं० उछाह] उछाह या आनंद मनानेवाला। वि०=उत्साही।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उछिन्न					 : | वि० =उच्छिन्न।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उछिष्ट					 : | वि० =उच्छिष्ट।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उछीनना					 : | स० [सं० उच्छिन्न] १. जड़ से उखाड़ना। उन्मूलन करना। २. नष्ट-भ्रष्ट करना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उछीर					 : | पुं० [?] १. ऊपर से खुला हुआ स्थान। २. बीच की खाली जगह। अवकाश। ३. दरार। रंध्र।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उछेद					 : | पुं० =उच्छेद।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उछ्छव					 : | पुं० =उत्सव। | 
			
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				| उजका					 : | पुं० [हिं० उझकना] पशु-पक्षियों को खेत में चरने या चुगने से रोकने तथा उन्हें भयभीत करने के लिए लगाया जानेवाला घास-फूस, चितड़ों आदि से बना हुआ पुतला। बिजूखा। धोखा। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उजट					 : | पुं० [सं० उटज] कुटी। झोपड़ा।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उजड़ना					 : | अ० [सं० उज्झ-छोड़ना या त्यागना+ना (प्रत्यय)] १. बसे हुए स्थान में की आबादी न रहने या हट जाने के कारण उस स्थान का टूट-फूटकर निकम्मा हो जाना। उजाड़ हो जाना। २. परित्यक्त होने अथवा तोड़े-पोड़े जाने के कारण नष्ट-भ्रष्ट और श्री-हीन हो जाना। जैसे—खेत या गाँव उजड़ना। ३. आघात, आपत्ति आदि के कारण बुरी तरह से नष्ट होना। जैसे—चोरी होने (या लड़का मरने) से घर उजड़ना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उजड़वाना					 : | स० [हिं० उजाड़ना का प्रे० रूप] उजाड़ने का काम किसी दूसरे से कराना। किसी को कुछ उजाड़ने में प्रवृत्त करना। | 
			
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				| उजड्ड					 : | वि० [सं० उद-बहुत+जड़-मूर्ख] १. जो शिष्ट समाज के आचारों, व्यवहारों आदि से बिलकुल अनभिज्ञ हो। गँवार। २. अक्खड़। उद्दंड। | 
			
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				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उजड्डपन					 : | पुं० [हिं० उजड्ड+पन(प्रत्यय)] उजड्ड होने की अवस्था या भाव। | 
			
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				| उजबक					 : | पुं० [तु०] तातारियों की एक जाति। वि० परम मूर्ख। मूढ़। | 
			
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				| उजर					 : | वि० १. =उजाड़। २. =उज्जवल। पुं० =उज्र।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उजरत					 : | पुं० [अ०] १. पारिश्रमिक। २. मजदूरी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उजरना					 : | [अ०] १. =उजड़ना। उदाहरण—बसत भवन उजरउ नहिं डरहूँ।—तुलसी। २. -उज्जवल या प्रकाशमय होना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उजरा					 : | वि० =उजला।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उजराई					 : | स्त्री० [हिं० उज्जर]-उजलापन (उज्ज्वलता)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उजराना					 : | स० [सं० उज्जवल] उज्ज्वल,निर्मल या स्वच्छ कराना। उजला करना। अ० उजला या स्वच्छ होना। स०-उजड़वाना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उजलत					 : | स्त्री० [अ०] उतावली। जल्दबाजी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उजलवाना					 : | स० [उजालना का प्रे० रूप] दूसरे से कोई चीज उज्ज्वल या स्वच्छ करवाना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उजला					 : | वि० [सं० उज्ज्वलक, पा० प्रा० उज्जलज, का० बोझुलु, पं० उज्जला, उजला, गु० उजलू, सि० उजलु] [स्त्री० उजली] १. चमकता हुआ। २. प्रकाश से युक्त। दीप्त। जैसे—उजला घर। ३. जो निर्मल साफ या स्वच्छ हो। जैसे—उजले कपड़े। पुं० धोबी। (स्त्रियाँ)। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उजलापन					 : | पुं० [हिं० उजला+पन प्रत्यय] उजले (उज्जवल या स्वच्छ) होने की अवस्था या भाव। उज्ज्वलता। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उजवास					 : | पुं० [सं० उद्यास-प्रयत्न] चेष्टा। प्रयत्न। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उजहदार					 : | वि० [फा० वजः दार] १. मिला हुआ। युक्त। उदाहरण—पंच तत ते उजहदार मन पवन दोऊ हस्ती घोड़ा गिनांन ते ऊषै भंडार।—गोरखनाथ। २. सुशोभित। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उजागर					 : | वि० [सं० उत्+जागृ उज्जागर, गुं० मरा० उजगरा] १. उज्ज्वल और प्रकाशमय। चमकता हुआ। उदाहरण—सिय लधु भगिनि लखन कहँ रूप उजागरि।—तुलसी। २. जिसका यश चारों ओर फैला हो। ३. विशेष रूप से प्रसिद्ध। उदाहरण—पंडित मूढ़ मलीन उजागर।—तुलसी। मुहावरा—बाप-दादा का नाम उजागर करना=(क) कुल की कीर्ति या यश बढ़ाना। (ख) कुल में कलंक लगाना।(व्यंग्य)। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उजाड़					 : | पुं० [सं० उज्झ-छोड़ना या त्यागना+आड़(प्रत्यय)] १. उजड़ने या उजाड़ने की क्रिया या भाव। २. ऐसा स्थान जहाँ के निवासी दैवी विपत्तियों (जैसे—दुर्भिक्ष, बाढ़, भूकंप आदि) के कारण नष्ट हो चुके हों अथवा वह स्थान छोड़कर कहीं चले गये हों। ३. ऐसा निर्जन स्थान जहाँ झाड़-झंखाड़ के सिवा और कुछ न हो। वि० १. उजड़ा हुआ। जिसमें आबादी या बस्ती न हो। पद-उजाड़=जंगल। २. गिरा-पड़ा। टूटा-फूटा। ध्वस्त। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उजाड़ना					 : | स० [हिं० उजाड़+ना (प्रत्यय)] १. अच्छी तरह तोड़-फोड़कर चौपट या नष्ट-भ्रष्ट करना। जैसे—खेत या बाग उजाड़ना। उदाहरण—रखवारे हति विपिन उजारे।—तुलसी। २. बहुत अधिक आघात या प्रहार करके किसी की सत्ता ऐसी अस्त-व्यस्त या विकृत करना कि वह फिर काम में आने के योग्य न रह जाए। जैसे—(क) गाँव,घर या नगर उजाड़ना।३. बुरी तरह से नष्ट या बरबाद करना। जैसे—ऐयाशी या जूए में रुपए उजाड़ना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उजाड़ू					 : | वि० [हिं० उजाड़ना] १. उजाड़नेवाला। २. बुरी तरह से नष्ट या बरबाद करनेवाला। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उजाथर					 : | वि०=उजागर। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उजान					 : | पुं० [सं० उद्=ऊपर+यान=जाना] १. धारा, नदी आदि की वह दिशा जिधर से बहाव आ रहा हो। २. चढ़ाई। चढाव। क्रि० वि० जिधर से बहाव आ रहा हो उस ओर या दिशा में। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उजार					 : | वि० १. =उजाड़। २. =उजाला।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उजारना					 : | स० [हिं० उजाला] १. उजाला करना। प्रकाश करना। २. उजला या साफ करना। स० =उजाड़ना। उदाहरण—भुवन मोर जिन्ह बसत उजारा।—तुलसी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उजारा					 : | पुं० =उजाला। वि०=उजला।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उजारी					 : | स्त्री० [?] कटी हुई फसल में से किसी देवता या ब्राह्मण के निमित्त निकालकर रखा हुआ अन्न। अगऊँ। स्त्री०=उजाली। (चाँदनी)। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उजालना					 : | स० [सं० उज्ज्वल] १. दीप्त या प्रज्वलित करना। जैसे—दीया उजालना। २. उज्ज्वल या स्वच्छ करना। जैसे—आँगन या घर उजालना। ३. किसी वस्तु को इस प्रकार रगड़-पोछ कर साफ करना कि उसमें चमक आ जाए। जैसे—गहने, बरतन या हथियार उजालना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उजाला					 : | पुं० [सं० उज्ज्वल] १. चाँदनी। प्रकाश। रोशनी। २. प्रातः काल होनेवाला प्रकाश। जैसे—उठो, उजाला हो गया। पद-उजाले का तारा-शुक्र-ग्रह। ३. सूर्य के उदित होने या अस्त होने के समय का मंद या हलका प्रकाश। जैसे—अभी तो उजाला है, घर चले जाओ। ४. वह जिससे कुल,जाति परिवार आदि की कीर्ति, यश या शोभा बढ़े। वि० [स्त्री० उजाली] १. उज्ज्वल। प्रकाशमय। २. साफ। स्वच्छ। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उजाली					 : | स्त्री० [हिं० उजाला] चंद्रमा का प्रकाश। चाँदनी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उजास					 : | पुं० [उजाला+स(प्रत्यय)] १. उजाला। प्रकाश। २. चमक। द्युति। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उजासना					 : | स० [हिं० उजास] १. प्रकाशित या प्रज्वलित करना। २. उज्ज्वल या स्वच्छ करना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उजियर					 : | वि०=उजला।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उजियरिया					 : | स्त्री० [सं० उज्ज्वल] १. चंद्रमा का प्रकाश। चाँदनी। २. चाँदनी रात। शुक्ल पक्ष की रात। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उजियाना					 : | स० [सं० उज्जीवन ?] १. उत्पन्न या पैदा करना। २. प्रकट करना। सामने लाना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उजियार					 : | पुं० [हिं० उजाला] चाँदनी। प्रकाश। उदाहरण—तुलसी भीतर बाहिरै जौ चाहेसि उजियार।—तुलसी। वि० =उजला। | 
			
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				| उजियारना					 : | स० =उजालना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उजियारा					 : | पुं० [सं० उज्ज्वल] उजाला। प्रकाश। रोशनी। वि० [स्त्री० उजियारी] १. प्रकाश से युक्त। उजला। २. कांतिमान। चमकीला।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उजियारी					 : | स्त्री० [हिं० उजियारा] १. चंद्रमा का प्रकाश। चाँदनी। २. चाँदनी रात।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उजियाला					 : | पुं० =उजाला। | 
			
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				| उजीता					 : | वि० [सं० उद्योत, प्रा० उज्जोत] प्रकाशमान। चमकीला। पुं० प्रकाश। रोशनी। | 
			
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				| उजीर					 : | पुं० =वजीर (मंत्री)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उजुर					 : | पुं० =उज्र। | 
			
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				| उजू					 : | स्त्री० दे०‘वजू’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उजूबा					 : | पुं० [अ० अजूबा] बैगनी रंग का एक प्रकार का चमकीला पत्थर। वि०=अजूबा। | 
			
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				| उजेनी					 : | स्त्री० =उज्जयिनी (नगरी)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उजेर					 : | पुं० =उजाला। वि०=उजाला।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उजेरना					 : | स० =उजालना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उजेरा					 : | पुं० [?] ऐसा बैल जो अभी जोता न गया हो। वि०, पुं०=उजाला।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उजेला					 : | वि० पुं० =उजाला। | 
			
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				| उजोरा					 : | वि० पुं० [स्त्री० उजोरी] =उजाला। | 
			
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				| उज्जट					 : | वि० पुं० =उजाड़। वि० =उजड्ड।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उज्जयिनी					 : | स्त्री० [सं० उत्-जय, प्रा० स०+इनि-ङीष्] मध्य भारत की प्रसिद्ध नगरी जो सिप्रा नदी के तट पर है और जो किसी समय मालव देश की राजधानी थी। आधुनिक उज्जैन का पुराना नाम। | 
			
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				| उज्जर					 : | वि० =उजला। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उज्जल					 : | पुं० [सं० उद्-ऊपर+जल-पानी] नदी आदि में बहाव के विपरीत की दिशा या पक्ष। नदी में चढ़ाव की ओर का मार्ग। उजान। वि०=उज्जवल। | 
			
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				| उज्जारना					 : | स० =उजारना। | 
			
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				| उज्जिहान					 : | पुं० [सं० उद्√हा (त्याग)+शानच्] वाल्मीकि के अनुसार एक प्राचीन देश। | 
			
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				| उज्जीवन					 : | पुं० [सं० उद्√जीव्(जीना)+ल्युट्-अन] [वि० उज्जीवित] १. फिर से या दोबारा प्राप्त होनेवाला नया जीवन। २. नष्ट होने से फिर से अस्तित्व में आने या पनपने की अवस्था या भाव। | 
			
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				| उज्जीवित					 : | भू० कृ० [सं० उद्√जीव्+क्त] जिसे फिर से नया जीवन प्राप्त हुआ हो। उदाहरण—त्यागोज्जीवित वह ऊर्ध्व ध्यान धारा स्तव।—निराला। | 
			
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				| उज्जीवी (विन्)					 : | वि० [सं० उद्√जीव्+णिनि] जिसे फिर से नया जीवन मिला हो अथवा मिल सकता हो। | 
			
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				| उज्जैन					 : | पुं० [सं० उज्जयिनी] मालवा की प्राचीन राजधानी। प्राचीन उज्जयिनी नगरी का आधुनिक नाम। (दे० ‘उज्जयिनी’) | 
			
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				| उज्ज्वल					 : | वि० [सं० उद्√ज्वल् (दीप्ति)+अच्] [भाव० उज्ज्वलता] १. जो जलकर प्रकाश दे रहा हो। २. चमकीला। प्रकाशमान। प्रदीप्त। ३. कांतिमान और सुंदर। ४. निर्मल। स्वच्छ। ५. सफेद। पुं० १. स्वर्ण। सोना। २. प्रेम। मुहब्बत। | 
			
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				| उज्ज्वलता					 : | स्त्री० [सं० उज्ज्वल+तल्-टाप्] उज्ज्वल होने की अवस्था या भाव। | 
			
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				| उज्ज्वलन					 : | पुं० [सं० उद्√ज्वल्+ल्युट्-अन] [भू० कृ० उज्ज्वलित] १. प्रज्वलित करने की क्रिया या भाव। जलाना। २. कीर्ति या प्रकाश से युक्त करना। ३. अच्छी तरह से साफ करके चमकाना। ४. अग्नि। आग। ५. स्वर्ण (सोना)। | 
			
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				| उज्ज्वला					 : | स्त्री० [सं० उद्√ज्वल्+अ-टाप्] १. आभा। प्रभा। २. निर्मल होने की अवस्था या भाव। ३. एक प्रकार का छंद या वृत्त। | 
			
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				| उज्झटित					 : | वि० [सं० उद्√झट् (संहति)+क्त] १. उधेड़बुन, उलझन या दुबिधा में पड़ा हुआ। २. उलझा हुआ। ३. बहुत ही घबराया हुआ या विकल। | 
			
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				| उज्झड़					 : | वि०=उजड्ड। | 
			
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				| उज्झन					 : | पुं० [सं०√उज्झ् (त्यागना)+ल्युट्-अन] छोड़ने, त्यागने अथवा हटाने की क्रिया या भाव। परित्याग। | 
			
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				| उज्झित					 : | भू० कृ० [सं०√उज्झ्+क्त] १. छोड़ा या त्यागा हुआ। जैसे—भुक्तोज्झित-खाने के बाद जूठा छोड़ा हुआ। २. दूर किया या हटाया हुआ। | 
			
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				| उज्यारा					 : | वि० पुं० =उजाला।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उज्यारी					 : | स्त्री० =उजाली।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उज्यास					 : | पुं० =उजास।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उज्र					 : | पुं० [अ०] किसी कार्य या कथन के संबंध में की जानेवाली आपत्ति। | 
			
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				| उज्रदार					 : | वि० [फा०] [भाव० उज्रदारी] किसी कार्य या बात से असहमत होने पर उसके संबंध में उज्र या आपत्ति करनेवाला। | 
			
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				| उज्रदारी					 : | स्त्री० [फा०] किसी काम या बात के संबंध में, मुख्यतः न्यायालय में की जानेवाली आपत्ति। | 
			
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				| उझकना					 : | अ० [हिं० उचकना] १. झाँकने, ताकने या देखने के लिए ऊँचा होना या सिर बाहर निकालना। उचकना। उदाहरण—उझकि झरोखे झाँके नंदिनी जनक की।—गीत। २. ऊपर उठना। उभरना। ३. चौंकना। | 
			
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				| उझपना					 : | अ० [हिं० झपना का विपर्याय] पलकों का ऊपर उठे रहना। (झपना का विपर्याय) उदाहरण—बरुई में फिरै न झपैं उझपैं पल में न समइबो जानती है।—भारतेन्दु। स० कुछ देखने के लिए आँख खोलना। | 
			
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				| उझरना					 : | अ० [सं० उत्+सरण] १. हचना। २. ऊपर की ओर खिसकना। स०-उँड़ेलना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उझल					 : | स्त्री० [हिं० उलझना] १. उलझने या उँड़ेलने की क्रिया या भाव। २. वर्षा। वृष्टि। ३. अचानक किसी चीज के बहुत अधिक मात्रा में आ पड़ने का भाव।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उझलना					 : | अ० [सं० उज्झरण] वेग से किसी चीज का दूसरी चीज में आ गिरना या आ पड़ना। उदाहरण—वह सेनि दरेरन देति चली मनु सावन की सरिता उझली।—सूदन। स० =उँड़ेलना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उझाँकना					 : | अ० =झाँकना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उझालना					 : | स० =उलझना (उँड़ेलना)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उझिल					 : | स्त्री० [हिं० उझलना] १. उलझने या उँड़ेलने की क्रिया या भाव। २. उझल या उँड़ेलकर लगाया हुआ ढेर। उदाहरण—रूपकी उझिल आछे नैनन पै नई नई।—घनानंद।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उझिलाना					 : | स० =उझलना। (उँड़ेलना)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उझिला					 : | स्त्री० [हिं० उझिलना] १. उबटन के लिए उबाली हुई सरसों। २. पिसे हुए पोस्त के दानों के साथ महुए को उबालकर बनाया हुआ एक प्रकार का पेय। ३. खेत की ऊँची भूमि से खोदी हुई मिट्टी जो उसके गड्ढ़ों में भरी जाती है। | 
			
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				| उझीना					 : | पुं० [देश०] आग सुलगाने के लिए लगाया हुआ उपलों का ढेर। अहरा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उटंग					 : | वि० =उटंगा। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उटंगन					 : | पुं० [सं० उट-घास+अन्न] एक प्रकार की वनस्पति जिसका साग बनता है और जो औषध के काम में आती है। | 
			
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				| उटंगा					 : | वि० [सं० उत्तंग या हिं० उ-ऊपर+टाँग] [स्त्री० उटंगी] (वस्त्र) जो इतना छोटा हो कि पहनने पर टाँगों के ऊपरी भाग तक ही रहे, नीचे तक न आने पावे। जैसे—उटंगी धोती, उटंगा पाजामा आदि। | 
			
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				| उटकना					 : | स० [सं० अट्-घूमना,बार बार+कल०-गिनती करना] अटकल से पता लगाना। अनुमान करना। अ० =अटकना। | 
			
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				| उटक्कर					 : | अव्य० [अनु०] अंधाधुंध। | 
			
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				| उटज					 : | पुं० [सं०√उ (शब्द करना)+ट,उट√जन् (उत्पन्न होना)+ड] पर्ण कुटी। झोपड़ी। | 
			
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				| उटारी					 : | स्त्री० [हिं० उठना] लकड़ी का वह टुकड़ा जिसके ऊपर चारा रखकर काटा जाता है। निहटा। नेसुहा। | 
			
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				| उट्टा					 : | पुं० -ओटनी (कपास ओटने की चरखी)। | 
			
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				| उट्ठना					 : | अ० =उठना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उट्ठी					 : | स्त्री० [देश०] बच्चों के खेल, प्रतियोगिता आदि में अव्यय के रूप में प्रयुक्त होने वाला एक शब्द जिसका आशय होता है-हमने पूरी तरह से हार मान ली, अब हमें दया करके छोड़ दो। मुहावरा—उट्ठी बोलना=दीन भाव से पूरी हार मान लेना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उठँगन					 : | पुं० [सं० उत्थ+अंग] किसी चीज को गिरने या लुढ़कने से बचाने के लिए लगाई जानेवाली दूसरी छोटी चीज। टेक। सहारा। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उठँगना					 : | अ० [सं० उत्थ+अंग] १. किसी आधार या टेक का सहारा लेकर बैठना। २. लेटना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उठँगाना					 : | स० [सं० उँठगना का स०रूप] १. किसी चीज को गिरने या लुढ़कने से बचाने के लिए उसके नीचे टेक या सहारा लगाना। २. (किवाड़) बंद करना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उठतक					 : | पुं० [हिं० उठना] १. घोड़े की पीठ पर काठी के नीचे रखी जानेवाली गद्दी। २. आड़। टेक। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उठना					 : | अ० [सं० उत्+स्था, उत्थ, उत्था, प्रा० उट्ठ+ना० प्रत्यय, पं० उठ्ठना, मरा० उठणें, गुज० उठवुँ] १. नीचे के तल या स्तर से ऊपर के तल या स्तर की ओर चलना या बढ़ना। ऊँचाई की ओर अथवा ऊपर जाना या बढ़ना। जैसे—हवा में धुआँ या धूल उठना, समुद्र में लहरें उठना, ताप-मापक यंत्र का पारा उठना आदि। विशेष—इस अर्थ में यह शब्द कुछ विशिष्ट क्रियाओं के साथ संयोज्य क्रिया के रूप में लगकर ये अर्थ देता है—(क) आकस्मिक रूप से या सहसा होनेवाला वेग। जैसे—चिल्ला उठना-सहसा जोर से चिल्लाना। (ख) पूरी तरह से या स्पष्ट रूप से प्रत्यक्ष होना या सामने आना। जैसे—यह सुनते ही उनका चेहरा खिल उठा। २. गिरे, झुके, बैठे या लेटे होने की स्थिति में खड़े होने या चलने की स्थिति में आना। कहीं चलने या जाने के विचार से पैरों के बल सीधे खड़े होना। जैसे—(क) वह गिरते ही फिर उठा। (ख) सब लोग उनका स्वागत करने के लिए उठे। (ग) वह अभी सोकर उठा है। (घ) बारात अभी घंटे भर में उठेगी। मुहावरा—(किसी के साथ) उठना=बैठना-मेल-जोल और संग-साथ रखना। जैसे—जिनके साथ रोज का उठना-बैठना हो, उनसे झगड़ा नहीं चाहिए। पद—उठते-बैठते-नित्य के व्यवहार में, प्रायः हर समय। जैसे—वह उठते-बैठते भगवान का नाम जपते रहते हैं। ३. कुछ करने के लिए उद्यत, प्रस्तुत या सन्नद्ध होना। जैसे—(क) किसी को मारने उठना। (ख) चंदा करने उठना। उदाहरण—उठहु राम, भंजहु भव-चापू।—तुलसी। मुहावरा—उठ खड़े होना=कहीं से चलने या कोई काम करने के लिए तैयार होना। ४. बेहोश पड़े या मरे हुए व्यक्ति का फिर से होश में आकर या जीवित होकर खड़े होना। उदाहरण—तुरत उठे लछिमन हरखाई।—तुलसी। ५. अवनत या गिरी हुई दशा से उन्नत या अच्छी दशा में आना। उन्नति करना। जैसे—अफ्रीका और एशिया के अनेक पिछड़े हुए देश अब जल्दी जल्दी उठने लगे हैं। ६. आकाशस्थ ग्रह-नक्षत्रों आदि का क्षितिज से ऊपर आना। उदित होना। निकलना। जैसे—संध्या होने पर चंद्रमा या सपेरा होने पर सूर्य उठना। ७. निर्माण या रचना की दशा में क्रमशः ऊँचा होना या ऊपर की ओर बढ़ना। जैसे—दीवार या मकान उठना। ८. उभार, विकास या वृद्धि के क्रम में आगे की ओर बढ़ना। जैसे—उठता हुआ पौधा, उठती हुई जवानी। ९. भाव, विचार आदि का मन या मस्तिष्क में आना। उदभूत होना। जैसे—(क) अभी मेरे मन में एक और बात उठ रही है। (ख) उनके मन में नित्य नये विचार उठते रहते थे। १. ध्यान या स्मृति में आना। याद आना। जैसे—वह श्लोक, मुझे याद तो था, पर इस समय उठ नहीं रहा है। ११. चर्चा या प्रसंग छिड़ना। जैसे—तुम्हारें यहाँ तो नित्य नई एक बात उठती है। १२. अचानक अस्तित्व में आकर अनुभूत, दृश्य या प्रत्यक्ष होना। जैसे—(क) आकाश में आँधी और बादल उठना। (ख) देश या नगर में उपद्रव उठना। (ग) पेट या सिर में दरद उठना। (घ) बदन में खुजली उठना। १३. अच्छी तरह या स्पष्ट रूप से दृश्य होना। दिखाई पड़ने के योग्य होना। जैसे—कागज पर छापे के अक्षर उठना। १४. ध्वनि शब्द स्वर आदि का कुछ जोर से अनुरणित या उच्चरित होना। जैसे—चारों ओर से आवाज या शोर उठना। १५. किसी वस्तु का ऐसी स्थिति में आना या होना कि पारिश्रमिक, मूल्य, लाभ आदि के रूप उससे कुछ धन प्राप्त हो सके। जैसे—(क) किराये पर मकान या दुकान उठना। (ख) बेची जानेवाली चीज के दाम उठना। १६. किसी वस्तु का ऐसी स्थिति में होना कि उसका वहन हो सके। बोझ या भार के रूप में वहित या सह्य होना। जैसे—इतना बोझ हमसे न उठेगा। १७. मादा पशुओं आदि का उमंग में आकर संभोग के लिए प्रवृत्त या गर्भधारण के लिए आतुर होना। जैसे—गाय, घोड़ी या भैंस का उठना। १८. तर या भीगी हुई चीज के कुछ सड़ने के कारण उसमें विशिष्ट प्रकार का रासायनिक परिवर्त्तन होना। खमीर या सड़ाव आना। जैसे—मद्य बनाने में महुए का पाँस उठना या गरमी के दिनों में रात भर पड़े रहने के कारण गूँधा हुआ आटा उठना। १९. उपयोग में आने के कारण कम होना। खर्च या व्यय होना। जैसे—जरा सी बात में सैकड़ों रुपए उठ गये। २0० ऐसे कार्यों का बंद या स्थगित होना जो कुछ समय तक लगातार बैठकर किये जाते हों। अधिवेशन, बैठक आदि का नियमित या नियत रूप से समाप्त होना। जैसे—अब तो कचहरी (या सभा) के उठने का समय हो रहा है। २१. अंत या समाप्ति हो जाना। न रह जाना। जैसे—(क) उनका कारोबार (या दफ्तर) उठ गया। (ख) अब पुरानी प्रथाएँ उठती जाती हैं। मुहावरा—(किसी व्यक्ति का) इस लोक या संसार से उठना=(परलोक में जाने के लिए) यह लोक छोड़कर चले जाना। मर जाना। स्वर्गवास होना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उठल्लू					 : | वि० [हिं० उठना+लू (प्रत्यय)] १. जिसे एक स्थान से उठाकर दूसरे स्थान पर रखा जा सके। जैसे—उठल्लू चूहा। २. जो एक जगह जम कर या स्थायी रूप से न रहता हो। कभी कहीं और कभी कहीं रहनेवाला। ३. आवारा। पद—उठल्लू का चूल्हा या उठल्लू चूल्हा=व्यर्थ इधर-उधर फिरनेवाला। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उठवाना					 : | स० [हिं० उठाना का प्रे० रूप] दूसरों से कोई चीज उठाने का काम कराना। किसी को कुछ उठाने में प्रवृत्त करा। | 
			
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				| उठवैया					 : | वि० [हिं० उठाना] १. उठानेवाला। २. उठवानेवाला। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उठाईगीर					 : | पुं० [हिं० उठाना+फा०गीर] वह जो दूसरों का माल उनकी आँख बचाकर उठा ले जाता हो। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उठान					 : | स्त्री० [सं० उत्थान, पा० उट्ठान] १. उठने की क्रिय, ढंग या भाव। २. किसी काम या बात के आरंभ या शुरू होने की अवस्था या भाव। जैसे—इस कविता (या गीत) की उठान तो बहुत सुंदर है। ३. शारीरिक दृष्टि से वह अवस्था या स्थिति जो विकास या वृद्धि की ओर उन्मुख हो। जैसे—इस पेड़ (या लड़के) की उठान अच्छी है। ४. खपत। खर्च। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उठाना					 : | स० [हिं० उठना का स० रूप] १. किसी को उठने में प्रवृत्त करना। ऐसा काम करना जिससे कुछ या कोई उठे। २. नीचे के तल या स्तर से ऊपर के तल या स्तर की ओर ले जाना। ऊँचाई की ओर बढ़ाना या ले जाना। ऊपर करना। जैसे—(क) मत देने के लिए हाथ उठाना, (ख) कुछ देखने के लिए आँखें (या सिर) उठाना। ३. पड़े, बैठे, लेटे या सोये हुए व्यक्ति को खड़े होने या जागने में प्रवृत्त करना। जैसे—बच्चों को सबेरे उठा दिया करो। उदाहरण—कपि उठाइ प्रभु हृदय लगावा।—तुलसी। ४. गिरी या पड़ी हुई वस्तु को ऊपर, यथा-स्थान या सीधा करना। जैसे—जमीन पर से गिरी हुई कलम या पुस्तक उठाना। ५. निर्माण या रचना के क्रम में आगे या ऊपर की ओर बढ़ाना। जैसे—दीवार या मकान उठाना। ६. कहीं बैठ या रह कर कोई काम करनेवाला व्यक्ति को वहाँ से अलग या दूर करना। जैसे—(क) पटरी पर बैठने वाले दूकानदारों को वहाँ से उठाना। (ख) किसी दूकान या पाठशाला से अपना लड़का उठाना। ७. किसी आधिकारिक, उचित या नियत स्थान से कोई चीज लेने के लिए हाथ में करना। जैसे—आलमारी में से पुस्तक उठाना। मुहावरा—उठा ले जाना=(क) इस प्रकार किसी की कोई चीज लेकर चलते बनना किसी को पता न चले। जैसे—न जाने कौन यहाँ की घड़ी उठा ले गया। (ख) बलपूर्वक कोई वस्तु या व्यक्ति ले जाना। हरण करना। जैसे—रावण वन में से सीता को उठा ले गया। ८. कहीं पहुँचाने, ले जाने आदि के उद्देश्य से कोई चीज कंधे,पीठ,सिर आदि पर रखना या हाथ में लेना। जैसे—(क) बच्चे को गोद में उठाना। (ख) सिर पर गट्ठर या बोझ उठाना। ९. किसी प्रकार का उत्तरदायित्व या भार अपने ऊपर लेना। भार के रूप में ग्रहण, वहन या सहन करना। जैसे—आपकी सहायता के भरोसे ही मैंने यह काम उठाया हैं। १. कोई कार्य तत्परता या दृढ़ता से करने के लिए उसका कारण या साधन अपने हाथ में लेना। जैसे—(क) लड़ने के लिए हथियार उठाना।(ख) लिखने के लिए कलम उठाना। ११. गिरी हुई अवस्था या बुरी दशा से उन्नत अवस्था या अच्छी दशा में लाना। जैसे—भारतीय आर्यों ने किसी समय आस-पास की अनेक जातियों को उठाया था। १२. उपयोग, व्यवहार आदि के लिए किसी को देना या सौंपना। जैसे—मकान किराये पर उठाना। १३. शपथ खाने के लिए किसी वस्तु को छूना अथवा उसे हाथ में लेना। कुरान या गंगाजल उठाना। १४. ध्वनि, शब्द आदि ऊँचे स्वर में उच्चरित करना। जैसे—किसी बात के विरूद्ध आवाज उठाना। १५. कोई नई चर्चा, बात, प्रसंग आदि आरंभ करना या चलाना। जैसे—नया प्रसंग उठाना। १६. उपलब्ध या प्राप्त करना। जैसे—लाभ उठाना,सुख उठाना। १७. दंड या भोग के रूप में सहन करना। झेलना। भोगना। जैसे—कष्ट या विपत्ति उठाना। १८. तर या भीगी हुई चीज के संबंध में ऐसी क्रिया करना अथवा उसे ऐसी स्थिति में रखना कि उसमें रासायनिक परिवर्तन के कारण विशिष्ट प्रकार की सड़न आवे। जैसे—आटे या पास में खमीर उठाना। १९. असावधानी, उदारता आदि से खर्च या व्यय करके समाप्त करना। जैसे—(क) जरा सी बात में दस रूपये उठा दिये। (ख) चार दिन में सारा चावल उठा दिया। २॰ अनुकूल, आवश्यक या उचित आचरण, कार्य अथवा व्यवहार न करना। अग्राह्य या अमान्य करना। जैसे—(क) बड़ों की बात इस तरह नहीं उठाना चाहिए। (ख) हमारी हर बात तो तुम यों ही उठा दिया करते हो। मुहावरा—कुछ उठा न रखना=अपनी ओर से कोई उपाय या प्रयत्न बाकी न छोड़ना। यथा सम्भव पूरा उद्योग करना। जैसे—उन्होंने हमें दबाने में कुछ उठा नहीं रखा था। २१. चलते हुए कार्य, व्यवहार, व्यापार आदि का अंत या समाप्ति करना। बंद करना। जैसे—(क) बाजार से अपनी दूकान उठाना। (ख) समाज से कोई प्रथा या रीति उठाना। (ग) अदालत से अपना मुकदमा उठाना। २२. किसी दैवी शक्ति का किसी व्यक्ति के जीवन का अंत करके उसे इस लोक से ले जाना। जैसे—(क) भगवन् हमें जल्दी से उठाओ। (ख) इस दुर्घटना से पहले ही परमात्मा ने उन्हें उठा लिया। | 
			
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				| उठावनी					 : | स्त्री० [हिं० उठना या उठाना] १. उठने या उठाने की क्रिया या भाव। २. कुछ स्थानों में मृतक के दाह-कर्म के दूसरे, तीसरे या चौथे दिन श्मशान में जाकर उसकी अस्थियाँ चुनने की क्रिया या प्रथा। ३. कुछ जातियों में, मृतक के दाह-कर्म के तीसरे या चौथे दिन उसके घर पर बिरादरी के लोगों के इकट्ठे होने और कुछ लेन-देन करने की प्रथा या रसम। ४. दे० ‘उठौनी’। | 
			
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				| उठौआ					 : | वि० [हिं० उठाना] १. जो सहज में एक स्थान से उठाकर दूसरे स्थान पर रखा या ले जाया जा सकता हो। जो उठाने में हलका और फलतः इधर-उधर ले जाने के योग्य हो। (बहुत भारी या एक स्थान पर स्थित से भिन्न) जैसे—उठौआ पाखाना। (नल के संयोग से बहनेवाले पाखाने से भिन्न)। | 
			
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				| उठौनी					 : | स्त्री० [हिं० उठना या उठाना,उठावनी का पू० रूप] १. उठने या उठाने अथवा उठाकर रखने की क्रिया, भाव या मजदूरी। २. देवता या धार्मिक कृत्य के लिए कुछ धन या पदार्थ उठाकर अलग रखने की क्रिया या भाव। ३. कोई लेन-देन या व्यवहार पक्का करने अथवा कोई काम कराने के लिए अग्रिम के रूप में दिया जानेवाला धन। अगाऊ। पेशगी। ४. (उठकर) कोई कार्य आरंभ करने की क्रिया या भाव। उदाहरण—सब मिलि पहिलि उठौनी कीन्ही।—जायसी। ५. धान के खेत की आरंभिक हलकी जुताई। ६. जुलाहों की वह लकड़ी जिसमें वे पाई करने के लिए लुगदी लपेटते है। ७. दे०‘उठावनी’। | 
			
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				| उठौवा					 : | वि०=उठौआ। | 
			
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				| उट्ठी					 : | स्त्री=उट्ठी। | 
			
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				| उड़कू					 : | वि० [हिं० उड़ना+अंकू(प्रत्यय)] १. उड़नेवाला। २. दे० ‘उड़ाका’। | 
			
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				| उड़ंत					 : | पुं० [हिं० उड़ना] १. उड़ने की क्रिया या भाव। २. कुश्ती का एक पेंच। | 
			
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				| उड़ंबरी					 : | स्त्री० [सं० उडुम्बर] एक प्रकार का पुराना बाजा जिसमें बजाने के लिए तार लगे होते थे। | 
			
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				| उड़खरा					 : | वि० [हिं० उड़ना] जो उड़ता हो या उड़ाया जा सकता हो। उदाहरण—नहिं बाल ब्रिद्ध किस्सोर तुअ,धुअ समान पै उड़खरी।—चंदवरदाई।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उड़चक					 : | पुं० =उचक्का। | 
			
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				| उड़तक					 : | पुं० =उठतक। | 
			
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				| उड़द					 : | पुं० =उरद। (अन्न)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उड़दी					 : | स्त्री० =उरद (अन्न)। | 
			
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				| उड़न					 : | पुं० [हिं० उड़ना] उड़ने की क्रिया या भाव। वि० उड़नेवाला।(यौ० के आरंभ में) जैसे—उड़न-खटोला। | 
			
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				| उड़न-किला					 : | पुं० [हिं० उड़ना+किला] एक प्रकार का बहुत बड़ा सामयिक वायुयान जो किले के समान दृढ़ तथा सुरक्षित माना जाता है। (फ्लाईंग फोर्ट्रेस)। | 
			
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				| उड़न-खटोला					 : | पुं० [हिं० उड़ना+खटोला] १. कहानियों आदि में, एक प्रकार का कल्पित वायुयान या विमान, जो प्रायः खटोले या चौकी के आकार का कहा गया है। २. वायु यान। | 
			
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				| उड़न-गढ़ी					 : | स्त्री० दे० ‘उड़न-किला’। | 
			
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				| उड़न-छू					 : | वि० [हिं० उड़ना] जो देखते-देखते अथवा क्षण भर में अदृश्य या गायब हो जाए। | 
			
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				| उड़न-झाई					 : | स्त्री० [हिं० उड़ना+झाई] किसी को धोखा देने के लिए कही हुई बात। चकमा। धोखा। | 
			
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				| उड़न-थाल					 : | पुं० [हिं० उड़ना+थाल] बहुत बड़े थाल के आकार का एक प्रकार का ज्योतिर्मय उपकरण या पदार्थ जो कभी-कभी आकाश में उड़ता हुआ दिखाई देता है। (फ्लाईंग डिश फ्लाईंग साँसर)। विशेष—इधर इस प्रकार के पदार्थ आकाश में उड़ते हुए देखकर उनके संबंध मे लोग तरह-तरह की कल्पनाएँ करने लगे थे। पर अब वैज्ञानियों का कहना है कि ये हमारे सौर-जगत् के किसी दूसरे ग्रह से हमारी पृथ्वी का हाल जानने और हम लोगों से संपर्क स्थापित करने के लिए आते हैं। फिर भी अभी तक इनकी अधिकतर बातें अज्ञात और रहस्यमय ही है। | 
			
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				| उड़न-फल					 : | पुं० [हिं० उड़ना+फल] कथा-कहानियों में, एक कल्पित फल जिसके संबंध में यह माना जाता है। कि इसे खानेवाला आकाश में उड़ने की शक्ति प्राप्त कर लेता है। | 
			
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				| उड़ना					 : | अ० [सं० उड्डयन] १. पंखों या परों की सहायता से आधार छोड़कर ऊपर उठना और आकाश का वायु में इधर-उधर आना जाना। जैसे—चिड़ियों या फतिंगों का हवा में में उड़ना। २. अलौकिक या आध्यात्मिक शक्ति, मंत्र-बल आदि की सहायता से आकाश में उठकर इधर-उधर आना-जाना। जैसे—योगियों अथवा उड़नखटोलों, विमानों आदि का आकाश में उड़ना। ३. भौतिक, यांत्रिक, वैज्ञानिक आदि क्रियाओं से कुछ विशिष्ट प्रकार की रचनाओं, यानों आदि का आकाश में उठकर इधर-उधर आना-जाना। जैसे—(क) उड़न-थाल, गुब्बारा या हवाई जहाज उड़ना, (ख) गुड्डी या पतंग उड़ना आदि। ४. कहीं पहुँचने के लिए उछलकर या कुछ ऊपर उठते हुए तेजी से आगे बढ़ना। जैसे—(क)तालाब की मछलियाँ उड़-उड़कर कलोल कर रही थीं। (ख) कई तरह के साँप उड़कर काटते हैं। (ग) एड़ लगाते ही घोड़ा उड़ चला। ५. हवा के झोकें में पड़कर चीजों का तेजी से आगे बढ़ना अथवा इधर-उधर छितराना, बिखरना या दूर निकल जाना। जैसे—(क) जहाज या नाव का पाल उड़ना। (ख) हवा में कपड़े,कागज आदि उड़ना। (ग) आँधी में मकान की छत उड़ना। ६. किसी स्थित वस्तु का कोई अंश रह-रहकर लहराते हुए हवा में ऊपर उठना या हिलना। लहराना। जैसे—(क) किले या जहाज पर लगा हुआ झंडा उड़ना, (ख) धोती या साड़ी का पल्ला उड़ना। उदाहरण—उड़इ लहर पर्वत की नाई।—जायसी। ७. इतनी तेजी से चलना या अचानक पहुँचना कि आकाश में उड़कर आता हुआ सा जान पड़े। जैसे—मालूम होता है कि तुम तो उड़कर यहाँ आ पहुँचे हो। उदाहरण—कोई बोहित जस पवन उड़ाहीं।—जायसी। मुहावरा—उड़ चलना=(क) इतनी तेजी से चलना कि उड़ता हुआ सा जान पड़े। (ख) कोई कला या विद्या सीखते ही उसमें अच्छी गति या योग्यता प्राप्त कर लेना। जैसे—चार ही दिन में वह जादू के खेल दिखाने में उड़ चला। उड़ता बनना या होना-बहुत जल्दी से कहीं से चल देना या हट जाना। जैसे—काम होते ही वह उड़ता बना। ८. ऊपर से आता हुआ आघात या प्रहार बहुत तेजी से बैठना या लगना। जैसे—किसी पर थप्पड़ या बेंत उड़ना। ९. कट-फट कर अलग हो जाना या झटके से दूर जा गिरना। जैसे—(क) इस पुस्तक के कई पन्ने उड़ गये हैं। (ख) तलवार के एक ही वार से उसका सिर उड़ गया। १. इस प्रकार अज्ञात या अदृश्य हो जाना कि जल्दी पता न चले। गायब या लुप्त हो जाना। जैसे—(क) लड़का अभी तक बाजार से नहीं लौटा, न जाने कहाँ उड़ गया। (ख) अभी तो घड़ी यहीं रखी थी, देखते-देखते न जाने कहाँ उड़ गयी। ११. प्राकृतिक, रसायनिक आदि कारणों से किसी चीज का धीरे-धीरे घटते हुए कम हो जाना या न रह जाना। जैसे—कपड़े, दीवार या मेज का रंग उड़ना, डिबिया में से कपूर या शीशी में से दवा उड़ना। १२. लोक या वातावरण इधर-उधर प्रसारित होना या फैलना। जैसे—अफवाह या खबर उड़ना, गुलाल या सुंगंध उड़ना। १३. अनियंत्रित या असंगत रूप से अथवा उचित से बहुत अधिक और मनमाना उपभोग या व्यवहार होना। जैसे—बाग-बगीचे या यार-दोस्तों में मौज उड़ना, दुर्व्यवसनों में धन-दौलत उड़ना, महफिल में शराब-कबाब उड़ना आदि। १४. अपनी स्वाभाविक स्थिति से बहुत अधिक अस्त-व्यस्त या विक्षुब्ध होकर ठीक तरह से अपना काम करने के योग्य न रह जाना। बहुत असमर्थ, चंचल या विचलित होना। जैसे—होश-हवास उड़ना।—उदाहरण—०००बंसी के सुने तै तेरो चित्त उड़ि जायगा।—कोई कवि। १५. किसी को चकमा देने या धोखे में रखने के लिए इधर-उधर की बातों में वास्तविकता छिपाने का प्रयत्न करना। जैसे—आज तो तुम हमसे भी उड़ने लगे। १६. अभिमानपूर्ण आचरण या व्यवहार करके ऐंठ या ठसक दिखलाना। इठलाना। इतराना। जैसे—आज-कल तो उनका मिजाज ही नहीं मिलता, जब देखों तब उड़े फिरते हैं। १७. ऐसा रूप धारण करना जो साधारण से बहुत अधिक आकर्षक, प्रिय या रुचिकर हो। मुहावरा—(किसी वस्तु का) उड़ चलना=बहुत ही मनोहर, रुचिकर या सुखद प्रतीत होना। जैसे—जरा सा केसर पड़ जायगा तो खीर उड़ चलेगी। वि० १. उड़नेवाला। २. बहुत तेजी से आगे बढ़ने या चलनेवाला। जैसे—उड़ना साँप। ३. रह-रहकर एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुँचने, फैलने या होनेवाला। जैसे—उड़ना जहरबाद, उड़ना फोड़ा आदि। | 
			
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				| उड़प					 : | पुं० [हिं० उड़ना] नृत्य का एक भेद। पुं० दे० ‘उड़ुप’।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उड़री					 : | स्त्री० [१] एक प्रकार की उड़द। | 
			
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				| उड़व					 : | पुं० =ओड़व। | 
			
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				| उड़वाना					 : | स० [हिं० उड़ाना का प्रे०] किसी को उड़ने या चीज उड़ाने में प्रवृत्त करना। | 
			
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				| उड़सना					 : | अ० [?] अंत या समाप्ति होना। स०=उलटना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उड़ाँक					 : | वि० पुं० [हिं० उड़ना]=उड़ाका।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उडाँत					 : | वि० [हिं० उड़ना] १. उड़नेवाला। २. मनमाना आचरण करनेवाला। ३. बहुत अधिक चालाक या धूर्त। | 
			
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				| उड़ा					 : | पुं० [हिं० ओटना] रेशम की लच्छी खोलने का एक प्रकार का परेता। | 
			
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				| उड़ाइक					 : | वि० =उड़ायक।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उड़ाई					 : | स्त्री० [हिं० उड़ाना] उड़ने या उड़ाने की क्रिया, भाव या पारिश्रमिक। | 
			
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				| उडाऊ					 : | वि० [हिं० उड़ना] १. उड़ानेवाला। २. (धन) उड़ाने या खर्च करनेवाला। | 
			
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				| उड़ाक					 : | वि० [हिं० उड़ाना] १. उड़ानेवाला। २. दे० ‘उड़ाका’। | 
			
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				| उड़ाका					 : | वि० [हिं० उड़ना+आका(प्रत्यय)] १. जो अपने पंखों या परों की सहायता से हवा में उड़ सकता हो। २. विमान-चालक। ३. लाक्षणिक अर्थ में, (ऐसी चीज) जो उड़कर (अर्थात् अति तीव्र गति से) कहीं पहुँच सकती हो। जैसे—पुलिस का उड़ाका दल। | 
			
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				| उड़ाकू					 : | वि० =उड़ाका। | 
			
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				| उड़ान					 : | स्त्री० [सं० उड्डयन] १. हवा में उड़ने की क्रिया, ढंग या भाव। २. उड़ने या उड़ाई जानेवाली वस्तु की गति अथवा उस गति का मार्ग। ३. एक स्थान से उड़कर दूसरे स्थान पर पहुँचने का भाव। जैसे—हमारी इस उड़ान में केवल एक घंटा लगा। ४. उतनी दूरी जो एक बार में उक्त प्रकार से पार की जाए। ५. उक्ति, कल्पना, क्रिया-कलाप आदि का वह रूप जो साधारण बुद्धि या व्यक्ति की पहुँच के बहुत कुछ बाहर या उससे बहुत ऊँचा या बढ़कर हो। क्रि० प्र० भरना।—मारना। ६. मालखंभ में एक प्रकार की कसरत या क्रिया। ७. कलाई। पहुँचा। | 
			
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				| उड़ाना					 : | स० [हिं० उड़ना का स०और प्रेरणार्थक रूप] १. जो उड़ना जानता हो,उसे उडऩे में प्रवृत्त करना। जैसे—(क) खेत में बैठी हुई चिड़ियों को उड़ाना। (ख) शरीर पर बैठा हुआ मच्छर या मक्खी उड़ाना। (ग) खेल,तमाशे या शौक के लिए कबूतर उड़ाना आदि। २. जो चीज हवा में उठकर इधर-उधर आ जा सकती हो,उसे हवा में उठा कर गति देना। ऐसी क्रिया करना जिससे कोई चीज हवा में उड़ने या चलने लगे। जैसे—गुड्डी उड़ाना,हवाई जहाज उड़ाना आदि। उदाहरण—चहत उड़ावन फूँकि पहारू।—तुलसी। ३. कोई चीज इतनी तेजी के चलाना कि वह हवा में उड़ती सी हुई जान पड़े। जैसे—वह घोड़ा (या मोटर) उड़ाता चला जा रहा था। ४. ऐसा आघात या प्रहार करना कि कोई चीज या उसका कोई अंश कटकर अलग हो जाय या दूर जा पड़े। जैसे—(क) हथेली पर नीबू रखकर उसे तलवार से उड़ाना। (ख) तलवार से किसी का सिर या बारूद से पहाड़ की चट्टान उड़ाना। ५. ऐसा आघात या प्रहार करना जो ऊपर से उड़कर नीचे आता हुआ जाना पड़े। कसकर या जोर से जमाना या लगाना। जैसे—(क) राह-चलतों ने भी उन बेचारों पर दो —चार हाथ उड़ा दिये। (ख) जहाँ पुलिस ने दो-चार बेंत उड़ाये,तहाँ वह सब बातें बतला देगा। ६. ऐसा आघात या प्रहार करना कि कोई चीज पूरी तरह से छिन्न-भिन्न या नष्ट-भ्रष्ट हो जाय। चौपट या बरबाद करना। जैसे—तोपों की मार से गाँव या नगर उड़ाना, बारूद से पुल उड़ाना आदि। ७. न रहने देना। मिटा देना। जैसे—(क) सूची में से नाम उड़ाना। (ख) कपड़े पर से स्याही का धब्बा उड़ाना आदि। ८. (किसी वस्तु या व्यक्ति को) कहीं से इस प्रकार हटा ले जाना कि किसी को पता न चले। जैसे—(क) किसी दुकान से किताब, घड़ी या धोती उड़ाना। (ख) कहीं से कोई औरत उड़ाना आदि। ९. लाक्षणिक रूप में, केवल दूर से देखकर (चालाकी या चोरी से) किसी की कोई कला-कौशल, विद्या, शिल्प आदि इस प्रकार समझ और सीख लेना कि सहज में उसका अनुकरण या आवृत्ति की जा सके। जैसे—तुम्हारी यह विद्या तो कहीं से उड़ाई हुई जान पड़ती है। १. बहुत निर्दय या निर्भय होकर किसी चीज या बात का मनमाना उपयोग, व्यय आदि करना। जैसे—दो ही बरसों में उसने लाखों की संपत्ति उड़ा दी। ११. केवल सुख-भोग के विचार से किसी चीज या बात का अनुचित रूप से और आवश्यकता से अधिक उपयोग या व्यवहार करना। जैसे—मिठाई या हलुआ-पूरी उड़ाना, किसी के साथ मजा या मौजें उड़ाना आदि। १२. वार्त्ता, समाचार आदि ऐसे ढंग से और इस उद्देश्य से लोक में प्रचलित करना कि वह दूर-दूर तक फैल जाय। जैसे—किसी के भाग जाने या मरने की झूठी खबर उड़ाना। १३. उधर-इधर की या उलटी-सीधी बातें बनाकर ऐसी स्थिति उत्पन्न करना कि लोग धोखे में रहें और असल बात तक पहुँच न सकें। बातें बनाकर चकमा या भुलावा देना। जैसे—(क) (क) फिर तुम लगे हमें बातों में उड़ाने। (ख) तुम्हारें जैसे उड़ाने वाले बहुत देखे है। अ=उड़ना। उदाहरण—लरिकाँई जँह-जँह फिरहिं तँह-तँह संग उड़ाउँ।—तुलसी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उड़ायक					 : | वि० [हिं० उड़ान+क(प्रत्यय)] १. हवा में कोई चीज उड़ानेवाला। २. उड़ने या उडाने की कला में प्रवीण या कुशल। ३. गुड्डी या पतंग उड़ानेवाला। ४. दे० ‘उड़ाका’।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उड़ाव					 : | पुं० =उड़ान।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उड़ावनी					 : | स्त्री०=ओसाई (अन्न की)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उड़ास					 : | स्त्री०- [सं० उद्धास] १. झील,तालाब,नदी आदि के किनारे बना हुआ घर या प्रासाद। २. रहने की जगह। निवास स्थान।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उड़ासना					 : | स० [सं० उद्धासन] १. बिछा हुआ बिछौना उलटकर समेटना। २. तहस-नहस या नष्ट-भ्रष्ट करना। उजाड़ना। ३. शांतिपूर्वक बैठने या रहने में विघ्न डालना। | 
			
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				| उड़िया					 : | वि० [सं० ओड] उड़ासी में बनने या होनेवाला। उड़ीसा का। पुं० उड़ीसा देश का निवासी। स्त्री० उड़ासी प्रदेश की भाषा जो बँगला से बहुत कुछ मिलती-जुलती है। | 
			
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				| उड़ियाना					 : | पुं० [?] २२ मात्राओं का एक छंद। | 
			
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				| उड़िल					 : | पुं० [सं० ऊर्ण+हिं० इल (प्रत्यय)] भेंड़ जिसके बाल काटे न गये हों। (भूड़िल का विपर्याय)। | 
			
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				| उड़ी					 : | स्त्री० [हिं० उड़ना] १. उड़ने की क्रिया या भाव। उड़ान। २. एक प्रकार की कलाबाजी जो मालखंभ में होती है। | 
			
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				| उड़ीयण					 : | पुं० [सं० उडु-गण] तारों का समूह। तारागण। उदाहरण—उड़ीयण नीरज अंब हरि।—प्रिथीराज। | 
			
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				| उड़ीसा					 : | पं० [सं० ओड्र+देश] भारत का एक राज्य जो बंगाल के दक्षिण और आंध्र के उत्तर में पड़ता है। | 
			
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				| उड़ुबर					 : | पुं० =उदुंबर। | 
			
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				| उडु					 : | पुं० [सं० उ√डी (उड़ना)+डु] १. आकाश का कोई तारा या नक्षत्र। २. चिड़िया। पक्षी। ३. जल। पानी। | 
			
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				| उडुचर					 : | पुं० [सं० उडु√चर् (गति)+ट] १. तारा या नक्षत्र। २. पक्षी। | 
			
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				| उडुप					 : | पुं० [सं० उडु√पा (रक्षा करना)+क] १. नदी पार उतरने के लिए बाँसों में घड़े बाँधकर बनाया हुआ ढाँचा। घड़नई। २. नाव। नौका। ३. चंद्रमा (विशेषतः अर्द्ध चंद्रमा, जिसका आकार नाव जैसा होता है) ४. भिलावाँ। ५. बड़ा गरुड़। पुं० [हिं० उड़ना] एक प्रकार का नृत्य। | 
			
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				| उडु-पति					 : | पुं० [सं० ष० त०] १. तारिकाओं का पति या स्वामी। चंद्रमा। २. सोम (लता या उसका रस)। | 
			
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				| उडुराई					 : | पुं० =उडुराज (चंद्रमा)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उडुराज					 : | पुं० =उडुपति (चंद्रमा)। | 
			
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				| उडुस					 : | पुं० [हिं० उड़ासना या सं० उद्दंश] खटमल नामक कीड़ा। | 
			
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				| उड़ेरना					 : | स०=उँड़ेलना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उड़ैच					 : | पुं० [हिं० उड़ना+ऐंच(प्रत्यय)] १. कपट या दुराव से युक्त। व्यवहार। २. मन में रहनेवाला द्वेष। | 
			
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				| उड़ैना					 : | पुं० [हिं० उड़ना] [स्त्री० अल्पा० उड़ैनी] खद्योत। जुगनू। वि० उड़नेवाला।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उड़ौहाँ					 : | वि० [हिं० उड़ना+आहौं(प्रत्यय)] उड़नेकी प्रवृत्ति रखने या प्रायः उड़ता रहनेवाला। | 
			
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				| उड्ड					 : | पुं० =उडु।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उड्डयन					 : | पुं० [सं० उद्√डी+ल्युट्-अन] [वि० उड्डीन] आकाश में उड़ने की क्रिया या भाव। | 
			
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				| उड्डीन					 : | वि० [सं० उद्√डी+क्त] आकाश में उड़नेवाला। पुं० =उड्डयन। | 
			
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				| उड्डीयमान					 : | वि० [सं० उद्√डी+शानच्] आकाश में उड़ता हुआ। | 
			
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				| उड्डीश					 : | पुं० [सं० उद्√डी+क्विप्, उड्डी-ईष, ष० त०] १. शिव। २. शिव-तंत्र। | 
			
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				| उढ़					 : | पुं० दे० ‘बिजूखा’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उढ़कन					 : | पुं० [हिं० उढ़कना] १. वह चीज जो किसी दूसरी चीज को गिरने या लुढ़कने से रोकने के लिए उसके साथ लगाई जाय। टेक। २. ऐसी चीज जो रास्ते में पड़कर ठोकर लगाती हो। | 
			
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				| उढ़कना					 : | अ० [देश] १. पीठ की तरफ टेक या सहारा लगाकर बैठना। २. मार्ग में चलते समय ठोकर खाना। | 
			
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				| उढ़काना					 : | स० [हिं० उढ़कना] किसी वस्तु को किसी दूसरी वस्तु के सहारे खड़ा करना। | 
			
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				| उढ़रना					 : | अ० [सं० ऊढ़ा (=विवाहित) से] विवाहिता स्त्री का पर-पुरुष के साथ भागना। | 
			
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				| उढ़री					 : | स्त्री० [हिं० उढ़रना] भगाकर लाई हुई स्त्री। रखेली। | 
			
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				| उढ़ाना					 : | स० दे० ‘ओढ़ाना’। स=ओढ़ना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उढ़ारना					 : | स० [अ० उढ़रना का स० रूप] दूसरे की स्त्री को निकाल या भगा लाना। स० [सं० उद्धारण] उद्धार करना। | 
			
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				| उढ़ावनी					 : | ओढ़नी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उढ़ुकना					 : | अ०=उढ़कना। | 
			
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				| उढ़ौनी					 : | स्त्री०=ओढ़नी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उण					 : | सर्व०=उन (उस का बहु०)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उणारथ					 : | पुं० [हिं० ऊन-कमी] १. कमी। त्रुटि। २. अपेक्षा। (राज०) ३. कामना। लालसा। उदाहरण—म्हाराँ मन री उणारथ भागी रे।—मीराँ। | 
			
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				| उत्					 : | उप० [सं०√उ (शब्द करना)+क्विप्] एक संस्कृत उपसर्ग जो शब्दों में लगकर ये अर्थ देता है-(क) ऊपर की उठना या जाना। जैसे—उत्कर्ष। (ख) अधिकता या प्रबलता। जैसे—उत्कट, उत्तप्त। (ग) भिन्न या विपरीत। जैसे—उत्पथ, उत्सूत्र। संधि के नियमों के अनुसार कही-कहीं इसका रूप उद् भी हो जाता है। जैसे—उदबुद्ध, उद्गमन आदि। | 
			
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				| उतंक					 : | पुं० [सं० उत्तक्क] एक प्राचीन ऋषि का नाम। वि० [सं० उत्तुंग] ऊँचा। | 
			
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				| उतंत					 : | वि० [सं० उत्तुंग] भरा-पूरा। समृद्ध। उदाहरण—भइ उतंत पदमावति बारी।—जायसी। वि० दे० ‘उत्पन्न’।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उतंथ					 : | पुं० =उतथ्य। | 
			
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				| उत					 : | क्रि० वि० [हिं० उ+त (स्थानवाचक)] उस दिशा में। उस ओर। उधर।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उतकरष					 : | पुं०=उत्कर्ष।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उतथ्य					 : | पुं० [सं० ] एक प्राचीन ऋषि जो बृहस्पति के बड़े भाई और गौतम के पिता थे। | 
			
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				| उतन					 : | अव्य० [हिं० उ+तनु] उस दिशा में। उस ओर। उधर। | 
			
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				| उतना					 : | वि० [हिं० उत-उधर या पर वक्ष में+ना प्रत्यय] १. एक सार्वनामिक विशेषण जो इतना का पर-पक्ष रूप है, और जो उस मात्रा, मान या संख्या का सूचक होता है, जिसका उल्लेख, चर्चा या निर्धारण पहले हो चुका हो अथवा जिसका संबंध किसी दूरी या पर-पक्ष से हो। उस मात्रा या मान का। जैसे—(क) वहाँ हमें इतना रास्ता पार करने में सारा दिन लग गया था। (ख) इतना अंश हमारा है और उतना उसका। २. जितना का नित्य संबंधी और पूरक रूप। जैसे—जितना कहा जाय, उतना किया करो। ३. इतना की तरह क्रिया-विशेषण रूप में प्रयुक्त होने पर, उस परिमाण या मात्रा में। जैसे—उस समय तुम्हारा उतना डरना (या दबना) ठीक नहीं हुआ। | 
			
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				| उतन्न					 : | पुं० [अ० वतन] १. जन्म-भूमि। २. निवास स्थान। उदाहरण—तीहां देस विदेस सम,सीहाँ किसा उतन्न।—बाँकीदास। | 
			
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				| उतन्ना					 : | पुं० [हिं० उतना=ऊपर+ना प्रत्यय] कान के ऊपरी भाग में पहना जानेवाला बाला की तरह का एक गहना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उतपति					 : | स्त्री० १. =उत्पत्ति। २. =सृष्टि।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उतपनना					 : | अ० [सं० उत्पन्न] उत्पन्न या पैदा होना। | 
			
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				| उतपन्न					 : | वि० =उत्पन्न।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उत्पाटना					 : | स० [सं० उत्पाटन] १. उखाड़ना। २. नष्ट-भ्रष्ट करना। | 
			
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				| उतपात					 : | पुं० =उत्पात।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उतपातना					 : | स०=उतपादना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उतपादना					 : | स० [सं० उत्पादन] उत्पन्न या उत्पादन करना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उतपानन					 : | स० [सं० उत्पन्न] उत्पन्न करना। उपजाना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उतपाना					 : | स० [सं० उत्पादन] १. उत्पादन करना। २. उत्पन्न करना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उतबंग ( मंग)					 : | पुं० [सं० उत्तमांग] मस्तक। सिर। (डिं०)(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उतरंग					 : | पुं० [सं० उत्तरंग] वह लकड़ी या पत्थर की पटरी जो दरवाजे में चौखट के ऊपर बड़े बल में लगी रहती है। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उतर					 : | पुं० =उत्तर।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उतर-अयन					 : | पुं० =उत्तरायण।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उतरन					 : | स्त्री० [हिं० उतरना] वह (कपड़ा या गहना) जो किसी ने कुछ दिनों तक पहनने के बाद पुराना समझकर उतार या छोड़ दिया हो। पुं० दे०‘उतरंग’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उतरना					 : | अ० [सं० अवतरण, प्रा० उत्तरण] १. ऊपर से नीचे की ओर आना या जाना। जैसे—(क) गले के नीचे भोजन उतरना। (ख) स्तन में या स्तन से दूध उतरना। (ग) अंड-कोश में पानी उतरना। मुहावरा—(कोई बात किसी के) गले के नीचे उतरना=ध्यान, मन या समझ में आना। जैसे—उसे लाख समझाओं पर कोई बात उसके गले के नीचे उतरती ही नहीं। २. किसी वस्तु या व्यक्ति का ऊपर के या ऊँचे स्थान से क्रमशः प्रयत्न पूर्वक नीचे की ओर आना। निम्नगामी होना। अवतरण करना। जैसे—आकाश से पक्षी या वायुयान उतरना, घर की छत पर से नीचे उतरना। ३. यान, वाहन या सवारी पर से आरोही का नीचे आना। जैसे—घोड़े, नाव, पालकी या रेल पर से लोगों का उतरना। ४. किसी उच्च स्तर या स्थिति से अपने नीचे वाले प्राधिक,सामान्य या स्वाभाविक स्तर, स्थिति आदि की ओर आना। कम या न्यून होना। घटना। जैसे—ज्वर या ताप उतरना,नदी या बाढ़ का पानी उतरना, गाँजे या भाँग का नशा उतरना। ५. किसी पद या स्थान से खिच, खिसक या गिरकर अथवा किसी प्रकार अलग होकर नीचे आना। जैसे—(क) तलवार से कटकर करदन या कैंची से कटकर सिर के बाल उतरना। (ख) बकरे (या भैसे) की खाल उतरना। (ग) खींचा-तानी या लड़ाई-झगड़े में कंधे या कलाई की हड्डी उतरना। (घ) अपने दुराचार या दुर्व्यवहार के कारण किसी के चित्त से उतरना। ६. किसी अंकित नियत या स्थिर स्तर से नीचे आना। जैसे—(क) विद्यालय में लड़के का दरजा उतरना। (ख) ताप-मापक यंत्र का पारा उतरना। (ग) बाजार में चीजों का भाव उतरना। (घ) गाने में गवैये का स्वर उतरना। मुहावरा—(किसी से) उतरकर होना=योग्यता, श्रेष्ठता आदि के विचार से घटिया या हलका होना। ७. आकाश या स्वर्ग से अवतार, देवदूत आदि के रूप में इस लोक में आना। जैसे—समय-समय पर अनेक अलौकिक महापुरुष इस लोक में उतरते रहते हैं। ८. कहीं से आकर किसी स्थान पर टिकना, ठहरना या रूकना। डेरा डालना। जैसे—(क) धर्मशाला या बगीचें में बारात उतरना। (ख) किसी के घर मेहमान बनकर उतरना। ९. तत्परता या दृढ़तापूर्वक कोई काम करने के लिए उपयुक्त क्षेत्र में आना। जैसे—(क) पिछले महायुद्ध में प्रायः सभी बड़े राष्ट्र युद्ध क्षेत्र में उतर आये थे। (ख) अब वे कहानियाँ लिखना छोड़कर आलोचना (या कविता) के क्षेत्र में उतरे हैं। १. किसी पदार्थ के उपयोगी, वांछित या सार भाग का किसी क्रिया से खींचकर बाहर आना। जैसे—भभके से किसी चीज का अरक उतरना, उबालने से पानी में किसी चीज का तेल, रंग या स्वाद उतरना। ११. शरीर पर धारण की हुई या पहनी हुई वस्तु का वहाँ से हटाये जाने पर अलग होना। जैसे—कपड़ा, जूता या मोजा उतरना। १२. अपनी पूर्व स्थिति से नष्ट-भ्रष्ट पतित या विलुप्त होना। जैसे—कोई बात चित्त से उतरना (याद न रहना) सबके सामने आबरू या इज्जत उतरना। मुहावरा—(किसी व्यक्ति का) किसी के चित्त से उतरना=अपने दुराचार, दुर्व्यवहार आदि के कारण किसी की दृष्टि में उपेश्र्य और हीन सिद्ध होना। किसी की दृष्टि मे आदरणीय न रह जाना। जैसे—जब से वे जूआ खेलने (या झूठ बोलने) लगे, तबसे वे हमारे चित्त से उतर गये। १३. अंत या समाप्ति की ओर आना या होना। जैसे—(क) उन दिनों उनकी अवस्था उतर रही थी। (ख) अब हस्त नक्षत्र (या सावन का महीना) उतर रहा है। मुहावरा—उतर आना=(क) किसी बड़े काल विभाग या पक्ष का पूरा या समाप्त हो जाना। जैसे—अब यह पक्ष (या वर्ष) भी उतर जायगा। (ख) संतान के पक्ष में, मर जाना। मृत्यु हो जाना। (स्त्रियाँ) जैसे—इसके बच्चे हो-होकर उतर जाते है। १४. घटाव या ह्रास की ओर आना या होना। जैसे—(क) धीरे-धीरे उसका ऋण उतर रहा है। (ख) अब इस कपड़े (या तस्वीर) का रंग उतरने लगा है। १५. किसी प्रकार के आवेश का मंद पड़कर शांत या समाप्त होना। जैसे—क्रोध या गुस्सा उतरना, झक या सनक उतरना। १६. फलों, फूलों आदि का अच्छी तरह से पक या फूल चुकने के बाद सड़न की ओर प्रवृत्त होना। जैसे—कल तक यह आम (या खरबूजा) उतर जायगा। १७. किसी प्रकार कुम्हला या मुरझा जाना अथवा श्रीहीन होना। प्रभा से रहित होना। जैसे—फटकारे जाने या भेद खुलने पर किसी का चेहरा या मुँह उतरना। १८. बाजों के संबंध में, जितना कसा, चढ़ा या तना रहना चाहिए, उससे कसाव या तनाव कम होना। (और फलतः उनसे अपेक्षित या वांछित स्वर ना निकलना) जैसे—तबला या सारंगी जब उतर जाय, तब उसे तुरंत (कस या तानकर) मिला लेना चाहिए। (उसमें उपयुक्त तनाव या कसाव ले आना चाहिए)। १९. क्रमशः तैयार होने या बननेवाली चीजों का तैयार या बनकर काम में आने या बाजार में जाने के योग्य होना। जैसे—(क) पेड़-पौधों से फल-फूल उतरना। करघे पर से थान या धोतियाँ उतरना, भट्ठी पर से चाशनी या पाग उतरना। २॰ अनुकृति, प्रतिकृति, प्रतिच्छाया, प्रतिलिपि, लेख आदि के रूप में अंकित या प्रस्तुत होना। नकल बनना या होना। जैसे—(क) किसी आदमी की तस्वीर या किसी जगह का नक्शा उतरना। (ख) खाते या बही में लेखा या हिसाब उतरना। २१. अनुकूल, उपयुक्त, ठीक या पूरा होना। जैसे—(क) यह कड़ा तौल में पूरा पाँच तोले उतरा है। (ख) यह काम उमसे पूरा न उतरेगा। २२. प्राप्य धन प्राप्त होना। उगाहा जाना या वसूल होना। जैसे—आजकल चंदा (या लहना) उतरना बहुत कठिन हो गया है। २३. शतरंज के खेल में प्यादे या सिपाही का आगे बढ़ते-बढ़ते विपक्षी के किसी ऐसे घर में पहुँचना जहाँ उस घर के मरे हुए मोहरे की जगह फिर से नया मोहरा बन जाता है। जैसे—हमारा यह व्यादा अब उतरकर वजीर (या हाथी) बनेगा। अ० [सं० उत्तरण] नाव आदि की सहायता से किसी जलाशय (तालाब, नदी, नाले आदि) के उस पार पहुँचना। जैसे—धीरज धरहिं सो उतरहिं पारा।—तुलसी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उतरवाना					 : | स० [हिं० उतरना का प्रे० रूप] किसी को कुछ उतारने में प्रवृत्त करना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उतरहा					 : | वि० [हिं० उत्तर +हा (प्रत्य०] उत्तर दिशा का। उत्तरी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उतराँही					 : | स्त्री० [हिं० उत्तर (दिशा)] उत्तर दिशा से आनेवाली हवा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उताराई					 : | स्त्री० [हिं० उतरना] १. उतरने या उतराने की क्रिया या भाव। २. किसी चीज या व्यक्ति को नदी आदि पार उतारने या पहुँचाने कि लिए लगनेवाला कर या पारिश्रमिक। उदाहरण—पद कमल धोइ चढ़ाइ, नाव, न नाथ उताराई चहौं।—तुलसी। ३. रास्ते में पड़ने वाला उतार या ढाल। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उतराना					 : | अ० [सं० उत्तरण] १. पानी में पड़ी हुई चीज का उसके ऊपर तैरना। २. पानी में डूबी हुई चीज का फिर से पानी के ऊपर आना। ३. विपत्ति या संकट से उद्धार पाना। पद-डूबना उतराना=चिंता, संकट आदि की स्थिति में कभी निऱाश होना और कभी उद्धार का मार्ग देखना। स० १. डूबे हुए को पानी के ऊपर लाना और रखना। तैराना। २. संकट आदि से मुक्त करना। उद्धार करना। उदाहरण—ऐसौ को जु न सरन गहे तै कहत सूर उतरायौ।—सूर। ३. दे० ‘उतरवाना’। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उतरायल					 : | वि० [हिं० उतरना या उतराना] अच्छी तरह पहन चुकने के बाद उतारा हुआ (कपड़ा गहना आदि)। पुं० =उतरन। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उतरारी					 : | वि० [सं० उत्तर+हिं० वारी] उत्तरी दिशा का। उत्तर का।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उतराव					 : | पुं० [हिं० उतरना] रास्ते में पड़ने वाला उतार। ढाल। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उतरावना					 : | स० १. दे० उतारना। २. दे० ‘उतरवाना’। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उतराहा					 : | वि० [सं० उत्तर+हा (प्रत्यय)] उत्तर दिशा का। उत्तर का।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उतरिन					 : | वि०=उऋणी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उतरु					 : | पुं० =उत्तर (जवाब)। उदाहरण—जाइ उतरू अब देहरू काहा।—तुलसी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उतरौहाँ					 : | वि० [सं० उत्तर+हा (प्रत्यय)] उत्तर दिशा का। उत्तरी। क्रि० वि० उत्तर दिशा की ओर। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उतलाना					 : | अ० [हिं० आतुर] १. आतुर होना। २. उतावली करना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उतल्ला					 : | वि=उतायल। पुं० =उपल्ला।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उतसाह					 : | पुं० =उत्साह। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उतहसकंठा					 : | स्त्री०=उत्कंठा।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उताइल					 : | अव्य० [हिं० उतावला का पुराना रूप] १. उतावलेपन से। २. जल्दी या शीघ्रता से। उदाहरण—चला उताइल त्रास न थोरी।—तुलसी। स्त्री० उतावली। जल्दीबाजी। वि०=उतावला।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उताइली					 : | स्त्री०=उतावली।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उतान					 : | वि० [सं० उत्तान] पीठ के बल लेटा हुआ। चित्त। उदाहरण—जिमि टिट्टिभ खग सूत उताना-तुलसी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उतामला					 : | वि० =उतावला। उदाहरण— देखताँ पथिक उतामला दीठा।—प्रिथीराज। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उतायल					 : | वि०=उतावला।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उताइली					 : | स्त्री०=उतावली।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उतार					 : | पुं० [हिं० उतरना, उतारना] १. उतरने (नीचे की ओर आने) या उतारने (नीचे की ओर लाने) की क्रिया, भाव या स्थिति। २. किसी चीज या बात के नीचे की ओर चलने या होने की प्रवृत्ति। ढाल। नति। जैसे—अब आगे चलकर इस पहाड़ी का उतार पड़ेगा। ३. परिमाण, मात्रा, मान आदि में उत्तरोत्तर या क्रमशः होनेवाली कमी, घटाव या ह्रास। जैसे-ज्वर, नदी, बाजार-भाव या स्वर का उतार। ४. किसी चीज या बात का वह पिछला अंग या अंश जो प्रायः अंत या समाप्ति की ओर पड़ता हो। जैसे—गरमी या सरदी का उतार। ५. ऐसी चीज जो कोई उग्र आदेश या वेग करने में उपयोगी अथवा सहायक हो। मारक। (एन्टि-डोट) जैसे—(क) भाँग का उतार खटाई है। (ख) उनके गुस्से (या सेखी) का उतार हमारे पास है। ६. नदी के किनारे की वह जगह जहाँ यात्री नाव से उतरते है। ७. दे० उतारा। ८. दे० उतरन। वि० अधम। नीच। पतित। उदाहरण—अपत, उतार, अपकार को उपकार जग०००-तुलसी। | 
			
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				| उतार-चढ़ाव					 : | पुं० [हिं० उतरना+चढ़ना] १. नीचे उतरने और ऊपर चढ़ने की अवस्था, क्रिया या भाव। २. ऐसा तल या स्थिति जिसमें कही-कहीं उतार हो और कहीं कहीं-चढ़ाव। तल में होनेवाली विषमता। ३. किसी वस्तु के मान, मूल्य, स्तर आदि का बराबर घटते-बढ़ते रहना। (फ्लक्चुएशन)। | 
			
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				| उतारन					 : | पुं० [हिं० उतारना] १. फटा-पुराना कपड़ा जो कुछ दिनों तक पहनने के बाद उतारकर छोड़ दिया गया हो। २. उच्छिष्ट और निकृष्ट वस्तु। ३. वह चीज जो टोने-टोटेके रूप में किसी पर से उतारकर या निछावर करके अलग की गई हो। | 
			
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				| उतारना					 : | स० [सं० उत्तारण] १. हिंदी उतरना का सकर्मक रूप। किसी को उतरने में प्रवृत्त करना। ऐसा काम करना जिससे कुछ या कोई नीचे उतरे। जैसे—कुएँ या सुरंग में आदमी उतरना। २. नाव आदि की सहायता से नदी के पार पहुँचना। उदाहरण—तब लगि न तुलसीदास नाथ कृपालु पार उतारिहौं।—तुलसी। ३. प्रयत्नपूर्वक कोई चीज ऊँचे स्थान से नीचे स्थान पर लाना या ले जाना। नीचे करना या रखना। जैसे—गाड़ी पर से सवारी या सामान उतारना, सिर पर से बोझ उतारना। मुहावरा—(किसी के) गले में कोई बात उतारना=इस प्रकार अच्छी तरह समझाना-बुझाना कि कोई बात किसी के मन में जम या बैठ जाए। ४. परिणाम या मान कम करके या और किसी उच्च स्तर या स्थिति से नीचे वाले स्तर या स्थिति में लाना। जैसे—चढ़ा हुआ नशा या बुखार उतारना, किसी चीज की दर या भाव उतारना। ५. किसी पद या स्थान से काट, खोल, तोड़ या निकालकर अलग करना या नीचे लाना। जैसे—तलवार से किसी का सिर उतारना, कमरे में लगी हुई घड़ी उतारना, पेड़-पौधों पर से फूल-फल उतारना। ६. किसी अंकित या नियत पद या विभाग से उसके नीचेवाले पद या विभाग में लाना। जैसे—कर्मचारी या विद्यार्थी का दरजा उतारना। ७. आकाश या स्वर्ग से अवतार आदि के रूप में प्रयत्नपूर्वक इस लोक में लाना। जैसे—इस लोक में प्राणियों के कष्ट दूर करने के लिए देवता लोग राम को पृथ्वी पर उतार लाये। ८. किसी को किसी स्थान पर लाकर टिकाना या ठहराना। जैसे—महासभा के अवसर पर चार अतिथियों को तो हम अपने यहाँ उतार लेंगें। ९. कोई काम करने के लिए किसी को किसी क्षेत्र में लाना या पहुँचाना। किसी को विशिष्ट कार्य की ओर प्रवृत्त करना। जैसे—महात्मा गाँधी ने हजारों नये लोगों को राजनीतिक क्षेत्र में उतारा था। १. किसी पदार्थ या आवश्यक या उपयोगी अंश या सार भाग किसी क्रिया से निकालकर नीचे या बाहर लाना। जैसे—किसी वनस्पति का अरक या रंग उतारना। ११. शरीर पर धारम की हुई चीज अलग करके नीचे या कहीं रखना। जैसे—कुरता, टोपी या धोती उतारना। मुहावरा—किसी की पगड़ी उतारना=(क) किसी को अप्रतिष्ठित या अपमानित करना। (ख) किसी से बहुत अधिक धन ऐंठना या वसूल करना। १२. ध्यान, विचार आदि के पक्ष में, अपनी पूर्व स्थिति में वर्त्तमान स्थित न रहने देना। जैसे—अब पिछली बातें मन से उतार दो। १३. कमी, घटाव या ह्रास की ओर ले जाना। जैसे—अब तो वे जल्दी-जल्दी अपना ऋण उतार रहे हैं। १४. किसी प्रकार का आवेग या वेग मंद अथवा शांत करना। जैसे—मीठी-मीठी बातों से किसी का गुस्सा उतारना, किसी के सिर पर चढ़ा हुआ भूत उतारना। १५. शोभा, श्री आदि से रहित या हीन करना। जैसे—आपने मेरी बात पर हँसकर उनका चेहरा (या चेहरे का रंग) उतार दिया। १६. बाजों आदि के पक्ष में, उनका तनाव या कसाव कम करना। जैसे—बजा चुकने के बाद बीन या सितार उतार देनी चाहिए। १७. करण, यंत्र आदि के द्वारा बननेवाली चीजों को तैयार करके पूरा करना। जैसे—खराद पर से थालियाँ या लोटे उतारना। १८. अनुकृति, प्रतिकृति, प्रतिलिपि आदि के रूप में अंकित या प्रस्तुत करना। बनाना। जैसे—किसी की तसवीर उतारना, निबंध या लेख की नकल उतारना। मुहावरा—किसी व्यक्ति की नकल उतारना=उपहास परिहास आदि के लिए किसी को अंग-भंगी, बोल-चाल, रंग-ढंग आदि का अनुकरण या अभिनय करके दिखलाना। १९. कर्म-कांड, टोने-टोटके आदि के क्षेत्र में, किसी प्रकार के उपचार के रूप में कोई चीज किसी के सामने या उसके ऊपर से चारों ओर घुमाना-फिराना। जैसे—देवी-देवताओं की आरती उतारना, किसी पर से राई-नोन उतारना। २0० कोई काम ठीक तरह से पूरा करना या उचित रूप से अंत या समाप्ति की ओर ले जाना। जैसे—(क) तुम यह छोटा-सा काम भी पूरा न कर सके। (ख) वह कचौरी, पूरी मजे में उतार लेता है (तल या पकाकर तैयार कर लेता है)। २१. घम-घूमकर चारों ओर से धन इकट्ठा करना। वसूल करना। उगाहना। जैसे—चंदा या बेहरी उतारना। २२. शतंरज के खेल में अपना प्यादा आगे बढ़ाते हुए ऐसे घर में पहुँचाना जहाँ वह उस घर का मोहरा बन जाए। जैसे—तुमने तो अपना प्यादा उतारकर घोड़ा बना लिया। | 
			
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				| उतारा					 : | पुं० [हिं० उतरना] १. नदी आदि से पार उतरने की क्रिया या भाव। २. किसी स्थान पर उतरने (टिकने या ठहरने) की क्रिया या भाव। डेरा या पड़ाव डालना। ३. वह स्थान जहाँ पर कोई (विशेषतः यात्री) अस्थायी रूप से उतरे, टिके या ठहरे। डेरा। पड़ाव। पद-उतारे का झोपड़ा=यात्रियों के टिकने का स्थान। विश्रामालय। पुं० [हिं० उतारना] १. नदी आदि पार कराने की क्रिया या भाव। २. यात्री, सामान आदि नदी के पार उतराने का पारिश्रमिक। ३. नदी के किनारे का वह स्थान जहाँ नाव से यात्री या सामान उतारे जाते हैं। ४. वह रुपया-पैसा आदि जो किसी मांगलिक अवसर पर किसी के चारों ओर घुमाकर नाऊ आदि को दिया जाता है। ५. भूत-प्रेत, रोग आदि की बाधा के निवारण के लिए टोने-टोटके के रूप में किसी व्यक्ति के चारों ओर कुछ सामग्री उतार या घुमाकर अलग रखना। ६. उक्त प्रकार से उतारकर रखी जानेवाली सामग्री। ७. फटे-पुराने या उतारे हुए कपड़े जो गरीबों, नौकरों आदि को पहनने के लिए दिये जाते हैं। उतारन। | 
			
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				| उतारू					 : | वि० [हिं० उतरना] किसी काम या बात के लिए विशेषतः किसी अनुचित या निंदनीय काम या बात के लिए उद्यत या तत्पर। जैसे—गालियों या चोरी-चमारी पर उतारू होना। पुं० मुसाफिर। यात्री। (लश०)। | 
			
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				| उताल					 : | स्त्री० [सं० उद्+त्वर] जल्दी। वि० [सं० उत्ताल] १. तीव्र। तेज। २. फुरतीला। ३. उतावला। जल्दबाज। क्रि० वि० जल्दी से। शीघ्रतापूर्वक।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उतालक					 : | क्रि० वि० [हिं० उताला] जल्दी से। चटपट। तुरंत। उदाहरण—बथुआ राँधि लियौ जु उतालक।—सूर। | 
			
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				| उताला					 : | वि०=उतावला।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उताली					 : | स्त्री०=उतावली। क्रि० वि० जल्दी से। | 
			
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				| उतावल					 : | क्रि० वि० [सं० उद्+त्वर] जल्दी-जल्दी। शीघ्रता से। वि० दे० उतावला।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उतावला					 : | वि० [सं० आतुर या उत्ताल ?] [स्त्री० उतावली] १. जो किसी काम के लिए बहुत आतुर हो। २. जो हर काम में जल्दी मचाता हो। उत्सुकतापूर्वक जल्दी मचानेवाला। ३. जो बिना समझे-बूझे तथा आवेश में आकर कोई काम करने के लिए तत्पर हो जाय। | 
			
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				| उतावली					 : | स्त्री० [सं० उद्+त्वर] १. उतावले होने की अवस्था या भाव। २. किसीकाम के लिए मचाई जानेवाली जल्दी। ३. व्यग्रता। | 
			
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				| उताहल					 : | वि० =उतावला। क्रि० वि० जल्दी से। | 
			
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				| उताहिल					 : | वि० =उतावला। क्रि० वि० जल्दी से।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उतिम					 : | वि० =उत्तम।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उती					 : | अव्य० [हिं० उत] उधर। उस ओर। उदाहरण—तव उती नाहीं कोई।—गोरखनाथ। | 
			
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				| उतृण					 : | वि० =उऋण। | 
			
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				| उतै					 : | अव्य० [हिं० उत] उधर। उस ओर। वहाँ।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उतैला					 : | वि०=उतावला। पुं० [देश] उड़द। उर्द।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उत्कंठ					 : | वि० [सं० उत्-कंठ, ब० स०] १. जिसने गरदन ऊपर उठाई हो। २. जिसे उत्कंठा हो। उत्कंठित। क्रि० वि० १. गरदन ऊपर उठाए हुए। २. उत्कंठापूर्वक। | 
			
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				| उत्कंठा					 : | स्त्री० [सं० उद्√कण्ठ् (अत्यंत चाह)+अ-टाप्] [वि० उत्कंठित] १. कोई काम करने या कुछ पाने की प्रबल इच्छा। उत्कट या तीव्र अभिलाषा। चाव। (लांगिंग) २. किसी कार्य के होने में विलंब न सहकर उसे चटपट करने की अभिलाषा। (साहित्य) | 
			
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				| उत्कंठातुर					 : | वि० [सं० उत्कंठा-आतुर, तृ० त०] जो कोई प्रबल या तीव्र अभिलाषा पूरी करने के लिए उत्कंठा के कारण आतुर हो। उदाहरण—मैं चिर उत्कंठातुर।—पंत। | 
			
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				| उत्कंठित					 : | वि० [सं० उत्कंठा+इतच्] जिसके मन में कोई तीव्र या प्रबल अभिलाषा हो। उत्कंठा या चाव से भरा हुआ। | 
			
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				| उत्कंठिता					 : | स्त्री० [सं० उत्कंठित+टाप्] साहित्य में वह नायिका जो संकेतस्थल में अपने प्रेम के न पहुँचने पर उत्कंठापूर्वक उसकी प्रतीक्षा करती हो। | 
			
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				| उत्कंप					 : | पुं० [सं० उद्√कम्प् (काँपना)+घञ्] कंपन। कँपकँपी। | 
			
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				| उत्कच					 : | वि० [सं० उत्-कच, ब० स०] जिसके बाल उठे हुए या खड़े हों। पुं० हिरण्याक्ष का एक पुत्र। | 
			
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				| उत्कट					 : | वि० [सं० उद्√कट् (गति)+अच्] [भाव० उत्कटता] १. जो मान, मात्रा आदि के विचार से बहुत ऊँचा या बढ़ा-चढ़ा हो। (इन्टेन्स) जैसे—उत्कट प्रेम, उत्कट विद्धान। २. जो अपने गुण, प्रबाव, फल आदि के विचार से बहुत उग्र या तीव्र हो। जैसे—उत्कट स्वभाव। पुं० १. मूँज। २. गन्ना। ३. दालचीनी। ४. तज। ५. तेजपता। | 
			
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				| उत्कर					 : | पुं० [सं० उद्√कृ (फेंकना)+अप्] ढेर। राशि। | 
			
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				| उत्कर्ण					 : | वि० [सं० उत्-कर्ण, ब० स०] १. जिसके कान ऊँचे उठे हों। २. जो किसी की बात सुनने के लिए उत्सुक होने के कारण कान उठाये हुए हों। | 
			
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				| उत्कर्ष					 : | पुं० [सं० उद्√कृष् (खींचना)+घञ्] १. ऊपर की ओर उठने, खिंचने या जाने की क्रिया या भाव। २. पद, मान, संपत्ति आदि में होनेवाली वृद्धि, संपन्नता या समृद्धि। ३. भाव, मूल्य आदि में होनेवाली अधिकता या वृद्धि। | 
			
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				| उत्कर्षक					 : | वि० [सं० उद्√कृष्+ण्वुल्-अक] १. ऊपर की ओर उठाने या बढ़ानेवाला। २. उन्नति या समृद्धि करनेवाला। उत्कर्ष करनेवाला। | 
			
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				| उत्कर्षता					 : | स्त्री० [सं० उत्कर्ष+तल्-टाप्] १. उत्तमता। श्रेष्ठता। २. अधिकता। ३. समृद्धि। | 
			
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				| उत्कर्षी (र्षिन्)					 : | वि० [सं० उद्√कृष्+णिनि] =उत्कर्षक। | 
			
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				| उत्कल					 : | पुं० [सं० ] १. भारतीय संघ के उड़ीसा राज्य का पुराना नाम। २. चिड़ीमार। बहेलिया। ३. बोझ ढोनेवाला मजदूर। | 
			
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				| उत्कलन					 : | पुं० [सं० उद्√कल् (गति, प्रेरणा, संख्या, शब्द)+ल्युट्-अन] १. बंधन से मुक्त होना। छूटना। २. फूलों आदि का खिलना या विकसित होना। ३. लहराना। | 
			
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				| उत्कलिका					 : | स्त्री० [सं० उद्√कल्+वुल्-अक-टाप्] १. उत्कंठा। २. फूल की कली। ३. लहर। तरंग। ४. साहित्य में ऐसा गद्य जिसमें बड़े-बड़े सामासिक पद हों। | 
			
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				| उत्कलित					 : | वि० [सं० उद्√कल्+क्त] १. जो बँधा हुआ न हो। खुला हुआ। मुक्त। २. खिला हुआ। विकसित। ३. लहराता हुआ। | 
			
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				| उत्कली					 : | वि० स्त्री० दे० ‘उड़िया’। | 
			
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				| उल्का					 : | स्त्री० [सं० उत्क+टाप्] =उत्कंठिका (नायिका)। | 
			
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				| उत्कारिका					 : | स्त्री० [सं० उद्√कृ+ण्वुल्-अक-टाप्, इत्व] फोड़े आदि पकाने के लिए उन पर लगाया जानेवाला लेप। पुलटिस। | 
			
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				| उत्कीर्ण					 : | वि० [सं० उद्√कृ+क्त] १. छितरा, फैला या बिखरा हुआ। २. छिदा या भिदा हुआ। ३. खोदकर अंकित किया हुआ। | 
			
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				| उत्कीर्त्तन					 : | पुं० [सं० उद्√कृत् (जोर से शब्द करना)+ल्युट-अन] १. जोर से बोलना। चिल्लाना। २. घोषणा करना। ३. प्रशंसा या स्तुति करना। | 
			
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				| उत्कुण					 : | पुं० [सं० उद्√कुण् (हिंसा करना)+अच्] १. खटमल। २. बालों में पड़नेवाला छोटा कीड़ा। जूँ। | 
			
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				| उत्कूज					 : | पुं० [सं० उद्√कूज् (अव्यक्त शब्द)+घञ्] १. कोमल। मधुर। ध्वनि। २. कोयल की कुहुक। | 
			
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				| उत्कूट					 : | पुं० [सं० उद्√कूट् (ढकना)+अच्] बहुत बड़ा छाता। | 
			
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				| उत्कृष्ट					 : | वि० [सं० उद्√कृष् (खींचना)+क्त] [भाव० उत्कृष्टता] १. अच्छे गुण से युक्त और फलतः आकर्षक या सुंदर। २. जो औरों से बड़ा-चढ़ा हो। उत्तम। श्रेष्ठ। | 
			
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				| उत्कृष्टता					 : | स्त्री० [सं० उत्कृष्ट+तल्-टाप्] उत्कृष्ट होने की अवस्था या भाव। | 
			
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				| उत्केंद्र					 : | वि० [सं० उत्-केन्द्र, ब० स०] [भाव० उत्केंद्रता] १. अपने केन्द्र से हटा हुआ। २. जो केन्द्र या ठीक मध्य में स्थित हो। ३. जो ठीक या पूरा गोला न हो। ४. अनियमित। बे-ठिकाने। (एस्सेन्ट्रिक) पुं० केन्द्र से भिन्न स्थान। | 
			
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				| उत्केन्द्रता					 : | स्त्री० [सं० उत्केन्द्र+तल्-टाप्] उत्केन्द्र होने की अवस्था या भाव। (एस्सेन्ट्रि-सिटी)। | 
			
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				| उत्केंद्रित					 : | वि० ‘उत्केंद्र’। | 
			
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				| उत्क्षेपण					 : | पुं० [सं० उद्√क्षिप्+ल्युट्-अन] १. ऊपर की । | 
			
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				| उत्कोच					 : | पुं० [सं० उद्√कुच्(संकोच)+क] १. घूस। रिश्वत। (ब्राइब) २. भ्रष्टाचार। | 
			
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				| उत्कोचक					 : | वि० [सं० उद्√कुच्+ण्वुल्-अक] १. किसी को घूस देनेवाला। २. घूस लेनेवाला। ३. भ्रष्टाचारी। | 
			
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				| उत्क्रम					 : | पुं० [सं० उद्√क्रम् (गति)+घञ्] १. ऊपर की ओर उठना या जाना। २. उन्नति या समृद्धि होना। ३. अनजान में या बिना किसी इष्ट उद्देश्य के ठीक मार्ग से इधर-उधर होना। (डिग्रेशन) विशेष-यह ‘विकल्प’ से इस बात में भिन्न है कि इसमें उचित मार्ग का त्याग किसी बुरे उद्देश्य से नहीं होता। | 
			
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				| उत्क्रमण					 : | पुं० [सं० उद्√क्रम्+ल्युट्-अन] १. ऊपर की ओर जाने की क्रिया या भाव। २. आज्ञा या कार्य-क्षेत्र का उल्लंघन करना। ३. आक्रमण। चढ़ाई। ४. मृत्यु। मौत। | 
			
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				| उत्क्रांत					 : | वि० [सं० उद्√क्रम्+क्त] [भाव० उत्क्रांति] १. ऊपर की ओर चढने वाला। २. जिसका उल्लंघन या अतिक्रमण हुआ हो। | 
			
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				| उत्क्रांति					 : | वि० [सं० उद्√क्रम्+क्तिन्] १. धीरे-धीरे उन्नति या पूर्णता की ओर बढ़ने की प्रवृत्ति। दे० आरोह। २. अतिक्रमण। उल्लंघन। ३. मृत्यु। मौत। | 
			
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				| उत्क्रोश					 : | पुं० [सं० उद्√कुश् (चिल्लाना)+घञ्] १. शोर-गुल। हल्ला-गुल्ला। २. कुररी नामक पक्षी। | 
			
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				| उत्क्लेदन					 : | पुं० [सं० उद्√क्लिद् (भींगना)+ल्युट-अन] गीला, तर या नम करने या होने की क्रिया या भाव। | 
			
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				| उत्क्लेश					 : | पुं० [सं० उद्√क्लिश् (कष्ट पाना)+घञ्] वैद्यक में, कुछ खाने के बाद आमाशय की अम्लता के कारण कलेजे के पास मालूम होनेवाली जलन। (रोग) (हार्ड बर्न) | 
			
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				| उत्क्षिप्त					 : | भू० कृ० [सं० उद्√क्षिप्(फेंकना)+क्त] १. ऊपर की ओर उछाला या फेंका हुआ। २. दूर किया या हटाया हुआ। ३. कै या वमन के रूप में बाहर निकाला हुआ। ४. नष्ट किया हुआ। ध्वस्त। | 
			
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				| उत्क्षेप					 : | पुं० [सं० उद्√क्षिप्+घञ्] [वि० उत्क्षिप्त, कर्त्ता उत्क्षेपक] १. ऊपर की ओर उछालने या फेंकने की क्रिया या भाव। २. बाहर निकालना। ३. दूर हटाना। ४. परित्याग करना। छोड़ना। ५. कै। वमन। | 
			
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				| उत्क्षेपक					 : | पुं० [सं० उद्√क्षिप्+ण्वुल्-अक] १. ऊपर उछालने या फेंकनेवाला। २. दूर करने या हटानेवाला। ३. चोरी करनेवाला। चोर। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उत्क्षेपण					 : | पुं० [सं० उद्√क्षिप्+ल्यूट्-अक] १. ऊपर की ओर फेंकने की क्रिया या भाव। उछालना। २. उल्टी। कै। वमन। ३. चोरी। 4. मूसल। 5. पाँव। 6. ढकना। ढक्कन। | 
			
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				| उत्खनन					 : | पुं० [सं० उद्√खन् (खोंदना)+ल्युट्-अन] [भू० कृ० उत्खचित] गड़ी या जमी चीज को खोदना। खोदकर बाहर निकालना या फेंकना। | 
			
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				| उत्खात					 : | भू० कृ० [सं० उद्√खन्+क्त] १. खोदा हुआ। २. खोदकर बाहर निकाला हुआ। ३. जड़ों से उखाड़ा हुआ। (पेड़, पौधा आदि)। ४. नष्ट-भ्रष्ट किया हुआ। ५. अपने स्थान से दूर किया या हटाया हुआ। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्खाता (तृ)					 : | वि० [सं०√उद्√खन्+तृच्] ११. उखाड़नेवाला। २. कोदनेवाला। ३. समूल नष्ट करना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्खाती (तिन्)					 : | वि० [सं० उद्√खन्+णिनि] १. जो समतल न हो। ऊबड़-खाबड़। २. =उत्खाता। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उत्खान					 : | पुं० [सं० उद्√खन्+घञ्]=उत्खनन। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उत्खेद					 : | पुं० [सं० उद्√खिद् (दीनता, घात)+घञ्] १. काटना। छेदना। २. खोदना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उत्तंकिय					 : | वि० आतंकित।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उत्तंग					 : | वि० उत्तंग।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उत्तंभन					 : | पुं० [सं० उद्√स्तम्भ् (रोकना)+घञ्] [उद्√स्तम्भ+ल्युट्] १. टेक या सहरा देने की क्रिया या भाव। २. टेक। सहारा। ३. रोक। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उत्तंस					 : | पुं० [सं० उद्√तंस् (अलंकृत करना)+अच् या घञ्] दे० ‘अवतंस’।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उत्तट					 : | वि० [सं० उत्-तट, अत्या० स०] किनारे या तट के ऊपर निकलकर बहनेवाला। | 
			
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				| उत्तप्त					 : | भू० कृ० [सं० उद्√तप्(तपना)+क्त] १. खूब तपा या तपाया हुआ। २. जलता हुआ। ३. लाक्षणिक अर्थ में सताया हुआ। संतप्त। ४. कुपित। | 
			
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				| उत्तब्ध					 : | भू० कृ० [सं० उद्√स्तम्भ (रोकना)+क्त] १. ऊपर उठाया हुआ। उन्नमित। २. उत्तेजित किया हुआ। भड़काया हुआ। | 
			
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				| उत्तभित					 : | वि० उत्तब्ध। | 
			
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				| उत्तमंग					 : | पुं० उत्तमांग। | 
			
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				| उत्तम					 : | वि० [सं० उद्+तमप्] [स्त्री० उत्तमा] १. जो गुण, विशेषता आदि में सबसे बहुत बढ़कर हो। सबसे अच्छा। २. सबसे बड़ा। प्रधान। पुं० १. विष्णु। २. ध्रुव का सौतेला भाई। | 
			
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				| उत्तम-गंधा					 : | स्त्री० [ब० स०] चमेली। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उत्तमतया					 : | क्रि० वि० [सं० उत्तमता शब्द की तृतीया विभक्ति के रूप का अनुकरण] उत्तम रूप से। अच्छी तरह। भली भाँति। | 
			
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				| उत्तमता					 : | स्त्री० [सं० उत्तम+तल्-टाप्] उत्तम होने की अवस्था या भाव। | 
			
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				| उत्तमताई					 : | स्त्री० उत्तमता।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उत्तमत्व					 : | पुं० [सं० उत्तम+त्व] उत्तमता। | 
			
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				| उत्तमन					 : | पुं० [सं० उद्√तम् (खेद)+ल्युट-अन] १. साहस छोड़ना। २. अधीरता। अधैर्य। | 
			
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				| उत्तम-पुरुष					 : | पुं० [सं० कर्म० स०] १. व्याकरण में, वह पद जो प्रथम पुरुष अर्थात् बोलनेवाला का वाचक हो। वक्ता का वाचक सर्व-नाम। जैसे—हम, मैं। २. ईश्वर जो सब पुरुषों में उत्तम कहा गया हो। | 
			
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				| उत्तमर्ण					 : | पुं० [सं० उत्तम-ऋण, ब० स०] वह जो दूसरो को ऋण देता हो, अथवा जिसे किसी को ऋण दिया हो। महाजन। | 
			
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				| उत्तमर्णिक					 : | पुं० [सं० उत्तम-ऋण, कर्म० स०+ठन्-इक]=उत्तमर्ण। | 
			
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				| उत्तम-साहस					 : | पुं० [सं० कर्म० स०] प्राचीन काल में अपराधी को दिया जानेवाला बहुत अधिक कठोर आर्थिक या शारीरिक देड। जैसे—अंग-भंग, निर्वासन, प्राण-दंड आदि। | 
			
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				| उत्तमांग					 : | पुं० [सं० उत्तम-अंग, कर्म० स०] शरीर का उत्तम या सर्वश्रेष्ठ अंग, मस्तक। सिर। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उत्तमांभस					 : | पुं० [सं० उत्तम-अंभस्, कर्म० स०] सांख्य में, हिसा के त्याग से प्राप्त होनेवाली तुष्टि। | 
			
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				| उत्तमा					 : | स्त्री० [सं० उत्तम+टाप्] १. श्रेष्ठ स्त्री। २. शूक रोग का एक बेद। ३. दुद्धी या दूधी नाम की जड़ी। वि० भली। नेक। | 
			
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				| उत्तमादूती					 : | स्त्री० [सं० व्यस्तपद] साहित्य में, वह दूती जो रूठे हुए नायक या नायिका को समझा-बुझाकर या दूसरे उत्तम उपायों से उसके प्रिय के पास ले आती हो। | 
			
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				| उत्तमानायिका					 : | स्त्री० [सं० व्यस्तपद] साहित्य में, शुद्ध आचरणवाली वह स्वकीया नायिक जो पति के प्रतिकूल या विरुद्ध होने पर भी उसके अनुकूल बनी रहें। | 
			
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				| उत्तमार्द्ध					 : | पुं० [सं० उत्तम-अर्द्ध, कर्म० स०] १. किसी वस्तु का वह आधा अंश या भाग जो शेष अंश की तुलना में श्रेष्ठ हो। २. अंतिम आधा अँश या भाग। उत्तरार्ध। | 
			
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				| उत्तमाह					 : | पुं० [सं० उत्तम-अहन्, कर्म० स०] १. अच्छा या शुभ दिन। २. अंतिम या आखिरी दिन। | 
			
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				| उत्तमीय					 : | वि० [सं० उत्तम+छ-ईय] १. सबसे अच्छा और ऊपर का। सर्वश्रेष्ठ। २. प्रधान। मुख्य। ३. सबसे ऊँचा। | 
			
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				| उत्तमोत्तम					 : | वि० [सं० उत्तम-उत्तम, पं० त०] १. सबसे अच्छा। सर्वोत्तम। २. एक से एक बढ़कर, सभी अच्छे। जैसे—अनेक उत्तमोत्तम पदार्थ वहाँ रखे थे। | 
			
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				| उत्तमोत्तमक					 : | पुं० [सं० उत्तमोत्तम+कन्] लास्य नृत्य के दस प्रकारों में से एक। | 
			
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				| उत्तमौजा (जस्)					 : | वि० [सं० उत्तम-ओजस्, ब० स०] जो तेज और बल के विचार से दूसरों से बढ़कर हो। पुं० १. मनु के एक पुत्र का नाम। २. एक राजा जिसने महाभारत के युद्ध में पांडवों का साथ दिया था। | 
			
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				| उत्तरंग					 : | वि० [सं० उद्-तरंग, ब० स०] १. लहराता हुआ। तरंगित। २. आनंदमग्न। ३. काँपता हुआ। पुं० [सं० कर्म० स०] वह काठ जो चौखट के ऊपर लगाया जाता है। | 
			
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				| उत्तर					 : | पुं० [सं० उद्√तृ (तैरना)+अप् अथवा उद्+तरप्] १. वह दिशा जो पूर्व की ओर मुँह करके खड़े होने पर मनुष्य की बाई ओर पड़ती है। उदीची। २. किसी देश का उत्तरी भाग। ३. किसी के प्रश्न या शंका करने पर या उसके समाधान या संतोष के लिए कही जानेवाली बात। ४. जाँच या परीक्षा के लिए पूछे हुए प्रश्नों के संबंध में कही हुई उक्त प्रकार की बात। ५. गणित आदि में, किसी प्रश्न का निकला हुआ अंतिम परिणाम। फल। ६. अबियोग या आरोप लगने पर अपने आचरण या व्यवहार का औचित्य सिद्ध करते हुए कुछ कहना। ७. किसी के कार्य या व्यवहार के बदले में ठीक उसी प्रकार से किया जानेवाला कार्य या व्यवहार। ८. साहित्य में एक अलंकार जिसमें (क) किसी प्रश्न के उत्तर में कोई गूढ़ आशय या संकेत किया जाता है अथवा (ख) कुछ प्रश्न इस रूप में रखे जाते है कि उनके उत्तर भी उन्हीं शब्दों में छिपे रहते हैं। ९. राजा विराट के एक पुत्र का नाम। वि० १. उत्तरी। बाद का। पिछला। २. ऊपर का। ३. श्रेष्ठ। अव्य० बाद में। पीछे। | 
			
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				| उत्तर-कल्प					 : | पुं० [सं० कर्म० स०] भू-विज्ञान के अनुसार वह दूसरा कल्प जिसमें मुख्यतः पर्वतों तथा खनिज पदार्थों की सृष्टि हुई थी। अनुमानतः यह कल्प आज से लगभग सवा अरब वर्ष पहले हुआ था। | 
			
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				| उत्तर-कोशला					 : | स्त्री० [सं० उत्तरकोशल+अच्-टाप्] अयोध्या नगरी। | 
			
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				| उत्तर-क्रिया					 : | स्त्री० [मध्य० स०] मृत्यु के उपरांत मृतक के उद्देश्य से होनेवाले धार्मिक कृत्य। अंत्येष्टि। | 
			
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				| उत्तर-गुण					 : | पुं० [कर्म० स०] मूल गुणों की रक्षा करनेवाले गौण या दूसरे गुण।( जैन)। | 
			
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				| उत्तरच्छद					 : | पुं० [कर्म० स०] १. आच्छादन। आवरण। २. बिछौने या बिछाई जानेवाली चादर। | 
			
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				| उत्तरण					 : | पुं० [सं० उद्√तृ+ल्युट-अन] तैरकर या नाव आदि के द्वारा जलाशय पार करना। | 
			
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				| उत्तर-तंत्र					 : | पुं० [कर्म० स०] किसी वैद्यक ग्रंथ का पिछला या परिशिष्ट भाग। | 
			
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				| उत्तर-दाता (तृ)					 : | पुं० [ष० त०] —उत्तरदायी। वि० उत्तर या जवाब देना। | 
			
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				| उत्तरदायित्व					 : | पुं० [सं० उत्तरदायिन्+त्व] किसी बात या बात के लिए उत्तरदायी होने की अवस्था या भाव। जवाबदेही। जिम्मेदारी। | 
			
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				| उत्तरदायी (यिन्)					 : | वि० [सं० उत्तर√दा (देना)+णिनि] १. जिस पर कोई काम करने का भार हो। जैसे—इस काम के उत्तदायी आप ही मानें जाँयेगे। २. जो नैतिक अथवा विधिक दृष्टि से अपने किसी आचरण अथवा दूसरों द्वारा सौंपे हुए कार्य के संबंध में कुछ पूछे जाने पर उत्तर देने के लिए बाध्य हो। जैसे—उत्तरदायी शासन। (रेसपान-सिबुल, उक्त दोनों अर्थों में)। | 
			
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				| उत्तर-पक्ष					 : | पुं० [कर्म० स०] विवाद आदि में वह पक्ष जो पहले किये जानेवाले निरूपण या प्रस्थान का खंडन या समाधान करता हो। अभियोग तर्क, प्रश्न आदि का उत्तर देनेवाला पक्ष। ‘पूर्व-पक्ष’ का विपर्याय। | 
			
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				| उत्तर-पट					 : | पुं० [कर्म० स०] १. ओढ़ने की चादर। उत्तरीय। २. बिछाने की चादर। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उत्तर-पथ					 : | पुं० [ष० त०] पाटलिपुत्र से वाराणसी, कौशाम्बी, साकेत, मथुरा, तक्षशिला आदि से होता हुआ वाह्लीक तक गया हुआ एक प्राचीन मार्ग। | 
			
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				| उत्तर-पद					 : | पुं० [कर्म० स०] समस्त या यौगिक शब्द का अंतिम या पिछला शब्द। जैसे—धर्मानुसार या धर्म-साधन में का अनुसार या साधन शब्द। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उत्तर-प्रत्युत्तर					 : | पुं० [द्व० स०] किसी से किसी बात का उत्तर मिलने पर उसके उत्तर में कुछ कहना-सुनना। वाद-विवाद। बहस। | 
			
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				| उत्तर-प्रदेश					 : | पुं० [सं० ] भारतीय संघ राज्य का वह प्रदेश जिसके उत्तर में हिमालय, पश्चिम में पंजाब, पूर्व में बिहार और दक्षिण में मध्य प्रदेश है। (पुराने संयुक्त प्रदेश का नया नाम)। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उत्तर-भोगी (गिन्)					 : | वि० [सं० उत्तर√भुज् (भोगना)+णिनि] किसी के द्वारा छोड़ी हुई अथवा किसी की बची हुई वस्तु या संपत्ति का भोग करने वाला। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्तर-मंद्रा					 : | पुं० [ब० स० टाप्] संगीत में एक मूर्च्छना का नाम। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्तर-मीमांसा					 : | स्त्री० [ष० त०] वेदांत दर्शन। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्तर-वयम्					 : | पुं० [कर्म० स०] जीवन का अंतिम समय जिसमें मनुष्य की सारी शक्तियाँ क्षीण होने लगती है। बुढ़ापा। वृद्धावस्था। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्तरवर्तन					 : | पुं० [स० त०] दे ‘अनुवृत्ति’। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्तरवादी (दिन्)					 : | वि० प्रतिवादी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्तर-साक्षी (क्षिन्)					 : | पुं० [ष० त०] दूसरों से सुनी सुनाई बातों के आधार पर साक्षी देनेवाला व्यक्ति। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्तरा					 : | स्त्री० [सं० उत्तर+टाप्] राजा विराट की कन्या जिसका विवाह अभिमन्यु से हुआ था। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्तरा-खंड					 : | पुं० [ष० त०] भारत का वह उत्तरी भू-भाग जो हिमालय की तलहटी में और उसके आस-पास पड़ता है। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्तराधिकार					 : | पुं० [उत्तर-अधिकार, ष० त०] १. ऐसा अधिकार जिसके अनुसार किसी के न रह जाने अथवा अपना अधिकार छोड़ देने पर किसी दूसरे को उसकी धन-संपत्ति आदि प्राप्त होती है। २. किसी के पद या स्थान से हटने पर उसके बाद आनेवाले व्यक्ति को मिलनेवाला उसका अधिकार, गुण विशेषता आदि। वरासत। (इनहेरिटेन्स) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्तराधिकार-कर					 : | पुं० [ष० त०] शासन की ओर से, उत्तराधिकारी को मिलनेवाली संपत्ति पर लगनेवाला कर। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्तराधिकार-प्रमाणक					 : | पुं० [ष० त०] न्यायालय से मिलनेवाला यह प्रमाणक जिसमें विधिक रूप से किसी के उत्तराधिकारी माने जाने का उल्लेख होता है। (सक्सेशन सर्टिफिकेट) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्तराधिकारी (रिन्)					 : | पुं० [सं० उत्तराधिकार+इनि] १. वह व्यक्ति जो किसी की संपत्ति प्राप्त करने का विधितः अधिकारी हो। (इनहेरिटर) २. अधिकारी के किसी पद या स्थान से हटने पर उस पद या स्थान पर आनेवाला दूसरा अधिकारी। (सक्सेसर)। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्तरापेक्षी (क्षिन्)					 : | वि० [सं० उत्तर-अप√ईक्ष् (चाहना)+णिनि] जो अपने किसी कथन पत्र, प्रश्न, प्रार्थना आदि के उत्तर की अपेक्षा करता हो। अपनी बात का उत्तर या जवाब चाहनेवाला। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्तराफाल्गुनी					 : | स्त्री० [सं० व्यस्तपद] आकाशस्थ सत्ताईस नक्षत्रों में से बारहवाँ नक्षत्र। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्तराभाद्रपद					 : | स्त्री० [सं० व्यस्तपद] आकाशस्थ सत्ताईस नक्षत्रों में से छब्बीसवाँ नक्षत्र। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्तराभास					 : | पुं० [सं० उत्तर-आभास, ष० त०] १. ऐसा उत्तर जो ठीक और समाधान कारक तो न हो, फिर देखने में ठीक-सा जान पड़ता हो। ऐसा उत्तर जिसमें वास्तविकता या सत्यता न हो, उसका आभास मात्र हो। २. झूठा या मिथ्या उत्तर। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्तराभासी (सिन्)					 : | वि० [सं० उत्तराभास+इनि] (प्रश्न) जिसमें उसके उत्तर का भी कुछ आभास हो। जैसे—आप तो भोजन कर ही चुके हैं न ? में यह आभास है कि आप भोजन कर चुके हैं। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्तरायण					 : | पुं० [सं० उत्तर-अयन, स० त०] १. मकर रेखा से उत्तर और कर्क रेखा की ओर होनेवाली सूर्य की गति। २. छः मास की वह अवधि या समय जिसमें सूर्य की गति उत्तर अर्थात् कर्क रेखा की ओर रहती है। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्तरायणी					 : | स्त्री० [सं० उत्तरायण+ङीष्] संगीत में एक मूर्च्छना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्तरारणी					 : | स्त्री० [सं० उत्तर-अरणी, कर्म० स०] अग्निमंथन की दो लकड़ियों में से ऊपर रहनेवाली लकड़ी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्तरार्द्ध					 : | पुं० [सं० उत्तर-अर्द्ध, कर्म० स०] किसी वस्तु के दो खंडों या भागों में से उत्तर अर्थात् अंत की ओर या बाद में पड़नेवाला खंड या भाग। पिछला आधा भाग। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्तराषाढ़ा					 : | स्त्री० [सं० उत्तरा-आषाढ़ा, व्यस्त-पद] सत्ताईस नक्षत्रों में से इक्कीसवाँ नक्षत्र। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्तरासंग					 : | पुं० [सं० उत्तर-आ√सञज् (मिलना)+घञ्] उत्तरीय। उपरना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्तरी					 : | वि० [सं० उत्तरीय] १. उत्तर दिशा में होनेवाला। उत्तर दिशा से संबंधित। उत्तर का। स्त्री० संगीत में कर्नाटकी पद्धति की एक रागिणी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्तरी-ध्रुव					 : | पुं० [हिं० +सं० ] पृथ्वी के गोले का उत्तरी सिरा। सुमेरु। (नार्थ पोल) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्तरीय					 : | पुं० [सं० उत्तर+छ-ईय] १. कंधे पर रखने का वस्त्र। चादर। दुपट्टा। २. एक प्रकार का सन। वि० १. उत्तर दिशा का। उत्तर में होनेवाला। २. ऊपर का। ऊपरवाला। ३. जो दूसरों की तुलना में अच्छा या श्रेष्ठ हो। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्तरोत्तर					 : | क्रि० वि० [सं० उत्तर-उत्तर, पं० त०] १. क्रमशः। एक के बाद एक। २. लगातार। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्तल					 : | वि० [सं० उत्-तल, ब० स०] [भाव० उत्तलता] जिसके तल के बीच का भाग कुछ ऊपर उठा हो। उन्नतोदर। (काँन्वेन्स)। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उत्तलित					 : | भू० कृ० [सं० उद्√तल् (स्थापित करना)+क्त] १. जो उत्तल के रूप में लाया हुआ हो। २. ऊपर उठाया या फेंका हुआ। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्ता					 : | वि० उतना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्तान					 : | वि० [सं० उत्-तान, ब० स०] १. फैला या फैलाया हुआ। २. पीठ के बल लेटा या चित्त पड़ा हुआ। ३. जिसका मुँह ऊपर की ओर हो। ऊर्ध्व मुख। ४. जो उलटा होकर सीधा हो। ५. आवरण से रहित, अर्थात् बिलकुल खुला हुआ और स्पष्ट। नग्न। जैसे—उत्तान श्रृंगार। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्तानक					 : | पुं० [सं० उद्√तन् (फैलना)+ण्वुल्-अक] उच्चटा नाम की घास। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्तान-पाद					 : | पुं० [ब० स०] भक्त ध्रुव के पिता का नाम। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्तान-हृदय					 : | वि० [ब० स०] १. जिसके हृदय में छल-कपट न हो। सरल हृदय। २. उदार और सज्जन। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्तानित					 : | भू० कृ० [सं० उद्√तन्+णिच्+क्त] १. ऊपर उठाया या फैलाया हुआ। २. जिसका मुख ऊपर की ओर हो। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्ताप					 : | पुं० [सं० उद्√तप् (तपना)+घञ्] १. साधारण से बहुत अधिक बढ़ा हुआ ताप। २. मन में होनेवाला बहुत अधिक कष्ट या दुख। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्तापन					 : | पुं० [सं० उद्√तप्+णिच्+ल्युट्-अन] [भू० कृ० उत्तापित, उत्तप्त] १. बहुत अधिक गरम करने या तपाने की क्रिया या भाव। २. बहुत अधिक मानसिक कष्ट या पीड़ा पहुँचाना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्तापमापी (पिन्)					 : | पुं० [सं० उत्ताप√मा या√मि(नापना)+णिच्, पुक्+णिनि] एक यंत्र जिससे बहुत अधिक ऊँचे दरजे के ऐसे ताप नापे जाते हैं जो साधारण ताप-मापकों से नहीं नापे जा सकते। (पीरो मीटर)। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्तापित					 : | भू० कृ० [सं० उद्√तप्+णिच्+क्त] १. बहुत गर्म किया या तपाया हुआ। उत्तप्त। २. जिसे बहुत दुःख पहुँचाया गया हो। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्तापी (पिन्)					 : | वि० [सं० उद्√तप्+णिच्+णिनि] १. उत्तापन करने या बहुत ताप पहुँचानेवाला। २. बहुत अधिक कष्ट देनेवाला। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्तार					 : | वि० [सं० उद्√तृ+णिच्+घञ्] जो गुणों में दूसरों से बढ़ा-चढ़ा हो। उत्कृष्ट। २. दे० ‘उत्तारक’। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्तारक					 : | वि० [सं० उद्√तृ+णिच्+ण्वुल्-अक] उद्धार करने या उबारनेवाला। पुं० शिव। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्तारण					 : | पुं० [सं० उद्√तृ+णिच्+ल्युट्-अन] १. तैर या तैराकर पार ले जाना। २. एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाना या पहुँचाना। ३. विपत्ति, संकट आदि से छुड़ाना। उद्धार करना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्तारना					 : | स० [सं० उत्तराण] १. पार उतारना या ले जाना। २. दूर करना। हटाना। उदाहरण—नाहर नाऊ नरयंद चित्त चिंता उत्तारिय।—चंदवरदाई। ३. दे० ‘उतारना’। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्तारी (रिन्)					 : | वि० [सं० उद्√तृ+णिच्+णिनि] पार करने या उतारनेवाला। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्तार्य					 : | वि० [सं० उद्√तृ+णिच्+यत्] जो पार उतारा जाने को हो अथवा पार उतारे जाने के योग्य हो। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्ताल					 : | वि० [सं० उद्√तल्+घञ्] बहुत अधिक ऊँचा। जैसे—उत्ताल तरंग। पुं० वन-मानुष। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्तीर्ण					 : | वि० [सं० उद्√तृ+क्त] १. जो नदी, नाले आदि के उस पार चला गया हो। पार गया हुआ। पारित। २. जो किसी जाँच या परीक्षा में पूरा सफल या सिद्ध हो चुका हो। ३. मुक्त। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उत्तुंग					 : | वि० [सं० उत्-तुंग, प्रा० स०] १. बहुत अधिक ऊँचा। जैसे—हिमालय का उत्तुंग शिखर। २. यथेष्ठ उन्नत। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उत्तू					 : | पुं० [फा०] १. कपड़े पर चुनट डालने या बेल-बूटे काढ़ने का एक औजार या उपकरण। २. उक्त करण से कपड़े पर बनाये हुए बेल-बूटे या डाली हुई चुनट। मुहावरा—(किसी व्यक्ति को) उत्तू करना या बनाना-इतना मारना कि बदन में दाग पड़ जाएँ। जैसे—मारते-मारते उत्तू कर दूँगा। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उत्तूगर					 : | पुं० [फा०] वह कारीगर जो कपड़े पर उत्तू से कढ़ाई का काम करता अथवा चुनट डालता हो। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उत्तेजक					 : | वि० [सं० उद्√तिज(तीक्ष्ण करना)+णिच्+ण्वुल्-अक] १. उत्तेजना उत्पन्न करनेवाला। २. किसी को कोई काम करने के लिए उकसाने या भड़कानेवाला। ३. मनोवेगों को तीव्र या तेज करनेवाला। जैंसे—सभी मादक पदार्थ उत्तेजक होते हैं। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उत्तेजन					 : | पुं० [सं० उद्√तिज्+णिच्+ल्युट-अन] [कर्त्ता, उत्तेजक, भू० कृ० उत्तेजित] १. तेज से युक्त करना अथवा तेज की प्रखरता बढ़ाना। २. उकसाना। भड़काना। ३. दे० ‘उत्तेजना’। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उत्तेजना					 : | स्त्री० [सं० उद्√तिज्+णिच्+युच्-अन-टाप्] १. किसी के तेज को उत्कृष्ट करना या उग्र रूप देना। २. शरीर के किसी अंग या इंद्रिय में होनेवाली कोई असाधारण क्रियाशीलता। जैसे—जननेंद्रिय की उत्तेजना। ३. ऐसी स्थिति जिसमें मन चंचल होकर बिना समझे-बूझे कोई काम करने में उग्रता तथा शीघ्रतापूर्वक प्रवृत्त या रत होता है। (एक्साइटमेंट) जैसे—(क) उन्होंने केवल उत्तेजना-वश उस समय त्यागपत्र दे दिया था। (ख) उनके भाषण से सभा में उत्तेजना फैल गयी। ४. कोई ऐसा काम या बात जो किसी का मन चंचल करके उसे उग्रता और शीघ्रतापूर्वक कोई काम करने में प्रवृत्त करे। किसी को आवेश में लाने के लिए किया हुआ कार्य या कही हुई बात। बढ़ावा। (इन्साइटमेन्ट) जैसे—आपने ही उत्तेजना देकर उन्हें इस काम में आगे बढ़ाया था। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उत्तेजित					 : | भू० कृ० [सं० उद्√तिच्+णिच्+क्त] १. जो किसी प्रकार की विशेषतः मानसिक उत्तेजना से युक्त हो। जिसमें उत्तेजना आई हो। (एक्साइटेड) जैसे—उत्तेजित होकर कोई काम नहीं करना चाहिए। २. जो किसी प्रकार की उत्तेजना से युक्त करके आगे बढ़ाया गया हो। उकसाया या भड़काया हुआ। (इन्साइटेड) जैसे—तुम्हीं ने तो उसे मारने के लिए उत्तेजित किया था। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्तोलक					 : | वि० [सं० उद्√तुल् (तौलना)+णिच्+ण्वुल्-अक] उत्तोलक करने या ऊपर उठानेवाला। पुं० एक स्थान का ऊँचा यंत्र जिसकी सहायता से भारी चीजें एक स्थान से उठाकर दूसरे स्थान पर रखी जाती हैं। (क्रेन)। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्तोलन					 : | वि० [सं० उद्√तुल्+णिच्+ल्युट-अन] [भू० कृ० उत्तोलित] १. ऊपर की ओर उठाने या ले जाने की क्रिया या भाव। ऊँचा करना। जैसे—ध्वजोत्तोलन। २. तौलना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्तोलन-यंत्र					 : | पुं० [ष० त०] दे० ‘उत्तोलक’। (क्रेन)। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्थवना					 : | स० [सं० उत्थापन] १. ऊपर उठाना। ऊँचा करना। २. आरंभ या शुरू करना। ३. अच्छी या उन्नत दशा में लाना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उत्थान					 : | स० [सं० उद्√स्था (ठहरना)+ल्युट्-अन] १. ऊपर की ओर उठना। ऊँचा होना। उठान। (विशेष दे० उठना।) २. किसी निम्न या हीन स्थिति से निकलकर उच्च या उन्नत अवस्था में पहुँचने की अवस्था या भाव। उन्नत या समृद्ध स्थिति। जैसे—जाति या देश का उत्थान। ३. किसी काम या बात का आरंभ या आरंभिक अंश। उठान। जैसे—इस काव्य (या ग्रंथ) का उत्थान तो बहुत सुंदर हैं। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्थान-एकादशी					 : | स्त्री० [ष० त०] कार्तिक शुक्ला एकादशी। देवोत्थान। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उत्थानक					 : | वि० [सं० उत्थान+णिच्+ण्वुल्-अक] १. निम्न या साधारण स्तर से ऊपर की ओर ले जानेवाला। उत्थान करनेवाला। २. किसी को उन्नत या समृद्ध बनानेवाला। पुं० एक प्रकार का यंत्र जिसकी सहायता से लोग बहुत ऊँची-ऊँची इमारतों या भवनों में (बिना सीढ़ियाँ चढ़े-उतरे) ऊपर-नीचे आते जाते हैं (लिफ्ट) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्थापक					 : | वि० [सं० उद्√स्था+णिच्, पुक्+ण्वुल्-अक] १. उत्थान करने या ऊपर उठानेवाला। २. जगानेवाला। ३. प्रेरित करनेवाला। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्थापन					 : | पुं० [सं० उद्√स्था+णिच्, पुक्+ल्युट्-अन] १. ऊपर की ओर उठाना। २. सोये हुए को जगाना। ३. उत्तेजित या उत्साहित करना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्थापित					 : | भू० कृ० [सं० उद्√स्था+णिच्, पुक्+क्त] १. ऊपर उठाया हुआ। २. जगाया हुआ। ३. उत्तेजित किया हुआ। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्थायी (यिन्)					 : | वि० [सं० उद्√स्था+णिनि] १. ऊपर की ओर उठने, उभरने, निकलने या बढ़ने-वाला। २. उठाने, उभारने या उत्थान करनेवाला। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्थित					 : | भू० कृ० [सं० उद्√स्था+क्त] १. जिसका उत्थान हुआ हो या किया गया हो। उठा हुआ। २. जागा हुआ। ३. समृद्ध। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्थिति					 : | स्त्री० [सं० उद्√स्था+क्तिन्] उत्थान। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उत्पट					 : | पुं० [सं० उद्√पट् (गति)+अच्] १. बबूल आदि पेड़ों से निकलने वाली गोंद। २. दुपट्टा। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्पतन					 : | पुं० [सं० उद्√पत्+ल्युट-अन] १. उड़ने की क्रिया या भाव। २. ऊपर की ओर उठना। ३. उछालना। ४. उत्पन्न करना। जन्म लेना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्पत्ति					 : | स्त्री० [सं० उद्√पत्+क्तिन्] १. अस्तित्व में आने या उत्पन्न होने की अवस्था, क्रिया या भाव। आविर्भाव। उद्भव। जैसे—सृष्टि की उत्पत्ति। २. जन्म लेकर इस पृथ्वी पर आने की क्रिया या भाव। जैसे—पुत्र की उत्पत्ति। पैदाइश। जन्म। ३. किसी प्रकार का रूप धारण करके प्रत्यक्ष होने की अवस्था या भाव। जैसे—प्रेम या वैर की उत्पत्ति। ४. किसी उपाय या क्रिया से प्रस्तुत किया हुआ तत्व या पदार्थ। बन या बनाकर तैयार की हुई चीज। उपज० जैसे—कृषि की उत्पत्ति। ५. अर्थशास्त्र में, किसी चीज का आकार-प्रकार, रूप-रंग, आदि बदलकर उसे अपेक्षया अधिक उपयोगी रूप में लाने की क्रिया या भाव। उत्पादन। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्पथ					 : | पुं० [सं० उत्-पथ, प्रा० स०] अनुचित या दूषित पथ। बुरा रास्ता। कुमार्ग। वि० कुमार्गी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्पन्न					 : | वि० [सं० उद्√पद् (गति)+क्त] १. जिसकी उत्पति हुई हो। २. जिसने जन्म लिया हो। ३. जिसे अस्तित्व में लाया या पैदा किया गया हो। ४. निर्मित किया या बनाया हुआ। ५. उपजा या उपजाया हुआ। ६. उद्भूत या घटित होनेवाला। जैसे—विचार या संदेह उत्पन्न होना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्पन्ना					 : | स्त्री० [सं० उत्पन्न+टाप्] अगहन बदी एकादशी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्पल					 : | पुं० [सं० उद्√पल्(गति)+अच्] १. कमल। विशेषतः नीलकमल। २. कुमुदनी। वि० बहुत ही दुबला-पतला या क्षीण-काय। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्पलिनी					 : | स्त्री० [सं० उत्पल+इनि-ङीष्] १. कमल का पौधा। २. कमल के फूलों का समूह। ३. एक प्रकार का छंद या वृत्त। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्पवन					 : | पुं० [सं० उद्√पू (पवित्र करना)+ल्युट्-अन] १. शुद्ध या स्वच्छ करने की क्रिया या भाव। २. वह उपकरण जिससे कोई चीज साफ की जाए। ३. तरल पदार्थ छिड़कना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्पाटक					 : | वि० [सं० उद्√पट्+णिच्+अवुल्-अक] उत्पाटन करने या उखाड़नेवाला। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्पाटन					 : | पुं० [सं० उद्√पट्+णिच्+ल्युट-अन] १. जड़ से खोदकर कोई चीज उखाड़ने की क्रिया या भाव। उन्मूलन। २. जमे, टिके या ठहरे हुए को पीड़ित करके उसके स्थान से हटाना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्पाटित					 : | भू० कृ० [सं० उद्√पट्+णिच्+क्त] १. जड़ से उखाड़ा हुआ। उन्मूलित। २. अपने स्थान से पीड़ित करके हटाया हुआ। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्पात					 : | पुं० [सं० उद्+पत् (गिरना)+घञ्] १. अचानक ऊपर की ओर उठना, कूदना या बढ़ना। २. अचानक होनेवाली कोई ऐसी प्राकृतिक घटना जो कष्टप्रद या हानिकारक सिद्ध हो सकती हो। जैसे—अग्नि-कांड, उल्कापात, बाढ़, भूकंप आदि। ३. दे० ‘उपद्रव’। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्पाती (तिन्)					 : | वि० [सं० उद्√पत्+णिनि] १. उत्पात या उपद्रव करनेवाला। २. पाजीपन या शरारत करनेवाला। उपद्रवी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्पाद					 : | वि० [सं० उद्√पद् (गति)+घञ्] जिसके पैर ऊपर उठें हो। पुं० १. वह वस्तु जिसका उत्पादन हुआ हो। निर्मित वस्तु। २. इतिवृत्त के मूल की दृष्टि से नाटक की कथा-वस्तु के तीन भेदों में से एक। ऐसी कथावस्तु जिसकी सब घटनाएँ कवि या नाटककार की निजी कल्पनाओं से उत्पन्न या उद्भूत हुई हों। जैसे—मालती-माधव, मृच्छकटिक आदि। (शेष दो भेद ‘प्रख्यात’ और ‘भिन्न’ कहे जाते हैं)। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्पादक					 : | वि० [सं० उद्√पद्+णिच्+ण्वुल्-अक] १. उत्पादन करनेवाला। २. जिससे कुछ उत्पादन हों। पुं० १. मूल कारण। २. [ब० स० कप्] शरभ नामक एक कल्पित जंतु। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्पादन					 : | पुं० [सं० उद्√पद्+णिच्+ल्युट्-अन] १. उत्पन्न या पैदा करना। २. उपजने में प्रवृत्त करना या सहायक होना। ३. ऐसा कार्य या प्रयत्न करना जिससे कोई उपजे या बने। 4. उक्त प्रकार से उत्पन्न करके या उपजाकर तैयार की या बनाई हुई चीज। (प्रोडक्सन) जैसे—(क) कल-कारखानों में होनेवाला कपड़ों का उत्पादन। (ख) खेतों आदि में होनेवाला अन्न का उत्पादन। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्पादन-शुल्क					 : | पुं० [ष० त०] वह शुल्क जो कल-कारखानों में किसी वस्तु का उत्पादन करने या राज-कोष में देना पड़ता है। (एक्साइज ड्यूटी)। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्पादित					 : | भू० कृ० [सं० उद्√पद्+णिच्+क्त] जिसका उत्पादन हुआ हो। उत्पन्न किया या उपजाया हुआ। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्पादी (दिन्)					 : | वि० [सं० उद्√पद्+णिच्+णिनि] उत्पादन करने या उपजानेवाला। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्पाद्य					 : | वि० [सं० उद्√पद्+णिच्+यत्] (पदार्थ) जिसका उत्पादन किया जाने को हो अथवा जिसका उत्पादन करना आवश्यक या उचित हो। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्पाली					 : | स्त्री० [सं० उद्√पल्+घञ्-ङीष्] आरोग्य। स्वास्थ्य। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्पीड़क					 : | पुं० [सं० उद्√पीड़(कष्ट देना)+ण्वुल्-अक] उत्पीड़न करने या कष्ट पहुँचानेवाला। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्पीड़न					 : | पुं० [सं० उद्√पीड़+ल्युट-अन] [भू० कृ० उत्पीड़ित] १. दबाना। २. कष्ट या पीड़ा पहुँचाना। सताना। ३. अत्याचार या जुल्म करना। सताना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्पीड़ित					 : | भू० कृ० [सं० उद्√पीड़+क्त] १. दबाया हुआ। २. जिसे कष्ट या पीड़ा पहुँचाई गई हो। ३. सताया हुआ। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्प्रभ					 : | वि० [सं० उत्-प्रभा, ब० स०] बहुत ही चमकीला। पुं० जलती या दहकती हुई आग। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्प्रवास					 : | पुं० [सं० उत्-प्रवास, प्रा० स०] स्वदेश त्याग। अपना देश छोड़कर अन्य देश में जाना या जाकर रहना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्प्रेक्षक					 : | वि० [सं० उद्-प्र√ईक्ष् (देखना)+ण्वुल्-अक] उत्प्रेक्षा करनेवाला। वितर्क करनेवाला। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्प्रेक्षण					 : | पुं० [सं० उद्-प्र√ईक्ष् (देखना)+ल्युट-अन] १. सावधान होकर ऊपर की ओर देखना। २. ध्यानपूर्वक देखना-भालना या सोचना। ३. एक वस्तु से दूसरी वस्तु की तुलना करना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्प्रेक्षणीय					 : | वि० [सं० उद्-प्र√ईक्ष्+अनीयर] जिसका उत्प्रेक्षण होने को हो अथवा जो उत्प्रेक्षण के योग्य हो। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्प्रेक्षा					 : | स्त्री० [सं० उद्-प्र√ईक्ष्+अ-टाप्] [वि० उत्प्रेक्ष्य, उत्प्रेक्षणीय] १. उत्प्रेक्षण। २. एक अर्थालंकार जिसमें उपमेय और उपमान के भेद का ज्ञान होने पर भी इस बात का उल्लेख होता है कि उपमेय उपमान के समान जान पड़ता है। जैसे—अति कटु वचन कहत कैकेई। मानहु लोन जरे पर देई।-तुलसी। विशेष—इव, लजनु, जानो, मनु, मानो आदि शब्द इस अलंकार के सूचक होते है। इसके तीन भेद हैं-वस्तूत्प्रेक्षा, हेतूत्प्रेक्षा और फलोत्प्रेक्षा। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्प्रेक्षोपमा					 : | स्त्री० [उत्प्रेक्षा-उपमा, ष० त०] एक अर्थालंकार जिसमें किसी एक वस्तु के किसी गुण या विशेषता के दूसरी अनेक वस्तुओं में होने का उल्लेख होता है। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्प्रेक्ष्य					 : | वि० [सं० उद्-प्र√ईक्ष्+ण्यत्] १. जिसकी उत्प्रेक्षा हो या होने को हो। २. को उत्प्रेक्षा द्वारा अभिव्यक्त किया जाने को हो या किया जा सकता हो। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्प्रेरक					 : | वि० [सं० उद्-प्र√ईर् (गति)+ण्वुल्-अक] उत्प्रेरणा करनेवाला। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्प्रेरणा					 : | पुं० [सं० उद्-प्र√ईर्+णिच्+युच्-अन-टाप्] १. प्रेरणा करने की क्रिया या भाव। २. रसायन शास्त्र में, किसी ऐसे पदार्थ का (जो स्वयं अविकृत हो।) किसी दूसरे पदार्थ पर अपनी रासायनिक प्रतिक्रिया करना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्कुल्ल					 : | वि० [सं० उद्√फल्+क्त, लत्व, उत्व०] [भाव० उत्फुलता] १. खिला हुआ। जैसे—उत्फुल्ल कमल। २. खुला हुआ। जैसे—उत्फुल्ल नेत्र। ३. प्रसन्न। जैसे—उत्फुल्ल आनन। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्यम					 : | वि० उत्तम। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्याग					 : | पुं० [सं० उद्√सञ्ज् (मिलना)+घञ्] १. अंक। क्रोड़। गोद। २. बीच का हिस्सा। मध्य भाग। ३. ऊपरी भाग। ४. चोटी। शिखर। ५. तल। सतह। वि० १. निर्लिप्त। २. विरक्त। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्संगित					 : | भू० कृ० [सं० उत्संग+इतच्] १. अंक या गोद में लिया हुआ। २. गले लगाया हुआ। आलिंगित। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्स					 : | पुं० [सं०√उन्द् (भिगोना)+स] [वि० उत्स्य] १. बहते हुए पानी की धारा या स्रोत। झरना। २. जलमय स्थान। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्सन्न					 : | वि० [सं० उद्√सद् (फटना, नष्ट होना आदि)+क्त] [स्त्री० उत्सन्ना] १. ऊपर की ओर उठाया हुआ। ऊँचा। अवसन्न का विपर्याय। २. बढ़ा हुआ। ३. पूरा किया हुआ। ४. उखाड़ा हुआ। उच्छिन्न। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्सर्ग					 : | पुं० [सं० उद्√सृज् (त्याग)+घञ्] १. खुला छोड़ने या बंधन से मुक्त करने की क्रिया या भाव। २. किसी उद्देश्य या कारण से कोई वस्तु अपने अधिकार या नियंत्रण से अलग करना या निकालना और अर्पित करना। जैसे—(क) साहित्य-सेवा के लिए जीवन का उत्सर्ग। (ख) किसी पित्तर के उद्देश्य से किया जानेवाला वृषोत्सर्ग। ३. किसी के लिए किया जानेवाला त्याग। ४. दान। ५. साधारण या सामान्य नियम (अपवाद से भिन्न)। ६. एक वैदिक कर्म। ७. अंत। समाप्ति। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्सर्गतः					 : | क्रि० वि० [सं० उत्सर्ग+तस्] सामान्य रूप से। साधारणतः। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्सर्गी (र्गिन्)					 : | वि० [सं० उत्सर्ग+इनि] दूसरे के लिए उत्सर्ग या त्याग करनेवाला। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्सर्जन					 : | पुं० [सं० उद्√सृज्+ल्युट्-अन] [भू० कृ० उत्सर्जित, उत्सृष्ट] १. उत्सर्ग करने की क्रिया या भाव। त्याग। २. बलिदान। ३. दान। ४. किसी कर्मचारी के किसी पद या स्थान से हटने की क्रिया या भाव। (डिसचार्ज) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्सर्जित					 : | भू० कृ० [सं० उत्सृष्ट] १. त्यागा या छोड़ा हुआ। २. किसी के लिए दान के रूप में या त्यागपूर्वक छोड़ा हुआ। ३. [उद्√सृज्+णिच्+क्त] जिसे किसी पद या स्थान से हटाया गया हो। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्सर्प, उत्सर्पण					 : | पुं० [सं० उद्√सृप् (गति)+घञ्] [उद्√सृप्+ल्युट-अन] १. ऊपर की ओर चढ़ने, जाने या बढ़ने की क्रिया या भाव। २. उठना। ३. उल्लंघन करना। ४. फूलना। ५. फैलना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्सर्पिणी					 : | पुं० [सं० उद्√सृप्+णिनि-ङीष्] जैनों के अनुसार काल की वह गति जिसमें रूप, रस, गंध, स्पर्श की क्रमिक तथा निरंतर वृद्धि होती है। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्सर्पी (र्पिन्)					 : | वि० [सं० उद्√सृप्+णिनि] १. ऊपर की ओर जाने या बढ़ने वाला। २. बहुत अच्छा या बढ़िया। श्रेष्ठ। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्सव					 : | पुं० [सं० उद्√सु(गति)+अच्] १. ऐसा सामाजिक कार्यक्रम जिसमें लोग किसी विशिष्ट अवसर पर अथवा किसी विशिष्ट उद्देश्य से उत्साहपूर्वक आनन्द मनाते हैं। जैसे—वसंतोत्सव, विवाहोत्सव आदि। २. त्योहार। पर्व। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्सव-गीत					 : | पुं० [ष० त०] लोक गीतों के अंतर्गत ऐसे गीत जो पुत्र-जन्म, मुंडन, यज्ञोपवीत, विवाह आदि उत्सवों के समय गाये जाते हैं। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उत्साद					 : | पुं० [सं० उद्√सृद+घञ्] क्षय। विनाश। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उत्सादक					 : | वि० [सं० उद्√सृद्+णिच्+ण्वुल्-अक] [स्त्री० उत्सादिका] १. छोड़ने या त्यागनेवाला। २. नष्ट-भ्रष्ट करनेवाला। ३. विनाशक। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उत्सादन					 : | पुं० [सं० उद्√सृद्+णिच्-ल्युट्-अन] [भू० कृ० उत्सादित] १. छोड़ना। त्यागना। २. काट-छाँट या तोड़-फोडकर नष्ट करना। ३. अच्छी तरह खेत जोतना। ४. बाधक होना। बाधा डालना। ५. पहले की कोई आज्ञा या निश्चय रद करना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उत्सादित					 : | भू० कृ० [सं० उद्√सृद्+णिच्+क्त] १. जिसका उत्सादन किया गया हो या हुआ हो। २. (पद) जो तोड़ दिया गया हो। (एबालिश्ड) ३. (आज्ञा) जो रद कर दी गई हो। (सेट एसाइड) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उत्सार					 : | पुं० [सं० उद्√सृ (गति)+णिच्+अण्] दूर करना। हटाना। बाहर निकालना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उत्सारक					 : | वि० [सं० उद्√सृ+णिच्+ण्वुल्-अक] उत्सारण करने वाला। पुं० चौकीदार। पहरेदार। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उत्सारण					 : | पुं० [सं० उद्√सृ+णिच्+ल्युट-अन] [भू० कृ० उत्सारित] १. गति में लाना। चलाना। २. दूर करना। हटाना। ३. दर या भाव कम करना। ४. अतिथि या अभ्यागत का स्वागत करना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उत्साह					 : | पुं० [सं० उद्√सह् (सहन करना)+घञ्] मन की वह वृत्ति या स्थिति जिसके परिणाम स्वरूप मनुष्य प्रसन्न होकर और तत्परतापूर्वक कोई काम करने या कोई उद्देश्य सिद्ध करने लिए अग्रसर या प्रवृत्त होता है। साहित्य में इसे एक स्थायी भाव माना गया है। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उत्साहक					 : | वि० [सं० उद्√सह+ण्वुल्-अक] १. उत्साह देने या उत्साहित करनेवाला। २. अध्यवसायी और कर्मठ। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उत्साहन					 : | वि० [सं० उद्√सह्+णिच्+ल्युट-अन] १. किसी को उत्साह देना। उत्साहित करना। २. दृढ़ता-पूर्वक किया जानेवाला उद्यम। अध्यवसाय। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उत्साहना					 : | अ० [सं० उत्साह+ना (प्रत्यय)] उत्साह से भरना। उत्साहित होना। उदाहरण—बसत तहाँ प्रमुदित प्रसन्न उन्नति उत्सहि।-रत्ना। स० उत्साहित करना। उत्साह बढ़ाना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उत्साही (हिन्)					 : | वि० [सं० उत्साह+इनि] १. आनंद तथा तत्परतापूर्वक किसी काम में लगने वाला। २. जिसके मन में हर काम के लिए और हर समय उत्साह रहता हो। जैसे—उत्साही कार्यकर्त्ता। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उत्सुक					 : | वि० [सं० उद्√सु (गति)+क्विप्+कन्] [भाव० उत्सुकता औत्सुक्य] जिसके मन में कोई तीव्र या प्रबल अभिलाषा हो, जो किसी काम या बात के लिए कुछ अधीर सा हो। (ईगर) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उत्सुकता					 : | स्त्री० [सं० उत्सुक+तल्+टाप्] उत्सुक होने की अवस्था या भाव। मन की वह स्थिति जिसमें कुछ करने या पाने की अधीरता, पूर्ण प्रबल अभिलाषा होती है और विलंब सहना कठिन होता है। साहित्य में यह एक संचारी भाव माना जाता हैं। (ईगरनेस)। | 
			
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				| उत्सृष्ट					 : | भू० कृ० [सं० उद्√सृज् (छोड़ना)+क्त] १. जो उत्सर्ग के रूप में किया या लगाया गया हो। जिसका उत्सर्ग हुआ हो। २. छोड़ा या त्यागा हुआ। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उत्सृष्ट-वृत्ति					 : | पुं० [सं० तृ० त०] दूसरों के छोड़े या त्यागे हुए अन्न से जीविका निर्वाह करने की वृत्ति। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उत्सृष्टि					 : | स्त्री० [सं० उद्√सृज्+क्तिन्] १. उत्सर्ग। २. उत्सर्जन। | 
			
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				| उत्सेक					 : | पुं० [सं० उद्√सिच्(सींचना)+घञ्] [कर्त्ता० उत्सेकी] १. ऊपर की ओर उठना या बढ़ना। २. वृद्धि। ३. अभिमान। घमंड। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उत्सेचन					 : | पुं० [सं० उद्√सिच्+ल्युट-अन] [भू० कृ० उत्सिक्त] १. छिड़कने या सींचने की क्रिया या भाव। २. उफान। उबाल। | 
			
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				| उत्सेध					 : | पुं० [सं० उद्√सिध् (गति)+घञ्] १. ऊँचाई। २. बढ़ती। वृद्धि। ३. घनता या मोटाई। ४. शरीर का शोथ। सूजन। ५. देह। शरीर। ६. वध। हत्या। ७. आज-कल किसी वस्तु की कोई ऐसी आपेक्षिक ऊँचाई जो किसी विशिष्ट कोण, तल आदि के विचार से हो। (एलिवेशन) जैसे—(क) क्षैतिज कोण के विचार से तोप का उत्सेध। (ख) कुरसी या भू-तल के विचार से भवन का उत्सेध। | 
			
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				| उत्सेध-जीवी (बिन्)					 : | पुं० [सं० उत्सेध (वध)√जीव् (जीना)+णिनि] वह जो हत्या और लूट-पाट करके अपना निर्वाह करता हो। | 
			
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				| उत्स्य					 : | वि० [सं० उत्स+यत्] १. उत्स संबंधी। २. उत्स या सोते में होनेवाला या उससे निकला हुआ। | 
			
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				| उथपना					 : | स० [सं० उत्थापन] १. उठाना। २. उखाड़ना। अ० १. उठना। २. उखड़ना। | 
			
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				| उथरा					 : | वि० [भाव० उथराई]=उथला। | 
			
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				| उथलना					 : | अ० [सं० उत्-स्थल] १. अपने स्थान या स्थिति से इधर-उधर होना या हटना। २. डाँवाडोल होना। डगमगाना। स० किसी को स्थान या स्थिति विशेष से हटाकर अस्त-व्यस्त करना। | 
			
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				| उथल-पुथल					 : | स्त्री० [हिं० उथलना] ऐसी हलचल जो सब चीजों या बातों को उलट-पुलट कर अस्त-व्यस्त या तितर-बितर कर दे। वि० जिसमें बहुत बड़ा उलट-फेर हुआ हो। अस्त-व्यस्त किया हुआ। | 
			
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				| उथला					 : | वि० [सं० उत्+स्थल] [स्त्री० उथली] १. (पात्र) जिसकी गहराई कम हो। २. (जलाशय) जो कम गहरा हो। छिछला। ३. (स्थल) जिसकी ऊँचाई अधिक हो। कम ऊँचा। ४. (व्यक्ति) जिसके स्वभाव में गंभीरता न हो। ओछा। | 
			
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				| उथापना					 : | स० [सं० उत्थापन] १. ऊपर उठाना या खड़ा करना। २. उखाड़ना। ३. दे० ‘थापना’।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उद्					 : | उप० [सं०√उ(शब्द)+क्विप्+तुक्] एक संस्कृत उपसर्ग जो संधि के नियमों के अनुसार कुछ अवस्थाओं में उत् भी हो जाता है, और जो क्रियाओं विशेषणों तथा संज्ञाओं के आरंभ में लगकर उनमें ये आर्थी विशेषताएँ उत्पन्न करता है-१. उच्च या ऊँचा, जैसे—उत्कंठ, उद्ग्रीव। २. ऊपर की ओर जानेवाली क्रिया, जैसे—उत्क्षेपण, उत्सारण, उद्गमन। ३. अधिकता या प्रबलता, जैसे—उत्कर्ष, उत्साह, उद्वेग। ४. उत्तम या श्रेष्ठ, जैसे—उदार, उदभट। ५. अलग किया, छोड़ा या बाहर निकाला हुआ। जैसे—उत्सर्ग, उद्गार, उद्वासन। ६. मुक्त या रहित, जैसे—उद्दंड, उद्दाम। ७. प्रकट या प्रकाशित किया हुआ, जैसे—उत्क्रोश, उद्घोषणा, उद्योतन। ८. विशिष्ट रूप से दिखलाया, बतलाया या माना हुआ, जैसे—उद्दिष्ट, उद्देश्य। ९. लाँघना या लाँघकर पार करना, जैसे—उत्तीर्ण, उद्वेल। १. दुष्ट या बुरा, जैसे—उन्मार्ग आदि। कहीं-कहीं यह प्रसंग के अनुसार आश्चर्य, दुर्बलता, पार्थक्य लाभ विभाग समीप्य आदि का भी सूचक हो जाता है। विशेष—व्याकरण में, संधि के नियमों के अनुसार उत् या उद् का रूप प्रसंगतः उच् (जैसे—उच्चारण उच्छिन्न) उज् (जैसे—उज्जीवन,उज्ज्वल) उड्(जैसे—उड्डीन) या उन्(जैसे—उन्मुख,उन्मेष) भी हो जाता है। पुं० १. ब्रह्म। २. मोक्ष। ३. सूर्य। ४. जल। पानी। | 
			
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				| उदंगल					 : | वि० [सं० उद्दण्ड] [स्त्री० उदंगली] १. उद्दंड। उद्वत। २. प्रबल। प्रचंड।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उदंचन					 : | पुं० [सं० उद्√अञ्ज् (गति)+ल्युट-अन] [भू० कृ० उदंचित] १. ऊपर की ओर खींचने, फेकने, ले जाने आदि की क्रिया या भाव। २. कुएँ आदि से जल निकालना। ३. वह पात्र जिससे कुएँ में से जल निकाला जाता हो। जैसे—घड़ा, बाल्टी आदि। | 
			
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				| उदंड					 : | वि०=उद्दंड।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उदंत					 : | पुं० [सं० उद्-अंत] किसी अंत या सीमा तक पहुँचने की क्रिया या भाव। वि० [ब० स०] १. सीमा तक पहुँचनेवाला। २. योग्य। श्रेष्ठ। वि० [सं० अ-दंत] बिना दाँत का। जैसे—उद्दंत बछड़ा या बैल। | 
			
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				| उदंतक					 : | पुं० [सं० उदंत+कन्] वार्ता। वृत्तांत। | 
			
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				| उदंसना					 : | स० [सं० उत्सादन] उखाड़ना। उदाहरण—रत रति कंस उदंसि सिख किस खंचित नियकाल।—चंदवरदाई। अ० उखड़ना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उदउ					 : | पुं०=उदय।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उदक					 : | पुं० [सं०√उन्द् (भिगोना)+क्वुन्-अक] जल। पानी। | 
			
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				| उदक-क्रिया					 : | स्त्री० [सं० मध्य० स०] १. मृतक के उद्देश्य से दी जानेवाली तिलांजलि। २. पितरों का तर्पण। | 
			
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				| उदक-दाता (तृ)					 : | वि० [ष० त०] पितरों को जल देने या उनका तर्पण करनेवाला (अर्थात् उत्तराधिकारी)। | 
			
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				| उदक-दान					 : | पुं० [ष० त०] =तर्पण। | 
			
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				| उदकना					 : | अ० [सं० उद्ऊपर+कउदक] उछलना-कूदना(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उदक-परीक्षा					 : | पुं० [मध्य० स०] शपथ का एक प्राचीन प्रकार जिसमें शपथ करनेवाले को अपनी बात की सत्यता प्रमाणित करने के लिए जल में कुछ समय के लिए डुबकी लगानी पड़ती थी। | 
			
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				| उदक-प्रमेह					 : | पुं० [सं० मध्य० स०] प्रमेह (रोग) का एक भेद जिसमें बहतु अधिक पेशाब होता है और उस पेशाब के साथ कुछ वीर्य भी निकलता है। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उदक-मेह					 : | पुं०=उदकप्रमेह। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उदकहार					 : | पुं० [सं० उदक√हृ+अण्] वह जो दूसरों के लिए पानी भरने का काम करता हो। पनभरा। | 
			
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				| उदकांत					 : | पुं० [सं० उदक-अंत, ब० स०] जलाशय या नदी का किनारा। तट। | 
			
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				| उदकिल					 : | वि० [सं० उदक+इलच्] १. जल से युक्त। २. जल-संबंधी। जलीय। | 
			
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				| उदकोदर					 : | पुं० [सं० उदक-उदर, मध्य० स०] जलोद। (रोग)। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उदक्त					 : | वि० [सं०√अञ्ज् (गति)+क्त] १. ऊपर उठा या उठाया हुआ। २. उक्त। कथित। | 
			
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				| उदक्य					 : | वि० [सं० उदक+य] १. उदक या जल में होनेवाला। २. जल से युक्त। जलीय। ३. ऐसा अपवित्र या अशुद्ध जो जल से धोने पर पवित्र या शुद्ध हो सके। पुं० जल में होनेवाला अन्न। जैसे—धान। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उदगद्रि					 : | पुं० [सं० उदक (ञ्ज्-अयन, स० त०] उत्तर दिशा का पर्वत, अर्थात् हिमालय। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उदगयन					 : | अ० [सं० उदक् (ञ्ज्)-अयन, स० त०] दे० ‘उत्तरायण’। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उदगरना					 : | अ० [सं० उद्गागारण] १. उदगार के रूप में या उद्गार के फलस्वरूप बाहर निकालना। २. प्रकट होना। सामने आना। ३. उभड़ना या भड़काना। स० १. उदगार के रूप में बाहर निकालना। २. प्रकट करना। ३. उभाड़ना या भड़कना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उदगर्गल					 : | पुं० [सं० उद (ञ्ज्)क-अर्गल, ष० त०] ज्योतिष का वह अंग जिससे यह जाना जाता है कि अमुक स्थान में इतने हाथ पर जल है। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उदगार					 : | पुं०=उद्गार।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्गारना					 : | स० [सं० उद्गार] १. मुँह से बाहर निकालना। २. उगलना। उभाड़ना, भड़काना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उदगारी					 : | वि० [हिं० उद्गारना] १. उगलनेवाला। उगलना। निकालने या फेकनेवाला। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उदग्ग					 : | वि० उदग्र।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उदग्र					 : | वि० [सं० उद्-अग्र, ब० स०] १. जो सीधा ऊपर की ओर गया हो। ऊर्ध्व। (वर्टिकल) २. ऊँचा। उन्नत। ३. बढ़ा हुआ। ४. उभड़ा या उमड़ा हुआ। ५. उग्र। तेज। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उदग्र-शिर					 : | वि० [ब० स०] जिसका मस्तक ऊपर हो। उन्नत भालवाला। उदाहरण—वे डूब गये सब डूब गये दुर्दम, उदग्रशिर अद्रिशिखर।—पंत। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उदघटना					 : | अ० [सं० उदघट्टन-संचालन] १. प्रकट होना या बाहर निकलना। २. उदित होना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उदघाटन					 : | पुं०=उद्घाटन।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उदघाटना					 : | स० [सं० उद्घाटन] १. उद्घाटन करना। २. प्रकट या प्रत्यक्ष करना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उदजन					 : | पुं० [सं० उद्-जन] एक प्रकार का अदृश्य गंधहीन और वर्णहीन वाष्प जिसकी गणना तत्त्वों में होती है। (हाइड्रजोन) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उदथ					 : | पुं० [सं० उद्गीथ] सूर्य।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उदधि					 : | पुं० [सं० उदक√धा (धारण करना)+कि, उद आदेश] १. सागर। २. घड़ा। ३. बादल। मेघ। ४. रह्स्य संप्रदाय में, (क) अंतःकरण या हृदय और (ख) देह या शरीर। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उदधि-मेखला					 : | स्त्री० [ब० स०] समुद्र जिसकी मेखला है, अर्थात् पृथिवी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उदधि-वस्त्रा					 : | स्त्री० [ब० स०] पृथिवी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उदधि-सुत					 : | पुं० [ष० त०] वे सब जो समुद्र से उत्पन्न माने गये हैं। जैसे—अमृत, कमल, चंद्रमा शंख आदि। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उदधि-सुता					 : | स्त्री० [ष० त०] १. समुद्र की पुत्री, लक्ष्मी। २. सीपी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उदधीय					 : | वि० [सं० उदधि+छ-ईय] समुद्र संबंधी। समुद्र का। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उदन्य					 : | वि० [सं० उदक+य,उदन् आदेश] १. जल से युक्त। जलीय। प्यासा। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उदपान					 : | पुं० [सं० उदक√पा(पीना)+ल्युट-अन,उद आदेश] कमंडलु जिसमें साधु लोक पीने का जल रखते हैं। २. कुआँ। ३. कुएँ के पास का गड्डा। ४. वह स्थान जहाँ जल हो। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उदबर्त					 : | पुं०=उद्वर्तन।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उदबर्त					 : | वि० [हि० उद्वासन-स्थान से हटाना] १. जिसके रहने का स्थान नष्ट कर दिया गया हो। २. उजड़ा या उजाड़ा हुआ। ३. किसी एक स्थान पर टिक कर न रहनेवाला।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उदबासना					 : | स० [सं० उद्वासन] १. कहीं बसे हुए आदमी को उसकी जगह से भगा या हटा देना। उदाहरण—नंद के कुमार सुकुमार को बसाइ यामैं, ऊधौ अबाहाइ कै बिआस, उदबासैं हम।—रत्ना। २. नष्ट-भ्रष्ट करना। उजाड़ना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उदवेग					 : | पुं०=उद्वेग।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उदभट					 : | वि०=उद्भट।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उदभव					 : | पुं०=उद्भव।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उदभौत					 : | वि० अदभुत। उदाहरण—सूर परस्पर कह गोपिका यह उपजी उदभौति।—सूर। वि०=उदभूत।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उदभौति					 : | स्त्री०=उद्भूति।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उदमद					 : | वि० दे० ‘उन्मत्त’।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उदमदना					 : | अ० [सं० उद्+मद] उन्मत्त होना। अ० उन्मत्त होना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उदमाता					 : | वि० [सं० उन्मत्त] [स्त्री० उदमाती] मतवाला। मत्त। मस्त।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उदमाद					 : | पु०=उन्माद।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उदमादना					 : | वि० [सं० उन्मत्त] उन्मत्त करना। अ० उन्मत्त होना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उदमादी					 : | वि०=उन्मादी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उदमान					 : | वि०=उन्मत्त। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उदमानना					 : | अ० स० दे० ‘उदमादना’। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उदय					 : | पुं० [सं० उद्√इ(गति)+अच्] [वि० उदीयमान, भू० कृ० उदित] १. ऊपर की ओर उठने, उभरने या बढ़ने की क्रिया या भाव। २. ग्रह, नक्षत्रों आदि का क्षितिज से ऊपर उठकर आकाश में आना और दृष्य होना। ३. प्रकट या प्रत्यक्ष होना। सामने आना। ४. किसी नई शक्ति आदि का उद्भव होना या नई शक्ति से युक्त होकर प्रबल रूप में सामने आना। जैसे—चीन या भारत का उदय। ५. पद आदि में होनावाली उन्नति। समृद्धि। (राइज, उक्त सभी अर्थों में) ६. उत्पत्ति का स्थान। उद्गम। ७. आय। ८. लाभ। 9० ब्याज। १. ज्योति। ११. दे० ‘उदयाचल’। | 
			
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				| उदयगढ़					 : | पुं० [सं० उदय+हिं० गढ] उदयाचल। | 
			
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				| उदय-गिरि					 : | पुं० [ष० त०] उदयाचल (दे०)। | 
			
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				| उदयना					 : | अ० [हिं० उदय] उदय होना। उदाहरण—पाइ लगन बुद्ध केतु तौ उदयौ हूझे अस्त।—हरिशचन्द्र।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उदयसैल					 : | पुं०=उदयाचल।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उदयाचल					 : | पुं० [सं० उदय-अचल, ष० त०] पुराणानुसार पूर्व दिशा में स्थित एक कल्पित पर्वत जिसके पीछे से नित्य सूर्य का उदित होना या निकलना माना गया है। | 
			
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				| उदयातिथि					 : | स्त्री० [सं० उदय+अच्-टाप् उदया तिथि व्यस्त पद] वह तिथि जिसमें सूर्योदय हो। (ज्यो०)। | 
			
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				| उदयाद्रि					 : | पुं० [सं० उदय-अद्रि, ष० त०] =उदयाचल। | 
			
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				| उदयास्त					 : | पुं० [सं० उदय-अस्त, द्व० स०] १. उदय और अस्त। २. उत्थान और पतन। | 
			
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				| उदयी (यिन्)					 : | वि० [सं० उदय+इनि] १. जिसका उदय हो रहा हो। ऊपर की उठता या बढ़ता हुआ। २. उन्नतिशील। | 
			
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				| उदरंभर					 : | वि०=उदरंभरि।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उदरंभरि					 : | वि० [सं० उदय√भृ(भरण करना)+इन्, मुम] [भाव० उदरंभरी] १. जो केवल अपना पेट भरता हो। २. पेटू। ३. स्वार्थी। उदाहरण—केवल दुख देकर उदरंभरि जन जाते।—निराला। | 
			
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				| उदर					 : | पुं० [सं० उद√दृ (विदारण)+अच्] [वि० औदरिक] १. शरीर का वह भाग जो हृदय और पेडू के बीच में स्थित है तथा जिसमें खाई हुई वस्तुएँ पहुँचती है। पेट (एब्डाँमेन) २. भीतर का ऐसा भाग जिसमें कोई चीज रहती हो या रह सके। | 
			
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				| उदरक					 : | वि० [सं० उदय से] उदर-संबंधी। | 
			
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				| उदर-गुल्म					 : | पुं० [ष० त०] वायु के प्रकोप से पेट फूलने का एक रोग। | 
			
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				| उदर-ग्रंथि					 : | स्त्री० [ष० त०] तिल्ली या प्लीहा का एक रोग। | 
			
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				| उदर-ज्वाला					 : | स्त्री० [ष० त०] १. जठराग्नि। २. भूख। | 
			
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				| उदर-त्राण					 : | पुं० [ष० त०] वह कवच या त्राण जिसे सैनिक पेट के ऊपर बाँधते हैं। | 
			
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				| उदरथि					 : | पुं० [सं० उद√ऋ (गति)+अथिन्] १. सूर्य। २. समुद्र। | 
			
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				| उदर-दास					 : | पुं० [ष० त०] १. सेवक। २. पेटू। ३. स्वार्थी। | 
			
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				| उदरना					 : | अ० [हिं० उदारना०] १. फटना। २. छिन्न-भिन्न होना। अ०=उतरना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उदर-परायण					 : | वि० [स० त०] १. पेटू। २. सावर्थी। | 
			
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				| उदर-पिशाच					 : | वि० [च० त०] आवश्यकता से बहुत अधिक खानेवाला। | 
			
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				| उदर-रेख					 : | स्त्री०=उदर-रेखा।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उदर-रेखा					 : | स्त्री० [ष० त०] पेट पर पड़नेवाली रेखा। त्रिबली। | 
			
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				| उदर-वृद्धि					 : | स्त्री० [ष० त०] पेट का बढ़ या फूल जाना जो एक रोग माना जाता है। जलोदर। | 
			
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				| उदराग्नि					 : | स्त्री० [उदर-अग्नि, ष० त०] =जठराग्नि। | 
			
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				| उदरामय					 : | पुं० [उदर-आमय, ष० त०] पेट में होनेवाला कोई रोग। | 
			
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				| उदरावरण					 : | पुं० [उदर-आवरण, ष० त०] [वि० उदरावरणीय] वह झिल्ली जो उदर को चारों ओर से घेरे रहती है। (पेरिटोनियम) | 
			
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				| उदरावर्त					 : | पुं० [उदर-आवर्त, ष० त०] नाभि। | 
			
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				| उदरिक					 : | वि० [सं० उदर+ठन्-इक] १. जिसका पेट फूला या बढ़ा हो। २. मोटा। स्थूल-काय। | 
			
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				| उदरिणी					 : | स्त्री० [सं० उदर+इनि-ङीष्] गर्भवती स्त्री। | 
			
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				| उदरिल					 : | वि० [सं० उदर+इलच्] =उदरिक। | 
			
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				| उदरी (रिन्)					 : | वि० [सं० उदर+इनि] बड़ी तोंदवाला। | 
			
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				| उदर्क					 : | पुं० [सं० उद√ऋच् (स्तुति)+घञ्] १. अंत। समाप्ति। २. क्रिया आदि का परिमाण या फल। ३. भविष्यत् काल। ४. मीनार। ५. धतूरे का पेड़। | 
			
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				| उदर्द					 : | पुं० [सं० उद√अर्द (पीड़ा)+अच्] जुड़-पित्ती नामक रोग। | 
			
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				| उदर्य					 : | वि० [सं० उदर+यत्] उदर या पेट में होने अथवा उससे संबंध रखनेवाला। पुं० पेट के भीतरी अंग। | 
			
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				| उदवना					 : | अ, [सं० उदयन] १. उदित होना। २. उगना या निकलना। ३. प्रकट या प्रत्यक्ष होना। उदाहरण—दिन-दिन उदउ अनंद अब, सगुन सुमंगल देन।—तुलसी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उदवाह					 : | पुं०=उद्वाह।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उदवेग					 : | पुं०=उद्वेग।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उदसना					 : | अ० [सं० उदसन-नष्ट करना] १. उजड़ना। २. नष्ट-भ्रष्ट होना। ३. उदास होना। सं० १. उजाड़ना। २. नष्ट-भ्रष्ट करना। ३. उदास करना या बनाना। | 
			
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				| उदात्त					 : | वि० [सं० उद्-आ√दा (देना)+क्त] १. ऊँचा बना हुआ। २. ऊँचे स्वर में कहा हुआ। ३. उदार। दाता। ४. दयावान। ५. उत्तम। श्रेष्ठ। ६. साफ। स्पष्ट। ७. सशक्त। समर्थ। पुं० १. वैदिक स्वरों के उच्चारण का एक प्रकार भेद। २. संगीत में, बहुत ऊंचा स्वर। ३. साहित्य में, एक अलंकार जिसमें वैभव आदि का बहुत बढ़ा-चढ़ाकर वर्णन किया जाता है। ४. एक प्रकार का पुराना बाजा। | 
			
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				| उदान					 : | पुं० [सं० उद्-आ√अन् (जीना)+घञ्] १. ऊपर की ओर साँस खींचना। २. शरीर की पाँच प्राणभूत वायुओं में से एक वायु जिसका स्थान कंठ से भूमध्य तक माना जाता है। छींक-डकार आदि इसी से उद्भूत माने जाते हैं। | 
			
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				| उदाम					 : | वि०=उद्दाम।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उदायन					 : | पुं० उद्यान (बगीचा)। पुं० [?] किसी चीज का तल या सतह बराबर करना। (लेवलिंग)(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उदार					 : | वि० [सं० उद्+आ√रा (देना)+क] १. जो लोगों को हर चीज खुले दिल से और यथेष्ठ देता हो। दानी। २. जो स्वभाव से नम्र और सुशील हो और पक्षपात या संकीर्णता का विचार छोड़कर सबके साथ खुले दिल से आत्मीयता का व्यवहार करता हो। ३. (कार्य, क्षेत्र या विषय) जिसमें औरों के लिए भी अवकाश या गुंजाइश रहती हो या निकल सकती हो। (लिबरल) पुं० योग में अस्मिता, राग, द्वेष और अभिनिवेश इन चारों क्लेशों का एक भेद या अवस्था जिसमें कोई क्लेश अपने पूर्ण रूप में वर्त्तमान रहता हुआ अपने विषय का ग्रहण करता है। पुं० [देश०] गुलू नामक वृक्ष। (अवध)। | 
			
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				| उदार-चरित					 : | वि० [ब० स०] सबके साथ खुले हृदय से आत्मीयता और सज्जनता का व्यवहार करनेवाला। | 
			
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				| उदार-चेता (तस्)					 : | वि० [ब० स०] जिसके चित या विचारों में उदारता हो। | 
			
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				| उदारता					 : | स्त्री० [सं० उदार+तल्+टाप्] उदार होने की अवस्था, गुण या भाव। | 
			
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				| उदारता-वाद					 : | पुं० [ष० त०] [वि० उदारतावादी] आधुनिक आर्थिक तथा राजनीतिक क्षेत्रों में वह वाद या सिद्धांत जो यह मानता है कि सब लोगों को समान रूप से सुभीते और स्वतंत्र रहने के अधिकार मिलने चाहिए (लिबरलिज्म) | 
			
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				| उदारतावादी (दिन्)					 : | वि० [सं० उदारता√वद् (बोलना)+णिनि] उदारता-संबंधी। पुं० वह जो उदारता का अनुयायी और समर्थक हो। | 
			
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				| उदार-दर्शन					 : | वि० [ब० स०] देखने में भला और सुन्दर। | 
			
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				| उदारना					 : | स० [सं० उद्दारण] छिन्न-भिन्न करना या तोड़ना-फोड़ना। स० [सं० विदीरण] नोचना या फाड़ना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उदाराशय					 : | वि० [उदार-आशय, ब० स०] अच्छे और उदार विचारोंवाला। | 
			
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				| उदावत्सर					 : | पुं० [सं० उद्-आ-वत्सर, प्रा० स०] संवत्सर। | 
			
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				| उदावर्त					 : | पुं० [सं० उद्-आ√वृत (बरतना)+घञ्] एक रोग जिसमें मल-मूत्र आदि के रूप जाने के कारण काँच बाहर निकल आती है। गुद-ग्रह। | 
			
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				| उदावर्ता					 : | स्त्री० [सं० उदावर्त+टाप्] एक रोग जिसमें मासिक धर्म रुक जाने के कारण (स्त्रियों की) योनि में से फेनिल रुधिर निकलता है। | 
			
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				| उदास					 : | वि० [सं० उद्√आस् (बैठना)+अच्] १. जो किसी प्रकार की अपेक्षा या अभाव के कारण अथवा भावी अनिष्ट की आशंका से खिन्न और चिंतित हो और इसी लिए जिसका मन किसी काम या बात में न लगता हो। जैसे—नौकरी छूट जाने के कारण वह उदास रहता है। २. जिसका मन किसी काम, चीज या बात की ओर से हट गया हो। उदासीन। विरक्त। उदाहरण—तुम चाहहु पति सहज उदासा।—तुलसी। ३. जिसके मन में किसी बात के प्रति अनुराग या प्रवृत्ति न रह गई हो। तटस्थ। निरपेक्ष। उदाहरण—एक उदास भाय सुनि रहहीं।—तुलसी। ४. (पदार्थ या स्थान) जिसमें पहले का सा आकर्षण, प्रफुल्लता या रस न रह गया हो। जिसकी अच्छी बातें फीकी और हलकी पड़ गई हों। जैसे—(क) महीने-दो महीने में ही इस साड़ी का रंग उदास हो जायेगा। (ख) लड़कों के चले जाने से घर उदास हो गया। पुं० उदासी। उदाहरण—काहुहि सुख पै काहुहि उदास।—कबीर। पुं० [सं० उद्वासन] किसी को कही से हटाने या भगाने के लिए किया जानेवाला कार्य या प्रयोग। उदाहरण—सुरूप को देश उदास की कीलनि कीलित कै कि कुरूप नसायो।—केशव।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उदासना					 : | स० [सं० उद्वासन] १. तितर-बितर या नष्ट-भ्रष्ट करना। उजा़ड़ना। २. (बिस्तर) समेटना या बटोरना। अ० [हिं० उदास] उदास होना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उदासल					 : | वि०=उदास।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उदासिल					 : | वि०=उदास।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उदासी					 : | स्त्री० [हिं० उदास+ई प्रत्यय०] उदास होने की अवस्था या भाव० उदासपन। पुं० [सं० उदासिन्] १. सांसारिक बातों से उदासीन, त्यागी और विरक्त व्यक्ति। संन्यासी या साधु। २. गुरु नानक के पुत्र श्री चंद्र का चलाया हुआ एक साधु संप्रदाय। ३. उक्त संप्दाय का अनुयायी, विरक्त या साधु। | 
			
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				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उदासीन					 : | वि० [सं० उद्√आस्+शानच्] [भाव० उदासीनता] १. अलग या दूर बैठने या रहनेवाला। २. जिसके मन में किसी प्रकार की आसक्ति कामना आदि न हो। ३. जो सांसारिक मोह-माया आदि से निर्लिप्त या रहित हो। विरक्त। ४. जो परस्पर विरोधी पक्षों से किसी पक्ष का समर्थक या सहायक न हो। तटस्थ और निष्पक्ष। ५. जो किसी विषय (या व्यक्ति) की बातों में कुछ भी अनुरक्त न हो। विरक्त भाव से अलग रहनेवाला। (इन्डिफरेन्ट) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उदासीनता					 : | स्त्री० [सं० उदासीन+तल्-टाप्] १. उदासीन होने की अवस्था, गुण या भाव। २. मन की ऐसी वृत्ति जो किसी को किसी काम या बात में अनुरक्त नहीं होने देती और उससे अलग रखती है। (एपैथी)। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उदासी-बाजा					 : | पुं० [हिं० उदासी+फा०बाजा] एक प्रकार का भोंपा। (बाजा)। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उदाहट					 : | स्त्री० ऊदापन। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उदाहरण					 : | पुं० [सं० उद्-आ√हृ(हरण करना)+ल्युट्-अन] १. नियम, सिद्धांत आदि को अच्छी तरह बोधगम्य तथा स्पष्ट करने के लिए उपस्थित किए हुए तथ्य। ऐसी बात या तथ्य जिससे किसी कथन, सिद्धांत आदि की सत्यता प्रकट तथा सिद्ध होती हो। (एग्जाम्पुल) २. ऐसा आचरण, कृति या क्रिया जो दूसरों को अनुकरण करने के लिए प्रोत्साहित करे। ३. न्याय में, वाक्य के पाँच अवयवों में से एक जिसके द्वारा साध्य या वैधर्म्य सिद्ध होता है। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उदाहार					 : | पुं० [सं० उद्-आ√हृ+घञ्] =उदाहरण। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उदाहृत					 : | भू० कृ० [सं० उद्-आ√हृ+क्त] १. कहा या घोषित किया हुआ। २. उदाहरण के रूप में उपस्थित किया हुआ। | 
			
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				| उदाहृति					 : | स्त्री० [सं० उद्-आ√हृ+क्तिन्] १. उदाहरण। २. नाट्यशास्त्र में, किसी प्रकार का उत्कर्ष युक्त वचन, कहना जो गर्भसंधि के तेरह अंगों में से एक है। (नाट्यशास्त्र)। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उदिआन					 : | पुं०=उद्यान। (बगीचा)(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उदिक					 : | वि० [सं० उद से] १. जल-संबंधी। २. उस जल से संबंध रखनेवाला जो नल के द्वारा कहीं पहुँचता हो। (हाउड्रालिक) पुं० [सं० उदक] वीर्य। शुक्र। उदाहरण—उदिक राषंत ते पुरिषागता।—गोरखनाथ। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उदित					 : | भू० कृ० [सं० उद√इ(गति)+क्त] [स्त्री० उदिता] जिसका (या जो) उदय हुआ हो। | 
			
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				| उदित-यौवना					 : | स्त्री० [ब० स०] साहित्य में, ऐसी नवयुवती नायिका जिसमें अभी कुछ-कुछ लड़कपन भी बचा हो। (मुग्धा के सात भेदों में से एक)। | 
			
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				| उदिताचल					 : | पुं०=उदयाचल। | 
			
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				| उदिति					 : | स्त्री० [सं० उद्√इ+क्तिन्] १. उदय। भाषण। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उदियाना					 : | अ० [सं० उद्विग्न] उद्विग्न होना। स० उद्विग्न करना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उदीची					 : | स्त्री० [सं० उद√अञ्ज् (गति)+क्विप्-ङीष्] उत्तर दिशा। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उदीचीन					 : | वि० [सं० उदीची+ख-ईय] उत्तर दिशा का। उत्तरी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उदीच्य					 : | वि० [सं० उदीची+यत्] उत्तर दिशा का। उत्तरी। पुं० १. प्राचीन भारत में सरस्वती के उत्तर-पश्चिम गंधार और वाहलीक देशों का संयुक्त नाम। २. यज्ञ आदि कार्य के पीछे होनें वाले दानदक्षिणादि कृत्य। ३. वैताली छंद का एक भेद। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उदीप					 : | वि० [सं० उद-आप, ब० स० अच्, ईत्व] (प्रदेश) जो बाढ़ आदि के कारण जल से भर गया हो। पुं० नदी की बाढ़। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उदीपन					 : | पुं०=उद्दीपन।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उदीपित					 : | वि०=उद्दीप्त।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उदीयमान					 : | वि० [सं० उद्√इ+यक्+शानच्,मुक्] [स्त्री० उदीयमाना] १. जिसका उदय हो रहा हो। २. उठता या उभड़ता हुआ। ३. आरंभ में ही जिसमें होनेहार के लक्षण दृष्टिगोचर होतें है। होनहार। (प्रॉमिसिंग)। | 
			
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				| उदीरण					 : | पुं० [सं० उद√ईर्(गति, कंपन)+ल्युट्-अन] १. कथन। २. उच्चारण। ३. उद्दीपन। ४. उत्पत्ति। ५. जँभाई। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उदीरणा					 : | स्त्री० [सं० उद√ईर्+णिच्+युच्-अन-टाप्] प्रेरणा। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उदीर्ण					 : | वि० [सं० उद√ऋ(गति)+क्त] १. उदित। २. उत्पन्न। ३. प्रबल। ४. अभिमानी। पुं० विष्णु। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उदुंबर					 : | पुं० [सं० उडुम्बर, उकोद] [वि० औदुंबर] १. गूलर का वृक्ष और उसका फल। २. चौखट। ३. दहलीज। ४. नपुंसक। नामर्द। ५. एक प्रकार का कोढ़ (रोग) ६. ताँबा। ७. अस्सी रत्ती की एक पुरानी तौल। ८. एक प्राचीन जाति जो रावी और व्यास के बीच में त्रिगर्त के दक्षिण में राज्य करती थी। उदुंबर-पर्णी - स्त्री० [ब० स०ङीष्] दंती नामक वृक्ष। दाँती। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उदुआ					 : | पुं० [?] एक तरह का मोटा जड़हन धान।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उदूल					 : | पुं० [अ०] आज्ञा का उल्लंघन या अवज्ञा। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उदेग					 : | पुं०=उद्वेग।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उदेल					 : | पुं० [अ० ऊद] लोहबान।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उदेश					 : | पुं० [सं० उद्देश्य] खोज। तलाश। (मैथिली) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उदेसः					 : | पुं० [सं० उद्देश्य] १. चिन्ह। पता। उदाहरण—सैयाँ के उदेसवा बता दे बटोही केने जाऊँ।—लोक गीत। २. दे० उद्देश्य। पुं० [सं० उत्+देश] परदेस। विदेश। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उदै					 : | पुं०=उदय।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उदो					 : | पुं०=उदय।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उदोत					 : | पुं० उद्योत। वि० १. शुभ्र। २. प्रकाशित। ३. उज्ज्वल। प्रकाशमान। वि० [सं० उदभूत] उत्पन्न।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उदोतकर					 : | वि० [सं० उद्योतकर] १. प्रकाशक। २. चमकानेवाला।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उदोती					 : | वि० [सं० उद्योत] १. प्रकाश से युक्त। चमकीला। २. प्रकाश या प्रकाशित करनेवाला।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उदौ					 : | पुं०=उदय।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उद्गंधि					 : | वि० [सं० ब० स०, इत्व] तीव्र या तीक्ष्ण गंधवाला। | 
			
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				| उद्गत					 : | वि० [सं० उद्√गम्(जाना)+क्त] १. निकला हुआ। उत्पन्न। २. प्रकट। ३. फैला हुआ। ४. वमन किया हुआ। ५. प्राप्त। लब्ध। | 
			
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				| उद्गतार्थ					 : | पुं० [सं० उदगत-अर्थ, कर्म० स०] ऐसी चीज जिसका दाम कुछ समय तक पड़े रहने से ही बढ़ गया हो। (अर्थशास्त्र) | 
			
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				| उद्गम					 : | पुं० [सं० उद्√गम्+अप्] १. आर्विभाव होना। २. आर्विभाव या उत्पत्ति का स्थान। ३. नदी के निकलने का स्थान। | 
			
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				| उद्गमन					 : | पुं० [सं० उद्√गम्+ल्युट-अन] आर्विभाव का उदभव। | 
			
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				| उद्गाढ़					 : | वि० [सं० उद्√गाह(मथना)+क्त]१. गहरा। २. तीव्र। प्रचंड। ३. बहुत अधिक। पुं० आतिशय्य। | 
			
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				| उद्गाता					 : | पुं० [सं० उद्√गै (शब्द)+तृच्] यज्ञ में सामवेदीय कृत्य करनेवाला ऋत्विज्। | 
			
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				| उद्गाथा					 : | स्त्री० [सं० उद्-गाथा, प्रा० स०] आर्या छंद का एक भेद। उग्गाहा। गीत, जिसके विषम पादों में १२ और सम पादों में १8 मात्राएँ होती है। | 
			
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				| उद्गार					 : | पुं० [सं० उद्√गृ (लीलना, शब्द)+घञ्] [वि० उद्गारी, भू० कृ० उद्गारित] तरल पदार्थ का वेगपूर्वक ऊपर उठकर बाहर निकलना। उफान। २. इस प्रकार वेग से बाहर निकला हुआ तरल पदार्थ। ३. वमन किया हुआ पदार्थ। ४. मुँह से निकला हुआ कफ। थूक। ५. खट्टा। डकार। ६. आधिक्य। बाढ़। उदाहरण—जब जब जो उद्गार होइ अति प्रेम विध्वंसक।—नंददास। ७. अधीरता आवेश आदि की अवस्था में मुँह से निकली हुई ऐसी बातें जो कुछ समय से मन में दबी रही हों। | 
			
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				| उद्गारी (रिन्)					 : | वि० [सं० उद्√गृ (निगलना)+णिनि] १. उद्गार की क्रिया करने वाला। २. ऊपर की ओर या बाहर निकलने या निकालनेवाला। ३. डकार लेनेवाला। ४. कै या वमन करनेवाला। पुं० ज्योतिष में, बृहस्पति के बारहवें युग का दूसरा वर्ष। कहते हैं कि इसमें राज क्षय, उत्पात आदि होते हैं। | 
			
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				| उद्गिरण					 : | पुं० [सं० उद्√गृ+ल्युट-अन] १. उगलने थूकने या बाहर फेकने की क्रिया या भाव। २. वमन। कै। ३. लार। ४. डकार। | 
			
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				| उद्गीति					 : | स्त्री० [सं० उद्√गै (गाना)+क्तिन्] १. आर्या छंद का भेद जिसके पहले और तीसरे चरण में बारह-बारह, दूसरे में पंद्रह और चौथे में अट्टारह मात्राएँ होती है। | 
			
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				| उद्गीथ					 : | पुं० [सं० उद्√गै+थक्] १. एक प्रकार का सामगान। २. सामवेद। ३. ओंकार। | 
			
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				| उद्गीर्ण					 : | भू० कृ० [सं० उद्√गृ+क्त] १. उगला, थूकने या मुँह से बाहर निकाला हुआ। २. बाहर निकाला या फेंका हुआ। ३. गिरा या टपका हुआ। ४. उद्गार के रूप में कहा हुआ। ५. प्रतिबिंबित। | 
			
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				| उद्गेय					 : | वि० [सं० उद्√गै+यत्] १. जो गाये जाने को हो। २. जो गाये जाने के योग्य हो। | 
			
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				| उद्ग्रंथ					 : | वि० [सं० ब० स०] जिसका गाँठ या बंधन खोल दिया गया हो। २. खुला हुआ। मुक्त। पुं० १. अध्याय। २. धारा। | 
			
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				| उदग्रहण					 : | पुं० [सं० उद्√ग्रह(लेना)+ल्युट-अन] [वि० उद्ग्रहणीय, भू० कृ० उद्गृहीत] ऋण, कर आदि वसूल करने की क्रिया या भाव। | 
			
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				| उद्ग्रहणीय					 : | वि० [सं० उद्√ग्रह+अनीयर] जिसका उद्ग्रहण होने को हो या किया जाने को हो। | 
			
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				| उदग्राह					 : | पुं,० [सं० उद्√ग्रह+घञ्] [भू० कृ० उदग्राहित] १. ऊपर उठाना या लाना। २. उत्तर आदि के संबंध में की जानेवाली आपत्ति या तर्क। ३. डकार। ४. दे० ‘उगाही’। | 
			
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				| उदग्रीव, उदग्रीवी (विन्)					 : | वि० [सं० ब० स०] [उदग्रीवा, प्रा० स०+इनि] जिसकी गर्दन ऊपर उठी हो। जो गला ऊपर उठाये या किये हो। क्रि० वि० [सं० ] गर्दन उपर उठाये हुए। | 
			
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				| उदघट्टक					 : | पुं० [सं० उद्√घट्ट (चलाना)+घञ्+कन्] संगीत में ताल के साठ मुख्य भेदों में से एक। | 
			
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				| उद्घट्टन					 : | पुं० [सं० उद्√घट्ट+ल्युट-अन] [भू० कृ० उगघट्टित] १. उन्मोचन। खोलना। २. रगड़। ३. खंड। टुकड़ा। | 
			
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				| उद्घाटक					 : | वि० [सं० उद्√घट्+णिच्+ण्वुल्-अक] उद्घाटन करनेवाला। पुं० [सं० ] १. कुंजी। चाबी। २. कुएँ से पानी खींचने की चरखी। | 
			
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				| उद्घाटन					 : | पुं० [सं० उद्√घट्+णिच्+ल्युट-अन] १. आवरण या परदा हटाना। खोलना। २. एक आधुनिक परपाटी या रस्म जो कोई नया कार्य आरंभ करने के समय औपचारिक उत्सव या कृत्य के रूप में होती है। जैसे—(क) नहर या बाँध का उद्घाटन। (ख) सभा सम्मेलन आदि का उद्घाटन। | 
			
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				| उद्घाटित					 : | वि० [सं० उद्√हन्+णिच्+क्त] १. जिस पर से आवरण हटाया गया हो। अनावृत। २. जिसका उद्घाटन हुआ हो। | 
			
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				| उद्घातक					 : | वि० [सं० उद्√हन्+णिच्+ण्वुल्-अक] धक्का मारनेवाला। पुं० नाटक में, प्रस्तावना का वह प्रकार जिसमें सूत्रधार और नटी की कोई बात, सुनकर कोई पात्र उसका कुछ दूसरा ही अर्थ समझकर नेपथ्य से उसका उत्तर देता अथवा रंगमंच पर आकर अभिनय आरंभ करता है। | 
			
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				| उद्घाती (तिन्)					 : | वि० [सं० उद्√हन्+णिच्+णिनि] १. उद्घात करने वाला। २. ठोकर मारने या लगानेवाला। ३. आरंभ करनेवाला। | 
			
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				| उद्घोष					 : | पुं० [सं० उद्√घुष् (शब्द करना)+घञ्] १. चिल्लाकर या जोर से कुछ कहना। गर्जना। २. चिल्लाने या जोर से बोलने से होनेवाला शब्द। ३. घोषणा। मुनादी। | 
			
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				| उद्घोषणा					 : | स्त्री० [उद्√घुष्+णिच्+युच्-अन-टाप्] [भू० कृ० उद्घोषित] १. जोर से चिल्लाते हुए तथा सबको सुनाते हुए कोई बात कहना। २. राज्य या शासन की ओर से उसके सर्वप्रधान अधिकारी द्वारा हुई कोई मुख्यतः ऐसी घोषणा जो किसी देश या प्रदेश को अपने राज्य के मिलाने के संबंध में हो। (प्रोक्लेमेशन) | 
			
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				| उद्घोषित					 : | भू० कृ० [सं० उद्√घुष्+णिच्+क्त] १. जो उद्घोषणा के रूप में हुआ हो। २. जिसके संबंध में कोई उद्घोषणा हुई हो। | 
			
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				| उद्दंड					 : | वि० [सं० उद्-दंड, अत्या० स०] [भाव० उद्डंता] १. जो किसी को मारने के लिए डंडा ऊपर उठाये हुए हो। २. जो किसी से डरता न हो और अनुचित तथा मनमाना आचरण करता हो। ३. जिसे कोई दंड न दे सकता हो। पुं० दंडधर। द्वारपाल। | 
			
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				| उद्दंश					 : | पुं० [सं० उद्√वंश् (डसना)+अच्] १. खटमल। २. जूँ। ३. मच्छर। | 
			
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				| उद्दत					 : | वि०=उद्यत। | 
			
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				| उद्दम					 : | पुं० [सं० उद्√दम् (दमन करना)+अप्] किसी को दबाना या वश में करना। पुं०=उद्यम। | 
			
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				| उद्दर्शन					 : | पुं० [सं० उद्√दृश् (देखना)+णिच्+ल्युट-अन] [भू० कृ० उद्दर्शित] १. दर्शन कराना। २. स्पष्ट या व्यक्त करना। | 
			
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				| उद्दांत					 : | वि० [सं० उद्√दम् (दमन करना)+क्त] १. जो बहुत दबा हो। अतिदमित। २. उत्साही। ३. विनम्र। | 
			
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				| उद्दान					 : | पुं० [सं० उद्√दा(देना) या√दो (खंडन करना)+ल्युट-अन] १. जकड़ने या बाँधने की क्रिया या भाव। २. उद्यम। ३. बड़वानल। ४. चूल्हा। ५. लग्न। ६. उद्यम। प्रयत्न। ७. कटि। कमर। ८. बीच का भाग। मध्य। | 
			
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				| उद्दाम					 : | वि० [सं० उद्-दामन्, निरा० स०] [भाव० उद्दामता] १. जो किसी प्रकार के बंधन में न हो। २. स्वतंत्र। स्वच्छंद। ३. उद्दंड या निरंकुश। ४. गंभीर। ५. विस्तृत। पुं० १. वरुण। २. दंडक वृत्त का एक भेद जिसके प्रत्येक चरण में १ नगण और १३ रगण होते हैं। | 
			
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				| उद्दार					 : | वि०=उदार। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उद्दारय					 : | वि०=उदार। | 
			
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				| उद्दालक					 : | पुं० [सं० उद्√दल्(विदार्ण करना)+णिच्+अच,उद्दाल+कन्] १,०एक प्राचीन ऋषि। २. एक प्रकार का व्रत जो ऐसे व्यक्ति को करना पड़ता है जिसे १6 वर्ष की अवस्था हो जाने पर भी गायत्री की दीक्षा न मिली हो। ३. बनकोदव नाम का कदन्न। | 
			
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				| उद्दति					 : | वि० १. =उदित। २. =उद्यत। ३. =उद्धत। ४. =उद्दीप्त। | 
			
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				| उद्दमि					 : | पुं०=उद्यम। | 
			
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				| उद्दिष्ट					 : | वि० [सं० उद्√दिश् (बताना)+क्त] १. जिसकी ओर निर्देश या संकेत किया गया हो। कहा या बतालाया हुआ। २. जिसे उद्देश्य बना या मानकर कोई काम किया जाए। उद्देश्य के रूप में स्थिर किया हुआ। पुं० १. छंदशास्त्र में, प्रत्यय के अंतर्गत वह प्रक्रिया जिससे यह जाना जाता है कि मात्रा प्रस्तार के विचार से कोई पद्य किस छंद का कौन-सा प्रकार या भेद है। २. स्वामी की आज्ञा के बिना किसी वस्तु का किया जानेवाला भोग। (पराशर) | 
			
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				| उद्दीप					 : | पुं० [सं० उद्√दीप् (प्रकाश)+घञ्] उद्दीपन। वि०=उद्दीपक। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्दीपक					 : | वि० [सं० उद्√दीप्(जलाना)+णिच्+ण्वुल्-अक] १. जलाने या प्रज्वलित करने वाला। २. उभाडने या भड़कानेवाला, विशेषतः मनोभावों को जाग्रत तथा उत्तेजित करनेवाला। ३. जठराग्नि को तीव्र या दीप्त करनेवाला। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्दीपन					 : | पुं० [सं० उद्√दीप्+णिच्+ल्युट-अन] [भू० कृ० उद्दीप्त, वि,० उद्दीप्य] १. जलाने या प्रज्वलित करने की क्रिया या भाव। २. उत्तेजित करने या उभाड़ने, विशेषतः मनोभावों को जाग्रत तथा उत्तेजित करने की क्रिया या भाव। ३. उत्तेजित या दीप्त करनेवाली वस्तु। ४. साहित्य में वह वस्तु, व्यक्ति या परिस्थिति जो मन में प्रस्तुत किसी रस या स्थायी भाव को उद्दीप्त तथा उत्तेजित करे। जैसे— श्रृंगार रस में सुंदर ऋतु, चाँदनी रात आदि उद्दीप्त हैं। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्दीपित					 : | भू० कृ० [सं० उद्√दीप्+णिच्+क्त]=उद्दीप्त। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्दीप्त					 : | भू० कृ० [सं० उद्√दीप्+क्त] १. प्रज्वलित किया हुआ। २. चमकता हुआ। ३० उभाड़ा या उत्तेजित किया हुआ। ४. (भाव या रस) जिसका उद्दीपन हुआ हो। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्दीप्ति					 : | स्त्री० [सं० उद्√दीप्+क्तिन्] उद्दीप्त होने की अवस्था या भाव। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्वेग					 : | पुं०=उद्वेग।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्देश					 : | पुं० [सं० उद्√दिश्+घञ्] १. किसी चीज की ओर निर्देश या संकेत करना। २. कोई काम करते समय किसी चीज या बात का ध्यान रखना। ३. कारण। ४. न्याय में, प्रतिज्ञा नामक तत्त्व। ५. कारण। हेतु। ६. दे० ‘उद्देश्य’। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उद्देशक					 : | वि० [सं० उद्√दिश्+ण्वुल-अक] किसी की ओर उद्देश (निर्देश या संकेत) करनेवाला। पुं० गणित में, प्रश्न। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उद्देशन					 : | पुं० [सं० उद्√दिश्+ल्युट-अन] किसी की ओर निर्देश या संकेत करने की क्रिया या भाव। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उद्देश्य					 : | पुं० [सं० उद्√दिश्+ण्यत्] १. वह मानसिक तत्त्व (भाव या विचार) जिसका ध्यान रखते हुए या जिससे प्रेरित होकर कुछ कहा या किया जाए। किसी काम में प्रवृत्त करनेवाला मनोभाव। (मोटिव) जैसे—देखना यह चाहिए वह जाने (या अमुक अपराध करने) में आपका मुख्य उद्देश्य क्या था। २. वह बात, वस्तु या विषय जिसका ध्यान रखकर कुछ कहा या किया जाए। अभिप्रेत कार्य, पदार्थ या विषय। इष्ट। ध्येय। (आब्जेक्ट) ३. व्याकरण में, वह जिसके विचार से या जिसे ध्यान में रखकर कुछ कहा या विधान किया जाए। किसी वाक्य का कर्त्तृ पद जो उसके विधेय से भिन्न होता है। (आब्जेक्ट) जैसे—वह बहुत साहसी है। में वह उद्देश्य है, क्योंकि वाक्य में उसी के साहसी होने की चर्चा या विधान है। ४. दे० ‘प्रयोजन’। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्देष्टा (ष्ट्र)					 : | वि० [सं० उद्√दिश्+तृच्] किसी वस्तु को ध्यान में रखकर काम करनेवाला। किसी उद्देश्य की सिद्धि के लिए प्रयत्नशील। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्दोत					 : | पुं०=उद्योत। वि० १. =उद्दीप्त। २. =उदित। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्दोतिताई					 : | -स्त्री० उद्दीप्ति। उदाहरण—तड़ित घन नील उद्दोतिताई।—अलबेली अलि। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्ध					 : | अव्य० [सं० ऊर्द्घ, पा० उद्ध] ऊपर। वि०=ऊर्द्ध्व। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उद्धत					 : | वि० [सं० उद्√हन्+क्त] [भाव० उद्धतता] जो अपने उग्र क्रोधी या रूखे स्वभाव के कारण हेय आचरण या व्यवहार करता हो। अक्खड़। पुं० साहित्य में 40 मात्राओं का एक छंद। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उद्धतता					 : | स्त्री० [सं० उद्धत+तल्-टाप्] उद्धत होने की अवस्था या भाव। उद्धतपन। औद्धत्य। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उद्धत-दंडक					 : | पुं० [सं० ] विजया नामक मात्रिक छंद का वह प्रकार या भेद जिसके प्रत्येक चरण का अंत एक गुरु और एक लघु से होता है। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उद्धतपन					 : | पुं० [सं० उद्धत+हिं० पन (प्रत्य)] उद्धत होने की अवस्था या भाव। उद्धतता। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्धति					 : | स्त्री० [सं० उद्√हन्+क्तिन्] =उद्धतता। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्धना					 : | अ० [सं० उद्धरण] १. उद्धार होना। २. ऊपर उठना या उड़ना। स० १. उद्धार करना। २. ऊपर उठना या उड़ना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उद्धरण					 : | पुं० [सं० उद्√हृ (हरण करना)+ल्युट-अन] [वि० उद्धरणीय, उदधृत] १. ऊपर उठाना। उद्धार करना। २. कष्ट,झंझट,संकट आदि से किसीको निकालना या मुक्ति दिलाना। छुटकारा। ३. किसी ग्रंथ लेख आदि से उदाहरण, प्रमाण, साक्षी आदि के रूप में लिया हुआ अंश। (कोटेशन) ४. अभ्यास के लिए पढ़े हुए पाठ को बार-बार दोहराना। उद्धरणी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उद्धरणी					 : | स्त्री० [सं० उद्धरण+हिं० ई (प्रत्यय)] १. पढ़ा हुआ पाठ अच्छी तरह याद करने के लिए फिर-फिर दोहराना या पढ़ना। २. कही आई या लिखी हुई कोई बात, घटना का विवरण आदि फिर से कह सुनाना। (रिसाइटल) ३. दे० ‘उद्धरण’। | 
			
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				| उद्धरना					 : | स० [सं० उद्धरण] उद्धार करना। उबारना। अ० उद्धार होना। उबरना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उद्धर्ता (र्तृ)					 : | वि० [सं० उद्√हृ+तृच्] १. उद्धरणी करनेवाला। २. उद्धार करनेवाला। ३. उदाहरण, साक्षी आदि के रूप में कही से कोई उद्धरण लेनेवाला। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उद्धर्ष					 : | पुं० [सं० उद्√हष् (आनंदित होना)+घञ्] १. आनंद। प्रसन्नता। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उद्धर्षण					 : | पुं० [सं० उद्√हष्+ल्युट-अन] १. आनंदित या प्रसन्न करने की क्रिया या भाव। २. रोमांच। ३. उत्तेजना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उद्धव					 : | पुं० [सं० उद्√धू (कंपन)+अप्] १. उत्सव। २. यज्ञ की अग्नि। ३. कृष्ण के एक सखा और रिश्ते में मामा, जिन्हें उन्होंने द्वारका से व्रज की गोपियों को सांत्वना देने के लिए भेजा था। इनका दूसरा नाम देवश्रवा भी था। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उद्धव्य					 : | पुं० [सं० उद्√हु (दान, आदान)+यत्] बौद्ध शास्त्रानुसार दस क्लेशों में से एक। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उद्धस्त					 : | पुं० [सं० उद्-हस्त, प्रा० ब०] जो ऊपर की ओर हाथ उठाये या फैलायें हुए हो। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्धार					 : | पुं० [सं० उद्√धृ (धारण)+घञ्] १. नीचे से उठाकर ऊपर ले जाना। २. निम्न या हीन स्थिति से उठाकर उच्च या उन्नत स्थिति में ले जाना। ३. किसी को कष्ट, विपत्ति, संकट आदि से उबारना या निकालना। मुक्त करना। ४. ऋण देन आदि से मिलनेवाला छुटकारा। ५. संपत्ति का वह भाग जो बँटवारे से पहले किसी विशेष रीति से बाँटने के लिए अलग कर दिया जाए। ६. लड़ाई में लूट का छठा भाग जो राजा का अंश माना जाता था। ७. दे० ‘उधार’। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उद्धारक					 : | वि० [सं० उद्√धृ+ण्वुल्-अक] १. किसी का उद्धार करनेवाला। २. उधार लेनेवाला। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्धारण					 : | पुं० [सं० उद्√धृ+णिच्+ल्युट-अन] १. ऊपर उठाना। उत्थापन। २. उबारना। बचाना। ३. बँटवारा। ४. कोई पद, वाक्य या शब्द कहीं से जान-बूझकर या किसी उद्देश्य से निकाल या अलग कर देना। (डिलीशन) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उद्धारणिक					 : | पुं० [सं० उद्धारण+ठक्-इक] वह व्यक्ति जिसने किसी से रूपया उधार लिया हो। ऋण या कर्ज लेनेवाला। (बॉरोवर) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उद्धारना					 : | स० [सं० उद्धार] विपत्ति या संकट से अथवा निम्न या हीन स्थिति से निकालकर अच्छी स्थिति में लाना। | 
			
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				| उद्धार-विक्रय					 : | पुं० [सं० तृ० त०] उधार बेचना। (क्रेडिट सेल) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उद्धित					 : | भू० कृ० [सं० उद्√धा (धारण करना)+क्त] १. ऊपर उठाया हुआ। २. अच्छी तरह बैठाया या रखा हुआ। स्थापित। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उद्धृत					 : | भू० कृ० [सं० उद्√धृ (धारण)+क्त] १. ऊपर उठाया हुआ। २. (किसी का कथन लेख आदि) जो कही से लाकर उदाहरण, प्रमाण या साक्षी के रूप में प्रस्तुत किया गया हो। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उद्धृति					 : | स्त्री० [सं० उद्√धृ+क्तिन्] १. उद्धृत करने या होने की अवस्था, क्रिया या भाव। २. उद्धरण। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उद्ध्वंस					 : | पुं० [सं० उद्√ध्वंस (नाश)+घञ्] १. ध्वसं। नाश। २. महामारी। मरी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उद्ध्वस्त					 : | भू० कृ० [सं० उद्√ध्वंस+क्त] गिरा-पड़ा। तोड़-फोड़कर नष्ट किया हुआ। ध्वस्त। | 
			
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				| उद्बल					 : | वि० [सं० उद्-बल, ब० स०] बलवान्। सशक्त। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उद्बाध्य					 : | वि० [सं० उद्-बाध्य, ब० स०] १. बाष्प से भरा हुआ या युक्त। २. (आँखें) जिनमें आँसू भरे हों। अश्रुपूर्ण। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उद्बाहु					 : | वि० [सं० उद्-बाहु, ब० स०] जो बाहु या बाँहें ऊपर उठाये हुए हो। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उद्बुद्ध					 : | वि० [सं० उद्√बुध्(जनाना)+क्त] १. जिसकी बुद्धि जाग्रत हुई हो। ज्ञानी। प्रबुद्ध। २. खिला या फूला हुआ। प्रफुल्लित। विकसित। ३. जो अपने आपको अच्छी तरह दृश्य या प्रत्यक्ष कर रहा हो। उदाहरण—उद्बुद्ध क्षितिज की श्याम घटा।—प्रसाद। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उद्बुद्धा					 : | स्त्री० [सं० उदबुद्ध+टाप्] उद्बोधिता। (नायिका) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उद्बोध					 : | पुं० [सं० उद्√बुध्+घञ्] १. जागना। जागरण। २. बोध होना। ज्ञान प्राप्त होना। ३. फिर से याद आना। अनुस्मरण। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उद्बोधक					 : | वि० [सं० उद्√बुध्+णिच्+ण्वुल्-अक] १. ज्ञान या बोध करानेवाला। २. जगानेवाला। ३. उद्दीप्त या उत्तेजित करनेवाला। पुं० सूर्य। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उद्बोधन					 : | पुं० [सं० उद्√बुध्+णिच्+ल्युट-अन] [वि० उद्बोधक, उदबोधनीय० उदबोधित] १. जागने या जगाने की क्रिया या भाव। २. ज्ञान या बोध कराने या होने की क्रिया या भाव। ३. उत्तेजित करना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उद्बोधिता					 : | स्त्री० [सं० उद्√बुध्+णिच्+क्त-टाप्] साहित्य में, वह नायिका जो अपने उपपति के प्रेम से प्रभावित होकर उससे प्रेम करती हो। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्भट					 : | वि० [सं० उद्√भट्(पोषण)+अप्] [भाव० उद्भटता] १. बहुत बड़ा। श्रेष्ठ। २. प्रचंड। प्रबल। पुं० १. सूप। २. कछुआ। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उद्भव					 : | पुं० [सं० उद्√भू(होना)+अप्] [वि० उद्भूत] १. किसी प्रकार उत्पन्न होकर अस्तित्व में आना। नये सिरे से उठकर प्रत्यक्ष होना या सामने आना। २. किसी पूर्वज के वंश में उत्पन्न होने अथवा किसी मूल से निकलने का तथ्य या भाव। (डिसेन्ट) ३. उत्पत्ति स्थान। ४. विष्णु। वि० [स्त्री० उद्भवा] जो किसी से उत्पन्न हुआ हो। (यौ० के अंत में) जैसे—प्रेमोदभव-प्रेम से उत्पन्न। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उद्भार					 : | पुं० [सं० उदक्√भू (धारण करना)+अण्, उद् आदेश] बादल। मेघ। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्भाव					 : | पुं० [सं० उद्√भू+घञ्] १. =उद्भव। २. =उद्भावना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्भावक					 : | वि० [सं० उद्√भू+णिच्+ण्वुल्-अक] १. उद्भव या उत्पत्ति करनेवाला। २. मन से कोई बात या विचार निकालनेवाला। उद्भावना करनेवाला। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्भावन					 : | पुं० [सं० उद्√भू+णिच्+ल्युट-अन] =उदभावना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्भावना					 : | स्त्री० [सं० उद्√भू+णिच्+युच्-अन-टाप्] १. उत्पन्न होना या अस्तित्व में आना। २. मन में उत्पन्न होनेवाली कोई अद्भुत या अनोखी और नई बात या सूझ। ३. कल्पना से निकली हुई कोई नई बात या विचार। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्भावयिता (तृ)					 : | वि० [सं० उद्√भू+णिच्-तृच्] =उद्भावक। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्भास					 : | पुं० [सं० उद्√भास् (दीप्ति)+घञ्] १. बहुत ही आकर्षक तथा चमकते हुए रूप में प्रकट होना या सामने आना। २. आभा। प्रकाश। ३. उद्भावना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्भासन					 : | पुं० [सं० उद्√भास्+ल्युट-अन] [भू० कृ० उद्भासित] प्रकाशित होना। चमकना। २. आभा या प्रकाश से युक्त करना। चमकाना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्भासित					 : | भू० कृ० [सं० उद्√भास्+क्त] १. जो सुंदर रूप में प्रकट हुआ हो। सुशोभित। २. चमकता हुआ। प्रकाशित। ३. उत्तेजित। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्भिज					 : | पुं०=उद्भिज्य। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्भिज्ज					 : | वि० [सं० उद्√भिद् (विदारण)+क्विप्√जन् (उत्पन्न होना)+ड] (पेड़, पौधे लताएँ आदि) जो जमीन फोड़कर उगती या निकलती हों। पुं० जमीन में उगनेवाले पेड़, पौधे, लताएँ आदि। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्भिज्ज-शास्त्र					 : | पुं० [ष० त०] वनस्पति-शास्त्र। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्भिद					 : | पुं० [सं० उद्√भिद्+क] =उद्भिज्ज। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्भिन्न					 : | वि० [सं० उद्√भिद्+क्त] १. विभक्त किया हुआ। २. तोड़ा-फोडा हुआ। खंडित। ३. उत्पन्न या उद्भूत। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्भूत					 : | भू० कृ० [सं० उद्√भू (होना)+क्त] १. जिसका उद्भव हुआ हो। जिसकी उत्पत्ति या जन्म हुआ हो। २. बाहर निकला या सामने आया हुआ। जो प्रत्यक्ष या प्रकट हुआ हो। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्भूति					 : | स्त्री० [सं० उद्√भू+क्तिन्] [वि, उद्भूत] १. उद्भूत होने की अवस्था, क्रिया या भाव। आविर्भाव। उत्पत्ति। २. उद्भूत होकर सामने आनेवाली चीज। ३. उन्नति। ४. विभूति। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्भेद					 : | पुं० [सं० उद्√भिद्+घञ्] १. =उदभेदन। २. एक काव्यालंकार जिसमें कौशल से छिपाई हुई बात किसी हेतु से प्रकाशित या लक्षित होना वर्णित होता है। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्भेदन					 : | पुं० [सं० उद्√भिद्+ल्युट-अन] १. किसी वस्तु को फोड़कर या छेदकर उससे दूसरी वस्तु का निकलना। २. तोड़-फोड़। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्भ्रम					 : | पुं० [सं० उद्√भ्रम् (घूमना)+घञ्] १. चक्कर काटना। घूमना। २. पर्यटन। भ्रमण। ३. उद्वेग। ४. पाश्चाताप। ५. ऐसा भ्रम जिसमें बुद्धि काम न करे। विभ्रम। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्भ्रमण					 : | पुं० [सं० उद्√भ्रम्+ल्युट-अन] चक्कर काटना या लगाना। भ्रमण करना। घूमना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्भ्रांत					 : | वि० [सं० उद्√भ्रम्+क्त] १. घूमता या चक्कर खाता हुआ। २. भ्रम में पड़ा हुआ। ३. चकित। भौचक्का। ४. उन्मत। पागल। ५. जो दुखी तथा विह्वल हो। पुं० तलवार का एक हाथ जिसमें चारों ओर तलवार घुमाते हुए विपक्षी का वार रोकते और उसे विफल करते हैं। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्यत					 : | वि० [सं० उद्√यम् (निवृत्ति, नियंत्रण)+क्त] १. उठाया या ताना हुआ। २. जो कोई काम करने के लिए तत्पर तथा दृढ़प्रतिज्ञ हो। कोई काम करने के लिए तैयार। मुस्तैद। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्यति					 : | स्त्री० [सं० उद्√यम्+क्तिन्] १. उद्यत होने की क्रिया या भाव। २. उद्यम। ३. उठाना। उत्थापन। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्यम					 : | पुं० [सं० उद्√यम्+घञ्] [कर्त्ता उद्यमी] १. कोई ऐसा शारीरिक कार्य या व्यापार जो जीविका उपार्जन के लिए अथवा कोई उद्देश्य सिद्ध करने के लिए किया जाता है। उद्योग। (स्ट्राइविंग) २. परिश्रम। मेहनत। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्यमी (मिन्)					 : | पुं० [सं० उद्यम+इनि] उद्यम या उद्योग करनेवाला व्यक्ति। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उद्यान					 : | पुं० [सं० उद्√या (जाना)+ल्युट्-अन] १. बाग। बगीचा। २. जंगल। वन। उदाहरण—नृपति पाइ यह आत्मज्ञान राज छाँडि कै गयौ उद्यान।—सूर। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्यानक					 : | पुं० [सं० उद्यान+कन्] छोटा उद्यान। वाटिका। बगीची। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्यान-करण					 : | पुं० [ष० त०] बाग-बगीचों में पौधे आदि लगाना और उनकी देख-रेख करना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्यान-कर्म (न्)					 : | पुं० [ष० त०] बगीचे में पेड़-पौधे लगाने तथा उनकी देख-भाल करने की कला या विधान। (हार्टिकल्चर) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्यान-गृह					 : | पुं० [मध्य० स०] किसी बडे़ बगीचें में बना हुआ छोटा सुंदर मकान। (गार्डन हाउस) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्यान-गोष्ठी					 : | स्त्री० [मध्य० स०] उद्यान में होनेवाली वह गोष्ठी या मित्रों का समागम जिसमें जलपान आदि हो। (गार्डन पार्टी)। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्यान-भोज					 : | पुं० [सं० मध्य० स०] उद्यान या बगीचें में होनेवाला भोज। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्यापन					 : | पुं० [सं० उद्√या+णिच्,पुक्+ल्युट-अन] १. विधिपूर्वक कोई काम पूरा करना। २. समाप्ति पर किया जानेवाला कुछ विशिष्ट धार्मिक कृत्य। जैसे—हवन, गोदान आदि। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्यापित					 : | वि० [सं० उद्√या+णिच्, पुक्+क्त] विधि-पूर्वक पूरा किया हुआ। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्युक्त					 : | वि० [सं० उद्√युज्(मिलना)+क्त] [स्त्री० उद्युक्ता] १. तत्पर। तैयार। २. किसी काम में लगा हुआ। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्योग					 : | पुं० [सं० उद्√युज्+घञ्] [कर्त्ता उद्योगी, वि० उद्युक्त, औद्योगिक] १. किसी काम में अच्छी तरह लगना। २. प्रयत्न। कोशिश। ३. परिश्रम। मेहनत। ४. कोई उद्देश्य या कार्य सिद्ध करने के लिए परिश्रम-पूर्वक उसमें लगना। (एन्डेवर) ५. दे० ‘उद्यम’। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्योग-धंधे					 : | पुं० बहु० [सं० उद्योग+हिं० धंधा] व्यापार आदि के लिए कच्चे माल से लोक व्यवहार के लिए पक्के माल या सामान बनाना या ऐसे सामान बनानेवाले कारखाने। (इंन्डस्ट्री) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्योग-पति					 : | पुं० [ष० त०] कच्चे माल से पक्का माल तैयार करने वाले किसी बड़े कारखाने का मालिक। (इंडस्ट्रियलिस्ट)। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्योगालय					 : | पुं० [उद्योग-आलय, ष० त०] वह स्थान जहाँ बिक्री के लिए बनाकर चीजें तैयार की जाती हो। कारखाना। (फैक्टरी) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्योगी (गिन्)					 : | वि० [सं० उद्योग+इनि] [स्त्री० उद्योगिनी] १. उद्योग या प्रयत्न करनेवाला। २. किसी काम के लिए ठीक प्रकार से परिश्रम और प्रयत्न करनेवाला। अध्यवसायी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्योगीकरण					 : | पुं० [सं० उद्योग+च्वि√कृ(करना)+ल्युट-अन] [भू० कृ० उद्योगीकृत] किसी देश में उद्योग-धंधों का विस्तार करने और नये-नये कल कारखाने स्थापित करने का काम। (इन्डस्ट्रियलाइजेशन) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्योत					 : | पुं० [सं० उद्द्योत] १. प्रकाश। २. चमक। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्योतन					 : | पुं० [सं० उद्योतन] १. चमकने या चमकाने का कार्य। प्रकाशन। २. प्रकट करना। सामने लाना। ३. भाषा विज्ञान में वह तत्त्व जो किसी शब्द या प्रत्यय में कोई नया अर्थ का भाव लगाकर उसकी द्योतकता बढ़ाता है। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्र					 : | पुं० [सं०√उन्द्(भिगोना)+रक्] ऊद-बिलाव। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्राव					 : | पुं० [सं० उद्√रू(शब्द)+घञ्] ऊँचा या घोर शब्द। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्रिक्त					 : | वि० [सं० उद्√रिच् (अलग करना, मिलाना)+क्त] १. उद्रेक से युक्त किया हुआ। २. प्रमुख। विशिष्ट। ३. बहुत अधिक। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्रेक					 : | पुं० [सं० उद्√रिच्+घञ्] [वि० उद्रिक्त] १. बहुत अधिक होने की अवस्था या भाव। अधिकता। प्रचुरता। २. प्रमुखता। ३. आरंभ। ४. रजोगुण। ५. साहित्य में, एक अलंकार जिसमें किसी वस्तु के किसी गुण या दोष के आगे कई गुणों या दोषों के मंद पड़ने का वर्णन होता है। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्वत्सर					 : | पुं० [सं० उद्-वत्सर, प्रा० स०,] वत्सर। वर्ष। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्वपन					 : | पुं० [सं० उद्√वप् (बोना काटना)+ल्युट्-अन] १. बाहर निकालना या फेंकना। २. हिलाकर गिराना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्वर्त					 : | वि० [सं० उद्√वृत्(बरतना)+घञ्] १. बरतने के उपरांत जो अधिक या शेष बच रहे। २. जितना आवश्यक हो उससे अधिक। व्यय,लागत आदि की अपेक्षा मान, मूल्य आदि के विचार से अधिक (आय, मूल्यन आदि)। जैसे—उद्वर्त आय-व्ययिक-ऐसा आय-व्ययिक जिसमें व्यय की अपेक्षा आय अधिक दिखाई गयी हो। (सरप्लस बजट) ३. अतिरिक्त। ४. फालतू। पुं० मूल्य, मान आदि के विचार से जितना आवश्यक हो या साधारणतः जितना चाहिए, उसकी तुलना में होनेवाली अधिकता। अववर्त्त का विपर्याय। बढ़ती। बचती। (सरप्लस, सभी अर्थों या रूपों में)। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्वर्तक					 : | वि० [सं० उद्√वृत्+ण्वुल-अक] १. उठानेवाला। २. उबटन लगानेवाला। ३. उद्वर्क। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्वर्तन					 : | पुं० [सं० उद्√वृत्+ल्युट-अन] १. ऊपर उठाना। २. उबटन, लेप आदि लगाना। ३. उबटन लेप आदि के रूप में लगाई जानेवाली चीज। ४. वर्द्धन। वृद्धि। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्वर्तित					 : | भू० कृ० [सं० उद्√वृत्+णिच्+क्त] १. ऊँचा किया या उठाया हुआ। २. जिससे उबटन या लेप लगाया गया हो। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्वर्धन					 : | पुं० [सं० उद्√बुध् (बढ़ना)+ल्युट्-अन] १. वर्द्वन। वृद्धि। २. किसी चीज में से निकलकर फैलना या बढ़ना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्वह					 : | पुं० [सं० उद्√वह् (ढोना, पहुँचाना)+अच्] १. पुत्र। २. सात वायुओं के अंतर्गत वह वायु जो तीसरे स्कंध पर स्थित मानी गई है। ३. उदान। वायु। ४. विवाह। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्वहन					 : | पुं० [सं० उद्√वह+ल्युट-अन] ऊपर की ओर उठाना, खींचना या ले जाना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्वांत					 : | पुं० [सं० उद्√वम् उगलना)+क्त] कै। वमन। वि० १. वमन किया हुआ। २. उगला हुआ। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्वापन					 : | पुं० [सं० उद्√वा (गति)+णिच्, पुक्+ल्युट-अन] आग बुझाना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्वाष्पन					 : | पुं० [सं० उद्-वाष्प, प्रा० स०+णिचे+ल्युट-अन] =वाष्पीकरण। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्वास					 : | पुं० [सं० उद्√वस् (बसना)+णिच्+घञ्] १. बंधन से मुक्त करना। स्वतंत्र करना। २. निर्वासन। ३. वध। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्वासन					 : | पुं० [सं० उद्√वस्+णिच्+ल्युट-अन] १. कहीं से हटाना या दूर करना। २. किसी का निवास स्थान नष्ट करके उसे वहाँ से भगाना। (डिस्प्लेसमेंट) ३. उजाड़ना। ४. मार डालना। वध करना। ५. यज्ञ के पहले आसन बिछाने और यज्ञ-पात्र आदि स्वच्छ करके उन्हें यथा स्थान रखना। ६. प्रतिमा या मूर्ति स्थापित करने से पहले उसे रात भर ओषधि मिले हुए जल में रखना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्वासित					 : | वि० [सं० उद्√वस्+णिच्+क्त] १. (व्यक्ति) जिसका निवास स्थान नष्ट कर दिया गया हो। २. (व्यक्ति) जिसे अपने निवास स्थान से मार-पीट या उजाड़कर भगा दिया गया हो। (डिस्प्लेस्ड) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्वाह					 : | पुं० [सं० उद्√वह् (ले जाना)+घञ्] १. ऊपर की ओर ले जाना। २. दूसरे स्थान पर या दूर ले जाना। जैसे—दुलहिन को उसके माता-पिता के घर ले जाना। ३. विवाह। ४. वायु के सात प्रकारों में से चौथा प्रकार। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्वाहन					 : | पुं० [सं० उद्√वह++णिच्+ल्युट] [भू० कृ० उद्वाहित] १. ऊपर की ओर उठाने या ले जाने का कार्य। २. दूर करना या हटाना। ३. एक बार जोते हुए खेत को फिर से जोतना। चास लगाना। ४. विवाह। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्वाहिक					 : | वि० [सं० उद्वाह+ठक्-इक] उद्वाह-संबंधी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उद्वाही (हिन्)					 : | वि० [सं० उद्√वह+णिनि] १. ऊपर की ओर ले जानेवाला। २. दूसरे स्थान पर या दूर ले जाने वाला। ३. विवाह करने के लिए उत्सुक। (व्यक्ति)। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उद्विग्न					 : | वि० [सं० उद्√विज् (भय, विचलित होना)+क्त] [भाव० उद्विग्नता] जो किसी आशंका, दुख आदि के कारण उद्वेग से युक्त या बहुत आकुल हो। चिंतित और विचलित। घबड़ाया हुआ। | 
			
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				| उद्विग्नता					 : | स्त्री० [सं० उद्विग्न+तल्-टाप्] उद्विग्न होने की अवस्था या भाव। | 
			
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				| उद्वेग					 : | पुं० [सं० उद्√विज्(भय़)+घञ्] १. तीव्र। वेग। तेज गति। २. चित्त की किसी वृत्ति की तीव्रता। आवेश। जोश। ३. विरह जन्य चिंता और दुःख जो साहित्य में एक संचारी भाव माना गया है। ४. किसी विकट या चिंताजनक घटना के कारण लोगों को होनेवाला वह भय जिसके फलस्वरूप लोग अपनी रक्षा के उपाय सोचने लगते हैं। (पैनिक)। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उद्वेगी (गिन्)					 : | वि० [सं० उद्वेग+इनि] उद्विग्न। | 
			
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				| उद्वेजक					 : | वि० [सं० उद्√विज्+णिच्+ण्वुल्-अक] उद्वेग उत्पन्न करने या उद्विग्न करनेवाला। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उद्वेजन					 : | पुं० [सं० उद्√विज्+णिच्+ल्युट-अन] किसी के मन में कुछ या कोई उद्वेग उत्पन्न करना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उद्वेलन					 : | पुं० [सं० उद्√वेल (चलाना)+ल्युट-अन] [भू० कृ० उद्वेलित] १. (नदी आदि के) बहुत अधिक भर जाने के कारण जल का छलककर इधर-उधर बहना। २. सीमा का अतिक्रमण या उल्लंघन करना। | 
			
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				| उद्वेल्लित					 : | वि० [सं० उद्√वेल्ल (चलाना)+क्त] १. उछलता हुआ। २. छलकता या ऊपर से बहता हुआ। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उद्वेष्टन					 : | पुं० [सं० उद्√वेष्ट् (घेरना, लपेटना)+ल्युट-अन] [भू० कृ० उद्वेष्टित] १. घेरा। बाड़ा। २. घेरने की क्रिया या भाव। ३. नितंब में होनेवाली पीड़ा। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उधकना					 : | अ०-१. =उधड़ना। २. =उधरना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उधड़ना					 : | अ० [सं० उद्वरण-उधड़ना] १. तितर-बितर होना। बिखरना। २. ऊपर की परत या चिपकी हुई चीज का अलग होना। ३. सीयन आदि खुलना या टूटना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उधम					 : | पुं०=ऊधम।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उधर					 : | अव्य० [सं० उत्तर अथवा पुं० हिं० ऊ (वह)+धर(प्रत्य)] १. उस तरफ जिधर वक्ता ने संकेत किया हो। वक्ता के विपक्ष में या सामने की ओर, कुछ दूरी पर। २. पर पक्ष की ओर या उसके आस-पास। ‘इधर’ का विपर्याय। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उधरना					 : | अ० [सं० उद्वरण] १. संकट आदि से उद्धार पाना या मुक्त होना। उदाहरण—अनायास उधरी तेहि काला।—तुलसी। स० [सं० उद्वरण] १. उद्धार करना। उबारना। २. पाठ की उद्वरणी करना। स०=उधड़ना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उधराणी					 : | -स्त्री० [सं० उद्धार, हिं,० उधार] उधार दिया हुआ धन वसूल करना। उगाही। वसूली। (राज०)(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उधराना					 : | अ० [सं० उद्वरण] १. हवा के झोंके में पड़कर इधर-उधर छितराना या बिखरना। जैसे—रुई उधराना। २. बहुत उद्दंड होकर उपद्रव या उधम मचाना। ३. नष्ट-भ्रष्ट हो जाना। न रह पाना। उदाहरण—कहै रत्नाकर पै सुधि उधिरानी सबै धूरि परि धीर जोग जुगति सँधाती पर।—रत्नाकर। स० १. किसी को उधरने में प्रवृत्त करना। २. दे० ‘उधेड़ना’। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उधलना					 : | अ० [हिं० उढ़रना] स्त्री का किसी अन्य पुरुष के साथ भाग जाना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उधसना					 : | स० [सं० उद्वसन, हिं० उधरना] बिखरना। फैलना। उदाहरण—उधसल केस कुसुम छिरिआएल।—विद्यापति। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उधार					 : | पुं० [सं० उद्धार] १. कोई चीज इस प्रकार खरीदना या बेचना कि उसका दाम कुछ समय बाद दिया या लिया जाए। २. वह धन या रकम जो उक्त प्रकार से खरीदने या बेचने के कारण किसी के जिम्मे निकलती हो या बाकी पड़ी हो। जैसे—हमारे तो हजारों रुपए उधार में ही डूब गये। पद-उधारखाता (क) पंजी या वही का वह अंश या विभाग जिसमें उधार दी या ली हुई रकमें लिखी जाती हैं। (ख) बिना तुरंत मूल्य चुकाये चीजे खरीदने या बेचने की परिपाटी। वि० जो किसी से कुछ समय तक अपने उपयोग में लाने के लिए और कुछ दिन बाद लौटा देने के वादे पर माँगकर लिया गया हो। जैसे— (क) इस समय किसी से दस रूपए उधार लेकर काम चला हो। (ख) अभी तो सौ रुपए के उधार आये हैं। विशेष—लोक-व्यवहार में ‘उधार’ का प्रयोग मुख्यतः धन के संबंध में ही प्रशस्त माना जाता है, वस्तुओं के संबंध में अधिकतर ‘मँगनी’ का ही प्रयोग होता है। मुहावरा—(किसी काम या बात के लिए) उधार खाये बैठना | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उधारक					 : | वि०=उद्धारक।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उधारन					 : | वि० [सं० उद्धार] उद्धार करनेवाला। उद्धारक। (यौ शब्दों के अंत में, जैसे—विपत्ति-उधारन)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उधारना					 : | स० [सं० उद्वरण] किसी को विपत्ति या संकट से निकालना या मुक्त करना। उद्धार करना। उदाहरण—कौने देव बराय बिरद हित हठि हठि अधम उधारे।—तुलसी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उधारी					 : | वि० [सं० उद्वारिन] उद्धार करनेवाला। स्त्री०-उधार। वि० उधार माँगनेवाला।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उधियाना					 : | अ० [हिं० ऊधम] बहुत उत्पात करना या ऊधम मचाना। अ०=उधड़ना। स०=उधेड़ना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उधेड़ना					 : | स० [सं० उद्वरण-उन्मूलन उखाड़ना] १. लगी हुई पर्तें अलग करना। उखाड़ना। मुहावरा—उधेड़कर रख देना (क) कच्चा चिट्ठा खोल देना। रहस्य भेदन करना। (ख) बहुत मारना-पीटना। २. सिलाई के टाँके खोलना। ३. छितराना। बिखेरना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उधेड़बुन					 : | स्त्री० [सं० उधेड़ना+बुनना] ऐसी मानसिक स्थिति जिसमें किसी काम या बात के लिए तरह-तरह के उपाय सोचे और फिर किसी कारण से व्यर्थ समझकर छोड़े और फिर उनके स्थान पर नये उपाय सोचे जाते हैं। बार-बार किया जानेवाला सोच-विचार। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उधेरना					 : | स०=उधेड़ना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उनंगा					 : | वि० [हिं० ऊन (कम)+अंग] [स्त्री,० उनंगी] नीचे की ओर झुका हुआ। नत। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उनंत					 : | वि० [सं० उन्नत] १. आगे झुका हुआ। उन्नत। २. ऊपर उठा हुआ। उदाहरण—भई उनंत प्रेम कै साखा।—जायसी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उन					 : | सर्व० १. हिं० ‘उस’ का (क) संख्यावाचक बहुवचन रूप। (ख) आदरार्थक बहुवचन रूप। २. प्रिय या प्रेमपात्र के लिए प्रयुक्त होनेवाला सांकेतिक सर्वनाम। उदाहरण—नैनन नींद गई है उन बिन तलफत मै दईमारी।—मदारीदास। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उनचन					 : | स्त्री० [सं० उदंचन-ऊपर उठाना या खींचना] खाट या चारपाई में पैताने की ओर बाँधी जाने वाली रस्सी जिसकी सहायता से वह ढीली होने पर कसी जाती है। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उनचना					 : | स० [हिं० उनचन] खाट या चारपाई के पैताने वाली रस्सी के फंदे इस प्रकार खींचना कि उसकी ढीली बुनावट कस जाए। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उनचास					 : | वि० [सं० एकोनपंचाशत, पा० एकोनपंचास, उनपंचास] जो गिनती में चालीस और नौ हो। पचास से एक कम। पुं० चालीस और नौ की संख्या या अंक जो इस प्रकार लिखा जाता है-49। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उनतिस (तीस)					 : | वि० [सं० एकोनत्रिंशत, पा० एकुनतीसा, उनतीसा] जो गिनती में बीस और नौ हो। तीस से एक कम। पुं० बीस और नौ की संख्या या अंक जो इस प्रकार लिखा जाता है-२9। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उनदा					 : | वि०=उनींदा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उनदौहा					 : | वि०=उनींदा।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उनना					 : | स०=बुनना। अ०=उनवना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उनमद					 : | वि०=उन्मत्त।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उनमना					 : | वि०=अनमना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उनमनी					 : | स्त्री० उन्मनी (योग की क्रिया)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उनमाथना					 : | स० [सं० उन्मथन] मथना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उनमाथी					 : | वि० [हिं० उनमाथना से] मथनेवाला। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उनमाद					 : | पुं०=उन्माद।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उनमादना					 : | अ० [हिं० उनमाद] उन्माद से युक्त होना। उन्मत होना। स० किसी को उन्मत्त करना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उनमान					 : | पुं० [सं० उद्-मान] १. नाप-तौल आदि का मान। परिमाण। २. गहराई गुरुत्व आदि का पता। थाह। ३. शक्ति। सामर्थ्य। ४. उपमा। तुलना। पुं०=अनुमान।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उनमानना					 : | स० [हिं० उनमान] अनुमान करना। अटकल लगाना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उनमाना					 : | अ० [सं० उन्मादन] १. उन्मत्त या पागल होना। २. प्रेम आदि से विह्वल होना। उदाहरण—ऋषिवर तहँ छंदवास गावत कल कंठ हास कीर्तन उनमाय काम क्रोध कंपिनी०-तुलसी। स० १. उन्मत या पागल करना। २. विभोर या विह्वल करना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उनमानि					 : | स्त्री० [हिं० उनमान] उपमा। तुलना। उदाहरण—कमलदल नैनन की उनमानि।—रहीम।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उनमीलन					 : | पुं०=उन्मीलन।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उनमुना					 : | वि० [हिं० अनमना] [स्त्री० उनमुनी] १. अन्य-मनस्क। अनमना। २. मौन। चुप।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उनमुनी					 : | स्त्री०=उन्मुनी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उनमूलना					 : | स० [सं० उन्मूलन] १. किसी वस्तु को जड़ से खोदना। उन्मूलन करना। २. पूर्ण रूप से नष्ट कर डालना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उनमेख					 : | पुं० [सं० उन्मेष] १. थोड़ा-सा खिलना या खुलना। २. मंद या हलका प्रकाश। उदाहरण—भ्रमर द्वै रविकरिन त्याए,करन जनु उनमेखु।—तुलसी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उनमेखना					 : | स० [सं० उन्मेष] १. आँखें खोलना। २. देखना। ३. (फूल आदि) खिलाना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उनमेद					 : | पुं० [सं० उद्जल+मेदचरबी] जलाशयों में, वर्षा काल के आरंभ में उठने वाली एक प्रकार की विषाक्त फेन, जिसे खा लेने से मछलियाँ मर जाती है। माँजा। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उनमोचन					 : | पुं०=उन्मोचन। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उनयना					 : | अ० [सं० उनमन] १. झुकना। लटकना। २. चारों ओर से घिर आना। छाना। उदाहरण—गहि मंदर बंदर भालु चले सो मनो उनये घन सावन के।—तुलसी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उनरना					 : | अ० [सं० उन्नरण-ऊपर जाना] १. ऊपर उठना या बढ़ना। उदाहरण—उनरत जोवनु देखि नृपति मन भावइ हो।—तुलसी। २. चारों ओर उमड़ना। घिरना या छाना। ३. उछलते या कूदते हुए आगे बढ़ना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उनवना					 : | अ, [सं० उन्नमन] १. झुकना। २. चारों ओर या ऊपर आ घिरना। उदाहरण—कजरारे दृग की घटा जब उनवै जिहि ओरा।-रसनिधि। ३. अकस्मात् प्रकट होना या सामने आना। स० १. झुकाना। २. घेरना। ३. प्रकट करना। सामने लाना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उनवर					 : | वि० [सं० ऊन-कम] १. कम। न्यून। २. तुच्छ। हीन।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उनवान					 : | पुं०=अनुमान।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उनसठ					 : | वि० [सं० एकोनषष्टि, प्रा० एकुन्नसट्ठि, उनसट्टठि] जो गिनती में पचास और नौ हो। साठ से एक कम। पुं० पचास और नौ की संख्या या अंक जो इस प्रकार लिखा जाता है-59। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उनहत्तर					 : | वि० [सं० एकोनसप्तति, प्रा० एकोनसत्तरि, उनसत्तरि, उनहत्तरि] जो गिनती में साठ और नौ हो। सत्तर से एक कम। पुं० साठ और नौ की संख्या या अंक जो इस प्रकार लिखा जाता है-69। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उनहानि					 : | स्त्री०=उन्हानि।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उनहार					 : | वि० [सं० अनुहार, प्रा० अनुहार] सदृश। समान। स्त्री० १. समानता। सादृश्य। २. किसी के अनुरूप बनी हुई कोई दूसरी वस्तु। प्रतिकृति।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उनहास					 : | वि० स्त्री०=उनहार। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उनाना					 : | स० [सं० उन्नयन] १. नीचे की ओर लाना। झुकाना। २. किसी की ओर अनुरक्त या प्रवृत्त करना। लगाना। ३. ध्यान देना। मन लगाना। ४. आज्ञा का पालन करना। अ० आज्ञा मानना। स०=बुनवाना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उनारना					 : | स० [सं० उन्नयन] १. ऊपर की ओर उठाना। २. आगे बढ़ाना। ३. दे० ‘उनाना’। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उनारी					 : | स्त्री० [हिं० उन्हला] रबी की फसल या बोआई। (बुदेल०)(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उनासी					 : | वि० पुं०=उन्नासी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उनाह					 : | पुं० [सं० ऊष्मा] भाप। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उनि					 : | सर्व०=उन्होंने।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उनिदौंही					 : | वि०=उनींदा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उनींद					 : | स्त्री० [सं० उन्निद्रा] बहुत अदिक निंद्रा आने पर या नींद से भरे होने की अवस्था। उदाहरण—लरिका स्रमित उनींद बस सयन करावहु जाइ।—तुलसी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उनींदा					 : | वि० [सं० उन्नद्रि] [स्त्री० उनींदी] १. (आँखें) जिसमें नींद भरी हो। २. (व्यक्ति) जिसे नींद आ रही हो। ऊँघता हुआ। उदाहरण—आजु उनीदें आय मुरारी।—तुलसी। ३. नींद के कारण अलसाया हुआ। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उनैना					 : | अ० दे० ‘उनवना’। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उन्नइस					 : | वि०=उन्नीस।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उन्नत					 : | वि० [सं० उद्√नम्(झुकना)+क्त] १. जो ऊपर की ओर झुका या नत हुआ हो। २. ऊपर की ओर ऊँठा हुआ। ऊँचा। ३. पद, मर्यादा, स्थिति के विचार से जो पहले से अथवा अपने वर्ग के अन्य सदस्यों से बहुत आगे बढ़ा हुआ हो। श्रेष्ठ। ४. दीर्घ, महान या विशाल। पुं० अजगर। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उन्नतांश					 : | पुं० [सं० उन्नत-अंश, कर्म० स०] १. किसी आधार, स्तर या रेखा से अथवा किसी की तुलना में ऊपर की ओर का विस्तार। ऊँचाई। (आल्टिट्यूड) २. फलित ज्योतिष में दूज के चंद्रमा का वह कोना या श्रृंग जो दूसरे कोने या श्रृंग से कुछ ऊपर उठा हुआ हो। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उन्नति					 : | स्त्री० [सं० उद्√नम्+क्तिन्] १. उन्नत होने की अवस्था, क्रिया या भाव। २. उच्चता। ३. किसी कार्य या क्षेत्र में अच्छी तरह और बराबर आगे बढ़ते रहने या विकसित होते रहने की अवस्था, क्रिया या भाव। (प्रोग्रेस) जैसे—यह लड़का पढ़ाई में अच्छी उन्नति कर रहा है। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उन्नति-शील					 : | वि० [ब० स०] (व्यक्ति या व्यापार) जिसमें उन्नति करते रहने की योग्यता हो अथवा जो बराबर उन्नति कर रहा हो। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उन्नतोदर					 : | पुं० [सं० उन्नत-उदर, कर्म० स०] वृत्त-खंड आदि का ऊपर उठा हुआ कोई अंश या तल। वि० दे० ‘उत्तल’। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उन्नद्ध					 : | वि० [सं० उद्√नह्(बंधन)+क्त] १. कसकर बँधा हुआ। २. बढ़ाया हुआ। ३. उठाया हुआ। ४. अभिमानी और उद्दंड। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उन्नमन					 : | पुं० [सं० उद्√नम्+ल्युट-अन] [भू० कृ० उन्नमित] १. ऊपर उठाना या ले जाना। २. उन्नत होना। उन्नति करना। ३. बनाकर तैयार या खड़ा करना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उन्नम्र					 : | वि० [सं० उद्√नम्+रन्] १. जो सीधा खड़ा हो। २. बहुत ऊँचा। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उन्नयन					 : | पुं० [सं० उद्√नी(लेजाना)+ल्युट-अन] [भू० कृ० उन्नति कर्त्ता, उन्नायक] १. ऊपर की ओर उठाना या ले जाना। २. ऐसा काम करना जिससे कोई आगे बढ़े या उन्नति करे। किसी की उन्नित का कारण बनना। ३. किसी को ऊँची कक्षा या वर्ग में अथवा ऊँचे पद पर पहुँचाना या भेजना। (प्रोमोशन) ४. ऊपर की ओर उठते हुए रूप में बनाना या रचना। जैसे—सीमन्तोन्नयन। ५. निष्कर्ष। सारांश। वि० [सं० उद्+नयन] जिसकी आँखें ऊपर की ओर उठी हों। | 
			
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				| उन्नयन-यंत्र					 : | पुं० [ष० त०] दे० ‘उत्थानक’। | 
			
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				| उन्नाद					 : | पुं० [सं० उद्√नद्(शब्द)+घञ्] १. शोर-गुल। हो-हल्ला। २. गुंजन। कल-रव। | 
			
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				| उन्नाब					 : | पुं० [अं०] बेर की जाति का एक प्रकार का सूखा फल जो दवा के काम आता है। | 
			
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				| उन्नाबी					 : | वि० [अ०] १. उन्नाव संबंधी। २. उन्नाब के दाने की रंगत का। कुछ गुलाबी या बैगनी झलक लिये हुए लाल। (लाइट मैरून) उक्त प्रकार का रंग। | 
			
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				| उन्नायक					 : | वि० [सं० उद्√नी+ण्वुल्-अक] १. उन्नयन करने या ऊपर चढ़ानेवाला। २. उन्नति की ओर ले जानेवाला। ३. आगे बढ़ानेवाला। ४. जिसकी प्रवृत्ति ऊपर उठने, चढ़ने या बढ़ने की ओर हो। (राइजिंग) जैसे—उन्नायक स्वर। ५. निष्कर्ष तक पहुँचानेवाला। | 
			
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				| उन्नासी					 : | वि० [सं० ऊनाशीति, प्रा० ऊनासी] जो गिनती में सत्तर और नौ हो। अस्सी से एक कम। पुं० सत्तर और नौ की संख्या या अंक जो गिनती में इस प्रकार लिखा जाता है-79। | 
			
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				| उन्नाह					 : | पुं० [सं० उद्√नह्+घञ्] १. उठाकर बाँधना। जैसे—स्तनोत्राह। २. अतिशयता। प्रचुरता। | 
			
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				| उन्निद्र					 : | वि० [सं० उद्-निद्रा, ब० स०] १. जिसे नींद न आती हो या न आ रही हो। २. खिला हुआ। विकसित। पुं० एक रोग जिसमें रोगी को बिलकुल नींद नहीं आती या बहुत कम नींद आती है। (इन्सोम्निया) | 
			
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				| उन्नीत					 : | भू० कृ० [सं० उद्√नी+क्त] १. ऊपर उठाया चढ़ाया या पहुँचाया हुआ। २. ऊपर की कक्षा में या पद पर पहुँचाया हुआ। (प्रोमोटेड) | 
			
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				| उन्नीस					 : | वि० [सं० एकोनविंशति, पा० एकोनवीसा, एकूनवीसा, प्रा० एकोन्नीस, उन्नीस] १. जो गिनती में दस और नौ हो। बीस में से एक कम। २. जो अपेक्षाकृत किसी से कम, घटकर या हीन हो। मुहावरा—(किसी से) उन्नीस होना (क) कुछ कम होना। थोड़ा घटना। (ख) गुण, योग्यता आदि में किसी से कुछ घटकर होना। (दो वस्तुओं का परस्पर) उन्नीस बीस होना-(क) दो वस्तुओं का प्रायः समान होने पर भी उन में से एक-दूसरे से कुछ घटकर और दूसरी का कुछ अच्छा होना। (ख) कोई ऐसी वैसी या साधारण अनिष्ट कर बात होना। जैसे—तुमने इस दोपहर में लड़के को वहाँ भेज दिया, कहीं कुछ उन्नीस-बीस हो जाए तो। पद-अन्नीस बीस का अंतर-बहुत ही थोड़ा या सामान्य और प्रायः नगण्य अंतर। पुं० उन्नीस की सूचक संख्या जो इस प्रकार लिखी जाती है-१९। | 
			
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				| उन्नीसवाँ					 : | वि [हिं० उन्नीस+वाँ (प्रत्य)] जो गिनती में उन्नीस के स्थान पर पड़ता हो। अठारहवें के बाद का। | 
			
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				| उन्नैना					 : | अ० [सं० उन्नयन] झुकना। स० झुकना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उन्मंथ					 : | पुं० [सं० उ√मनथ् (बिलोना) +घञ्] १. एक रोग जिसमें कान की लौ सूज जाती है और उसमें खुलजी होती है। २. बिलोड़ना। मथना। ३. कष्ट पहुँचाना। | 
			
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				| उन्मज्जन					 : | पुं० [सं० उद्√मस्ज् (शुद्धि)+ल्युट-अन] जल या नदी में से (स्नान आदि कर चुकने पर) बाहर निकालना। | 
			
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				| उन्मत					 : | भू० कृ० [सं० उद्√मद्(हर्ष)+क्त] १. जिसकी बुद्दि या मति में किसी प्रकार का विकार हो गया हो। जिसकी बुद्धि ठिकाने न हो। २. पागल। बावला। ३. मादक पदार्थ के सेवन से जिसका मानसिक संतुलन बहुत बिगड़ गया हो या बिल्कुल नष्ट हो गया हो। ४. जो किसी प्रकार के आवेश (जैसे—अभिमान, क्रोध आदि) से भरकर मानसिक दृष्टि से उक्त स्थिति में पहुँच गया हो। पुं० १. धतूरा। २. मुचकुंद का पेड़। पद-उन्मत्त पंचकवैद्यक में, धतूरा, बकुची, भंग, जावित्री तथा खसखस इन पाँच मादक द्रव्यों का समूह। उन्मत्त रस-वैद्यक में पारे, गंधक आदि के योग से बना हुआ एक प्रकार का रस जिसे सूँघने से सन्निपात दूर जाता है। | 
			
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				| उन्मत्तता					 : | स्त्री० [सं० उन्मत्त+तल्-टाप्] उन्मत्त होने की दशा या भाव। | 
			
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				| उन्मथन					 : | पुं० [सं० उद्√मथ्+ल्युट-अन] [भू० कृ० उन्मथित] १. मथना। २. हिलाना। ३. पीड़ा देना। ४. क्षुब्ध करना। | 
			
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				| उन्मथित					 : | भू० कृ० [सं० उद्√मथ्+क्त] १. मथा हुआ। २. हिलाया हुआ। ३. क्षुब्ध किया हुआ। ४. विक्षिप्त। ५. विकल। | 
			
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				| उन्मद					 : | वि०=उन्मत्त।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उन्मदिष्णु					 : | वि० [सं० उद्√मद्+इष्णुच्] १. मतवाला। उन्मत्त। २. (हाथी) जिसका मद बह या निकल रहा हो। | 
			
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				| उन्मध्य-प्रेरक					 : | वि० पुं० [सं० उद्-मध्य० अत्या० स० उन्मध्य० प्रेरक, कर्म० स०]=केंद्रापसारक। | 
			
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				| उन्मन					 : | वि० [सं० उन्मनस्] [स्त्री० उन्मना] १. अनमना। अन्यमनस्क। २. उन्मत्त। ३. उद्विग्न। पुं० हठयोग में, मन की वह अवस्था, जो उसकी उन्मनी मुद्रा के साधन के समय प्राप्त होती है। | 
			
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				| उन्मनस्क					 : | वि० [सं० उद्-मनस्, ब० स० कप्] =उन्मन्। | 
			
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				| उन्मना (नस्)					 : | वि० [सं० उद्-मानस्स० ब० स०] =उन्मन। | 
			
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				| उन्मनी					 : | स्त्री० [सं० उन्मस् ङीष्स, पृषो० सिद्धि] हटयोग की एक मुद्रा जिसमें भौहों को ऊपर चढ़ाकर नाक की नोक पर दृष्टि जमाई जाती है। | 
			
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				| उन्मर्दन					 : | पुं० [सं० उद्√मृद् (मलना)+ल्युट-अन] १. मलना। रगड़ना। २. वह तरल पदार्थ जो शरीर पर मला जाए। २. वायु शुद्ध करने की क्रिया या भाव। | 
			
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				| उन्माथ					 : | पुं० [सं० उद्√मथ् (मथना)+घञ्] १. हिलाने की क्रिया या भाव। २. मार डालना या वध करना। ३. वधिक। ४. कष्ट देना। पीड़ित करना। | 
			
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				| उन्माद					 : | पुं० [सं० उद्√मद् (गर्व करना)+घञ्] एक प्रकार का मानसिक रोग जिसमें मस्तिष्क का संतुलन बिगड़ जाता है और रोगी बिना-सोचे समझे अंड-बंड काम और बातें करने लगता है। चित्त-विभ्रम। पागलपन। साहित्य में यह एक संचारी भाव माना गया है जिसमें वियोग के कारण चित्त ठिकाने नहीं रहता। | 
			
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				| उन्मादक					 : | वि० [सं० उद्√मद्+णिच्+ल्युट अन] [स्त्री० उन्मादिनी] १. (बात, विषय या व्यक्ति) जो किसी को उन्मद करे। पागल करनेवाला० २. (खाने-पीने की चीज) जिससे नशा होता हो। पुं० धतूरा। | 
			
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				| उन्मादन					 : | पुं० [सं० उद्√मद्+णिच्+ल्युट अन] १. उन्मत्त करने की क्रिया या भाव। उन्माद उत्पन्न करना। २. कामदेव के पाँच वाणों में से एक। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उन्मादी (दिन्)					 : | वि० [सं० उन्माद+इनि] [स्त्री० उन्मादिनी] १. जो उन्माद रोग से ग्रस्त हो। २. उन्माद संबंधी। | 
			
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				| उन्मान					 : | पुं० [सं० उद्√मा (मापना)+ल्युट- अन] १. ऊँचाई नापने का एक माप या नाप। २. द्रोण नामक एक पुरानी तौल। ३. मूल्य या महत्त्व समझना। | 
			
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				| उन्मार्ग					 : | पुं० [सं० उद् | 
			
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				| उन्मार्गी (र्गिन्)					 : | वि० [सं० उन्मार्ग+इनि] १. बुरे रास्ते पर चलने वाला। कुमार्गी। २. जिसका आचरण बुरा हो। | 
			
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				| उन्मार्जन					 : | पुं० [सं० उद्√मार्ज (शुद्धि, मिटाना)+णिच्+ल्युट मार्ग, प्रा० स०] १. अनुचित या बुरा मार्ग। खराब रास्ता। २. अनुचित और निंदनीय आचरण। खराब चाल-चलन। | 
			
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				| उन्मित					 : | भू० कृ० [सं० उद्√मा+क्त] १. नापा या मापा हुआ। २. तौला हुआ। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उन्मिति					 : | स्त्री० [सं० उद्√मा+क्तिन्] १. नाप। माप। २. तौल। | 
			
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				| उन्मिष					 : | वि० [सं० उद्√मिष् (सींचना)+क] १. खुला हुआ। २. खिला हुआ। पुं०=उन्मेष। | 
			
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				| उन्मीलन					 : | पुं० [सं० उद्√मील्(पलक करना)+ल्युट अन] [वि० उन्मीलनीय, भू० कृ० उन्मीलित, कर्त्ता, उन्मीलक] १. (पलकें ऊपर उठाकर) आँखें खोलना। २. (फूल) खिलना। विकसित होना। ३. प्रकट उन्मीलन अभिराम। -प्रसाद। ४. चित्र-कला में खुलाई नाम की क्रिया। अ० विशेष दे० ‘खुलाई’।होना० सामने आना। उदाहरण—विश्व का | 
			
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				| उन्मीलना					 : | स० [सं० उन्मीलन] १. खोलना। २. विकसित करना। खिलाना। अ० १. खुलना। २. खिलना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उन्मीलित					 : | भू० कृ० [सं० उद्√मील्+क्त] १. (नेत्र) जो खुला हुआ हो। २. (फूल) जो खिला हुआ हो। पुं० साहित्य में, एक अलंकार समान गुण धर्मवाले दो पदार्थों के आपस में मिलकर एक हो जाने पर भी किसी विशेष कारण से दोनों का अंतर प्रकट होने का उल्लेख होता है। जैसे—चाँदनी रात में जानेवाली अभिसारिका नायिका के संबंध में यह कहना कि वह तो चाँदनी के साथ मिलकर एक हो गयी थी। और उसके शरीर से निकलनेवाली सुगंध के आधार पर ही उसकी सखी उसके पीछे-पीछे चली जा रही थी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उन्मुक्त					 : | भू० कृ० [सं० उद्√मुच् (खुलना, छोड़ना)+क्त] १. जिसे बंधन से छुटकारा मिला हो। मुक्त किया हुआ। २. खुला हुआ। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उन्मुक्ति					 : | स्त्री० [सं० उद्√मुच्+क्तिन्] १. उन्मुक्त करने या होने की अवस्था या भाव। छुटकारा। मुक्ति। २. किसी प्रकार के अभियोग, बंधन आदि से छोड़ा जाना। (डिस्चार्ज) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उन्मुख					 : | वि० [सं० उद्-मुख, ब० स०] [स्त्री० उन्मुखा, भाव० उन्मुखता] १. जो ऊपर की ओर मुँह उठाए हो। २. जो किसी की या किसी की ओर देख रहा हो। ३. जो उत्कंठापूर्वक प्रतीक्षा कर रहा हो। ४. उद्यत। प्रस्तुत। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उन्मुग्ध					 : | वि० [सं० उद्-मुग्ध, प्रा० स०] १. जो किसी पर बहुत अधिक आसक्त हो। २. बहुत अधिक मूर्ख। जड़। ३. व्याकुल। घबराया हुआ। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उन्मुद्र					 : | वि० [सं० उद्-मुद्रा, ब० स०] १. जिसपर मोहर न लगी हो। २. खिला या खुला हुआ। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उन्मुनि					 : | स्त्री०=उन्मनी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उन्मूलक					 : | वि० [सं० उद्√मूल्(रोपना)+णिच्+ण्वुल अक] उन्मूलन करने या जड़ से उखाड़ फेंकनेवाला। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उन्मूलन					 : | पुं० [सं० उद्√मूल्+णिच्+ल्युट अन] [वि० उन्मूलनीय, भू० कृ० उन्मूलित] १. मूल या जड़ से उखाड़कर फेंकने की क्रिया या भाव। समूल नष्ट करना। २. किसी चीज को इस प्रकार नष्ट-भ्रष्ट करना या हानि पहुँचाना कि वह फिर से उठ,पनप या विकसित न हो सके। (एक्सटर्मिनेशन) ३. किसी का अस्तित्व मिटाना। (एबालिशन) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उन्मूलित					 : | भू० कृ० [सं० उद्√मूल्+णिच्+क्त] १. जड़ से उखाड़ा हुआ। २. पूरी तरह से नष्ट किया हुआ। ३. जिसका अस्तित्व न रहने दिया गया हो। (एबॉलिश्ड) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उन्मेष					 : | पुं० [सं० उद्√मिष्+घञ्] [वि० उन्मिषित] १. (आँख का) खुलना। २. (फूल का) खिलना। ३. प्रकट होना। ४. थोड़ा, मंद या हलका प्रकाश। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उन्मेषी (षिन्)					 : | वि० [सं० उद्√मिष्+णइच्+णिनि] १. खोलनेवाला। जैसे—नेत्र उन्मेषी। २. खिलानेवाला। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उन्मोचन					 : | पुं० [सं० उद्√मुच्+णिच्+ल्युट-अन] [कर्त्ता, उन्मोचक] १. बंधन आदि से मुक्त करना। खोलना। २. कष्ट संकट आदि से छुड़ाना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उन्ह					 : | सर्व० हिं० उस का वह अवधी बहुवचन रूप जो उसे विभक्ति लगने पर प्राप्त होता है। उदाहरण—साँचेहु उन्ह कै मोह न माया।—तुलसी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उन्हानि					 : | स्त्री०=उन्हारि। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उन्हारि					 : | स्त्री० [सं० अनसार, हिं० अनुहार] १. बराबरी। समता। २. आकृति, रूप-रंग आदि में किसी के साथ होनेवाली समानता। ३. किसी के ठीक समान बनी हुई कोई दूसरी चीज़ या रूप। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उन्हारी					 : | स्त्री० [हिं० उन्हाला] रबी की फसल। (बुंन्देल०)। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उन्हाला					 : | पुं० [सं० उष्ण-काल] ग्रीष्म ऋतु। गरमी के दिन। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपंग					 : | पुं० [सं० उपांग] १. नसतरंग नाम का बाजा २. उद्वव के पिता का नाम। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपंगी					 : | वि० [सं० उपांग] जो उपंग या नसतरंग बजाता हो। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपंत					 : | वि० [सं० उत्पन्न, पा० उत्पन्न] उत्पन्न। पैदा। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उप-उप					 : | [सं०√पव्+क] एक संस्कृत उपसर्ग जो क्रियाओं और संज्ञाओं के पहले लगकर उनके अर्थों में अनेक प्रकार की विशेषताएँ उत्पन्न करता है। यथा-१. किसी की ओर या दिशा में। जैसे—उप-क्रमण, उपगमन। २. काल,रूप,मान,संख्या आदि के विचार से किसी के अनुरूप, लगभग या सदृश्य होने पर भी उससे कुछ घटकर, छोटी निम्न कोटि का या हलका। जैसे—उप-देवता, उप-धातु, उप-मंत्री, उप-विष, उपेंद्र (इंद्र का छोटा भाई)। ३. किसी के पास रहने या होनेवाला अथवा स्थित। जैसे—उप-कूप, उप-कूल, उप-तीर्थ। ४. कोई काम करने का विशिष्ट आयास,प्रकार या सामर्थ्य। जैसे—उपदेश, उपकार, उपार्जन। ५. किसी प्रकार की अधिकता या तीव्रता। जैसे—उप-तापन। ६. पूर्वता या प्राथमिकता। जैसे—उपज्ञा। ७. विस्तार या व्याप्ति। जैसे—उपकीर्ण। ८. अलंकारण या सजावट। जैसे—उपस्करण। ९. ऊपर की ओर होनेवाला। जैसे—उप-लेपन। आदि-आदि। विशेष—संस्कृत वैयाकरणों के अनुसार कभी-कभी यह आदेश, इच्छा, प्रयत्न, रोग, विनाश आदि के भावों से भी युक्त होता है। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपइया					 : | पुं०=उपाय।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उप-कंठ					 : | वि० [सं० अत्या० स०] जो समीप हो। पुं० १. सामीप्य। २. गाँव की सीमा के आसपास का स्थान। ३. घोड़े की सरपट चाल। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उप-कथन					 : | पुं० [सं० अत्या० स०] १. किसी के कथन के उत्तर के रूप में अथवा अपने पूर्व कथन की पुष्टि के लिए कही जानेवाली बात। जैसे—कथनोपथन। २. किसी कार्य, घटना, व्यक्ति आदि के संबंध में आलोचना या मत के रूप में कही या लिखी जानेवाली बात। टिप्पणी। (रिमार्क) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उप-कथा					 : | स्त्री० [सं० अत्या० स०] छोटी कथा या कहानी (विशेषतः किसी बड़ी कथा या कहानी के अन्तर्गत रहनेवाली)। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उप-कनिष्ठिका					 : | स्त्री० [सं० अत्या० स०] सबसे छोटी उँगली या कनिष्ठिका के पास की उँगली। अनामिका। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उप-कन्या					 : | स्त्री० [सं० अत्या० स०] कन्या या सखी की सहेली जो कन्या के समान ही मानी गई है। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उप-कर					 : | पुं० [सं० अत्या० स०] कुछ विशिष्ट स्थितियों में या कुछ विशिष्ट वस्तुओं पर लगनेवाला एक प्रकार का छोटा कर। (सेस)। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपकरण					 : | पुं० [सं० उप√कृ(करना)+ल्युट अन] १. वे वस्तुएँ जिनकी सहायता से कोई काम होता या चीज बनती हो। सामग्री। सामान। (मैटीरियल) २. वे चीजें या बातें जो किसी के अंगों, उपांगों आदि के रूप में आवश्यक हों। जैसे—प्राचीन भारत में छत्र, चँवर आदि राजाओं के उपकरण माने जाते थे। ३. कुछ बड़े और कई अंगों, उपांगों से युक्त वे औजार या यन्त्र जिनकी सहायता से कोई काम किया या चीजें बनाई जाती है। (इम्प्लीमेण्ट) जैसे—करघा, परेता आदि जुलाहों के और हल, पाटा आदि खेती के उपकरण हैं। ४. दे० ‘उपकार’। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपकरना					 : | स० [सं० उपकार] किसी के साथ उपकार या भलाई करना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपकर्णिका					 : | स्त्री० [सं० उप्√कर्ण (भेद करना)+ण्वुल्-टाप्, इत्व] जनश्रुति। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपकर्त्ता (तृ)					 : | पुं० [सं० उप√कृ(करना)+तृच्] १. दूसरों का उपकार या भलाई करनेवाला। २. अच्छे या उपकार के काम करनेवाला। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपकर्षण					 : | पुं० [सं० उप्√कृष् (खींचना)+ल्युट अन] अपनी ओर खींचना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपकल्प					 : | पुं० [सं० अत्या० स,०] १. धन-संपत्ति। २. सामग्री। सामान। ३. दे० ‘अनुकल्प’। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपकल्पन					 : | पुं० [सं० उप√कृप् (रचना करना)+ल्युट अन] कोई काम करने की तैयारी करना। (प्रिपरेशन) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपकल्पना					 : | स्त्री० [सं० उप√कृप्+णिच्+युच् अन टाप्] दे० ‘परिकल्पना’। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपकल्पित					 : | भू० कृ० [सं० उप√कृप्+क्त]=परिकल्पित। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपकार					 : | पुं० [सं० उप√कृ(करना)+घञ्] १. जीवों या प्राणियों के हित के लिए,उन्हें कष्ट, पीड़ा, संकट आदि से बचाने के लिए अथवा उनके सुख-सुभीते में वृद्धि करने के लिए किया जानेवाला कोई अच्छा या शुभ कार्य। ऐसा कार्य जिसमें दूसरों की भलाई हो। जैसे—दरिद्रों को धन देना, रोगियों की चिकित्सा करना आदि। २. कोई अच्छा या लाभदायक कार्य या फल। जैसे—इस दवा से बहुत उपकार हुआ है। ३. सेवा और सहायता। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपकारक					 : | वि० [सं० उप√कृ+ण्वुल्-अक] [स्त्री० उपकारिका] १. दूसरों का उपकार, भलाई या हित करनेवाला। २. (वस्तु) जिससे उपकार या भलाई होती हो। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपाकारिका					 : | स्त्री० [सं० उपकारक+टाप्, इत्व] १. राजभवन। २. खेमा। तम्बू। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपकारिता					 : | स्त्री० [सं० उपकारिन्+तल्-टाप्] उपकारी होने की अवस्था या भाव। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उपकारी (रिन्)					 : | वि० [सं० उप√कृ+णिनि] [स्त्री० उपकारिणी] १. दूसरों का उपकार, भलाई, या हित करनेवाला। २. फायदा पहुँचानेवाला। लाभदायक। जैसे—रोग के लिए उपकारी औषध। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपकार्य					 : | वि० [सं० उप√कृ+ण्यत्] जिसका उपकार किया जाने को हो अथवा किया जा सकता हो। उपकार का अधिकारी या पात्र। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपकीर्ण					 : | भू० कृ० [सं० उप√कृ+(बिखेरना)+क्त] १. छितराया या बिखेरा हुआ। २. ढका हुआ। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपकुर्वाण					 : | भू० कृ० [सं० उप√कृ+शानच्] वह ब्रह्मचारी जो स्वाध्याय पूरा करके गृहस्थाश्रम में प्रवेश कर रहा हो। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उप-कुल					 : | पुं० [सं० अत्या० स०] किसी कुल के अंतर्गत उसका कोई छोटा विभाग। (सब-फैमिली) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपकुल्या					 : | स्त्री० [सं० उप√कुल् (बंधन)+यत्, नि०] १. छोटी नहर। २. खाई। ३. पिप्पली। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उपकुश					 : | पुं० [सं० उप√कुश् (मिलना)+अच्] एक रोग जिसमें मसूड़े फूल जाते है और दाँत हिलने लगते हैं। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उप-कूल					 : | पुं० [सं० अव्य० स०] १. नदी आदि के कूल या तट के पास का स्थान। २. किनारा। तट। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उपकृत					 : | वि० [सं० उप√कृ(करना)+क्त] १. जिसका उपकार,भलाई या सहायता की गई हो। २. अपने प्रति किया हुआ उपकार माननेवाला। कृतज्ञ। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उपकृति					 : | स्त्री० [सं० उप√कृ+क्तिन्] १. उपकार। भलाई। २. सहायता। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उपकृती (तिन्)					 : | वि० [सं० उपकृत+इनि]=उपकारक। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उपक्रम					 : | पुं० [सं० उप√क्रम्(गति)+घञ्] १. चलकर किसी के पास पहुँचना। २. कोई कार्य आरंभ करने से पहले किया जाने वाला आयोजन। (प्रिपरेशन)। ३. भूमिका। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उपक्रमण					 : | पुं० [सं० उप√क्रम्+ल्युट-अन] १. चलकर पास आना। आगमन। २. किसी कार्य का अनुष्ठान। आरम्भ। ३. आयोजन। तैयारी। ४. ग्रन्थ आदि की भूमिका। ५. इलाज। चिकित्सा। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपक्रमणिका					 : | स्त्री० [सं० उपक्रमण+ङीष्+कन्-टाप्, हस्व] १. अनुक्रमणिका। २. वह वैदिक ग्रंथ जिसमें वेदों के मन्त्रों और सूक्तों के ऋषियों छंदों आदि का उल्लेख है। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपक्रमिता (तृ)					 : | वि० [सं० उप√क्रम+तृच्] उपक्रमण करनेवाला। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपक्रांत					 : | वि० [सं० उप√क्रम्+क्त] १. (कार्य) जो आरंभ किया जा चुका हो। २. (विषय) जिसकी पहले चर्चा हो चुकी हो। ३. (व्यक्ति) जिसकी चिकित्सा हो चुकी हो। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपक्रिया					 : | स्त्री० [सं० उप√कृ+श, इयङ्ट-टाप्] उपकार। भलाई। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उपक्रोश					 : | पुं० [सं० उप√कुश्+घञ्] [वि० उपकुष्ट] १. गाली। दुर्वचन। २. अपवाद। निन्दा। ३. तिरस्कार। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपक्रोष्टा (ष्ट्र)					 : | वि० [सं० उप√कुश् (शब्द करना)+तृच्] उपक्रोश करनेवाला। पुं० गधा। गर्दभ। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपक्षय					 : | पुं० [सं० उप√क्षि(नाश)+अच्] क्रमशः थोड़ा या धीरे-धीरे होनेवाला क्षय़। ह्स। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपक्षेप					 : | पुं० [सं० उप√क्षिप् (प्रेरणा)+घञ्] १. अभिनय के आरंभ में नाटक के वृत्तान्त का संक्षिप्त कथन। २. किसी काम या ठेका पाने के लिए उसके व्यय के विवरण सहित दिया जानेवाला आवेदन-पत्र। (टेण्डर) ३. दे०‘आक्षेप’। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उपखंड					 : | पुं० [सं० अत्या० स०] १. किसी खंड का कोई छोटा खंड या टुकड़ा। २. किसी धारा या उपधारा के अंश या खंड का कोई छोटा विभाग। (सब-क्लाँज) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपखान					 : | पुं० ‘उपाख्यान’।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपगंता					 : | पुं० [सं० उप√गम् (जाना)+तृच्] १. चलकर पास पहुँचनेवाला। २. मान्य या स्वीकृत करनेवाला। ३. जानकार। ज्ञाता। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपगत					 : | वि० [सं० उप√गम्+क्त] १. जो किसी के पास (प्रायः सहायता या शरण पाने के लिए) पहुँचा हो। २. जाना हुआ। ज्ञात। ३. अंगीकृत, गृहीत या स्वीकृत। ४. व्यय आदि के रूप में अपने ऊपर आया या लगा हुआ। (इन्कर्ड) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपगति					 : | स्त्री० [सं० उप√गम्+क्तिन्] १. किसी के पास जाने या पहुँचने की क्रिया या भाव। २. प्राप्ति। ३. स्वीकृति। ४. ज्ञान। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपगम					 : | पुं० [सं० उप√गम्+अप्] १. किसी के पास या समीप जाना। कहीं पहुँचना। २. भेंट करना। ३. प्राप्त या स्वीकृत करना। ४. वचन। वादा। ५. ज्ञान। जानकारी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपगमन					 : | पुं० [सं० उप√गम्+ल्युट-अन] १. पास जाने या पहुँचने की क्रिया या भाव। २. अंगीकार। स्वीकार। ३. प्राप्ति। लाभ। ४. ज्ञान। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपगामी (मिन्)					 : | वि० [सं० उप√गम्+णिनि] उपगमन करनेवाला। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपगार					 : | पुं०=उपकार।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उप-गिरि					 : | पुं० [सं० अव्य० स०] बड़े पहाड़ के आस-पास का वह बाहरी भाग जहाँ से उसकी चढ़ाई आरंभ होती है। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उप-गीति					 : | स्त्री० [सं० अत्या०स०] आर्या छन्द का एक भेद जिसके सम चरणों में १5-१5 और विषम चरणों में १२-१२ मात्राएँ होती हैं। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपगूहन					 : | पुं० [सं० उप√गुह् (छिपाना)+ल्युट-अन] १. छिपाना। २. गले लगाना। आलिंगन। ३. अनोखी घटना घटित होना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपग्रह					 : | पुं० [सं० उप√ग्रह(पकड़ना)+अप्] १. धरा या पकड़ा जाना। २. कैदी। बंदी। ३. कारावास। ४. [अत्या० स०] वह छोटा ग्रह जो किसी बड़े ग्रह की परिक्रमा करता हो। जैसे—चन्द्रमा हमारी पृथ्वी का उपग्रह है। ५. आज-कल कोई ऐसा यान्त्रिक गोला या पिड़ जो चन्द्रमा, पृथ्वी, सूर्य अथवा और किसी ग्रह की परिक्रमा करने के लिए आकाश में छोड़ा जाता है। (सैटेलाइट, उक्त दो अर्थों के लिए) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपग्रहण					 : | [सं० उप√ग्रह+ल्युट-अन] १. धरना या पकड़ना। २. अच्छी तरह हथेली या हाथ में लेना। ३. संस्कारपूर्वक वेदों का अध्ययन करना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपग्रह-संधि					 : | स्त्री० [सं० मध्य० स०] ऐसी संधि जो अपना सब कुछ देकर अपनी प्राणरक्षा के लिए की जाए। (कौं०) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपघात					 : | पुं० [सं० उप√हन् (हिंसा)+घञ्] [कर्त्ता, उपघातक, वि० उपघाती] १. आघात। धक्का। २. हानि पहुँचाना। ३. इंद्रियों का अपने कार्य करने के लिए योग्य न रह जाना। अशक्तता। ४. रोग। व्याधि। ५. उपद्रव। ६. स्मृति के अनुसार पाँच पातकों का समूह। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपघातक					 : | वि० [सं० उप√हन्+ण्वुल्-अक] १. उपघात या घात करनेवाला। २. पीड़क। ३. नाशक। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपघाती (तिन्)					 : | वि० [सं० उप√हन्+णिनि] १. उपघात करनेवाला। २. दूसरों को हानि पहुँचानेवाला। ३. पीड़क। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपध्न					 : | पुं० [सं० उप√हन्+क] १. सहारा। २. शरण-स्थान। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उप-चक्षु (स्)					 : | पुं० [सं० अत्या० स०] लाक्षणिक अर्थ में ऐनक या चश्मा। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपचना					 : | अ० [सं० उपचय] १. उन्नत होना। बढ़ना। २. अन्दर पूरी तरह से भर जाने के कारण बाहर निकलना। फूट-पड़ना। उमड़ना। उदाहरण—जीवन वियोगिन को मेघ अँचयो सो किधौं उपच्यौ पच्यौं नउर ताप अधिकाने में।—रत्ना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपचय					 : | पुं० [सं० उप√चि (चयन करना)+अच्] १. एकत्र या संचित करना। चयन। २. ढेर। राशि। ३. उत्सेध। ऊँचाई। ४. उन्नति। बढ़ती। समृद्धि। ५. जन्म-कुंडली में लग्न से तीसरा, छठा, दसवाँ या ग्यारहवाँ स्थान। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपचर					 : | पुं० [सं० उप√चर् (गति)+अच्] उपचार। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपचरण					 : | पुं० [सं० उप√चर्(गति)+ल्युट-अन] १. किसी के पास जाना या पहुँचना। २. पूजा। सेवा। ३. उपचार करना। ४. आये हुए व्यक्ति का अच्छी तरह आदर-सत्कार करना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपचरण					 : | स०=उपचारना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपचरित					 : | भू० कृ० [सं० उप√चर्+क्त] १. जिसका उपचार किया गया हो। २. जिसकी पूजा या सेवा की गई हों। ३. लक्षणों से जाना हुआ। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उप-चर्म (न्)					 : | पुं० [सं० अत्या० स०] त्वचा का ऊपरी या बाहरी भाग। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपचर्या					 : | स्त्री० [सं० उप√चर्+क्वप्-टाप्] =उपचार। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपचायी (यिन्)					 : | वि० [सं० उप√चाय(वृद्धि)+णिनि] १. उपचय करनेवाला। २. उन्नति या वृद्धि करनेवाला। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपचार					 : | पुं० [सं० उप√चर्+घञ्] [वि० औपचारिक] १. किसी के पास रहकर, सेवा आदि के द्वारा उसे सुखी और संतुष्ट करना। २. उत्तम आचरण और व्यवहार। ३. रोगी के पास रहकर उसे अच्छे करने के लिए किये जानेवाले कार्य। जैसे—चिकित्सा, सेवा-शश्रूषा आदि। ४. लोक-व्यवहार में ऐसा आचरण या काम जो आवश्यक, उचित और प्रशस्त होने पर भी केवल दिखाने अथवा नियम, परिपाटी आदि का पालन करने के लिए किया जाय। (फाँरमैलिटी) ५. रसायन, वैद्यक आदि के क्षेत्रों में, वह क्रिया या प्रक्रिया जो कोई चीज ठीक या शुद्ध करके उसे काम में लाने के योग्य बनाने के समय की जाती है। (ट्रीटमेण्ट) जैसे—औषधियों, धातुओं आदि का उपचार। ६. धार्मिक क्षेत्र में, (क) पूजन के अंग और विधान। आवाहन, मधुपर्क, नैवेद्य परिक्रमा, वन्दना आदि। (ख) छूआछूत का विचार। ७. तान्त्रिक क्षेत्र में, किसी विशिष्ट उद्देश्य की सिद्धि के लिए किया जानेवाला कोई अनुष्ठान या कृत्य। अभिचार। जैसे—उच्चाटन, मारण, मोहन आदि। ८. खुशामद। चाटुता। ९. घूस। रिश्वत। १. व्याकरण में एक प्रकार की संधि जिसमें विसर्ग के स्थान पर श या स हो जाता है। जैसे—निःचल से निश्चल या निःसार से निस्सार। ११. दे० उपचरण। (आदर-सत्कार ) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपचारक					 : | वि० [सं० उप√चर्+ण्वुल्-अक] [स्त्री० उपचारिका] १. उपचार करनेवाला। २. चिकित्सा और सेवा-शुक्षूषा करनेवाला। ३. विधान करने या बतलानेवाला। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपचार-च्छल					 : | पुं० [सं० तृ० त०] तर्क या न्याय में, किसी की कही हुई बात का अभिप्रेत, ठीक या प्रासंगिक अर्थ छोड़कर केवल तंग करने के लिए अपनी ओर से किसी नये या भिन्न अर्थ की कल्पना करके उस बात में दोष निकालना। जैसे—यदि कोई कहे-‘ये नवद्वीप से आये हैं’। तो यह कहना-‘वाह ये जिस द्वीप से आये है, वह नया कैसे हैं’। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपचारना					 : | स० [सं० उपचार] १. रोगी का उपचार या सेवा-शुक्षूषा करना। २. अनुष्ठान या विधान करना। ३. औपचारिक रूप से कोई काम करना। ४. आदर-सम्मान या पूजन करना। उदाहरण—भरत हमहिं उपचार न थोरा।—तुलसी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपचारात्					 : | क्रि० वि० [सं० विभक्ति प्रतिरूपक अव्यय] १. नियम, परिपाटी आदि के पालन के रूप में। २. केवल दिखावे या रसम आदा करने के रूप में। (फॉर्मली)। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपचारी (रिन्)					 : | वि० [सं० उप√चर्+णिनि] १. उपचार अर्थात् चिकित्सा तथा सेवा-शुक्षूषा करनेवाला। २. (काम) जो औपचारिक रूप से किया जाय। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपचार्य					 : | वि० [सं० उप√चर्+ण्यत्] (रोग या रोगी) जिसका उपचार होने को हो या किया जा सके। पुं० चिकित्सा। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपचित					 : | भू० कृ० [सं० उप√चि+क्त] १. इकट्ठा किया हुआ। संचित। संगृहीत। २. अच्छी तरह से खिला, फूला या बढ़ा हुआ। विकसित। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपचिति					 : | स्त्री० [सं० उप√चि+क्तिन्] १. उपचित होने की अवस्था या भाव। २. ढेर। राशि। ३. संचय। ४. बढ़ती। वृद्धि। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपचित्र					 : | पुं० [सं० अत्या० स०] एक वर्णार्द्ध समवृत्त जिसके विषम चरणों में तीन सगण, एक लघु और एक गुरु तथा सम चरणों में तीन भगण और दो गुरु होते हैं। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपचित्रा					 : | स्त्री० [सं० उपचित्र+टाप्] १. दन्ती वृक्ष। २. मूसाकानी का पौधा। ३. चित्रा नक्षत्र के पास के नक्षत्र हस्त और स्वाती। ४. १6 मात्राओं का एक छन्द। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उप-चेतन					 : | पुं० [प्रा० स०] आधुनिक मनोविज्ञान में वह अवस्था जिसमें अनुभवों, व्यवहारों आदि की पूरी और स्पष्ट चेतना या ज्ञान नहीं होता केवल अस्पष्ट या धूमिल चेतना या ज्ञान होता है। (सब-कॉन्शस) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उप-चेतना					 : | स्त्री० [सं० अत्या० स०] ऊपरी चेतना के भीतरी भाग या अन्तःकरण में स्थित चेतना। अंतःसंज्ञा। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपचेय					 : | वि० [सं० उप√चि+यत्] जो उपचय (चयन) के योग्य हो अथवा जिसका उपचय या चयन किया जाने को हो। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपच्छन्न					 : | वि० [उप√छद्+क्त] ढका या छिपाया हुआ। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपच्छद					 : | पुं० [सं० उप√छद्(ढकना)+णिच्+घ, ह्रस्व] १. परदा। २. चादर। ३. ढक्कन। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपच्छाया					 : | स्त्री० [सं० अत्या० स०] किसी वस्तु की मूल छाया के अतिरिक्त इधर-उधर पड़नेवाली उसकी कुछ आभा या हलकी काली झलक,जैसी ग्रहण के समय चंद्रमा या पृथ्वी की मुख्य छाया के अतिरिक्त दिखाई देती है। (पेनम्ब्रा) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपज					 : | स्त्री० [हिं० उपजना] १. वह जो उपजा या बनकर तैयार हुआ हो। २. पैदावार। (प्रोडक्शन) जैसे—कारखाने या खेत की उपज। ३. मन की कोई नई उद्भावना या सूझ। ४. संगीत में गाई जानेवाली चीज की सुंदरता बढ़ाने के लिए उसमें बँधी हुई तानों के सिवा कुछ नई तानें, स्वर आदि अपनी ओर से मिलाना। ५. सोचने या विचारने की शक्ति। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपजगती					 : | स्त्री० [सं० अत्या० स०] एक प्रकार का छन्द या वृत्त। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपजत					 : | स्त्री०=उपज।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपजनन					 : | पुं० [सं० उप√जन्+ल्युट-अन] १. उत्पादन। २. प्रजनन। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपजना					 : | अ० [सं० उपजन्, प्रा० उपज्जइ] १. उत्पन्न होना। जन्म लेना। उदाहरण—बूड़ा बंस कबीर का कि उपजा पूत कमाल।—कबीर। २. अंकुर निकलना या फूटना। उगना। ३. कोई नई बात सूझना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपजाऊ					 : | वि० [हिं० उपज+आऊ (प्रत्यय] १. (भूमि) जिसमें अधिक मात्रा में उत्पन्न करने की शक्ति हो। उर्वरता। (फटाईल) २. कृषि के लिए उपयुक्त। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपजाऊ-पन					 : | पुं० [हिं० उपजाऊ+पन (प्रत्यय)] भूमि की वह शक्ति जिससे उसमें फसल आदि उत्पन्न होती है। उर्वरता। (प्रॉडक्टिविटी) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपजात					 : | वि० [सं० उप√जन् (उत्पत्ति)+क्त] जो उत्पन्न हुआ हो। पुं० दे० ‘उपसर्ग’। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपजाति					 : | स्त्री० [सं० उप√जन्+क्तिन्] इन्द्रवज्रा और उपेन्द्रवज्रा तथा इन्द्रवंशा और वंशस्थ के मेल से बने हुए वृत्तों का वर्ग। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपजाना					 : | स० [हिं० उपजना का स० रूप] १. उत्पन्न या पैदा करना। २. उगाना। ३. कोई नई बात ढूँढ़ निकालना। जैसे—बातें उपजाना० ४. किसी के मस्तिष्क में कोई विचार धारा प्रवाहित करना। सुझाना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपजीवक					 : | वि० [सं० उप√जीव् (जीना)+ण्वुल्-अक] =उपजीवी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपजीवन					 : | पुं० [सं० उप√जीव्+ल्युट-अन] १. जीविका। रोजी। २. ऐसा जीवन जो दूसरों के सहारे चलता हो। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उप-जीविका					 : | स्त्री० [सं० अत्या० स०] आय के मुख्य साधन के अतिरिक्त और कोई गौण साधन। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपजीवी (विन्)					 : | वि० [सं० उप√जीव्+णिनि] [स्त्री० उपजीविनी] दूसरे के सहारे जीवन बिताने-वाला। दूसरों पर निर्भर रहनेवाला। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपजीव्य					 : | वि० [सं० उप√जीव्+ण्यत्] जिसके आधार पर उपजीवन चलता हो या चल सकता हो। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपज्ञा					 : | स्त्री० [सं० उप√ज्ञा (जानना)+अङ्-टाप्] १. प्राचीन भारत में, वह बुद्धिपरक प्रयत्न जो दिग्गज विद्वान अपने मौलिक चिन्तन से नये-नये शास्त्रों की उद्भावना के लिए करते थे। २. चिंतन द्वारा किसी चीज या बात का पता लगाना। ३. कार्य करने का कोई ऐसा नया ढंग निकालना अथवा कोई नया औजार या यन्त्र बनाना जिसका पता पहले किसी को न रहा हो। नई चीज या साधन निकालना। (इन्वेंशन) | 
			
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				| उपज्ञात					 : | पुं० [सं० उप√ज्ञा+क्त] प्राचीन भारत में किसी विशिष्ट आचार्य की उपज्ञा से आविर्भूत होनेवाला कोई नया ग्रंथ, विषय या साहित्य। भू० कृ० जिसका आविर्भाव उपज्ञा के द्वारा हुआ हो। (इन्वेंटिड) | 
			
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				| उपज्ञाता (तृ)					 : | पुं० [सं० उप√ज्ञा (जानना)+तृच्] वह जिसने उपज्ञा के द्वारा कोई नई बात या चीज ढूँढ़ निकाली हो। (इन्वेंटर) | 
			
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				| उपटन					 : | पुं० [हिं० उपटना] शरीर पर उत्पन्न होनेवाला आघात आदि का चिन्ह्र निशान या साँट। पुं० दे० ‘उबटन’। | 
			
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				| उपटना					 : | अ० [सं० उत्+पत्, उत+पट्, प्रा० उप्पट, उप्पड, गुं० उपडवूँ, सिं० उपटणु, मरा० उपट(णें)] १. शरीर पर आघात आदि का चिन्ह, दाग या निशान पड़ना। २. उखड़ना। ३. उभरना। | 
			
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				| उपटा					 : | पुं० [सं० उत्पतन=ऊपर आना] १. पानी की बाढ़। २. ठोकर।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उपटाना					 : | स० [सं० उत्पाटन] १. उखाड़ना। २. उखड़वाना। स० [हिं० उबटन] उबटन लगवाना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उपटारना					 : | स० [सं० उत्पाटन] १. किसी का मन कहीं से हटाना। उच्चाटन करना। २. उठाना। | 
			
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				| उपड़ना					 : | अ० [सं० उत्पटन] १. उखड़ना। २. दे० उपटना। ३. इस प्रकार प्रत्यक्ष या स्पष्ट होना कि दिखाई दे या समझ में आ सके। जैसे—चिट्ठी उपड़ना=चिट्ठी का पढ़ा जाना। | 
			
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				| उपढौकन					 : | पुं० [सं० उप√ढौंक(भेंट देना)+ल्युट] १. उपहार। भेंट। २. रिश्वत। | 
			
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				| उपतापन					 : | पुं० [सं० उप√तप्+णिच्+ल्युट-अन] [वि० उपतापी] १. अच्छी तरह से गरम करना या तपाना। २. कष्ट पहुँचाना। | 
			
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				| उपत्यका					 : | स्त्री० [सं० उप+त्यकन्-अन] पर्वत के पास की नीची भूमि या प्रदेश। तराई। | 
			
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				| उपदंश					 : | पुं० [सं० उप√दंश् (डँसना)+घञ्] १. दुष्ट मैथुन से उत्पन्न होनेवाला इन्द्रिय सम्बन्धी एक रोग। २. आतशक या गरमी नाम का रोग। | 
			
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				| उपदंशी (शिन्)					 : | वि० [सं० उपदंश+इनि] जिसे उपदंश (रोग) हुआ हो। | 
			
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				| उपदरी					 : | वि०=उपद्रवी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उपदर्शक					 : | पुं० [सं० उप√दृश्(देखना)+ण्वुल्-अन] १. पथ या मार्ग दिखलानेवाला। २. द्वारपाल। ३. साक्षी। | 
			
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				| उपदर्शन					 : | पुं० [सं० उप√दृश्+ल्युट-अन] १. दिखलाने या प्रदर्शन करने की क्रिया या भाव। २. अच्छी तरह बतलाना या समझाना। ३. टीका या व्याख्या करना। | 
			
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				| उपदा					 : | स्त्री० [सं० उप√दा (देना)+अङ्-टाप्] १. किसी बड़े अधिकारी को दी जानेवाली भेंट। २. रिश्वत। | 
			
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				| उप-दान					 : | पुं० [सं० अत्या० स०] १. भेंट। २. किसी कर्मचारी को अवकाश ग्रहण करने के समय उनकी लंबी सेवा के बदले में दिया जानेवाला धन। (ग्रेचुइटी) | 
			
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				| उपदि					 : | क्रि० वि० [?] १. अपनी इच्छा से। २. मनमाने ढंग से। उदाहरण—किधौं उपदि बरयो है यह सोभा अभिरत हौ।—केशव। | 
			
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				| उप-दित्सा					 : | स्त्री० [सं० अत्या० स०] वसीयतनामे के अन्त में परिशिष्ट के रूप में लिखा हुआ वह संक्षिप्त लेख जिसमें किसी बात या विषय का स्पष्टीकरण हो। | 
			
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				| उप-दिशा					 : | स्त्री० [सं० अत्या० स०] दो दिशाओं के बीच की दिशा। कोण। विदिशा। | 
			
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				| उपदिष्ट					 : | वि० [सं० उप√दिश् (बताना)+क्त] १. (व्यक्ति) जिसे उपदेश दिया गया हो। सिखलाया हुआ। २. (बात या विषय) जो उपदेश के रूप में कहा या बतलाया गया हो। | 
			
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				| उप-देव					 : | पुं० [सं० अत्या० स०] गौण या छोटा देवता। जैसे—गंधर्व, भूत, यक्ष आदि। | 
			
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				| उप-देवता					 : | पुं०=उपदेव। | 
			
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				| उपदेश					 : | पुं० [सं० उप√दिश्+घञ्] १. किसी को अच्छी दिशा में ले जाने के लिए अच्छी बात बतलाना। २. बड़ों या विद्वानों का लोगों को धर्म या नीति संबंधी अच्छी-अच्छी बातें बतलाना। लोगों को अच्छे आचरण तथा व्यवहार सिखाने के लिए कही जानेवाली बात या बातें। ३. निर्देश। ४. आज्ञा। ५. वह तत्त्व की बात जो गुरु किसी को अपना शिष्य बनाने के समय बतलाया है। गुरु-मन्त्र। | 
			
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				| उपदेशक					 : | पुं० [सं० उप√दिश्+ण्वुल्-अक] [स्त्री० उपदेशिका] १. वह व्यक्ति जो दूसरों को उपदेश देता हो। २. शिक्षक। ३. आजकल वह व्यक्ति जो किसी विशिष्ट धर्म या मत का प्रचार करने के लिए जगह-जगह घूमकर व्याख्यान आदि देता हो। जैसे—आर्य समाज या सनातन धर्म का उपदेशक। | 
			
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				| उपदेशन					 : | पुं० [सं० उप√दिश्+ल्युट-अन] उपदेश देने की क्रिया या भाव। | 
			
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				| उपदेशना					 : | स्त्री० [सं० उप√दिश्+णिच्+युच्-अन-टाप्] उपदेश के रूप में कही जानेवाली बात। उपदेश। | 
			
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				| उपदेश्य					 : | वि० [सं० उप√दिश्+ण्यत्] १. (व्यक्ति) जो उपदेश पाने का अधिकारी या पात्र हो। २. (विषय) जो उपदेश के योग्य हो। | 
			
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				| उपदेष्टा (ष्ट्र)					 : | पुं० [सं० उप√दिश्+तृच्] वह जो उपदेश देता हो। उपदेशक। | 
			
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				| उपदेस					 : | पुं०=उपदेश।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उपदेसना					 : | स० [सं० उपदेश+(प्रत्यय)] उपदेश करना या देना। लोगों को अच्छी-अच्छी बातें बतलाना। | 
			
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				| उपदोह					 : | पुं० [सं० उप√दुह्(पूर्ण करना)+घञ्] १. गाय की छीमी या स्तन। २. वह पात्र जिसमें दूध दुहा जाए। | 
			
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				| उपद्रव					 : | पुं० [सं० उप√द्रु(गति)+अप्] १. कोई कष्टप्रद या दुःखद घटना। दुर्घटना। २. उत्पात, ऊधम या हलचल मचाना। जैसे—बन्दरों या बच्चों का उपद्रव। ३. दंगा। फसाद। ४. किसी मुख्य रोग के बीच में होनेवाला दूसरा विकार। | 
			
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				| उपद्रवी (विन्)					 : | वि० [सं० उपद्रव+इनि] १. उपद्रव या उत्पात करने या मचानेवाला। २. नटखट। ३. फसादी। शरारती। | 
			
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				| उपद्रुष्टा (ष्ट्र)					 : | पुं० [सं० उप√दृश्+तृच्] १. वह जो दृश्य आदि देख रहा हो। २. निरीक्षण करनेवाला। ३. गवाह। साक्षी। | 
			
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				| उपद्रुत					 : | भू० कृ० [सं० उप√द्रु+क्त] जो किसी प्रकार के उपद्रव से पीड़ित हो। सताया हुआ। | 
			
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				| उप-द्वार					 : | पुं० [सं० अत्या० स०] द्वार या दरवाजे के पास कोई छोटा द्वार। | 
			
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				| उप-द्वीप					 : | पुं० [सं० अत्या० स०] छोटा द्वीप या टापू। | 
			
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				| उपधरना					 : | अ० [सं० उपधारण=अपनी ओर खींचना] १. ग्रहण या स्वीकार करना। २. शरण में लेना। | 
			
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				| उप-धर्म					 : | पुं० [सं० अत्या० स०] किसी धर्म के अंतर्गत या उसके साथ लगा हुआ कोई दूसरा गौण या छोटा धर्म। | 
			
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				| उपधा					 : | स्त्री० [सं० उप√धा (धारण करना)+अङ्-टाप्] [वि० औपधिक] १. किसी की निष्ठा, सत्यता आदि की परीक्षा लेना, विशेषतः राजा का अपने पुरोहित, मंत्री आदि की परीक्षा लेना। २. व्याकरण में किसी शब्द के अन्मित अक्षर के पहले का अक्षर। ३. कपट। छल। ४. आज-कल, आपराधिक रूप से वास्तविकता या सत्य को छिपाते हुए दूसरों की धन-संपत्ति, विधिक अधिकार आदि प्राप्त करने के लिए झूठीं बातें बनाना, बतलाना या प्रचारित करना। जालसाजी। (फॉड)। विशेष—यह कपट और छल का एक उत्कट और विशिष्ट प्रकार तथा विधिक दृष्टि से दण्डनीय अपराध है। | 
			
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				| उप-धातु					 : | स्त्री० [सं० अत्या० स०] १. ऐसी धातु जो मुख्य धातुओं से बढ़कर या निम्नकोटि की मानी गई हो। ये संख्या में सात कही गई हैं। यथा-स्वर्णमाक्षिक, तारमाक्षिक, तूतिया, काँसा, पित्तल, सिंदूर और शिलाजंतु। २. शरीर में रक्त आदि धातुओं से बने हुए दूध, चरबी, पसीना आदि छः पदार्थ। | 
			
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				| उपधान					 : | पुं० [सं० उप√धा+ल्युट-अन] १. ऊपर रखना या ठहराना। २. वह वस्तु जिसपर कोई चीज रखी जाय। ३. तकिया, विशेषतः पक्षियों के परों से भरा हुआ तकिया। ४. यज्ञ की वेदी की ईंटें रखते समय पढ़ा जानेवाला मन्त्र। ५. प्रेम। प्रणय। ६. विशेषता। | 
			
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				| उपधानी					 : | स्त्री० [सं० उपधान+ङीष्] १. पैर रखने की छोटी चौकी। २. तकिया। ३. गद्दा। | 
			
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				| उपधायी (यिन्)					 : | वि० [सं० उप√धा+णिनि] १. आश्रय या सहारा लेनेवाला। २. तकिया लगानेवाला। | 
			
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				| उपधारण					 : | पुं० [सं० उप√धृ (धारण करना)+णिच्+ल्युट-अन] १. नीचे रखना या उतारना। २. ऊपर रखी हुई वस्तु को लग्गी आदि से खींचना। | 
			
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				| उप-धारा					 : | स्त्री० [सं० अत्या० स०] नियम, विधान आदि में किसी धारा का कोई छोटा अंग या विभाग। (सब सेक्शन)। | 
			
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				| उपधावन					 : | वि० [सं० उप√धाव् (गति)+ल्यु-अन] १. पीछे-पीछे चलनेवाला। २. अनुगामी। अनुयायी। पुं० [उप√धाव्+ल्युट-अन] १. तेजी से किसी का पीछा करना। २. चिन्तन या विचार करना। | 
			
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				| उपधि					 : | पुं० [सं० उप√धा+कि] १. छल-कपट। जालसाजी। २. (मुकदमे में) सच्ची बात छिपाकर इधर-उधर की बातें कहना। ३. धमकी। ४. गाड़ी का पहिया। ५. आधार। नींव। (बौद्ध)। | 
			
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				| उपधिक					 : | वि० [सं० उपधा+ठन्-इक] छलकपट या जालसाजी करनेवाला। धोखेबाज। | 
			
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				| उपधूपित					 : | वि० [सं० उप√धूप् (दीप्ति, ताप)+क्त] १. धूप आदि से सुगंधित किया हुआ। २. मरणा-सन्न। ३. दुःखी। पीड़ित। | 
			
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				| उपधूमित					 : | वि० [सं० उपधूम, प्रा० स०+इतच्] जिस पर धूँआ लगाया गया हो। पुं० फलित ज्योतिष में, एक अशुभ योग जिसमें यात्रा आदि वर्जित है। | 
			
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				| उपधृति					 : | स्त्री० [सं० उप√धृ(धारण करना)+क्तिन्] प्रकाश की किरणें। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उपध्मान					 : | पुं० [सं० उप√ध्मा (शब्द)+ल्यु-अन] १. फूँकने की क्रिया या भाव। २. होंठ। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उपध्मानीय					 : | वि० [सं० उप√ध्या+अनीयर] उपध्मान-संबंधी। पुं० व्याकरण में, वह विसर्ग जिसका उच्चारण ‘प’ और ‘फ’ वर्णों से पहले होता है। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उपध्वस्त					 : | भू० कृ० [सं० उप√ध्वंस् (नाश)+क्त] १. ध्वस्त। २. पतति। | 
			
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				| उप-नंद					 : | पुं० [सं० अत्या० स०] १. नंद के छोटे भाई का नाम। २. मदिरा के गर्भ से उत्पन्न वसुदेव का एक पुत्र। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उप-नक्षत्र					 : | पुं० [सं० अताय० स०] छोटा या गौण नक्षत्र। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उप-नख					 : | पुं० [सं० अत्या० स०] नख या नाखून में होनेवाला गलका नामक रोग। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उप-नगर					 : | पुं० [सं० अत्या० स०] नगर के आस-पास बसा हुआ बाहरी भाग। (सबर्ब) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपनत					 : | भू० कृ० [सं० उप√नम् (झकुना)+क्त] १. झुकने हुआ। २. शरण में आया हुआ। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उपनति					 : | स्त्री० [सं० उप√नम्+क्तिन्] १. झुकने की क्रिया या भाव। २. नमस्कार। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उप-नदी					 : | स्त्री० [सं० अत्या० स०] किसी बड़ी नदी में मिलनेवाली कोई छोटी या सहायक नदी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उपनद्ध					 : | वि० [सं० उप√नह् (बन्धन)+क्त] १. कसकर बँधा हुआ। २. नाथा या नधा हुआ। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उपनना					 : | अ० [सं० उत्पन्न] उत्पन्न या पैदा होना। उपजना। स० [सं० उपनयन] १. उदाहरण देना। २. उपमा देना या तुलना करना।उदाहरण—कुटिल-भुकुटि, सुख की निधि आनन कलकपोल छबिन उपनियाँ। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उपनय					 : | पुं० [सं० उप√नी (ले जाना)+अच्] १. किसी की ओर या किसी के पास ले जाना। २. अपनी ओर लाना या अपने पास बुलाना। ३. बालक को गुरू के पास ले जाना। ४. उपनयन संस्कार। जनेऊ। यज्ञोपवीत। ५. न्याय में, वाक्य के चौथे अवयव का नाम। इसमें उदाहरण देकर उस उदाहरण के धर्म को फिर उपसंहार रूप से साध्य में घटाया जाता है। ६. अपने पक्ष का समर्थन करने या इसी प्रकार और किसी काम के लिए किसी उक्ति, सिद्धांत, विधि आदि का उल्लेख या कथन करना। उद्वरण। (साइटेशन) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उपनयन					 : | पुं० [सं० उप√नी+ल्यु-अन] [वि० उपनीत] वह संस्कार जिसमें बच्चों को यज्ञोपवीत पहनाकर ब्रह्मचर्य आश्रम में प्रविष्ट कराया जाता है। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उपना					 : | अ० [सं० उत्पन्न] १. उत्पन्न होना। पैदा होना। २. जन्म धारण करना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उपनागरिका					 : | स्त्री० [सं० अत्या० स०] साहित्य में, गद्य या पद्य लिखने की एक शैली जिसमें ट ठ ड ढ वर्णों को छोड़कर केवल मधुर वर्ण आते हैं। इसमें छोटे-छोटे और बहुत थोड़े समास होते हैं। काव्य में यह वृत्यनुप्रास का एक भेद माना गया है। यथा-रघुनंद आनँद कंद कौशलचन्द्र दशरथ नन्दनम्।—तुलसी। | 
			
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				| उपनाना					 : | स० [हिं० उपनना] उपजाना। पैदा करना। उदाहरण—अल्ला एक नूर उपनाया, ताकी कैसी निन्दा।—कबीर। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उप-नाम (न्)					 : | पुं० [सं० अत्या० स०] १. किसी व्यक्ति का उसके वास्तविक नाम से भिन्न कोई दूसरा ऐसा प्रसिद्ध नाम जो उसके माता-पिता आदि ने लाड़-प्यार से रखा होता है। जैसे—शीतलाप्रसाद उपनाम राजा भइया। २. किवियों, लेखकों आदि का स्वयं रखा हुआ दूसरा नाम जिससे वे साहित्यिक जगत् में प्रसिद्ध होते हैं। छाप० जैसे—पं० अयोध्यासिंह उपाध्याय का उपनाम हरिऔध तथा श्री जगन्नाथ का उपनाम ‘रत्नाकर’ था। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उप-नायक					 : | पुं० [सं० अत्या० स०] [स्त्री० उपनायिका] नाटकों या कथा-कहानियों में नायक का साथी जो उसके उद्देश्य की सिद्धि में सहायक होता है। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उपनायन					 : | पुं०=उपनयन। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उपनाह					 : | पुं० [सं० उप√नह्+घञ्] १. वीणा या सितार की वह खूँटी जिससे तार बाँधे जाते है। २. फोडे़ या घाव पर लगने वाला लेप। मलहम। ३. प्रलेप। ४. आँख का बिलनी नामक रोग। ५. गाँठ। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपनिक्षेप					 : | पुं० [सं० उप-नि√क्षिप् (प्रेरणा)+घञ्] किसी के पास बाँधकर तथा मुहरबन्द करके रखी जानेवाली धरोहर। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उपनिधाता (तृ)					 : | पुं० [सं० उप-नि√धा (धारण, रखना)+तृच्] किसी के पास अपनी चीज धरोहर रखनेवाला। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपनिधान					 : | पुं० [सं० उप-नि√धा+ल्युट-अन] किसी के पास अपनी चीज धरोहर रखना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपनिधायक					 : | वि० [सं० उप-नि√धा+ण्वुल्-अक] =उपनिधाता। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपनिधि					 : | स्त्री० [सं० उप-नि√धा+कि] १. अमानत। धरोहर। २. मुहरबंद जमानत। किसी के पास रखी जानेवाली विशेषतः मुहरबंद धरोहर। | 
			
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				| उपनिपात					 : | पुं० [सं० उप-नि√पत्(गिरना)+घञ्] १. अचानक पास आना। एकाएक आ पहुँचना। २. अचानक होनेवाला आक्रमण। ३. अग्नि,वर्षा,चोर आदि के कारण होनेवाली धन-हानि। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उप-निबंधक					 : | पुं० [सं० अत्या० स०] वह अधिकारी जो निबंधक के सहायक रूप में उसके अधीन रहकर काम करता है। (सब-रजिस्ट्रार) | 
			
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				| उप-नियम					 : | पुं० [सं० अत्या० स०] वह छोटा नियम जो किसी बड़े नियम के अंतर्गत होता है। (सब-रूल) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उप-निर्वाचन					 : | पुं० [सं० अत्या० स०] लोकतंत्री संस्थाओं में किसी निर्वाचित सदस्य का स्थान अवधि से पहले रिक्त होने पर उस स्थान की पूर्ति के लिए फिर से होनेवाला चुनाव। (बाइ-इलेक्शन) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उपनिविष्ट					 : | भू० कृ० [सं० उप-नि√विश् (घुसना, बैठना)+क्त] १. दूसरे स्थान से आकर बसा हुआ। २. खाते आदि में लिखा या दर्ज किया हुआ। पुं० अनुभवी और शिक्षित सेना। (कौटिल्य) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उपनिवेश					 : | पुं० [सं० उप-नि√विश्+घञ्] १. जीविका के लिए एक स्थान से हटकर दूसरे स्थान में जा बसना। २. कुछ व्यक्तियों का एक समुदाय जो दूसरे देश में जाकर स्थायी रूप से बस गया हो। ३. वह देश जहाँ दूसरे राष्ट्र के लोग जाकर बस गये हों और इसलिए उस राष्ट्र ने जिस पर अपना राजनीतिक अधिकार जमा लिया हो। ४. कीटाणुओं आदि का किसी अंग, शरीर या स्थान पर होनेवाला जमाव। (कालोनी उक्त सभी अर्थों में)। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपनिवेशन					 : | पुं० [सं० उप-नि√विश्+ल्युट-अन] उपनिवेश के रूप में कोई स्थान बसाना। उपनिवेश स्थापित करना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपनिवेशित					 : | भू० कृ० [सं० उप-नि√विश्+णिच्+क्त] १. उपनिवेश के रूप में बसा या बसाया हुआ। २. दूसरे स्थान से लाकर कहीं रखा या स्थापित किया हुआ। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उपनिवेशी (शिन्)					 : | वि० [सं० उपनिवेश+इनि] १. उपनिवेश संबंधी। औपनिवेशक। २. उपनिवेश में जाकर बसनेवाला। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उपनिषद्					 : | स्त्री० [सं० उप-नि√सद् (गति आदि)+क्विप् अथवा√सद्+णिच्+क्विप्] १. किसी के पास बैठना। २. ब्रह्म विद्या की प्राप्ति के लिए गुरु के पास जाकर बैठना। ३. वेदों के उपरांत लिखे गये वे ग्रंथ जिनमें भारतीय आर्यों के गूढ़ आध्यात्मिक तथा दार्शनिक विचार भरे हैं। ४. वेदव्रत ब्रह्मचारी के 40 संस्कारों में से एक जो केशान्त संस्कार के पूर्व होता था। ५. धर्म। ६. निर्जन स्थान। | 
			
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				| उपनिष्क्रमण					 : | पुं० [सं० उप-निस√क्रम् (गति)+ल्युट-अन] १. नवजात शिशु को पहली बार बाहर निकालना। निष्क्रमण संस्कार। २. राजमार्ग। ३. बाहर जाना। | 
			
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				| उपनिहित					 : | भू० कृ० [सं० उप-नि√धा+क्त] जो किसी के पास अमानत के रूप में रखा हुआ हो। | 
			
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				| उपनीत					 : | भू० कृ० [सं० उप√नी+क्त] १. जो किसी के पास आया, पहुँचा या लाया गया हो। २. उपार्जित या प्राप्त किया हुआ। उदाहरण—यह धरा तेरी न थी उपनीत।—दिनकर। ३. दान या भेंट रूप में दिया हुआ। ४. जिसका उपनयन संस्कार हो चुका हो। ५. (उल्लेख या चर्चा) जो अपने पक्ष के समर्थन अथवा इसी प्रकार के और किसी कार्य के लिए की गई हो। (साइटेड) | 
			
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				| उपनेत					 : | वि०=उत्पन्न।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उपनेता (तृ)					 : | पुं० [सं० उप√नी+तृच्] १. दूसरों को कहीं ले जाने या पहुँचानेवाला। २. उपनयन करानेवाला आचार्य। | 
			
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				| उपन्ना					 : | पुं०=उपरना। | 
			
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				| उपन्यस्त					 : | भू० कृ० [सं० उप-नि√अस् (क्षेपण)+क्त] १. पास रखा या लाया हुआ। २. अमानत या धरोहर के रूप में किसी के पास रखा हुआ। ३. उल्लिखित या कथित। ४. उपन्यास के रूप में लाया या लिखा हुआ। | 
			
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				| उपन्यास					 : | पुं० [सं० उप-नि√अस्+घञ्] १. वाक्य का उपक्रम। बंधान। २. अमानत। धरोहर। ३. प्रमाण। ४. वह बड़ी और लम्बी आख्यायिका जिसमें किसी व्यक्ति के काल्पनिक या वास्तविक जीवन-चरित्र का चित्र अंकित या उपस्थित किया जाता हैं। (नॉवेल)। | 
			
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				| उपन्यासकार					 : | पुं० [सं० उपन्यास√कृ (करना)+अण्] वह साहित्यकार जो उपन्यास लिखता हो। (नावेलिस्ट) | 
			
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				| उपन्यास-संधि					 : | स्त्री० [मध्य० स०] मंगलकारी उद्देश्यों की सिद्धि के लिए की जानेवाली संधि। (राजनीति) | 
			
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				| उप-पति					 : | पुं० [सं० अत्या० स०] १. साहित्य में, श्रृंगार रस का आलबन वह नायक जो आचारहीन होता और अनेक स्त्रियों से प्रेम करता है। २. अवैध पति। | 
			
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				| उपपत्ति					 : | स्त्री० [सं० उप√पद् (गति)+क्तिन्] १. घटित या प्रत्यक्ष होनेवाला। सामने आना। २. कारण। हेतु। ३. किसी को विश्वस्त करने के लिए उपस्थित किये हुए तथ्य, तर्क, प्रमाण अथवा किसी गवाह या विशेषज्ञ का साक्ष्य। (प्रूफ) ४. तर्क। युक्ति। ५. मेल बैठना या मिलना। संगति। | 
			
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				| उपपत्ति-सम					 : | पुं० [तृ० त०] न्याय में, वह स्थिति जब वादी किसी आधार पर कोई बात सिद्ध करता है, तब वह प्रतिवादी उसी प्रकार के दूसरे आधार पर उसी बात का खण्डन करता है। एक कारण से सिद्ध की हुई बात वैसे ही दूसरे कारण से असिद्द ठहराना। जैसे—यदि वादी उत्पत्ति-धर्म से युक्त होने के आधार पर शब्द को अनित्य बतलावे, तब प्रतिवादी का स्पर्श-धर्म से युक्त होने के आधार पर शब्द को नित्य ठहराना। | 
			
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				| उप-पत्नी					 : | स्त्री० [सं० अत्या० स०] वह स्त्री जिसे प्रायः पत्नी के समान (बिना उससे विवाह किये) बनाकर रखा गया हो। रखेली। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उपपद					 : | पुं० [सं० मध्य० स०] १. किसी स्थिति में लाना या पहुँचाना। २. पहले आया या कहा हुआ शब्द। ३. समास का आरम्भिक पद। ४. उपाधि। खिताब। | 
			
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				| उपपद-समास					 : | पुं० [ष० त०] कृदंत के साथ नाम। (संज्ञा) का होने वाला समास। जैसे—कुम्भकार, घर फूँक। | 
			
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				| उपपन्न					 : | वि० [सं० उप√पद्+क्त] १. पास आया हुआ। २. हाथ में आया या मिला हुआ। प्राप्त। ३. शरण में आया हुआ। शरणागत। ४. किसी के साथ लगा हुआ। युक्त। ५. उपयुक्त। ६. आवश्यक और उचित। ७. जिसे संपन्न करना अनिवार्य हो। (एक्सपीडिएण्ड) | 
			
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				| उपपात					 : | पुं० [सं० उप√पत्(गिरना)+घञ्] १. अप्रत्यशित घटना। २. दुर्घटना। ३. विपत्ति। ४. क्षय। नाश। | 
			
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				| उप-पातक					 : | पुं० [सं० अत्या० स०] गौण या छोटा पाप। जैसे—स्मृतियों में मारण, मोहन आदि अभिचारों की गणना उपपातकों में की गई है। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उपपादक					 : | वि० [सं० उप√पद्( गति)+णिच्+ण्वुल्-अक] उपपादन करनेवाला। (डिमान्स्ट्रेटर) | 
			
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				| उपपादन					 : | पुं० [सं० उप√पद्+णिच्+ल्युट्-अन] १. कार्य पूरा या संपन्न करना। २. युक्ति या प्रमाण द्वारा समझाते हुए कोई बात ठीक सिद्ध करना। (डिमान्स्ट्रेशन) | 
			
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				| उपपादनीय					 : | वि० [सं० उप√पद्+णिच्+अनीयर] जो सिद्ध किये जाने को हो अथवा सिद्ध किये जाने के योग्य हो। | 
			
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				| उपपादित					 : | भू०कृ० [सं० उप√पद्+णिच्+क्त] जिसका उपपादन हुआ हो। सिद्ध किया हुआ। | 
			
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				| उपपाद्य					 : | वि० [सं० उप√पद्+णिच्+यत्] जिसका उपपादन किया जाने को या किया जा सकता हो। | 
			
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				| उप-पाप					 : | पुं० [सं० अत्या०स०] गौण या छोटा पाप। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उप-पार्श्व					 : | पुं० [सं० अत्या० स०] १. स्कंध। कंधा। २. कोख। बगल। ३. छोटी पसलियाँ। ४. सामनेवाला पक्ष या पार्श्व। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उपपीड़न					 : | पुं० [सं० उप√पीड़ (दबाना)+ल्युट्-अन] १. दबाना। २. दबाव। ३. क्षति या चोट पहुँचाना। ४. विध्वंस-कार्य। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उप-पुर					 : | पुं० [सं० अत्या० स०] [वि० उपपौरिक] =उपनगर। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उप-पुराण					 : | पुं० [सं० अत्या० स०] अठारह मुख्य पुराणों के अतिरिक्त अन्य छोटे पुराण जो अठारह हैं। यथा-आदित्य, पुराण, नरसिंह पुराण, माहेश्वर पुराण, वरुण पुराण, वशिष्ठ पुराण, शिव पुराण आदि। | 
			
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				| उपप्रदान					 : | पुं० [सं० उप-प्र√दा (देना)+ल्युट्-अन] १. देना या हस्तान्तरित करना। २. घूस। रिश्वत। ३. उपहार। भेंट। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उप-प्रमेय					 : | पुं० [सं० अत्या० स०] प्रमेय या साध्य के साथ लगी हुई कोई ऐसी बात जो प्रमेय की सिद्ध के साथ-साथ आप ही सिद्ध हो जाती हो। (कॉरोलरी)। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उप-प्रश्न					 : | पुं० [सं० अत्या० स०] वह गौण प्रश्न जो किसी बड़े प्रश्न के साथ लगा हो या उसके बाद हो। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उपप्रेक्षण					 : | पुं० [सं० उप-प्र√ईक्ष् (देखना)+ल्युट्-अन] उपेक्षा करना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उपप्लव					 : | पुं० [सं० उप√प्लु (गति)+अप्] १. नदी आदि की बाढ़। २. प्राकृतिक उत्पात या उपद्रव। जैसे—आँधी, भूकम्प आदि। ३. विद्रोह। विप्लव। ४. लड़ाई-झगड़ा। ५. बाधा। विघ्न। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपप्लवी (विन्)					 : | वि० [सं० उप√प्लु+णिनि] १. बाढ़ आदि में डुबाने या बाढ़ लानेवाला। २. उत्पात, उपद्रव या हलचल मचानेवाला। ३. विद्रोही। विप्लवी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उपप्लुत					 : | भू० कृ० [सं० उप√प्लु+क्त] १. कष्ट या संकट में पड़ा हुआ। २. सताया हुआ। पीड़ित। ३. जिस पर आक्रमण हुआ हो। आक्रान्त। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उपबंध					 : | पुं० [सं० उप√बन्ध् (बाँधना)+घञ्] किसी प्रलेख या विधि का कोई ऐसा उपांग या धारा जिसमें किसी बात की सम्भावना को ध्यान में रखकर कोई अवकाश निकाला या प्रबन्ध किया गया हो। (प्राविजन) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपबंधित					 : | भू० कृ० [सं० उपबंध+इतच्] जो किसी प्रकार के उपबंधन से युक्त किया गया हो। (प्रोवाइडेड)(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उपबरहन					 : | पुं० [सं० उपबर्हण] तकिया।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उपबर्ह					 : | पुं० [सं० उप√बर्ह(फैलना)+घञ्] तकिया। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपबर्हण					 : | पुं० [सं० उप√बर्ह+ल्युट-अन] उपबर्ह। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उप-बाहु					 : | पुं० [सं० अत्या० स०] कलाई से कुहनी तक का भाग। पहुँचा। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपबृ-हण					 : | पुं० [सं० उप√बृह् (वृद्धि)+ल्युट-अन] [भू० कृ० उपबृहित] वृद्धि करना। बढ़ाना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपभंग					 : | पुं० [उप√भञ्ज् (तोड़ना)+घञ्, कुत्व] १. भाग जाना। पलायन। २. छन्द का एक भाग। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उप-भाषा					 : | स्त्री० [सं० अत्या० स०] किसी भाषा का वह अंग या विभाग जो किसी छोटे क्षेत्र या जनपद में रहनेवाले लोग बोलते हों। देशभाषा। बोली। (डायलेक्ट) जैसे—अवधी, भोजपुरी आदि हिंदी की उपभाषाएँ हैं। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपभुक्त					 : | वि० [सं० उप√भुज् (व्यवहार, खाना)+क्त] १. जिसका उपभोग हुआ हो। काम में लाया हुआ। २. उच्छिष्ट। जूठा। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपभुक्ति					 : | स्त्री० [सं० उप√भुज्+क्तिन्] =उपभोग। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपभृत					 : | स्त्री० [सं० उप√भृ (धारण, पोषण)+क्त] पास आया या लाया हुआ। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उप-भेद					 : | पुं० [सं० अत्या० स०] किसी भेद (प्रकार या वर्ग) के अन्तर्गत कोई गौण या छोटा भेद। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपभोक्तव्य					 : | वि० [सं० उप√भुज्+तव्यम्] उपभोग्य। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपभोक्ता (क्तृ)					 : | वि० [सं० उप√भुज्+तृच्] काम में लाने या व्यवहार करनेवाला। पुं० वह जो किसी विशिष्ट वस्तु या वस्तुओं का उपभोग करता या उन्हें काम में लाता हो। (कन्ज्यूमर) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपभोग					 : | पुं० [सं० उप√भुज्+घञ्] १. आनन्द या सुख प्राप्त करने के लिए किसी वस्तु का भोग करना या उसे व्यवहार में लाना। जैसे—धन या संपत्ति का उपभोग। २. अर्थशास्त्र में, किसी वस्तु को इस प्रकार व्यवहार में लाना कि उसकी उपयोगिता नष्ट या समाप्त हो जाए अथवा वह धीरे-धीरे क्षीण होती चले। (कंजम्पशन) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपभोगी (गिन्)					 : | वि० [सं० उप√भुज्+णिनि] उपभोग करनेवाला। उपभोक्ता। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपभोग्य					 : | वि० [सं० उप√भुज्+ण्यत्] जिसका उपभोग होने को हो या हो सकता हो। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपभोज्य					 : | वि० [सं० प्रा० स०] (पदार्थ) जिसका उपभोग किया जा सके या हो सके। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उप-मंडल					 : | पुं० [सं० अत्या० स०] १. किसी मंडल का कोई उपविभाग या खंड। २. जिले का कोई उप विभाग। तहसील। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपमंत्रण					 : | पुं० [सं० उप√मंत्र् (बुलाना)+ल्युट्-अन] १. आमंत्रण। न्योता। २. अनुरोध या आग्रह करना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उप-मंत्री (त्रिन्)					 : | पुं० [सं० अत्या० स०] वह छोटा मन्त्री जो किसी प्रधान या बड़े मंत्री (या कार्याधिकारी) के अधीन रहकर उसकी सहायता करता हो। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उप-मन्यु					 : | वि० [सं० अत्या० स०] १. बुद्धिमान। मेधावी। २. उत्साही। उद्यमी। पुं० एक गोत्र-प्रवर्तक ऋषि जो आयोदधौम्य के शिष्य थे। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपमर्दन					 : | पुं० [उप√मृद् (मलना)+ल्युट-अन] १. बुरी तरह से कुचलना, मसलना या रगड़ना। २. उपेक्षा या तिरस्कार करना। ३. नष्ट करना। ४. जोर से हिलाना। झकझोरना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपमा					 : | स्त्री० [सं० उप√मा (मापना)+अङ्+टाप्] १. समान गुणों के आधार पर एक वस्तु को दूसरी वस्तु के तुल्य या समान ठहराना या बतलाना। २. एक अर्थालंकार जिसमें उपमेय और उपमान दोनों भिन्न होते हुए भी उनमें किसी प्रकार की एकता या समानता दिखाई जाती है। जैसे—‘उसका मुख कमल के समान है’, में मुख और कमल दो भिन्न वस्तुएँ होने पर भी मुख की कमल से समानता बतलाई गई है। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपमाता (तृ)					 : | पुं० [सं० उप√मा+तृच्] वह जो किसी वस्तु को किसी दूसरी वस्तु के तुल्य या समान बतलावे। उपमा देनेवाला। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उप-माता					 : | स्त्री० [सं० अत्या० स०] १. सौतेली माँ। २. दाई। धाय। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपमान					 : | पुं० [सं० उप√मा+ल्युट्-अन] १. वह वस्तु या व्यक्ति जिसके साथ किसी की बराबरी की जाय या समानता बतलाई जाए। जैसे—‘मुख कमल के समान है’ में कमल उपमान है। २. उक्त प्रकार के सदृश्य के आधार पर माना जानेवाला प्रमाण जो न्याय में चार प्रकार के प्रमाणों में से एक है। ३. तेईस मात्राओं का एक छन्द जिसमें तेरहवीं मात्रा पर विराम होता है। उपमाना स० [?] एक वस्तु की दूसरी वस्तु से उपमा देना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उप-मालिनी					 : | स्त्री० [सं० अत्या० स०] एक प्रकार का छन्द या वृत्त। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपमित					 : | भू० कृ० [सं० उप√मा+क्त] [स्त्री० उपमिता] जिसकी किसी दूसरी वस्तु से उपमा दी गई हो। पुं० उपमावाचक कर्मधारय समान का एक भेद जिसमें उपमावाचक शब्द लुप्त रहता है। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपमेय					 : | वि० [सं० उप√मा+यत्] १. जिसकी किसी से उपमा दी जाए। २. उपमा दिये जाने के योग्य। पुं० साहित्य में वह वस्तु या व्यक्ति जिसकी उपमा उपमान से दी जाय। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपमेयोपमा					 : | स्त्री० [उपमेय-उपमा, कर्म० स०] उपमा अलंकार का एक भेद जिसमें उपमेय और उपमान आपस में एक दूसरे के उपमान और उपमेय कहे जाते हैं। उदाहरण—औधपुरी अमरावति सी अमरावती औधपुरी सी बिराजै। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपयंता (तृ)					 : | वि० [सं० उप√यम्(उपरम)+तृच्] उपयम (विवाह) करनेवाला। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उप-यंत्र					 : | पुं० [सं० अत्या० स०] शरीर में चुभा हुआ काँटा आदि निकालने की चिमटी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपयना					 : | अ० [हिं० उपजना का अ० रूप] उत्पन्न या पैदा होना। उदाहरण—सुनि हरि हिय गरब गूढ़ उपयो है।—तुलसी। स० उत्पन्न करना। उपजाना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपयम					 : | पुं० [सं० उप√यम्+अप्] १. विवाह। २. संयम। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपयमन					 : | पुं० [सं० उप√यम्+ल्युट्-अन] =उपयम। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपयाचना					 : | स्त्री० [उप√याच्(माँगना)+णिच्+युच्-अन,टाप्] मनौती। मन्नत। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपयान					 : | पुं० [सं० उप√या(जाना)+ल्युट्-अन] किसी के पास जाना या पहुँचना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपयाम					 : | पुं० [सं० उप√यम्+घञ्] विवाह। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपयायी (यिन्)					 : | वि० [सं० उप√या+णिनि] पास जानेवाला। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपयुक्त					 : | वि० [सं० उप√युज्(योग)+क्त] १. जो उपयोग या काम में लाया गया हो या लाया जा चुका हो। २. जो किसी विशिष्ट स्थिति में किसी के साथ पूरी तरह से ठीक बैठता या मेल खाता हो। जैसे—होना चाहिए वैसा। (फिट) जैसे—उपयुक्त आहार-विहार, उपयुक्त पद या स्थान। ३. जो किसी विशिष्ट अपेक्षा या आवश्यकता की पूर्ति के लिए हर तरह के योग्य या समर्थ हो। विधिक, सामाजिक आदि दृष्टियों से उचित और तर्क संगत। (प्रापर) जैसे—यह विषय उपयुक्त अधिकारी (या उपयुक्त न्यायालय) के सामने जाना चाहिए। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपयुक्तता					 : | स्त्री० [सं० उपयुक्त+तल्-टाप्] उपयुक्त होने की अवस्था या भाव। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपयोग					 : | पुं० [सं० उप√युज्+घञ्] १. किसी वस्तु का होनेवाला प्रयोग या व्यवहार। किसी चीज का काम में लाया जाना। जैसे—खाने-पीने की चीजों का उपयोग, अधिकार या शक्ति का उपयोग। २. आवश्यकता की पूर्ति या प्रयोजन की सिद्धि। (यूज, उक्त दोनों अर्थों में) जैसे—हमारे लिए आपकी इन बातों का कुछ भी उपयोग नहीं है। ३. साहित्य में, मानमोचन के दो उपचारों में से एक (विधेय से भिन्न) जिसमें मीठी बातें कहकर हाथ-पैर जोड़कर, प्रिय वस्तु भेंट करके या ऐसे ही दूसरे सौम्य उपचारों से रूठे हुए को मनाते हैं। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपयोग-वाद					 : | पुं० [ष० त०]=उपयोगितावाद। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपयोगिता					 : | स्त्री० [सं० उपयोगिन्+तल्-टाप्] १. उपयोगी या लाभकारी होने की अवस्था या भाव। २. किसी वस्तु का वह गुण या तत्त्व जिसमें उस वस्तु के उपभोक्ता का कोई प्रयोजन सिद्ध होता हो या उसे किसी प्रकार की तृप्ति होती हो। (यूटिलिटी उक्त दोनों अर्थो में) जैसे—(क) बालकों को हर चीज की उपयोगिता बतलानी चाहिए। (ख) अब इन नियमों या विधानों की उपयोगिता नष्ट हो चुकी है। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपयोगिता-वाद					 : | पुं० [ष० त०] एक आधुनिक पाश्चातात्य मत या सिद्धान्त, जिसमें नैतिक, सांस्कृतिक आदि गुणों या विशेषताओं का ध्यान छोड़कर प्रत्येक बात या वस्तु का अर्थ, महत्त्व या मान इस दृष्टि से आँका जाता है कि मानव समाज के कल्याण के लिए उसका कितना, कैसा और क्या उपयोग है अथवा हो सकता है। (यूटिलिटेरियनिज्म) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपयोगितावादी (दिन्)					 : | पुं० [सं० उपयोगितावाद+इनि] वह जो उपयोगितावाद के सिद्धांतों का अनुयायी, प्रतिपादक या समर्थक हो। (यूटिलिटेरिअन) | 
			
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				| उपयोगी (गिन्)					 : | वि० [सं० उप√युज्+घिनुण्] १. जो उपयोग में लाये जाने के योग्य हो। २. जिसमें ऐसे गुण या तत्त्व हों जिनसे किसी का प्रयोजन सिद्ध होता हो या लाभ होता हो। | 
			
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				| उपयोजन					 : | पुं० [सं० उप√युज्+ल्युट-अन] १. उपयोग या काम में लाना। २. दूसरे की वस्तु या धन को अनुचित रूप से लेकर अपने प्रयोग में लाना। (ऐप्रोप्रियेशन) | 
			
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				| उपरंजक					 : | वि० [सं० उप√रञज् (राग)+ण्वुल्-अक] १. रँगनेवाला। २. प्रभावित करने वाला। पुं० सांख्य में, वह वस्तु जिसका आभास या छाया पास की वस्तु पर पड़े। उपाधि। जैसे—लाल कपड़े के कारण पास रखे हुए स्फटिक का लाल दिखाई पड़ना। | 
			
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				| उपरंजन					 : | पुं० [सं० उप√रञ्ज्+ल्युट्-अन] [वि० उपरंजनीय, उपरंज्य, भू० कृ० उपरंजित] १. रंग से युक्त करना। रँगना। २. प्रभाव डालना। प्रभावित करना। | 
			
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				| उपर					 : | अव्य-ऊपर। उदाहरण—लंका सिखर उपर आगारा।—तुलसी। | 
			
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				| उपरक्त					 : | वि० [सं० उप√रञ्ज्+क्त] १. (ग्रह) जो उपराग से ग्रस्त हो। जिसे ग्रहण लगा हो। २. जिस पर आभास या छाया पड़ी हो। ३. जिस पर किसी प्रकार का प्रभाव पड़ा हो या रंगत चढ़ी हो। | 
			
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				| उपरक्षण					 : | पुं० [सं० उप√रक्ष् (रक्षा करना)+ल्युट-अन] १. रक्षा करने का कार्य। २. चौकी। पहरा। | 
			
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				| उपरत					 : | वि० [सं० उप√रम् (रमण करना)+क्त] १. जो रत न हो। २. जो किसी काम में लगा न हो। ३. विरक्त। उदासीन। ४. मरा हुआ। मृत। | 
			
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				| उपरति					 : | स्त्री० [सं० उप√रम्+क्तिन्] १. उपरत या विरक्त होने की अवस्था या भाव। उदासीनता। २. मृत्यु। मौत। | 
			
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				| उप-रत्न					 : | पुं० [सं० अत्या० स०] कम दाम या मूल्य के घटिया रत्न। ये गिनती में नौ माने गये हैं। यथा-वैक्रान्त मणि, सीप, रक्षस, मरकत मणि, लहसुनिया, लाजा, गारुड़ि मणि, (जहरमोहरा), शंख और स्फटिक मणि। | 
			
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				| उपरना					 : | पुं० [हिं० उपरा+ना (प्रत्यय)] शरीर के ऊपरी भाग में ओढ़ी जानेवाली चादर या दुपट्टा। उदाहरण—पिअर उपरना, काखा सोती।—तुलसी। अ० उखड़ना। | 
			
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				| उपरफट					 : | वि०=उपरफट्टू।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उपरफटू					 : | वि० [सं० उपरि+स्फुट] १. यों ही इधर-उधर या ऊपर से आया हुआ। २. इधर-उधर का और बिलकुल व्यर्थ। फालतू। उदाहरण—मेरी बाँह छाँड़ि दै राधा करत उपर-फट बातें। | 
			
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				| उपरम					 : | पुं० [सं० उप√रम्+घञ्] किसी चीज या बात से चित्त हटना। विरति। वैराग्य। | 
			
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				| उपरमण					 : | पुं० [सं० उप√रम्+ल्युट-अन] =उपराम। | 
			
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				| उपरला					 : | वि० [हि० ऊपर+ला (प्रत्यय)] जो ऊपर की हो। ऊपरवाला। ऊपरी। | 
			
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				| उपरवार					 : | स्त्री० [हिं० ऊपर+वारा (प्रत्यय)] बाँगर। जमीन। वि० ऊपर की ओर पड़नेवाला। उदाहरण—रामजस अपने उपरवार खेत का जौ उखाड़कर होला जला रहा है।—प्रसाद। | 
			
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				| उप-रस					 : | पुं० [सं० अत्या० स०] वैद्यक में गंधक, ईगुर, अभ्रक, तूतिया, चुम्बक पत्थर आदि पदार्थ जो रस अर्थात् पारे के समान गुणकारी माने गये हैं। | 
			
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				| उपरहित					 : | पुं०=पुरोहित। | 
			
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				| उपरहिति					 : | स्त्री०=पुरोहिती। | 
			
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				| उपराँठा-					 : | पुं०=पराँठा। | 
			
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				| उपरांत					 : | अव्य० [सं० ] किसी के अंत में। पीछे या बाद में। | 
			
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				| उपराग					 : | पुं० [सं० उप√रञ्ज्+घञ्] १. रंग। २. भोग-विलास या विषयों में होनेवाला अनुराग। ३. आस-पास की वस्तु पर पड़नेवाला आभास या छाया। ४. चंद्रमा, सूर्य आदि का छायाग्रस्त होना। ग्रहण। ५. व्यसन। ६. निद्रा। उदाहरण—भयउ परब बिनु रबि उपरागा।—तुलसी। | 
			
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				| उपरा-चढ़ी					 : | स्त्री०=चढ़ा-ऊपरी। | 
			
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				| उप-राज					 : | पुं० [सं० अत्या० स०] प्राचीन भारत में, राजा या राज्य की ओर से किसी अधीनस्थ प्रदेश का शासन करने के लिए नियुक्ति प्रतिनिधि। स्त्री०=उपज।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उपराजना					 : | स० [सं० उपार्जन] १. उत्पन्न या पैदा करना। उदाहरण—अग-जग मय जग मम उपराजा।—तुलसी। २. रचना। बनाना। ३. उपार्जन करना। कमाना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उपराना					 : | अ० [सं० उपरि] १. नीचे से ऊपर आना। २. प्रकट या प्रत्यक्ष होना। स०१. ऊपर करना या लाना। २. प्रकट या प्रत्यक्ष करना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उपराम					 : | पुं० [सं० उप√रम्+घञ्] १. विषयों के भोग आदि से होनेवाली विरक्ति। विराग। २. छुटकारा। निवृत्ति। ३. आराम। विश्राम। | 
			
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				| उपराला					 : | पुं० [हिं० ऊपर+ला (प्रत्यय)] पक्षग्रहण। सहायता। वि० १. ऊपर का। ऊपरी। २. ऊँचा। ३. बाहरी। | 
			
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				| उपरावटा					 : | वि० [सं० उपरि+आवर्त्त] १. ऊपर की ओर उठा हुआ। २. अभिमान आदि के कारण अकड़ा या तना हुआ। | 
			
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				| उपराहना					 : | स० [हिं० ऊपर+करना] १. औरों से ऊपर या बढ़कर मानना। २. प्रशंसा करना। सराहना। उदाहरण—आम जो परि कै नवैतराही। फल अमृत भा सब उपराहीं।—जायसी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उपराही					 : | क्रि० वि०=ऊपर। वि० उत्तम। श्रेष्ठ।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उपरि					 : | अव्य० [सं० ऊर्ध्व+रिल्, उपादेश] १. ऊपर। उदाहरण—सैलोपरि सर सुंदर सोहा।—तुलसी। २. उपरांत। बाद। | 
			
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				| उपरिचर					 : | वि० [सं० उपरि√चर्(गति)+ट] ऊपर चलनेवाला। पु० चिड़िया। पक्षी। | 
			
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				| उपरि-चित					 : | वि० [स० त०] १. ऊपर रखा हुआ। २. सजा हुआ। सज्जित। | 
			
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				| उपरिष्ट					 : | पुं० [सं० ] पराँठा नामक पकवान। | 
			
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				| उपरी-उपरा					 : | स्त्री० चढ़ा-ऊपरी। उदाहरण—रन मारि मक उपरी-उपरा भले बीर रघुप्पति रावन के।-तुलसी। | 
			
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				| उपरुद्ध					 : | वि० [सं० उप√रुध्(रोकना)+क्त] १. रोका हुआ। २. घेरा हुआ। ३. बंधन में डाला या पड़ा हुआ। बद्ध। | 
			
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				| उप-रूप					 : | पुं० [सं० अत्या० स०] वैद्यक में रोग का बहुत हल्का या नगण्य लक्षण। | 
			
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				| उप-रूपक					 : | पुं० [सं० अत्या० स०] साहित्य में, एक प्रकार का छोटा रूपक नाटक जिसके १8 भेद या प्रकार कहे गये है। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपरैना					 : | पुं० [स्त्री० उपरैनी] =उपरना (दुपट्टा)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उपरोक्त					 : | वि०=उपर्युक्त। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उपरोध					 : | पुं० [सं० उप√रुध् (रोकना)+घञ्] १. ऐसी बात जिससे होता हुआ कार्य रुक जाय। बाधा। २. आच्छादन। ढकना। | 
			
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				| उपरोधक					 : | वि० [सं० उप√रुध्+ण्वुल्-अक] रोकनेवाला। बाधा डालनेवाला। पुं० कोठरी के अंदर की कोठरी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उपरोधन					 : | पुं० [सं० उप√रुध्+ल्युट-अन] १. रोकना या बाधा डालना। २. रुकावट। बाधा। ३. घेरा। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपरोधी (धिन्)					 : | पुं० [सं० उप√रुध्+णिनि] बाधा डालनेवाला। रोकनेवाला। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उपरोहित					 : | पुं०=पुरोहति।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उपरोहिती					 : | स्त्री०=पुरोहिती। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उपरौछा					 : | क्रि० वि० [हिं० ऊपर+औछा (प्रत्य)] ऊपर की ओर। वि० ऊपर की ओर का। ऊपरी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपरौटा					 : | पुं० दे० ‘उपल्ला’। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपरौठा					 : | वि० -उपरौटा (उपल्ला)। पुं०=पराँवठा।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपरौना					 : | पुं०=उपरना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपर्युक्त					 : | वि० [सं० उपरि-उक्त, स० त०] १. ऊपर या पहले कहा हुआ। २. जिसका उल्लेख या चर्चा पहले या ऊपर हो चुकी हो। (एफोरसेड) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उपलंभक					 : | वि० [सं० उप√लभ् (पाना)+णिच्+ण्वुल्-अक, नुम्] १. ज्ञान या अनुभव करनेवाला। २. प्राप्ति या लाभ करानेवाला। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपलंभन					 : | पुं० [सं० उप√लभ्+ल्युट-अन, नुम्] १. ज्ञान। २. अनुभव। ३. प्राप्ति। लाभ। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपल					 : | पुं० [सं० उप√ला (लेना)+क] १. पत्थर। २. ओला। ३. बादल। मेघ। ४. जवाहर। रत्न। ५. बालू। रेत। ६. चीनी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपलक्ष					 : | पुं० [सं० उप√लक्ष् (देखना)+घञ्] =उपलक्ष्य। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपलक्षक					 : | वि० [सं० उप√लक्ष्+ण्वुल्-अक] १. निरीक्षण करनेवाला। २. अनुमान करनेवाला। पुं० साहित्य में किसी वाक्य के अंतर्गत वह शब्द जो उपादान लक्षणा से अपने वाक्य के सिवा अपने वर्ग की अन्य बातों या वस्तुओं का भी उपलक्ष्य या बोध कराता हो। जैसे—देखो बिल्ली दूध न पी जाए। में बिल्ली शब्द से कुत्ते, नेवले आदि की ओर भी संकेत होता है, अतः ‘बिल्ली’ यहाँ उपलक्षक है। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपलक्षण					 : | पुं० [सं० उप√लक्ष्+ल्युट-अन] १. ध्यान से देखना। २. किसी लक्षण के प्रकार या वर्ग का कोई गौण या छोटा लक्षण। ३. कोई ऐसी गौण बात जो किसी ऐसे तत्त्व की सूचक हो जिसका स्पष्ट उल्लेख या निर्देश हो चुका हो। ४. दे०‘उपलक्षक’। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपलक्षित					 : | भू० कृ० [सं० उप√लक्ष्+क्त] १. अच्छी तरह देखा-भाला हुआ। २. उपलक्ष्य के रूप में या संकेत से बतलाया हुआ। ३. अनुमान किया हुआ। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपलक्ष्य					 : | पुं० [सं० उप√लक्ष्+ण्यत्] १. वह बात जिसे ध्यान में रखकर कुछ कहा या किया जाए। पद-उपलक्ष्य मेंकोई काम या बड़ी बात होने पर उसका ध्यान रखते हुए। किसी बात के उद्धेश्य से और उसके संबंध में। जैसे—विवाह के उपलक्ष्य में होनेवाला प्रीति-भोज। २. किसी बात का चिन्ह, लक्षण या संकेत। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपलब्ध					 : | भू० कृ० [सं० उप√लभ्+क्त] १. प्राप्त या हस्तगत किया हुआ। मिला हुआ। २. अनुमान, निष्कर्ष आदि के आधार पर जाना या समझा हुआ। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपलब्धि					 : | स्त्री० [सं० उप√लभ्+क्तिन्] १. उपलब्ध या प्राप्त होने की अवस्था, क्रिया या भाव। प्राप्ति। २. ज्ञान। ३. बृद्धि। ४. (प्राप्त की हुई) सफलता या सिद्धि। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपलभ्य					 : | वि० [सं० उप√लभ् (पाना)+यत्] १. जो उपलब्ध या प्राप्त हो सकता हो। जो मिल सके। २. आदर या प्रशंसा के योग्य। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपला					 : | पुं० [सं० उत्पन्न] [स्त्री० उपली] गाय, भैंस आदि के गोबर का सूखा हुआ कंडा जो जलाने के काम आता है। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपलाना					 : | स०=उपराना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपलिंग					 : | पुं० [उप√लिंग(गति)+घञ्] १. अरिष्ट। २. उपद्रव। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपलेप					 : | पुं० [सं० उप√लिप्(लीपना)+घञ्] १. गीली वस्तु (विशेषतः गोबर आदि) से पोतना या लीपना। २. ऐसी वस्तु जिससे पोता या लीपा जाय। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपलेपन					 : | पुं० [सं० उप√लिप्+ल्युट-अन] १. पोतना। लीपना। २. लेप आदि के रूप में लगाना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपलेपी (पिन्)					 : | वि० [सं० उप√लिप्+णिनि] १. पोतने या लीपनेवाला। २. किये-कराये काम पर पानी फेरनेवाला। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उप-लौह					 : | पुं० [सं० अत्या० स०] एक प्रकार का गौण धातु। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपल्ला					 : | पुं० [हिं० ऊपर+ला (प्रत्यय) अथवा पल्ला] किसी वस्तु विशेषतः पहनने के दोहरे कपड़े की ऊपरी तह या परत। भितल्ला का विपर्याय। जैसे—रजाई का उपल्ला। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उप-वंग					 : | पुं० [सं० अत्या० स०] प्राचीन वंग (आधुनिक बंगाल) के पास का एक प्राचीन जनपद। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपवक्ता (क्तृ)					 : | पुं० [सं० उप√वच् (बोलना)+तृच्] यज्ञ का पर्यवेक्षण करनेवाला। ऋत्विज्। वि० प्रेरणा करनेवाला। प्रेरक। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उप-वट					 : | पुं० [सं० अत्या० स०] चिरौंजी का पेड़। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उप-वन					 : | पुं० [सं० अत्या० स०] १. छोटा वन या जंगल। २. ऐसा उद्यान जिसमें कई खुले मैदान हों। ३. बगीचा। बाग। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपवना					 : | अ० १. उपजना। उदाहरण—मोद भरी गोद लिए लालति सुमित्रा देखि देव कहै सबको सुकृत उपवियो है।—तुलसी। २. उड़ना। उदाहरण— देखत चुरै कपूर ज्यौ उपै जाय जनि लाल।—बिहारी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपवर्णन					 : | पुं० [सं० उप√वर्ण् (वर्णन करना)+घञ्] विस्तृत या ब्यौरेवार वर्णन। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपवर्ण्य					 : | वि० [सं० उप√वर्ण+ण्यत्] जिसका वर्णन किया जाने को हो या किया जा सके। पुं० वह जिसमें उपमा दी गई हो। उपमान। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपवर्त					 : | पुं० [सं० उप√वुत् (बरतना)+घञ्] एक बहुत बड़ी संख्या। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपवर्तन					 : | पुं० [सं० उप√वृत्+ल्युट-अन] १. निकट लाना। २. जनपद। ३. राज्य। ४. दलदल। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपवसथ					 : | पुं० [सं० उप√वस् (बसना)+अथ] १. बसा हुआ स्थान। बस्ती। २. यज्ञ आरंभ करने से पहले का दिन जिसमें व्रत आदि का विधान है। ३. उक्त दिनों होनेवाले धार्मिक कृत्य। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपवसन					 : | पुं० [सं० उप√वस् (रोकना, बसना)+ल्युट-अन] १. पास बसना या रहना। २. उपवास करना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपवस्ति					 : | स्त्री० [सं० उप√वस् (रोकना)+क्तिन्] जीवन-निर्वाह के लिए आवश्यक बातें। जैसे—खान-पीना, सोना आदि। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उप-वाक्य					 : | पुं० [सं० अत्या० स०] किसी बड़े वाक्य का वह अंश या भाग जिसमें कोई समापिका क्रिया हो। (क्लाज) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपवाद					 : | पुं० [सं० उप√वद् (बोलना)+घञ्] लोक में फैलनेवाला अपवाद या निंदा। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपवास					 : | पुं० [सं० उप√वस् (स्तंभन)+घञ्] दिन भर या रात-दिन भोजन न करना। भूखे रहना। फाका। विशेष—उपवास प्रायः धार्मिक दृष्टि से, अन्न से अभाव से, रोगी होने की दशा में अथवा किसी प्रकार के प्रायश्चित आदि के रूप में किया जाता है। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपवासक					 : | वि० [सं० उप√वस्+ण्वुल्-अक] उपवास करनेवाला। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपवासी (सिन्)					 : | वि० [सं० उप√वस्+णिनि] जो उपवास कर रहा हो। न खाने और भूखा रहनेवाला। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उप-विद्या					 : | स्त्री० [सं० अत्या० स०] १. गौण, छोटी या साधारण विद्या। २. लौकिक ज्ञान या विद्या। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उप-विधि					 : | स्त्री० [सं० अत्या० स०] १. गौण या अपेक्षया कम महत्त्व वाली विधि। २. किसी विधि के साथ लगी हुई उसी तरह की कोई छोटी विधि। (बाई लॉ) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उप-विभाग					 : | पुं० [सं० अत्या० स०] किसी विभाग के अंतर्गत उसका कोई गौण या छोटा विभाग। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उप-विष					 : | पुं० [सं० अत्या० स०] ऐसा हलका विष जो तुरंत या विशेष घातक न हो। जैसे—अफीम, धतूरा आदि। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उप-विषा					 : | स्त्री० [सं० ब० स० टाप्] अतीस। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपविष्ट					 : | भू० कृ० [सं० उप√वि्श् (बैठना)+क्त] बैठा हुआ। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपविष्टक					 : | पुं० [सं० उपविष्ट+कन्] ऐसा भ्रूण जो नियत समय के बाद भी ठहरा या बना रहे। (वैद्यक)। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपवीत					 : | पुं० [सं० उप-वि√इ (गति)+क्त] १. जनेऊ। २. उपनयन संस्कार। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपवीती (तिन्)					 : | वि० [सं० उपवीत+इनि] १. जिसका यज्ञोपवीत संस्कार हो चुका हो। २. जिसने जनेऊ पहना हो। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपवीणा					 : | स्त्री० [सं० अताय० स०] वीणा का निचला भाग, जिसमें तूँबा रहता है। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उपवृंहण					 : | पुं० [सं० उप√वृह्(वृद्धि)+ल्युट-अन] तकिया। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उप-वेद					 : | पुं० [सं० अत्या० स०] वेदों से ग्रहण की हुई लोकोपकारी विद्याएँ। इनमें चार मुख्य हैं-यजुर्वेद से ग्रहण किया हुआ धनुर्वेद, सामवेद लिया हुआ गंधर्ववेद, ऋग्वेद से निकाला हुआ आयुर्वेद और अर्थवेद से ली हुई स्थापत्यकला। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उपवेधक					 : | पुं० [सं० उप√वुध् (बेधना)+ण्वुल-अक] यात्रियों या राह चलतों को तंग करके उनका धन छीननेवाला। बटमार। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उपवेश					 : | पुं० [सं० उप√विश् (बैठना)+घञ्] १. बैठने की क्रिया या भाव। २. किसी कार्य में लगना। ३. सभा, समिति आदि की बैठक का होना। ४. मल-त्याग। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपवेशन					 : | पुं० [सं० उप√विश्+ल्युट-अन] [भू० कृ० उपविश्ट] बैठना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उपवेशित					 : | भू० कृ० [सं० उप√विश्+णिच्+क्त] बैठा हुआ। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उपवेशी (शिन्)					 : | वि० [सं० उप√विश्+णिनि] १. बैठनेवाला। २. जो काम में लगा हो। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपवेष्टन					 : | पुं० [सं० उप√वेष्ट (लपेटना)+ल्युट-अन] [भू० कृ० उपवेष्टित] चारों ओर से लपेटना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपशम					 : | पुं० [सं० उप√शम् (शांति)+घञ्] १. शांत होना। २. इंद्रियों या मनोविकारों को वश में करना। ३. उपद्रव आदि की शांति के लिए किया जानेवाला उपाय या प्रयत्न। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उपशमन					 : | पुं० [सं० उप√शम्+ल्युट-अन] १. शांत करना। २. दबाना। घटाना। ३. निवारण। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपशमित					 : | भू० कृ० [सं० उप√शम्+णिच्+क्त] १. शांत किया हुआ। २. दबाया हुआ। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपशय					 : | वि० [सं० उप√शी (सोना)+अच्] १. पास लेटने या सोने वाला। २. शांतिदायक। पुं० १. पास सोना। २. खान-पान, औषध आदि के कारण रोग पर पड़नेवाला प्रभाव और उसके आधार पर होनेवाला रोग का निदान। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपशल्य					 : | पुं० [सं० प्रा० स०] १. नगर या गाँव की सीमा। २. पहाड़ के पास की भूमि। ३. भाला। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपशांति					 : | स्त्री० [सं० उप√शम्+क्तिन्] उपशम। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उप-शाखा					 : | स्त्री० [सं० अत्या० स०] १. छोटी शाखा। २. किसी बड़ी शाखा की कोई छोटी शाखा। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपशामक					 : | वि० [सं० उप√शम्+णिच्+ण्वुल्-अक] उपशमन (निवारण या शांति) करनेवाला। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपशाय					 : | पुं० [सं० उप√शी (सोना)+घञ्] एक के बाद एक या बारी-बारी (पहरे आदि के विचार से चौकीदारों का) से सोना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपशायक					 : | वि० [सं० उप√शी+ण्वुल्-अक] =चौकीदार। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपशायी (यिन्)					 : | वि० [सं० उप√शी+णिनि] =उपशायक। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उप-शाल					 : | पुं० [सं० अत्या० स०] १. घर या गाँव के सामने की खुली जगह या मैदान। २. चौपाल। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उप-शिक्षक					 : | पुं० [सं० अत्या० स०] सहायक शिक्षक। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उप-शिष्य					 : | पुं० [सं० अत्या० स०] शिष्य का शिष्य। चेले का चेला। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उप-शीर्षक					 : | पुं० [सं० अत्या० स०] १. किसी बड़े शीर्षक के अंतर्गत होनेवाला कोई गौण या छोटा शीर्षक। २. एक रोग जिसमें सिर में छोटी-छोटी फुंसियाँ निकल आती है। चाईं-चूईं। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपशोभन					 : | पुं० [सं० उप√शोभ् (सोहना)+ल्युट-अन] सजाना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपश्रुत					 : | भू० कृ० [सं० उप√श्रु (सुनना)+क्त] १. सुना हुआ। स्वीकृति किया हुआ। २. जाना हुआ। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपश्रुति					 : | स्त्री० [सं० उप√श्रु+क्तिन्] १. सुनना। २. भविष्यवाणी। ३. स्वीकृति। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपश्लिष्ट					 : | वि० [सं० उप√श्लिष् (मिलता)+घञ्] १. पास रखा हुआ। २. लगा या सटा हुआ। ३. संपर्क में आया या लाया हुआ। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपश्लेष					 : | पुं० [सं० उप√श्लिष्+घञ्] १. पास आकर लगना या सटना। २. आलिंगन। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपसंगत					 : | वि० [सं० उप-सम्√गम् (जाना)+क्त] १. संयुक्त। २. संलग्न। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उप-संपदा					 : | स्त्री० [सं० अत्या० स०] बौद्ध धर्म में, घर-गृहस्थी छोड़कर भिक्षु बनना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उप-संपादक					 : | पुं० [सं० अत्या० स०] सहायक संपादक। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उप-संस्कार					 : | पुं० [सं० अत्या० स०] किसी संस्कार के अंतर्गत होनेवाला कोई गौण या छोटा संस्कार। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपसंहार					 : | पुं० [सं० उप-सम√हृ (हरण)+घञ्] १. परिहार। २. अंत। समाप्ति। ३. किसी प्रकरण, विषय आदि का वह अंतिम अंश जिसमें उक्त प्रकरण या विषय की मुख्य-मुख्य बातें फिर से अति संक्षेप में बतालाई जाती हैं। ४. सारांश। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपस					 : | स्त्री० [सं० उप+हिं० बास=महक] दुर्गन्ध। बदबू।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपसक्त					 : | वि० [सं० उप√सञ्ज्+क्त] १. आसक्त। २. संलग्न। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपसना					 : | अ० [सं० उप+हिं० बासमहक] ऐसी स्थिति में होना कि बदबू निकले। गल या सड़कर दुर्गध देना। स० गला या सड़ाकर बदबू उत्पन्न करना। अ० [सं० उपबसन] दूर होना। हटना। उदाहरण—दहुं कवि लास कि कहँ उपसई।—जायसी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपसन्न					 : | वि० [सं० उप√सद् (गति)+क्त] १. सहायता या सेवा के लिए आया हुआ। २. पास रखा या लाया हुआ। ३. प्राप्त। ४. दिया हुआ। प्रदत्त। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उप-सभापति					 : | पुं० [सं० अत्या० स०] किसी संस्था का वह अधिकारी जिसका पद सभापति के उपरांत या उससे छोटा होता है तथा जो सभापति की अनुपस्थिति में उसके सब काम करता है। (वाइस प्रेसिडेंट) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपसम					 : | पुं०=उपशम।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उप-समिति					 : | स्त्री० [सं० अत्या० स०] किसी बड़ी सभा या समिति द्वारा किसी विषय की जाँच करने अथवा उस पर सम्मति देने के लिए नियुक्त की हुई छोटी समिति। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपसरण					 : | पुं० [सं० उप√सृ (गति)+ल्युट-अन] १. किसी की ओर आना, जाना या पहुँचना। २. रक्त का तेजी से हृदय की ओर बहना। ३. शरण। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपसर्ग					 : | पुं० [सं० उप√सृज् (त्याग)+घञ्] १. वह अव्यय या शब्द जो कुछ शब्दों के आरंभ में लगकर उनके अर्थों का विस्तार करता अथवा उनमें कोई विशेषतः उत्पन्न करता है। जैसे—अ, अनु, अप, वि, आदि उपसर्ग है। २. बुरा लक्षण या अपशगुन। ३. किसी प्रकार का उत्पात, उपद्रव या विघ्न। ४. वह पदार्थ जो कोई पदार्थ बनाते समय बीच में संयोगवश बन जाता या निकल आता है। (बाई प्राडक्ट) जैसे—गुड़ बनाते समय जो शीरा निकलता है, वह गुड़ का उपसर्ग है। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपसर्जन					 : | पुं० [सं० उप√सृज्+ल्युट-अन] १. गढ़, ढाल या बनाकर तैयार करना। २. दैवी उत्पात या उपद्रव। ३. अप्रधान या गौण वस्तु। ४. त्याग। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपसर्पण					 : | पुं० [सं० उप√सृप्(गति)+ल्युट-अन] किसी की ओर या आगे बढ़ना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपसवना					 : | अ० [सं० उपसरना] कहीं से भाग या हटकर चले जाना। उदाहरण—लै उपसवा जलंधर जोगी।—जायसी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उप-सागर					 : | पुं० [सं० अत्या० स०] बड़े सागर का कोई छोटा अंश या भाग। समुद्र की खाड़ी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपसादन					 : | पुं० [सं० उप√सद्+णिच्+ल्युट-अन] १. सेवा में उपस्थित होना। २. सम्मान करना। ३. किसी काम का भार लेना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपसाना					 : | स० [सं० उपसना] गलाना या सड़ाना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उप-सुंद					 : | पुं० [सं० ब० स०] सुंद नामक दैत्य का छोटा भाई। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपसृष्ट					 : | भू० कृ० [सं० उप√सृज्+क्त] १. पकड़ा हुआ। २. प्रेत आदि द्वारा पकड़ा हुआ। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपसेक					 : | पुं० [सं० उप√सिच् (सींचना)+घञ्] १. छिड़कना। २. तर करना। सींचना। ३. बचाव। रक्षा। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपसेचन					 : | पुं० [सं० उप√सिच्+ल्युट-अन] १. पानी से तर करना या भिगोना। २. सींचना। ३. रसेदार व्यंजन। जैसे—तरकारी, दाल आदि। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपसेवन					 : | पुं० [सं० उप√सेव् (सेवा करना)+ल्युट-अन] १. सेवा करना। २. सेवन करना। ३. आलिंगन करना। गले लगाना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपस्कर					 : | पुं० [सं० उप√कृ(करना)+अप्, सुट्] १. चोट या हानि पहुँचाना। २. हिंसा करना। ३. जीवन-निर्वाह में सहायक होनेवाली चीजें या बातें। ४. सजावट या सजाने की सामग्री। उपस्कार। ५. कोई ऐसा यंत्र जिसमें अनेक छोटे-छोटे तथा पेचीले कल पुरजे हों। संयंत्र। (एपरेटस) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपस्करण					 : | पुं० [सं० उप√कृ+ल्युट-अन, सुट्] १. हानि या चोट पहुँचाना। २. सँवारना। सजाना। ३. विकार। ४. निंदा। ५. समूह। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपस्कार					 : | पुं० [सं० उप√कृ+घञ्, सुट्] १. रिक्त स्थान की पूर्ति करनेवाली चीज। २. सँवारना। सजाना। ३. घर-गृहस्थी आदि में सजावट की सामग्री। (फर्निचर) ४. आभूषण। गहना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपस्कृत					 : | भू० कृ० [सं० उप√कृ+क्त, सुट्] १. बनाया या प्रस्तुत किया हुआ। २. इकट्ठा किया हुआ। ३. बदला हुआ। ४. लांछित। ५. हत। ६. सँवरा या सजाया हुआ। ७. अलंकृत। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपस्तरण					 : | पुं० [सं० उप√स्तृ (फैलाना)+ल्युट-अन] १. फैलाना। बिछाना। २. बिछावन। बिछौना। ३. चादर। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उप-स्त्री					 : | स्त्री० [सं० अत्या० स०] बिना विवाह किये हुए रखी हुई स्त्री। रखेली। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपस्थ					 : | वि० [सं० उप√स्था (ठहरना)+क] बैठा हुआ। पुं० १. शरीर का मध्य भाग। २. पेड़ू। ३. पुरुष या स्त्री की जननेंद्रिय। लिंग या भग। ४. मल-त्याग का मार्ग। गुदा। ५. चूतड़। ६. गोद। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उप-स्थल					 : | पुं० [सं० अत्या० स०] [स्त्री० उपस्थली] १. चूतड़। २. रेड़ू। ३. कूल्हा। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपस्थली					 : | स्त्री० [सं० उपस्थल+ङीष्] कटि। कमर। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपस्थाता (तृ)					 : | वि० [सं० उप√स्था+तृच्] १. उपस्थित रहनेवाला। २. समीप रहनेवाला। ३. उपा-सक। पुं० नौकर। भूत्य। सेवक। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपस्थान					 : | पुं० [सं० उप√स्था+ल्युट-अन] १. किसी के समीप जाना या पहुँचना। २. उपस्थित होना। ३. अभ्यर्थना, पूजा आदि के लिए पास आना। ४. पूजा आदि का स्थान। ५. समाज। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपस्थापक					 : | पुं० [सं० उप√स्था+णिच्, पुक्+ण्वुल्-अक] १. प्रस्ताव आदि के रूप में किसी सभा या समिति के समक्ष विचार करने के लिय कोई प्रस्ताव या विषय उपस्थित करनेवाला। २. पेशकार। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपस्थापन					 : | पुं० [सं० उप√स्था+णिच्, पुक्+ल्युट-अन] १. उपस्थित करना। २. सभा, समिति आदि के समक्ष कोई विषय प्रस्ताव के रूप में विचारार्थ उपस्थित करना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपस्थापित					 : | भू० कृ० [सं० उप√स्था+णिच्, पुक्+क्त] जिसका उपस्थापन हुआ हो। उपस्थित किया हुआ। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपस्थित					 : | वि० [सं० उप√स्था+क्त] १. पास या समीप बैठा हुआ। २. जो दूसरों के समक्ष या उनकी उपस्थित में आया हो। ३. सामने आया हुआ। प्रस्तुत। ४. ध्यान या मन में आया हुआ। ५. स्मृति में वर्तमान। याद। जैसे—इन्हें तो सारी गीता उपस्थित है। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपस्थिता					 : | स्त्री० [सं० उपस्थित+टाप्] एक वर्णवृत्त जिसके प्रत्येक चरण में एक तगण, दो जगण और एक अन्त में एक गुरु होता है। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपस्थिति					 : | स्त्री० [सं० उप√स्था+क्तिन्] १. उपस्थित होने की अवस्था, क्रिया या भाव। मौजूदगी। २. हाजिरी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपस्थिति-अधिकारी (रिन्)					 : | पुं० [ष० त०] किसी संस्था, विशेषतः शिक्षा देनेवाली संस्था का वह अधिकारी जो शिक्षार्थियों की उपस्थिति संबंधी देख-भाल करता और उपस्थिति बढ़ाने का प्रयत्न करता है। (एटेण्डेण्टआफिसर) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपस्थिति-पंजी					 : | स्त्री० [ष० त०] वह पंजी जिसमें किसी कार्यालय, संस्था आदि में नित्य और नियमित रूप से उपस्थित होनेवाले लोगों की उपस्थिति का लेखा रहता है। (एटेण्डेन्स रजिस्टर) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपस्थिति-पत्र					 : | पुं० [सं० ष० त०] किसी को किसी अधिकारी के सामने किसी निश्चित समय पर उपस्थित होने के लिए भेजा हुआ आधिकारिक पत्र या सूचना। आकारक। (साइटेशन) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपस्पर्श					 : | पुं०=आचमन। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उप-स्मृति					 : | स्त्री० [सं० अत्या० स०] हिन्दुओँ में, स्मृतियों के वर्ग में माने जानेवाले कुछ गौण विधायक ग्रन्थ। जैसे—कर्पिजल, कात्यायन, जाबालि, विश्वामित्र या स्कंद की उप-स्मृति। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उप-स्वत्व					 : | पुं० [सं० अत्या० स०] १. जमीन या किसी जायदाद की पैदावार या आमदनी लेने का अधिकार या स्वत्व। २. लगान। ३. आय। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपस्वेद					 : | पुं० [सं० उप√स्विद् (पसीना निकलना)+घञ्] १. आर्द्रता। नमी। २. भाप। वाष्प ३. पसीना । स्वेद। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपहत					 : | वि० [सं० उप√हन् (हिंसा)+क्त] १. नष्ट किया हुआ। २. खराब किया या बिगाड़ा हुआ। ३. (सुरासव) जो कुछ विशिष्ट रासायनिक पदार्थों के योग से इतना विषाक्त कर दिया गया हो कि लोग उसे पी न सके। (मैथिलेटेड) ४. कष्ट या संकट में पड़ा हुआ। ५. अपवित्र या अशुद्ध किया हुआ। ६. दुःखी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपहत-चित्त					 : | स्त्री० [सं० ब० स०] १. विवेक से रहित या शून्य। २. पागल। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपहति					 : | स्त्री० [सं० उप√हन्+क्तिन्] १. उपहत होने की अवस्था या भाव। २. विनाश। ३. हानि। ४. अत्याचार। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपहरण					 : | पुं० [सं० उप√हृ (हरण करना)+ल्युट-अन] १. पास या समीप लाना या पहुँचाना। २. हरण करना। छीनना या लूटना। ३. उपहार। भेंट। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपहव					 : | पुं० [सं० उप√ह्वे (बुलाना)+अप्] आवाहन। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपहसित					 : | पुं० [सं० उप√हस् (हँसना)+क्त] साहित्य में हास्य का वह प्रकार जिसमें आदमी सिर हिलाते हुए, आँखे टेढ़ी करके, नाक फुला कर तथा कन्धे सिकोड़ कर हँसता है। (हास के छः भेदों में से एक है)। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपहार					 : | पुं० [सं० उप√हृ (हरण करना)+घञ्] १. प्रसन्न होकर सद्भावपूर्वक किसी मित्र, संबंधी आदि को कोई वस्तु देना। २. किसी विशिष्ट अवसर पर किसी को (स्मृति चिन्ह के रूप में) दी जानेवाली कोई वस्तु। भेंट। (गिफ्ट) जैसे—कन्या के विवाह में उपहार देना। ३. शैवों के उपासना के छः नियम (हसित, गीत, नृत्य डुडुक्कार, नमस्कार और जप) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपहार-संधि					 : | स्त्री० [मध्य० स०] किसी विरोधी या शत्रु को कुछ उपहार देकर उसके साथ की जानेवाली संधि। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपहारी (रिन्)					 : | वि० [सं० उपहार+इनि] उपहार देनेवाला। भेंट करनेवाला। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपहास					 : | पुं० [सं० उप√हस्+घञ्] १. हँसी। दिल्लगी। २. यों ही हँसते हुए किसी की खिल्ली या दिल्लगी उड़ाना। हँसते-हँसते किसी को तुच्छ या हीन ठहराना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपहासक					 : | वि० पुं० [सं० उप√हस्+ण्वुल्-अक] दूसरों का उपहास करने वाला। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपहासास्पद					 : | वि० [सं० उपहास-आस्पद, ष० त०] जो उपहास किये जाने के योग्य हो। जिसका उपहास किया जा सके। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपहासी (सिन्)					 : | वि० [सं० उप√हस्+णिनि] उपहास करनेवाला। स्त्री०=उपहास। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपहास्य					 : | वि० [सं० उप√हस्+ण्यत्] १. जिसका उपहास हो सकता हो या किया जा सकता हो। २. (इतना तुच्छ) जिसे देखकर हँसी आती हो। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपहित					 : | वि० [सं० उप√धा (धारण)+क्त-धाहि०] १. ऊपर रखा हुआ। स्थापित। २. धारण किया हुआ। ३. पास रखा या लाया हुआ। ४. मिला या मिलाया हुआ। सम्मिलित। ५. किसी प्रकार की उपाधि से युक्त। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उपही					 : | पुं० [सं० उपरि] १. बाहरी। २. परदेशी। विदेशी। ३. अपरिचित। ऊपरी। बाहरी। उदाहरण—प्रानहुँ ते प्यारे प्रीतम उपही।-तुलसी। ४. ऐसा आदमी जिसका प्रस्तुत विषय से कोई संबंध न हो।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उपहूति					 : | स्त्री० [सं० उप√ह्वे+क्तिन्] चुनौती। प्रचारणा। | 
			
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				| उपह्रत					 : | भू० कृ० [सं० उप√हृ (हरण करना)+क्त] १. पास लाया हुआ। २. अर्पण या भेंट किया हुआ। उपहार के रूप में दिया हुआ। | 
			
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				| उपांग					 : | पुं० [सं० उप-अंग, अत्या० स०] १. किसी वस्तु के किसी अंग या भाग का गौण या छोटा अंग। २. ऐसा छोटा अंग जिससे किसी बड़े अंग की पूर्ति होती हो। जैसे—धर्मशास्त्र, पुराण आदि वेदों के उपांग हैं। ३. टीका। तिलक। ४. एक प्रकार का पुराना बाजा। | 
			
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				| उपांजन					 : | पुं० [सं० उप√अञ्ज् (आँजना, चिकनाना)+ल्युट-अन] १. पोतना। लीपना। २. सफेदी करना। | 
			
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				| उपांत					 : | पुं० [सं० उप-अंत, अत्या० स०] १. वह जो अंतिम से ठीक पहले हो। २. अंतिम स्थान या अंत के आस-पास का भू-भाग या स्थान। ३. नदी या तट का किनारा। ४. सीमा। हद। ५. कपड़े का आँचल। ६. आज-कल, लिखने के समय कागज की दाहिनी या बाई ओर छोड़ा जानेवाला थोड़ा-सा खाली स्थान जिसमें आवश्यकता होने पर बाद में कुछ और बातें बढ़ाई या लिखी जा सकती है। हाशिया। (मार्जिन) | 
			
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				| उपांत-साक्षी (क्षिन्)					 : | पुं० [सं० ष० त०] वह साक्षी जिसने किसी लेख के उपांत पर हस्ताक्षर किया हो। (मार्जिन विटनेस) | 
			
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				| उपांतस्थ					 : | वि० [सं० उपांत√स्था(ठहरना)+क] १. उपांत पर होनेवाला। २. कागज के हाशिये पर लिखा हुआ। उपांतिक। | 
			
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				| उपांतिक					 : | वि० [सं० उप-अंतिक, प्रा० स०] १. पास या समीप का। २. उपांत में रहने या होनेवाला। (मार्जिनल) | 
			
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				| उपांतिका					 : | स्त्री० [सं० उपान्त] विधायिका सभाओं, संसदों आदि के अधिवेशन के कमरे के आस-पास का वह कमरा जिसमें जन-साधारण भी आ सकते हैं। (लाबी) | 
			
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				| उपांतिम					 : | वि० [उप-अंतिम, प्रा० स०] =उपांतिक। | 
			
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				| उपांत्य					 : | वि० [सं० उप-अंत्य० प्रा० स०] १. अंत के पास का। २. अंतिम से पहले का। | 
			
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				| उपाउ					 : | पुं०=उपाय।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उपाकरण					 : | पुं० [सं० उप-आ√कृ(करना)+ल्युट-अन] =उपक्रम। | 
			
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				| उपाकर्म (न्)					 : | पुं० [सं० उप-आ√कृ+मनिन्] १. श्रावणी पूर्णिमा को संस्कारपूर्वक वेदपाठ का आरम्भ करना। २. यज्ञोपवीत संस्कार। ३. =उपक्रम। | 
			
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				| उपाकृत					 : | वि० [सं० उप-आ√कृ+क्त] १. पास लाया हुआ। २. आरम्भ किया हुआ। ३. विपत्तिजनक। ४. (पशु) जिसे बलि चढ़ाया गया हो। | 
			
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				| उपाख्या					 : | स्त्री० [सं० उप-आ√ख्या (कहना)+अ-टाप्] १. कुछ जानने के लिए स्वयं देखना। २. शब्दों के द्वारा कुछ वर्णन करना। ३. विवरण बतलाना। ४. दूसरों की प्रतिभा में रस लेने या उसका फल ग्रहण करने की शक्ति। | 
			
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				| उपाख्यान					 : | पुं० [सं० उप-आ√ख्या+ल्युट-अन] १. विस्तारपूर्वक कही हुई कोई पुरानी कथा। २. किसी कथा के अंतर्गत आनेवाली कोई छोटी कथा उपकथा। ३. वर्णन। वृत्तान्त। | 
			
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				| उपागत					 : | भू० कृ० [सं० उप-आ√गम्(जाना)+क्त] १. आया या पहुँचा हुआ। २. जो घटित हुआ हो। ३. जिस पर किसी प्रकार का प्रतिबंध लगा हो। | 
			
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				| उपागम					 : | पुं० [सं० उप-आ√गम्+अप्] १. कहीं आना या पहुँचना। २. घटित होना। ३. किसी प्रकार के प्रतिबंध में होना। | 
			
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				| उपाग्रहण					 : | पुं० [सं० उप-आ√ग्रह(ग्रहण करना)+ल्युट-अ] =उपाकर्म। | 
			
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				| उपाचार					 : | पुं० [सं० उप-आचार, अत्या० स०] बहुत दिनों से चली आई हुई गौण परिपाटी या प्रथा जिसकी गणना आचार के अंतर्गत होती है। (यूसेज) | 
			
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				| उपाटना					 : | स० [सं० उत्पाटन] जड़ से नोचना। उखाड़ना। | 
			
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				| उपाठ					 : | वि० [सं० पुष्ठ, हिं० पाठ] १. पक्का। पुष्ट। २. पका हुआ।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उपाठना					 : | स० [हिं० उपाठ] १. दृढ़ या पक्का करना। २. पकाना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उपाड़					 : | पुं० [हिं० उपड़ना=उभरना] एक प्रकार का रोग जिसमें शरीर की खाल कुछ अलग होने लगती है।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उपाड़ना					 : | स० [सं० उत्पाटन] जड़ से उखाड़ना। स० [सं० उत+पठन ?] १. उच्चारण करना। २. पढ़ना। ३. अर्थ या भाव निकालना या समझना। स० उभारना। | 
			
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				| उपाती					 : | स्त्री०=उत्पत्ति।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उपात्यय					 : | पुं० [सं० उप-अति√इ(गति)+अच्] किसी प्रथा या रीति-रिवाज का होनेवाला उल्लंघन अथवा उसके विरुद्ध किया जानेवाला आचरण। | 
			
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				| उपादान					 : | पु० [सं० उप-आ√दा (देना)+ल्युट-अन] [वि० उपादेय] १. अपने लिए कुछ प्राप्त करना। २. किसी की कोई वस्तु अपने प्रयोग में लाना। ३. देखना,पढ़ना या सीखना। ज्ञान प्राप्त करना। ४. ज्ञान। बोध। ५. इंन्द्रियों का अपने भोग-विषयों की ओर से हट जाना। ६. न्याय में, ऐसा तत्त्व जो कोई और रूप धारण करके किसी वस्तु के बनने का कारण होता है। जैसे—मिट्टी वह उपादान है, जिससे घड़ा बनता है। ७. सांख्य में, चार प्रकार की आध्यात्मिक तुष्टियों में से एक जिसमें मनुष्य एक ही बात से पूर्ण फल की आशा करके अन्य प्रयत्न छोड़ देता है। ८. दे० ‘उपादान लक्षणा’। | 
			
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				| उपादान-कारण					 : | पुं० [कर्म० स०] दे० ‘उपादान’5। | 
			
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				| उपादान-लक्षणा					 : | स्त्री० [सं० मध्य० स०] साहित्य में लक्षणा का वह प्रकार या भेद जिसमें मुख्य अर्थ ज्यों का त्यों बना रहने पर भी साथ में कोई और अर्थ अथवा किसी और का कर्तृत्व भी ग्रहण कर लेता अथवा सूचित करने लगता है। जैसे—वहाँ जमकर लाठियाँ चलीं। में ‘लाठियो’ ने चलाने वालों का कर्तृत्व ग्रहण कर लिया है। | 
			
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				| उपादि					 : | स्त्री०=उपाधि।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उपादेय					 : | वि० [सं० उप-आ√दा+यत्] १. जो ग्रहण किया या लिया जा सकता हो। ग्रहण किये या लिये जाने के योग्य। २. अच्छा और काम में आने योग्य। उपयोगी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उपाधा					 : | स्त्री०=उपाधि। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उपाधि					 : | स्त्री० [सं० उप-आ√धा (धारण)+कि] १. वह जो किसी दूसरे स्थान पर काम आ सके या रखा जा सके। २. दूसरे का ऐसा वेश जो किसी को धोखा देने के लिए धारण किया गया हो। छद्य-वेश। ३. वह तत्त्व जिसके कारण कोई चीज़ और की और अथवा किसी विशेष रूप में दिखाई दे। जैसे—घडे़ के भीतर होने की दशा में आकाश का परिमित दिखाई देना। ४. उत्पात। उपद्रव। ५. कर्त्तव्य का विचार। ६. महत्त्व, योग्यता, सम्मान आदि का सूचक वह पद या शब्द जो किसी नाम के साथ लगाया जाता है। पदवी। खिताब। (टाइटिल) जैसे—आज-कल लोगों को पद्य-विभूषण, भारत रत्न आदि की उपाधियाँ मिलने लगी है। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपाधि-धारी (रिन्)					 : | पुं० [सं० उपाधि√धृ (धारण करना)+णिनि] वह व्यक्ति जिसे किसी प्रकार की उपाधि मिली हो। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उपाधी					 : | वि० [सं० उपाधि से] उत्पात करनेवाला। उपद्रवी। स्त्री०=उपाधि।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उपाध्यक्ष					 : | पुं० [सं० उप-अध्यक्ष, अत्या० स०] किसी संस्था, समिति में अध्यक्ष के सहायक रूप में परन्तु उसके अधीन काम करनेवाला पदाधिकारी। (वाइस चेयरमैन) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उपाध्या					 : | पुं०=उपाध्याय।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उपाध्याय					 : | पुं० [सं० उप-अधि√इ(अध्ययन)+घञ्] १. वेद-वेदागों का अध्ययन करनेवाला पण्डित। २. अध्यापक। शिक्षक। ३. कई वर्गों के ब्राह्मणों में एक भेद या उपजाति। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उपाध्याया					 : | स्त्री० [सं० उपाध्याय+टाप्] अध्यापिका। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उपाध्यायानी					 : | स्त्री० [सं० उपाध्याय+ङीष्, आनुक] उपाध्याय की स्त्री। गुरुपत्नी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपाध्यायी					 : | स्त्री० [सं० उपाध्याय+ङीष्] १. उपाध्याय की स्त्री। गुरुपत्नी। २. पढ़ानेवाली स्त्री। अध्यापिका। शिक्षिका। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उपान					 : | स्त्री० [हिं० ऊपर+आन(प्रत्य)] इमारत की कुरसी। २. खम्भे के नीचे आकार रूप में रहनेवाली चौकी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपानह					 : | पुं० [सं० उपानत्] १. जूता। २. खड़ाऊ। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उपाना					 : | स० [सं० उत्पादन, पा० उत्पन्न] उत्पन्न करना० पैदा करना। उदाहरण—(क) अखिल विस्व यह मोर उपाया।—तुलसी। (ख) भोग भुगुति बहु भाँति उपाईष-जायसी। स० [सं० उपाय] उपाय या मुक्ति निकालना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उपाय					 : | पुं० [सं० उप√अय् (गति)+घञ्] १. ऐसा प्रयत्न जिससे सार्विक रूप से अथवा साधारणतः कोई काम सिद्ध हो, अथवा वांछित फलकी प्राप्ति हो। २. तरकीब। युक्ति। ३. युद्ध की व्यूह रचना। ४. शासन-प्रबन्ध। व्यवस्था। ५. चिकित्सा। इलाज। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपायन					 : | पुं० [सं० उप√इ वा√अय्+ल्युट-अन] १. प्राचीन काल में, किसी राज द्वारा किसी महाराजा को दी जानेवाली भेंट। २. मित्रों आदि को परदेस या विदेश से लाकर भेंट की हुई कोई विलक्षण या सुन्दर वस्तु। सौगात। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपायिक					 : | वि० [सं० उपाय+ठन्-इक] उपाय करके उन्नति करने या बढाने वाला। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपायी (विन्)					 : | वि० [सं० उप√अय्+णिनि] उपाय करने या सोचनेवाला। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपायुक्त					 : | पुं० [सं० उप-आयुक्त, अत्या० स०] प्रतिआयुक्त। (डिप्टी कमिश्नर) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपारंभ					 : | पुं० [सं० उप-आ√रभ्+घञ्, नुम्] आरंभ। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपारना					 : | स०=उपाड़ना। (उखाड़ना) (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपार्जक					 : | वि० [सं० उप√अर्ज् (प्रयत्न)+ण्वुल्-अक] उपार्जन करने या कमाने वाला। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपार्जन					 : | पुं० [सं० उप√अर्ज्+ल्युट्-अन] १. प्राप्त या हस्तगत करने की क्रिया या भाव। २. उद्योग या प्रयत्नपूर्वक लाभ करना। कमाना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपार्जनीय					 : | वि० [सं० उप√अर्ज्+अनीयर] जो उपार्जन किये जाने के योग्य हो। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपार्जित					 : | भू० कृ० [सं० उप√अर्ज्+क्त] प्राप्त किया, कमाया या हस्तगत किया हुआ। जैसे—धन या यश उपार्जित करना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपार्थ					 : | वि० [सं० उप-अर्थ, ब० स०] थोड़े या महत्त्व मूल्य का। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपालंभ					 : | पुं० [सं० उप-आ√लभ्+घञ्, नुम्] [वि० उपालब्ध] किसी के अनुचित या अशिष्ट व्यवहार के कारण उससे की जानेवाली शिकायत। उलहना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपालंभन					 : | पुं० [सं० उप-आ√लभ्+ल्युट-अन, नुम्] उपालंभ देना। उलहना देना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपाव					 : | पुं०=उपाय।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपावर्तन					 : | पुं० [सं० उप-आ√वृत्(बरतना)+ल्युट-अन] [भू० कृ० उपावृत्त] १. फिर से आना। २. वापस आना। लौटना। ३. पास आना। ४. चक्कर देना। ५. विरत होना। छोड़ना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपाश्रय					 : | पुं० [सं० उप-आ√श्रि (सेवा)+अच्] १. वस्तु जिसके सहारे खड़ा हुआ जाय या रुका जाय। आश्रय। सहारा। २. छोटा या हलका आश्रय या सहारा। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपासंग					 : | पुं० [सं० उप-आ√सञ्ज् (मिलना)+घञ्] १. निकटता। सामीप्य। २. तूणीर। तरकश। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपास					 : | पुं०=उपवास।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपासक					 : | पुं० [सं० उप√आस् (बैठाना)+ण्वुल्-अक] [स्त्री० उपासिका] १. वह जो उपासना या पूजन करता हो। २. भक्त। वि० [हिं० उपवास से] उपवास करनेवाला। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपासन					 : | पुं० [सं० उप√आस्+ल्युट-अन] १. किसी के पास बैठना या आसन ग्रहण करना। २. उपासना करना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपासना					 : | स्त्री० [सं० उप√आस्+युच्-अन-टाप्] १. किसी के पास बैठना। २. ईश्वर, देवता आदि की मूर्ति के पास बैठकर किया जानेवाला आध्यात्मिक चिन्तन और पूजन। ईश्वर या देवता को प्रसन्न करने के लिए किया जानेवाला आराधन। ३. लाक्षणिक अर्थ में किसी वस्तु में होनेवाली अत्यधिक आसक्ति अथवा उसी में बराबर लगे रहने की भावना। जैसे—(क) धन या शक्ति की उपासना। (ख) मद्य, मांस आदि की उपासना। स० उपासना (आराधना, ध्यान और पूजन) करना। अ० [सं० उपवास] उपवास करना। निराहार रहना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपासनीय					 : | वि० [सं० उप√आस्+अनीयर] १. जिसकी उपासना करना आवश्यक या उचित हो। २. पूजनीय। पूज्य। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपासा					 : | स्त्री० [सं० उप√आस्+अ-टाप्] उपासना। वि० [सं० उपवास] [स्त्री० उपासी] १. जिसने उपवास किया हो। २. जो भोजन न मिलने के कारण भूखा रहता हो। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपासित					 : | भू० कृ० [सं० उप√आस्+क्त] जिसकी उपासना की गई हो। पुं० वह जो उपासना करता हो। उपासक। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपासी (सिन्)					 : | पुं० [सं० उप√आस्+णिनि] =उपासक। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपास्तमन					 : | पुं० [सं० उप-अस्तमन, प्रा० स०] १. सूर्य का अस्त होना। २. दे० ‘अस्तमन’। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपास्ति					 : | स्त्री० [सं० उप√आस्+क्तिन्] =उपासना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपास्त्र					 : | पुं० [सं० उप-अस्त्र, अत्या०स०] छोटा, साधारण या हलका अस्त्र। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपास्य					 : | वि० [सं० उप√आस्+ण्यत्] १. जिसकी उपासना की जाती हो। २. जो उपासना किये जाने के योग्य हो। जिसकी उपासना करना आवश्यक या उचित हो। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपास्य-देव					 : | पुं० [सं० कर्म० स०] वह देवता जिसकी उपासना कोई करता हो। इष्ट-देव। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपाहार					 : | पुं० [सं० उप-आहार, अत्या० स०] १. थोड़ा और हलका भोजन। २. जल-पान। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपाहित					 : | भू० कृ० [सं० उप-आ√धा (धारण करना)+क्त, हिं० आदेश] १. किसी स्थान में रखा हुआ। २. पहना हुआ। ३. सटा या लगा हुआ। ४. निश्चित किया हुआ। पुं० अग्निभय। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपेंद्र					 : | पुं० [सं० उप-इन्द्र, अत्या० स०] १. इन्द्र के छोटे भाई का नाम। २. श्रीकृष्ण। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपेंद्रवज्रा					 : | स्त्री० [सं० उप-इन्द्रवज्रा, अत्या० स०] ग्यारह वर्णों का एक छन्द, जिसके प्रत्येक चरण में क्रमशः जगण, तगण, जगण और अंत में दो गुरु होते हैं। जैसे—चला गया जीवित लोक सारा, बनी अजीवा-सम शून्य जीवा। पुनः वहाँ कौरवो-पांडवों की पड़ी सुनाई रण घोषणायें।—अंगराज। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपेक्षक					 : | पुं० [सं० उप√ईक्ष् (देखना)+ण्वुल्-अक] वह जो किसी की उपेक्षा करता हो। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपेक्षण					 : | पुं० [सं० उप√ईक्ष्+ल्युट-अन] उपेक्षा करते हुए अलग या दूर रहना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपेक्षणीय					 : | वि० [सं० उप√ईक्ष्+अनीयर] जो उपेक्षा किये जाने के योग्य हो। उपेक्षा का पात्र। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपेक्षा					 : | स्त्री० [सं० उप√ईक्ष्+अ+टाप्] १. देखना। २. देखते हुए भी ध्यान न देना। ३. किसी को अयोग्य या तुच्छ समझकर अथवा उसे नीचा दिखाने के लिए उसकी ओर ध्यान न देना। उचित ध्यान न देना। आदर या सम्मान न करना। ४. अवहेलना। ५. योग की एक भावना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपेक्षा-विहारी (रिन्)					 : | पुं० [सं० उपेक्षा-वि√हृ+णिनि] १. वह जो किसी के साथ उपेक्षापूर्वक व्यवहार करता हो। २. ऐसा साधक जो आध्यात्मिक शक्ति से सर्वोच्च स्थिति तक पहुँच गया हो। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपेक्षासन					 : | पुं० [सं० उपेक्षा-आसन, तृ० त०] प्राचीन भारतीय राजनीति में, शत्रु की उपेक्षा करते हुए चुपचाप बैठे रहना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपेक्षित					 : | भू० कृ० [सं० उप√ईक्ष्+क्त] जिसकी उपेक्षा की गई हो। जिसका आदर-सम्मान न किया गया हो अथवा जिसकी ओर उचित ध्यान न दिया गया हो। तिरस्कृत। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उपेक्ष्य					 : | वि० [सं० उप√ईक्ष्+ण्यत्] १. जिसकी उपेक्षा करना उचित हो। २. जिसकी उपेक्षा की जाती हो या की गई हो। | 
			
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				| उपेखना					 : | स०=उपेक्षा करना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उपेय					 : | वि० [सं० उप√इ(गति)+यत्] जिसकी कोई उपाय हो सकता हो या किया जा सकता हो। | 
			
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				| उपैना					 : | वि० [सं० उ+पह्नव] १. खुला हुआ। अनावृत्त। २. नंगा। अ० [?] १. गायब या लुप्त हो जाना। उदाहरण—देखत वुरै कपूर ज्यौं उपैनाइ जिनलाल।—बिहारी। २. न रह जाना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उपोद्घात					 : | पुं० [सं० उप-उद्√हन् (हिंसा, गति)+घञ्, कुत्व] १. पुस्तक के आरंभ का वक्तव्य। प्रस्तावना। भूमिका। २. वह व्यवस्था या कृत्य जो कोई आरंभ करने से पहले किया जाता है। ३. नव्य न्याय में 6 संगतियों में से एक। सामान्य कथन से भिन्न, निर्दिष्ट या विशिष्ट वस्तु के विषय में होनेवाला कथन। | 
			
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				| उपोषण					 : | पुं० [सं० उप√उष्+ल्युट-अन] उपवास करना। | 
			
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				| उपोषित					 : | वि० [सं० उप√उष्+क्त] जिसने उपवास किया हो। पुं०=उपवास। | 
			
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				| उपोसथ					 : | पुं० [सं० उपवसथ, प्रा० उपोसथ] उपवास। (जैन और बौद्ध)। | 
			
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				| उप्त					 : | भू० कृ० [सं०√वप्(बोना)+क्त] बोया हुआ। | 
			
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				| उप्पन्न					 : | वि०=उत्पन्न। | 
			
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				| उप्पम					 : | स्त्री० [देश] एक प्रकार की कपास। (दक्षिण भारत)। वि०=अनुपम।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उफ					 : | अव्य, [अ०] अपनी या किसी दूसरे की मानसिक या शारीरिक पीड़ा देखकर कोई भयानक दृश्य देखकर मुंह से निकलनेवाला एक शब्द। | 
			
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				| उफड़ना					 : | अ०=उबलना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उफनना					 : | अ० [सं० उत्+फेन] उबलना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उफनाना					 : | स०=उबालना। अ० उबलना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उफान					 : | पुं० [सं० उत्+फेन] उफनने या उबलने की क्रिया या भाव। उबाल। | 
			
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				| उफाल					 : | स्त्री०=फाल (डग) | 
			
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				| उबकना					 : | अ० [हिं० उबाक] उबाक आना या होना। मुँह से उबाक निकलना। जी मिचलाना या कै करने को जी चाहना। स० १. बाहर निकालना। २. दूर करना या हटाना। स०=बकना। | 
			
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				| उबका					 : | पुं० [सं० उद्वाहक, पा० उब्बाहक] डोरी या रस्सी का वह फन्दा जिसमें लोटे, गगरे आदि का मुँह बाँधकर कुएँ आदि से जल निकालने के लिए लटकाया जाता है। | 
			
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				| उबकाई					 : | स्त्री० [हिं० ओकाई] १. उलटी। कै। २. मिचली। मितली। | 
			
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				| उबछना					 : | स० [सं० उत्प्रेक्षण, प्रा० उप्पोक्खन, उप्पोच्छन] १. कपड़ा पछाड़ कर धोना। २. सिंचाई के लिए पानी खींचना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उबट					 : | पुं० [सं० उद्वाट] अट-पट मार्ग। विकट रास्ता। वि० ऊबड़-खाबड़।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उबटन					 : | पुं० [सं० उद्वर्तन, प्रा० उब्बउणं, पा० उब्बहन, पूर्वी० हिं० अबटन] १. शरीर की त्वचा को कोमल और स्वच्छ करने के लिए उस पर लगाया जानेवाला सरसों, चिरौंजी, तिल आदि का लेप। २. विवाह की एक रीति जिसमें विवाह के पूर्व वर-वधू के शरीर पर उबटन का लेप किया जाता है। | 
			
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				| उबटना					 : | अ० [सं० उद्वर्तन, पा० उब्बटन] उबटन मलना या लगाना। पुं०=उबटन। | 
			
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				| उबना					 : | स० [सं० उत्=ऊपर, वज् गम्=जाना] १. उगना। २. फलना-फूलना। ३. उन्नति करना। बढ़ना। अ०=ऊबना। | 
			
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				| उबरना					 : | अ० [सं० उद्वारण, पा० उब्बारन] १. उद्वार पाना। मुक्त होना। छूटना। २. बाकी बच रहना। ३. घात, फन्दे, संकट आदि से बचना या रक्षित रहना। उदाहरण—सो बनि पंडित ज्ञान सिखवत कूबरी हूँ ऊबरी जासो।—भारतेन्दु। | 
			
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				| उबराना					 : | स०=उबारना। | 
			
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				| उबलना					 : | अ० [सं० उद्=ऊपर+वलन=जाना] १. आग पर रखे हुए तरल पदार्थ का फेन के साथ ऊपर उठना। उबाल खाना। २. किनारे तक भर जाने के कारण आधार या पात्र से बाहर निकलना। ३. अन्दर भरे होने के कारण वेगपूर्वक बाहर निकलना। उभड़ना। ४. अन्दर के ताप के कारण शरीर के किसी अंग का फूल या सूजकर ऊपर उठना। उभरना। जैसे—आँखे उबलना। ५. बहुत अधिक अभिमान, क्रोध आदि के कारण अनुचित आचरण करना। मुहावरा—(किसी पर) उबल पड़ना =सहसा क्रोध में आकर खूब उलटी-सीधी या खरी-खोटी सुनाना। | 
			
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				| उबसन					 : | पुं० [सं० उद्वसन] नीरियल आदि की जटा जिससे रगड़कर बरतन आदि माँजे जाते हैं। गुझना। | 
			
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				| उबसना					 : | स० [सं० उद्वसन] बरतन माँजना। अ० [सं० उप+वास्गंध] १. बासी हो जाने के कारण खराब होना। जैसे—कचौरी या पूरी उबसना। २. अधीर या चंचल होना। ३. थककर शिथिल होना। | 
			
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				| उबसाना					 : | स० [हिं० उबसना] ऐसा काम करना जिससे कोई चीज उबसे। अ०=उबसना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उबहन					 : | स्त्री० [सं० उद्वहनी, पा० उब्बहनी] कुएँ से पानी निकालने की डोरी या रस्सी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उबहना					 : | स० [सं० उद्वहन, पा० उब्बहन-ऊपर उठना] १. हथियार उठाना या निकालना। २. उलीचकर पानी बाहर निकालना या फेंकना। ३. खेत जोतना। अ० ऊपर उठना। उभरना। वि० [सं० उपानह] जिसने जूता या पादुका न पहनी हो। जो नंगे पैर चल रहा हो।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उबहनी					 : | स्त्री०=उबहन। (डोरी या रस्सी)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उबाँत					 : | स्त्री० [सं० उद्वांत] उलटी। कै।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उबाक					 : | पुं० [अनु०] १. कै करने या मतली जाने की प्रवृत्ति। जी मिचलाना। २. मतली आने के फलस्वरूप मुँह से निकलनेवाला तरल पदार्थ। कै। वमन। | 
			
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				| उबाना					 : | पुं० [हिं० उबहनानंगा, वा० उ० नहीं+बाना] कपड़ा बुनने में राछ के बाहर रह जानेवाला सूत। स० [सं० उत्पादन] १. उगाना। २. बढ़ाना। वि० [सं० उपानह] जिसके पैर नंगे हो। जो जूता न पहने हो। | 
			
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				| उबार					 : | पुं० [सं० उद्वारण] १. उबरने या उबारने की क्रिया या भाव। उद्वार। छुटकारा। बचाव। पुं० दे० ‘ओहार’। | 
			
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				| उबारना					 : | स० [सं० उद्वारण] कष्ट या विपत्ति से उद्वार करना। संकट से छुड़ाना या मुक्त करना। | 
			
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				| उबारा					 : | पुं० [सं० उद्जल+वारणरोक] वह जल-कुंड जो कुओं आदि के निकट चौपायों के जल पीने के लिए बना रहता है। अहरी। | 
			
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				| उबाल					 : | पुं० [हिं० उबलना] १. उबलने की क्रिया या भाव। २. आग पर रखे हुए तरल पदार्थ का फेन छोड़ते हुए ऊपर उठना। उफान। ३. अस्थायी या क्षणिक आवेश, उद्वेग या क्षोभ। | 
			
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				| उबालना					 : | स० [सं० उद्वालन, पा० उब्बालन] १. तरल पदार्थ को आग पर रखकर इतना गर्म करना कि उसमें से फेन तथा बुलबुले उठने लगें। २. किसी कड़ी चीज को पानी में रखकर इस प्रकार खौलाना कि वह नरम हो जाय। जैसे—आलू या दाल उबालना। | 
			
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				| उबासी					 : | स्त्री० [सं० उश्वास] जँभाई। | 
			
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				| उबाहना					 : | स०=उबहना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उबिठना					 : | अ० [सं० अव+इष्ट, पा० ओइट्ठ] किसी चीज या बात से जी ऊबना। प्रवृत्ति या रुचि न रह जाना। उदाहरण—यह जानत हौं हृदय आपने सपनेउ न अघाइ उबीठे।—तुलसी। | 
			
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				| उबीधना					 : | अ० [सं० उद्विद्ध] १. उलझना। फँसना। २. गड़ना। धँसना। स०१. उलझाना। फँसाना। २. गड़ाना। धँसाना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उबीधा					 : | वि० [सं० उद्विद्ध] १. उलझाने या फँसानेवाला। २. उलझनों या झंझटो से भरा हुआ। ३. कँटीला। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उबेना					 : | वि०=उबहना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उबेरना					 : | स० १. =उभारना। २. =उबारना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उभइ					 : | वि०=उभय। | 
			
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				| उभटना					 : | अ० [हिं० उभरना] १. ऊपर उठना। उभरना। २. अहंकार या गर्व करना। शेखी करना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उभड़ना					 : | अ०=उभरना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उभना					 : | अ०=उठना (खड़े होना)। अ०=ऊबना। | 
			
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				| उभय					 : | वि० [सं० उभ+अयच्] जिन दो का उल्लेख हो रहा हो, वे दोनों। जैसे—उभय पक्षों ने मिलकर यह निश्चय किया है। | 
			
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				| उभय-चर					 : | वि० [सं० उभय√चर्(चलना)+ट] जल और स्थल दोनों में रहनेवाला। (जीव, जंतु)। | 
			
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				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उभयतः					 : | क्रि० वि० [सं० उभय+तसिल्] दोनों ओर से। दोनों पक्षों से। | 
			
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				| उभयतो-मुख					 : | वि० [सं० ब० स०] [स्त्री०उभयतो-मुखी] १. जिसके दोनों ओर मुँह हों। २. दोनों ओर अथवा दो विभिन्न दिशाओं में गति,नति या प्रवृत्ति रखनेवाला। | 
			
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				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उभय-मुखीवि					 : | १. =उभयतो-मुख। २. =गर्भवती। | 
			
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				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उभय-लिंग (नी)					 : | वि० [सं० ब० स०] १. जिसमें स्त्री और पुरुष दोनों के चिन्ह्र या लक्षण हों। २. (व्याकरण में ऐसा शब्द) जो दोनों लिगों के समान रूप से प्रयुक्त होता हो। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उभयवादी (दिन्)					 : | वि० [सं० उभय√वद् (बोलना)+णिनि] १. दोनों ओर से बोलने या दोनों तरह की बातें कहनेवाला। २. (बाजा) जिसमें स्वर भी निकलता हो और ताल भी। | 
			
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				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उभय-विध					 : | वि० [सं० ब० स०] दोनों प्रकारों या विधियों से संबंध रखनेवाला। दोनों प्रकार का। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उभय-व्यंजन					 : | वि० [सं० ब० स०] जिसमें स्त्री और पुरुष दोनों के चिन्ह या लक्षण वर्त्तमान हों। उभय-लिंगी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उभय-संकट					 : | पुं० [ष० त०] ऐसी स्थिति जिसमें दोनों ओर संकट की संभावना हो। धर्म-संकट। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उभय-संभव					 : | पुं० [ष० त०] ऐसी स्थिति जिसमें दोनों तरह की बातें हो सकती हो। वि०=उभय-संकट। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उभयात्मक					 : | वि० [सं० उभय-आत्मन्, ब० स० कप्] १. दोनों के योग से बना हुआ। जिसका संबंध दोनों से हो। २. दोनों प्रकारों या रूपों से युक्त। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उभयान्वयी (यिन्)					 : | वि० [सं० उभय-अन्वय, स० त०+इनि] जिसका अन्वय दोनों ओर या दोनों से हो सके। (व्या) जैसे—काव्य में उभयान्वयी पद या शब्द। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उभयार्थ					 : | वि० [सं० उभय-अर्थ, ब० स०] १. जिसके दो या दोनों अर्थ निकलते हों। द्वयर्थक। २. अस्पष्ट (कथन या बात) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उभयालंकार					 : | पुं० [सं० उभय-अलंकार, कर्म० स०] ऐसा अलंकार जिसमें शब्दालंकार और अर्थालंकार दोनों का योग हो। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उभरना					 : | अ० [सं० उद्भरण, प्रा० उब्भरण] १. नीचे के तल से उठ या निकलकर ऊपर आना। जैसे—अंकुर उभरना। २. किसी आधार या समतल स्तर से कुछ-कुछ या धीरे-धीरे ऊपर उठना या बढ़ना। जैसे—गिल्टी, फोड़ा या स्तन उभरना। ३. ऊपर उठकर या किसी प्रकार उत्पन्न होकर अनुभूत या प्रत्यक्ष होना। उठना जैसे—दरद उभरना, बात उभरना। ४. इस प्रकार आगे आना या बढ़ना कि लोगों की दृष्टि में कुछ खटकने लगे। जैसे—आज-कल कुछ नये गुंडे (या रईस) उबरे हैं। ५. उत्पात, उपद्रव, विद्रोह आदि के क्षेत्रों में प्रकट या प्रत्यक्ष होना। जैसे—किसी पर-तन्त्र देश या प्रजा का उभरना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उभरौहाँ					 : | वि० [हिं० उभार+औहाँ (प्रत्य)] जो ऊपर की ओर उठ या उभर रहा हो। २. उभरने की प्रवृत्ति रखनेवाला। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उभाड़					 : | पुं०=उभार। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उभाड़ना					 : | स०=उभारना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उभाना					 : | अ०=अमुआना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उभार					 : | पुं० [हिं० उभरना] १. उभरने की क्रिया या भाव। २. वह अंश जो कुछ उभर कर ऊपर की ओर उठा या निकला ह। ३. ऊँचाई। ४. वृद्धि। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उभारदार					 : | वि० [हिं० उभार+फा० दार] १. उभरा या उठा हुआ। २. जो अपने अस्तित्व का अनुभव कर रहा हो। जैसे—यह नगीना (या बेल-बूटा) कुछ और उभारदार होना चाहिए था। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उभारना					 : | स० [हिं० उभड़न] १. किसी को उभरने में प्रवृत्त करना। २. कुछ करने के लिए उत्तेजित या उत्साहित करना। जैसे—भाई के विरुद्ध भाई को उभारना। स०=उबारना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उभिटना					 : | अ० [हिं० उबीठना] १. ठिठकना। २. हिचकना। ३. भटकना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उभियाना					 : | स० [हिं० उभना=खड़ा होना] १. खड़ा करना। २. ऊपर उठाना। अ० १. =उभना। २. =उभरना। ३. =ऊबना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उभै					 : | वि० =उभय (दोनों)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उभ्भौं					 : | वि० =उभय। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उमंग					 : | स्त्री० [सं० उद्=ऊपर+मंग-चलना] १. आनंद, उत्साह आदि की ऐसी लहर जो मन में सहसा उत्पन्न होकर किसी को कोई काम करने में प्रवृत्त करे। झोंक। २. मन में होनेवाला आनंद और उत्साह। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उमंगना					 : | अ० [हि० उमग] उमंग से भरना या युक्त होना। उमंग में आना। अ०=उमड़ना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उमंड					 : | पु० [सं० उमंग] १. उमड़ने की क्रिया या भाव। २. आवेश। जोश। ३. तीव्रता। वेग। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उमंडना					 : | अ०=उमड़ना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उमकना					 : | अ० १. उमगना। २. =उखड़ना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उमग					 : | स्त्री०=उमंग।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उमगन					 : | स्त्री०=उमंग। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उमगना					 : | अ० [हिं० उमंग+ना] १. उमंग में आना। २. भरकर ऊपर उठना। उमड़ना। २. आवेश उत्साह आदि से भरकर अथवा किसी प्रकार के आधिक्य के कारण आगे बड़ना या किसी की ओर प्रवृत्त होना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उमगान					 : | स्त्री० [हिं० उमगना] उमगने की क्रिया या भाव। उमंग। उदाहरण—मुखनि मंद मुसकानि कृपा उमगानि बतावति।—रत्नाकर। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उमगाना					 : | सं० [हिं० उमगना का स०] किसी को उमंग से युक्त करना। उमंग में लाना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उमचना					 : | अ० [सं० उन्मञ्च-ऊपर उठना] १. चकित होना। चौंकना। २. चौकन्ना होना। अ०-१. =हुमचना। २. =चौकना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उमड़					 : | स्त्री० [सं० उन्मण्डन्] उमड़ने की क्रिया या भाव। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उमड़ना					 : | अ० [सं० उम-भरना या हिं० उमगना] १. जलाशय विशेषतः नदी में पूरी तरह से भर जाने पर जल का बाहर निकलकर चारों ओर फैलना। जैसे—(क) घटा या बादल उमड़ना। (ख) तमाशा देखने के लिए भीड़ उमडना। पद-उमड़ना-घुमड़ना-घुमड़कर इधर-उधर चक्कर लगाना और छितराना। ३. किसी कोमल मनोवेग के कारण दया आदि उत्पन्न होना। जी भर आना। जैसे—उसे विलाप करते देखकर मेरा मन भी उमड़ आया। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उमड़ाना					 : | स० [हिं० उमडना] किसी को उमड़ने में प्रवृत्त करना। अ०=उमड़ना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उमदगी					 : | स्त्री० =उम्दगी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उमदना					 : | अ० [सं० उन्मद] उन्मत होना। मस्ती पर आना। अ०=उमड़ना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उमदा					 : | वि०=उम्दा। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उमदाना					 : | अ० [सं० उन्मद] १. उमंग में आना। २. मस्त होना। स० किसी को उमंग में लाना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उमर					 : | स्त्री० [अ० उम्र] १. अवस्था। वय। २. सारा जीवन-काल। आयु। जैसे—उमर भर उन्होंने कोई काम नहीं किया। | 
			
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				| उपरण					 : | पुं० [हिं० सुमरण] (स्मरण) के अनुकरण पर बना हुआ एक निरर्थक शब्द। उदाहरण—तेरो हि उमरण तेरोहि सुमरण तेरोहि ध्यान धरूँ।—मीराँ।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उमरती					 : | स्त्री० [सं० अमृत] एक प्रकार का पुराना बाजा। | 
			
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				| उमरा					 : | पुं० [अ० अमीर का बहुवचन] अमीर या सरदार लोग। | 
			
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				| उमराव					 : | पुं० १. उमरा। २. अमीर। (रईस या सरदार)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उमरी					 : | स्त्री० [देश] एक पौधा जिसे जलाकर सब्जी बनाते हैं। मचोल। | 
			
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				| उमस					 : | स्त्री० [सं० ऊष्म] वर्षा ऋतु की ऐसी गरमी जो हवा बंद हो जाने पर लगती है। | 
			
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				| उमहना					 : | अ० [उन्मंथन, प्रा० उम्महन] १. भर कर ऊपर आना। उमड़ना। २. घिरना। छाना। ३. उमंग में आना। उदाहरण—को प्रति उत्तर देय सखि सुनि लोल विलोचन यों उमहे री।—केशव। | 
			
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				| उमहाना					 : | स० [क्रि० उमहना का स० रूप] उमहने में प्रवृत्त करना। उदाहरण—कथा गंगा लागी मोहिं तोरी उहि रस-सिंधु उमहायो।—सूर। | 
			
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				| उमा					 : | स्त्री० [सं० उ-मा, ष० त० या० उ√मो (मान करना)+क-टाप्] १. शिव जी की पत्नी, पार्वती। गौरी। २. दुर्गा। ३. कीर्ति। ४. कांति। ५. ब्रह्मज्ञान या ब्रह्मविद्या। ६. शांति। ७. चंद्रकांत मणि। ८. रात्रि। रात। ९. हलदी। १. अलसी का पौधा। ११. मदिरा नामक चंद का एक नाम। | 
			
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				| उमाकना					 : | स० [?] १. उखाड़ या खोदकर फेकना। उखाडना। २. नष्ट करना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उमाकांत					 : | पुं० [ष० त०] उमा अर्थात् पार्वती के पति, शिव। शंकर। | 
			
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				| उमाकी					 : | वि० [हिं० उमाकना] [स्त्री० उमाकिनी] उखाड़ या खोदकर फेंक देनेवाला। | 
			
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				| उमा-गुरु					 : | पुं० [ष० त०] हिमाचल। | 
			
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				| उमाचना					 : | स० [सं० उन्मञ्चन-ऊपर उठाना] १. ऊपर उठाना। २. उभारना। ३. निकालना। ४. हुमचना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उमा-जनक					 : | पुं० [ष० त० स०] हिमाचल। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उमाद					 : | पुं०=उन्माद।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उमा-घव					 : | पुं० [ष० त० स०] शिव। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उमा-नाथ					 : | पुं० [ष० त० स०] शिव। | 
			
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				| उमा-पति					 : | पुं० [ष० त० स०] शिव। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उमाव					 : | पुं०=उमाह (उमंग)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उमा-सुत					 : | पुं० [ष० त० स०] १. कार्तिकेय। २. गणेश। | 
			
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				| उमाह					 : | पुं० [सं० उद्+हिं० मह, उमगाना, उत्साहित करना] १. उत्साह। २. उमंग। | 
			
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				| उमाहना					 : | अ० [?] भर कर ऊपर आना। स०=उमहाना। अ०=उमहना। | 
			
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				| उमाहल					 : | वि० [हिं० उमाह+ल (प्रत्यय)] १. उमंग से भरा हुआ। २. उत्साहपूर्ण। | 
			
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				| उमेठना					 : | स्त्री० [सं० उद्वेष्टन] १. उमेठने की क्रिया या भाव। २. उमेठने से पड़ी हुई ऐठन या बल। | 
			
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				| उमेठना					 : | स० [सं० उद्वेष्टन] किसी वस्तु को इस प्रकार घुमाते हुए मरोड़ना कि उसमें बल पड़ जाय। ऐंठना। जैसे—किसी के कान उमेठना। अ० ऐंठ या रूठकर बैठना। उदाहरण—मानिक निपुन बनाय निलय मै धनु उपमेय उमेठी।—सूर। | 
			
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				| उमेठवाँ					 : | वि० [हिं० उमेठना] १. जो उमेठकर घुमाया या चलाया जाता हो। २. जिसमें किसी प्रकार का बल पड़ा हो। जिसमें ऐंठन घुमाव या चक्कर हो। | 
			
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				| उमेठी					 : | स्त्री० [हिं० उमेठना] १. उमेठने की क्रिया या भाव। २. दंड देने के लिए किसी का कान पक़ड़कर उसे जोर से उमेठने की क्रिया। जैसे—एक उमेठी देगें, अभी सीधे हो जाओगे। | 
			
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				| उमेड़ना					 : | स०=उमेठना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उमेदवार					 : | पुं०=उम्मेदवार। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उमेदवारी					 : | स्त्री०=उम्मेदवारी। | 
			
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				| उमेलना					 : | स० [सं० उन्मीलन] १. खोलना। २. प्रकट या स्पष्ट करना। ३. वर्णन करना, कहना या बतलाना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उमेह					 : | स्त्री० [हिं० उमाह] उमंग। उदाहरण—हँसि-हँसि कहै बात अधिक उमेह की।—हरिश्चन्द्र। | 
			
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				| उम्दगी					 : | स्त्री० [फा०] उम्दा (अच्छा या बढ़िया) होने की अवस्था या भाव। अच्छाई। खूबी। | 
			
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				| उम्दा					 : | वि० [अ० उम्दः] जो देखने में अथवा गुण, विशेषता आदि के विचार से अच्छा और बढ़िया हो। उत्तम। श्रेष्ठ। | 
			
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				| उम्मट					 : | पुं० [?] एक प्राचीन देश का नाम। | 
			
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				| उम्मत					 : | स्त्री० [अ०] १. सामाजिक वर्ग या समूह। २. किसी पैगंबर या मत के अनुयायियों का समाज या समूह। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उम्मना					 : | अ०=उमड़ना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उम्मस					 : | स्त्री०=उमस। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उम्मी					 : | स्त्री० [सं० उम्बी] गेहूँ आदि की बरी बाल। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उम्मीद					 : | स्त्री०=उम्मेद। | 
			
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				| उम्मेद					 : | स्त्री० [फा० उम्मीद] १. मन का यह भाव कि अमुक काम हो जायगा। आशा। २. आसरा। भरोसा। ३. (स्त्रियों की बोलचाल में) गर्भवती होने की अवस्था जिसमें संतान होने की आशा होती है। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उम्मेदवार					 : | पुं० [फा०] १. जिसे किसी प्रकार की आशा या उम्मेद हो। २. किसी पद पर चुने जाने या नियुक्त होने के लिए खड़ा होनेवाला या अपने आपको उपस्थित करनेवाला व्यक्ति। ३. काम सीखने या नौकरी पाने की आशा से कहीं बिना वेतन लिये या थोड़े वेतन पर काम करनेवाला व्यक्ति। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उम्मेदवारी					 : | स्त्री० [फा०] १. उम्मेदवार होने की अवस्था या भाव। २. आशा। आसरा। ३. गर्भवती होने की अवस्था जिसमें संतान होने की आशा होती है। (स्त्रियाँ)। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उम्र					 : | स्त्री० [अ०] १. काल-मान के विचार से जीवन का उतना समय जितना बीत चुका हो। अवस्था। जैसे—उनके बड़े लड़के की उम्र दस बरस है। २. सारा जीवन-काल। आयु। जैसे—इस पेड़ की उम्र सौ बरस होती है। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उयबानी					 : | अ० [सं० जृभण] जँभाई लेना। उदाहरण—उतनी कहत कुँवरि उयबानी।—नंददास। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उरंग					 : | पुं० [सं० उरस्√गम् (जाना)+ड, नि० सिद्ध] १. साँप। २. नागेकसर। | 
			
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				| उरंगम					 : | पुं० [सं० उरस्√गम् (जाना)+खच्-मुम्, सलोप।] साँप। | 
			
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				| उरःक्षय					 : | पुं० [ष० त० या ब० स०] फेफड़ों में होनेवाला क्षय नामक रोग। | 
			
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				| उर् (स्)					 : | पुं० [सं०√ऋ (गति)+असुन्] १. छाती। वक्षःस्थल। २. मन। हृदय। मुहावरा—उर आनना, धरना या लाना (क) हृदय में बसना या रखना। बहुत प्रिय समझना। (ख) किसी बात के विषय में मन में निश्चय करना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उरई					 : | स्त्री० [सं० उशीर] उशीर। खस। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उरकना					 : | अ०=रुकना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उरग					 : | पुं० [सं० उरस्√गम् (जाना)+ड, सलोप] [स्त्री० उरगी, उरगिनी] साँप। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उरगना					 : | स० [सं० ऊररीकरण] १. ग्रहण या स्वीकार करना। २. सहना। उदाहरण—जौ दुख देइ तो लै उरगो यह बात सुनो।—केशव।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उरग-भूषण					 : | पुं० [ब० स०] शिव। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उरग-राज					 : | पुं० [ष० त०] १. वासुकी। २. शेषनाग। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उरग-लता					 : | स्त्री० [मध्य० स०] नागवल्ली। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उरग-शत्रु					 : | पुं० [ष० त] १. गरुड़। २. मोर। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उरग-स्थान					 : | पुं० [ष० त०] पाताल। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उरगाद					 : | पुं० [सं० उरग√अद् (खाना)+अण्] १. गरुड़। २. मोर। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उरगाय					 : | वि० पुं०=उरुगाय।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उरगारि					 : | पुं० [सं० उरग-अरि, ष० त०] १. गरुड़। २. मोर। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उरगाशन					 : | पुं० [सं० उरग-अशन, ब० स०] १. गरुड़। २. मोर। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उरगिनी					 : | स्त्री०=उरगी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उरगी					 : | स्त्री० [सं० उरग+ङीष्] सर्पिणी। साँपिन। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उर-घर					 : | पुं० [सं० उर+हिं० घर] १. वक्षःस्थल। छाती। २. मन। हृदय। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उरज, उरजात					 : | पुं०=उरोज (स्तन)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उरझना					 : | अ०=उलझना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उरझाना					 : | स०=उलझाना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उरझेर					 : | पुं० [?] हवा का झोंका। उदाहरण—पानी को सो घेर किधौं पौन उरझेर किधौ।—सुंदर।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उरझेरी					 : | स्त्री० [सं० अवरुंधन-उलझन] १. उलझन। दुविधा। २. व्याकुलता। ३. दे० ‘उरझेर’।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उरण					 : | पुं० [सं०√ऋ (गमन)+क्युच्-अन] १. भेड़ा या मेढ़ा। २. सौर जगत का एक ग्रह जो शनि और वरुण के बीच में पड़ता है और जिसका पता सन् १78१ में लगा था। वारुणी। (यूरेनस) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उरणक					 : | पुं० [सं० उरण+कन्] १. भेड़ा। २. बादल। मेघ। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उरणी					 : | स्त्री० [सं० उरण+ङीष्] भेड़। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उरद					 : | पुं० [सं० ऋद्ध, पा० उद्ध] [स्त्री० अल्पा० उरदी] १. एक प्रसिद्ध पौधा जिसकी फलियों की दाल बनती है। २. उक्त पौधे की फलियाँ या उनमें निकलने वाले दाने, जिनकी दाल बनती है। माष। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उरदावन					 : | स्त्री०=उनचन।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उरदिया, खड़ी					 : | स्त्री० दे० ‘खडिया’। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उरदी					 : | स्त्री० ‘उरद’ का स्त्री० अल्पा० रूप। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उरध					 : | वि० अव्य० =ऊर्ध्व। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उरधारना					 : | स० [हिं० उधड़ना] १. छितराना। बिखेरना। २. उधेड़ना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उरन					 : | पुं०=उरण। (भेड़ा)। वि०=उऋण।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उरना					 : | अ०=उड़ना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उरप-तरप					 : | पुं० [?] नृत्य का एक अंग या अंग-संचालक का एक प्रकार। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उरबसी					 : | स्त्री० [हिं० उर+बसना] १. वह जो हृदय में बसी हो, अर्थात् प्रेमिका। २. एक प्रकार का गले का गहना। स्त्री० =उर्वशी (अप्सरा)। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उरबी					 : | स्त्री०=उर्वी (पृथ्वी)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उर-मंडन					 : | पुं० [सं० उरोमंडन] वह जो हृदय की शोभा बढ़ाता हो। अर्थात् परम प्रिय। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उरमना					 : | अ० [सं० अवलम्बन, प्रा० ओलंबन] लटकना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उरमाना					 : | स० [हिं० उरमना] लटकाना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उरमाल					 : | पुं०= रुमाल।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उरमी					 : | स्त्री०=ऊर्मी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उररना					 : | स० [अनु०] जोर से बुलाना। पुकारना। अ० १. घुसना या धँसना। २. चाव से आगे बढ़ना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उरल					 : | स्त्री० [देश०] पश्चिमी पंजाब की एक प्रकार की भेड़। वि० [सं० उर+कलच्] १. विशाल। २. विस्तीर्ण। ३. शांत। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उरला					 : | वि० [सं० अपर, अवर+हिं० ला (प्रत्यय)] १. इस ओर या तरफ का। इधर का। ‘परला’ का विपर्याय। २. पीछे का० पिछला। वि० [सं० विरल] अनोखा। अद्भुत। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उरविजा					 : | पुं०=उर्विज। (मंगलग्रह)। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उरश					 : | पुं० [सं० ] सिंधु और झेलम के बीच का वह प्रदेश जो पश्चिमी गंधार और अभिसार के बीच में था। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उरश्छद					 : | पुं० [सं० उरस्√छद्(छा लेना)+णइच्-च, त्, श्] =उरस्त्राण। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उरस					 : | वि० [सं० निरस] जिसमें रस न हो। बिना रस का। पुं० [सं० उरस्] १. छाती। वक्षःस्थल। २. हृदय। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उरसना					 : | स० [हिं० उड़सना] १. ऊपर-नीचे या उथल-पुथल करना। २. ढाँकना। उदाहरण—पट पटि उरसि संथजुत बंक निहारत।—लोकगीत। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उरसिज					 : | पुं० [सं० उरसि√जन् (उत्पन्न होना)+ड] उरोज। स्तन। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उरसि-रुह					 : | पुं० [सं० उरसि√रुह्(उत्पन्न होना)+क] स्तन। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उरस्क					 : | पुं० [सं० उरस्+कन्] १. छाती। वक्षःस्थल। २. हृदय। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उरस्त्राण					 : | पुं० [सं० उरस्√त्रा (रक्षा करना)+ल्युट-अन] युद्ध में छाती की रक्षा के लिए उस पर बाँधने का कवच। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उरस्य					 : | वि० [सं० उरस्+य] उर-संबंधी। पुं० १. औरस पुत्र। २. सेना का अगला भाग। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उरस्वान (स्वत्)					 : | वि० [सं० उरस्+मतुप्] जिसका उर या वक्षःस्थल चौड़ा हो। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उरहना					 : | पुं०=उलहना। स०=उरेहना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उरा					 : | स्त्री० [सं० उर-टाप् (उर्वी)] पृथिवी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उराउ					 : | पुं०=उराव। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उराट					 : | पुं० [सं० उरस्] छाती (डिं०)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उराना					 : | अ०=ओराना। (समाप्त होना)। स० दे० ‘उड़ाना’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उराय					 : | पुं०=उराव। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उरारा					 : | वि० [सं उरु] विस्तृत। वि०=उरला।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उराव					 : | पुं० [सं० उरस्+आव(प्रत्यय)] १. उमंग। २. चाव। चाह। ३. साहस। हिम्मत।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उराहना					 : | पुं०=उलाहना। स० उलाहना देना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उरिण					 : | वि०=उऋण। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उरिम					 : | वि०=उऋण।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उरु					 : | वि० [सं०√उर्णु (अच्छादन करना)+कु, णुलोप, ह्रस्व] १. लंबा-चौड़ा। विस्तीर्ण। २. बड़ा। विशाल। पुं० -जांघा। जाँघ। | 
			
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				| उरु-क्रम					 : | वि० [सं० उरु√क्रम्(डग भरना)+अच् या ब० स०] १. लंबे-लंबे डग भरनेवाला। २. पराक्रमी। पुं० १. वामन। (अवतार) का एक नाम। २. सूर्य। ३. शिव। | 
			
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				| उरुग					 : | पुं० [स्त्री० उरुगिनी] उरग। (साँप) | 
			
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				| उरुगाय					 : | वि० [सं० उर√गै(गान करना)+घञ्] १. गाये जाने के योग्य। गेय। २. जिसका गुणगान हुआ हो। प्रशंसित। ३. लंबा-चौड़ा। प्रशस्त। पुं० १. विष्णु। २. सूर्य। ३. इंद्र। ४. सोम। ५. प्रशस्त स्थान। | 
			
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				| उरुज					 : | पुं० उरोज (स्तन)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उरुजना					 : | अ० उलझना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उरु-जन्मा (न्मन्)					 : | वि० [सं० ब० स०] अच्छे वंश में उत्पन्न। कुलीन। | 
			
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				| उरुवा					 : | पुं० [सं० ] उल्लू की जाति का एक प्रकार का पक्षी। रुरुआ। | 
			
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				| उरु-विक्रम					 : | वि० [सं० ब० स०] पराक्रमी। | 
			
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				| उरूज					 : | पुं० [अ०] १. उन्नति। २. बढ़ती। वृद्धि। | 
			
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				| उरूसी					 : | पुं० [?] एक प्रकार का वृक्ष जिससे गोद और रंग निकलता है। एक जापानी वृक्ष जिसके तने से एक प्रकार का गोंद निकाला जाता है। उससे रंग और बारनिश बनाई जाती है। | 
			
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				| उरे					 : | अव्य० [सं० अवर] १. इस ओर। इधर। २. निकट। पास। उदाहरण—छगन-मगन वारे कंधैया उरे धौ आइ रे।—नंददास।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उरेखना					 : | स० दे० अवरेखना। स० [सं० आलेखन] १. चित्र बनाना या अंकित करना। २. दे० ‘अवरेखन’।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उरेझा					 : | पुं०=उलझन।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उरेब					 : | वि० [फा० औरेब] १. टेढ़ा। २. तिरछा। ३. छलपूर्ण। पुं० छल-कपट। धूर्त्तता।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उरेह					 : | पुं० [सं० उल्लेख] १. उरेहने की क्रिया या भाव। चित्रकारी। २. उरेर कर बनाई हुई चीज। चित्र। | 
			
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				| उरेहना					 : | स० [सं० उल्लेखन] १. चित्र अंकित करना, बनाना या लिखना। २. रँगना। जैसे—नयन उरेहना। | 
			
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				| उरैड़					 : | स्त्री० [हिं० उरैड़ना] १. उरैड़ने की क्रिया या भाव। २. बहुत अधिक मात्रा में आ पड़ना। ३. प्रवाह। बहाव।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उरैड़ना					 : | स० [हिं० उँड़ेलना] १. उँड़ेलना। २. गिराना। | 
			
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				| उरोगम					 : | पुं० [सं० उरस्√गम् (जाना)+अच्] सर्प। साँप। | 
			
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				| उरोग्रह					 : | पुं० [सं० उरस्-ग्रह, ब० स०] एक प्रकार का रोग जिसमें छाती और पसलियों में दरद होता है। (प्ल्यूरिसी)। | 
			
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				| उरोज					 : | पुं० [सं० उरस्√जन्+ड] स्त्री की छाती। कुच। स्तन। | 
			
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				| उरोरुह					 : | पुं० [सं० उरस्√रुह्(उत्पन्न होना)+क] उरोज (स्तन)। | 
			
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				| उर्जित					 : | वि० [सं० ऊर्जित] १. बलवान। २. प्रसिद्ध। विख्यात। ३. अंहकारी। ४. परित्यक्त। | 
			
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				| उर्ण					 : | पुं० [सं० ऊर्ण] दे० ऊर्ण। (उर्ण के यौ के लिए दे० ‘ऊर्ण’ के यौ०) | 
			
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				| उर्दू					 : | स्त्री० [तु०] १. छावनी का बाजार। २. हिंदी भाषा का वह रूप जिसमें अरबी फारसी के शब्द अधिक होते हैं तथा जो फारसी लिपि में लिखी जाती है। | 
			
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				| उर्ध					 : | वि०=ऊर्ध्व।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उर्फ-					 : | पुं० [अ०] उपनाम। (दे०) | 
			
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				| उर्मि					 : | स्त्री०=ऊर्मि (लहर)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उर्वर					 : | वि० [सं० उरु√ऋ (गति)+अच्] [स्त्री० उर्वरा०] १. (भूमि) जिसमें ऐसे तत्त्व निहित हो जो पौधों फसलों आदि के जीवन और विकास के लिए अत्यावश्यक और महत्वपूर्ण हों। उपजाऊ। (फर्टाइल) २. लाक्षणिक अर्थ में (तत्त्व) जिसकी उत्पादन-शक्ति बहुत अधिक हो। जैसे—उर्वर मस्तिष्क। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उर्वरक					 : | पुं० [सं० उर्वर+कन्] रासायनिक प्रक्रियाओं से प्रस्तुत की हुई ऐसी खाद जो खेतों में उन्हें उपजाऊ या उर्वर बनाने के लिए डाली जाती है। (फर्टिलाइजर) | 
			
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				| उर्वरता					 : | स्त्री० [सं० उर्वर+तल्-टाप्] १. उर्वर होने की अवस्था या भाव। उपाजऊपन २. उत्पादन शक्ति बहुत अधिक होने का भाव। | 
			
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				| उर्वरा					 : | स्त्री० [सं० उर्वर+टाप्] १. उपजाऊ या उर्वर भूमि। २. पृथ्वी। ३. एक अप्सरा का नाम। वि०=उर्वर। | 
			
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				| उर्वशी					 : | स्त्री० [सं० उरु√अश्(व्याप्त करना)+क-ङीष्] १. पुराणानुसार इंद्र लोक की एक अप्सरा, जिसका विवाह राजा पुरूरवा से हुआ था। २. महाभारत के अनुसार एक प्राचीन तीर्थ। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उर्वारु					 : | पुं० [सं० उरू√ऋ (गमन)+उण, वृद्धि, उपर, यण्] १. खरबूजा। २. ककड़ी। | 
			
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				| उर्विज					 : | पुं० [सं० उर्वीज] मंगल-ग्रह। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उर्विजा					 : | स्त्री०=उर्वीजा।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उर्वी					 : | वि० [सं०√ऊर्णु(आच्छादन करना)+कु, नलोप, ह्रस्व, ङीष्] १. विस्तृत। २. सपाट। स्त्री० १. विस्तृत क्षेत्र या तल। २. भूमि। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उर्वीजा					 : | वि० स्त्री० [सं० उर्वी√जन् (उत्पन्न करना)+ड-टाप्] जो पृथ्वी से उपजा हो। जिसका जन्म पृथ्वी से हुआ हो। स्त्री०=सीता। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उर्वी-धर					 : | पुं० [सं० त० स०] १. वह जिसने पृथ्वी को धारण किया हो, अर्थात् शेषनाग। २. पर्वत। पहाड़। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उर्वी-पति					 : | पुं० [ष० त० स०] पृथ्वी का स्वामी अर्थात् राजा। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उर्वी-रुह					 : | पुं० [सं० उर्वी√रूह् (उगना)+क] पेड़-पौधे। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उर्वीश					 : | पुं० [उर्वी-ईश,ष०त०] =उर्वी-पति। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उर्स					 : | पुं० [अ०] १. मुसलमानों में किसी की मरण-तिथि पर बाँटा जानेवाला भोजन। २. किसी की मरण-तिथि पर किये जानेवाले श्रद्धा-पूर्ण कार्य या कृत्य। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उलंग					 : | वि० [सं० उत्रग्न] नंगा। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उलंगना					 : | स०=उलंघना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उलंघन					 : | पुं०=उल्लंघन।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उलंघना					 : | स० [सं० उल्लघंन] १. किसी चीज को लाँघते हुए इधर से उधर जाना। २. किसी की आज्ञा या आदेश अथवा किसी परंपरा के विरुद्ध आचरण करना। उल्लघंन करना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उलका					 : | स्त्री०=उल्का।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उलगट					 : | स्त्री० [हिं० उलगना] कूद-फाँद।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उलगना					 : | अ० [सं० उल्लंघन] कूदना। फाँदना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उलगाना					 : | स० [हिं० उलगना] किसी को कूदने या फाँदने में प्रवृत्त करना। कुदाना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उलचना					 : | स०=उलीचना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उलच (छ) ना					 : | स०=उलीचना। अ०=उलछना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उलछा					 : | पुं० [हिं० उलचना] खेतों में हाथ से छितरा या बिखेरकर बीज डालने की एक रीति। छिटका बोना। पबेरा। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उलछारना					 : | स० =उछालना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उलझन					 : | स्त्री० [हिं० उलझना] १. उलझने की क्रिया या भाव। २. किसी कार्य में सामने आनेवाली ऐसी पेचीली या झंझट की स्थिति जिसमें किसी प्रकार का निराकरण या निश्चय करना बहुत कठिन हो। झगड़े-झंझट की स्थिति। ३. डोरी आदि में एक साथ जगह-जगह पड़नेवाली बहुत सी पेचीली गाँठें। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उलझना					 : | अ० [सं० अवसन्धन, पा० ओरुज्झन, पुं० हिं० अरुझना] १. किसी चीज का ऐसी परिस्थिति में पड़ना जहाँ चारों ओर अटकाने, फँसाने या रोक रखनेवाले तत्त्व या बाते हों। जैसे—काँटों में कपड़ा उलझना। उदाहरण—पाँख भरा तन उरझा कित मारे बिनु बाँच।—जायसी। मुहावरा—उलझ-पुलझ कर रह जाना=ऐंसी पेचीली स्थिति में पड़े रहना कि कोई अच्छा परिणाम या फल निकल सके। उदाहरण—उलझि पुलझि के मरि गए चारिउ वेदन माँहि।—कबीर। २. किसी चीज के अंगों का आपस में या दूसरी चीज के अंगों के साथ इस प्रकार फँसकर लिपटना कि सब गुथ या मिलकर बहुत कुछ एक हो जायँ और सहज में एक-दूसरे से अलग न हो सके। टेढ़े-मेढ़े होकर या बल खाते हुए जगह-जगह अटकना या फँसना। जैसे—पतंग की डोर उलझना। उदाहरण—मोहन नवल सिगार बिटप-सों उरझी आनँद बेल।-सूर। ३. घुमाव-फिराव की ऐसी पेचीली या विकट स्थिति में पड़ना कि जल्दी छुटकारा, निकास या बचाव न हो सके। उदाहरण—ज्यौं-ज्यौं सुरझि भज्यौं चहैं, त्यौं-त्यौं उरझत जात०-बिहारी। ४. झंझट या झगड़े-बखेड़े के काम में इस प्रकार फँसना कि जल्दी छुटकारा न हो सके। ५. ऐसी स्थिति में पड़ना जहाँ चारों ओर रोक रखनेवाली आकर्षक या मोहक बातें हों। उदाहरण—अँखियाँ श्यामसुदर सों उरझी,को सुरझावे हो गोइयाँ।—गीत। ६. किसी से जानबूझ कर इस प्रकार की बातें या व्यवहार करना अथवा उसके कामों में बाधक होना कि झगड़ा या बखेड़ा खड़ा हो और पर-पक्ष उससे निकलने या बचने न पावे। जैसे—हर किसी से उलझने की तुम्हारी यह आदत अच्छी नहीं है। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उलझा					 : | पुं० उलझन। उदाहरण—बीर वियोग के ये उलझा निकसै जिन रे जियरा हियरा तें।—ठाकुर।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उलझाना					 : | स० [हिं० उलझना का स० रूप] १. ऐसा काम करना जिससे कोई (वस्तु या व्यक्ति) कहीं उलझे। किसी को उलझने में प्रवृत्त करना। २. दो या कई चीजों को एक-दूसरे में अँटकाना या फँसाना। ३. किसी को किसी काम, बात-चीत आदि मे इस प्रकार फँसाये रखना कि दूसरे को उसका ध्यान न होने पावे। ४. दूसरों को आपस में लड़ाना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उलझाव					 : | पुं० [हिं० उलझना] १. उलझने की क्रिया या भाव। २. उलझन या उससे युक्त स्थिति। ३. झगड़ा। बखेड़ा। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उलझेड़ा					 : | पु० =उलझन या उलझाव। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उलझौहाँ					 : | वि० [हिं० उलझना] १. उलझने या उलझाने की प्रवृत्ति रखनेवाला। २. किसी प्रकार अपने साथ उलझाकर रखनेवाला। ३. लड़ाई-झगड़ा करने या कराने की प्रवृत्ति रखनेवाला। झगड़ालू। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उलटकंबल					 : | पुं० [देश] एक प्रकार की झाड़ी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उलटकटेरी					 : | स्त्री० [हिं० उष्ट्रकंट] ऊँट-कटारा। (पौधा) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उलटना					 : | अ० [सं० उद्+हिं० लु=लुढ़कना] १. सीधा की विपरीत दिशा या स्थिति में जाना य होना। उलटा होना। २. नियत साधारण या सीधे मार्ग से पीछे की ओर आना, मुड़ना या हटना। पीछे घूमना या पलटना। जैसे—रास्ता चलते समय उलटकर किसी की ओर देखना। मुहावरा—(किसी की किसी पर) उलट पड़ना (क) अचानक क्रुद्ध होकर किसी प्रकार का आक्रमण या आघात करना। जैसे—इस जरा-सी बात से बिगड़कर सारी सेना नगर पर उलट पड़ी। (ख) अचानक बिगड़ खड़े होना या भली-बुरी बातें कहने लगना। जैसे—आखिर मैने तुम्हारा क्या बिगाड़ा या जो तुमने अकारण मुझ पर ही उलट पड़ें। ३. ऐसी स्थित में आना या होना कि नीचे का भाग ऊपर और ऊपर का भाग नीचे हो जाय, अथवा सीधे खड़े न रहकर दाहिने या बाएँ बल गिरना। जैसे—गाड़ी या दवात उलटना। मुहावरा—कलेजा उलटनादे। कलेजा के अन्तर्गत। ४. अच्छी दशा से बुरी दशा में आना या होना। जैसे—इस वर्षा से सारी फसल उलट गई। ५. जैसे साधारणयतः रहना या होना चाहिए उसके ठीक विपरीत या विरुद्ध हो जाना। जैसे—(क) इस प्रकार का सारा अर्थ ही उलट जाता है। (ख) पहले तो ठीक तरह से बातें करता, पर तुम्हें देखते ही न जाने क्यों बिलकुल उलट गया। ६. अस्त-व्यस्त या नष्ट-भ्रष्ट होना। जैसे—अब तो दुनिया की सब बातें ही उलट रही है। मुहावरा—(किसी व्यक्ति का) उलट जानाभारी आघात, उग्र प्रभाव आदि के कारण, अचेत या बेसुध होकर गिर पड़ना। जैसे—(क) गाँजे का दम लगाते ही वह उलट गया। (ख) मंदी के एक ही धक्के में वह उलट गया। (परीक्षा, प्रयत्न आदि में) उलट जानाअनुत्तीर्ण या विफल होना। (मादा चौपाये का) उलट जानाभरे जाने के बाद अर्थात् पहले गर्भ धारण कर लेने पर भी तुरंत गर्भस्राव हो जाना। ७. बहुत अधिक मात्रा, मान या संख्या में आकर उपस्थित या एकत्र होना अथवा पहुँचना। (प्रायः संयोज्य क्रिया पडऩा के साथ प्रयुक्त) जैसे—(क) किसी के घर धन-संपत्ति उलट-पड़ना। (ख) कुछ देखने के लिए कहीं जन-समूह उलट पड़ना। स० १. जो सीधा हो उसके विपरीत दशा, दिशा या रूप में लाना। उलटा करना। जैसे—(क) पड़ा हुआ परदा या बिछी हुई चाँदनी उलटना। (ख) किसी से लड़ने के लिए आस्तीन उलटना। (चढ़ाना) २. नियत या सीधे मार्ग से हटाकर इधर-उधऱ या पीछे की ओर करना,मोड़ना या लाना। जैसे—चलता हुआ चक्कर या घड़ी की सुई उलटना। ३. ऐसी स्थिति में लाना कि नीचे का भाग ऊपर और ऊपर का भाग नीचे हो जाए, अथवा दाहिने या बाएँ किसी बल गिर पड़ना। जैसे—लाइन पर पत्थर रखकर गाड़ी उलटना। ४. पात्र आदि खाली करने के लिए मुँह इस प्रकार नीचे करना कि उसमें भरी हुई चीज नीचे गिर पड़े। जैसे—(क) पानी गिराने के लिए गिलास या घड़ा उलटना। (ख) रुपये आदि एकदम से निकालने के लिए थैली उलटना। विशेष—इस अर्थ में इस शब्द का प्रयोग आधार या पात्र के संबंध में भी होता है और उसमें भरी या रखी हुई चीज के संबंध में भी। जैसे—(क) स्याही की दावत उलटना,और दवात की स्याही उलटना। ५. एक तल या पार्श्व नीचे करके दूसरा तल या पार्श्व ऊपर लाना। जैसे—पुस्तक के पृष्ठ या बही के पन्ने उलटना। ६. आघात, प्रभाव आदि के द्वारा अचेत या बेसुध करना। अथवा किसी प्रकार गिराना या पटकना। जैसे—थप्पड़ मारकर (या शराब पिलाकर) किसी को उलटना। ७. (आज्ञा या बात) न मानना। अवज्ञा-पूर्वक किसी की बात की उपेक्षा करना। जैसे—तुम तो हमारी हर बात उसी तरह उलटा करते हो। ८. जैसी बात या व्यवहार हो, उसका उसी रूप में या वैसा ही उत्तर देना या प्रतिकार करना। (प्रायः अनिष्ट या मंद प्रसंगों में प्रयुक्त) उदाहरण—आवत गारी एक है, उलटत होय अनेक।—कबीर। ९. खेत या जमीन कि मिट्टी खोदकर नीचे से ऊपर करना। १. (माला जपने के समय उनके मन के) बार-बार आगे बढ़ाते हुए ऊपर नीचे करते रहना। मुहावरा—(किसी की) नाम उलटना बार-बार किसी का नाम लेते रहना। रटना। ११. उलटी, कै या वमन करना। जैसे—जो कुछ खाया पीया था, वह सब उलट दिया। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उलट-पलट					 : | स्त्री० [हिं० उलटना+पलटना] चीजें बार-बार उलटने या पलटने की क्रिया या भाव। | 
			
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				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उलटना-पलटना					 : | [हिं० उलट-पलट] १. (किसी वस्तु का) नीचे वाला भाग ऊपर अथवा ऊपरवाला भाग नीचे करना। नीचे-ऊपर या ऊपर-नीचे करना। २. अस्त-व्यस्त करना। इधर का उधर करना ३. कुछ जानने,देखने या समझने के लिए चीजें या उनके अंग कभी ऊपर और नीचे करना। जैसे—कागज-पत्र, चिट्ठियाँ या पुस्तकें (अथवा उनके पृष्ट) उलटना-पलटना। | 
			
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				| उलट-पलट					 : | स्त्री० =उलट-पलट। | 
			
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				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उलट-फेर					 : | पुं० [हिं० उलटना+फेर] ऐसा परिवर्तन जिसमें अधिकतर चीजें, बातें या उनके क्रम बदल जाएँ। हेर-फेर। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उलटवाँसी					 : | स्त्री० [हिं० उलटा+सं० वाचा] साहित्य में ऐसी उक्ति या कथन (विशेषतः पद्यात्मक) जिसमें असंगति, विचित्र, विभावना, विषम, विशेषोक्ति आदि अलंकारों से युक्त कोई ऐसी विलक्षण बात कही जाती है जो प्राकृतिक नियम या लोक-व्यवहार के विपरीत होने पर भी किसी गूढ़ आशय या तत्त्व से युक्त होती है। जैसे—(क) पहिले पूत पाछे भइ माई। चेला के गुरू लागै पाई।—कबीर। (ख) समंदर लागी आगी माइ। नदियाँ जरि कोइला भई।—कबीर। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उलटा					 : | वि० [हिं० उलटना] १. जिसका ऊपर का भाग या मुँह नीचे हो गया हो और नीचे का भाग पेंदा ऊपर आ गया हो। औंधा। जैसे—उलटा गिलास, उलटी कटोरी या थाली। मुहावरा—उलटे मुँह गिरना (क) सिर के बल नीचे गिरना। (ख) लाक्षणिक रूप में, भारी आघात, भूल आदि के कारण ऐसी स्थिति में पडना या पहुँचना कि सहज में छुटकारा न हो सके। उलटे होकर टंगना-अधिक से अधिक या सारी शक्ति लगाना। सभी प्रकार के उपाय करना। जैसे—चाहे तुम उलटे होकरटँग जाओ, पर यह काम तुम्हारे किये न होगा। पद-उलटी खोपड़ी ऐसी बुद्धि या मस्तिष्क जिसमें हर बात अपने विपरीत रूप में दिखाई देती हो। उलटा तवा-बहुत ही काल-कलूटा (व्यक्ति या उसका वर्ण) २. नियत या परंपरागत क्रम, गति, प्रवाह आदि के विचार से जो ठीक, नियमित या स्वाभाविक न होकर उसके विपरीत हो। जिसकी क्रिया या गति पीछे की ओर, विपरीत दिशा में या असंगत और अस्वाभाविक हो। जैसे—आजकल उलटा जमाना है, इसी से हमारी अच्छी बात भी तुम्हें बुरी लगती है। मुहावरा—उलटा घड़ा बाँधना-अपना काम निकालने के लिए ऐसा उपाय या युक्ति करना कि विपक्षी धोखे में रह जाय और कुछ भी समझ न सके। उलटी साँस चलना-मरने के समय रुककर और क्रमशः ऊपर की ओर की साँस चलना। उलटी आँते गले पड़ना-लाभ के बदले में उलटे और अधिक हानि होना या हानि की संभावना होना। उलटी गंगा बहना-परंपरा से चली आई प्रथा या रीति के विपरीत आचरण या कार्य होना। (किसी को उलटे छुरे से मूँड़ना-किसी को खूब मूर्ख बनाकर उससे धन ऐँठना या अपना काम निकालना। (किसी को) उलटी पट्टी पढ़ाना किसी को कोई विपरीत या हानिकारक बात ऐसे ढंग से या ऐसे रूप में बतलाना या समजाना कि या उसी को ठीक या लाभदायक मान या समझ ले। (किसी के नाम की या नाम पर) उलटी माला फेरनातांत्रिक उपचार के ढंग पर निरंतर किसी के अपकार या अहित की कामना करना। बुरा मनाना। उलटे पैर फिरना या लौटना कहीं पहुँचते ही वहाँ से तुरंत लौट आना। चटपट वापस आना। जैसे—उन्हें यह पत्र देकर उलटे पैर लौट आना। पद-उलटा-पलटा,उलटा-सीधा (देखें)। ३. जो काल, संख्या आदि के क्रमिक विचार से आगे या पीछे या पीछे या आगे हो। इधर का उधर और उधर का इधर। जैसे—(क) इस इतिहास में कई तिथियाँ उलटी दी गयी है। (ख) इस पुस्तक में कई पृष्ठ उलटे लगे हैं। ४. दाहिना का विपरीत। बायाँ। जैसे—यह लड़का उलटे हाथ से सब काम करता है। अव्य० उलटे के स्थान पर प्रायः बूल से प्रयुक्त होनेवाला शब्द। दे० उलटे। पुं० पीठी, बेसन आदि से बनने वाला एक प्रकार का पकवान जिसे चिलड़ा या चीला भी कहते हैं। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उलटाना					 : | स० [हिं० उलटना] १. उलटना। २. उलटवाना। | 
			
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				| उलटा-पलटा					 : | वि० [प्रा० उल्लट-पल्लट] १. जिसका नीचे का कुछ ऊपर अथवा ऊपर का कुछ अंश नीचे किया गया हो। २. जिसमें किसी प्रकार का क्रम न हो। क्रम-विहीन। बेसिर-पैर का। ३. इधर-उधर का। अंड-बंड। ४. दे० ‘उलटा-सीधा’। | 
			
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				| उलटा-पलटी					 : | स्त्री० [हिं० उलटना+पलटना] १. बार-बार उलटने-पलटने की क्रिया या भाव। २. बार-बार होनेवाली अदल-बदल। फेर-फार। हेर-फेर। | 
			
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				| उलटा-पुलटा					 : | वि० उलटा-पलटा। | 
			
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				| उलटाव					 : | पुं० [हिं० उलटना] १. उलटने या उलटे जाने की क्रिया या भाव। २. पीछे की ओर पलटने या लौटाने की क्रिया या स्थिति। जैसे—नदी का उलटाव। | 
			
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				| उलटा-सीधा					 : | वि० [हिं० उलटा+सीधा] [स्त्री०उलटी-सीधी] १. क्रम, बनावट आदि के विचार से जिसका कुछ अंश तो सीधा या ठीक हो और कुछ अंश उलटा या बे-ठिकाने हो। २. कुछ अच्छा और कुछ बुरा। मुहावरा—(किसी को) उलटी-सीधी समझाना अपना उद्देश्य या स्वार्थ सिद्ध करने के लिए ऐसी बाते बतलाना या समझाना जो अंशतः उचित और अंशतः अनुचित हों। (किसी को) उलटी सीधी सुनाना-क्रोध या रोषपूर्वक बातें कहना। | 
			
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				| उलटी					 : | स्त्री० [हिं० उलटा० का स्त्री] १. कै। वमन। २. मालखंभ की एक कसरत जिसमें खिलाड़ी बीच में उलट जाता है। ३. कलैया। कलाबाजी। | 
			
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				| उलटी-बगली					 : | स्त्री० [हिं० उलटी+बगली] व्यायाम में मुदगल को पीठ पर से छाती की ओर इस प्रकार घुमाना कि मुट्ठी हर हाल में ऊपर रहे। | 
			
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				| उलटी रुमाली					 : | स्त्री० [फा० रुमाल] मुगदल भाँजने का एक प्रकार, जिसमें रुमाली के समान मुगदल की मुठिया उलटी पकड़कर मुगदल आगे की ओर ले जाते है। | 
			
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				| उलटी सरसों					 : | स्त्री० [हिं० उलटी+सरसों] ऐसी सरसों जिसकी कलियों का मुँह नीचे होता है। विशेष—यह टोने-टोटके और यंत्र-मंत्र के काम आती है। | 
			
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				| उलटे					 : | अव्य [हिं० उलटा] १. विपरीत दिशा या स्थिति में। जैसे—उलटे चलना। २. क्रम, नियम, न्याय, प्रथा आदि के विपरीत या विरुद्ध। ३. जैसा होना चाहिए, उसके प्रतिकूल या विपरीत। जैसे—नहीं होना चाहिए, उस तरह से। जैसे—(क) उलटे चोर कोतवाल को डाँटे। (ख) अपनी भूल तो मानते नहीं, उलटे मुझे ही दोष देते हो। | 
			
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				| उलठना					 : | अ०, स०=उलटना। | 
			
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				| उलथना					 : | अ० [सं० उद्+स्थल-जमना या दृढ़ होना, उत्थलन] १. ऊपर-नीचे होना। उथल-पुथल होना। २. उछलना। ३. उमड़ना। स० ऊपर नीचे करना। उलटना-पलटना। | 
			
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				| उलथा					 : | पुं० [हिं० उलथना] १. नृत्य में, ताल के साथ उछलना। २. कलाबाजी। कलैया। ३. करवट। पुं० दे० ‘उल्था’। | 
			
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				| उलद					 : | स्त्री० [हिं० उलदना] १. उलदने या उँड़ेलने की क्रिया या भाव। २. वर्षा की झड़ी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उलदना					 : | स० [सं० उल्लोठन] १. उँड़ेलना। ढालना। २. उलीचना। ३. बरसाना। अ० अच्छी तरह से या खूब बरसना। | 
			
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				| उलप्य					 : | पुं० [सं० ] रुद्र। | 
			
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				| उलफत					 : | स्त्री० [अ० उल्फत] प्रेम। प्रीति। | 
			
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				| उलमना					 : | अ० [अवलम्बन, पा० ओलम्बन] १. टेक या सहारा लेना। उठँगना। २. झुकना। ३. लटकना। | 
			
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				| उलमा					 : | पुं० [अ० उल्मा, आलिमका बहुवचन रूप] पंडित तथा विद्वान लोग। | 
			
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				| उलरना					 : | अ० [सं० उद्+लर्व-डोलना या उल्ललन] १. उलार होना। (दे० ‘उलार’) २. कूदना। ३. किसी पर झपटना या टूट पड़ना। ४. बादलों का घिर आना। | 
			
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				| उललना					 : | अ० [हिं० उँड़ेलना] १. ढरकना या ढलना। २. उलट-पलट होना। स० उलट-पलट करना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उलवी					 : | स्त्री० [?] एक प्रकार की मछली। | 
			
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				| उलसना					 : | अ० [सं० उल्लसन] १. शोभित होना। २. उल्लास या हर्ष से युक्त होना। उल्लसित या प्रसन्न होना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उलहना					 : | अ० [सं० उल्लंभन] १. उमड़ना। २. उत्पन्न होना। ३. बाहर या सामने आना। ४. प्रस्फुटित होना। खिलना। उदाहरण—उलहे नये अँकुरवा, बिनु बल वीर। रहीम। ५. उमंग में आना। हुलसना। पुं० उलाहना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उलही					 : | स्त्री० उलाहना। | 
			
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				| उलाँक					 : | पुं० [हिं०=लाँघना] १. चिट्ठी-पत्री आने-जाने का प्रबंध। डाक। २. एक प्रकार की छतदार या पटी हुई नाव। पटैला। | 
			
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				| उलाँकी					 : | पुं० [हिं० उलाँक] डाक का हरकारा। | 
			
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				| उलाँघना					 : | स० [सं० उल्लंघन] १. ऊपर से होकर पार करना लाँघना। २. (आज्ञा या आदेश) अवज्ञापूर्वक अमान्य करना। न मानना। ३. घुड़-सवारी का अभ्यास करने के लिए घोड़े पर पहले-पहल चढ़ना। (चाबुक सवार)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उला					 : | स्त्री० [सं० ऊर्ण] भेड़ का बच्चा। मेमना। (डिं०)(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उलाटना					 : | अ० स०=उलटना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उलार					 : | वि० [हिं० उलारना] जो असंतुलित भार के कारण पीछे या किसी ओर झुका हो। जैसे—एक्का (नाव) उलार है। पुं० इस प्रकार पीछे की ओर होनेवाल झुकाव। | 
			
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				| उलारना					 : | स० [हिं० उलरना] १. किसी वस्तु पर रखा हुआ बोझ इस प्रकार असंतुलित करना कि वह पीछे की ओर झुक जाय। २. ऊपर की ओर फेंकना। उछालना। ३. ऊपर-नीचे करना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उलारा					 : | पुं० [हिं० उलरना] चौताल के अंत में गाया जानेवाला पद। | 
			
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				| उलालना					 : | स० [सं० उत्+लालन] १. पालन-पोषण या लालन पालन करना। पालना-पोसना। | 
			
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				| उलाहना					 : | पुं० [सं० उपालंभन, प्रा० उवालहन] अपकार या हानि होने पर उसके प्रतिकार या वारण के उद्देश्य से खेद या दुःखपूर्वक ऐसे व्यक्ति से उसकी चर्चा करना जो उसके लिए उत्तरदायी हो अथवा उसका प्रतिकार कर या करा सकता हो। जैसे—(क) लड़के की दुष्टता के लिए उसके माता-पिता को उलाहना मिलता है। (ख) उस दिन मैं उनके यहाँ नही जा सका था,उसका आज उन्होंने मुझे उलाहना दिया।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उलिंद					 : | पुं० [सं०√बल् (बल आदि देना)+किन्द, व-उ संप्रसा] १. शिव। २. एक प्राचीन देश का नाम। | 
			
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				| उलिचना					 : | अ० [हिं० उलीचना] (पानी का) उलीचा या बाहर फेंका जाना। उलीचा जाना। स०=उलीचना। | 
			
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				| उलीचना					 : | स० [सं० उल्लुंचन] १. किसी बड़े आधार या पात्र मे जल भर जाने पर उसे खाली करने के लिए उसमें का जल बरतन या हाथ से बाहर निकालना या फेंकना। जैसे—नाव में का पानी उलीचना। २. कोई तरल पदार्थ उक्त प्रकार से बाहर फेंकना। | 
			
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				| उलूक					 : | पुं० [सं०√वल् (एकत्रित होना)+ऊक] १. उल्लू नामक पक्षी। २. इंद्र। ३. उत्तर का एक पुराना पहाड़ी प्रदेश। ४. कणाद ऋषि का एक नाम। पद-उलूक दर्शनकणाद का वैशेषिक दर्शन। पुं० [सं० उल्का] आग की लपट। ज्वाला। | 
			
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				| उलूखल					 : | पुं० [सं० ऊर्ध्व-ख, पृषो० उलूख√ला(लेना)+क] १. ऊखल। ओखली। २. खरल। खल। ३. गुग्गुल। | 
			
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				| उलूत					 : | पुं० [सं०√उल् (हनन करना)+ऊतच्] एक प्रकार का अजगर (बड़ा साँप)। | 
			
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				| उलूपी					 : | स्त्री० [सं० ] एक नाग कन्या जो अर्जुन पर मुग्ध होकर उन्हें पाताल में ले गयी थी। इसके गर्भ से अर्जुन को इरावत नामक पुत्र हुआ था। | 
			
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				| उलेटना					 : | स० उलटना। | 
			
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				| उलेटा					 : | वि०=उलटा। | 
			
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				| उलेड़ना					 : | स० १. =उँड़ेलना। २. =उलेढ़ना। | 
			
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				| उलेढ़ना					 : | स० [हिं० उलटना ?] सिलाई में, कपड़े के छोर या सिरे को थोड़ा उलट या मोड़कर तथा अन्दर की ओर करके ऊपर से सीना। | 
			
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				| उलेढ़ी					 : | स्त्री० [हिं० उलेढ़ना] १. उलेढ़ने की क्रिया या भाव। २. उलेढ़कर की हुई सिलाई। | 
			
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				| उलेल					 : | स्त्री० [हिं० कुलेल] १. उमंग। उल्लास। २. आवेश। जोश। ३. पानी का बाढ़। वि० १. अल्लड़। २. चमकीला। ३. लहराता हुआ। | 
			
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				| उलैड़ना					 : | स० दे० ‘उलेड़ना’। स० १. =उलेढ़ना। २. =उँड़ेलना। | 
			
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				| उल्का					 : | स्त्री० [सं०√उप् (दाह करना)+क, ष्-ल, निपा०-टाप्] १. प्रकाश। २. रोशनी। तेज। ३. जलती हुई लकड़ी। लुआठी। ४. मशाल। ५. दीपक। दीया। ६. आकाशस्थ पिंड़ो से फटकर गिरनेवाले वे चमकीले छोटे खंड जो कभी-कभी रात को आकाश में इधर से उधर जाते या पृथ्वी पर गिरते हुए दिखाई देते हैं। (मीटिओर) | 
			
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				| उल्का-चक्र					 : | पुं० [ष० त०] १. दैवी उत्पात या उपद्रव। २. बाधा। विघ्न। ३. हलचल। ४. ज्योतिष में ग्रहों की एक विशिष्ठ स्थिति। | 
			
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				| उल्का-पथ					 : | पुं० [ष० त०] आकाश में वह बिन्दु या स्थान जहाँ से उल्काएं गिरती हुई अर्थात् तारे टूटकर गिरते हुए दिखाई देते हों। (रेडिएण्ट आफ मीटियोर्स) | 
			
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				| उल्का-पात					 : | पुं० [ष० त०] आकाश से उल्काओ का गिरना या टूटना। तारा टूटना। | 
			
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				| उल्कापाती					 : | वि० [हिं० उल्कापात] १. उत्पात, उपद्रव या दंगा फसाद करनेवाला। २. नटखट। शरारती। | 
			
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				| उल्का-पाषाण					 : | पुं० दे० ‘उल्काश्म’। | 
			
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				| उल्का-मुख					 : | पुं० [ब० स०] १. शिव के एक गण का नाम। २. मुँह से प्रकाश या आग फेंकनेवाला एक प्रकार का प्रेत। अगिया बैताल। ३. गीदड़। | 
			
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				| उल्काश्म (न्)					 : | पुं० [सं० उल्का-अश्मन्, कर्म० स०] पत्थर, लोहे आदि का वह ढोंका या पिंड जो आकाश से उल्का के रूप में पृथ्वी पर गिरता है। (मीटिओराइट) | 
			
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				| उल्था					 : | पुं० [हिं० उलथना] एक भाषा से दूसरी भाषा में किया हुआ अनुवाद। भाषातंर। | 
			
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				| उल्मुक					 : | पुं० [सं०√उष् (दाह करना)+मुक्, ष-ल] १. अग्नि। आग। २. अंगारा। ३. जलती हुई लकड़ी। लुकाठा। | 
			
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				| उल्लंघन					 : | पुं० [सं० उद्√लंघ् (लाँघना)+ल्युट-अन] १. किसी के ऊपर से होते हुए उधर या उस पार जाना। २. आज्ञा, नियम, प्रथा रीति आदि का पालन न करते हुए उसका अतिक्रमण करना। न मानना। जैसे—आज्ञा का उल्लंघन। ३. अपने अधिकार या क्षेत्र से बाहर जाना अथवा दूसरे क्षेत्र में अनुचित रूप से पहुँचना। जैसे—सीमा का उल्लंघन। | 
			
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				| उल्लंघना					 : | स०=उलँघना या उलाँघना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उल्लंघनीय					 : | वि० [सं० उद्√लंघ्+अनीयर] जो उल्लंघन किये जाने के योग्य हो अथवा जिसका उल्लंघन करना उचित हो। | 
			
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				| उल्लंघित					 : | भू० कृ० [सं० उद्√लंघ्+क्त] १. (पदार्थ) जो लाँघा गया हो। २. (आज्ञा या आदेश) जिसका जान-बूझकर पालन न किया गया हो। ३. (अधिकार या कार्यक्षेत्र) जिसमें अनुचित रूप से प्रवेश किया गया हो। | 
			
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				| उल्ललित					 : | वि० [सं० उद्√लंल् (इच्छा)+क्त] १. आदोलित या क्षुब्ध। २. उठा या बड़ा हुआ। | 
			
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				| उल्लस					 : | वि० [सं० उद्√लंस् (चमकना)+अच्] १. चमकदार। २. प्रसन्न। ३. प्रकट। | 
			
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				| उल्लसन					 : | पुं० [सं० उद्√लंस्+ल्युट-अन] १. उल्लास या हर्ष से युक्त होना। बहुत प्रसन्न होना। २. चमकना। ३. सुशोभित होना। ४. आनंद या हर्ष के कारण होनेवाला रोमांच। | 
			
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				| उल्लसित					 : | वि० [सं० उद्√लंस्+क्त] १. जो उल्लास से युक्त हो। प्रसन्न। २. चमकता हुआ। ३. म्यान से निकला हुआ (खड़ग)। ४. हिलता हुआ। | 
			
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				| उल्लाप					 : | पुं० [सं० उद्√लंप्+घञ्] १. बहलाना। २. न कहने योग्य बात। कुवाच्य। ३. आर्त्त-नाद। चीख-पुकार। ४. दे० ‘काकूक्ति’। | 
			
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				| उल्लापक					 : | वि० [सं० उद्√लप्+णिच्+ण्वुल्-अक] १. उल्लास करनेवाला। २. खुशामदी। चाटुकार। | 
			
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				| उल्लापन					 : | पुं० [सं० उद्√लप्+णिच्+ल्युट-अन] १. उल्लाप करने की क्रिया या भाव। २. खुशामद। | 
			
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				| उल्लापी (पिन्)					 : | वि० [सं० उद्√लप्+णिच्+णिनि] उल्लापक। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उल्लाप्य					 : | पुं० [सं० उद्√लप्+णिच्+यत्] १. एक प्रकार का उपरूपक जो एक ही अंक का होता है। २. एक प्रकार का गीत। वि० जिसका उल्लापन (खुशामद) किया जाय या किया जा सके। | 
			
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				| उल्लाल					 : | पुं० [सं० उद्√लल् (इच्छा)+घञ्] एक मात्रिक अर्द्ध समवृत्त जिसके पहले या तीसरे चरण या पद में १5-१5 और दूसरे तथा चौथे चरण या पद में १३-१३ मात्राएँ होती हैं। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उल्लाला					 : | पुं० [सं० उल्लाल] एक मात्रिक छंद जिसके प्रत्येक चरण या पद में १३-१३ मात्राएँ होती हैं। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उल्लास					 : | पुं० [सं० उद्√लस्+घञ्] १. प्रकाश। चमक। २. साधारण बातों से होनेवाला अस्थायी या क्षणिक तथा हल्का आनंद। ३. आनंद। प्रसन्नता। ४. ग्रंथ या अध्याय या प्रकरण। ५. साहित्य में एक अलंकार जिसमें किसी एक वस्तु या व्यक्ति के गुणों या दोषों के कारण दूसरे में गुण या दोष उत्पन्न होने का वर्णन होता है। | 
			
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				| उल्लासक					 : | वि० [सं० उद्√लस्+णिच्+ण्वुल्-अक] [स्त्री० उल्लासिका] उल्लास या प्रसन्नता उत्पन्न करनेवाला। | 
			
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				| उल्लासना					 : | स० [सं० उल्लासन] १. प्रकाशित करना। २. उल्लास से युक्त करना। अ०=उलसना (उल्लास से युक्त होना)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उल्लासित					 : | वि० [सं० उद्√लस् (मिलाना आदि)+णिच्-क्त, वा० उल्लास+इतच्] १. जो उल्लास से युक्त हो या किया गया हो। २. प्रसन्न। हर्षित। ३. चमकाया हुआ। ४. अंकुरित या स्फुटित। | 
			
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				| उल्लासी (सिन्)					 : | वि० [सं० उल्लासिन्, उत्√लस् (मिलाना आदि)+णिनि, दीर्घ, नलोप] (व्यक्ति) उल्लास से भरा हुआ। उल्लास से युक्त। | 
			
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				| उल्लिखित					 : | वि० [सं० उद्√लिख् (लिखना)+क्त] १. जिसका उल्लेख ऊपर या पहले हुआ हो। २. (पुस्तक लेख आदि में) जिसका कथन या वर्णन पहले हो चुका हो। (मेन्शण्ड) ३. उकेरा हुआ। उत्कीर्ण। | 
			
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				| उल्लू					 : | पुं० [सं० उलूक] १. प्रायः उजाड़ जगहों में रहनेवाला एक प्रसिद्ध पक्षी जिसे दिन में कुछ दिखाई नहीं देता, और जो बहुत ही अशुभ तथा निबुद्धि माना जाता है। मुहावरा—(किसी स्थानपर) उल्लू बोलना पूरी तरह से उजाड़ हो जाना। २. बहुत ही निर्बुद्धि और मूर्ख व्यक्ति। पद-उल्लू का पट्ठा-निरा मूर्ख। पूरा नासमझ या बेवकूफ। | 
			
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				| उल्लेख					 : | पुं० [सं० उद्√लिख् (लिखना)+घञ्] १. लिखने की क्रिया या भाव। लिखाई। २. लेख आदि के रूप में होनेवाली चर्चा। जिक्र। वर्णन। ३. चित्र आदि अंकित करना। अंकन या चित्रण। ४. साहित्य में, एक अलंकार जिसमें एक ही वस्तु का कई विभिन्न रूपों में दिखाई देने का वर्णन होता है। | 
			
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				| उल्लेखक					 : | वि० [सं० उद्√लिख् (लिखना)+ण्वुल्, (वु)-अक] उल्लेख करनेवाला। | 
			
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				| उल्लेखन					 : | पुं० [सं० उद्√लिख् (लिखना)+ल्युट-अन] १. लिखने या वर्णन करने की क्रिया या भाव। २. अंकन या चित्रण करना। | 
			
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				| उल्लेखनीय					 : | वि० [सं० उद्√लिख् (लिखना)+अनीयर] १. लिखे जाने के योग्य। २. जिसका उल्लेख करना आवश्यक या उचित हो। | 
			
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				| उल्लेखित					 : | भू० कृ०=उल्लिखित। | 
			
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				| उल्लेख्य					 : | वि० [सं० उद्√लिख्+ण्यत्] जिसका उल्लेख किया जाने को हो या किया जा सकता हो। उल्लेखनीय। | 
			
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				| उल्लोल					 : | पुं० [सं० उद्√लोल् (घोलना आदि)+णिच्+अच्] लहर। हिलोर। | 
			
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				| उल्व					 : | पुं० [सं०√वल् (एकत्रित होना)+वक्, व-उ] १. वह झिल्ली जिसमें बच्चा बंधा हुआ गर्भासय से निकलता है। २. गर्भाशय। | 
			
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				| उल्वण					 : | पुं० [सं० उद्√वण् (शब्दार्थ)+अच्, पृषो० द०ल०] उल्व (आँवल)। | 
			
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				| उवना					 : | अ०=उअना (उगना)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उवनि					 : | स्त्री० [हिं० उवना] १. उदित होने की अवस्था,क्रिया या भाव। २. आविर्भाव।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उशना (नस्)					 : | पुं० [सं०√वश् (क्रान्ति)+कनस् व=उ] शुक्राचार्य। | 
			
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				| उशबा					 : | पुं० [अ० उश्बः] १. एक प्रकार का वृक्ष जिसकी जड़ रक्त-शोधन मानी जाती है। २. उक्त जड़ से प्रस्तुत किया हुआ एक प्रकार का अरक या औषध। | 
			
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				| उशी					 : | स्त्री० [सं०√वश्(इच्छा करना)+ई, व० उ] इच्छा। चाह। | 
			
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				| उशी-नर					 : | पुं० [सं० ब० स०] १. गांधार देश का पुराना नाम। (आजकल का झंग और चनाव तथा रावी के बीच का भू-भाग।) २. उक्त देश का निवासी। ३. राजा शिवि के पिता का नाम। | 
			
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				| उशीर					 : | पुं० [सं०√वश्+ईरन्, व=उ] गाँड़र या कतरे की जड़। खस। | 
			
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				| उषः (षस्)					 : | स्त्री० [सं० उष्(नाश करना आदि)+असि] दे० ‘उषा’। | 
			
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				| उषःकाल					 : | पुं० [ष० त०]=उषा-काल। | 
			
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				| उषःपान					 : | पुं० [ष० त०] हठयोग की एक क्रिया जिसमें बहुत तड़के उठकर नाक के रास्ते जल पीकर मुँह से निकाला जाता है। अमृत-पान। | 
			
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				| उषप					 : | पुं० [सं०√उष् (दाह करना)+कपन्] १. अग्नि। २. सूर्य। | 
			
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				| उषमा					 : | स्त्री०=ऊष्मा। | 
			
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				| उषर्वुध					 : | पुं० [सं० उपस्√बुध् (जानना)+क] १. अग्नि। २. चित्रक नामक वृक्ष। चीता। | 
			
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				| उषस्					 : | स्त्री०=उषा। | 
			
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				| उषसी					 : | स्त्री० [सं० उस्√सो (नाश करना)+क-ङीष्] १. संध्या। २. संध्या समय का मर्द्धिम प्रकाश। | 
			
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				| उषा					 : | स्त्री० [सं०√उष्+क-टाप्] १. सूर्य के उदित होने से कुछ पहले मन्द प्रकाश। दिन निकलने से पहले का चाँदना। २. अरुणोदय की लाली। ३. सूर्यादय से पहले का समय। तड़का। प्रभात। ४. बाणासुर की कन्या जिसका विवाह अनिरुद्ध से हुआ था। ५. गाय। गौ। | 
			
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				| उषाकर					 : | पुं० [सं० उषा√कृ (करना)+अच्] चंद्रमा। | 
			
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				| उषा-काल					 : | पुं० [ष० त०] भोर की बेला। प्रभात। दिन निकलने से कुछ पहले का समय। सूर्य के उदित होने से पहले का समय। तड़का। | 
			
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				| उषा-पति					 : | पुं० [ष० त०] अनिरुद्ध। | 
			
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				| उषित					 : | वि० [सं० उष् (दाह आदि)+क्त] १. देर से पका हुआ। बासी। २. जला हुआ। ३. फुरतीला। ४. बसा हुआ। पुं० बस्ती। आबादी। | 
			
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				| उषी					 : | स्त्री० [सं० उष्णता से] लपट। उदाहरण—ते ऊसास अगिनि का उषी। कुँवरि क देवी ज्वालामुखी।—नंददास। ज्वाला। | 
			
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				| उषेश					 : | पुं० [उषा-ईश्, ष० त०]=उषापति। (अनिरुद्ध)। | 
			
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				| उष्ट्र					 : | पुं० [सं०√उष् (नाश करना)+ष्ट्रनु-कित] [स्त्री० उष्ट्री] १. ऊँट। २. भैसा। ३. ककुद या डिल्लेवाला साँड़। | 
			
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				| उष्ण					 : | वि० [सं०√उष् (दाह करना)+नक्] १. तपा हुआ। गरम। २. गरमी या ताप उत्पन्न करने वाला। ३. (पदार्थ) जिसे खाने से शरीर में गरमी या हलकी जलन हो। ४. तीक्ष्ण। तीखा। ५. मनोविकार, राग आदि से युक्त। ६. चतुर। चालाक। ७. फुरतीला। तेज। पुं० १. गरमी का मौसम। ग्रीष्म-ऋतु। २. गरमी। ३. धूप। ४. प्याज। ५. एक नरक का नाम। | 
			
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				| उष्णक					 : | पुं० [सं० उष्ण+कन्] १. गरमी का मौसम। ग्रीष्म ऋतु। २. ज्वर। बुखार। ३. सूर्य। वि० १. तपा हुआ। २. गरम। ३. गरमी या ताप उत्पन्न करनेवाला। गरमी या ताप पहुँचाने वाला। ४. फुरतीला। तेज। | 
			
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				| उष्ण-कटिबंध					 : | पुं० [ब० स०] पृथ्वी का वह क्षेत्र या भू-भाग जो कर्क और मकर रेखाओं के बीच में पड़ता है तथा जिसमें बहुत अधिक गरमी पड़ती है। (टॉरिड ज़ोन) | 
			
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				| उष्ण-कर					 : | पुं० [ब० स०] सूर्य। | 
			
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				| उष्णता					 : | स्त्री० [सं० उष्ण+तल्-टाप्] १. उष्ण होने की अवस्था, गुण या भाव। २. गरमी। ताप। | 
			
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				| उष्णत्व					 : | पुं० [सं० उष्ण+त्व] =उष्णता। | 
			
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				| उष्ण-वीर्य					 : | वि० [ब० स०] (पदार्थ) जो गुण या प्रभाव के विचार से गरम हो। (वैद्यक) | 
			
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				| उष्णांक					 : | पुं० [उष्ण-अंक, मध्य० स०] तापमान जानने या निश्चित करने की एक आधुनिक इकाई। (कैलरी)। | 
			
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				| उष्णा					 : | स्त्री० [सं० उष्ण-टाप्] १. गरमी। २. पित्त। ३. क्षय। | 
			
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				| उष्णालु					 : | वि० [सं० उष्ण+आलुच्] १. जो गरमी न सह सकता हो, उत्ताप सहन करने में असमर्थ। २. गरमी या ताप से व्याकुल। | 
			
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				| उष्णासह					 : | पुं० [सं० उष्ण-आ√सह् (सहन करना)+अच्] जाड़े का मौसम। शीतकाल। | 
			
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				| उष्णिक्					 : | पुं० [सं० उत्√स्निह् (चिकना होना)+क्विप्] एक वैदिक छंद जिसके प्रत्येक चरण में सात वर्ण होते हैं। | 
			
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				| उष्णिमा (मन्)					 : | स्त्री० [सं० उष्ण+इमानिच्] उष्ण होने की अवस्था, गुण या भाव। गरमी। ताप। | 
			
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				| उष्णीष					 : | स्त्री० [सं० उष्ण√ईष् (नाश करना)+क] १. पगड़ी। साफा। २. मुकुट। ताज। | 
			
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				| उष्णीषी (षिन्)					 : | वि० [सं० उष्णीय+इनि, दीर्घ, नलोप] जिसने पगड़ी बाँधी या मुकुट धारण किया हो। पुं० शिव का एक नाम। | 
			
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				| उष्णोष्ण					 : | वि० [सं० उष्ण-उष्ण, कर्म० स०] बहुत गरम। | 
			
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				| उष्म					 : | पुं० [सं०√उष् (उत्पन्न करना)+मक्] १. गरमी। ताप। २. गरमी की ऋतु। ३. धूप। ४. क्रोध। | 
			
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				| उष्मज					 : | पुं० [सं० उष्म√जन् (उत्पन्न करना)+ड] वे छोटे कीड़े जो पसीने, मैल आदि से पैदा होते हैं। जैसे—खटमल, मच्छर आदि। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उष्मप					 : | पुं० [सं० उष्म√पा (पीना)+क] पितर। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उष्म-स्वेद					 : | पुं० [कर्म० स०] दे० ‘उष्मा स्वेद’। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उष्मा					 : | स्त्री० [सं०√उष्+मनिन्] १. गरमी। ताप। २. धूप। ३. क्रोध। ४. बहुत तनातनी का वातावरण। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उष्मा-स्वेद					 : | पुं० [सं० उष्मस्वेद] वह प्रक्रिया जिसमें किसी वस्तु पर इस प्रकार ताप या भाप पहुँचाई जाती है कि वह गीला या तर हो जाय। (वेपर बाथ) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उस					 : | सर्व० उभ० [हिं० वह] हिंदी सर्वनाम वह का वह रूप जो उसे विभक्ति लगने से पहले प्राप्त होता है। जैसे—उसने, उसकी, उससे, उसमें आदि। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उसकन					 : | पुं० [सं० उत्कर्षण-खींचना, रगड़ना] वह छाल या घासपास जिससे बरतन आदि माँजते हैं। उबसन। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उसकना					 : | अ०=उकसना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उसकाना					 : | स०=उकसाना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उसकारना					 : | स०=उकसाना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उसठ					 : | वि० [?] नीरस। फीका। उदाहरण—उसठ न कर सठ बढ़ाओल पेम।—विद्यापति। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उसनना					 : | स० [सं० उष्ण]=उबालना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उसनीस					 : | पुं०=उष्णीश।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उसमा					 : | पुं० [अ० वसमा] उबटन। स्त्री०=उष्मा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उसमान					 : | पुं० [अ०] मुहम्मद के चार सखाओं में से एक। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उसमानिया					 : | पुं० [अ०] उसमान से चला हुआ तुर्क राजवंस। वि० उसमान संबंधी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उसरना					 : | अ० [सं० उद्+सरण-जाना] १. हटना। दूर होना। टलना। २. व्यतीत होना। बीतना। ३. छिन्न-भिन्न होना। उदाहरण—आज औधि-औसर उसासहि उसीर जै हैं।—घनानंद। ४. ऊपर उठना। जैसे—घर उसरना। ५. डूबते हुए का फिर से ऊपर आना। उतराना। अ० [सं० विस्मरण] विस्मृत होना। भूलना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उसलना					 : | अ०=उसरना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उससना					 : | अ० [सं० उच्छ्वसन] गहरा या ठंडा सांस लेना। अ० [सं० उत्सरण] खिसरना। टलना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उसाँस					 : | पुं०=उसास।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उसाना					 : | स०=ओसाना (अनाज बरसाना)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उसारना					 : | स० [सं० उद्+सरण-जाना] १. ऊपर उठाना या लाना। २. बनाकर खड़ा या तैयरा करना। जैसे—घर उसारना। ३. टालना। हटाना। ४. उखाड़ना। ५. बाहर निकालना या निकालकर सामने लाना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उसारा					 : | पुं० दे० ‘ओसारा’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उसालना					 : | स० [सं० उत्+शालन] १. उखाड़ना। २. दूर करना। हटाना। ३. भगाना। ४. टालना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उसास					 : | स्त्री० [सं० उत्-श्वास] १. गहरा या लंबा सांस। दीर्घनिश्वास। २. श्वास। साँस। ३. मानसिक कष्ट, पश्चाताप आदि के कारण लिया जानेवाला ठंढ़ा साँस। ४. अवकास। ५. विश्राम। उदाहरण—है हौ कोउ वीर जो उसास मोहिं दयो है।—सुधाकर द्विवेदी। | 
			
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				| उसासी					 : | स्त्री० [हिं० उसास] दम लेने की फुरसत। अवकाश। छुट्टी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उसिनना					 : | स०=उबालना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उसीर					 : | पुं०=उशीर (खश)। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उसीला					 : | पुं०=वसीला (द्वार)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उसीस					 : | पुं० [सं० उत्-शीर्ष] १. तकिया। २. सिरहाना। (पैताना का विपर्याय)। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उसीसा					 : | पुं०=उसीस।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उसूल					 : | पुं० [अ०] सिद्धान्त। वि०=वसूल।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उसूली					 : | वि० [अ०] १. उसूल। (सिद्धांत) से संबंध रखनेवाला। सैद्धांतिक। २. उसूल (सिद्धांत) का पालन करनेवाला। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उसेना					 : | स० [सं० उष्ण] उबालना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उसेय					 : | पुं० [देश] असम प्रदेश में होनेवाला एक प्रकार का बहुत बड़ा बाँस। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उसेस					 : | पुं० [सं० उच्छीर्षक] [स्त्री० अल्पा० उसेसी] तकिया। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उस्कन					 : | पुं०=उसकन। | 
			
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				| उस्तरा					 : | पुं० [फा०] बाल मूँड़ने का छुरा। | 
			
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				| उस्तवा					 : | पुं० [अ० इस्तिवा] समतल होने की अवस्था या भाव। समतलता। | 
			
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				| उस्ताद					 : | पुं० [फा०] [भाव० उस्तादी] १. (क) वह जो किसी विषय में बहुत अधिक दक्ष या निपुण हो। प्रवीण। (ख) चुतर। चालाक। २. (क) वह जो विद्यार्थियों को कुछ बतलाता या सिखलाता हो। गुरु। शिक्षक। (ख) वेश्याओं को नृत्य, संगीत आदि की शिक्षा देनेवाला। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उस्तादी					 : | स्त्री० [फा०] १. उस्ताद होने की अवस्था या भाव। २. शिक्षक की वृत्ति। ३. दक्षता। निपुणता। ४. चालाकी। धूर्तत्ता। | 
			
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				| उस्तानी					 : | स्त्री० [फा० ‘उस्ताद’ का स्त्री] १. उस्ताद या गुरु की पत्नी। २. अध्यापिका। शिक्षिका। | 
			
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				| उस्वास					 : | स्त्री०=उसाँस।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उहदा					 : | पुं०=ओहदा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उहटना					 : | अ० १. दे० ‘उघड़ना’। २. दे० ‘हटना’। स०=उघाड़ना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उहवाँ					 : | क्रि० वि०=वहाँ।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उहाँ					 : | क्रि० वि०=वहाँ। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उहार					 : | पुं० दे० ‘ओहार’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उहास					 : | पुं० [सं० उद्भास] प्रकाश। रोशनी। उदाहरण—आणंद सुजु उदौ उहास हास अति।—प्रिथीराज। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उहि					 : | सर्व०=वह।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उही					 : | सर्व०=वही।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उहूल					 : | स्त्री० [सं० उल्लोल] तरंग। लहर। (डिं०)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उहै					 : | सर्व०=वही (वह ही)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उ					 : | नागरी वर्णमाला का पाँचवाँ स्वर जो ह्रस्व है और जिसका दीर्घ रूप ‘ऊ’ है। भाषा-विज्ञान की दृष्टि से यह ह्रस्व, ओष्ठ्य, घोष तथा संवृत स्वर है। पूर्वी हिंदी में कुछ शब्दों के अंत में लगकर यह ‘भी’ का अर्थ देता है। जैसे—तरनिउ मुनि घरनी होई जाई।—तुलसी। पुं० [√अत्(सतत गमन)+डु] १. ब्रह्मा। २. शिव। ३. नर। मनुष्य। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उँखार					 : | स्त्री० १. दे० ऊख। २. दे० ‘उखारी’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उँखारी					 : | स्त्री० =उखारी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उंगनी					 : | स्त्री० [हि० आंगना] गाड़ियों के पहियों में तेल देने या उन्हें आँगने की क्रिया या भाव। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उँगल					 : | स्त्री० =उँगली। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उँगली					 : | स्त्री० [सं० अंगुलि] हाथ या पैर के पंजो में से निकले हुए पाँच लंबे किंतु पतले अवयवों में से हर एक। (इन्हें क्रमशः अंगुष्ठ या अँगूठा, तर्जनी, मध्यमा, अनामिका तथा कनिष्ठिका या कानी उँगली कहते हैं) मुहावरा—(किसी की ओर) उँगली उठाना=(किसी के) कोई अनुचित काम करने पर उसकी ओर संकेत करते हुए उसकी चर्चा करना। उँगली चटकाना=उँगली को इस तरह खींचना, दबाना या मोड़ना कि उसमें से चट-चट शब्द निकले। उँगलियाँ चमकाना, नचाना या मटकाना=बात-चीत या लड़ाई के समय स्त्रियों की तरह हाथ और उँगलियाँ हिलाना या मटकाना। उँगली पकड़ते पहुँचा पकड़ना=थोड़ा सा अधिकार या सहारा मिलने पर सारी वस्तु या सत्ता पर अधिकार जमाना। थोड़ा-सा सहारा पाकर सब की प्राप्ति के लिए प्रयत्नशील होना। (किसी को) उँगलियों पर नचाना=(क) किसी ले जैसा चाहे वैसा काम करा लेना। (ख) जान-बूझकर किसी को तंग या परेशान करना। (किसी कृति पर) उंगली रखना=किसी कृति में कोई दोष बतलाना या उसकी ओर संकेत करना। उदाहरण—क्या कोई सहृदय कालिदास के कवि-कौशल उँगली रख सकता है ? कानो में उँगलियाँ देना=किसी परम अनुचित या निदंनीय बात की चर्चा होने पर उसके प्रति परम उदासीनता प्रकट करना। पाँचों उगलियाँ घी में होना=सब प्रकार से यथेष्ठ लाभ होने का अवसर आना। जैसे—अब तो आपकी पाँचों उँगलियाँ घी में हैं। पद-कानी उँगली-सबसे छोटी और अंतवाली उंगली। कनिष्ठिका। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उँचन					 : | स्त्री० दे०‘उनचन’। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उँचना					 : | स्त्री० दे०‘उनचना’। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उँचान					 : | स्त्री० =उँचान।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उँचास					 : | वि० =उनचास।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उंछ					 : | स्त्री० [सं०√उञ्छ् (दाना बिनना)+घञ्] फसल कट जाने पर खेत में गिरे हुए दाने चुनने का काम। सीला बीनना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उंछ-वृत्ति					 : | स्त्री० [ष० त०] प्राचीन भारत में, त्योगियों की वह वृत्ति जिसमें वे फसल कट जाने पर गिरे हुए दाने चुनकर जीविका निर्वाह करते थे। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उंछ-शील					 : | वि० [ब० स०] उंछ वृत्ति के द्वारा जीवन-निर्वाह करनेवाला। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उँजरिया					 : | स्त्री० [हि० उजाला का पूर्वी रूप] १. उजाला। प्रकाश। २. चाँदनी रात। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उँजियार					 : | पुं० [सं० उज्ज्वल] उजाला। प्रकाश। वि० [स्त्री० उँजियारी] १. उजला। सफेद। २. चमकता हुआ। प्रकाशमान। | 
			
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				| उँजेरा, उँजेला					 : | पुं० =उजाला। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उँज्यारा					 : | वि० [स्त्री० उँज्यारी] =उजाला। पुं० =उजाला। | 
			
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				| उंझना					 : | अ० =उलझना। | 
			
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				| उँडेरना					 : | पुं० =उँड़ेलना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उँडेलना					 : | स० [?] १. कोई पदार्थ, विशेषतः तरल पदार्थ एक बरतन में से दूसरे बरतन में गिराना या डालना। ढालना। २. पात्र या बरतन में रखी हुई चीज इस प्रकार उलटना कि वह जमीन पर इधर-उधर बिखर जाए। | 
			
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				| उंदरी					 : | स्त्री० [सं० ऊर्ण(-बाल)+दर-(नाश करनेवाला)] एक रोग जिसमें सिर के बाल झड़ जाते हैं। | 
			
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				| उँदरू					 : | पुं० [सं० कुन्दरू] एक प्रकार की काँटेदार झाड़ी। ऐल। हैंस। | 
			
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				| उँदर					 : | पुं० [सं०√उन्द् (भीगना)+उर] चूहा। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उंदुरकर्णी					 : | स्त्री० [ष० त० ङीष्] मूसाकानी नामकी लता। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उंद्र					 : | पुं० [सं० उंदुर] चूहा। उदाहरण—उद्र कहों बिलइया घेरा।—गोरखनाथ।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उंबरी					 : | स्त्री० =उडुंबर (गूलर)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उँह					 : | अव्य० [अनु०] अस्वीकार, असहमति, उदासीनता, घृणा आदि का सूचक शब्द। जैसे—(क) उँह ऐसा मत करो। (ख) उँह ! जाने भी दो। | 
			
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				| उअना					 : | अ० [सं० उदय, हिं० उगना] उदित होना। उगना। उदाहरण—उयौ सरद राका-ससी, करति क्यों न चित चेतु।—बिहारी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उअर					 : | पुं० =उर (हृदय)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उआना					 : | स०१=०उगाना। २. =उठाना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उऋण					 : | वि० [सं० उच्-ऋण] जिसने अपना ऋण चुका दिया हो। जो ऋण से मुक्त हो चुका हो। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उक					 : | वि० [सं० उक्ति] उक्ति। कथन। उदाहरण—बन जाए भले शुक की उक से।—निराला।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उकचन					 : | पुं० [सं० मुचकुंद] मुचकुंद का फूल। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उकचना					 : | अ० [सं० उत्कीर्ण, पा० उक्कस-उखाड़ना] १. =उखड़ना। २. =उचड़ना। ३. =उचकना। स०१. =उखाड़ना। २. उचाड़ना। ३. =उठाना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उकटना					 : | स०=उघटना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उकटा					 : | वि०=उघटा। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उकटा-पुराण					 : | पुं० =उघटा पुराण। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उकठना					 : | अ० [हिं० काठ] १. सूखकर लकड़ी की तरह कड़ा होना या ऐंठना। २. उखड़ना। स०=उघटना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उकठा					 : | अ० [सं० अव+काष्ठ] १. जो सूखकर लकड़ी की तरह ऐंठ गया हो। २. शुष्क। सूखा। उदाहरण—मिलनि बिलोकि स्वामि सेवक की उकठे तरु फले फूले-तुलसी। वि० पुं० =उघटा।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उकड़ू					 : | पुं० [सं० उत्कृतोरु] तलवों और चूतड़ों के बल बैठने की वह मुद्रा जिसमें घुटने छाती से लगे रहते हैं। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उकढ़ना					 : | अ०-कढ़ना (बाहर निकलना)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उकत					 : | स्त्री०=उक्ति। (कथन)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उकताना					 : | अ० [सं० आकुल, पुं० हिं० अकुलताना] बैठे-बैठे या कोई काम करते-करते जी घबरा जाना। ऊबना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उकती					 : | स्त्री० उक्ति। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उकलना					 : | अ० [सं० उत्+कलन-खुलना, प्रा० उक्कल, गु० उकलवू, उकालो० मरा० उकल (णों)] कपड़े आदि की तह या लपेट खुलना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उकलवाना					 : | स० [हिं० उकेलना का प्रे०] उकेलने का काम दूसरे से कराना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उकलाई					 : | स्त्री० [सं० उद्रिरण, हिं० उगलना] १. उगलने की क्रिया या भाव। २ उल्टी। कै। स्त्री० [हिं० उकलना] उकलने या उकेलने की क्रिया, भाव या मजदूरी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उकलाना					 : | अ० [हिं० उकलाई] १. उगलना। उलटी करना। कै करना। अ० [सं० आकुल] आकुल होना। अकुलाना। उदाहरण—...जिवड़ों अति उकलावै।—मीराँ।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उकलेसरी					 : | पुं० [अंकलेश्वर (स्थान का नाम)] हाथ का बना एक प्रकार का कागज। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उकवत					 : | पुं० [सं० उत्कोथ] एक प्रकार का चर्म रोग जिसमें छोटे-छोटे लाल दाने निकल आते हैं और बहुत खुजली तथा पीड़ा होती है। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उकसना					 : | अ० [सं० उत्कष] १. नीचे से ऊपर को आना। उभरना। निकलना। २. अंकुरित होना। उगना। ३. ऊपर होने के लिए उचकना। उदाहरण—पुनि पुनि मुनि उकसहिं अकुलाहीं।—तुलसी। अ० [क्रि० उकसाना का अ० रूप] दूसरों द्वारा प्रेरित होना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उकसनि					 : | स्त्री० [हिं० उकसना] उकसने की अवस्था या भाव। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उकसवाना					 : | स० [हिं० उकसना] उकसने या उकासने का काम किसी और से कराना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उकसाई					 : | स्त्री० [हिं० उकसाना] उकसाने की क्रिया भाव या मजदूरी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उकसाना					 : | स० [हिं० ‘उकसना’ का प्रे० रूप] [भाव० उकसाहट] १. किसी को कोई काम करने के लिए उत्साहित, उत्तेजित या प्रेरित करना। उभाड़ना। २. ऊपर या आगे की ओर बढ़ाना। जैसे—दीए की बत्ती उकसाना। ३. किसी को कहीं से उठाना या हटाना। (क्व०)। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उकसाहट					 : | स्त्री० [हिं० उकसाना+आहट (प्रत्यय)] १. उकसाने की क्रिया या भाव। २. उत्तेजना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उकसौहाँ					 : | वि० [हिं० उकसना+औहाँ (प्रत्यय)] [स्त्री० उकसौही] उकसने, उभड़ने या बाहर निकलने की प्रवृत्ति रखनेवाला। उभड़ता हुआ। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उकाब					 : | पुं० [अ०] गिद्ध की जाति का एक बड़ा पक्षी। गरुड़। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उकार					 : | पुं० [सं० उ+कार] १. ‘उ’ स्वर। २. शिव। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उकारांत					 : | वि० [सं० उकार-अंत, ब० स०] (शब्द) जिसके अंत में ‘उ’ स्वर हो। जैसे—शम्भु, भानु आदि। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उकालना					 : | स० [सं० उत्कालन] उबालना। स०=उकेलना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उकास					 : | स्त्री० [सं० उकासना] उकासने की क्रिया या भाव। पुं०=अवकाश। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उकासना					 : | स० [सं० उत्कर्षण] १. खींच या दबाकर बाहर निकालना। २. ऊपर की ओर ढकेलना या फेंकना। ३. उत्तेजित करना। ४. खोलना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उकासी					 : | स्त्री० [हिं० उकसना] उकासने की क्रिया या भाव। स्त्री० [सं० अवकाश] १. छुट्टी। २. अवकाश या छुट्टी के समय मनाया जानेवाला उत्सव।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उकिलन					 : | अ० =उगलना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उकीरना					 : | स० [सं० उत्कीर्णन] १. खोदकर उखाड़ना या निकालना। उदाहरण—इंदु के उदोत तें उकीरी ही सी काढ़ी, सब सारस सरस, शोभासार तें निकारी सी।—केशव। २. उभाड़ना। ३. दे० ‘उकेरना’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उकील					 : | पुं०=वकील।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उकुति					 : | =उक्ति।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उकुति-जुगुति					 : | पद=उक्ति-युक्ति।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उकुरु					 : | पुं० =उकड़ूँ। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उकुसना					 : | अ० =उकसना। स० [?] नष्ट करना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उकेरना					 : | स० [सं० उत्कीर्ण या उकीर्य] पत्थर, लकड़ी, लोहे आदि कड़ी चीजों पर छेनी आदि से नक्काशी करना या बेल-बूटे बनाना। (एनग्रेव)। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उकेरी					 : | स्त्री० [हिं० उकेरना] १. उकेरने की कला या विद्या। २. उकेरने या खोदकर बेल-बूटे बनाने का काम। नक्काशी। (एनग्रेविंग) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उकेलना					 : | स० [हिं० उकलना] १. लिपटी हुई चीज को छुड़ाना। २. उधेड़ना। ३. तह खोलना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उकौथ (ा)					 : | पुं० =उकवत। (रोग)। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उकौना					 : | पुं० [हिं० ओकाई ?] गर्भवती स्त्री के मन में होनेवाली अनेक प्रकार की इच्छाएँ। दोहद। क्रि० प्र० उठना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उक्क					 : | अव्य० [हिं० उकड़ूँ ?] १. आगे। २. मुँह के बल। वि०=उत्कंठित।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उक्त					 : | वि० [सं०√वच् (बोलना)+क्त] १. कहा या बतलाया हुआ। २. जिसका वर्णन ऊपर या पहले हुआ हो। जो ऊपर या पहले कहा गया हो। (एफोरसेड)। | 
			
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				| उक्त-निमित्त					 : | वि० [ब० स०] [स्त्री० उक्त=निमित्ता] जिसका निमित्त या कारण स्पष्ट शब्दों में कहा गया हो। जैसे—उक्त निमित्ता। विशेषोक्ति। | 
			
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				| उक्त-प्रत्युक्त					 : | पुं० [द्व० स०] १. लास्य के दस अंगों में से एक। २. कोई कही हुई बात और उसका दिया हुआ उत्तर। बात-चीत। कथोपकथन। | 
			
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				| उक्ताक्षेप					 : | पुं० [उक्त-आक्षेप, तृ० त०] साहित्य में आक्षेप अंलकार का एक भेद, जिसमें किसी से कोई बात इस ढंग से कही जाती है कि उससे नहिक, निषेध या निवारण का भाव प्रकट होता है। जैसे—आप वहाँ जाइये न, मैं क्या मना करता हूँ। (अर्थात् आप वहाँ मत जाएँ) | 
			
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				| उक्ति					 : | स्त्री० [सं०√वच्+क्तिन्] १. किसी की कही हुई कोई बात। कथन। वचन। २. किसी की कही हुई कोई ऐसी अनोखी या महत्त्व की बात जिसका कहीं उल्लेख या चर्चा की जाय। (अटरेन्स) | 
			
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				| उक्ति-युक्ति					 : | स्त्री० [द्व० स०] किसी समस्या के निराकरण के लिए कही हुई कोई बात और बतलाई हुई तरकीब या उक्ति। क्रि० प्र०-भिड़ना।—लगाना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उक्ती					 : | स्त्री० =उक्ति।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उक्थ					 : | पुं० [सं०√वच्+थक्] १. उक्ति। कथन। २. सूक्ति। स्त्रोत्र। ३. एक प्रकार का यज्ञ। ४. वह दिन जब यज्ञ में उक्थ अर्थात् स्त्रोत्र पाठ होता है। ५. प्राण। ६. ऋणभक नाम की अष्टवर्गीय ओषधि। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उक्थी (क्थिन्)					 : | वि० [सं० उक्थ+इनि] स्तोत्रों का पाठ करनेवाला। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उक्षण					 : | पुं० [सं०√उक्ष् (सींचना)+ल्युट्-अन] [भू० कृ० उक्षित] जल छिड़कने की क्रिया या भाव। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उखटना					 : | अ० [हिं० उखड़ना ?] [सं० उत्कर्षण] १. लड़खड़ाकर गिरना या लड़खड़ाना। २. कुतरना। खोंटना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उखड़ना					 : | स० [सं० उत्खनन, प्रा० उक्खणन] १. ऐसी चीजों का अपने मूल आधार या स्थान से हटकर अलग होना जिनकी जड़ या नीचे वाला भाग जमीन के अंदर कुछ दूर तक गड़ा, जमा या फैला हो। जैसे—(क) आँधी से पेड़-पौधों का उखड़ना। (ख) जमीन में गड़ा हुआ खंबा उखड़ना। २. ऐसी चीजों का अपने आधार या स्थान से हटकर अलग होना जिनका नीचेवाला तल या पार्श्व कहीं अच्छी तरह जमा या बैठा हो। जमा, टिका,ठहरा या लगा न रहना। जैसे—(क) अँगूठी या हार में का नगीना उखड़ना। (ख) दीवार पर का पलस्तर या रंग उखड़ना। ३. दृढ़ता से खड़ी, जमी या लगी हुई चीज का अपने नियत स्थान से कट, टूट या हटकर अलग या इधर-उधर होना। जैसे—(क) कंधे या कोहनी की हड्डी उखड़ना। (ख) कुरसी या चौकी का पाया उखड़ना। (ग) युद्ध-क्षेत्र से सेना के पैर उखड़ना। ४. (आवश्यकता बाधा आदि के कारण) मिलने-जुलने, रहने-बैठने आदि के स्थान से हटकर लोगों का इधर-उधर या तितर-बितर होना। जैसे—(क) साधु-मंडली का डेरा-डंडा उखड़ना। (ख) आँधी-पानी या उपद्रव के कारण खेल, जलसा या मेला उखड़ना। (ग) पुलिस के भय से जुआरियों या शराबियों का अड्डा उखड़ना। ५. भिन्न-भिन्न अंगो, पक्षों, भागों आदि को जोड़ या मिलाकर रखनेवाले तत्त्वों का टूट-फूट कर अलग होना। जैसे—(क) गिलास या थाली का टाँका उखड़ना।(ख) कुरते या जूते की सीयन उखड़ना। (ग) परेते पर से गुड्डी या पतंग उखड़ना। ६. किसी प्रकार के सुदृढ़ आधार या स्वस्थ स्थिति से अस्त-व्यस्त, चंचल या विचलित होना। पहलेवाली अच्छी दशा या स्थिति में बाधा या व्यतिक्रम होना। जैसे—(क) किसी जगह से मन उखड़ना। (ख) बाजार (या समाज) से बनी हुई बात (या साख) उखड़ना। (ग) दूकान पर से ग्राहक उखड़ना। ७. बँधा हुआ क्रम, तार या सिलसिला इस प्रकार भंग होना कि कटुता या विरसता उत्पन्न हो। जैसे—(क) गाने में गवैये का दम या साँस उखड़ना। (ख) चलने या दौड़ने में घोड़े की चाल उखड़ना। ८. आपस की बात-चीत, लेन-देन या व्यवहार में अप्रिय और अवांछित रूप से उग्रता या कठोरता का सूचक परिवर्तन या विकार होना। सम स्थिति से हटकर विषम-स्थिति में आना या होना। जैसे—(क) अब तो आप जरा-जरा सी बात पर उखड़ने लगे हैं। (ख) उनसे मेल-जोल बनाये रखो, कहीं से उखडने मत दो। मुहावरा—उखड़ी उखड़ी बातें करना=सौजन्य या सौहार्द छोड़कर उदासीन या खिन्न भाव से बातें करना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उखड़वाना					 : | स० [उखड़ना का प्रे० रूप] किसी को कुछ या कोई चीज उखाड़ने में प्रवृत्त करना। उखाड़ने का काम किसी से कराना। | 
			
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				| उखभोज					 : | पुं० [हिं० ऊख+सं० भोज] =ईखराज।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उखम					 : | पुं० [सं० ऊष्मा] उष्णता। गरमी। उदाहरण—बैसाख ए सखि उखम लागे चंदन लेपत सरीर हो।—ग्राम्यगीत। | 
			
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				| उखमज					 : | वि० =ऊष्मज्। पुं० [सं० उष्मज्] उपद्रव, बखेड़ा आदि खड़ा करने के लिए मन में होनेवाला दुष्टतापूर्वक विचार। जैसे—तुम्हें भी बैठे-बैठे उखमज सूझा करता है।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उखर					 : | पुं० [हिं० ऊख] ऊख बोने के बाद हल पूजने की रीति जिसे हर-पुजी भी कहते है।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उखरना					 : | अ० =उखड़ना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उखराज					 : | पुं० =ईखराज।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उखरैया					 : | वि० [हिं० उखाड़ना] उखाडऩेवाला। उदाहरण—भूमि के हरैया उखरैया भूमि-घरनि के।—तुलसी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उखली					 : | स्त्री० =ऊखल। | 
			
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				| उखा					 : | उषा।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उखाड़					 : | स्त्री० [हिं० उखाड़ना] १. उखाड़ने की क्रिया या भाव। २. कुश्ती में, किसी का दाव या पेंच व्यर्थ करनेवाला कोई और दाँव या पेंच। | 
			
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				| उखाड़ना					 : | स० [सं० उत्खनन, प्रा० उक्खणन] १. ऐसी चीज खींच या निकाल कर अलग करना जिसकी जड़ या नीचे का भाग जमीन के अंदर गड़ा, जमा या धंसा हो। जैसे—पेड़-पौधे या कील-काँटे उखाड़ना। २. कहीं जमी, ठहरी या लगी हुई चीज खींचकर उसके आधार तल से अलग करना। जैसे—पुस्तक की जिल्द उखाड़ना। अंग के जोड़ पर से किसी की हड्डी उखाड़ना आदि। ३. किसी स्थान पर टिके या ठहरे हुए व्यक्ति को वहाँ से भगाने या हटने के लिए विवश करना। जैसे—दुश्मन के पाँव या पैर उखाड़ना, दरबार में से किसी दरबारी या मुसाहब को उखाड़ना। मुहावरा—(किसी को) जड़ से उखाड़ना=इस प्रकार दूर या नष्ट करना कि फिर अपने स्थान पर आकर ठहर या पनप न सके। | 
			
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				| उखाड़-पछाड़					 : | स्त्री० [हिं० उखाड़ना+पछाड़ना] १. कहीं किसी को उखाड़ने और कही किसी को पछाड़ने की क्रिया या भाव। २. कभी कहीं से कुछ इधर का उधर और कभी कहीं से उधर से इधर (अर्थात् अस्तव्यस्त या उलट-पुलट) करने की क्रिया या भाव। | 
			
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				| उखाड़ू					 : | वि० [हिं० उखाड़ना] प्रायः उखाड़ने का काम करता रहनेवाला। | 
			
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				| उखाणा					 : | पुं० [सं० उपाख्यान] कहावत। (राज०)(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उखारना					 : | स० =उखाड़ना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उखारी					 : | स्त्री० [हिं० ऊख] वह खेत जिसमें ऊख बोया गया हो। उदाहरण—बीच उखारा रम-सरा,रस काहे ना होत।—कबीर।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उखालिया					 : | पुं० [सं० उष+काल] व्रत आरंभ करने से पहले रात के पिछले पहर में किया जानेवाला अल्पाहार। सरगही। | 
			
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				| उखेड़					 : | स्त्री० =उखाड़। | 
			
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				| उखेड़ना					 : | स० =उखाडना। | 
			
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				| उखेरना					 : | स० [हिं० उखेड़ना]-उखाड़ना। स०=उकेरना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उखेरा					 : | पुं० =ऊख। (ईख)। | 
			
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				| उखेलना					 : | स० [सं० उल्लेखन] १. अंकित करना। लिखना। २. उकेरना (दे०)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उख्य					 : | वि० [सं० उखा+यत्] उबाला हुआ। पुं० हाँड़ी में उबाला हुआ मांस, जिसकी यज्ञ में आहुति दी जाती है। | 
			
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				| उगटना					 : | अ० =उघटना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उगत					 : | वि० =उक्त। स्त्री० =उक्ति। | 
			
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				| उगदना					 : | अ० [सं० उद्+गद-कहना] कहना। बोलना। (दलाल)। | 
			
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				| उगना					 : | अ० [सं० उद्गमन, प्रा० उग्गमन, गु० उगवूँ, मरा० उगणें० सि० उगणुँ०] १. वानस्पतिक क्षेत्र में, (क) जमीन के अंदर दबी हुई जड़ या पड़े हुए बीज में अंकुर, पत्ते शाखाएँ आदि निकलना। अंकुरति होना। जैसे—क्यारी में घास, खेत में गेहूँ याजमीन में पेड़ उगना। (ख) पेड़-पौधों के तनों, शाखाओं आदि में से निकलकर ऊपर आना या उठना। जैसे—पौधे में पत्ती या फेड़ में फूल उगना। २. प्राकृतिक कारणों से किसी तल के अंदर से निकलकर ऊपरी या बाहरी स्तर पर आना। जैसे—ठोढ़ी पर तिल उगना, गाल पर बाल या मसा उगना। ३. ग्रह, नक्षत्र आदि का क्षितिज से ऊपर आकर दिखाई देना। उदित होना। जैसे—चंद्रमा या सूर्य उगना। जैसे—रात में चाँदनी या दिन में धूप उगना। ५. किसी चीज का अपने आस-पास की चीजों में रहते हुए भी अपेक्षया अधिक आकर्षक, मोहक या सुंदर प्रतीत होना। सुशोभित होना। खिलना। उदाहरण—पँच-रँग रँग बेंदी उठै ऊगनि मुख—ज्योति। बिहारी। | 
			
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				| उगमन					 : | पुं० [सं० उद्धमन] पूर्व दिशा, जिधर से सूर्य उगता है। | 
			
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				| उगरना					 : | अ० [सं० उद्गरण] १. अंदर भरी हुई चीज का बाहर आना या निकाला जाना। जैसे—कुआँ उगरना-कुएँ काजल बाहर निकाला जाना। २. घर से बाहर होना। निकलना। उदाहरण—गबन करै कहँ उगरै कोई—जायसी। स०=उगलना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उगलना					 : | स० [सं० उदिगलन, प्रा० उग्गिलन, मरा० उगलणें] १. पेट में पहुँची या मुँह में डाली हुई चीज मुँह के रास्ते फिर से निकालना। जैसे—(क) अनपच होने पर खाया हुआ अन्न उगलना। (ख) कड़वी चीज मुँह में रखते ही उगल देना। २. चुरा, छिपा या दबा कर रखी हुई चीज (विवश होने पर) बाहर निकालना या औरों के सामने रखना। जैसे—मार पड़ते ही चोर ने सारा माल उगल दिया। ३. मन में अच्छी तरह छिपा या दबाकर रखी हुई बात दूसरों पर प्रकट करना। जैसे—उसे कुछ रुपयों का लालच दो, तो वह सारा भेद उगल देगा। | 
			
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				| उगलवाना					 : | स० [सं० उगलना का प्रे० रूप] किसी को कुछ उगलने में प्रवृत्त करना। | 
			
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				| उगलाना					 : | स० =उगलवाना। | 
			
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				| उगवना					 : | अ० =उगना। स० =उगाना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उगसाना					 : | स० =उकसाना। | 
			
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				| उगसारना					 : | स० [सं० अग्र+सारण ?] १. आगे या सामने रखना या लाना। २. किसी पर प्रकट या विदित करना। उदाहरण—संगै राजा दुख उगसारा। स०-उकसाना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उगहन					 : | पुं० [सं० उत्+ग्रह] उगने या विदित होने की क्रिया या भाव। उदाहरण—दीजै दरसन दान, उगहन होय जो पुन्य बल।—नंददास। | 
			
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				| उगहना					 : | स० =उगाहना। अ० =उगना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उगहनी					 : | स्त्री० =उगाही। | 
			
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				| उगाना					 : | स० [उगना का स०रूप] १. किसी बीज या पौधे, लता आदि को उगने में प्रवृत्त करना। ऐसा काम करना जिससे कोई चीज उगने लगे। २. उत्पन्न या पैदा करना। जैसे—यह दवा गंजी खोपड़ी पर भी बाल उगा देगी। | 
			
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				| उगार					 : | पुं० [हिं० उगारना] १. उगारने की क्रिया या भाव। २. धीरे-धीरे निचुड़कर इकट्ठा होनेवाला जल। ३. कपड़ा रँगने के बाद उसका निचोड़ा हुआ रंगीन पानी। पुं० =उद्गार।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उगारना					 : | स० [सं० उदगलन] १. कुएँ में ऊपर से पड़ी हुई मिट्टी ०या पुराना खराब पानी निकालकर उसकी सफाई करना। २. उद्धार करना। उबारना। स० दे० ‘उकासना’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उगाल					 : | पुं० [सं० उदगार, पा० उग्गाल] १. उगालने की क्रिया या भाव। २. वह वस्तु जो उगली या मुँह से बाहर निकाली गई हो। जैसे—थूक, पान का पीक आदि। ३. पुराने कपड़े। (ठगों की बोली)। | 
			
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				| उगालदान					 : | पुं० [हिं० उगाल+फा०दान(प्रत्यय)] काँसे, पीतल, मिट्टी आदि का एक प्रकार का पात्र या बरतन जिसमें उगाल (खखार, थूक, पीक आदि) गिराये या थूके जाते है। पीकदान। | 
			
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				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उगालना					 : | स०-१=उगलना। २. =उगलवाना। | 
			
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				| उगाला					 : | पुं० [हिं० उगाल] १. फसल में लगनेवाला एक प्रकार का कीड़ा। २. प्रायः या सदा पानी से तर रहनेवाली जमीन। पनमार। | 
			
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				| उगाहना					 : | स० [सं० उदग्रहण, प्रा० उग्गहन] १. किसी से धन या लेन प्राप्त करना। जैसे—कर या मालगुजारी उगाहना। २. सार्वजनिक कार्य के लिए सहायता के रूप में लोगों से थोड़ा-थोडा धन प्राप्त करना या माँगकर लेना। जैसे—चंदा उगाहना। ३. कही से प्रयत्नपूर्वक कुछ प्राप्त करना। उदाहरण—कोउ वेद वेदांत मथत रस सांत उगाहत।—रत्नाकर। | 
			
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				| उगाही					 : | स्त्री० [हिं० उगाहना] १. उगाहने की क्रिया या भाव। २. वह धन जो उगाहा जाए। कर, चंदे, दान आदि के रूप में इकट्ठा या प्राप्त किया हुआ धन। ३. भूमि का लगान। ४. एक तरह का लेन-देन या व्यवहार जिसमें महाजन ऋणी से अपना धन प्राप्त धन थोड़ा-थोड़ा करके या नियत समय पर वसूल करता है। | 
			
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				| उग्गार					 : | पुं० १. =उगाल। २. =उगार। | 
			
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				| उग्गाहा					 : | पुं० [सं० उगाथा, प्रा० उग्गाहा] आर्या छंद का एक भेद जिसके सम चरणों में अट्ठारह और विषम चरणों में बारह मात्राएँ होती है। | 
			
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				| उग्र					 : | वि० [सं० उच् (एकत्रित करना)+रक्, ग, आदेश] [भाव० उग्रता, स्त्री० उग्रा] १. जो अपने आकार-प्रकार, रूप-रंग आदि की विकरालता के कारण देखनेवालों के मन में आतंक, आशंका या भय का संचार करता हो। जैसे—एक ओर काली, नृसिंह, वराह आदि की उग्र मूर्तियाँ रखी थी। २. जो क्रोध, वैर-विरोध आदि के प्रसंगों में क्रूरता या निर्दयता का व्यवहार करनेवाला हो। बल-प्रयोग करके कष्ट या हानि पहुँचा सकनेवाला। जैसे—परशुराम का उग्र रूप देखकर सब लोग धर्रा गये। ३. जो अपनी तीव्र प्रकृति या कर्कश स्वभाव के कारण सहज में शांत न हो सकता हो और इसी लिए जिसके साथ निर्वाह या व्यवहार करना बहुत कठिन हो। जैसे—ठाकुर साहब ऐसे उग्र थे कि घर के बच्चे भी उनके पास जाने से डरते थे। ४. (कार्य या विचार) जिसमें शांति या सौम्यता के बदले आवेश, कठोरता, नृशंसता आदि बातें अधिक हों अथवा जो व्यवहारिक क्षेत्र में उत्कट या विकट रूप में सक्रिय रहता हो। जैसे—(क) अराजकों की उग्र विचारधारा। (ख) आतताइयों की उग्र कार्य-प्रणाली। (ग) विरोधियों का उग्र प्रदर्शन। ५. जो असाधारण रूप से घन, तीव्र या प्रबल होने के कारण अधिक कष्ट देनेवाला हो। काया या शरीर पर जिसका विशेष कष्टदायक परिणाम प्रभाव होता हो। जैसे—(क) जंगली जातियों के उपचार और चिकित्साएँ प्रायः उग्र होती है। (ख) पार्वती की उग्र तपस्या देखकर सब लोग घबरा गये। ६. जो अपनी प्रबलता, वेग आदि के कारण घातक या हानिकारक सिद्ध हो सकता हो। अति तीव्र और दुखद। जैसे—उग्र मनस्ताप, उग्र महामारी आदि। ७. जो अपनी मात्रा की अधिकता के कारण सहज में सहा न जा सके। जैसे—उग्र गंध। पुं० १. महादेव। शिव। २. विष्णु। ३. सूर्य। ४. क्षत्रिय पिता और शूद्र माता से उत्पन्न एक प्राचीन संकर जाति जिसका स्वभाव मन के अनुसार बहुत उग्र तथा क्रूर था। ५. ज्योतिष में, पूर्वाफाल्गुनी, पूर्वाषाढ़ा, पूर्वाभाद्रपद, मघा और भरणी ये पाँच नक्षत्र जो स्वभावतः उग्र माने जाते है। ६. पुराणानुसार एक दानव का नाम। ७. धृतराष्ट्र के एक पुत्र का नाम। ८. केरल देश का पुराना नाम। ९. सहिजन का वृक्ष। १. बछनाग या वत्सनाभ नामक विष। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उग्र-गंध					 : | पुं० [ब० स०] ऐसी वस्तु जिसकी गंध बहुत अधिक उग्र या तेज हो। जैसे—लहसुन, हींग आदि। | 
			
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				| उग्रगंधा					 : | स्त्री० [सं० उग्रगंध+टाप्] १. अजवायन। २. अजमोदा। ३. बच। ४. नकछिकनी। | 
			
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				| उग्रता					 : | स्त्री० [सं० उग्र+तलस्-टाप्] १. ‘उग्र’ होने की अवस्था या भाव। तेजी। प्रचंड़ता। २. मन की वह अवस्था जिसमें क्रोध आदि एक कारण दया, स्नेह आदि कोमल भावनाएँ बिलकुल दब जाती है। (साहित्य में यह एक संचारी भाव माना गया है)। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उग्र-धन्वा (न्वन्)					 : | पुं० [ब० स०] १. इद्र। २. शिव। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उग्रशेखरा					 : | स्त्री० [सं० उग्र-से खर,कर्म०स०+अच्-टाप्] उग्र अर्थात् शिव के मस्तक पर रहनेवाली, गंगा। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उग्रसेन					 : | पुं० [सं० ब० स०] १. मथुरा के राजा कंस के पिता का नाम। २. महाराज परीक्षित के एक पुत्र का नाम। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उग्रह					 : | पुं० [सं० उदग्रह] १. ग्रह या बंधन से मुक्त होने की क्रिया या भाव। २. ग्रहण से चंद्रमा या सूर्य के मुक्त होने की अवस्था या भाव। | 
			
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				| उग्रहना					 : | स० [सं० उग्रह] १. छोड़ना। त्यागना। २. उगलना। ३. दे० ‘उगाहना’। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उग्रा					 : | स्त्री० [सं० उग्र+टाप्] १. दुर्गा। महाकाली। २. अजवायवन। ३. बच। ४. नकछिकनी। ५. धनिया। ६. उग्र स्वभाववाली या कर्कशा स्त्री। ७. निषाद स्वर की पहली श्रुति। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उघटना					 : | स० [सं० उद्घाटन, प्रा० उग्घाटन] १. किसी का कोई भेद या रहस्य खोलना। प्रकट करना। उदाहरण—धीर वीर सुनि समुझि परस्पर बल उपाय उघटत निज हिय के।—तुलसी। २. आगे पड़ा हुआ परदा या आवरण हटाना। खोलकर सामने रखना या लाना। ३. दबी, बीती या भूली हुई पुरानी बातों की नये सिरे से चर्चा करना। ४. उक्ति या कथन के रूप में उपस्थित करना। कहना। उदाहरण—उघटहिं छन्द प्रबन्ध गीत पर राग तान बन्धान।—तुलसी। ५. अपने किये हुए उपकारों या दूसरों के अपराधों, दोषों आदि की खुलकर चर्चा करना। ६. किसी के पुराने दोषों, पापों आदि की चर्चा करते हुए उन्हें भला-बुरा कहना। निंदा करते हुए गालियाँ देना। उदाहरण—उघटति हौ तुम मात पिता लौ नहि जानौ तुम हमको।—सूर। विशेष—अंतिम दोनों अर्थों में इस शब्द का प्रयोग किसी को ताना देते हुए नीचा दिखाने के लिए होता है। अ० संगीत में, किसी के, गाने-बजाने, नाचने आदि के समय बराबर हर, ताल पर कुछ आघात या शब्द करना। ताल देना। उदाहरण—कोउ गावत कोउ नृत्य करत, कोउ उघटत, कोउ ताल बजावत।—सूर। | 
			
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				| उघटा					 : | वि० [हिं० उघटना] १. दबी या भूली हुई बातें कहकर भेद या रहस्य खोलनेवाला। २. अपने उपकारों या भलाइयों और दूसरे के अपकारों या बुराइयों की चर्चा करनेवाला अथवा ऐसी चर्चा करके ताना देते हुए दूसरे को नीचा दिखानेवाला। पुं० उघटने की क्रिया या भाव। | 
			
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				| उघटा-पुराण					 : | पुं० [हिं० उघटा+सं० पुराण] आपस में एक दोनों के पुराने दोषों और अपने किए हुए पुराने उपकारों का बार-बार अथवा विस्तारपूर्वक किया जाने वाला उल्लेख या कथन। (दूसरे को ताना देते हुए नीचा दिखाने के लिए)। | 
			
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				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उघड़ना					 : | अ० =उघरना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उघन्नी					 : | स्त्री० =उघरनी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उघरना					 : | अ० [सं० उद्घाटन] १. आवरण हट जाने पर, छिपी या दबी हुई वस्तु का प्रकट होना या सामने आना। प्रत्यक्ष, व्यक्त या स्पष्ट होना। उदाहरण—छीर-नीर बिबरन समय बक उघरत तेहि काल।—तुलसी। २. आवरण उतारकर नंगा होना। मुहावरा—उघरकर नाचना=लोक-लज्जा छोड़कर मनमाना, निंदनीय आचरण करना। ३. भेद या रहस्य खुलना। भंडा फूटना। उदाहरण—उघरहिं अंत न होहि निबाहू।—तुलसी। स० दे० ‘उघारना’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उघरनी					 : | स्त्री० [हिं० उघरना या उघारना] १. वह चीज जिससे कोई दूसरी चीज खोली जाए। २. कुंजी। चाभी। ताली। | 
			
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				| उघरारा					 : | वि० [हिं० उघरना] [स्त्री० उघरारी] १. जिसपर कोई आवरण न हो। खुला हुआ। २. जो बंद न हो। ३. नंगा। नग्न। पुं० खुला हुआ स्थान। मैदान। उदाहरण—पावस परखिं रहे उघरारैं। सिसिर समय बसि नीर मँझारें।—पद्माकर। | 
			
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				| उघाड़ना					 : | स० =उघारना। | 
			
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				| उघाड़ा					 : | वि० =उघारा। | 
			
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				| उघार					 : | पुं० [हिं० उघारना] उघारने की क्रिया या भाव। | 
			
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				| उघारना					 : | स० [सं० उद्घाटन] १. आगे पड़ा हुआ आवरण या परदा हटाना। अनावृत और फलतः प्रकट,व्यक्त या स्पष्ट करना। खोलना। उदाहरण—तब सिव तीसर नयन उघारा।—तुलसी। २. पहने हुए वस्त्र हटाकर नंगा करना। ३. (अंग) जिसका कार्य बंद हो उसका कार्य या व्यापार आरंभ करना। जैसे—किसी के आगे जीभ उघारना-जबान या मुँह खोलकर कुछ कहना या माँगना। नैन उघारना=आखें खोलकर देखना। (उदाहरण देखें ‘उघेलना’ में) ४. छिपी, दबी या धँसी हुई चीज ऊपर उठाना। उभारना। | 
			
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				| उघारा					 : | वि० [हिं० उघारना] [स्त्री० उघारी] १. जिसपर कोई आवरण या पर्दा न हो। खुला हुआ। २. जिसके शरीर पर वस्त्र न हो। नंगा। उदाहरण—आप तो कदम चढ़ि बैठे, हम जल माहिं उघारी।—गीत।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उघेड़ना					 : | स० [हिं० उघारना का स्था० रूप] १. खोलना। २. चिपकी, लगी या सटी हुई कोई चीज कहीं से हटाना। ३. ऊपर उठाना। उभारना। उदाहरण—जाय फँसी उकसी न उघारी।—देव।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उघेलना					 : | स० [हिं० उघारना का स्था० रूप] १. आगे पड़ा हुआ आवरण या पर्दा हटाना। उघारना। उदाहरण—सरद चंद मुख जानु उघेली।—जायसी। २. आगे पड़ी हुई चीज हटाकर रास्ता साफ करना। उदाहरण—अबहुँ उघेलु कान के रूई।—जायसी। ३. जिस अंग का कार्य बंद हो, उसका कार्य आरंभ करना। उदाहरण—कत तीतर बन जीभ उघेला।—जायसी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उचंत					 : | वि० पुं० =उचिंत। | 
			
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				| उचकन					 : | पुं० [सं० उच्च-करण] किसी वस्तु को ऊँचा करने के लिए उसके नीचे दिया या रखा जानेवाला कोई आधार या चीज। | 
			
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				| उचकना					 : | पुं० [सं० उच्च-ऊँचा+करण-करना] १. एड़ी उठाकर थोड़ा उछलकर या पंजों के बल खड़े होकर कोई ऊँची चीज देखने या पकड़ने का प्रयत्न करना। जैसे—भीड़ में से कुछ लोग उचक-उचक कर देखने लगे। २. उछलना। उदाहरण—यों कहिकै उचकी परजंक ते पूरि रही दृग वारि की बूँदें।—देव। स० उछल या झपटकर कोई चीज उठाना या छीनना। जैसे—तुम तो उचक्कों की तरह हर चीज उचक ले जाते हों। | 
			
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				| उचका					 : | अव्य० =औचक।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उचकाना					 : | स० [हिं० उचकना का स० रूप] १. कोई चीज ऊपर की ओर उठाना। ऊँचा करना। उदाहरण—बच्छस्थल उमगाइ ग्रीव उचकाइ चाप भिनि।—रत्नाकर। २. दे० ‘उछालना’। | 
			
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				| उचक्का					 : | पुं० [हिं० उचकना] [स्त्री० उचक्की] वह जो उचककर दूसरों की चीजें उठा-उठाकर भाग जाता हो। दूसरों का माल उठाकर भाग जानेवाला व्यक्ति। | 
			
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				| उचटना					 : | अ० [सं० उच्चाटन] १. किसी ऐसे आधार या स्तर पर से किसी वस्तु का अलग होना जिस पर वह चिपकी, लगी या सटी हो। जमी हुई वस्तु का उखड़ना। २. लाक्षणिक अर्थ में किसी कार्य, व्यक्ति या स्थान से जी ऊब जाना। मन घबरा जाना। विरक्त होना। | 
			
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				| उचटाना					 : | स० [हिं० उचटना का स०] १. ऐसा काम करना जिससे कोई लगी हुई चीज कहीं से उचटे। उखाड़ना। २. ऐसा उपाय या प्रयत्न करना जिससे किसी का मन कहीं से किसी ओर हटे। उदासीन या विरक्त करना। उदाहरण—चुगली करी जाइ उन आगे, हमतें वे उचटाए।—सूर। | 
			
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				| उचड़ना					 : | अ०१=उचटना। २. =उखड़ना। | 
			
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				| उचना					 : | अ० [सं० उच्च] १. ऊँचा होना। ऊपर उठना। २. दे०‘उचकना’। स० ऊँचा करना। ऊपर उठना। उदाहरण—अंगुरिनि उचि भरु भीति कै उलमि चितै चख लोल।—बिहारी। | 
			
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				| उचनि					 : | स्त्री० [सं० उच्च] १. ऊँचे या ऊपर उठे होने की अवस्था या भाव। २. उठान। उभार।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उचरंग					 : | पुं० [हिं० उघरना+अंग] उड़नेवाला कीड़ा। फतिंगा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उचरना					 : | स० [सं० उच्चारन०] १. उच्चारण करना। मुँह से शब्द निकालना। २. किसी से कुछ कहना। बोलना। उदाहरण—तब श्रीपति बानी उचरी।—सूर। अ० १. उच्चारित होना। मुँह से बोला जाना। २. लिखे हुए अक्षरों या लिपि का पढ़ा जाना। अ० =उचटना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उचराई					 : | स्त्री० [हिं० उचरना] १. उच्चारन करने की क्रिया, भाव या स्थिति। २. उच्चारण करने का पारिश्रमिक। | 
			
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				| उचलना					 : | अ० १=उचकना। २. =उचटना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उचाट					 : | पुं० [सं० उच्चाटन] ऐसी स्थिति जिसमें मन किसी बात से ऊब या उदासीन हो गया हो। मन का ऊब जाना अथवा न लगना। वि० [सं० उच्चाटन] १. जो उचट गया हो। २. उदासीन या विरक्त (मन)। जैसे—मन उचाट होना। | 
			
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				| उचाटना					 : | स० [हिं० उचटना] १. किसी का मन कहीं से या किसी की ओर विरक्त करना। उदाहरण—लोग उचाटे अमरपति कुटिल कुअवसर पाइ।—तुलसी। २. ध्यान भंग करना। ३. दे० ‘उचाड़ना’। | 
			
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				| उचाटी					 : | स्त्री० [सं० उच्चाट] मन उचटने की क्रिया या भाव। ऐसी स्थिति जिसमें मन किसी ओर से उदासीन या खिन्न हो गया हो। उचाट होने की अवस्था या भाव। उदाहरण—भइँ सब भवन काज ते भई उचाटी।—सूर।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उचाटू					 : | वि० [हिं० उचाट] उचाटनेवाला।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उचाड़ना					 : | स० [हिं० उचड़ना] किसी से चिपकी, लगी या सटी हुई वस्तु को उससे अलग करना या छुड़ाना। उखाड़ना। | 
			
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				| उचाढ़ी					 : | स्त्री० =उचाटी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उचाना					 : | स० [सं० उच्च-करण] १. ऊपर की ओर बढ़ाना। ऊँचा करना। २. उठाना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उचायत					 : | वि० पुं० =उचिंत।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उचारना					 : | स० [सं० उच्चारण] १. उच्चारण करना। २. कहना या बोलना। उदाहरण—मधुर मनोहर बचन उचारे। -तुलसी। स०=उचाड़ना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उचालना					 : | स० १. =उचाड़ना। २. =उछालना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उचिंत					 : | पुं० [हिं० उचना-उठाना(ऊपर से लेना)] १. लेन-देन की वह परिपाटी जिसमें कहीं से कुछ धन थोड़े समय के लिए इस रूप में लिया जाता है कि उसका पूरा हिसाब वह धन व्यय हो जाने के बाद में दिया जायगा। (सस्पेन्स) जैसे—अभी १00 उचिंत में दे दीजिए, हिसाब कल लिखा दूँगा। २. वह धन या रकम जो इस प्रकार दी या ली जाए। वि० (धन) जो उक्त प्रकार से दिया या लिया जाए। | 
			
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				| उचिंत खाता					 : | पुं० [हिं० उचिंत+खाता] पंजी या बही में वह खाता या विभाग जिसमें अस्थायी रूप से ऐसी रकमें लिखी जाती है जिनका ठीक या पूरा हिसाब बाद में होने को हो। (सस्पेंस एकाउंट) | 
			
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				| उचित					 : | वि० [सं० उच् (समवाय)+क्त] [भाव० औचित्य] १. जो किसी अवसर या परिस्थिति के अनुकूल या उपयुक्त हो। मुनासिब। वाजिब। जैसे—अपराधियों को उचित दंड मिलना चाहिए। २. जो व्यक्ति,स्थिति आदि के विचार से वैसा ही हो,जैसा साधारणतः होना चाहिए। ठीक। जैसे—आपने उनके साथ जो व्यवहार किया,वह उचित ही था। ३. जो आदर्श, न्याय आदि के विचार से वैसा ही हो, जैसा होना चाहिए। जैसे—उचित आलोचना, उचित दृष्टिकोण, उचित मार्ग आदि। ४. मात्रा या मान के विचार से उतना ही, जितना प्रसम रूप में होना चाहिए। जैसे—औषध की उचित मात्रा, यात्रा का उचित व्यय। | 
			
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				| उचिस्ट					 : | वि०=उच्छिष्ट।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उचेड़ना					 : | स० =उचाड़ना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उचौहाँ					 : | वि० [हिं० ऊँचा+औहाँ (प्रत्यय)] [स्त्री० उचौहीं] ऊपर की उठा हुआ, उभरा या तना हुआ।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उच्चंड					 : | वि० [सं० उद्√चण्ड्(कोप)+अच्] बहुत अधिक उग्र या चंड। प्रचंड। | 
			
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				| उच्च					 : | वि० [सं० उद्√चि(चयन करना)+ड] १. जिस का विस्तार ऊपर की ओर बहुत दूर तक हो। जैसे—उच्च शिखर। मुहावरा—उच्च के चंद्रमा होना=सौभाग्य और उन्नति के लिए उपयुक्त समय होना। २. जो किसी विशिष्ट मानक, मान या स्तर से आगे बढ़ा हुआ हो। जैसे—उच्च रक्त-चाप, उच्च विद्यालय,उच्च शिक्षा आदि। ३. जो अधिकार, पद आदि के विचार से औरों से ऊपर या उनसे बड़ा हों। जैसे—उच्च अधिकारी। ४. विभाग, श्रेणी आदि के विचार से औरों के आगे बढ़ा हुआ, ऊँचा और बड़ा। जैसे—उच्च आसन, उच्च कुल आदि। ५. आचार-विचार, नीति आदि की दृष्टि से महान। श्रेष्ठ। जैसे—उच्च आदर्श, उच्च विचार आदि। पुं० संगीत में, तार नामक सप्तक जो शेष दोनों सप्तकों से ऊँचा होता है। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उच्चक					 : | वि० [सं० उच्च+क] १. बहुत अधिक या सबसे अधिक ऊँचा। २. ऊँचाई के विचार से उस निश्चित सीमा तक पहुँचनेवाला जिससे आगे बढ़ना या ऊपर चढ़ना निषिद्ध या वर्जित हो। (सींलिग) जैसे—सरकार ने गेहूँ का उच्चक मूल्य १६) मन रखा है। | 
			
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				| उच्चतम					 : | वि० [सं० उच्च+तमप्] जो अपेक्षाकृत सबसे ऊँचा हो। जिससे बढ़कर ऊँचा कोई न हो।, अथवा हो ही न सकता हो। पुं० संगीत में, तार से भी ऊँचा सप्तक जो केवल बाजों में हो सकता है, गले की पहुँच के बाहर होता है। | 
			
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				| उच्चता					 : | स्त्री० [सं० उच्च+तल्-टाप्] १. उच्च होने की अवस्था या भाव। २. उत्तमता। श्रेष्ठता। | 
			
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				| उच्च-ताप					 : | पुं० [कर्म० स०] विज्ञान में, ३५॰º से अधिक का ताप। | 
			
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				| उच्च-न्यायालय					 : | पुं० [कर्म० स०] राज्य का वह प्रधान न्यायालय जिसमें कुछ विशेष प्रकार के मुकदमें चलाये जाते हैं तथा राज्य भर की छोटी अदालतों के निर्णयों का पुनर्विचार होता है। (हाई कोर्ट) | 
			
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				| उच्चय					 : | पुं० [सं० उद्√चि (चयन करना)+अच्] १. चयन या इकट्ठा करने की क्रिया या भाव। २. समूह। ढेर। ३. अभ्युदय। ४. त्रिकोण का पार्श्व भाग। | 
			
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				| उच्च रक्त-चाप					 : | पुं० [सं० उच्च-चाप, ष० त०, उच्च-रक्तचाप, कर्म० स०] रक्त चाप का वह रूप जिसमें शरीर के रक्त का वेग बहुत अधिक बढ़ जाता है। (हाई ब्लडप्रेशर)। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उच्चरण					 : | पुं० [सं० उद्√चर् (गति)+ल्युट-अन] [वि० उच्चरणीय, उच्चरित] ओष्ठ, कंठ, जिह्वा, तालु आदि के प्रयत्न से शब्द निकालने की क्रिया या भाव। गले से आवाज निकालना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उच्चरना					 : | स० [सं० उच्चारण] गले और मुँह से कहना या बोलना। उच्चारण करना। उदाहरण—यह दिन-रैन नाम उच्चरै।—तुलसी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उच्चरित					 : | भू० कृ० [सं० उद्√चर्+क्त] १. जिसका उच्चारण किया गया हो। २. कहा हुआ। | 
			
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				| उच्च-वर्ग					 : | पुं० [कर्म० स०] समाज का अधिकतम धनिक तथा सुखी वर्ग। (अपर क्लास) शेष दो वर्ग मध्यम और निम्न कहलाते हैं। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उच्चाकांक्षा					 : | स्त्री० [सं० उच्च-आकाक्षा, कर्म० स०] औरों से बहुत आगे बढ़ने अथवा कोई महत्त्वपूर्ण काम करने की आशंका। (एम्बिशन) | 
			
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				| उच्चाकांक्षी (क्षिन्)					 : | वि० [सं० उच्च-आ√कांक्ष्(चाहना)+णिनि] जिसके मन में बहुत बड़ी या उच्च आकांक्षा हो। (एम्बिशन) | 
			
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				| उच्चाट					 : | पुं० [सं० उद्√चट्(फूटना या फाड़ना)+घञ्] १. उचटने या उचाटने की क्रिया या भाव। २. चित्त का ऊब जाना और फलतः कहीं न लगना। उदासीनता। विरक्ति। उदाहरण—भई वृत्ति उच्चाट भभरि आई भरि छाती।—रत्नाकर। | 
			
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				| उच्चाटन					 : | पुं० [सं० उद्√चट्+णिच्+ल्युट्-अन] [वि० उच्चाटनीय, भू० कृ० उच्चाटित] १. कहीं चिपकी ,लगी या सटी हुई चीज खींचकर वहाँ से अलग करना या हटाना। उचाड़ना। २. उदासीनता या विरक्ति होना। मन उचटना। ३. एक प्रकार का तांत्रिक प्रयोग जिसमें मंत्र-यंत्र आदि के द्वारा किसी का मन किसी भी स्थान से या किसी व्यक्ति की ओर से हटाने का प्रयत्न किया जाता है। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उच्चाटित					 : | भू० कृ० [सं० उद्√चट्+णिच्+क्त] १. उखाड़ा हुआ। उचाड़ा हुआ। २. जिसके ऊपर उच्चाटन का प्रयोग किया गया हो। | 
			
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				| उच्चारण					 : | पुं० [सं० उद्√चर् (गति)+णिच्+ल्युट्-अन] १. मुँह से इस प्रकार शब्द निकालना कि औरों को सुनाई दे। २. मनुष्यों का गले और मुँह के भिन्न अंगों के संयोग से अक्षरों, व्यंजनों आदि के रूप में सार्थक शब्द निकालना। (आर्टिक्युलेन) विशेष—व्यावहारिक क्षेत्र में प्रायः ‘उच्चारण’ का प्रयोग केवल मनुष्यों के संबंध में और ‘उच्चरण’ का प्रयोग मनुष्यों के सिवा पशु-पक्षियों आदि के संबंध में भी होता है। ३. अक्षरों, वर्णों आदि के संयोग से बने हुए सार्थक शब्द कहने या बोलने का निश्चित और शुद्ध ढंग या प्रकार। (प्रोनन्सिएसन) जैसे—अभी तुम्हारा अँगरेजी (या संस्कृत) शब्दों का उच्चारण ठीक नहीं हो रहा है। | 
			
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				| उच्चारणीय					 : | वि० [सं० उद्√चर्+णिच्+अनीयर्] (शब्द) जिसका उच्चारण हो सकता हो या होना उचित हो। | 
			
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				| उच्चारना					 : | स० [सं० उच्चारण] मुँह से शब्द निकालना। उच्चारण करना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उच्चारित					 : | भू० कृ० [सं० उद्√चर्+णिच्+क्त] (शब्द) जिसका उच्चारण किया गया हो। | 
			
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				| उच्चार्य					 : | वि० [सं० उद्√चर्+णिच्+यत्] (शब्द) जिसका उच्चारण किया जा सके। | 
			
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				| उच्चार्यमाण					 : | वि० [सं० उद्√चर्+णिच्+शानच्] जिसका उच्चारण किया जाए अथवा किया जा सके। | 
			
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				| उच्चित्र					 : | वि० [सं० उद्-चित्र, ब० स०] जिसमें या जिसपर बेल-बूटे या दूसरी आकृतियाँ बनी या बनाई गयी हो। (फीगर्ड) जैसे—उच्चित्र वस्त्र। | 
			
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				| उच्चैः					 : | अव्य० ०[सं० उद्√चि(चयन करना)+डैस्] ऊँची आवाज में। ऊँचे स्वर से। | 
			
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				| उच्चैः श्रवा (वस्)					 : | पुं० [सं० ब० स०] इंद्र का सफेद घोड़ा, जो सात मुँहों और ऊँचे या खड़े कानोंवाला कहा गया है। वि० ऊँचा सुननेवाला। बहरा। | 
			
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				| उच्छन्न					 : | वि० [सं० उद्√छद् (ढाँकना)+क्त] काट, खोद या तोड़फोड़ कर नष्ट किया हुआ। | 
			
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				| उच्छरना					 : | अ० =उछलना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उच्छल					 : | वि० [सं० उद्√शल् (गति)+अच्] १. ऊपर की ओर उछलने या उड़नेवाला। उदाहरण—ज्वार मग्न कर उच्चल प्राणों के प्रवाह को आवर्तों के गंड शून्य इसमें क्या संशय।—सुमित्रानंदन पंत। २. लहराता या हिलता हुआ। | 
			
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				| उच्छलन					 : | पुं० [सं० उद्√शल्+ल्युट्-अन] [भू० कृ० उच्छलित] उछलना। तंरगित होना। पुं० [सं० ] [वि० उच्छलित्] जोर से ऊपर की ओर उठने अथवा उछलने की क्रिया या भाव। उछाल। | 
			
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				| उच्छलना					 : | अ० =उछलना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उच्छलिध्र					 : | पुं० =उच्छिलीध्र।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उच्छव					 : | पुं० =उत्सव।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उच्छादन					 : | पुं० [सं० उद्√छद्+णिच्+ल्युट्-अन] १. आच्छादन। २. शरीर पर सुगंधित द्रव्य मलना या लगाना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उच्छाव					 : | पुं० =उत्साह।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उच्चास					 : | पुं० =उच्छ्वास।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उच्छाह					 : | पुं० =उत्सव।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उच्छित्ति					 : | स्त्री० [सं० उद्√छिद् (काटना)+क्तिन्] नाश। विनाश। | 
			
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				| उच्छिन्न					 : | वि० [सं० उद्√छिद्+क्त] काट, खोद या तोड़-फोड़कर नष्ट किया हुआ। | 
			
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				| उच्छिलीध्र					 : | पुं० [सं० उद्-शिलीध्र, प्रा० स०] कुकुरमुत्ता नाम की वनस्पति। | 
			
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				| उच्छिष्ट					 : | वि० [सं० उद्√शिष् (बचना)+क्त] १. (खाद्य पदार्थ) जो किसी के भोजन करने के बाद उसके आगे बच गया हो। २. जो किसी ने खाकर जूठा कर दिया हो। ३. (कोई पदार्थ) जो किसी ने उपयोग या व्यवहार के उपरांत रद्दी या व्यर्थ समझकर छोड़ दिया हो। ४. अपवित्र। अशुद्ध। पुं० १. जूठी बची हुई चीज। जूठन। २. मधु। शहद। | 
			
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				| उच्छिष्ट भोजी (जिन्)					 : | वि० [सं० उच्छिष्ट√भुज् (खाना)+णिनि] जो दूसरों का झूठा छोड़ा हुआ अन्न खाता हो। जूठन खानेवाला। | 
			
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				| उच्छू					 : | पुं० [सं० उत्थान, पं० उत्थू] कोई चीज गले में फँसने अथवा नाक में पानी चढ़ जाने से आनेवाली एक प्रकार की खाँसी। | 
			
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				| उच्छृंखल					 : | वि० [सं० उद्-श्रंखला, ब० स०] [भाव० उच्छृंखलता] १. जो क्रमिक, व्यवस्थित या श्रृंखलित न हो। २. जिसका अपने ऊपर नियंत्रण या शासन न हो। ३. मनमाना काम करनेवाला। स्वेच्छाचारी। निरंकुश। ४. किसी का दबाव न माननेवाला। उद्दंड। | 
			
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				| उच्छेता (त्तृ)					 : | वि० [सं० उद्√छिद् (काटना)+तृच्] उच्छेद करनेवाला। | 
			
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				| उच्छेद					 : | पुं० [सं० उद्√छिद्+घञ्] १. जड़ से उखाड़ने अथवा काटकर अलग करने की क्रिया या भाव। २. नष्ट या समाप्त करना। ३. मत, सिद्धांत आदि का पूर्ण रूप से किया हुआ खंडन। | 
			
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				| उच्छेदन					 : | पुं० [सं० उद्√छिद्+ल्युट्-अन] १. जड़ से अच्छी तरह उखाड़ने अथवा काटकर अलग करने की क्रिया या भाव। २. खंडन। ३. नाश। | 
			
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				| उच्छेद-वाद					 : | पुं० [ष० त०] यह दार्शनिक सिद्धांत कि आत्मा वास्तव में कुछ भी नहीं। ‘शाश्वतवाद’ का विपर्याय। | 
			
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				| उच्छेदवादी (दिन्)					 : | वि० [सं० उच्छेद√वद्+णिनि] उच्छेदवाद संबंधी। पुं० वह जिसकी आस्था उच्छेदवाद में हो। | 
			
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				| उच्छेदी (दिन्)					 : | वि० [सं० उद्√छिद्+णिनि] उच्छेदन करनेवाला। | 
			
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				| उच्छ्वसन					 : | पुं० [सं० उद्+श्वस्(साँस लेना)+ल्युट-अन] गहरा, ठंढ़ा या लंबा साँस लेना। | 
			
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				| उच्छ्वसित					 : | वि० [सं० उद्√श्वस्+क्त] १. जो उच्छ्वास के रूप में बाहर आया हो। २. खिला हुआ। विकसित। | 
			
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				| उच्छ्वास					 : | पुं० [सं० उद्√श्वस्+घञ्] [वि० उच्छ्वसित, उच्छ्वासी] १. ऊपर की ओर छोड़ा या निकाला हुआ श्वास या साँस। २. सहसा कुछ गहराई से निकलकर ऊपर आनेवाला वह श्वास या साँस जो साधारण से कुछ अधिक खिंचा हुआ और लंबा होता है, आसपास के लोगों को थोड़ा बहुत सुनाई पड़ता है और प्रायः इस बात का सूचक होता है कि श्वास लेनेवाले के मन में कोई विशेष कष्ट या वेदना है अथवा उसके मन पर पड़ा हुआ भार कुछ हलका हुआ है। गहरा या लंबा साँस। आह भरना। उसास। ३. वह नली जिससे फूँककर हवा छोड़ी जाती है। ४. किसी चीज के सड़ने पर उसमें उठनेवाला खमीर। ५. मरण। मृत्यु। ६. ग्रंथ का कोई अध्याय, प्रकरण या विभाग। | 
			
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				| उच्छ्वासित					 : | भू० कृ० [सं० उच्छ्वास+इतच्] १. उच्छ्वास के रूप में बाहर आया या निकला हुआ। २. विकसित। प्रफुल्लित। | 
			
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				| उच्छ्वासी (सिन्)					 : | वि० [सं० उद्√श्वस्+णिनि] १. उच्छ्वास या ऊँची साँस लेनेवाला। आह भरनेवाला। २. प्रफुल्लित या विकसित होनेवाला। | 
			
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				| उछंग					 : | पुं० [सं० उत्संग, प्रा० उच्छंग] क्रोड़। गोद। कोरा। मुहावरा—उछंग (में) लेना=आलिंगन करना। गोंद लेना। | 
			
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				| उछकना					 : | अ० [हिं० उझकना-चौंकना] १. चकित होना। चौंकना। २. होश में आना। ३. दे०‘उचकना’।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उछक्का					 : | वि० [हिं० उछकना-उछलना] जगह-जगह उछलता फिरनेवाला। स्त्री० कुलटा या दुश्चरित्र स्त्री। | 
			
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				| उछटना					 : | अ० =उचटना। | 
			
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				| उछटाना					 : | स० [हिं० उचटना] १. उखाड़ना या उचाड़ना। २. कहीं से किसी का चित्त उचाट करना। | 
			
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				| उछरना					 : | अ० =उछलना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उछल-कूद					 : | स्त्री० [हिं० उछलना+कूदना] १. बार-बार उछलने या कूदने की क्रिया या भाव। २. बालकों की या बालकों जैसी कीड़ा। ३. अध्यवसाय, आवेग, उत्सुकता, व्यग्रता आदि का अनाचक ऐसा दिखौआ प्रयत्न जो अंत में प्रायः निरर्थक सिद्ध हो। जैसे—उछल-कूद तो तुमने बहुत की, पर फल कुछ न निकला। | 
			
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				| उछलना					 : | अ० [सं० उच्छलन, पं० उच्छलना, गुं० उचलगूँ, सिं० उछलणुँ] १. किसी ऊँचे स्थान पर पहुँचने के लिए पैरों के आधार पर अपने स्थान से सहसा और वेगपूर्वक ऊपर की ओर उठना या बढ़ना। जैसे—सिपाही का उछलकर घोड़े पर चढ़ना, बंदर का उछलकर छत पर पहुँचना। २. झटका या धक्का लगने पर कुछ वेगपूर्वक ऊपर उठना। जैसे—तेज हवा में नदी का पानी उछलना, लेकर चलने के समय बाल्टी या लोटे का दूध उछलना, पुल या पेड़ से टकराने के कारण गाड़ी का उछलकर गड्डे में जा गिरना। ३. सहसा चकित विशेष प्रसन्न होने की दशा में अथवा आवेग आदि के कारण शरीर या उसके कुछ अंगों का आधार पर से हिलकर कुछ ऊपर उठना। जैसे—(क) कमरे में साँप देखकर या मित्र के आने का समाचार सुनकर वह उछल पड़ा। (ख) पिता या माता के देखते ही बच्चे उछलने लगते हैं। ४. बार-बार या रह-रहकर ऊपर या सामने आना। जैसे—तुम लाख छिपाओ पर तुम्हारीं करतूत उछलती रहेगी। ५. चिन्ह या लक्षण दृष्टिगत या प्रत्यक्ष होना। सामने आना। उदाहरण—लागे नख उछरै रंगधारी।—जायसी। | 
			
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				| उछलाना					 : | स० [हिं० उछलना का प्रे० रूप] किसी को उछलने में प्रवृत्त करना। स० दे० ‘उछालना’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उछव					 : | पुं० =उत्सव। उदाहरण—आगमि सिसुपाल मंडिजै ऊछव।—प्रिथीराज।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उछाँटना					 : | स०१. दे ‘उचाटना’। २. दे० ‘छांटना’। | 
			
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				| उछार					 : | स्त्री० =उछाल।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उछारना					 : | स० =उछालना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उछाल					 : | स्त्री० [हिं० उछलना] १. उछलने या उछालने की क्रिया या भाव। २. उछलकर एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुँचने की क्रिया या भाव। मुहावरा—उछाल भरना या मारना=(क) जोर से ऊपर उठकर दूर जाना। (ख) ऊपर से नीचे की ओर कूदना। ३. उतना अंतर या दूरी जितनी एक बार में उछलकर पार की जाए। ४. वह ऊँचाई या सीमा जहाँ तक कोई चीज उछलकर पहुँचती हो। जैसे—ज्यों ज्य़ों हवा तेज होती हैं, त्यों-त्यों नदी के पानी की उछाल बढ़ती है। ५. ऊँचाई। उदाहरण—इक लख जोजन भानु तै है ससिलोक उछार।—विश्रामसागर। ६. संगीत में, स्थायी या पहला पद गा चुकने पर फिर से वही पद अथवा उसका कुछ अंश अपेक्षया ऊँचे स्वर में गाना। ७. उलटी। कै। वमन। | 
			
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				| उछाल छक्का					 : | स्त्री० [हिं० उछाल+छक्का-पंजा में का छक्का] व्यभिचारिणी। कुलटा। | 
			
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				| उछालना					 : | स० [सं० उच्छालन] १. वेगपूर्वक ऊपर की ओर फेकना। किसी को ऊपर उछलने में प्रवृत्त करना। जैसे—गेंद या फूल उछालना। २. ऐसा अनुचित या निंदनीय कार्य करना जिससे लोक में अपकीर्ति या उपहास हो। जैसे—(क) बाप-दादा का नाम उछालना=बड़ों के नाम पर कलंक लगाना। (ख) किसी की पगड़ी उछालना=किसी को अपमानित करके हास्यास्पद बनाना। | 
			
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				| उछाला					 : | पुं० [हिं० उछाल] १. उछलने या उछालने की क्रिया या भाव। २. खौलती हुई चीज में आनेवाला उबाल। ३. उलटी। कै। वमन। | 
			
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				| उछाव					 : | पुं० =उछाह। | 
			
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				| उछाह					 : | पुं० [सं० उत्साह, प्रा० उस्साह, सिं० उसा, मरा० उच्छाव] १. मन में होनेवाला उत्साह। उमंग। जोश। उदाहरण—इति असंक मन सदा उछाहू।—तुलसी। २. किसी काम के लिए होनेवाली गहरी लालसा या प्रबल उत्कंठा। पुं० [सं० उत्सव] १. आनंद या उत्सव के समय होनेवाली धूम-धाम। उदाहरण—संग संग सब भए उछाहा।-तुलसी। २. जैनों में रथयात्रा का उत्सव। | 
			
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				| उछाही					 : | वि० [हिं० उछाह] उछाह या आनंद मनानेवाला। वि०=उत्साही।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उछिन्न					 : | वि० =उच्छिन्न।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उछिष्ट					 : | वि० =उच्छिष्ट।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उछीनना					 : | स० [सं० उच्छिन्न] १. जड़ से उखाड़ना। उन्मूलन करना। २. नष्ट-भ्रष्ट करना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उछीर					 : | पुं० [?] १. ऊपर से खुला हुआ स्थान। २. बीच की खाली जगह। अवकाश। ३. दरार। रंध्र।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उछेद					 : | पुं० =उच्छेद।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उछ्छव					 : | पुं० =उत्सव। | 
			
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				| उजका					 : | पुं० [हिं० उझकना] पशु-पक्षियों को खेत में चरने या चुगने से रोकने तथा उन्हें भयभीत करने के लिए लगाया जानेवाला घास-फूस, चितड़ों आदि से बना हुआ पुतला। बिजूखा। धोखा। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उजट					 : | पुं० [सं० उटज] कुटी। झोपड़ा।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उजड़ना					 : | अ० [सं० उज्झ-छोड़ना या त्यागना+ना (प्रत्यय)] १. बसे हुए स्थान में की आबादी न रहने या हट जाने के कारण उस स्थान का टूट-फूटकर निकम्मा हो जाना। उजाड़ हो जाना। २. परित्यक्त होने अथवा तोड़े-पोड़े जाने के कारण नष्ट-भ्रष्ट और श्री-हीन हो जाना। जैसे—खेत या गाँव उजड़ना। ३. आघात, आपत्ति आदि के कारण बुरी तरह से नष्ट होना। जैसे—चोरी होने (या लड़का मरने) से घर उजड़ना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उजड़वाना					 : | स० [हिं० उजाड़ना का प्रे० रूप] उजाड़ने का काम किसी दूसरे से कराना। किसी को कुछ उजाड़ने में प्रवृत्त करना। | 
			
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				| उजड्ड					 : | वि० [सं० उद-बहुत+जड़-मूर्ख] १. जो शिष्ट समाज के आचारों, व्यवहारों आदि से बिलकुल अनभिज्ञ हो। गँवार। २. अक्खड़। उद्दंड। | 
			
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				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उजड्डपन					 : | पुं० [हिं० उजड्ड+पन(प्रत्यय)] उजड्ड होने की अवस्था या भाव। | 
			
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				| उजबक					 : | पुं० [तु०] तातारियों की एक जाति। वि० परम मूर्ख। मूढ़। | 
			
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				| उजर					 : | वि० १. =उजाड़। २. =उज्जवल। पुं० =उज्र।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उजरत					 : | पुं० [अ०] १. पारिश्रमिक। २. मजदूरी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उजरना					 : | [अ०] १. =उजड़ना। उदाहरण—बसत भवन उजरउ नहिं डरहूँ।—तुलसी। २. -उज्जवल या प्रकाशमय होना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उजरा					 : | वि० =उजला।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उजराई					 : | स्त्री० [हिं० उज्जर]-उजलापन (उज्ज्वलता)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उजराना					 : | स० [सं० उज्जवल] उज्ज्वल,निर्मल या स्वच्छ कराना। उजला करना। अ० उजला या स्वच्छ होना। स०-उजड़वाना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उजलत					 : | स्त्री० [अ०] उतावली। जल्दबाजी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उजलवाना					 : | स० [उजालना का प्रे० रूप] दूसरे से कोई चीज उज्ज्वल या स्वच्छ करवाना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उजला					 : | वि० [सं० उज्ज्वलक, पा० प्रा० उज्जलज, का० बोझुलु, पं० उज्जला, उजला, गु० उजलू, सि० उजलु] [स्त्री० उजली] १. चमकता हुआ। २. प्रकाश से युक्त। दीप्त। जैसे—उजला घर। ३. जो निर्मल साफ या स्वच्छ हो। जैसे—उजले कपड़े। पुं० धोबी। (स्त्रियाँ)। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उजलापन					 : | पुं० [हिं० उजला+पन प्रत्यय] उजले (उज्जवल या स्वच्छ) होने की अवस्था या भाव। उज्ज्वलता। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उजवास					 : | पुं० [सं० उद्यास-प्रयत्न] चेष्टा। प्रयत्न। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उजहदार					 : | वि० [फा० वजः दार] १. मिला हुआ। युक्त। उदाहरण—पंच तत ते उजहदार मन पवन दोऊ हस्ती घोड़ा गिनांन ते ऊषै भंडार।—गोरखनाथ। २. सुशोभित। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उजागर					 : | वि० [सं० उत्+जागृ उज्जागर, गुं० मरा० उजगरा] १. उज्ज्वल और प्रकाशमय। चमकता हुआ। उदाहरण—सिय लधु भगिनि लखन कहँ रूप उजागरि।—तुलसी। २. जिसका यश चारों ओर फैला हो। ३. विशेष रूप से प्रसिद्ध। उदाहरण—पंडित मूढ़ मलीन उजागर।—तुलसी। मुहावरा—बाप-दादा का नाम उजागर करना=(क) कुल की कीर्ति या यश बढ़ाना। (ख) कुल में कलंक लगाना।(व्यंग्य)। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उजाड़					 : | पुं० [सं० उज्झ-छोड़ना या त्यागना+आड़(प्रत्यय)] १. उजड़ने या उजाड़ने की क्रिया या भाव। २. ऐसा स्थान जहाँ के निवासी दैवी विपत्तियों (जैसे—दुर्भिक्ष, बाढ़, भूकंप आदि) के कारण नष्ट हो चुके हों अथवा वह स्थान छोड़कर कहीं चले गये हों। ३. ऐसा निर्जन स्थान जहाँ झाड़-झंखाड़ के सिवा और कुछ न हो। वि० १. उजड़ा हुआ। जिसमें आबादी या बस्ती न हो। पद-उजाड़=जंगल। २. गिरा-पड़ा। टूटा-फूटा। ध्वस्त। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उजाड़ना					 : | स० [हिं० उजाड़+ना (प्रत्यय)] १. अच्छी तरह तोड़-फोड़कर चौपट या नष्ट-भ्रष्ट करना। जैसे—खेत या बाग उजाड़ना। उदाहरण—रखवारे हति विपिन उजारे।—तुलसी। २. बहुत अधिक आघात या प्रहार करके किसी की सत्ता ऐसी अस्त-व्यस्त या विकृत करना कि वह फिर काम में आने के योग्य न रह जाए। जैसे—(क) गाँव,घर या नगर उजाड़ना।३. बुरी तरह से नष्ट या बरबाद करना। जैसे—ऐयाशी या जूए में रुपए उजाड़ना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उजाड़ू					 : | वि० [हिं० उजाड़ना] १. उजाड़नेवाला। २. बुरी तरह से नष्ट या बरबाद करनेवाला। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उजाथर					 : | वि०=उजागर। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उजान					 : | पुं० [सं० उद्=ऊपर+यान=जाना] १. धारा, नदी आदि की वह दिशा जिधर से बहाव आ रहा हो। २. चढ़ाई। चढाव। क्रि० वि० जिधर से बहाव आ रहा हो उस ओर या दिशा में। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उजार					 : | वि० १. =उजाड़। २. =उजाला।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उजारना					 : | स० [हिं० उजाला] १. उजाला करना। प्रकाश करना। २. उजला या साफ करना। स० =उजाड़ना। उदाहरण—भुवन मोर जिन्ह बसत उजारा।—तुलसी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उजारा					 : | पुं० =उजाला। वि०=उजला।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उजारी					 : | स्त्री० [?] कटी हुई फसल में से किसी देवता या ब्राह्मण के निमित्त निकालकर रखा हुआ अन्न। अगऊँ। स्त्री०=उजाली। (चाँदनी)। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उजालना					 : | स० [सं० उज्ज्वल] १. दीप्त या प्रज्वलित करना। जैसे—दीया उजालना। २. उज्ज्वल या स्वच्छ करना। जैसे—आँगन या घर उजालना। ३. किसी वस्तु को इस प्रकार रगड़-पोछ कर साफ करना कि उसमें चमक आ जाए। जैसे—गहने, बरतन या हथियार उजालना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उजाला					 : | पुं० [सं० उज्ज्वल] १. चाँदनी। प्रकाश। रोशनी। २. प्रातः काल होनेवाला प्रकाश। जैसे—उठो, उजाला हो गया। पद-उजाले का तारा-शुक्र-ग्रह। ३. सूर्य के उदित होने या अस्त होने के समय का मंद या हलका प्रकाश। जैसे—अभी तो उजाला है, घर चले जाओ। ४. वह जिससे कुल,जाति परिवार आदि की कीर्ति, यश या शोभा बढ़े। वि० [स्त्री० उजाली] १. उज्ज्वल। प्रकाशमय। २. साफ। स्वच्छ। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उजाली					 : | स्त्री० [हिं० उजाला] चंद्रमा का प्रकाश। चाँदनी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उजास					 : | पुं० [उजाला+स(प्रत्यय)] १. उजाला। प्रकाश। २. चमक। द्युति। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उजासना					 : | स० [हिं० उजास] १. प्रकाशित या प्रज्वलित करना। २. उज्ज्वल या स्वच्छ करना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उजियर					 : | वि०=उजला।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उजियरिया					 : | स्त्री० [सं० उज्ज्वल] १. चंद्रमा का प्रकाश। चाँदनी। २. चाँदनी रात। शुक्ल पक्ष की रात। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उजियाना					 : | स० [सं० उज्जीवन ?] १. उत्पन्न या पैदा करना। २. प्रकट करना। सामने लाना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उजियार					 : | पुं० [हिं० उजाला] चाँदनी। प्रकाश। उदाहरण—तुलसी भीतर बाहिरै जौ चाहेसि उजियार।—तुलसी। वि० =उजला। | 
			
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				| उजियारना					 : | स० =उजालना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उजियारा					 : | पुं० [सं० उज्ज्वल] उजाला। प्रकाश। रोशनी। वि० [स्त्री० उजियारी] १. प्रकाश से युक्त। उजला। २. कांतिमान। चमकीला।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उजियारी					 : | स्त्री० [हिं० उजियारा] १. चंद्रमा का प्रकाश। चाँदनी। २. चाँदनी रात।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उजियाला					 : | पुं० =उजाला। | 
			
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				| उजीता					 : | वि० [सं० उद्योत, प्रा० उज्जोत] प्रकाशमान। चमकीला। पुं० प्रकाश। रोशनी। | 
			
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				| उजीर					 : | पुं० =वजीर (मंत्री)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उजुर					 : | पुं० =उज्र। | 
			
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				| उजू					 : | स्त्री० दे०‘वजू’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उजूबा					 : | पुं० [अ० अजूबा] बैगनी रंग का एक प्रकार का चमकीला पत्थर। वि०=अजूबा। | 
			
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				| उजेनी					 : | स्त्री० =उज्जयिनी (नगरी)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उजेर					 : | पुं० =उजाला। वि०=उजाला।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उजेरना					 : | स० =उजालना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उजेरा					 : | पुं० [?] ऐसा बैल जो अभी जोता न गया हो। वि०, पुं०=उजाला।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उजेला					 : | वि० पुं० =उजाला। | 
			
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				| उजोरा					 : | वि० पुं० [स्त्री० उजोरी] =उजाला। | 
			
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				| उज्जट					 : | वि० पुं० =उजाड़। वि० =उजड्ड।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उज्जयिनी					 : | स्त्री० [सं० उत्-जय, प्रा० स०+इनि-ङीष्] मध्य भारत की प्रसिद्ध नगरी जो सिप्रा नदी के तट पर है और जो किसी समय मालव देश की राजधानी थी। आधुनिक उज्जैन का पुराना नाम। | 
			
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				| उज्जर					 : | वि० =उजला। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उज्जल					 : | पुं० [सं० उद्-ऊपर+जल-पानी] नदी आदि में बहाव के विपरीत की दिशा या पक्ष। नदी में चढ़ाव की ओर का मार्ग। उजान। वि०=उज्जवल। | 
			
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				| उज्जारना					 : | स० =उजारना। | 
			
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				| उज्जिहान					 : | पुं० [सं० उद्√हा (त्याग)+शानच्] वाल्मीकि के अनुसार एक प्राचीन देश। | 
			
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				| उज्जीवन					 : | पुं० [सं० उद्√जीव्(जीना)+ल्युट्-अन] [वि० उज्जीवित] १. फिर से या दोबारा प्राप्त होनेवाला नया जीवन। २. नष्ट होने से फिर से अस्तित्व में आने या पनपने की अवस्था या भाव। | 
			
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				| उज्जीवित					 : | भू० कृ० [सं० उद्√जीव्+क्त] जिसे फिर से नया जीवन प्राप्त हुआ हो। उदाहरण—त्यागोज्जीवित वह ऊर्ध्व ध्यान धारा स्तव।—निराला। | 
			
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				| उज्जीवी (विन्)					 : | वि० [सं० उद्√जीव्+णिनि] जिसे फिर से नया जीवन मिला हो अथवा मिल सकता हो। | 
			
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				| उज्जैन					 : | पुं० [सं० उज्जयिनी] मालवा की प्राचीन राजधानी। प्राचीन उज्जयिनी नगरी का आधुनिक नाम। (दे० ‘उज्जयिनी’) | 
			
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				| उज्ज्वल					 : | वि० [सं० उद्√ज्वल् (दीप्ति)+अच्] [भाव० उज्ज्वलता] १. जो जलकर प्रकाश दे रहा हो। २. चमकीला। प्रकाशमान। प्रदीप्त। ३. कांतिमान और सुंदर। ४. निर्मल। स्वच्छ। ५. सफेद। पुं० १. स्वर्ण। सोना। २. प्रेम। मुहब्बत। | 
			
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				| उज्ज्वलता					 : | स्त्री० [सं० उज्ज्वल+तल्-टाप्] उज्ज्वल होने की अवस्था या भाव। | 
			
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				| उज्ज्वलन					 : | पुं० [सं० उद्√ज्वल्+ल्युट्-अन] [भू० कृ० उज्ज्वलित] १. प्रज्वलित करने की क्रिया या भाव। जलाना। २. कीर्ति या प्रकाश से युक्त करना। ३. अच्छी तरह से साफ करके चमकाना। ४. अग्नि। आग। ५. स्वर्ण (सोना)। | 
			
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				| उज्ज्वला					 : | स्त्री० [सं० उद्√ज्वल्+अ-टाप्] १. आभा। प्रभा। २. निर्मल होने की अवस्था या भाव। ३. एक प्रकार का छंद या वृत्त। | 
			
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				| उज्झटित					 : | वि० [सं० उद्√झट् (संहति)+क्त] १. उधेड़बुन, उलझन या दुबिधा में पड़ा हुआ। २. उलझा हुआ। ३. बहुत ही घबराया हुआ या विकल। | 
			
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				| उज्झड़					 : | वि०=उजड्ड। | 
			
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				| उज्झन					 : | पुं० [सं०√उज्झ् (त्यागना)+ल्युट्-अन] छोड़ने, त्यागने अथवा हटाने की क्रिया या भाव। परित्याग। | 
			
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				| उज्झित					 : | भू० कृ० [सं०√उज्झ्+क्त] १. छोड़ा या त्यागा हुआ। जैसे—भुक्तोज्झित-खाने के बाद जूठा छोड़ा हुआ। २. दूर किया या हटाया हुआ। | 
			
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				| उज्यारा					 : | वि० पुं० =उजाला।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उज्यारी					 : | स्त्री० =उजाली।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उज्यास					 : | पुं० =उजास।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उज्र					 : | पुं० [अ०] किसी कार्य या कथन के संबंध में की जानेवाली आपत्ति। | 
			
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				| उज्रदार					 : | वि० [फा०] [भाव० उज्रदारी] किसी कार्य या बात से असहमत होने पर उसके संबंध में उज्र या आपत्ति करनेवाला। | 
			
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				| उज्रदारी					 : | स्त्री० [फा०] किसी काम या बात के संबंध में, मुख्यतः न्यायालय में की जानेवाली आपत्ति। | 
			
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				| उझकना					 : | अ० [हिं० उचकना] १. झाँकने, ताकने या देखने के लिए ऊँचा होना या सिर बाहर निकालना। उचकना। उदाहरण—उझकि झरोखे झाँके नंदिनी जनक की।—गीत। २. ऊपर उठना। उभरना। ३. चौंकना। | 
			
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				| उझपना					 : | अ० [हिं० झपना का विपर्याय] पलकों का ऊपर उठे रहना। (झपना का विपर्याय) उदाहरण—बरुई में फिरै न झपैं उझपैं पल में न समइबो जानती है।—भारतेन्दु। स० कुछ देखने के लिए आँख खोलना। | 
			
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				| उझरना					 : | अ० [सं० उत्+सरण] १. हचना। २. ऊपर की ओर खिसकना। स०-उँड़ेलना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उझल					 : | स्त्री० [हिं० उलझना] १. उलझने या उँड़ेलने की क्रिया या भाव। २. वर्षा। वृष्टि। ३. अचानक किसी चीज के बहुत अधिक मात्रा में आ पड़ने का भाव।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उझलना					 : | अ० [सं० उज्झरण] वेग से किसी चीज का दूसरी चीज में आ गिरना या आ पड़ना। उदाहरण—वह सेनि दरेरन देति चली मनु सावन की सरिता उझली।—सूदन। स० =उँड़ेलना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उझाँकना					 : | अ० =झाँकना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उझालना					 : | स० =उलझना (उँड़ेलना)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उझिल					 : | स्त्री० [हिं० उझलना] १. उलझने या उँड़ेलने की क्रिया या भाव। २. उझल या उँड़ेलकर लगाया हुआ ढेर। उदाहरण—रूपकी उझिल आछे नैनन पै नई नई।—घनानंद।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उझिलाना					 : | स० =उझलना। (उँड़ेलना)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उझिला					 : | स्त्री० [हिं० उझिलना] १. उबटन के लिए उबाली हुई सरसों। २. पिसे हुए पोस्त के दानों के साथ महुए को उबालकर बनाया हुआ एक प्रकार का पेय। ३. खेत की ऊँची भूमि से खोदी हुई मिट्टी जो उसके गड्ढ़ों में भरी जाती है। | 
			
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				| उझीना					 : | पुं० [देश०] आग सुलगाने के लिए लगाया हुआ उपलों का ढेर। अहरा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उटंग					 : | वि० =उटंगा। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उटंगन					 : | पुं० [सं० उट-घास+अन्न] एक प्रकार की वनस्पति जिसका साग बनता है और जो औषध के काम में आती है। | 
			
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				| उटंगा					 : | वि० [सं० उत्तंग या हिं० उ-ऊपर+टाँग] [स्त्री० उटंगी] (वस्त्र) जो इतना छोटा हो कि पहनने पर टाँगों के ऊपरी भाग तक ही रहे, नीचे तक न आने पावे। जैसे—उटंगी धोती, उटंगा पाजामा आदि। | 
			
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				| उटकना					 : | स० [सं० अट्-घूमना,बार बार+कल०-गिनती करना] अटकल से पता लगाना। अनुमान करना। अ० =अटकना। | 
			
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				| उटक्कर					 : | अव्य० [अनु०] अंधाधुंध। | 
			
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				| उटज					 : | पुं० [सं०√उ (शब्द करना)+ट,उट√जन् (उत्पन्न होना)+ड] पर्ण कुटी। झोपड़ी। | 
			
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				| उटारी					 : | स्त्री० [हिं० उठना] लकड़ी का वह टुकड़ा जिसके ऊपर चारा रखकर काटा जाता है। निहटा। नेसुहा। | 
			
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				| उट्टा					 : | पुं० -ओटनी (कपास ओटने की चरखी)। | 
			
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				| उट्ठना					 : | अ० =उठना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उट्ठी					 : | स्त्री० [देश०] बच्चों के खेल, प्रतियोगिता आदि में अव्यय के रूप में प्रयुक्त होने वाला एक शब्द जिसका आशय होता है-हमने पूरी तरह से हार मान ली, अब हमें दया करके छोड़ दो। मुहावरा—उट्ठी बोलना=दीन भाव से पूरी हार मान लेना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उठँगन					 : | पुं० [सं० उत्थ+अंग] किसी चीज को गिरने या लुढ़कने से बचाने के लिए लगाई जानेवाली दूसरी छोटी चीज। टेक। सहारा। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उठँगना					 : | अ० [सं० उत्थ+अंग] १. किसी आधार या टेक का सहारा लेकर बैठना। २. लेटना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उठँगाना					 : | स० [सं० उँठगना का स०रूप] १. किसी चीज को गिरने या लुढ़कने से बचाने के लिए उसके नीचे टेक या सहारा लगाना। २. (किवाड़) बंद करना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उठतक					 : | पुं० [हिं० उठना] १. घोड़े की पीठ पर काठी के नीचे रखी जानेवाली गद्दी। २. आड़। टेक। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उठना					 : | अ० [सं० उत्+स्था, उत्थ, उत्था, प्रा० उट्ठ+ना० प्रत्यय, पं० उठ्ठना, मरा० उठणें, गुज० उठवुँ] १. नीचे के तल या स्तर से ऊपर के तल या स्तर की ओर चलना या बढ़ना। ऊँचाई की ओर अथवा ऊपर जाना या बढ़ना। जैसे—हवा में धुआँ या धूल उठना, समुद्र में लहरें उठना, ताप-मापक यंत्र का पारा उठना आदि। विशेष—इस अर्थ में यह शब्द कुछ विशिष्ट क्रियाओं के साथ संयोज्य क्रिया के रूप में लगकर ये अर्थ देता है—(क) आकस्मिक रूप से या सहसा होनेवाला वेग। जैसे—चिल्ला उठना-सहसा जोर से चिल्लाना। (ख) पूरी तरह से या स्पष्ट रूप से प्रत्यक्ष होना या सामने आना। जैसे—यह सुनते ही उनका चेहरा खिल उठा। २. गिरे, झुके, बैठे या लेटे होने की स्थिति में खड़े होने या चलने की स्थिति में आना। कहीं चलने या जाने के विचार से पैरों के बल सीधे खड़े होना। जैसे—(क) वह गिरते ही फिर उठा। (ख) सब लोग उनका स्वागत करने के लिए उठे। (ग) वह अभी सोकर उठा है। (घ) बारात अभी घंटे भर में उठेगी। मुहावरा—(किसी के साथ) उठना=बैठना-मेल-जोल और संग-साथ रखना। जैसे—जिनके साथ रोज का उठना-बैठना हो, उनसे झगड़ा नहीं चाहिए। पद—उठते-बैठते-नित्य के व्यवहार में, प्रायः हर समय। जैसे—वह उठते-बैठते भगवान का नाम जपते रहते हैं। ३. कुछ करने के लिए उद्यत, प्रस्तुत या सन्नद्ध होना। जैसे—(क) किसी को मारने उठना। (ख) चंदा करने उठना। उदाहरण—उठहु राम, भंजहु भव-चापू।—तुलसी। मुहावरा—उठ खड़े होना=कहीं से चलने या कोई काम करने के लिए तैयार होना। ४. बेहोश पड़े या मरे हुए व्यक्ति का फिर से होश में आकर या जीवित होकर खड़े होना। उदाहरण—तुरत उठे लछिमन हरखाई।—तुलसी। ५. अवनत या गिरी हुई दशा से उन्नत या अच्छी दशा में आना। उन्नति करना। जैसे—अफ्रीका और एशिया के अनेक पिछड़े हुए देश अब जल्दी जल्दी उठने लगे हैं। ६. आकाशस्थ ग्रह-नक्षत्रों आदि का क्षितिज से ऊपर आना। उदित होना। निकलना। जैसे—संध्या होने पर चंद्रमा या सपेरा होने पर सूर्य उठना। ७. निर्माण या रचना की दशा में क्रमशः ऊँचा होना या ऊपर की ओर बढ़ना। जैसे—दीवार या मकान उठना। ८. उभार, विकास या वृद्धि के क्रम में आगे की ओर बढ़ना। जैसे—उठता हुआ पौधा, उठती हुई जवानी। ९. भाव, विचार आदि का मन या मस्तिष्क में आना। उदभूत होना। जैसे—(क) अभी मेरे मन में एक और बात उठ रही है। (ख) उनके मन में नित्य नये विचार उठते रहते थे। १. ध्यान या स्मृति में आना। याद आना। जैसे—वह श्लोक, मुझे याद तो था, पर इस समय उठ नहीं रहा है। ११. चर्चा या प्रसंग छिड़ना। जैसे—तुम्हारें यहाँ तो नित्य नई एक बात उठती है। १२. अचानक अस्तित्व में आकर अनुभूत, दृश्य या प्रत्यक्ष होना। जैसे—(क) आकाश में आँधी और बादल उठना। (ख) देश या नगर में उपद्रव उठना। (ग) पेट या सिर में दरद उठना। (घ) बदन में खुजली उठना। १३. अच्छी तरह या स्पष्ट रूप से दृश्य होना। दिखाई पड़ने के योग्य होना। जैसे—कागज पर छापे के अक्षर उठना। १४. ध्वनि शब्द स्वर आदि का कुछ जोर से अनुरणित या उच्चरित होना। जैसे—चारों ओर से आवाज या शोर उठना। १५. किसी वस्तु का ऐसी स्थिति में आना या होना कि पारिश्रमिक, मूल्य, लाभ आदि के रूप उससे कुछ धन प्राप्त हो सके। जैसे—(क) किराये पर मकान या दुकान उठना। (ख) बेची जानेवाली चीज के दाम उठना। १६. किसी वस्तु का ऐसी स्थिति में होना कि उसका वहन हो सके। बोझ या भार के रूप में वहित या सह्य होना। जैसे—इतना बोझ हमसे न उठेगा। १७. मादा पशुओं आदि का उमंग में आकर संभोग के लिए प्रवृत्त या गर्भधारण के लिए आतुर होना। जैसे—गाय, घोड़ी या भैंस का उठना। १८. तर या भीगी हुई चीज के कुछ सड़ने के कारण उसमें विशिष्ट प्रकार का रासायनिक परिवर्त्तन होना। खमीर या सड़ाव आना। जैसे—मद्य बनाने में महुए का पाँस उठना या गरमी के दिनों में रात भर पड़े रहने के कारण गूँधा हुआ आटा उठना। १९. उपयोग में आने के कारण कम होना। खर्च या व्यय होना। जैसे—जरा सी बात में सैकड़ों रुपए उठ गये। २0० ऐसे कार्यों का बंद या स्थगित होना जो कुछ समय तक लगातार बैठकर किये जाते हों। अधिवेशन, बैठक आदि का नियमित या नियत रूप से समाप्त होना। जैसे—अब तो कचहरी (या सभा) के उठने का समय हो रहा है। २१. अंत या समाप्ति हो जाना। न रह जाना। जैसे—(क) उनका कारोबार (या दफ्तर) उठ गया। (ख) अब पुरानी प्रथाएँ उठती जाती हैं। मुहावरा—(किसी व्यक्ति का) इस लोक या संसार से उठना=(परलोक में जाने के लिए) यह लोक छोड़कर चले जाना। मर जाना। स्वर्गवास होना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उठल्लू					 : | वि० [हिं० उठना+लू (प्रत्यय)] १. जिसे एक स्थान से उठाकर दूसरे स्थान पर रखा जा सके। जैसे—उठल्लू चूहा। २. जो एक जगह जम कर या स्थायी रूप से न रहता हो। कभी कहीं और कभी कहीं रहनेवाला। ३. आवारा। पद—उठल्लू का चूल्हा या उठल्लू चूल्हा=व्यर्थ इधर-उधर फिरनेवाला। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उठवाना					 : | स० [हिं० उठाना का प्रे० रूप] दूसरों से कोई चीज उठाने का काम कराना। किसी को कुछ उठाने में प्रवृत्त करा। | 
			
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				| उठवैया					 : | वि० [हिं० उठाना] १. उठानेवाला। २. उठवानेवाला। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उठाईगीर					 : | पुं० [हिं० उठाना+फा०गीर] वह जो दूसरों का माल उनकी आँख बचाकर उठा ले जाता हो। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उठान					 : | स्त्री० [सं० उत्थान, पा० उट्ठान] १. उठने की क्रिय, ढंग या भाव। २. किसी काम या बात के आरंभ या शुरू होने की अवस्था या भाव। जैसे—इस कविता (या गीत) की उठान तो बहुत सुंदर है। ३. शारीरिक दृष्टि से वह अवस्था या स्थिति जो विकास या वृद्धि की ओर उन्मुख हो। जैसे—इस पेड़ (या लड़के) की उठान अच्छी है। ४. खपत। खर्च। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उठाना					 : | स० [हिं० उठना का स० रूप] १. किसी को उठने में प्रवृत्त करना। ऐसा काम करना जिससे कुछ या कोई उठे। २. नीचे के तल या स्तर से ऊपर के तल या स्तर की ओर ले जाना। ऊँचाई की ओर बढ़ाना या ले जाना। ऊपर करना। जैसे—(क) मत देने के लिए हाथ उठाना, (ख) कुछ देखने के लिए आँखें (या सिर) उठाना। ३. पड़े, बैठे, लेटे या सोये हुए व्यक्ति को खड़े होने या जागने में प्रवृत्त करना। जैसे—बच्चों को सबेरे उठा दिया करो। उदाहरण—कपि उठाइ प्रभु हृदय लगावा।—तुलसी। ४. गिरी या पड़ी हुई वस्तु को ऊपर, यथा-स्थान या सीधा करना। जैसे—जमीन पर से गिरी हुई कलम या पुस्तक उठाना। ५. निर्माण या रचना के क्रम में आगे या ऊपर की ओर बढ़ाना। जैसे—दीवार या मकान उठाना। ६. कहीं बैठ या रह कर कोई काम करनेवाला व्यक्ति को वहाँ से अलग या दूर करना। जैसे—(क) पटरी पर बैठने वाले दूकानदारों को वहाँ से उठाना। (ख) किसी दूकान या पाठशाला से अपना लड़का उठाना। ७. किसी आधिकारिक, उचित या नियत स्थान से कोई चीज लेने के लिए हाथ में करना। जैसे—आलमारी में से पुस्तक उठाना। मुहावरा—उठा ले जाना=(क) इस प्रकार किसी की कोई चीज लेकर चलते बनना किसी को पता न चले। जैसे—न जाने कौन यहाँ की घड़ी उठा ले गया। (ख) बलपूर्वक कोई वस्तु या व्यक्ति ले जाना। हरण करना। जैसे—रावण वन में से सीता को उठा ले गया। ८. कहीं पहुँचाने, ले जाने आदि के उद्देश्य से कोई चीज कंधे,पीठ,सिर आदि पर रखना या हाथ में लेना। जैसे—(क) बच्चे को गोद में उठाना। (ख) सिर पर गट्ठर या बोझ उठाना। ९. किसी प्रकार का उत्तरदायित्व या भार अपने ऊपर लेना। भार के रूप में ग्रहण, वहन या सहन करना। जैसे—आपकी सहायता के भरोसे ही मैंने यह काम उठाया हैं। १. कोई कार्य तत्परता या दृढ़ता से करने के लिए उसका कारण या साधन अपने हाथ में लेना। जैसे—(क) लड़ने के लिए हथियार उठाना।(ख) लिखने के लिए कलम उठाना। ११. गिरी हुई अवस्था या बुरी दशा से उन्नत अवस्था या अच्छी दशा में लाना। जैसे—भारतीय आर्यों ने किसी समय आस-पास की अनेक जातियों को उठाया था। १२. उपयोग, व्यवहार आदि के लिए किसी को देना या सौंपना। जैसे—मकान किराये पर उठाना। १३. शपथ खाने के लिए किसी वस्तु को छूना अथवा उसे हाथ में लेना। कुरान या गंगाजल उठाना। १४. ध्वनि, शब्द आदि ऊँचे स्वर में उच्चरित करना। जैसे—किसी बात के विरूद्ध आवाज उठाना। १५. कोई नई चर्चा, बात, प्रसंग आदि आरंभ करना या चलाना। जैसे—नया प्रसंग उठाना। १६. उपलब्ध या प्राप्त करना। जैसे—लाभ उठाना,सुख उठाना। १७. दंड या भोग के रूप में सहन करना। झेलना। भोगना। जैसे—कष्ट या विपत्ति उठाना। १८. तर या भीगी हुई चीज के संबंध में ऐसी क्रिया करना अथवा उसे ऐसी स्थिति में रखना कि उसमें रासायनिक परिवर्तन के कारण विशिष्ट प्रकार की सड़न आवे। जैसे—आटे या पास में खमीर उठाना। १९. असावधानी, उदारता आदि से खर्च या व्यय करके समाप्त करना। जैसे—(क) जरा सी बात में दस रूपये उठा दिये। (ख) चार दिन में सारा चावल उठा दिया। २॰ अनुकूल, आवश्यक या उचित आचरण, कार्य अथवा व्यवहार न करना। अग्राह्य या अमान्य करना। जैसे—(क) बड़ों की बात इस तरह नहीं उठाना चाहिए। (ख) हमारी हर बात तो तुम यों ही उठा दिया करते हो। मुहावरा—कुछ उठा न रखना=अपनी ओर से कोई उपाय या प्रयत्न बाकी न छोड़ना। यथा सम्भव पूरा उद्योग करना। जैसे—उन्होंने हमें दबाने में कुछ उठा नहीं रखा था। २१. चलते हुए कार्य, व्यवहार, व्यापार आदि का अंत या समाप्ति करना। बंद करना। जैसे—(क) बाजार से अपनी दूकान उठाना। (ख) समाज से कोई प्रथा या रीति उठाना। (ग) अदालत से अपना मुकदमा उठाना। २२. किसी दैवी शक्ति का किसी व्यक्ति के जीवन का अंत करके उसे इस लोक से ले जाना। जैसे—(क) भगवन् हमें जल्दी से उठाओ। (ख) इस दुर्घटना से पहले ही परमात्मा ने उन्हें उठा लिया। | 
			
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				| उठावनी					 : | स्त्री० [हिं० उठना या उठाना] १. उठने या उठाने की क्रिया या भाव। २. कुछ स्थानों में मृतक के दाह-कर्म के दूसरे, तीसरे या चौथे दिन श्मशान में जाकर उसकी अस्थियाँ चुनने की क्रिया या प्रथा। ३. कुछ जातियों में, मृतक के दाह-कर्म के तीसरे या चौथे दिन उसके घर पर बिरादरी के लोगों के इकट्ठे होने और कुछ लेन-देन करने की प्रथा या रसम। ४. दे० ‘उठौनी’। | 
			
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				| उठौआ					 : | वि० [हिं० उठाना] १. जो सहज में एक स्थान से उठाकर दूसरे स्थान पर रखा या ले जाया जा सकता हो। जो उठाने में हलका और फलतः इधर-उधर ले जाने के योग्य हो। (बहुत भारी या एक स्थान पर स्थित से भिन्न) जैसे—उठौआ पाखाना। (नल के संयोग से बहनेवाले पाखाने से भिन्न)। | 
			
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				| उठौनी					 : | स्त्री० [हिं० उठना या उठाना,उठावनी का पू० रूप] १. उठने या उठाने अथवा उठाकर रखने की क्रिया, भाव या मजदूरी। २. देवता या धार्मिक कृत्य के लिए कुछ धन या पदार्थ उठाकर अलग रखने की क्रिया या भाव। ३. कोई लेन-देन या व्यवहार पक्का करने अथवा कोई काम कराने के लिए अग्रिम के रूप में दिया जानेवाला धन। अगाऊ। पेशगी। ४. (उठकर) कोई कार्य आरंभ करने की क्रिया या भाव। उदाहरण—सब मिलि पहिलि उठौनी कीन्ही।—जायसी। ५. धान के खेत की आरंभिक हलकी जुताई। ६. जुलाहों की वह लकड़ी जिसमें वे पाई करने के लिए लुगदी लपेटते है। ७. दे०‘उठावनी’। | 
			
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				| उठौवा					 : | वि०=उठौआ। | 
			
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				| उट्ठी					 : | स्त्री=उट्ठी। | 
			
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				| उड़कू					 : | वि० [हिं० उड़ना+अंकू(प्रत्यय)] १. उड़नेवाला। २. दे० ‘उड़ाका’। | 
			
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				| उड़ंत					 : | पुं० [हिं० उड़ना] १. उड़ने की क्रिया या भाव। २. कुश्ती का एक पेंच। | 
			
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				| उड़ंबरी					 : | स्त्री० [सं० उडुम्बर] एक प्रकार का पुराना बाजा जिसमें बजाने के लिए तार लगे होते थे। | 
			
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				| उड़खरा					 : | वि० [हिं० उड़ना] जो उड़ता हो या उड़ाया जा सकता हो। उदाहरण—नहिं बाल ब्रिद्ध किस्सोर तुअ,धुअ समान पै उड़खरी।—चंदवरदाई।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उड़चक					 : | पुं० =उचक्का। | 
			
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				| उड़तक					 : | पुं० =उठतक। | 
			
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				| उड़द					 : | पुं० =उरद। (अन्न)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उड़दी					 : | स्त्री० =उरद (अन्न)। | 
			
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				| उड़न					 : | पुं० [हिं० उड़ना] उड़ने की क्रिया या भाव। वि० उड़नेवाला।(यौ० के आरंभ में) जैसे—उड़न-खटोला। | 
			
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				| उड़न-किला					 : | पुं० [हिं० उड़ना+किला] एक प्रकार का बहुत बड़ा सामयिक वायुयान जो किले के समान दृढ़ तथा सुरक्षित माना जाता है। (फ्लाईंग फोर्ट्रेस)। | 
			
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				| उड़न-खटोला					 : | पुं० [हिं० उड़ना+खटोला] १. कहानियों आदि में, एक प्रकार का कल्पित वायुयान या विमान, जो प्रायः खटोले या चौकी के आकार का कहा गया है। २. वायु यान। | 
			
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				| उड़न-गढ़ी					 : | स्त्री० दे० ‘उड़न-किला’। | 
			
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				| उड़न-छू					 : | वि० [हिं० उड़ना] जो देखते-देखते अथवा क्षण भर में अदृश्य या गायब हो जाए। | 
			
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				| उड़न-झाई					 : | स्त्री० [हिं० उड़ना+झाई] किसी को धोखा देने के लिए कही हुई बात। चकमा। धोखा। | 
			
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				| उड़न-थाल					 : | पुं० [हिं० उड़ना+थाल] बहुत बड़े थाल के आकार का एक प्रकार का ज्योतिर्मय उपकरण या पदार्थ जो कभी-कभी आकाश में उड़ता हुआ दिखाई देता है। (फ्लाईंग डिश फ्लाईंग साँसर)। विशेष—इधर इस प्रकार के पदार्थ आकाश में उड़ते हुए देखकर उनके संबंध मे लोग तरह-तरह की कल्पनाएँ करने लगे थे। पर अब वैज्ञानियों का कहना है कि ये हमारे सौर-जगत् के किसी दूसरे ग्रह से हमारी पृथ्वी का हाल जानने और हम लोगों से संपर्क स्थापित करने के लिए आते हैं। फिर भी अभी तक इनकी अधिकतर बातें अज्ञात और रहस्यमय ही है। | 
			
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				| उड़न-फल					 : | पुं० [हिं० उड़ना+फल] कथा-कहानियों में, एक कल्पित फल जिसके संबंध में यह माना जाता है। कि इसे खानेवाला आकाश में उड़ने की शक्ति प्राप्त कर लेता है। | 
			
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				| उड़ना					 : | अ० [सं० उड्डयन] १. पंखों या परों की सहायता से आधार छोड़कर ऊपर उठना और आकाश का वायु में इधर-उधर आना जाना। जैसे—चिड़ियों या फतिंगों का हवा में में उड़ना। २. अलौकिक या आध्यात्मिक शक्ति, मंत्र-बल आदि की सहायता से आकाश में उठकर इधर-उधर आना-जाना। जैसे—योगियों अथवा उड़नखटोलों, विमानों आदि का आकाश में उड़ना। ३. भौतिक, यांत्रिक, वैज्ञानिक आदि क्रियाओं से कुछ विशिष्ट प्रकार की रचनाओं, यानों आदि का आकाश में उठकर इधर-उधर आना-जाना। जैसे—(क) उड़न-थाल, गुब्बारा या हवाई जहाज उड़ना, (ख) गुड्डी या पतंग उड़ना आदि। ४. कहीं पहुँचने के लिए उछलकर या कुछ ऊपर उठते हुए तेजी से आगे बढ़ना। जैसे—(क)तालाब की मछलियाँ उड़-उड़कर कलोल कर रही थीं। (ख) कई तरह के साँप उड़कर काटते हैं। (ग) एड़ लगाते ही घोड़ा उड़ चला। ५. हवा के झोकें में पड़कर चीजों का तेजी से आगे बढ़ना अथवा इधर-उधर छितराना, बिखरना या दूर निकल जाना। जैसे—(क) जहाज या नाव का पाल उड़ना। (ख) हवा में कपड़े,कागज आदि उड़ना। (ग) आँधी में मकान की छत उड़ना। ६. किसी स्थित वस्तु का कोई अंश रह-रहकर लहराते हुए हवा में ऊपर उठना या हिलना। लहराना। जैसे—(क) किले या जहाज पर लगा हुआ झंडा उड़ना, (ख) धोती या साड़ी का पल्ला उड़ना। उदाहरण—उड़इ लहर पर्वत की नाई।—जायसी। ७. इतनी तेजी से चलना या अचानक पहुँचना कि आकाश में उड़कर आता हुआ सा जान पड़े। जैसे—मालूम होता है कि तुम तो उड़कर यहाँ आ पहुँचे हो। उदाहरण—कोई बोहित जस पवन उड़ाहीं।—जायसी। मुहावरा—उड़ चलना=(क) इतनी तेजी से चलना कि उड़ता हुआ सा जान पड़े। (ख) कोई कला या विद्या सीखते ही उसमें अच्छी गति या योग्यता प्राप्त कर लेना। जैसे—चार ही दिन में वह जादू के खेल दिखाने में उड़ चला। उड़ता बनना या होना-बहुत जल्दी से कहीं से चल देना या हट जाना। जैसे—काम होते ही वह उड़ता बना। ८. ऊपर से आता हुआ आघात या प्रहार बहुत तेजी से बैठना या लगना। जैसे—किसी पर थप्पड़ या बेंत उड़ना। ९. कट-फट कर अलग हो जाना या झटके से दूर जा गिरना। जैसे—(क) इस पुस्तक के कई पन्ने उड़ गये हैं। (ख) तलवार के एक ही वार से उसका सिर उड़ गया। १. इस प्रकार अज्ञात या अदृश्य हो जाना कि जल्दी पता न चले। गायब या लुप्त हो जाना। जैसे—(क) लड़का अभी तक बाजार से नहीं लौटा, न जाने कहाँ उड़ गया। (ख) अभी तो घड़ी यहीं रखी थी, देखते-देखते न जाने कहाँ उड़ गयी। ११. प्राकृतिक, रसायनिक आदि कारणों से किसी चीज का धीरे-धीरे घटते हुए कम हो जाना या न रह जाना। जैसे—कपड़े, दीवार या मेज का रंग उड़ना, डिबिया में से कपूर या शीशी में से दवा उड़ना। १२. लोक या वातावरण इधर-उधर प्रसारित होना या फैलना। जैसे—अफवाह या खबर उड़ना, गुलाल या सुंगंध उड़ना। १३. अनियंत्रित या असंगत रूप से अथवा उचित से बहुत अधिक और मनमाना उपभोग या व्यवहार होना। जैसे—बाग-बगीचे या यार-दोस्तों में मौज उड़ना, दुर्व्यवसनों में धन-दौलत उड़ना, महफिल में शराब-कबाब उड़ना आदि। १४. अपनी स्वाभाविक स्थिति से बहुत अधिक अस्त-व्यस्त या विक्षुब्ध होकर ठीक तरह से अपना काम करने के योग्य न रह जाना। बहुत असमर्थ, चंचल या विचलित होना। जैसे—होश-हवास उड़ना।—उदाहरण—०००बंसी के सुने तै तेरो चित्त उड़ि जायगा।—कोई कवि। १५. किसी को चकमा देने या धोखे में रखने के लिए इधर-उधर की बातों में वास्तविकता छिपाने का प्रयत्न करना। जैसे—आज तो तुम हमसे भी उड़ने लगे। १६. अभिमानपूर्ण आचरण या व्यवहार करके ऐंठ या ठसक दिखलाना। इठलाना। इतराना। जैसे—आज-कल तो उनका मिजाज ही नहीं मिलता, जब देखों तब उड़े फिरते हैं। १७. ऐसा रूप धारण करना जो साधारण से बहुत अधिक आकर्षक, प्रिय या रुचिकर हो। मुहावरा—(किसी वस्तु का) उड़ चलना=बहुत ही मनोहर, रुचिकर या सुखद प्रतीत होना। जैसे—जरा सा केसर पड़ जायगा तो खीर उड़ चलेगी। वि० १. उड़नेवाला। २. बहुत तेजी से आगे बढ़ने या चलनेवाला। जैसे—उड़ना साँप। ३. रह-रहकर एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुँचने, फैलने या होनेवाला। जैसे—उड़ना जहरबाद, उड़ना फोड़ा आदि। | 
			
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				| उड़प					 : | पुं० [हिं० उड़ना] नृत्य का एक भेद। पुं० दे० ‘उड़ुप’।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उड़री					 : | स्त्री० [१] एक प्रकार की उड़द। | 
			
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				| उड़व					 : | पुं० =ओड़व। | 
			
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				| उड़वाना					 : | स० [हिं० उड़ाना का प्रे०] किसी को उड़ने या चीज उड़ाने में प्रवृत्त करना। | 
			
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				| उड़सना					 : | अ० [?] अंत या समाप्ति होना। स०=उलटना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उड़ाँक					 : | वि० पुं० [हिं० उड़ना]=उड़ाका।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उडाँत					 : | वि० [हिं० उड़ना] १. उड़नेवाला। २. मनमाना आचरण करनेवाला। ३. बहुत अधिक चालाक या धूर्त। | 
			
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				| उड़ा					 : | पुं० [हिं० ओटना] रेशम की लच्छी खोलने का एक प्रकार का परेता। | 
			
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				| उड़ाइक					 : | वि० =उड़ायक।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उड़ाई					 : | स्त्री० [हिं० उड़ाना] उड़ने या उड़ाने की क्रिया, भाव या पारिश्रमिक। | 
			
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				| उडाऊ					 : | वि० [हिं० उड़ना] १. उड़ानेवाला। २. (धन) उड़ाने या खर्च करनेवाला। | 
			
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				| उड़ाक					 : | वि० [हिं० उड़ाना] १. उड़ानेवाला। २. दे० ‘उड़ाका’। | 
			
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				| उड़ाका					 : | वि० [हिं० उड़ना+आका(प्रत्यय)] १. जो अपने पंखों या परों की सहायता से हवा में उड़ सकता हो। २. विमान-चालक। ३. लाक्षणिक अर्थ में, (ऐसी चीज) जो उड़कर (अर्थात् अति तीव्र गति से) कहीं पहुँच सकती हो। जैसे—पुलिस का उड़ाका दल। | 
			
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				| उड़ाकू					 : | वि० =उड़ाका। | 
			
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				| उड़ान					 : | स्त्री० [सं० उड्डयन] १. हवा में उड़ने की क्रिया, ढंग या भाव। २. उड़ने या उड़ाई जानेवाली वस्तु की गति अथवा उस गति का मार्ग। ३. एक स्थान से उड़कर दूसरे स्थान पर पहुँचने का भाव। जैसे—हमारी इस उड़ान में केवल एक घंटा लगा। ४. उतनी दूरी जो एक बार में उक्त प्रकार से पार की जाए। ५. उक्ति, कल्पना, क्रिया-कलाप आदि का वह रूप जो साधारण बुद्धि या व्यक्ति की पहुँच के बहुत कुछ बाहर या उससे बहुत ऊँचा या बढ़कर हो। क्रि० प्र० भरना।—मारना। ६. मालखंभ में एक प्रकार की कसरत या क्रिया। ७. कलाई। पहुँचा। | 
			
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				| उड़ाना					 : | स० [हिं० उड़ना का स०और प्रेरणार्थक रूप] १. जो उड़ना जानता हो,उसे उडऩे में प्रवृत्त करना। जैसे—(क) खेत में बैठी हुई चिड़ियों को उड़ाना। (ख) शरीर पर बैठा हुआ मच्छर या मक्खी उड़ाना। (ग) खेल,तमाशे या शौक के लिए कबूतर उड़ाना आदि। २. जो चीज हवा में उठकर इधर-उधर आ जा सकती हो,उसे हवा में उठा कर गति देना। ऐसी क्रिया करना जिससे कोई चीज हवा में उड़ने या चलने लगे। जैसे—गुड्डी उड़ाना,हवाई जहाज उड़ाना आदि। उदाहरण—चहत उड़ावन फूँकि पहारू।—तुलसी। ३. कोई चीज इतनी तेजी के चलाना कि वह हवा में उड़ती सी हुई जान पड़े। जैसे—वह घोड़ा (या मोटर) उड़ाता चला जा रहा था। ४. ऐसा आघात या प्रहार करना कि कोई चीज या उसका कोई अंश कटकर अलग हो जाय या दूर जा पड़े। जैसे—(क) हथेली पर नीबू रखकर उसे तलवार से उड़ाना। (ख) तलवार से किसी का सिर या बारूद से पहाड़ की चट्टान उड़ाना। ५. ऐसा आघात या प्रहार करना जो ऊपर से उड़कर नीचे आता हुआ जाना पड़े। कसकर या जोर से जमाना या लगाना। जैसे—(क) राह-चलतों ने भी उन बेचारों पर दो —चार हाथ उड़ा दिये। (ख) जहाँ पुलिस ने दो-चार बेंत उड़ाये,तहाँ वह सब बातें बतला देगा। ६. ऐसा आघात या प्रहार करना कि कोई चीज पूरी तरह से छिन्न-भिन्न या नष्ट-भ्रष्ट हो जाय। चौपट या बरबाद करना। जैसे—तोपों की मार से गाँव या नगर उड़ाना, बारूद से पुल उड़ाना आदि। ७. न रहने देना। मिटा देना। जैसे—(क) सूची में से नाम उड़ाना। (ख) कपड़े पर से स्याही का धब्बा उड़ाना आदि। ८. (किसी वस्तु या व्यक्ति को) कहीं से इस प्रकार हटा ले जाना कि किसी को पता न चले। जैसे—(क) किसी दुकान से किताब, घड़ी या धोती उड़ाना। (ख) कहीं से कोई औरत उड़ाना आदि। ९. लाक्षणिक रूप में, केवल दूर से देखकर (चालाकी या चोरी से) किसी की कोई कला-कौशल, विद्या, शिल्प आदि इस प्रकार समझ और सीख लेना कि सहज में उसका अनुकरण या आवृत्ति की जा सके। जैसे—तुम्हारी यह विद्या तो कहीं से उड़ाई हुई जान पड़ती है। १. बहुत निर्दय या निर्भय होकर किसी चीज या बात का मनमाना उपयोग, व्यय आदि करना। जैसे—दो ही बरसों में उसने लाखों की संपत्ति उड़ा दी। ११. केवल सुख-भोग के विचार से किसी चीज या बात का अनुचित रूप से और आवश्यकता से अधिक उपयोग या व्यवहार करना। जैसे—मिठाई या हलुआ-पूरी उड़ाना, किसी के साथ मजा या मौजें उड़ाना आदि। १२. वार्त्ता, समाचार आदि ऐसे ढंग से और इस उद्देश्य से लोक में प्रचलित करना कि वह दूर-दूर तक फैल जाय। जैसे—किसी के भाग जाने या मरने की झूठी खबर उड़ाना। १३. उधर-इधर की या उलटी-सीधी बातें बनाकर ऐसी स्थिति उत्पन्न करना कि लोग धोखे में रहें और असल बात तक पहुँच न सकें। बातें बनाकर चकमा या भुलावा देना। जैसे—(क) (क) फिर तुम लगे हमें बातों में उड़ाने। (ख) तुम्हारें जैसे उड़ाने वाले बहुत देखे है। अ=उड़ना। उदाहरण—लरिकाँई जँह-जँह फिरहिं तँह-तँह संग उड़ाउँ।—तुलसी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उड़ायक					 : | वि० [हिं० उड़ान+क(प्रत्यय)] १. हवा में कोई चीज उड़ानेवाला। २. उड़ने या उडाने की कला में प्रवीण या कुशल। ३. गुड्डी या पतंग उड़ानेवाला। ४. दे० ‘उड़ाका’।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उड़ाव					 : | पुं० =उड़ान।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उड़ावनी					 : | स्त्री०=ओसाई (अन्न की)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उड़ास					 : | स्त्री०- [सं० उद्धास] १. झील,तालाब,नदी आदि के किनारे बना हुआ घर या प्रासाद। २. रहने की जगह। निवास स्थान।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उड़ासना					 : | स० [सं० उद्धासन] १. बिछा हुआ बिछौना उलटकर समेटना। २. तहस-नहस या नष्ट-भ्रष्ट करना। उजाड़ना। ३. शांतिपूर्वक बैठने या रहने में विघ्न डालना। | 
			
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				| उड़िया					 : | वि० [सं० ओड] उड़ासी में बनने या होनेवाला। उड़ीसा का। पुं० उड़ीसा देश का निवासी। स्त्री० उड़ासी प्रदेश की भाषा जो बँगला से बहुत कुछ मिलती-जुलती है। | 
			
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				| उड़ियाना					 : | पुं० [?] २२ मात्राओं का एक छंद। | 
			
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				| उड़िल					 : | पुं० [सं० ऊर्ण+हिं० इल (प्रत्यय)] भेंड़ जिसके बाल काटे न गये हों। (भूड़िल का विपर्याय)। | 
			
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				| उड़ी					 : | स्त्री० [हिं० उड़ना] १. उड़ने की क्रिया या भाव। उड़ान। २. एक प्रकार की कलाबाजी जो मालखंभ में होती है। | 
			
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				| उड़ीयण					 : | पुं० [सं० उडु-गण] तारों का समूह। तारागण। उदाहरण—उड़ीयण नीरज अंब हरि।—प्रिथीराज। | 
			
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				| उड़ीसा					 : | पं० [सं० ओड्र+देश] भारत का एक राज्य जो बंगाल के दक्षिण और आंध्र के उत्तर में पड़ता है। | 
			
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				| उड़ुबर					 : | पुं० =उदुंबर। | 
			
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				| उडु					 : | पुं० [सं० उ√डी (उड़ना)+डु] १. आकाश का कोई तारा या नक्षत्र। २. चिड़िया। पक्षी। ३. जल। पानी। | 
			
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				| उडुचर					 : | पुं० [सं० उडु√चर् (गति)+ट] १. तारा या नक्षत्र। २. पक्षी। | 
			
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				| उडुप					 : | पुं० [सं० उडु√पा (रक्षा करना)+क] १. नदी पार उतरने के लिए बाँसों में घड़े बाँधकर बनाया हुआ ढाँचा। घड़नई। २. नाव। नौका। ३. चंद्रमा (विशेषतः अर्द्ध चंद्रमा, जिसका आकार नाव जैसा होता है) ४. भिलावाँ। ५. बड़ा गरुड़। पुं० [हिं० उड़ना] एक प्रकार का नृत्य। | 
			
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				| उडु-पति					 : | पुं० [सं० ष० त०] १. तारिकाओं का पति या स्वामी। चंद्रमा। २. सोम (लता या उसका रस)। | 
			
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				| उडुराई					 : | पुं० =उडुराज (चंद्रमा)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उडुराज					 : | पुं० =उडुपति (चंद्रमा)। | 
			
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				| उडुस					 : | पुं० [हिं० उड़ासना या सं० उद्दंश] खटमल नामक कीड़ा। | 
			
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				| उड़ेरना					 : | स०=उँड़ेलना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उड़ैच					 : | पुं० [हिं० उड़ना+ऐंच(प्रत्यय)] १. कपट या दुराव से युक्त। व्यवहार। २. मन में रहनेवाला द्वेष। | 
			
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				| उड़ैना					 : | पुं० [हिं० उड़ना] [स्त्री० अल्पा० उड़ैनी] खद्योत। जुगनू। वि० उड़नेवाला।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उड़ौहाँ					 : | वि० [हिं० उड़ना+आहौं(प्रत्यय)] उड़नेकी प्रवृत्ति रखने या प्रायः उड़ता रहनेवाला। | 
			
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				| उड्ड					 : | पुं० =उडु।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उड्डयन					 : | पुं० [सं० उद्√डी+ल्युट्-अन] [वि० उड्डीन] आकाश में उड़ने की क्रिया या भाव। | 
			
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				| उड्डीन					 : | वि० [सं० उद्√डी+क्त] आकाश में उड़नेवाला। पुं० =उड्डयन। | 
			
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				| उड्डीयमान					 : | वि० [सं० उद्√डी+शानच्] आकाश में उड़ता हुआ। | 
			
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				| उड्डीश					 : | पुं० [सं० उद्√डी+क्विप्, उड्डी-ईष, ष० त०] १. शिव। २. शिव-तंत्र। | 
			
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				| उढ़					 : | पुं० दे० ‘बिजूखा’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उढ़कन					 : | पुं० [हिं० उढ़कना] १. वह चीज जो किसी दूसरी चीज को गिरने या लुढ़कने से रोकने के लिए उसके साथ लगाई जाय। टेक। २. ऐसी चीज जो रास्ते में पड़कर ठोकर लगाती हो। | 
			
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				| उढ़कना					 : | अ० [देश] १. पीठ की तरफ टेक या सहारा लगाकर बैठना। २. मार्ग में चलते समय ठोकर खाना। | 
			
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				| उढ़काना					 : | स० [हिं० उढ़कना] किसी वस्तु को किसी दूसरी वस्तु के सहारे खड़ा करना। | 
			
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				| उढ़रना					 : | अ० [सं० ऊढ़ा (=विवाहित) से] विवाहिता स्त्री का पर-पुरुष के साथ भागना। | 
			
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				| उढ़री					 : | स्त्री० [हिं० उढ़रना] भगाकर लाई हुई स्त्री। रखेली। | 
			
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				| उढ़ाना					 : | स० दे० ‘ओढ़ाना’। स=ओढ़ना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उढ़ारना					 : | स० [अ० उढ़रना का स० रूप] दूसरे की स्त्री को निकाल या भगा लाना। स० [सं० उद्धारण] उद्धार करना। | 
			
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				| उढ़ावनी					 : | ओढ़नी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उढ़ुकना					 : | अ०=उढ़कना। | 
			
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				| उढ़ौनी					 : | स्त्री०=ओढ़नी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उण					 : | सर्व०=उन (उस का बहु०)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उणारथ					 : | पुं० [हिं० ऊन-कमी] १. कमी। त्रुटि। २. अपेक्षा। (राज०) ३. कामना। लालसा। उदाहरण—म्हाराँ मन री उणारथ भागी रे।—मीराँ। | 
			
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				| उत्					 : | उप० [सं०√उ (शब्द करना)+क्विप्] एक संस्कृत उपसर्ग जो शब्दों में लगकर ये अर्थ देता है-(क) ऊपर की उठना या जाना। जैसे—उत्कर्ष। (ख) अधिकता या प्रबलता। जैसे—उत्कट, उत्तप्त। (ग) भिन्न या विपरीत। जैसे—उत्पथ, उत्सूत्र। संधि के नियमों के अनुसार कही-कहीं इसका रूप उद् भी हो जाता है। जैसे—उदबुद्ध, उद्गमन आदि। | 
			
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				| उतंक					 : | पुं० [सं० उत्तक्क] एक प्राचीन ऋषि का नाम। वि० [सं० उत्तुंग] ऊँचा। | 
			
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				| उतंत					 : | वि० [सं० उत्तुंग] भरा-पूरा। समृद्ध। उदाहरण—भइ उतंत पदमावति बारी।—जायसी। वि० दे० ‘उत्पन्न’।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उतंथ					 : | पुं० =उतथ्य। | 
			
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				| उत					 : | क्रि० वि० [हिं० उ+त (स्थानवाचक)] उस दिशा में। उस ओर। उधर।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उतकरष					 : | पुं०=उत्कर्ष।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उतथ्य					 : | पुं० [सं० ] एक प्राचीन ऋषि जो बृहस्पति के बड़े भाई और गौतम के पिता थे। | 
			
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				| उतन					 : | अव्य० [हिं० उ+तनु] उस दिशा में। उस ओर। उधर। | 
			
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				| उतना					 : | वि० [हिं० उत-उधर या पर वक्ष में+ना प्रत्यय] १. एक सार्वनामिक विशेषण जो इतना का पर-पक्ष रूप है, और जो उस मात्रा, मान या संख्या का सूचक होता है, जिसका उल्लेख, चर्चा या निर्धारण पहले हो चुका हो अथवा जिसका संबंध किसी दूरी या पर-पक्ष से हो। उस मात्रा या मान का। जैसे—(क) वहाँ हमें इतना रास्ता पार करने में सारा दिन लग गया था। (ख) इतना अंश हमारा है और उतना उसका। २. जितना का नित्य संबंधी और पूरक रूप। जैसे—जितना कहा जाय, उतना किया करो। ३. इतना की तरह क्रिया-विशेषण रूप में प्रयुक्त होने पर, उस परिमाण या मात्रा में। जैसे—उस समय तुम्हारा उतना डरना (या दबना) ठीक नहीं हुआ। | 
			
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				| उतन्न					 : | पुं० [अ० वतन] १. जन्म-भूमि। २. निवास स्थान। उदाहरण—तीहां देस विदेस सम,सीहाँ किसा उतन्न।—बाँकीदास। | 
			
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				| उतन्ना					 : | पुं० [हिं० उतना=ऊपर+ना प्रत्यय] कान के ऊपरी भाग में पहना जानेवाला बाला की तरह का एक गहना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उतपति					 : | स्त्री० १. =उत्पत्ति। २. =सृष्टि।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उतपनना					 : | अ० [सं० उत्पन्न] उत्पन्न या पैदा होना। | 
			
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				| उतपन्न					 : | वि० =उत्पन्न।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उत्पाटना					 : | स० [सं० उत्पाटन] १. उखाड़ना। २. नष्ट-भ्रष्ट करना। | 
			
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				| उतपात					 : | पुं० =उत्पात।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उतपातना					 : | स०=उतपादना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उतपादना					 : | स० [सं० उत्पादन] उत्पन्न या उत्पादन करना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उतपानन					 : | स० [सं० उत्पन्न] उत्पन्न करना। उपजाना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उतपाना					 : | स० [सं० उत्पादन] १. उत्पादन करना। २. उत्पन्न करना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उतबंग ( मंग)					 : | पुं० [सं० उत्तमांग] मस्तक। सिर। (डिं०)(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उतरंग					 : | पुं० [सं० उत्तरंग] वह लकड़ी या पत्थर की पटरी जो दरवाजे में चौखट के ऊपर बड़े बल में लगी रहती है। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उतर					 : | पुं० =उत्तर।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उतर-अयन					 : | पुं० =उत्तरायण।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उतरन					 : | स्त्री० [हिं० उतरना] वह (कपड़ा या गहना) जो किसी ने कुछ दिनों तक पहनने के बाद पुराना समझकर उतार या छोड़ दिया हो। पुं० दे०‘उतरंग’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उतरना					 : | अ० [सं० अवतरण, प्रा० उत्तरण] १. ऊपर से नीचे की ओर आना या जाना। जैसे—(क) गले के नीचे भोजन उतरना। (ख) स्तन में या स्तन से दूध उतरना। (ग) अंड-कोश में पानी उतरना। मुहावरा—(कोई बात किसी के) गले के नीचे उतरना=ध्यान, मन या समझ में आना। जैसे—उसे लाख समझाओं पर कोई बात उसके गले के नीचे उतरती ही नहीं। २. किसी वस्तु या व्यक्ति का ऊपर के या ऊँचे स्थान से क्रमशः प्रयत्न पूर्वक नीचे की ओर आना। निम्नगामी होना। अवतरण करना। जैसे—आकाश से पक्षी या वायुयान उतरना, घर की छत पर से नीचे उतरना। ३. यान, वाहन या सवारी पर से आरोही का नीचे आना। जैसे—घोड़े, नाव, पालकी या रेल पर से लोगों का उतरना। ४. किसी उच्च स्तर या स्थिति से अपने नीचे वाले प्राधिक,सामान्य या स्वाभाविक स्तर, स्थिति आदि की ओर आना। कम या न्यून होना। घटना। जैसे—ज्वर या ताप उतरना,नदी या बाढ़ का पानी उतरना, गाँजे या भाँग का नशा उतरना। ५. किसी पद या स्थान से खिच, खिसक या गिरकर अथवा किसी प्रकार अलग होकर नीचे आना। जैसे—(क) तलवार से कटकर करदन या कैंची से कटकर सिर के बाल उतरना। (ख) बकरे (या भैसे) की खाल उतरना। (ग) खींचा-तानी या लड़ाई-झगड़े में कंधे या कलाई की हड्डी उतरना। (घ) अपने दुराचार या दुर्व्यवहार के कारण किसी के चित्त से उतरना। ६. किसी अंकित नियत या स्थिर स्तर से नीचे आना। जैसे—(क) विद्यालय में लड़के का दरजा उतरना। (ख) ताप-मापक यंत्र का पारा उतरना। (ग) बाजार में चीजों का भाव उतरना। (घ) गाने में गवैये का स्वर उतरना। मुहावरा—(किसी से) उतरकर होना=योग्यता, श्रेष्ठता आदि के विचार से घटिया या हलका होना। ७. आकाश या स्वर्ग से अवतार, देवदूत आदि के रूप में इस लोक में आना। जैसे—समय-समय पर अनेक अलौकिक महापुरुष इस लोक में उतरते रहते हैं। ८. कहीं से आकर किसी स्थान पर टिकना, ठहरना या रूकना। डेरा डालना। जैसे—(क) धर्मशाला या बगीचें में बारात उतरना। (ख) किसी के घर मेहमान बनकर उतरना। ९. तत्परता या दृढ़तापूर्वक कोई काम करने के लिए उपयुक्त क्षेत्र में आना। जैसे—(क) पिछले महायुद्ध में प्रायः सभी बड़े राष्ट्र युद्ध क्षेत्र में उतर आये थे। (ख) अब वे कहानियाँ लिखना छोड़कर आलोचना (या कविता) के क्षेत्र में उतरे हैं। १. किसी पदार्थ के उपयोगी, वांछित या सार भाग का किसी क्रिया से खींचकर बाहर आना। जैसे—भभके से किसी चीज का अरक उतरना, उबालने से पानी में किसी चीज का तेल, रंग या स्वाद उतरना। ११. शरीर पर धारण की हुई या पहनी हुई वस्तु का वहाँ से हटाये जाने पर अलग होना। जैसे—कपड़ा, जूता या मोजा उतरना। १२. अपनी पूर्व स्थिति से नष्ट-भ्रष्ट पतित या विलुप्त होना। जैसे—कोई बात चित्त से उतरना (याद न रहना) सबके सामने आबरू या इज्जत उतरना। मुहावरा—(किसी व्यक्ति का) किसी के चित्त से उतरना=अपने दुराचार, दुर्व्यवहार आदि के कारण किसी की दृष्टि में उपेश्र्य और हीन सिद्ध होना। किसी की दृष्टि मे आदरणीय न रह जाना। जैसे—जब से वे जूआ खेलने (या झूठ बोलने) लगे, तबसे वे हमारे चित्त से उतर गये। १३. अंत या समाप्ति की ओर आना या होना। जैसे—(क) उन दिनों उनकी अवस्था उतर रही थी। (ख) अब हस्त नक्षत्र (या सावन का महीना) उतर रहा है। मुहावरा—उतर आना=(क) किसी बड़े काल विभाग या पक्ष का पूरा या समाप्त हो जाना। जैसे—अब यह पक्ष (या वर्ष) भी उतर जायगा। (ख) संतान के पक्ष में, मर जाना। मृत्यु हो जाना। (स्त्रियाँ) जैसे—इसके बच्चे हो-होकर उतर जाते है। १४. घटाव या ह्रास की ओर आना या होना। जैसे—(क) धीरे-धीरे उसका ऋण उतर रहा है। (ख) अब इस कपड़े (या तस्वीर) का रंग उतरने लगा है। १५. किसी प्रकार के आवेश का मंद पड़कर शांत या समाप्त होना। जैसे—क्रोध या गुस्सा उतरना, झक या सनक उतरना। १६. फलों, फूलों आदि का अच्छी तरह से पक या फूल चुकने के बाद सड़न की ओर प्रवृत्त होना। जैसे—कल तक यह आम (या खरबूजा) उतर जायगा। १७. किसी प्रकार कुम्हला या मुरझा जाना अथवा श्रीहीन होना। प्रभा से रहित होना। जैसे—फटकारे जाने या भेद खुलने पर किसी का चेहरा या मुँह उतरना। १८. बाजों के संबंध में, जितना कसा, चढ़ा या तना रहना चाहिए, उससे कसाव या तनाव कम होना। (और फलतः उनसे अपेक्षित या वांछित स्वर ना निकलना) जैसे—तबला या सारंगी जब उतर जाय, तब उसे तुरंत (कस या तानकर) मिला लेना चाहिए। (उसमें उपयुक्त तनाव या कसाव ले आना चाहिए)। १९. क्रमशः तैयार होने या बननेवाली चीजों का तैयार या बनकर काम में आने या बाजार में जाने के योग्य होना। जैसे—(क) पेड़-पौधों से फल-फूल उतरना। करघे पर से थान या धोतियाँ उतरना, भट्ठी पर से चाशनी या पाग उतरना। २॰ अनुकृति, प्रतिकृति, प्रतिच्छाया, प्रतिलिपि, लेख आदि के रूप में अंकित या प्रस्तुत होना। नकल बनना या होना। जैसे—(क) किसी आदमी की तस्वीर या किसी जगह का नक्शा उतरना। (ख) खाते या बही में लेखा या हिसाब उतरना। २१. अनुकूल, उपयुक्त, ठीक या पूरा होना। जैसे—(क) यह कड़ा तौल में पूरा पाँच तोले उतरा है। (ख) यह काम उमसे पूरा न उतरेगा। २२. प्राप्य धन प्राप्त होना। उगाहा जाना या वसूल होना। जैसे—आजकल चंदा (या लहना) उतरना बहुत कठिन हो गया है। २३. शतरंज के खेल में प्यादे या सिपाही का आगे बढ़ते-बढ़ते विपक्षी के किसी ऐसे घर में पहुँचना जहाँ उस घर के मरे हुए मोहरे की जगह फिर से नया मोहरा बन जाता है। जैसे—हमारा यह व्यादा अब उतरकर वजीर (या हाथी) बनेगा। अ० [सं० उत्तरण] नाव आदि की सहायता से किसी जलाशय (तालाब, नदी, नाले आदि) के उस पार पहुँचना। जैसे—धीरज धरहिं सो उतरहिं पारा।—तुलसी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उतरवाना					 : | स० [हिं० उतरना का प्रे० रूप] किसी को कुछ उतारने में प्रवृत्त करना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उतरहा					 : | वि० [हिं० उत्तर +हा (प्रत्य०] उत्तर दिशा का। उत्तरी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उतराँही					 : | स्त्री० [हिं० उत्तर (दिशा)] उत्तर दिशा से आनेवाली हवा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उताराई					 : | स्त्री० [हिं० उतरना] १. उतरने या उतराने की क्रिया या भाव। २. किसी चीज या व्यक्ति को नदी आदि पार उतारने या पहुँचाने कि लिए लगनेवाला कर या पारिश्रमिक। उदाहरण—पद कमल धोइ चढ़ाइ, नाव, न नाथ उताराई चहौं।—तुलसी। ३. रास्ते में पड़ने वाला उतार या ढाल। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उतराना					 : | अ० [सं० उत्तरण] १. पानी में पड़ी हुई चीज का उसके ऊपर तैरना। २. पानी में डूबी हुई चीज का फिर से पानी के ऊपर आना। ३. विपत्ति या संकट से उद्धार पाना। पद-डूबना उतराना=चिंता, संकट आदि की स्थिति में कभी निऱाश होना और कभी उद्धार का मार्ग देखना। स० १. डूबे हुए को पानी के ऊपर लाना और रखना। तैराना। २. संकट आदि से मुक्त करना। उद्धार करना। उदाहरण—ऐसौ को जु न सरन गहे तै कहत सूर उतरायौ।—सूर। ३. दे० ‘उतरवाना’। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उतरायल					 : | वि० [हिं० उतरना या उतराना] अच्छी तरह पहन चुकने के बाद उतारा हुआ (कपड़ा गहना आदि)। पुं० =उतरन। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उतरारी					 : | वि० [सं० उत्तर+हिं० वारी] उत्तरी दिशा का। उत्तर का।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उतराव					 : | पुं० [हिं० उतरना] रास्ते में पड़ने वाला उतार। ढाल। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उतरावना					 : | स० १. दे० उतारना। २. दे० ‘उतरवाना’। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उतराहा					 : | वि० [सं० उत्तर+हा (प्रत्यय)] उत्तर दिशा का। उत्तर का।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उतरिन					 : | वि०=उऋणी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उतरु					 : | पुं० =उत्तर (जवाब)। उदाहरण—जाइ उतरू अब देहरू काहा।—तुलसी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उतरौहाँ					 : | वि० [सं० उत्तर+हा (प्रत्यय)] उत्तर दिशा का। उत्तरी। क्रि० वि० उत्तर दिशा की ओर। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उतलाना					 : | अ० [हिं० आतुर] १. आतुर होना। २. उतावली करना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उतल्ला					 : | वि=उतायल। पुं० =उपल्ला।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उतसाह					 : | पुं० =उत्साह। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उतहसकंठा					 : | स्त्री०=उत्कंठा।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उताइल					 : | अव्य० [हिं० उतावला का पुराना रूप] १. उतावलेपन से। २. जल्दी या शीघ्रता से। उदाहरण—चला उताइल त्रास न थोरी।—तुलसी। स्त्री० उतावली। जल्दीबाजी। वि०=उतावला।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उताइली					 : | स्त्री०=उतावली।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उतान					 : | वि० [सं० उत्तान] पीठ के बल लेटा हुआ। चित्त। उदाहरण—जिमि टिट्टिभ खग सूत उताना-तुलसी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उतामला					 : | वि० =उतावला। उदाहरण— देखताँ पथिक उतामला दीठा।—प्रिथीराज। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उतायल					 : | वि०=उतावला।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उताइली					 : | स्त्री०=उतावली।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उतार					 : | पुं० [हिं० उतरना, उतारना] १. उतरने (नीचे की ओर आने) या उतारने (नीचे की ओर लाने) की क्रिया, भाव या स्थिति। २. किसी चीज या बात के नीचे की ओर चलने या होने की प्रवृत्ति। ढाल। नति। जैसे—अब आगे चलकर इस पहाड़ी का उतार पड़ेगा। ३. परिमाण, मात्रा, मान आदि में उत्तरोत्तर या क्रमशः होनेवाली कमी, घटाव या ह्रास। जैसे-ज्वर, नदी, बाजार-भाव या स्वर का उतार। ४. किसी चीज या बात का वह पिछला अंग या अंश जो प्रायः अंत या समाप्ति की ओर पड़ता हो। जैसे—गरमी या सरदी का उतार। ५. ऐसी चीज जो कोई उग्र आदेश या वेग करने में उपयोगी अथवा सहायक हो। मारक। (एन्टि-डोट) जैसे—(क) भाँग का उतार खटाई है। (ख) उनके गुस्से (या सेखी) का उतार हमारे पास है। ६. नदी के किनारे की वह जगह जहाँ यात्री नाव से उतरते है। ७. दे० उतारा। ८. दे० उतरन। वि० अधम। नीच। पतित। उदाहरण—अपत, उतार, अपकार को उपकार जग०००-तुलसी। | 
			
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				| उतार-चढ़ाव					 : | पुं० [हिं० उतरना+चढ़ना] १. नीचे उतरने और ऊपर चढ़ने की अवस्था, क्रिया या भाव। २. ऐसा तल या स्थिति जिसमें कही-कहीं उतार हो और कहीं कहीं-चढ़ाव। तल में होनेवाली विषमता। ३. किसी वस्तु के मान, मूल्य, स्तर आदि का बराबर घटते-बढ़ते रहना। (फ्लक्चुएशन)। | 
			
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				| उतारन					 : | पुं० [हिं० उतारना] १. फटा-पुराना कपड़ा जो कुछ दिनों तक पहनने के बाद उतारकर छोड़ दिया गया हो। २. उच्छिष्ट और निकृष्ट वस्तु। ३. वह चीज जो टोने-टोटेके रूप में किसी पर से उतारकर या निछावर करके अलग की गई हो। | 
			
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				| उतारना					 : | स० [सं० उत्तारण] १. हिंदी उतरना का सकर्मक रूप। किसी को उतरने में प्रवृत्त करना। ऐसा काम करना जिससे कुछ या कोई नीचे उतरे। जैसे—कुएँ या सुरंग में आदमी उतरना। २. नाव आदि की सहायता से नदी के पार पहुँचना। उदाहरण—तब लगि न तुलसीदास नाथ कृपालु पार उतारिहौं।—तुलसी। ३. प्रयत्नपूर्वक कोई चीज ऊँचे स्थान से नीचे स्थान पर लाना या ले जाना। नीचे करना या रखना। जैसे—गाड़ी पर से सवारी या सामान उतारना, सिर पर से बोझ उतारना। मुहावरा—(किसी के) गले में कोई बात उतारना=इस प्रकार अच्छी तरह समझाना-बुझाना कि कोई बात किसी के मन में जम या बैठ जाए। ४. परिणाम या मान कम करके या और किसी उच्च स्तर या स्थिति से नीचे वाले स्तर या स्थिति में लाना। जैसे—चढ़ा हुआ नशा या बुखार उतारना, किसी चीज की दर या भाव उतारना। ५. किसी पद या स्थान से काट, खोल, तोड़ या निकालकर अलग करना या नीचे लाना। जैसे—तलवार से किसी का सिर उतारना, कमरे में लगी हुई घड़ी उतारना, पेड़-पौधों पर से फूल-फल उतारना। ६. किसी अंकित या नियत पद या विभाग से उसके नीचेवाले पद या विभाग में लाना। जैसे—कर्मचारी या विद्यार्थी का दरजा उतारना। ७. आकाश या स्वर्ग से अवतार आदि के रूप में प्रयत्नपूर्वक इस लोक में लाना। जैसे—इस लोक में प्राणियों के कष्ट दूर करने के लिए देवता लोग राम को पृथ्वी पर उतार लाये। ८. किसी को किसी स्थान पर लाकर टिकाना या ठहराना। जैसे—महासभा के अवसर पर चार अतिथियों को तो हम अपने यहाँ उतार लेंगें। ९. कोई काम करने के लिए किसी को किसी क्षेत्र में लाना या पहुँचाना। किसी को विशिष्ट कार्य की ओर प्रवृत्त करना। जैसे—महात्मा गाँधी ने हजारों नये लोगों को राजनीतिक क्षेत्र में उतारा था। १. किसी पदार्थ या आवश्यक या उपयोगी अंश या सार भाग किसी क्रिया से निकालकर नीचे या बाहर लाना। जैसे—किसी वनस्पति का अरक या रंग उतारना। ११. शरीर पर धारम की हुई चीज अलग करके नीचे या कहीं रखना। जैसे—कुरता, टोपी या धोती उतारना। मुहावरा—किसी की पगड़ी उतारना=(क) किसी को अप्रतिष्ठित या अपमानित करना। (ख) किसी से बहुत अधिक धन ऐंठना या वसूल करना। १२. ध्यान, विचार आदि के पक्ष में, अपनी पूर्व स्थिति में वर्त्तमान स्थित न रहने देना। जैसे—अब पिछली बातें मन से उतार दो। १३. कमी, घटाव या ह्रास की ओर ले जाना। जैसे—अब तो वे जल्दी-जल्दी अपना ऋण उतार रहे हैं। १४. किसी प्रकार का आवेग या वेग मंद अथवा शांत करना। जैसे—मीठी-मीठी बातों से किसी का गुस्सा उतारना, किसी के सिर पर चढ़ा हुआ भूत उतारना। १५. शोभा, श्री आदि से रहित या हीन करना। जैसे—आपने मेरी बात पर हँसकर उनका चेहरा (या चेहरे का रंग) उतार दिया। १६. बाजों आदि के पक्ष में, उनका तनाव या कसाव कम करना। जैसे—बजा चुकने के बाद बीन या सितार उतार देनी चाहिए। १७. करण, यंत्र आदि के द्वारा बननेवाली चीजों को तैयार करके पूरा करना। जैसे—खराद पर से थालियाँ या लोटे उतारना। १८. अनुकृति, प्रतिकृति, प्रतिलिपि आदि के रूप में अंकित या प्रस्तुत करना। बनाना। जैसे—किसी की तसवीर उतारना, निबंध या लेख की नकल उतारना। मुहावरा—किसी व्यक्ति की नकल उतारना=उपहास परिहास आदि के लिए किसी को अंग-भंगी, बोल-चाल, रंग-ढंग आदि का अनुकरण या अभिनय करके दिखलाना। १९. कर्म-कांड, टोने-टोटके आदि के क्षेत्र में, किसी प्रकार के उपचार के रूप में कोई चीज किसी के सामने या उसके ऊपर से चारों ओर घुमाना-फिराना। जैसे—देवी-देवताओं की आरती उतारना, किसी पर से राई-नोन उतारना। २0० कोई काम ठीक तरह से पूरा करना या उचित रूप से अंत या समाप्ति की ओर ले जाना। जैसे—(क) तुम यह छोटा-सा काम भी पूरा न कर सके। (ख) वह कचौरी, पूरी मजे में उतार लेता है (तल या पकाकर तैयार कर लेता है)। २१. घम-घूमकर चारों ओर से धन इकट्ठा करना। वसूल करना। उगाहना। जैसे—चंदा या बेहरी उतारना। २२. शतंरज के खेल में अपना प्यादा आगे बढ़ाते हुए ऐसे घर में पहुँचाना जहाँ वह उस घर का मोहरा बन जाए। जैसे—तुमने तो अपना प्यादा उतारकर घोड़ा बना लिया। | 
			
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				| उतारा					 : | पुं० [हिं० उतरना] १. नदी आदि से पार उतरने की क्रिया या भाव। २. किसी स्थान पर उतरने (टिकने या ठहरने) की क्रिया या भाव। डेरा या पड़ाव डालना। ३. वह स्थान जहाँ पर कोई (विशेषतः यात्री) अस्थायी रूप से उतरे, टिके या ठहरे। डेरा। पड़ाव। पद-उतारे का झोपड़ा=यात्रियों के टिकने का स्थान। विश्रामालय। पुं० [हिं० उतारना] १. नदी आदि पार कराने की क्रिया या भाव। २. यात्री, सामान आदि नदी के पार उतराने का पारिश्रमिक। ३. नदी के किनारे का वह स्थान जहाँ नाव से यात्री या सामान उतारे जाते हैं। ४. वह रुपया-पैसा आदि जो किसी मांगलिक अवसर पर किसी के चारों ओर घुमाकर नाऊ आदि को दिया जाता है। ५. भूत-प्रेत, रोग आदि की बाधा के निवारण के लिए टोने-टोटके के रूप में किसी व्यक्ति के चारों ओर कुछ सामग्री उतार या घुमाकर अलग रखना। ६. उक्त प्रकार से उतारकर रखी जानेवाली सामग्री। ७. फटे-पुराने या उतारे हुए कपड़े जो गरीबों, नौकरों आदि को पहनने के लिए दिये जाते हैं। उतारन। | 
			
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				| उतारू					 : | वि० [हिं० उतरना] किसी काम या बात के लिए विशेषतः किसी अनुचित या निंदनीय काम या बात के लिए उद्यत या तत्पर। जैसे—गालियों या चोरी-चमारी पर उतारू होना। पुं० मुसाफिर। यात्री। (लश०)। | 
			
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				| उताल					 : | स्त्री० [सं० उद्+त्वर] जल्दी। वि० [सं० उत्ताल] १. तीव्र। तेज। २. फुरतीला। ३. उतावला। जल्दबाज। क्रि० वि० जल्दी से। शीघ्रतापूर्वक।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उतालक					 : | क्रि० वि० [हिं० उताला] जल्दी से। चटपट। तुरंत। उदाहरण—बथुआ राँधि लियौ जु उतालक।—सूर। | 
			
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				| उताला					 : | वि०=उतावला।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उताली					 : | स्त्री०=उतावली। क्रि० वि० जल्दी से। | 
			
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				| उतावल					 : | क्रि० वि० [सं० उद्+त्वर] जल्दी-जल्दी। शीघ्रता से। वि० दे० उतावला।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उतावला					 : | वि० [सं० आतुर या उत्ताल ?] [स्त्री० उतावली] १. जो किसी काम के लिए बहुत आतुर हो। २. जो हर काम में जल्दी मचाता हो। उत्सुकतापूर्वक जल्दी मचानेवाला। ३. जो बिना समझे-बूझे तथा आवेश में आकर कोई काम करने के लिए तत्पर हो जाय। | 
			
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				| उतावली					 : | स्त्री० [सं० उद्+त्वर] १. उतावले होने की अवस्था या भाव। २. किसीकाम के लिए मचाई जानेवाली जल्दी। ३. व्यग्रता। | 
			
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				| उताहल					 : | वि० =उतावला। क्रि० वि० जल्दी से। | 
			
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				| उताहिल					 : | वि० =उतावला। क्रि० वि० जल्दी से।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उतिम					 : | वि० =उत्तम।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उती					 : | अव्य० [हिं० उत] उधर। उस ओर। उदाहरण—तव उती नाहीं कोई।—गोरखनाथ। | 
			
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				| उतृण					 : | वि० =उऋण। | 
			
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				| उतै					 : | अव्य० [हिं० उत] उधर। उस ओर। वहाँ।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उतैला					 : | वि०=उतावला। पुं० [देश] उड़द। उर्द।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उत्कंठ					 : | वि० [सं० उत्-कंठ, ब० स०] १. जिसने गरदन ऊपर उठाई हो। २. जिसे उत्कंठा हो। उत्कंठित। क्रि० वि० १. गरदन ऊपर उठाए हुए। २. उत्कंठापूर्वक। | 
			
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				| उत्कंठा					 : | स्त्री० [सं० उद्√कण्ठ् (अत्यंत चाह)+अ-टाप्] [वि० उत्कंठित] १. कोई काम करने या कुछ पाने की प्रबल इच्छा। उत्कट या तीव्र अभिलाषा। चाव। (लांगिंग) २. किसी कार्य के होने में विलंब न सहकर उसे चटपट करने की अभिलाषा। (साहित्य) | 
			
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				| उत्कंठातुर					 : | वि० [सं० उत्कंठा-आतुर, तृ० त०] जो कोई प्रबल या तीव्र अभिलाषा पूरी करने के लिए उत्कंठा के कारण आतुर हो। उदाहरण—मैं चिर उत्कंठातुर।—पंत। | 
			
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				| उत्कंठित					 : | वि० [सं० उत्कंठा+इतच्] जिसके मन में कोई तीव्र या प्रबल अभिलाषा हो। उत्कंठा या चाव से भरा हुआ। | 
			
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				| उत्कंठिता					 : | स्त्री० [सं० उत्कंठित+टाप्] साहित्य में वह नायिका जो संकेतस्थल में अपने प्रेम के न पहुँचने पर उत्कंठापूर्वक उसकी प्रतीक्षा करती हो। | 
			
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				| उत्कंप					 : | पुं० [सं० उद्√कम्प् (काँपना)+घञ्] कंपन। कँपकँपी। | 
			
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				| उत्कच					 : | वि० [सं० उत्-कच, ब० स०] जिसके बाल उठे हुए या खड़े हों। पुं० हिरण्याक्ष का एक पुत्र। | 
			
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				| उत्कट					 : | वि० [सं० उद्√कट् (गति)+अच्] [भाव० उत्कटता] १. जो मान, मात्रा आदि के विचार से बहुत ऊँचा या बढ़ा-चढ़ा हो। (इन्टेन्स) जैसे—उत्कट प्रेम, उत्कट विद्धान। २. जो अपने गुण, प्रबाव, फल आदि के विचार से बहुत उग्र या तीव्र हो। जैसे—उत्कट स्वभाव। पुं० १. मूँज। २. गन्ना। ३. दालचीनी। ४. तज। ५. तेजपता। | 
			
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				| उत्कर					 : | पुं० [सं० उद्√कृ (फेंकना)+अप्] ढेर। राशि। | 
			
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				| उत्कर्ण					 : | वि० [सं० उत्-कर्ण, ब० स०] १. जिसके कान ऊँचे उठे हों। २. जो किसी की बात सुनने के लिए उत्सुक होने के कारण कान उठाये हुए हों। | 
			
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				| उत्कर्ष					 : | पुं० [सं० उद्√कृष् (खींचना)+घञ्] १. ऊपर की ओर उठने, खिंचने या जाने की क्रिया या भाव। २. पद, मान, संपत्ति आदि में होनेवाली वृद्धि, संपन्नता या समृद्धि। ३. भाव, मूल्य आदि में होनेवाली अधिकता या वृद्धि। | 
			
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				| उत्कर्षक					 : | वि० [सं० उद्√कृष्+ण्वुल्-अक] १. ऊपर की ओर उठाने या बढ़ानेवाला। २. उन्नति या समृद्धि करनेवाला। उत्कर्ष करनेवाला। | 
			
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				| उत्कर्षता					 : | स्त्री० [सं० उत्कर्ष+तल्-टाप्] १. उत्तमता। श्रेष्ठता। २. अधिकता। ३. समृद्धि। | 
			
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				| उत्कर्षी (र्षिन्)					 : | वि० [सं० उद्√कृष्+णिनि] =उत्कर्षक। | 
			
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				| उत्कल					 : | पुं० [सं० ] १. भारतीय संघ के उड़ीसा राज्य का पुराना नाम। २. चिड़ीमार। बहेलिया। ३. बोझ ढोनेवाला मजदूर। | 
			
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				| उत्कलन					 : | पुं० [सं० उद्√कल् (गति, प्रेरणा, संख्या, शब्द)+ल्युट्-अन] १. बंधन से मुक्त होना। छूटना। २. फूलों आदि का खिलना या विकसित होना। ३. लहराना। | 
			
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				| उत्कलिका					 : | स्त्री० [सं० उद्√कल्+वुल्-अक-टाप्] १. उत्कंठा। २. फूल की कली। ३. लहर। तरंग। ४. साहित्य में ऐसा गद्य जिसमें बड़े-बड़े सामासिक पद हों। | 
			
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				| उत्कलित					 : | वि० [सं० उद्√कल्+क्त] १. जो बँधा हुआ न हो। खुला हुआ। मुक्त। २. खिला हुआ। विकसित। ३. लहराता हुआ। | 
			
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				| उत्कली					 : | वि० स्त्री० दे० ‘उड़िया’। | 
			
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				| उल्का					 : | स्त्री० [सं० उत्क+टाप्] =उत्कंठिका (नायिका)। | 
			
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				| उत्कारिका					 : | स्त्री० [सं० उद्√कृ+ण्वुल्-अक-टाप्, इत्व] फोड़े आदि पकाने के लिए उन पर लगाया जानेवाला लेप। पुलटिस। | 
			
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				| उत्कीर्ण					 : | वि० [सं० उद्√कृ+क्त] १. छितरा, फैला या बिखरा हुआ। २. छिदा या भिदा हुआ। ३. खोदकर अंकित किया हुआ। | 
			
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				| उत्कीर्त्तन					 : | पुं० [सं० उद्√कृत् (जोर से शब्द करना)+ल्युट-अन] १. जोर से बोलना। चिल्लाना। २. घोषणा करना। ३. प्रशंसा या स्तुति करना। | 
			
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				| उत्कुण					 : | पुं० [सं० उद्√कुण् (हिंसा करना)+अच्] १. खटमल। २. बालों में पड़नेवाला छोटा कीड़ा। जूँ। | 
			
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				| उत्कूज					 : | पुं० [सं० उद्√कूज् (अव्यक्त शब्द)+घञ्] १. कोमल। मधुर। ध्वनि। २. कोयल की कुहुक। | 
			
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				| उत्कूट					 : | पुं० [सं० उद्√कूट् (ढकना)+अच्] बहुत बड़ा छाता। | 
			
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				| उत्कृष्ट					 : | वि० [सं० उद्√कृष् (खींचना)+क्त] [भाव० उत्कृष्टता] १. अच्छे गुण से युक्त और फलतः आकर्षक या सुंदर। २. जो औरों से बड़ा-चढ़ा हो। उत्तम। श्रेष्ठ। | 
			
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				| उत्कृष्टता					 : | स्त्री० [सं० उत्कृष्ट+तल्-टाप्] उत्कृष्ट होने की अवस्था या भाव। | 
			
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				| उत्केंद्र					 : | वि० [सं० उत्-केन्द्र, ब० स०] [भाव० उत्केंद्रता] १. अपने केन्द्र से हटा हुआ। २. जो केन्द्र या ठीक मध्य में स्थित हो। ३. जो ठीक या पूरा गोला न हो। ४. अनियमित। बे-ठिकाने। (एस्सेन्ट्रिक) पुं० केन्द्र से भिन्न स्थान। | 
			
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				| उत्केन्द्रता					 : | स्त्री० [सं० उत्केन्द्र+तल्-टाप्] उत्केन्द्र होने की अवस्था या भाव। (एस्सेन्ट्रि-सिटी)। | 
			
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				| उत्केंद्रित					 : | वि० ‘उत्केंद्र’। | 
			
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				| उत्क्षेपण					 : | पुं० [सं० उद्√क्षिप्+ल्युट्-अन] १. ऊपर की । | 
			
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				| उत्कोच					 : | पुं० [सं० उद्√कुच्(संकोच)+क] १. घूस। रिश्वत। (ब्राइब) २. भ्रष्टाचार। | 
			
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				| उत्कोचक					 : | वि० [सं० उद्√कुच्+ण्वुल्-अक] १. किसी को घूस देनेवाला। २. घूस लेनेवाला। ३. भ्रष्टाचारी। | 
			
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				| उत्क्रम					 : | पुं० [सं० उद्√क्रम् (गति)+घञ्] १. ऊपर की ओर उठना या जाना। २. उन्नति या समृद्धि होना। ३. अनजान में या बिना किसी इष्ट उद्देश्य के ठीक मार्ग से इधर-उधर होना। (डिग्रेशन) विशेष-यह ‘विकल्प’ से इस बात में भिन्न है कि इसमें उचित मार्ग का त्याग किसी बुरे उद्देश्य से नहीं होता। | 
			
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				| उत्क्रमण					 : | पुं० [सं० उद्√क्रम्+ल्युट्-अन] १. ऊपर की ओर जाने की क्रिया या भाव। २. आज्ञा या कार्य-क्षेत्र का उल्लंघन करना। ३. आक्रमण। चढ़ाई। ४. मृत्यु। मौत। | 
			
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				| उत्क्रांत					 : | वि० [सं० उद्√क्रम्+क्त] [भाव० उत्क्रांति] १. ऊपर की ओर चढने वाला। २. जिसका उल्लंघन या अतिक्रमण हुआ हो। | 
			
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				| उत्क्रांति					 : | वि० [सं० उद्√क्रम्+क्तिन्] १. धीरे-धीरे उन्नति या पूर्णता की ओर बढ़ने की प्रवृत्ति। दे० आरोह। २. अतिक्रमण। उल्लंघन। ३. मृत्यु। मौत। | 
			
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				| उत्क्रोश					 : | पुं० [सं० उद्√कुश् (चिल्लाना)+घञ्] १. शोर-गुल। हल्ला-गुल्ला। २. कुररी नामक पक्षी। | 
			
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				| उत्क्लेदन					 : | पुं० [सं० उद्√क्लिद् (भींगना)+ल्युट-अन] गीला, तर या नम करने या होने की क्रिया या भाव। | 
			
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				| उत्क्लेश					 : | पुं० [सं० उद्√क्लिश् (कष्ट पाना)+घञ्] वैद्यक में, कुछ खाने के बाद आमाशय की अम्लता के कारण कलेजे के पास मालूम होनेवाली जलन। (रोग) (हार्ड बर्न) | 
			
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				| उत्क्षिप्त					 : | भू० कृ० [सं० उद्√क्षिप्(फेंकना)+क्त] १. ऊपर की ओर उछाला या फेंका हुआ। २. दूर किया या हटाया हुआ। ३. कै या वमन के रूप में बाहर निकाला हुआ। ४. नष्ट किया हुआ। ध्वस्त। | 
			
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				| उत्क्षेप					 : | पुं० [सं० उद्√क्षिप्+घञ्] [वि० उत्क्षिप्त, कर्त्ता उत्क्षेपक] १. ऊपर की ओर उछालने या फेंकने की क्रिया या भाव। २. बाहर निकालना। ३. दूर हटाना। ४. परित्याग करना। छोड़ना। ५. कै। वमन। | 
			
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				| उत्क्षेपक					 : | पुं० [सं० उद्√क्षिप्+ण्वुल्-अक] १. ऊपर उछालने या फेंकनेवाला। २. दूर करने या हटानेवाला। ३. चोरी करनेवाला। चोर। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उत्क्षेपण					 : | पुं० [सं० उद्√क्षिप्+ल्यूट्-अक] १. ऊपर की ओर फेंकने की क्रिया या भाव। उछालना। २. उल्टी। कै। वमन। ३. चोरी। 4. मूसल। 5. पाँव। 6. ढकना। ढक्कन। | 
			
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				| उत्खनन					 : | पुं० [सं० उद्√खन् (खोंदना)+ल्युट्-अन] [भू० कृ० उत्खचित] गड़ी या जमी चीज को खोदना। खोदकर बाहर निकालना या फेंकना। | 
			
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				| उत्खात					 : | भू० कृ० [सं० उद्√खन्+क्त] १. खोदा हुआ। २. खोदकर बाहर निकाला हुआ। ३. जड़ों से उखाड़ा हुआ। (पेड़, पौधा आदि)। ४. नष्ट-भ्रष्ट किया हुआ। ५. अपने स्थान से दूर किया या हटाया हुआ। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्खाता (तृ)					 : | वि० [सं०√उद्√खन्+तृच्] ११. उखाड़नेवाला। २. कोदनेवाला। ३. समूल नष्ट करना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्खाती (तिन्)					 : | वि० [सं० उद्√खन्+णिनि] १. जो समतल न हो। ऊबड़-खाबड़। २. =उत्खाता। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उत्खान					 : | पुं० [सं० उद्√खन्+घञ्]=उत्खनन। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उत्खेद					 : | पुं० [सं० उद्√खिद् (दीनता, घात)+घञ्] १. काटना। छेदना। २. खोदना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उत्तंकिय					 : | वि० आतंकित।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उत्तंग					 : | वि० उत्तंग।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उत्तंभन					 : | पुं० [सं० उद्√स्तम्भ् (रोकना)+घञ्] [उद्√स्तम्भ+ल्युट्] १. टेक या सहरा देने की क्रिया या भाव। २. टेक। सहारा। ३. रोक। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उत्तंस					 : | पुं० [सं० उद्√तंस् (अलंकृत करना)+अच् या घञ्] दे० ‘अवतंस’।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उत्तट					 : | वि० [सं० उत्-तट, अत्या० स०] किनारे या तट के ऊपर निकलकर बहनेवाला। | 
			
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				| उत्तप्त					 : | भू० कृ० [सं० उद्√तप्(तपना)+क्त] १. खूब तपा या तपाया हुआ। २. जलता हुआ। ३. लाक्षणिक अर्थ में सताया हुआ। संतप्त। ४. कुपित। | 
			
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				| उत्तब्ध					 : | भू० कृ० [सं० उद्√स्तम्भ (रोकना)+क्त] १. ऊपर उठाया हुआ। उन्नमित। २. उत्तेजित किया हुआ। भड़काया हुआ। | 
			
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				| उत्तभित					 : | वि० उत्तब्ध। | 
			
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				| उत्तमंग					 : | पुं० उत्तमांग। | 
			
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				| उत्तम					 : | वि० [सं० उद्+तमप्] [स्त्री० उत्तमा] १. जो गुण, विशेषता आदि में सबसे बहुत बढ़कर हो। सबसे अच्छा। २. सबसे बड़ा। प्रधान। पुं० १. विष्णु। २. ध्रुव का सौतेला भाई। | 
			
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				| उत्तम-गंधा					 : | स्त्री० [ब० स०] चमेली। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उत्तमतया					 : | क्रि० वि० [सं० उत्तमता शब्द की तृतीया विभक्ति के रूप का अनुकरण] उत्तम रूप से। अच्छी तरह। भली भाँति। | 
			
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				| उत्तमता					 : | स्त्री० [सं० उत्तम+तल्-टाप्] उत्तम होने की अवस्था या भाव। | 
			
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				| उत्तमताई					 : | स्त्री० उत्तमता।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उत्तमत्व					 : | पुं० [सं० उत्तम+त्व] उत्तमता। | 
			
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				| उत्तमन					 : | पुं० [सं० उद्√तम् (खेद)+ल्युट-अन] १. साहस छोड़ना। २. अधीरता। अधैर्य। | 
			
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				| उत्तम-पुरुष					 : | पुं० [सं० कर्म० स०] १. व्याकरण में, वह पद जो प्रथम पुरुष अर्थात् बोलनेवाला का वाचक हो। वक्ता का वाचक सर्व-नाम। जैसे—हम, मैं। २. ईश्वर जो सब पुरुषों में उत्तम कहा गया हो। | 
			
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				| उत्तमर्ण					 : | पुं० [सं० उत्तम-ऋण, ब० स०] वह जो दूसरो को ऋण देता हो, अथवा जिसे किसी को ऋण दिया हो। महाजन। | 
			
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				| उत्तमर्णिक					 : | पुं० [सं० उत्तम-ऋण, कर्म० स०+ठन्-इक]=उत्तमर्ण। | 
			
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				| उत्तम-साहस					 : | पुं० [सं० कर्म० स०] प्राचीन काल में अपराधी को दिया जानेवाला बहुत अधिक कठोर आर्थिक या शारीरिक देड। जैसे—अंग-भंग, निर्वासन, प्राण-दंड आदि। | 
			
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				| उत्तमांग					 : | पुं० [सं० उत्तम-अंग, कर्म० स०] शरीर का उत्तम या सर्वश्रेष्ठ अंग, मस्तक। सिर। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उत्तमांभस					 : | पुं० [सं० उत्तम-अंभस्, कर्म० स०] सांख्य में, हिसा के त्याग से प्राप्त होनेवाली तुष्टि। | 
			
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				| उत्तमा					 : | स्त्री० [सं० उत्तम+टाप्] १. श्रेष्ठ स्त्री। २. शूक रोग का एक बेद। ३. दुद्धी या दूधी नाम की जड़ी। वि० भली। नेक। | 
			
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				| उत्तमादूती					 : | स्त्री० [सं० व्यस्तपद] साहित्य में, वह दूती जो रूठे हुए नायक या नायिका को समझा-बुझाकर या दूसरे उत्तम उपायों से उसके प्रिय के पास ले आती हो। | 
			
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				| उत्तमानायिका					 : | स्त्री० [सं० व्यस्तपद] साहित्य में, शुद्ध आचरणवाली वह स्वकीया नायिक जो पति के प्रतिकूल या विरुद्ध होने पर भी उसके अनुकूल बनी रहें। | 
			
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				| उत्तमार्द्ध					 : | पुं० [सं० उत्तम-अर्द्ध, कर्म० स०] १. किसी वस्तु का वह आधा अंश या भाग जो शेष अंश की तुलना में श्रेष्ठ हो। २. अंतिम आधा अँश या भाग। उत्तरार्ध। | 
			
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				| उत्तमाह					 : | पुं० [सं० उत्तम-अहन्, कर्म० स०] १. अच्छा या शुभ दिन। २. अंतिम या आखिरी दिन। | 
			
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				| उत्तमीय					 : | वि० [सं० उत्तम+छ-ईय] १. सबसे अच्छा और ऊपर का। सर्वश्रेष्ठ। २. प्रधान। मुख्य। ३. सबसे ऊँचा। | 
			
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				| उत्तमोत्तम					 : | वि० [सं० उत्तम-उत्तम, पं० त०] १. सबसे अच्छा। सर्वोत्तम। २. एक से एक बढ़कर, सभी अच्छे। जैसे—अनेक उत्तमोत्तम पदार्थ वहाँ रखे थे। | 
			
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				| उत्तमोत्तमक					 : | पुं० [सं० उत्तमोत्तम+कन्] लास्य नृत्य के दस प्रकारों में से एक। | 
			
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				| उत्तमौजा (जस्)					 : | वि० [सं० उत्तम-ओजस्, ब० स०] जो तेज और बल के विचार से दूसरों से बढ़कर हो। पुं० १. मनु के एक पुत्र का नाम। २. एक राजा जिसने महाभारत के युद्ध में पांडवों का साथ दिया था। | 
			
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				| उत्तरंग					 : | वि० [सं० उद्-तरंग, ब० स०] १. लहराता हुआ। तरंगित। २. आनंदमग्न। ३. काँपता हुआ। पुं० [सं० कर्म० स०] वह काठ जो चौखट के ऊपर लगाया जाता है। | 
			
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				| उत्तर					 : | पुं० [सं० उद्√तृ (तैरना)+अप् अथवा उद्+तरप्] १. वह दिशा जो पूर्व की ओर मुँह करके खड़े होने पर मनुष्य की बाई ओर पड़ती है। उदीची। २. किसी देश का उत्तरी भाग। ३. किसी के प्रश्न या शंका करने पर या उसके समाधान या संतोष के लिए कही जानेवाली बात। ४. जाँच या परीक्षा के लिए पूछे हुए प्रश्नों के संबंध में कही हुई उक्त प्रकार की बात। ५. गणित आदि में, किसी प्रश्न का निकला हुआ अंतिम परिणाम। फल। ६. अबियोग या आरोप लगने पर अपने आचरण या व्यवहार का औचित्य सिद्ध करते हुए कुछ कहना। ७. किसी के कार्य या व्यवहार के बदले में ठीक उसी प्रकार से किया जानेवाला कार्य या व्यवहार। ८. साहित्य में एक अलंकार जिसमें (क) किसी प्रश्न के उत्तर में कोई गूढ़ आशय या संकेत किया जाता है अथवा (ख) कुछ प्रश्न इस रूप में रखे जाते है कि उनके उत्तर भी उन्हीं शब्दों में छिपे रहते हैं। ९. राजा विराट के एक पुत्र का नाम। वि० १. उत्तरी। बाद का। पिछला। २. ऊपर का। ३. श्रेष्ठ। अव्य० बाद में। पीछे। | 
			
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				| उत्तर-कल्प					 : | पुं० [सं० कर्म० स०] भू-विज्ञान के अनुसार वह दूसरा कल्प जिसमें मुख्यतः पर्वतों तथा खनिज पदार्थों की सृष्टि हुई थी। अनुमानतः यह कल्प आज से लगभग सवा अरब वर्ष पहले हुआ था। | 
			
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				| उत्तर-कोशला					 : | स्त्री० [सं० उत्तरकोशल+अच्-टाप्] अयोध्या नगरी। | 
			
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				| उत्तर-क्रिया					 : | स्त्री० [मध्य० स०] मृत्यु के उपरांत मृतक के उद्देश्य से होनेवाले धार्मिक कृत्य। अंत्येष्टि। | 
			
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				| उत्तर-गुण					 : | पुं० [कर्म० स०] मूल गुणों की रक्षा करनेवाले गौण या दूसरे गुण।( जैन)। | 
			
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				| उत्तरच्छद					 : | पुं० [कर्म० स०] १. आच्छादन। आवरण। २. बिछौने या बिछाई जानेवाली चादर। | 
			
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				| उत्तरण					 : | पुं० [सं० उद्√तृ+ल्युट-अन] तैरकर या नाव आदि के द्वारा जलाशय पार करना। | 
			
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				| उत्तर-तंत्र					 : | पुं० [कर्म० स०] किसी वैद्यक ग्रंथ का पिछला या परिशिष्ट भाग। | 
			
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				| उत्तर-दाता (तृ)					 : | पुं० [ष० त०] —उत्तरदायी। वि० उत्तर या जवाब देना। | 
			
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				| उत्तरदायित्व					 : | पुं० [सं० उत्तरदायिन्+त्व] किसी बात या बात के लिए उत्तरदायी होने की अवस्था या भाव। जवाबदेही। जिम्मेदारी। | 
			
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				| उत्तरदायी (यिन्)					 : | वि० [सं० उत्तर√दा (देना)+णिनि] १. जिस पर कोई काम करने का भार हो। जैसे—इस काम के उत्तदायी आप ही मानें जाँयेगे। २. जो नैतिक अथवा विधिक दृष्टि से अपने किसी आचरण अथवा दूसरों द्वारा सौंपे हुए कार्य के संबंध में कुछ पूछे जाने पर उत्तर देने के लिए बाध्य हो। जैसे—उत्तरदायी शासन। (रेसपान-सिबुल, उक्त दोनों अर्थों में)। | 
			
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				| उत्तर-पक्ष					 : | पुं० [कर्म० स०] विवाद आदि में वह पक्ष जो पहले किये जानेवाले निरूपण या प्रस्थान का खंडन या समाधान करता हो। अभियोग तर्क, प्रश्न आदि का उत्तर देनेवाला पक्ष। ‘पूर्व-पक्ष’ का विपर्याय। | 
			
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				| उत्तर-पट					 : | पुं० [कर्म० स०] १. ओढ़ने की चादर। उत्तरीय। २. बिछाने की चादर। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उत्तर-पथ					 : | पुं० [ष० त०] पाटलिपुत्र से वाराणसी, कौशाम्बी, साकेत, मथुरा, तक्षशिला आदि से होता हुआ वाह्लीक तक गया हुआ एक प्राचीन मार्ग। | 
			
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				| उत्तर-पद					 : | पुं० [कर्म० स०] समस्त या यौगिक शब्द का अंतिम या पिछला शब्द। जैसे—धर्मानुसार या धर्म-साधन में का अनुसार या साधन शब्द। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उत्तर-प्रत्युत्तर					 : | पुं० [द्व० स०] किसी से किसी बात का उत्तर मिलने पर उसके उत्तर में कुछ कहना-सुनना। वाद-विवाद। बहस। | 
			
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				| उत्तर-प्रदेश					 : | पुं० [सं० ] भारतीय संघ राज्य का वह प्रदेश जिसके उत्तर में हिमालय, पश्चिम में पंजाब, पूर्व में बिहार और दक्षिण में मध्य प्रदेश है। (पुराने संयुक्त प्रदेश का नया नाम)। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उत्तर-भोगी (गिन्)					 : | वि० [सं० उत्तर√भुज् (भोगना)+णिनि] किसी के द्वारा छोड़ी हुई अथवा किसी की बची हुई वस्तु या संपत्ति का भोग करने वाला। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्तर-मंद्रा					 : | पुं० [ब० स० टाप्] संगीत में एक मूर्च्छना का नाम। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्तर-मीमांसा					 : | स्त्री० [ष० त०] वेदांत दर्शन। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्तर-वयम्					 : | पुं० [कर्म० स०] जीवन का अंतिम समय जिसमें मनुष्य की सारी शक्तियाँ क्षीण होने लगती है। बुढ़ापा। वृद्धावस्था। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्तरवर्तन					 : | पुं० [स० त०] दे ‘अनुवृत्ति’। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्तरवादी (दिन्)					 : | वि० प्रतिवादी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्तर-साक्षी (क्षिन्)					 : | पुं० [ष० त०] दूसरों से सुनी सुनाई बातों के आधार पर साक्षी देनेवाला व्यक्ति। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्तरा					 : | स्त्री० [सं० उत्तर+टाप्] राजा विराट की कन्या जिसका विवाह अभिमन्यु से हुआ था। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्तरा-खंड					 : | पुं० [ष० त०] भारत का वह उत्तरी भू-भाग जो हिमालय की तलहटी में और उसके आस-पास पड़ता है। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्तराधिकार					 : | पुं० [उत्तर-अधिकार, ष० त०] १. ऐसा अधिकार जिसके अनुसार किसी के न रह जाने अथवा अपना अधिकार छोड़ देने पर किसी दूसरे को उसकी धन-संपत्ति आदि प्राप्त होती है। २. किसी के पद या स्थान से हटने पर उसके बाद आनेवाले व्यक्ति को मिलनेवाला उसका अधिकार, गुण विशेषता आदि। वरासत। (इनहेरिटेन्स) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्तराधिकार-कर					 : | पुं० [ष० त०] शासन की ओर से, उत्तराधिकारी को मिलनेवाली संपत्ति पर लगनेवाला कर। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्तराधिकार-प्रमाणक					 : | पुं० [ष० त०] न्यायालय से मिलनेवाला यह प्रमाणक जिसमें विधिक रूप से किसी के उत्तराधिकारी माने जाने का उल्लेख होता है। (सक्सेशन सर्टिफिकेट) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्तराधिकारी (रिन्)					 : | पुं० [सं० उत्तराधिकार+इनि] १. वह व्यक्ति जो किसी की संपत्ति प्राप्त करने का विधितः अधिकारी हो। (इनहेरिटर) २. अधिकारी के किसी पद या स्थान से हटने पर उस पद या स्थान पर आनेवाला दूसरा अधिकारी। (सक्सेसर)। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्तरापेक्षी (क्षिन्)					 : | वि० [सं० उत्तर-अप√ईक्ष् (चाहना)+णिनि] जो अपने किसी कथन पत्र, प्रश्न, प्रार्थना आदि के उत्तर की अपेक्षा करता हो। अपनी बात का उत्तर या जवाब चाहनेवाला। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्तराफाल्गुनी					 : | स्त्री० [सं० व्यस्तपद] आकाशस्थ सत्ताईस नक्षत्रों में से बारहवाँ नक्षत्र। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्तराभाद्रपद					 : | स्त्री० [सं० व्यस्तपद] आकाशस्थ सत्ताईस नक्षत्रों में से छब्बीसवाँ नक्षत्र। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्तराभास					 : | पुं० [सं० उत्तर-आभास, ष० त०] १. ऐसा उत्तर जो ठीक और समाधान कारक तो न हो, फिर देखने में ठीक-सा जान पड़ता हो। ऐसा उत्तर जिसमें वास्तविकता या सत्यता न हो, उसका आभास मात्र हो। २. झूठा या मिथ्या उत्तर। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्तराभासी (सिन्)					 : | वि० [सं० उत्तराभास+इनि] (प्रश्न) जिसमें उसके उत्तर का भी कुछ आभास हो। जैसे—आप तो भोजन कर ही चुके हैं न ? में यह आभास है कि आप भोजन कर चुके हैं। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्तरायण					 : | पुं० [सं० उत्तर-अयन, स० त०] १. मकर रेखा से उत्तर और कर्क रेखा की ओर होनेवाली सूर्य की गति। २. छः मास की वह अवधि या समय जिसमें सूर्य की गति उत्तर अर्थात् कर्क रेखा की ओर रहती है। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्तरायणी					 : | स्त्री० [सं० उत्तरायण+ङीष्] संगीत में एक मूर्च्छना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्तरारणी					 : | स्त्री० [सं० उत्तर-अरणी, कर्म० स०] अग्निमंथन की दो लकड़ियों में से ऊपर रहनेवाली लकड़ी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्तरार्द्ध					 : | पुं० [सं० उत्तर-अर्द्ध, कर्म० स०] किसी वस्तु के दो खंडों या भागों में से उत्तर अर्थात् अंत की ओर या बाद में पड़नेवाला खंड या भाग। पिछला आधा भाग। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्तराषाढ़ा					 : | स्त्री० [सं० उत्तरा-आषाढ़ा, व्यस्त-पद] सत्ताईस नक्षत्रों में से इक्कीसवाँ नक्षत्र। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्तरासंग					 : | पुं० [सं० उत्तर-आ√सञज् (मिलना)+घञ्] उत्तरीय। उपरना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्तरी					 : | वि० [सं० उत्तरीय] १. उत्तर दिशा में होनेवाला। उत्तर दिशा से संबंधित। उत्तर का। स्त्री० संगीत में कर्नाटकी पद्धति की एक रागिणी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्तरी-ध्रुव					 : | पुं० [हिं० +सं० ] पृथ्वी के गोले का उत्तरी सिरा। सुमेरु। (नार्थ पोल) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्तरीय					 : | पुं० [सं० उत्तर+छ-ईय] १. कंधे पर रखने का वस्त्र। चादर। दुपट्टा। २. एक प्रकार का सन। वि० १. उत्तर दिशा का। उत्तर में होनेवाला। २. ऊपर का। ऊपरवाला। ३. जो दूसरों की तुलना में अच्छा या श्रेष्ठ हो। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्तरोत्तर					 : | क्रि० वि० [सं० उत्तर-उत्तर, पं० त०] १. क्रमशः। एक के बाद एक। २. लगातार। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्तल					 : | वि० [सं० उत्-तल, ब० स०] [भाव० उत्तलता] जिसके तल के बीच का भाग कुछ ऊपर उठा हो। उन्नतोदर। (काँन्वेन्स)। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उत्तलित					 : | भू० कृ० [सं० उद्√तल् (स्थापित करना)+क्त] १. जो उत्तल के रूप में लाया हुआ हो। २. ऊपर उठाया या फेंका हुआ। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्ता					 : | वि० उतना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्तान					 : | वि० [सं० उत्-तान, ब० स०] १. फैला या फैलाया हुआ। २. पीठ के बल लेटा या चित्त पड़ा हुआ। ३. जिसका मुँह ऊपर की ओर हो। ऊर्ध्व मुख। ४. जो उलटा होकर सीधा हो। ५. आवरण से रहित, अर्थात् बिलकुल खुला हुआ और स्पष्ट। नग्न। जैसे—उत्तान श्रृंगार। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्तानक					 : | पुं० [सं० उद्√तन् (फैलना)+ण्वुल्-अक] उच्चटा नाम की घास। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्तान-पाद					 : | पुं० [ब० स०] भक्त ध्रुव के पिता का नाम। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्तान-हृदय					 : | वि० [ब० स०] १. जिसके हृदय में छल-कपट न हो। सरल हृदय। २. उदार और सज्जन। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्तानित					 : | भू० कृ० [सं० उद्√तन्+णिच्+क्त] १. ऊपर उठाया या फैलाया हुआ। २. जिसका मुख ऊपर की ओर हो। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्ताप					 : | पुं० [सं० उद्√तप् (तपना)+घञ्] १. साधारण से बहुत अधिक बढ़ा हुआ ताप। २. मन में होनेवाला बहुत अधिक कष्ट या दुख। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्तापन					 : | पुं० [सं० उद्√तप्+णिच्+ल्युट्-अन] [भू० कृ० उत्तापित, उत्तप्त] १. बहुत अधिक गरम करने या तपाने की क्रिया या भाव। २. बहुत अधिक मानसिक कष्ट या पीड़ा पहुँचाना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्तापमापी (पिन्)					 : | पुं० [सं० उत्ताप√मा या√मि(नापना)+णिच्, पुक्+णिनि] एक यंत्र जिससे बहुत अधिक ऊँचे दरजे के ऐसे ताप नापे जाते हैं जो साधारण ताप-मापकों से नहीं नापे जा सकते। (पीरो मीटर)। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्तापित					 : | भू० कृ० [सं० उद्√तप्+णिच्+क्त] १. बहुत गर्म किया या तपाया हुआ। उत्तप्त। २. जिसे बहुत दुःख पहुँचाया गया हो। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्तापी (पिन्)					 : | वि० [सं० उद्√तप्+णिच्+णिनि] १. उत्तापन करने या बहुत ताप पहुँचानेवाला। २. बहुत अधिक कष्ट देनेवाला। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्तार					 : | वि० [सं० उद्√तृ+णिच्+घञ्] जो गुणों में दूसरों से बढ़ा-चढ़ा हो। उत्कृष्ट। २. दे० ‘उत्तारक’। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्तारक					 : | वि० [सं० उद्√तृ+णिच्+ण्वुल्-अक] उद्धार करने या उबारनेवाला। पुं० शिव। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्तारण					 : | पुं० [सं० उद्√तृ+णिच्+ल्युट्-अन] १. तैर या तैराकर पार ले जाना। २. एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाना या पहुँचाना। ३. विपत्ति, संकट आदि से छुड़ाना। उद्धार करना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्तारना					 : | स० [सं० उत्तराण] १. पार उतारना या ले जाना। २. दूर करना। हटाना। उदाहरण—नाहर नाऊ नरयंद चित्त चिंता उत्तारिय।—चंदवरदाई। ३. दे० ‘उतारना’। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्तारी (रिन्)					 : | वि० [सं० उद्√तृ+णिच्+णिनि] पार करने या उतारनेवाला। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्तार्य					 : | वि० [सं० उद्√तृ+णिच्+यत्] जो पार उतारा जाने को हो अथवा पार उतारे जाने के योग्य हो। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्ताल					 : | वि० [सं० उद्√तल्+घञ्] बहुत अधिक ऊँचा। जैसे—उत्ताल तरंग। पुं० वन-मानुष। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्तीर्ण					 : | वि० [सं० उद्√तृ+क्त] १. जो नदी, नाले आदि के उस पार चला गया हो। पार गया हुआ। पारित। २. जो किसी जाँच या परीक्षा में पूरा सफल या सिद्ध हो चुका हो। ३. मुक्त। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उत्तुंग					 : | वि० [सं० उत्-तुंग, प्रा० स०] १. बहुत अधिक ऊँचा। जैसे—हिमालय का उत्तुंग शिखर। २. यथेष्ठ उन्नत। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उत्तू					 : | पुं० [फा०] १. कपड़े पर चुनट डालने या बेल-बूटे काढ़ने का एक औजार या उपकरण। २. उक्त करण से कपड़े पर बनाये हुए बेल-बूटे या डाली हुई चुनट। मुहावरा—(किसी व्यक्ति को) उत्तू करना या बनाना-इतना मारना कि बदन में दाग पड़ जाएँ। जैसे—मारते-मारते उत्तू कर दूँगा। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उत्तूगर					 : | पुं० [फा०] वह कारीगर जो कपड़े पर उत्तू से कढ़ाई का काम करता अथवा चुनट डालता हो। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उत्तेजक					 : | वि० [सं० उद्√तिज(तीक्ष्ण करना)+णिच्+ण्वुल्-अक] १. उत्तेजना उत्पन्न करनेवाला। २. किसी को कोई काम करने के लिए उकसाने या भड़कानेवाला। ३. मनोवेगों को तीव्र या तेज करनेवाला। जैंसे—सभी मादक पदार्थ उत्तेजक होते हैं। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उत्तेजन					 : | पुं० [सं० उद्√तिज्+णिच्+ल्युट-अन] [कर्त्ता, उत्तेजक, भू० कृ० उत्तेजित] १. तेज से युक्त करना अथवा तेज की प्रखरता बढ़ाना। २. उकसाना। भड़काना। ३. दे० ‘उत्तेजना’। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उत्तेजना					 : | स्त्री० [सं० उद्√तिज्+णिच्+युच्-अन-टाप्] १. किसी के तेज को उत्कृष्ट करना या उग्र रूप देना। २. शरीर के किसी अंग या इंद्रिय में होनेवाली कोई असाधारण क्रियाशीलता। जैसे—जननेंद्रिय की उत्तेजना। ३. ऐसी स्थिति जिसमें मन चंचल होकर बिना समझे-बूझे कोई काम करने में उग्रता तथा शीघ्रतापूर्वक प्रवृत्त या रत होता है। (एक्साइटमेंट) जैसे—(क) उन्होंने केवल उत्तेजना-वश उस समय त्यागपत्र दे दिया था। (ख) उनके भाषण से सभा में उत्तेजना फैल गयी। ४. कोई ऐसा काम या बात जो किसी का मन चंचल करके उसे उग्रता और शीघ्रतापूर्वक कोई काम करने में प्रवृत्त करे। किसी को आवेश में लाने के लिए किया हुआ कार्य या कही हुई बात। बढ़ावा। (इन्साइटमेन्ट) जैसे—आपने ही उत्तेजना देकर उन्हें इस काम में आगे बढ़ाया था। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उत्तेजित					 : | भू० कृ० [सं० उद्√तिच्+णिच्+क्त] १. जो किसी प्रकार की विशेषतः मानसिक उत्तेजना से युक्त हो। जिसमें उत्तेजना आई हो। (एक्साइटेड) जैसे—उत्तेजित होकर कोई काम नहीं करना चाहिए। २. जो किसी प्रकार की उत्तेजना से युक्त करके आगे बढ़ाया गया हो। उकसाया या भड़काया हुआ। (इन्साइटेड) जैसे—तुम्हीं ने तो उसे मारने के लिए उत्तेजित किया था। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्तोलक					 : | वि० [सं० उद्√तुल् (तौलना)+णिच्+ण्वुल्-अक] उत्तोलक करने या ऊपर उठानेवाला। पुं० एक स्थान का ऊँचा यंत्र जिसकी सहायता से भारी चीजें एक स्थान से उठाकर दूसरे स्थान पर रखी जाती हैं। (क्रेन)। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्तोलन					 : | वि० [सं० उद्√तुल्+णिच्+ल्युट-अन] [भू० कृ० उत्तोलित] १. ऊपर की ओर उठाने या ले जाने की क्रिया या भाव। ऊँचा करना। जैसे—ध्वजोत्तोलन। २. तौलना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्तोलन-यंत्र					 : | पुं० [ष० त०] दे० ‘उत्तोलक’। (क्रेन)। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्थवना					 : | स० [सं० उत्थापन] १. ऊपर उठाना। ऊँचा करना। २. आरंभ या शुरू करना। ३. अच्छी या उन्नत दशा में लाना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उत्थान					 : | स० [सं० उद्√स्था (ठहरना)+ल्युट्-अन] १. ऊपर की ओर उठना। ऊँचा होना। उठान। (विशेष दे० उठना।) २. किसी निम्न या हीन स्थिति से निकलकर उच्च या उन्नत अवस्था में पहुँचने की अवस्था या भाव। उन्नत या समृद्ध स्थिति। जैसे—जाति या देश का उत्थान। ३. किसी काम या बात का आरंभ या आरंभिक अंश। उठान। जैसे—इस काव्य (या ग्रंथ) का उत्थान तो बहुत सुंदर हैं। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्थान-एकादशी					 : | स्त्री० [ष० त०] कार्तिक शुक्ला एकादशी। देवोत्थान। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उत्थानक					 : | वि० [सं० उत्थान+णिच्+ण्वुल्-अक] १. निम्न या साधारण स्तर से ऊपर की ओर ले जानेवाला। उत्थान करनेवाला। २. किसी को उन्नत या समृद्ध बनानेवाला। पुं० एक प्रकार का यंत्र जिसकी सहायता से लोग बहुत ऊँची-ऊँची इमारतों या भवनों में (बिना सीढ़ियाँ चढ़े-उतरे) ऊपर-नीचे आते जाते हैं (लिफ्ट) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्थापक					 : | वि० [सं० उद्√स्था+णिच्, पुक्+ण्वुल्-अक] १. उत्थान करने या ऊपर उठानेवाला। २. जगानेवाला। ३. प्रेरित करनेवाला। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्थापन					 : | पुं० [सं० उद्√स्था+णिच्, पुक्+ल्युट्-अन] १. ऊपर की ओर उठाना। २. सोये हुए को जगाना। ३. उत्तेजित या उत्साहित करना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्थापित					 : | भू० कृ० [सं० उद्√स्था+णिच्, पुक्+क्त] १. ऊपर उठाया हुआ। २. जगाया हुआ। ३. उत्तेजित किया हुआ। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्थायी (यिन्)					 : | वि० [सं० उद्√स्था+णिनि] १. ऊपर की ओर उठने, उभरने, निकलने या बढ़ने-वाला। २. उठाने, उभारने या उत्थान करनेवाला। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्थित					 : | भू० कृ० [सं० उद्√स्था+क्त] १. जिसका उत्थान हुआ हो या किया गया हो। उठा हुआ। २. जागा हुआ। ३. समृद्ध। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्थिति					 : | स्त्री० [सं० उद्√स्था+क्तिन्] उत्थान। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उत्पट					 : | पुं० [सं० उद्√पट् (गति)+अच्] १. बबूल आदि पेड़ों से निकलने वाली गोंद। २. दुपट्टा। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्पतन					 : | पुं० [सं० उद्√पत्+ल्युट-अन] १. उड़ने की क्रिया या भाव। २. ऊपर की ओर उठना। ३. उछालना। ४. उत्पन्न करना। जन्म लेना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्पत्ति					 : | स्त्री० [सं० उद्√पत्+क्तिन्] १. अस्तित्व में आने या उत्पन्न होने की अवस्था, क्रिया या भाव। आविर्भाव। उद्भव। जैसे—सृष्टि की उत्पत्ति। २. जन्म लेकर इस पृथ्वी पर आने की क्रिया या भाव। जैसे—पुत्र की उत्पत्ति। पैदाइश। जन्म। ३. किसी प्रकार का रूप धारण करके प्रत्यक्ष होने की अवस्था या भाव। जैसे—प्रेम या वैर की उत्पत्ति। ४. किसी उपाय या क्रिया से प्रस्तुत किया हुआ तत्व या पदार्थ। बन या बनाकर तैयार की हुई चीज। उपज० जैसे—कृषि की उत्पत्ति। ५. अर्थशास्त्र में, किसी चीज का आकार-प्रकार, रूप-रंग, आदि बदलकर उसे अपेक्षया अधिक उपयोगी रूप में लाने की क्रिया या भाव। उत्पादन। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्पथ					 : | पुं० [सं० उत्-पथ, प्रा० स०] अनुचित या दूषित पथ। बुरा रास्ता। कुमार्ग। वि० कुमार्गी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्पन्न					 : | वि० [सं० उद्√पद् (गति)+क्त] १. जिसकी उत्पति हुई हो। २. जिसने जन्म लिया हो। ३. जिसे अस्तित्व में लाया या पैदा किया गया हो। ४. निर्मित किया या बनाया हुआ। ५. उपजा या उपजाया हुआ। ६. उद्भूत या घटित होनेवाला। जैसे—विचार या संदेह उत्पन्न होना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्पन्ना					 : | स्त्री० [सं० उत्पन्न+टाप्] अगहन बदी एकादशी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्पल					 : | पुं० [सं० उद्√पल्(गति)+अच्] १. कमल। विशेषतः नीलकमल। २. कुमुदनी। वि० बहुत ही दुबला-पतला या क्षीण-काय। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्पलिनी					 : | स्त्री० [सं० उत्पल+इनि-ङीष्] १. कमल का पौधा। २. कमल के फूलों का समूह। ३. एक प्रकार का छंद या वृत्त। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्पवन					 : | पुं० [सं० उद्√पू (पवित्र करना)+ल्युट्-अन] १. शुद्ध या स्वच्छ करने की क्रिया या भाव। २. वह उपकरण जिससे कोई चीज साफ की जाए। ३. तरल पदार्थ छिड़कना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्पाटक					 : | वि० [सं० उद्√पट्+णिच्+अवुल्-अक] उत्पाटन करने या उखाड़नेवाला। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्पाटन					 : | पुं० [सं० उद्√पट्+णिच्+ल्युट-अन] १. जड़ से खोदकर कोई चीज उखाड़ने की क्रिया या भाव। उन्मूलन। २. जमे, टिके या ठहरे हुए को पीड़ित करके उसके स्थान से हटाना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्पाटित					 : | भू० कृ० [सं० उद्√पट्+णिच्+क्त] १. जड़ से उखाड़ा हुआ। उन्मूलित। २. अपने स्थान से पीड़ित करके हटाया हुआ। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्पात					 : | पुं० [सं० उद्+पत् (गिरना)+घञ्] १. अचानक ऊपर की ओर उठना, कूदना या बढ़ना। २. अचानक होनेवाली कोई ऐसी प्राकृतिक घटना जो कष्टप्रद या हानिकारक सिद्ध हो सकती हो। जैसे—अग्नि-कांड, उल्कापात, बाढ़, भूकंप आदि। ३. दे० ‘उपद्रव’। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्पाती (तिन्)					 : | वि० [सं० उद्√पत्+णिनि] १. उत्पात या उपद्रव करनेवाला। २. पाजीपन या शरारत करनेवाला। उपद्रवी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्पाद					 : | वि० [सं० उद्√पद् (गति)+घञ्] जिसके पैर ऊपर उठें हो। पुं० १. वह वस्तु जिसका उत्पादन हुआ हो। निर्मित वस्तु। २. इतिवृत्त के मूल की दृष्टि से नाटक की कथा-वस्तु के तीन भेदों में से एक। ऐसी कथावस्तु जिसकी सब घटनाएँ कवि या नाटककार की निजी कल्पनाओं से उत्पन्न या उद्भूत हुई हों। जैसे—मालती-माधव, मृच्छकटिक आदि। (शेष दो भेद ‘प्रख्यात’ और ‘भिन्न’ कहे जाते हैं)। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्पादक					 : | वि० [सं० उद्√पद्+णिच्+ण्वुल्-अक] १. उत्पादन करनेवाला। २. जिससे कुछ उत्पादन हों। पुं० १. मूल कारण। २. [ब० स० कप्] शरभ नामक एक कल्पित जंतु। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्पादन					 : | पुं० [सं० उद्√पद्+णिच्+ल्युट्-अन] १. उत्पन्न या पैदा करना। २. उपजने में प्रवृत्त करना या सहायक होना। ३. ऐसा कार्य या प्रयत्न करना जिससे कोई उपजे या बने। 4. उक्त प्रकार से उत्पन्न करके या उपजाकर तैयार की या बनाई हुई चीज। (प्रोडक्सन) जैसे—(क) कल-कारखानों में होनेवाला कपड़ों का उत्पादन। (ख) खेतों आदि में होनेवाला अन्न का उत्पादन। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्पादन-शुल्क					 : | पुं० [ष० त०] वह शुल्क जो कल-कारखानों में किसी वस्तु का उत्पादन करने या राज-कोष में देना पड़ता है। (एक्साइज ड्यूटी)। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्पादित					 : | भू० कृ० [सं० उद्√पद्+णिच्+क्त] जिसका उत्पादन हुआ हो। उत्पन्न किया या उपजाया हुआ। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्पादी (दिन्)					 : | वि० [सं० उद्√पद्+णिच्+णिनि] उत्पादन करने या उपजानेवाला। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्पाद्य					 : | वि० [सं० उद्√पद्+णिच्+यत्] (पदार्थ) जिसका उत्पादन किया जाने को हो अथवा जिसका उत्पादन करना आवश्यक या उचित हो। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्पाली					 : | स्त्री० [सं० उद्√पल्+घञ्-ङीष्] आरोग्य। स्वास्थ्य। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्पीड़क					 : | पुं० [सं० उद्√पीड़(कष्ट देना)+ण्वुल्-अक] उत्पीड़न करने या कष्ट पहुँचानेवाला। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्पीड़न					 : | पुं० [सं० उद्√पीड़+ल्युट-अन] [भू० कृ० उत्पीड़ित] १. दबाना। २. कष्ट या पीड़ा पहुँचाना। सताना। ३. अत्याचार या जुल्म करना। सताना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्पीड़ित					 : | भू० कृ० [सं० उद्√पीड़+क्त] १. दबाया हुआ। २. जिसे कष्ट या पीड़ा पहुँचाई गई हो। ३. सताया हुआ। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्प्रभ					 : | वि० [सं० उत्-प्रभा, ब० स०] बहुत ही चमकीला। पुं० जलती या दहकती हुई आग। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्प्रवास					 : | पुं० [सं० उत्-प्रवास, प्रा० स०] स्वदेश त्याग। अपना देश छोड़कर अन्य देश में जाना या जाकर रहना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्प्रेक्षक					 : | वि० [सं० उद्-प्र√ईक्ष् (देखना)+ण्वुल्-अक] उत्प्रेक्षा करनेवाला। वितर्क करनेवाला। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्प्रेक्षण					 : | पुं० [सं० उद्-प्र√ईक्ष् (देखना)+ल्युट-अन] १. सावधान होकर ऊपर की ओर देखना। २. ध्यानपूर्वक देखना-भालना या सोचना। ३. एक वस्तु से दूसरी वस्तु की तुलना करना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्प्रेक्षणीय					 : | वि० [सं० उद्-प्र√ईक्ष्+अनीयर] जिसका उत्प्रेक्षण होने को हो अथवा जो उत्प्रेक्षण के योग्य हो। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्प्रेक्षा					 : | स्त्री० [सं० उद्-प्र√ईक्ष्+अ-टाप्] [वि० उत्प्रेक्ष्य, उत्प्रेक्षणीय] १. उत्प्रेक्षण। २. एक अर्थालंकार जिसमें उपमेय और उपमान के भेद का ज्ञान होने पर भी इस बात का उल्लेख होता है कि उपमेय उपमान के समान जान पड़ता है। जैसे—अति कटु वचन कहत कैकेई। मानहु लोन जरे पर देई।-तुलसी। विशेष—इव, लजनु, जानो, मनु, मानो आदि शब्द इस अलंकार के सूचक होते है। इसके तीन भेद हैं-वस्तूत्प्रेक्षा, हेतूत्प्रेक्षा और फलोत्प्रेक्षा। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्प्रेक्षोपमा					 : | स्त्री० [उत्प्रेक्षा-उपमा, ष० त०] एक अर्थालंकार जिसमें किसी एक वस्तु के किसी गुण या विशेषता के दूसरी अनेक वस्तुओं में होने का उल्लेख होता है। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्प्रेक्ष्य					 : | वि० [सं० उद्-प्र√ईक्ष्+ण्यत्] १. जिसकी उत्प्रेक्षा हो या होने को हो। २. को उत्प्रेक्षा द्वारा अभिव्यक्त किया जाने को हो या किया जा सकता हो। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्प्रेरक					 : | वि० [सं० उद्-प्र√ईर् (गति)+ण्वुल्-अक] उत्प्रेरणा करनेवाला। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्प्रेरणा					 : | पुं० [सं० उद्-प्र√ईर्+णिच्+युच्-अन-टाप्] १. प्रेरणा करने की क्रिया या भाव। २. रसायन शास्त्र में, किसी ऐसे पदार्थ का (जो स्वयं अविकृत हो।) किसी दूसरे पदार्थ पर अपनी रासायनिक प्रतिक्रिया करना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्कुल्ल					 : | वि० [सं० उद्√फल्+क्त, लत्व, उत्व०] [भाव० उत्फुलता] १. खिला हुआ। जैसे—उत्फुल्ल कमल। २. खुला हुआ। जैसे—उत्फुल्ल नेत्र। ३. प्रसन्न। जैसे—उत्फुल्ल आनन। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्यम					 : | वि० उत्तम। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्याग					 : | पुं० [सं० उद्√सञ्ज् (मिलना)+घञ्] १. अंक। क्रोड़। गोद। २. बीच का हिस्सा। मध्य भाग। ३. ऊपरी भाग। ४. चोटी। शिखर। ५. तल। सतह। वि० १. निर्लिप्त। २. विरक्त। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्संगित					 : | भू० कृ० [सं० उत्संग+इतच्] १. अंक या गोद में लिया हुआ। २. गले लगाया हुआ। आलिंगित। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्स					 : | पुं० [सं०√उन्द् (भिगोना)+स] [वि० उत्स्य] १. बहते हुए पानी की धारा या स्रोत। झरना। २. जलमय स्थान। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्सन्न					 : | वि० [सं० उद्√सद् (फटना, नष्ट होना आदि)+क्त] [स्त्री० उत्सन्ना] १. ऊपर की ओर उठाया हुआ। ऊँचा। अवसन्न का विपर्याय। २. बढ़ा हुआ। ३. पूरा किया हुआ। ४. उखाड़ा हुआ। उच्छिन्न। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्सर्ग					 : | पुं० [सं० उद्√सृज् (त्याग)+घञ्] १. खुला छोड़ने या बंधन से मुक्त करने की क्रिया या भाव। २. किसी उद्देश्य या कारण से कोई वस्तु अपने अधिकार या नियंत्रण से अलग करना या निकालना और अर्पित करना। जैसे—(क) साहित्य-सेवा के लिए जीवन का उत्सर्ग। (ख) किसी पित्तर के उद्देश्य से किया जानेवाला वृषोत्सर्ग। ३. किसी के लिए किया जानेवाला त्याग। ४. दान। ५. साधारण या सामान्य नियम (अपवाद से भिन्न)। ६. एक वैदिक कर्म। ७. अंत। समाप्ति। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्सर्गतः					 : | क्रि० वि० [सं० उत्सर्ग+तस्] सामान्य रूप से। साधारणतः। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्सर्गी (र्गिन्)					 : | वि० [सं० उत्सर्ग+इनि] दूसरे के लिए उत्सर्ग या त्याग करनेवाला। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्सर्जन					 : | पुं० [सं० उद्√सृज्+ल्युट्-अन] [भू० कृ० उत्सर्जित, उत्सृष्ट] १. उत्सर्ग करने की क्रिया या भाव। त्याग। २. बलिदान। ३. दान। ४. किसी कर्मचारी के किसी पद या स्थान से हटने की क्रिया या भाव। (डिसचार्ज) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्सर्जित					 : | भू० कृ० [सं० उत्सृष्ट] १. त्यागा या छोड़ा हुआ। २. किसी के लिए दान के रूप में या त्यागपूर्वक छोड़ा हुआ। ३. [उद्√सृज्+णिच्+क्त] जिसे किसी पद या स्थान से हटाया गया हो। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्सर्प, उत्सर्पण					 : | पुं० [सं० उद्√सृप् (गति)+घञ्] [उद्√सृप्+ल्युट-अन] १. ऊपर की ओर चढ़ने, जाने या बढ़ने की क्रिया या भाव। २. उठना। ३. उल्लंघन करना। ४. फूलना। ५. फैलना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्सर्पिणी					 : | पुं० [सं० उद्√सृप्+णिनि-ङीष्] जैनों के अनुसार काल की वह गति जिसमें रूप, रस, गंध, स्पर्श की क्रमिक तथा निरंतर वृद्धि होती है। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्सर्पी (र्पिन्)					 : | वि० [सं० उद्√सृप्+णिनि] १. ऊपर की ओर जाने या बढ़ने वाला। २. बहुत अच्छा या बढ़िया। श्रेष्ठ। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्सव					 : | पुं० [सं० उद्√सु(गति)+अच्] १. ऐसा सामाजिक कार्यक्रम जिसमें लोग किसी विशिष्ट अवसर पर अथवा किसी विशिष्ट उद्देश्य से उत्साहपूर्वक आनन्द मनाते हैं। जैसे—वसंतोत्सव, विवाहोत्सव आदि। २. त्योहार। पर्व। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्सव-गीत					 : | पुं० [ष० त०] लोक गीतों के अंतर्गत ऐसे गीत जो पुत्र-जन्म, मुंडन, यज्ञोपवीत, विवाह आदि उत्सवों के समय गाये जाते हैं। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उत्साद					 : | पुं० [सं० उद्√सृद+घञ्] क्षय। विनाश। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उत्सादक					 : | वि० [सं० उद्√सृद्+णिच्+ण्वुल्-अक] [स्त्री० उत्सादिका] १. छोड़ने या त्यागनेवाला। २. नष्ट-भ्रष्ट करनेवाला। ३. विनाशक। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उत्सादन					 : | पुं० [सं० उद्√सृद्+णिच्-ल्युट्-अन] [भू० कृ० उत्सादित] १. छोड़ना। त्यागना। २. काट-छाँट या तोड़-फोडकर नष्ट करना। ३. अच्छी तरह खेत जोतना। ४. बाधक होना। बाधा डालना। ५. पहले की कोई आज्ञा या निश्चय रद करना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उत्सादित					 : | भू० कृ० [सं० उद्√सृद्+णिच्+क्त] १. जिसका उत्सादन किया गया हो या हुआ हो। २. (पद) जो तोड़ दिया गया हो। (एबालिश्ड) ३. (आज्ञा) जो रद कर दी गई हो। (सेट एसाइड) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उत्सार					 : | पुं० [सं० उद्√सृ (गति)+णिच्+अण्] दूर करना। हटाना। बाहर निकालना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उत्सारक					 : | वि० [सं० उद्√सृ+णिच्+ण्वुल्-अक] उत्सारण करने वाला। पुं० चौकीदार। पहरेदार। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उत्सारण					 : | पुं० [सं० उद्√सृ+णिच्+ल्युट-अन] [भू० कृ० उत्सारित] १. गति में लाना। चलाना। २. दूर करना। हटाना। ३. दर या भाव कम करना। ४. अतिथि या अभ्यागत का स्वागत करना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उत्साह					 : | पुं० [सं० उद्√सह् (सहन करना)+घञ्] मन की वह वृत्ति या स्थिति जिसके परिणाम स्वरूप मनुष्य प्रसन्न होकर और तत्परतापूर्वक कोई काम करने या कोई उद्देश्य सिद्ध करने लिए अग्रसर या प्रवृत्त होता है। साहित्य में इसे एक स्थायी भाव माना गया है। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उत्साहक					 : | वि० [सं० उद्√सह+ण्वुल्-अक] १. उत्साह देने या उत्साहित करनेवाला। २. अध्यवसायी और कर्मठ। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उत्साहन					 : | वि० [सं० उद्√सह्+णिच्+ल्युट-अन] १. किसी को उत्साह देना। उत्साहित करना। २. दृढ़ता-पूर्वक किया जानेवाला उद्यम। अध्यवसाय। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उत्साहना					 : | अ० [सं० उत्साह+ना (प्रत्यय)] उत्साह से भरना। उत्साहित होना। उदाहरण—बसत तहाँ प्रमुदित प्रसन्न उन्नति उत्सहि।-रत्ना। स० उत्साहित करना। उत्साह बढ़ाना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उत्साही (हिन्)					 : | वि० [सं० उत्साह+इनि] १. आनंद तथा तत्परतापूर्वक किसी काम में लगने वाला। २. जिसके मन में हर काम के लिए और हर समय उत्साह रहता हो। जैसे—उत्साही कार्यकर्त्ता। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उत्सुक					 : | वि० [सं० उद्√सु (गति)+क्विप्+कन्] [भाव० उत्सुकता औत्सुक्य] जिसके मन में कोई तीव्र या प्रबल अभिलाषा हो, जो किसी काम या बात के लिए कुछ अधीर सा हो। (ईगर) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उत्सुकता					 : | स्त्री० [सं० उत्सुक+तल्+टाप्] उत्सुक होने की अवस्था या भाव। मन की वह स्थिति जिसमें कुछ करने या पाने की अधीरता, पूर्ण प्रबल अभिलाषा होती है और विलंब सहना कठिन होता है। साहित्य में यह एक संचारी भाव माना जाता हैं। (ईगरनेस)। | 
			
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				| उत्सृष्ट					 : | भू० कृ० [सं० उद्√सृज् (छोड़ना)+क्त] १. जो उत्सर्ग के रूप में किया या लगाया गया हो। जिसका उत्सर्ग हुआ हो। २. छोड़ा या त्यागा हुआ। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उत्सृष्ट-वृत्ति					 : | पुं० [सं० तृ० त०] दूसरों के छोड़े या त्यागे हुए अन्न से जीविका निर्वाह करने की वृत्ति। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उत्सृष्टि					 : | स्त्री० [सं० उद्√सृज्+क्तिन्] १. उत्सर्ग। २. उत्सर्जन। | 
			
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				| उत्सेक					 : | पुं० [सं० उद्√सिच्(सींचना)+घञ्] [कर्त्ता० उत्सेकी] १. ऊपर की ओर उठना या बढ़ना। २. वृद्धि। ३. अभिमान। घमंड। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उत्सेचन					 : | पुं० [सं० उद्√सिच्+ल्युट-अन] [भू० कृ० उत्सिक्त] १. छिड़कने या सींचने की क्रिया या भाव। २. उफान। उबाल। | 
			
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				| उत्सेध					 : | पुं० [सं० उद्√सिध् (गति)+घञ्] १. ऊँचाई। २. बढ़ती। वृद्धि। ३. घनता या मोटाई। ४. शरीर का शोथ। सूजन। ५. देह। शरीर। ६. वध। हत्या। ७. आज-कल किसी वस्तु की कोई ऐसी आपेक्षिक ऊँचाई जो किसी विशिष्ट कोण, तल आदि के विचार से हो। (एलिवेशन) जैसे—(क) क्षैतिज कोण के विचार से तोप का उत्सेध। (ख) कुरसी या भू-तल के विचार से भवन का उत्सेध। | 
			
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				| उत्सेध-जीवी (बिन्)					 : | पुं० [सं० उत्सेध (वध)√जीव् (जीना)+णिनि] वह जो हत्या और लूट-पाट करके अपना निर्वाह करता हो। | 
			
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				| उत्स्य					 : | वि० [सं० उत्स+यत्] १. उत्स संबंधी। २. उत्स या सोते में होनेवाला या उससे निकला हुआ। | 
			
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				| उथपना					 : | स० [सं० उत्थापन] १. उठाना। २. उखाड़ना। अ० १. उठना। २. उखड़ना। | 
			
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				| उथरा					 : | वि० [भाव० उथराई]=उथला। | 
			
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				| उथलना					 : | अ० [सं० उत्-स्थल] १. अपने स्थान या स्थिति से इधर-उधर होना या हटना। २. डाँवाडोल होना। डगमगाना। स० किसी को स्थान या स्थिति विशेष से हटाकर अस्त-व्यस्त करना। | 
			
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				| उथल-पुथल					 : | स्त्री० [हिं० उथलना] ऐसी हलचल जो सब चीजों या बातों को उलट-पुलट कर अस्त-व्यस्त या तितर-बितर कर दे। वि० जिसमें बहुत बड़ा उलट-फेर हुआ हो। अस्त-व्यस्त किया हुआ। | 
			
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				| उथला					 : | वि० [सं० उत्+स्थल] [स्त्री० उथली] १. (पात्र) जिसकी गहराई कम हो। २. (जलाशय) जो कम गहरा हो। छिछला। ३. (स्थल) जिसकी ऊँचाई अधिक हो। कम ऊँचा। ४. (व्यक्ति) जिसके स्वभाव में गंभीरता न हो। ओछा। | 
			
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				| उथापना					 : | स० [सं० उत्थापन] १. ऊपर उठाना या खड़ा करना। २. उखाड़ना। ३. दे० ‘थापना’।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उद्					 : | उप० [सं०√उ(शब्द)+क्विप्+तुक्] एक संस्कृत उपसर्ग जो संधि के नियमों के अनुसार कुछ अवस्थाओं में उत् भी हो जाता है, और जो क्रियाओं विशेषणों तथा संज्ञाओं के आरंभ में लगकर उनमें ये आर्थी विशेषताएँ उत्पन्न करता है-१. उच्च या ऊँचा, जैसे—उत्कंठ, उद्ग्रीव। २. ऊपर की ओर जानेवाली क्रिया, जैसे—उत्क्षेपण, उत्सारण, उद्गमन। ३. अधिकता या प्रबलता, जैसे—उत्कर्ष, उत्साह, उद्वेग। ४. उत्तम या श्रेष्ठ, जैसे—उदार, उदभट। ५. अलग किया, छोड़ा या बाहर निकाला हुआ। जैसे—उत्सर्ग, उद्गार, उद्वासन। ६. मुक्त या रहित, जैसे—उद्दंड, उद्दाम। ७. प्रकट या प्रकाशित किया हुआ, जैसे—उत्क्रोश, उद्घोषणा, उद्योतन। ८. विशिष्ट रूप से दिखलाया, बतलाया या माना हुआ, जैसे—उद्दिष्ट, उद्देश्य। ९. लाँघना या लाँघकर पार करना, जैसे—उत्तीर्ण, उद्वेल। १. दुष्ट या बुरा, जैसे—उन्मार्ग आदि। कहीं-कहीं यह प्रसंग के अनुसार आश्चर्य, दुर्बलता, पार्थक्य लाभ विभाग समीप्य आदि का भी सूचक हो जाता है। विशेष—व्याकरण में, संधि के नियमों के अनुसार उत् या उद् का रूप प्रसंगतः उच् (जैसे—उच्चारण उच्छिन्न) उज् (जैसे—उज्जीवन,उज्ज्वल) उड्(जैसे—उड्डीन) या उन्(जैसे—उन्मुख,उन्मेष) भी हो जाता है। पुं० १. ब्रह्म। २. मोक्ष। ३. सूर्य। ४. जल। पानी। | 
			
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				| उदंगल					 : | वि० [सं० उद्दण्ड] [स्त्री० उदंगली] १. उद्दंड। उद्वत। २. प्रबल। प्रचंड।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उदंचन					 : | पुं० [सं० उद्√अञ्ज् (गति)+ल्युट-अन] [भू० कृ० उदंचित] १. ऊपर की ओर खींचने, फेकने, ले जाने आदि की क्रिया या भाव। २. कुएँ आदि से जल निकालना। ३. वह पात्र जिससे कुएँ में से जल निकाला जाता हो। जैसे—घड़ा, बाल्टी आदि। | 
			
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				| उदंड					 : | वि०=उद्दंड।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उदंत					 : | पुं० [सं० उद्-अंत] किसी अंत या सीमा तक पहुँचने की क्रिया या भाव। वि० [ब० स०] १. सीमा तक पहुँचनेवाला। २. योग्य। श्रेष्ठ। वि० [सं० अ-दंत] बिना दाँत का। जैसे—उद्दंत बछड़ा या बैल। | 
			
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				| उदंतक					 : | पुं० [सं० उदंत+कन्] वार्ता। वृत्तांत। | 
			
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				| उदंसना					 : | स० [सं० उत्सादन] उखाड़ना। उदाहरण—रत रति कंस उदंसि सिख किस खंचित नियकाल।—चंदवरदाई। अ० उखड़ना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उदउ					 : | पुं०=उदय।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उदक					 : | पुं० [सं०√उन्द् (भिगोना)+क्वुन्-अक] जल। पानी। | 
			
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				| उदक-क्रिया					 : | स्त्री० [सं० मध्य० स०] १. मृतक के उद्देश्य से दी जानेवाली तिलांजलि। २. पितरों का तर्पण। | 
			
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				| उदक-दाता (तृ)					 : | वि० [ष० त०] पितरों को जल देने या उनका तर्पण करनेवाला (अर्थात् उत्तराधिकारी)। | 
			
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				| उदक-दान					 : | पुं० [ष० त०] =तर्पण। | 
			
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				| उदकना					 : | अ० [सं० उद्ऊपर+कउदक] उछलना-कूदना(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उदक-परीक्षा					 : | पुं० [मध्य० स०] शपथ का एक प्राचीन प्रकार जिसमें शपथ करनेवाले को अपनी बात की सत्यता प्रमाणित करने के लिए जल में कुछ समय के लिए डुबकी लगानी पड़ती थी। | 
			
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				| उदक-प्रमेह					 : | पुं० [सं० मध्य० स०] प्रमेह (रोग) का एक भेद जिसमें बहतु अधिक पेशाब होता है और उस पेशाब के साथ कुछ वीर्य भी निकलता है। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उदक-मेह					 : | पुं०=उदकप्रमेह। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उदकहार					 : | पुं० [सं० उदक√हृ+अण्] वह जो दूसरों के लिए पानी भरने का काम करता हो। पनभरा। | 
			
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				| उदकांत					 : | पुं० [सं० उदक-अंत, ब० स०] जलाशय या नदी का किनारा। तट। | 
			
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				| उदकिल					 : | वि० [सं० उदक+इलच्] १. जल से युक्त। २. जल-संबंधी। जलीय। | 
			
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				| उदकोदर					 : | पुं० [सं० उदक-उदर, मध्य० स०] जलोद। (रोग)। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उदक्त					 : | वि० [सं०√अञ्ज् (गति)+क्त] १. ऊपर उठा या उठाया हुआ। २. उक्त। कथित। | 
			
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				| उदक्य					 : | वि० [सं० उदक+य] १. उदक या जल में होनेवाला। २. जल से युक्त। जलीय। ३. ऐसा अपवित्र या अशुद्ध जो जल से धोने पर पवित्र या शुद्ध हो सके। पुं० जल में होनेवाला अन्न। जैसे—धान। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उदगद्रि					 : | पुं० [सं० उदक (ञ्ज्-अयन, स० त०] उत्तर दिशा का पर्वत, अर्थात् हिमालय। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उदगयन					 : | अ० [सं० उदक् (ञ्ज्)-अयन, स० त०] दे० ‘उत्तरायण’। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उदगरना					 : | अ० [सं० उद्गागारण] १. उदगार के रूप में या उद्गार के फलस्वरूप बाहर निकालना। २. प्रकट होना। सामने आना। ३. उभड़ना या भड़काना। स० १. उदगार के रूप में बाहर निकालना। २. प्रकट करना। ३. उभाड़ना या भड़कना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उदगर्गल					 : | पुं० [सं० उद (ञ्ज्)क-अर्गल, ष० त०] ज्योतिष का वह अंग जिससे यह जाना जाता है कि अमुक स्थान में इतने हाथ पर जल है। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उदगार					 : | पुं०=उद्गार।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्गारना					 : | स० [सं० उद्गार] १. मुँह से बाहर निकालना। २. उगलना। उभाड़ना, भड़काना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उदगारी					 : | वि० [हिं० उद्गारना] १. उगलनेवाला। उगलना। निकालने या फेकनेवाला। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उदग्ग					 : | वि० उदग्र।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उदग्र					 : | वि० [सं० उद्-अग्र, ब० स०] १. जो सीधा ऊपर की ओर गया हो। ऊर्ध्व। (वर्टिकल) २. ऊँचा। उन्नत। ३. बढ़ा हुआ। ४. उभड़ा या उमड़ा हुआ। ५. उग्र। तेज। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उदग्र-शिर					 : | वि० [ब० स०] जिसका मस्तक ऊपर हो। उन्नत भालवाला। उदाहरण—वे डूब गये सब डूब गये दुर्दम, उदग्रशिर अद्रिशिखर।—पंत। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उदघटना					 : | अ० [सं० उदघट्टन-संचालन] १. प्रकट होना या बाहर निकलना। २. उदित होना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उदघाटन					 : | पुं०=उद्घाटन।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उदघाटना					 : | स० [सं० उद्घाटन] १. उद्घाटन करना। २. प्रकट या प्रत्यक्ष करना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उदजन					 : | पुं० [सं० उद्-जन] एक प्रकार का अदृश्य गंधहीन और वर्णहीन वाष्प जिसकी गणना तत्त्वों में होती है। (हाइड्रजोन) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उदथ					 : | पुं० [सं० उद्गीथ] सूर्य।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उदधि					 : | पुं० [सं० उदक√धा (धारण करना)+कि, उद आदेश] १. सागर। २. घड़ा। ३. बादल। मेघ। ४. रह्स्य संप्रदाय में, (क) अंतःकरण या हृदय और (ख) देह या शरीर। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उदधि-मेखला					 : | स्त्री० [ब० स०] समुद्र जिसकी मेखला है, अर्थात् पृथिवी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उदधि-वस्त्रा					 : | स्त्री० [ब० स०] पृथिवी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उदधि-सुत					 : | पुं० [ष० त०] वे सब जो समुद्र से उत्पन्न माने गये हैं। जैसे—अमृत, कमल, चंद्रमा शंख आदि। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उदधि-सुता					 : | स्त्री० [ष० त०] १. समुद्र की पुत्री, लक्ष्मी। २. सीपी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उदधीय					 : | वि० [सं० उदधि+छ-ईय] समुद्र संबंधी। समुद्र का। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उदन्य					 : | वि० [सं० उदक+य,उदन् आदेश] १. जल से युक्त। जलीय। प्यासा। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उदपान					 : | पुं० [सं० उदक√पा(पीना)+ल्युट-अन,उद आदेश] कमंडलु जिसमें साधु लोक पीने का जल रखते हैं। २. कुआँ। ३. कुएँ के पास का गड्डा। ४. वह स्थान जहाँ जल हो। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उदबर्त					 : | पुं०=उद्वर्तन।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उदबर्त					 : | वि० [हि० उद्वासन-स्थान से हटाना] १. जिसके रहने का स्थान नष्ट कर दिया गया हो। २. उजड़ा या उजाड़ा हुआ। ३. किसी एक स्थान पर टिक कर न रहनेवाला।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उदबासना					 : | स० [सं० उद्वासन] १. कहीं बसे हुए आदमी को उसकी जगह से भगा या हटा देना। उदाहरण—नंद के कुमार सुकुमार को बसाइ यामैं, ऊधौ अबाहाइ कै बिआस, उदबासैं हम।—रत्ना। २. नष्ट-भ्रष्ट करना। उजाड़ना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उदवेग					 : | पुं०=उद्वेग।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उदभट					 : | वि०=उद्भट।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उदभव					 : | पुं०=उद्भव।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उदभौत					 : | वि० अदभुत। उदाहरण—सूर परस्पर कह गोपिका यह उपजी उदभौति।—सूर। वि०=उदभूत।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उदभौति					 : | स्त्री०=उद्भूति।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उदमद					 : | वि० दे० ‘उन्मत्त’।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उदमदना					 : | अ० [सं० उद्+मद] उन्मत्त होना। अ० उन्मत्त होना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उदमाता					 : | वि० [सं० उन्मत्त] [स्त्री० उदमाती] मतवाला। मत्त। मस्त।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उदमाद					 : | पु०=उन्माद।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उदमादना					 : | वि० [सं० उन्मत्त] उन्मत्त करना। अ० उन्मत्त होना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उदमादी					 : | वि०=उन्मादी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उदमान					 : | वि०=उन्मत्त। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उदमानना					 : | अ० स० दे० ‘उदमादना’। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उदय					 : | पुं० [सं० उद्√इ(गति)+अच्] [वि० उदीयमान, भू० कृ० उदित] १. ऊपर की ओर उठने, उभरने या बढ़ने की क्रिया या भाव। २. ग्रह, नक्षत्रों आदि का क्षितिज से ऊपर उठकर आकाश में आना और दृष्य होना। ३. प्रकट या प्रत्यक्ष होना। सामने आना। ४. किसी नई शक्ति आदि का उद्भव होना या नई शक्ति से युक्त होकर प्रबल रूप में सामने आना। जैसे—चीन या भारत का उदय। ५. पद आदि में होनावाली उन्नति। समृद्धि। (राइज, उक्त सभी अर्थों में) ६. उत्पत्ति का स्थान। उद्गम। ७. आय। ८. लाभ। 9० ब्याज। १. ज्योति। ११. दे० ‘उदयाचल’। | 
			
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				| उदयगढ़					 : | पुं० [सं० उदय+हिं० गढ] उदयाचल। | 
			
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				| उदय-गिरि					 : | पुं० [ष० त०] उदयाचल (दे०)। | 
			
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				| उदयना					 : | अ० [हिं० उदय] उदय होना। उदाहरण—पाइ लगन बुद्ध केतु तौ उदयौ हूझे अस्त।—हरिशचन्द्र।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उदयसैल					 : | पुं०=उदयाचल।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उदयाचल					 : | पुं० [सं० उदय-अचल, ष० त०] पुराणानुसार पूर्व दिशा में स्थित एक कल्पित पर्वत जिसके पीछे से नित्य सूर्य का उदित होना या निकलना माना गया है। | 
			
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				| उदयातिथि					 : | स्त्री० [सं० उदय+अच्-टाप् उदया तिथि व्यस्त पद] वह तिथि जिसमें सूर्योदय हो। (ज्यो०)। | 
			
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				| उदयाद्रि					 : | पुं० [सं० उदय-अद्रि, ष० त०] =उदयाचल। | 
			
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				| उदयास्त					 : | पुं० [सं० उदय-अस्त, द्व० स०] १. उदय और अस्त। २. उत्थान और पतन। | 
			
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				| उदयी (यिन्)					 : | वि० [सं० उदय+इनि] १. जिसका उदय हो रहा हो। ऊपर की उठता या बढ़ता हुआ। २. उन्नतिशील। | 
			
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				| उदरंभर					 : | वि०=उदरंभरि।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उदरंभरि					 : | वि० [सं० उदय√भृ(भरण करना)+इन्, मुम] [भाव० उदरंभरी] १. जो केवल अपना पेट भरता हो। २. पेटू। ३. स्वार्थी। उदाहरण—केवल दुख देकर उदरंभरि जन जाते।—निराला। | 
			
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				| उदर					 : | पुं० [सं० उद√दृ (विदारण)+अच्] [वि० औदरिक] १. शरीर का वह भाग जो हृदय और पेडू के बीच में स्थित है तथा जिसमें खाई हुई वस्तुएँ पहुँचती है। पेट (एब्डाँमेन) २. भीतर का ऐसा भाग जिसमें कोई चीज रहती हो या रह सके। | 
			
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				| उदरक					 : | वि० [सं० उदय से] उदर-संबंधी। | 
			
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				| उदर-गुल्म					 : | पुं० [ष० त०] वायु के प्रकोप से पेट फूलने का एक रोग। | 
			
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				| उदर-ग्रंथि					 : | स्त्री० [ष० त०] तिल्ली या प्लीहा का एक रोग। | 
			
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				| उदर-ज्वाला					 : | स्त्री० [ष० त०] १. जठराग्नि। २. भूख। | 
			
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				| उदर-त्राण					 : | पुं० [ष० त०] वह कवच या त्राण जिसे सैनिक पेट के ऊपर बाँधते हैं। | 
			
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				| उदरथि					 : | पुं० [सं० उद√ऋ (गति)+अथिन्] १. सूर्य। २. समुद्र। | 
			
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				| उदर-दास					 : | पुं० [ष० त०] १. सेवक। २. पेटू। ३. स्वार्थी। | 
			
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				| उदरना					 : | अ० [हिं० उदारना०] १. फटना। २. छिन्न-भिन्न होना। अ०=उतरना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उदर-परायण					 : | वि० [स० त०] १. पेटू। २. सावर्थी। | 
			
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				| उदर-पिशाच					 : | वि० [च० त०] आवश्यकता से बहुत अधिक खानेवाला। | 
			
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				| उदर-रेख					 : | स्त्री०=उदर-रेखा।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उदर-रेखा					 : | स्त्री० [ष० त०] पेट पर पड़नेवाली रेखा। त्रिबली। | 
			
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				| उदर-वृद्धि					 : | स्त्री० [ष० त०] पेट का बढ़ या फूल जाना जो एक रोग माना जाता है। जलोदर। | 
			
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				| उदराग्नि					 : | स्त्री० [उदर-अग्नि, ष० त०] =जठराग्नि। | 
			
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				| उदरामय					 : | पुं० [उदर-आमय, ष० त०] पेट में होनेवाला कोई रोग। | 
			
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				| उदरावरण					 : | पुं० [उदर-आवरण, ष० त०] [वि० उदरावरणीय] वह झिल्ली जो उदर को चारों ओर से घेरे रहती है। (पेरिटोनियम) | 
			
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				| उदरावर्त					 : | पुं० [उदर-आवर्त, ष० त०] नाभि। | 
			
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				| उदरिक					 : | वि० [सं० उदर+ठन्-इक] १. जिसका पेट फूला या बढ़ा हो। २. मोटा। स्थूल-काय। | 
			
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				| उदरिणी					 : | स्त्री० [सं० उदर+इनि-ङीष्] गर्भवती स्त्री। | 
			
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				| उदरिल					 : | वि० [सं० उदर+इलच्] =उदरिक। | 
			
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				| उदरी (रिन्)					 : | वि० [सं० उदर+इनि] बड़ी तोंदवाला। | 
			
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				| उदर्क					 : | पुं० [सं० उद√ऋच् (स्तुति)+घञ्] १. अंत। समाप्ति। २. क्रिया आदि का परिमाण या फल। ३. भविष्यत् काल। ४. मीनार। ५. धतूरे का पेड़। | 
			
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				| उदर्द					 : | पुं० [सं० उद√अर्द (पीड़ा)+अच्] जुड़-पित्ती नामक रोग। | 
			
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				| उदर्य					 : | वि० [सं० उदर+यत्] उदर या पेट में होने अथवा उससे संबंध रखनेवाला। पुं० पेट के भीतरी अंग। | 
			
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				| उदवना					 : | अ, [सं० उदयन] १. उदित होना। २. उगना या निकलना। ३. प्रकट या प्रत्यक्ष होना। उदाहरण—दिन-दिन उदउ अनंद अब, सगुन सुमंगल देन।—तुलसी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उदवाह					 : | पुं०=उद्वाह।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उदवेग					 : | पुं०=उद्वेग।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उदसना					 : | अ० [सं० उदसन-नष्ट करना] १. उजड़ना। २. नष्ट-भ्रष्ट होना। ३. उदास होना। सं० १. उजाड़ना। २. नष्ट-भ्रष्ट करना। ३. उदास करना या बनाना। | 
			
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				| उदात्त					 : | वि० [सं० उद्-आ√दा (देना)+क्त] १. ऊँचा बना हुआ। २. ऊँचे स्वर में कहा हुआ। ३. उदार। दाता। ४. दयावान। ५. उत्तम। श्रेष्ठ। ६. साफ। स्पष्ट। ७. सशक्त। समर्थ। पुं० १. वैदिक स्वरों के उच्चारण का एक प्रकार भेद। २. संगीत में, बहुत ऊंचा स्वर। ३. साहित्य में, एक अलंकार जिसमें वैभव आदि का बहुत बढ़ा-चढ़ाकर वर्णन किया जाता है। ४. एक प्रकार का पुराना बाजा। | 
			
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				| उदान					 : | पुं० [सं० उद्-आ√अन् (जीना)+घञ्] १. ऊपर की ओर साँस खींचना। २. शरीर की पाँच प्राणभूत वायुओं में से एक वायु जिसका स्थान कंठ से भूमध्य तक माना जाता है। छींक-डकार आदि इसी से उद्भूत माने जाते हैं। | 
			
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				| उदाम					 : | वि०=उद्दाम।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उदायन					 : | पुं० उद्यान (बगीचा)। पुं० [?] किसी चीज का तल या सतह बराबर करना। (लेवलिंग)(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उदार					 : | वि० [सं० उद्+आ√रा (देना)+क] १. जो लोगों को हर चीज खुले दिल से और यथेष्ठ देता हो। दानी। २. जो स्वभाव से नम्र और सुशील हो और पक्षपात या संकीर्णता का विचार छोड़कर सबके साथ खुले दिल से आत्मीयता का व्यवहार करता हो। ३. (कार्य, क्षेत्र या विषय) जिसमें औरों के लिए भी अवकाश या गुंजाइश रहती हो या निकल सकती हो। (लिबरल) पुं० योग में अस्मिता, राग, द्वेष और अभिनिवेश इन चारों क्लेशों का एक भेद या अवस्था जिसमें कोई क्लेश अपने पूर्ण रूप में वर्त्तमान रहता हुआ अपने विषय का ग्रहण करता है। पुं० [देश०] गुलू नामक वृक्ष। (अवध)। | 
			
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				| उदार-चरित					 : | वि० [ब० स०] सबके साथ खुले हृदय से आत्मीयता और सज्जनता का व्यवहार करनेवाला। | 
			
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				| उदार-चेता (तस्)					 : | वि० [ब० स०] जिसके चित या विचारों में उदारता हो। | 
			
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				| उदारता					 : | स्त्री० [सं० उदार+तल्+टाप्] उदार होने की अवस्था, गुण या भाव। | 
			
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				| उदारता-वाद					 : | पुं० [ष० त०] [वि० उदारतावादी] आधुनिक आर्थिक तथा राजनीतिक क्षेत्रों में वह वाद या सिद्धांत जो यह मानता है कि सब लोगों को समान रूप से सुभीते और स्वतंत्र रहने के अधिकार मिलने चाहिए (लिबरलिज्म) | 
			
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				| उदारतावादी (दिन्)					 : | वि० [सं० उदारता√वद् (बोलना)+णिनि] उदारता-संबंधी। पुं० वह जो उदारता का अनुयायी और समर्थक हो। | 
			
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				| उदार-दर्शन					 : | वि० [ब० स०] देखने में भला और सुन्दर। | 
			
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				| उदारना					 : | स० [सं० उद्दारण] छिन्न-भिन्न करना या तोड़ना-फोड़ना। स० [सं० विदीरण] नोचना या फाड़ना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उदाराशय					 : | वि० [उदार-आशय, ब० स०] अच्छे और उदार विचारोंवाला। | 
			
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				| उदावत्सर					 : | पुं० [सं० उद्-आ-वत्सर, प्रा० स०] संवत्सर। | 
			
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				| उदावर्त					 : | पुं० [सं० उद्-आ√वृत (बरतना)+घञ्] एक रोग जिसमें मल-मूत्र आदि के रूप जाने के कारण काँच बाहर निकल आती है। गुद-ग्रह। | 
			
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				| उदावर्ता					 : | स्त्री० [सं० उदावर्त+टाप्] एक रोग जिसमें मासिक धर्म रुक जाने के कारण (स्त्रियों की) योनि में से फेनिल रुधिर निकलता है। | 
			
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				| उदास					 : | वि० [सं० उद्√आस् (बैठना)+अच्] १. जो किसी प्रकार की अपेक्षा या अभाव के कारण अथवा भावी अनिष्ट की आशंका से खिन्न और चिंतित हो और इसी लिए जिसका मन किसी काम या बात में न लगता हो। जैसे—नौकरी छूट जाने के कारण वह उदास रहता है। २. जिसका मन किसी काम, चीज या बात की ओर से हट गया हो। उदासीन। विरक्त। उदाहरण—तुम चाहहु पति सहज उदासा।—तुलसी। ३. जिसके मन में किसी बात के प्रति अनुराग या प्रवृत्ति न रह गई हो। तटस्थ। निरपेक्ष। उदाहरण—एक उदास भाय सुनि रहहीं।—तुलसी। ४. (पदार्थ या स्थान) जिसमें पहले का सा आकर्षण, प्रफुल्लता या रस न रह गया हो। जिसकी अच्छी बातें फीकी और हलकी पड़ गई हों। जैसे—(क) महीने-दो महीने में ही इस साड़ी का रंग उदास हो जायेगा। (ख) लड़कों के चले जाने से घर उदास हो गया। पुं० उदासी। उदाहरण—काहुहि सुख पै काहुहि उदास।—कबीर। पुं० [सं० उद्वासन] किसी को कही से हटाने या भगाने के लिए किया जानेवाला कार्य या प्रयोग। उदाहरण—सुरूप को देश उदास की कीलनि कीलित कै कि कुरूप नसायो।—केशव।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उदासना					 : | स० [सं० उद्वासन] १. तितर-बितर या नष्ट-भ्रष्ट करना। उजा़ड़ना। २. (बिस्तर) समेटना या बटोरना। अ० [हिं० उदास] उदास होना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उदासल					 : | वि०=उदास।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उदासिल					 : | वि०=उदास।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उदासी					 : | स्त्री० [हिं० उदास+ई प्रत्यय०] उदास होने की अवस्था या भाव० उदासपन। पुं० [सं० उदासिन्] १. सांसारिक बातों से उदासीन, त्यागी और विरक्त व्यक्ति। संन्यासी या साधु। २. गुरु नानक के पुत्र श्री चंद्र का चलाया हुआ एक साधु संप्रदाय। ३. उक्त संप्दाय का अनुयायी, विरक्त या साधु। | 
			
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				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उदासीन					 : | वि० [सं० उद्√आस्+शानच्] [भाव० उदासीनता] १. अलग या दूर बैठने या रहनेवाला। २. जिसके मन में किसी प्रकार की आसक्ति कामना आदि न हो। ३. जो सांसारिक मोह-माया आदि से निर्लिप्त या रहित हो। विरक्त। ४. जो परस्पर विरोधी पक्षों से किसी पक्ष का समर्थक या सहायक न हो। तटस्थ और निष्पक्ष। ५. जो किसी विषय (या व्यक्ति) की बातों में कुछ भी अनुरक्त न हो। विरक्त भाव से अलग रहनेवाला। (इन्डिफरेन्ट) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उदासीनता					 : | स्त्री० [सं० उदासीन+तल्-टाप्] १. उदासीन होने की अवस्था, गुण या भाव। २. मन की ऐसी वृत्ति जो किसी को किसी काम या बात में अनुरक्त नहीं होने देती और उससे अलग रखती है। (एपैथी)। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उदासी-बाजा					 : | पुं० [हिं० उदासी+फा०बाजा] एक प्रकार का भोंपा। (बाजा)। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उदाहट					 : | स्त्री० ऊदापन। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उदाहरण					 : | पुं० [सं० उद्-आ√हृ(हरण करना)+ल्युट्-अन] १. नियम, सिद्धांत आदि को अच्छी तरह बोधगम्य तथा स्पष्ट करने के लिए उपस्थित किए हुए तथ्य। ऐसी बात या तथ्य जिससे किसी कथन, सिद्धांत आदि की सत्यता प्रकट तथा सिद्ध होती हो। (एग्जाम्पुल) २. ऐसा आचरण, कृति या क्रिया जो दूसरों को अनुकरण करने के लिए प्रोत्साहित करे। ३. न्याय में, वाक्य के पाँच अवयवों में से एक जिसके द्वारा साध्य या वैधर्म्य सिद्ध होता है। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उदाहार					 : | पुं० [सं० उद्-आ√हृ+घञ्] =उदाहरण। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उदाहृत					 : | भू० कृ० [सं० उद्-आ√हृ+क्त] १. कहा या घोषित किया हुआ। २. उदाहरण के रूप में उपस्थित किया हुआ। | 
			
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				| उदाहृति					 : | स्त्री० [सं० उद्-आ√हृ+क्तिन्] १. उदाहरण। २. नाट्यशास्त्र में, किसी प्रकार का उत्कर्ष युक्त वचन, कहना जो गर्भसंधि के तेरह अंगों में से एक है। (नाट्यशास्त्र)। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उदिआन					 : | पुं०=उद्यान। (बगीचा)(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उदिक					 : | वि० [सं० उद से] १. जल-संबंधी। २. उस जल से संबंध रखनेवाला जो नल के द्वारा कहीं पहुँचता हो। (हाउड्रालिक) पुं० [सं० उदक] वीर्य। शुक्र। उदाहरण—उदिक राषंत ते पुरिषागता।—गोरखनाथ। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उदित					 : | भू० कृ० [सं० उद√इ(गति)+क्त] [स्त्री० उदिता] जिसका (या जो) उदय हुआ हो। | 
			
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				| उदित-यौवना					 : | स्त्री० [ब० स०] साहित्य में, ऐसी नवयुवती नायिका जिसमें अभी कुछ-कुछ लड़कपन भी बचा हो। (मुग्धा के सात भेदों में से एक)। | 
			
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				| उदिताचल					 : | पुं०=उदयाचल। | 
			
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				| उदिति					 : | स्त्री० [सं० उद्√इ+क्तिन्] १. उदय। भाषण। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उदियाना					 : | अ० [सं० उद्विग्न] उद्विग्न होना। स० उद्विग्न करना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उदीची					 : | स्त्री० [सं० उद√अञ्ज् (गति)+क्विप्-ङीष्] उत्तर दिशा। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उदीचीन					 : | वि० [सं० उदीची+ख-ईय] उत्तर दिशा का। उत्तरी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उदीच्य					 : | वि० [सं० उदीची+यत्] उत्तर दिशा का। उत्तरी। पुं० १. प्राचीन भारत में सरस्वती के उत्तर-पश्चिम गंधार और वाहलीक देशों का संयुक्त नाम। २. यज्ञ आदि कार्य के पीछे होनें वाले दानदक्षिणादि कृत्य। ३. वैताली छंद का एक भेद। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उदीप					 : | वि० [सं० उद-आप, ब० स० अच्, ईत्व] (प्रदेश) जो बाढ़ आदि के कारण जल से भर गया हो। पुं० नदी की बाढ़। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उदीपन					 : | पुं०=उद्दीपन।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उदीपित					 : | वि०=उद्दीप्त।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उदीयमान					 : | वि० [सं० उद्√इ+यक्+शानच्,मुक्] [स्त्री० उदीयमाना] १. जिसका उदय हो रहा हो। २. उठता या उभड़ता हुआ। ३. आरंभ में ही जिसमें होनेहार के लक्षण दृष्टिगोचर होतें है। होनहार। (प्रॉमिसिंग)। | 
			
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				| उदीरण					 : | पुं० [सं० उद√ईर्(गति, कंपन)+ल्युट्-अन] १. कथन। २. उच्चारण। ३. उद्दीपन। ४. उत्पत्ति। ५. जँभाई। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उदीरणा					 : | स्त्री० [सं० उद√ईर्+णिच्+युच्-अन-टाप्] प्रेरणा। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उदीर्ण					 : | वि० [सं० उद√ऋ(गति)+क्त] १. उदित। २. उत्पन्न। ३. प्रबल। ४. अभिमानी। पुं० विष्णु। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उदुंबर					 : | पुं० [सं० उडुम्बर, उकोद] [वि० औदुंबर] १. गूलर का वृक्ष और उसका फल। २. चौखट। ३. दहलीज। ४. नपुंसक। नामर्द। ५. एक प्रकार का कोढ़ (रोग) ६. ताँबा। ७. अस्सी रत्ती की एक पुरानी तौल। ८. एक प्राचीन जाति जो रावी और व्यास के बीच में त्रिगर्त के दक्षिण में राज्य करती थी। उदुंबर-पर्णी - स्त्री० [ब० स०ङीष्] दंती नामक वृक्ष। दाँती। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उदुआ					 : | पुं० [?] एक तरह का मोटा जड़हन धान।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उदूल					 : | पुं० [अ०] आज्ञा का उल्लंघन या अवज्ञा। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उदेग					 : | पुं०=उद्वेग।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उदेल					 : | पुं० [अ० ऊद] लोहबान।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उदेश					 : | पुं० [सं० उद्देश्य] खोज। तलाश। (मैथिली) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उदेसः					 : | पुं० [सं० उद्देश्य] १. चिन्ह। पता। उदाहरण—सैयाँ के उदेसवा बता दे बटोही केने जाऊँ।—लोक गीत। २. दे० उद्देश्य। पुं० [सं० उत्+देश] परदेस। विदेश। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उदै					 : | पुं०=उदय।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उदो					 : | पुं०=उदय।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उदोत					 : | पुं० उद्योत। वि० १. शुभ्र। २. प्रकाशित। ३. उज्ज्वल। प्रकाशमान। वि० [सं० उदभूत] उत्पन्न।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उदोतकर					 : | वि० [सं० उद्योतकर] १. प्रकाशक। २. चमकानेवाला।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उदोती					 : | वि० [सं० उद्योत] १. प्रकाश से युक्त। चमकीला। २. प्रकाश या प्रकाशित करनेवाला।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उदौ					 : | पुं०=उदय।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उद्गंधि					 : | वि० [सं० ब० स०, इत्व] तीव्र या तीक्ष्ण गंधवाला। | 
			
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				| उद्गत					 : | वि० [सं० उद्√गम्(जाना)+क्त] १. निकला हुआ। उत्पन्न। २. प्रकट। ३. फैला हुआ। ४. वमन किया हुआ। ५. प्राप्त। लब्ध। | 
			
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				| उद्गतार्थ					 : | पुं० [सं० उदगत-अर्थ, कर्म० स०] ऐसी चीज जिसका दाम कुछ समय तक पड़े रहने से ही बढ़ गया हो। (अर्थशास्त्र) | 
			
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				| उद्गम					 : | पुं० [सं० उद्√गम्+अप्] १. आर्विभाव होना। २. आर्विभाव या उत्पत्ति का स्थान। ३. नदी के निकलने का स्थान। | 
			
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				| उद्गमन					 : | पुं० [सं० उद्√गम्+ल्युट-अन] आर्विभाव का उदभव। | 
			
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				| उद्गाढ़					 : | वि० [सं० उद्√गाह(मथना)+क्त]१. गहरा। २. तीव्र। प्रचंड। ३. बहुत अधिक। पुं० आतिशय्य। | 
			
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				| उद्गाता					 : | पुं० [सं० उद्√गै (शब्द)+तृच्] यज्ञ में सामवेदीय कृत्य करनेवाला ऋत्विज्। | 
			
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				| उद्गाथा					 : | स्त्री० [सं० उद्-गाथा, प्रा० स०] आर्या छंद का एक भेद। उग्गाहा। गीत, जिसके विषम पादों में १२ और सम पादों में १8 मात्राएँ होती है। | 
			
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				| उद्गार					 : | पुं० [सं० उद्√गृ (लीलना, शब्द)+घञ्] [वि० उद्गारी, भू० कृ० उद्गारित] तरल पदार्थ का वेगपूर्वक ऊपर उठकर बाहर निकलना। उफान। २. इस प्रकार वेग से बाहर निकला हुआ तरल पदार्थ। ३. वमन किया हुआ पदार्थ। ४. मुँह से निकला हुआ कफ। थूक। ५. खट्टा। डकार। ६. आधिक्य। बाढ़। उदाहरण—जब जब जो उद्गार होइ अति प्रेम विध्वंसक।—नंददास। ७. अधीरता आवेश आदि की अवस्था में मुँह से निकली हुई ऐसी बातें जो कुछ समय से मन में दबी रही हों। | 
			
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				| उद्गारी (रिन्)					 : | वि० [सं० उद्√गृ (निगलना)+णिनि] १. उद्गार की क्रिया करने वाला। २. ऊपर की ओर या बाहर निकलने या निकालनेवाला। ३. डकार लेनेवाला। ४. कै या वमन करनेवाला। पुं० ज्योतिष में, बृहस्पति के बारहवें युग का दूसरा वर्ष। कहते हैं कि इसमें राज क्षय, उत्पात आदि होते हैं। | 
			
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				| उद्गिरण					 : | पुं० [सं० उद्√गृ+ल्युट-अन] १. उगलने थूकने या बाहर फेकने की क्रिया या भाव। २. वमन। कै। ३. लार। ४. डकार। | 
			
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				| उद्गीति					 : | स्त्री० [सं० उद्√गै (गाना)+क्तिन्] १. आर्या छंद का भेद जिसके पहले और तीसरे चरण में बारह-बारह, दूसरे में पंद्रह और चौथे में अट्टारह मात्राएँ होती है। | 
			
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				| उद्गीथ					 : | पुं० [सं० उद्√गै+थक्] १. एक प्रकार का सामगान। २. सामवेद। ३. ओंकार। | 
			
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				| उद्गीर्ण					 : | भू० कृ० [सं० उद्√गृ+क्त] १. उगला, थूकने या मुँह से बाहर निकाला हुआ। २. बाहर निकाला या फेंका हुआ। ३. गिरा या टपका हुआ। ४. उद्गार के रूप में कहा हुआ। ५. प्रतिबिंबित। | 
			
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				| उद्गेय					 : | वि० [सं० उद्√गै+यत्] १. जो गाये जाने को हो। २. जो गाये जाने के योग्य हो। | 
			
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				| उद्ग्रंथ					 : | वि० [सं० ब० स०] जिसका गाँठ या बंधन खोल दिया गया हो। २. खुला हुआ। मुक्त। पुं० १. अध्याय। २. धारा। | 
			
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				| उदग्रहण					 : | पुं० [सं० उद्√ग्रह(लेना)+ल्युट-अन] [वि० उद्ग्रहणीय, भू० कृ० उद्गृहीत] ऋण, कर आदि वसूल करने की क्रिया या भाव। | 
			
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				| उद्ग्रहणीय					 : | वि० [सं० उद्√ग्रह+अनीयर] जिसका उद्ग्रहण होने को हो या किया जाने को हो। | 
			
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				| उदग्राह					 : | पुं,० [सं० उद्√ग्रह+घञ्] [भू० कृ० उदग्राहित] १. ऊपर उठाना या लाना। २. उत्तर आदि के संबंध में की जानेवाली आपत्ति या तर्क। ३. डकार। ४. दे० ‘उगाही’। | 
			
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				| उदग्रीव, उदग्रीवी (विन्)					 : | वि० [सं० ब० स०] [उदग्रीवा, प्रा० स०+इनि] जिसकी गर्दन ऊपर उठी हो। जो गला ऊपर उठाये या किये हो। क्रि० वि० [सं० ] गर्दन उपर उठाये हुए। | 
			
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				| उदघट्टक					 : | पुं० [सं० उद्√घट्ट (चलाना)+घञ्+कन्] संगीत में ताल के साठ मुख्य भेदों में से एक। | 
			
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				| उद्घट्टन					 : | पुं० [सं० उद्√घट्ट+ल्युट-अन] [भू० कृ० उगघट्टित] १. उन्मोचन। खोलना। २. रगड़। ३. खंड। टुकड़ा। | 
			
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				| उद्घाटक					 : | वि० [सं० उद्√घट्+णिच्+ण्वुल्-अक] उद्घाटन करनेवाला। पुं० [सं० ] १. कुंजी। चाबी। २. कुएँ से पानी खींचने की चरखी। | 
			
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				| उद्घाटन					 : | पुं० [सं० उद्√घट्+णिच्+ल्युट-अन] १. आवरण या परदा हटाना। खोलना। २. एक आधुनिक परपाटी या रस्म जो कोई नया कार्य आरंभ करने के समय औपचारिक उत्सव या कृत्य के रूप में होती है। जैसे—(क) नहर या बाँध का उद्घाटन। (ख) सभा सम्मेलन आदि का उद्घाटन। | 
			
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				| उद्घाटित					 : | वि० [सं० उद्√हन्+णिच्+क्त] १. जिस पर से आवरण हटाया गया हो। अनावृत। २. जिसका उद्घाटन हुआ हो। | 
			
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				| उद्घातक					 : | वि० [सं० उद्√हन्+णिच्+ण्वुल्-अक] धक्का मारनेवाला। पुं० नाटक में, प्रस्तावना का वह प्रकार जिसमें सूत्रधार और नटी की कोई बात, सुनकर कोई पात्र उसका कुछ दूसरा ही अर्थ समझकर नेपथ्य से उसका उत्तर देता अथवा रंगमंच पर आकर अभिनय आरंभ करता है। | 
			
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				| उद्घाती (तिन्)					 : | वि० [सं० उद्√हन्+णिच्+णिनि] १. उद्घात करने वाला। २. ठोकर मारने या लगानेवाला। ३. आरंभ करनेवाला। | 
			
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				| उद्घोष					 : | पुं० [सं० उद्√घुष् (शब्द करना)+घञ्] १. चिल्लाकर या जोर से कुछ कहना। गर्जना। २. चिल्लाने या जोर से बोलने से होनेवाला शब्द। ३. घोषणा। मुनादी। | 
			
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				| उद्घोषणा					 : | स्त्री० [उद्√घुष्+णिच्+युच्-अन-टाप्] [भू० कृ० उद्घोषित] १. जोर से चिल्लाते हुए तथा सबको सुनाते हुए कोई बात कहना। २. राज्य या शासन की ओर से उसके सर्वप्रधान अधिकारी द्वारा हुई कोई मुख्यतः ऐसी घोषणा जो किसी देश या प्रदेश को अपने राज्य के मिलाने के संबंध में हो। (प्रोक्लेमेशन) | 
			
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				| उद्घोषित					 : | भू० कृ० [सं० उद्√घुष्+णिच्+क्त] १. जो उद्घोषणा के रूप में हुआ हो। २. जिसके संबंध में कोई उद्घोषणा हुई हो। | 
			
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				| उद्दंड					 : | वि० [सं० उद्-दंड, अत्या० स०] [भाव० उद्डंता] १. जो किसी को मारने के लिए डंडा ऊपर उठाये हुए हो। २. जो किसी से डरता न हो और अनुचित तथा मनमाना आचरण करता हो। ३. जिसे कोई दंड न दे सकता हो। पुं० दंडधर। द्वारपाल। | 
			
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				| उद्दंश					 : | पुं० [सं० उद्√वंश् (डसना)+अच्] १. खटमल। २. जूँ। ३. मच्छर। | 
			
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				| उद्दत					 : | वि०=उद्यत। | 
			
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				| उद्दम					 : | पुं० [सं० उद्√दम् (दमन करना)+अप्] किसी को दबाना या वश में करना। पुं०=उद्यम। | 
			
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				| उद्दर्शन					 : | पुं० [सं० उद्√दृश् (देखना)+णिच्+ल्युट-अन] [भू० कृ० उद्दर्शित] १. दर्शन कराना। २. स्पष्ट या व्यक्त करना। | 
			
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				| उद्दांत					 : | वि० [सं० उद्√दम् (दमन करना)+क्त] १. जो बहुत दबा हो। अतिदमित। २. उत्साही। ३. विनम्र। | 
			
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				| उद्दान					 : | पुं० [सं० उद्√दा(देना) या√दो (खंडन करना)+ल्युट-अन] १. जकड़ने या बाँधने की क्रिया या भाव। २. उद्यम। ३. बड़वानल। ४. चूल्हा। ५. लग्न। ६. उद्यम। प्रयत्न। ७. कटि। कमर। ८. बीच का भाग। मध्य। | 
			
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				| उद्दाम					 : | वि० [सं० उद्-दामन्, निरा० स०] [भाव० उद्दामता] १. जो किसी प्रकार के बंधन में न हो। २. स्वतंत्र। स्वच्छंद। ३. उद्दंड या निरंकुश। ४. गंभीर। ५. विस्तृत। पुं० १. वरुण। २. दंडक वृत्त का एक भेद जिसके प्रत्येक चरण में १ नगण और १३ रगण होते हैं। | 
			
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				| उद्दार					 : | वि०=उदार। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उद्दारय					 : | वि०=उदार। | 
			
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				| उद्दालक					 : | पुं० [सं० उद्√दल्(विदार्ण करना)+णिच्+अच,उद्दाल+कन्] १,०एक प्राचीन ऋषि। २. एक प्रकार का व्रत जो ऐसे व्यक्ति को करना पड़ता है जिसे १6 वर्ष की अवस्था हो जाने पर भी गायत्री की दीक्षा न मिली हो। ३. बनकोदव नाम का कदन्न। | 
			
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				| उद्दति					 : | वि० १. =उदित। २. =उद्यत। ३. =उद्धत। ४. =उद्दीप्त। | 
			
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				| उद्दमि					 : | पुं०=उद्यम। | 
			
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				| उद्दिष्ट					 : | वि० [सं० उद्√दिश् (बताना)+क्त] १. जिसकी ओर निर्देश या संकेत किया गया हो। कहा या बतालाया हुआ। २. जिसे उद्देश्य बना या मानकर कोई काम किया जाए। उद्देश्य के रूप में स्थिर किया हुआ। पुं० १. छंदशास्त्र में, प्रत्यय के अंतर्गत वह प्रक्रिया जिससे यह जाना जाता है कि मात्रा प्रस्तार के विचार से कोई पद्य किस छंद का कौन-सा प्रकार या भेद है। २. स्वामी की आज्ञा के बिना किसी वस्तु का किया जानेवाला भोग। (पराशर) | 
			
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				| उद्दीप					 : | पुं० [सं० उद्√दीप् (प्रकाश)+घञ्] उद्दीपन। वि०=उद्दीपक। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्दीपक					 : | वि० [सं० उद्√दीप्(जलाना)+णिच्+ण्वुल्-अक] १. जलाने या प्रज्वलित करने वाला। २. उभाडने या भड़कानेवाला, विशेषतः मनोभावों को जाग्रत तथा उत्तेजित करनेवाला। ३. जठराग्नि को तीव्र या दीप्त करनेवाला। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्दीपन					 : | पुं० [सं० उद्√दीप्+णिच्+ल्युट-अन] [भू० कृ० उद्दीप्त, वि,० उद्दीप्य] १. जलाने या प्रज्वलित करने की क्रिया या भाव। २. उत्तेजित करने या उभाड़ने, विशेषतः मनोभावों को जाग्रत तथा उत्तेजित करने की क्रिया या भाव। ३. उत्तेजित या दीप्त करनेवाली वस्तु। ४. साहित्य में वह वस्तु, व्यक्ति या परिस्थिति जो मन में प्रस्तुत किसी रस या स्थायी भाव को उद्दीप्त तथा उत्तेजित करे। जैसे— श्रृंगार रस में सुंदर ऋतु, चाँदनी रात आदि उद्दीप्त हैं। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्दीपित					 : | भू० कृ० [सं० उद्√दीप्+णिच्+क्त]=उद्दीप्त। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्दीप्त					 : | भू० कृ० [सं० उद्√दीप्+क्त] १. प्रज्वलित किया हुआ। २. चमकता हुआ। ३० उभाड़ा या उत्तेजित किया हुआ। ४. (भाव या रस) जिसका उद्दीपन हुआ हो। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्दीप्ति					 : | स्त्री० [सं० उद्√दीप्+क्तिन्] उद्दीप्त होने की अवस्था या भाव। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्वेग					 : | पुं०=उद्वेग।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्देश					 : | पुं० [सं० उद्√दिश्+घञ्] १. किसी चीज की ओर निर्देश या संकेत करना। २. कोई काम करते समय किसी चीज या बात का ध्यान रखना। ३. कारण। ४. न्याय में, प्रतिज्ञा नामक तत्त्व। ५. कारण। हेतु। ६. दे० ‘उद्देश्य’। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उद्देशक					 : | वि० [सं० उद्√दिश्+ण्वुल-अक] किसी की ओर उद्देश (निर्देश या संकेत) करनेवाला। पुं० गणित में, प्रश्न। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उद्देशन					 : | पुं० [सं० उद्√दिश्+ल्युट-अन] किसी की ओर निर्देश या संकेत करने की क्रिया या भाव। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उद्देश्य					 : | पुं० [सं० उद्√दिश्+ण्यत्] १. वह मानसिक तत्त्व (भाव या विचार) जिसका ध्यान रखते हुए या जिससे प्रेरित होकर कुछ कहा या किया जाए। किसी काम में प्रवृत्त करनेवाला मनोभाव। (मोटिव) जैसे—देखना यह चाहिए वह जाने (या अमुक अपराध करने) में आपका मुख्य उद्देश्य क्या था। २. वह बात, वस्तु या विषय जिसका ध्यान रखकर कुछ कहा या किया जाए। अभिप्रेत कार्य, पदार्थ या विषय। इष्ट। ध्येय। (आब्जेक्ट) ३. व्याकरण में, वह जिसके विचार से या जिसे ध्यान में रखकर कुछ कहा या विधान किया जाए। किसी वाक्य का कर्त्तृ पद जो उसके विधेय से भिन्न होता है। (आब्जेक्ट) जैसे—वह बहुत साहसी है। में वह उद्देश्य है, क्योंकि वाक्य में उसी के साहसी होने की चर्चा या विधान है। ४. दे० ‘प्रयोजन’। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्देष्टा (ष्ट्र)					 : | वि० [सं० उद्√दिश्+तृच्] किसी वस्तु को ध्यान में रखकर काम करनेवाला। किसी उद्देश्य की सिद्धि के लिए प्रयत्नशील। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्दोत					 : | पुं०=उद्योत। वि० १. =उद्दीप्त। २. =उदित। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्दोतिताई					 : | -स्त्री० उद्दीप्ति। उदाहरण—तड़ित घन नील उद्दोतिताई।—अलबेली अलि। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्ध					 : | अव्य० [सं० ऊर्द्घ, पा० उद्ध] ऊपर। वि०=ऊर्द्ध्व। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उद्धत					 : | वि० [सं० उद्√हन्+क्त] [भाव० उद्धतता] जो अपने उग्र क्रोधी या रूखे स्वभाव के कारण हेय आचरण या व्यवहार करता हो। अक्खड़। पुं० साहित्य में 40 मात्राओं का एक छंद। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उद्धतता					 : | स्त्री० [सं० उद्धत+तल्-टाप्] उद्धत होने की अवस्था या भाव। उद्धतपन। औद्धत्य। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उद्धत-दंडक					 : | पुं० [सं० ] विजया नामक मात्रिक छंद का वह प्रकार या भेद जिसके प्रत्येक चरण का अंत एक गुरु और एक लघु से होता है। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उद्धतपन					 : | पुं० [सं० उद्धत+हिं० पन (प्रत्य)] उद्धत होने की अवस्था या भाव। उद्धतता। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्धति					 : | स्त्री० [सं० उद्√हन्+क्तिन्] =उद्धतता। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्धना					 : | अ० [सं० उद्धरण] १. उद्धार होना। २. ऊपर उठना या उड़ना। स० १. उद्धार करना। २. ऊपर उठना या उड़ना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उद्धरण					 : | पुं० [सं० उद्√हृ (हरण करना)+ल्युट-अन] [वि० उद्धरणीय, उदधृत] १. ऊपर उठाना। उद्धार करना। २. कष्ट,झंझट,संकट आदि से किसीको निकालना या मुक्ति दिलाना। छुटकारा। ३. किसी ग्रंथ लेख आदि से उदाहरण, प्रमाण, साक्षी आदि के रूप में लिया हुआ अंश। (कोटेशन) ४. अभ्यास के लिए पढ़े हुए पाठ को बार-बार दोहराना। उद्धरणी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उद्धरणी					 : | स्त्री० [सं० उद्धरण+हिं० ई (प्रत्यय)] १. पढ़ा हुआ पाठ अच्छी तरह याद करने के लिए फिर-फिर दोहराना या पढ़ना। २. कही आई या लिखी हुई कोई बात, घटना का विवरण आदि फिर से कह सुनाना। (रिसाइटल) ३. दे० ‘उद्धरण’। | 
			
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				| उद्धरना					 : | स० [सं० उद्धरण] उद्धार करना। उबारना। अ० उद्धार होना। उबरना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उद्धर्ता (र्तृ)					 : | वि० [सं० उद्√हृ+तृच्] १. उद्धरणी करनेवाला। २. उद्धार करनेवाला। ३. उदाहरण, साक्षी आदि के रूप में कही से कोई उद्धरण लेनेवाला। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उद्धर्ष					 : | पुं० [सं० उद्√हष् (आनंदित होना)+घञ्] १. आनंद। प्रसन्नता। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उद्धर्षण					 : | पुं० [सं० उद्√हष्+ल्युट-अन] १. आनंदित या प्रसन्न करने की क्रिया या भाव। २. रोमांच। ३. उत्तेजना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उद्धव					 : | पुं० [सं० उद्√धू (कंपन)+अप्] १. उत्सव। २. यज्ञ की अग्नि। ३. कृष्ण के एक सखा और रिश्ते में मामा, जिन्हें उन्होंने द्वारका से व्रज की गोपियों को सांत्वना देने के लिए भेजा था। इनका दूसरा नाम देवश्रवा भी था। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उद्धव्य					 : | पुं० [सं० उद्√हु (दान, आदान)+यत्] बौद्ध शास्त्रानुसार दस क्लेशों में से एक। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उद्धस्त					 : | पुं० [सं० उद्-हस्त, प्रा० ब०] जो ऊपर की ओर हाथ उठाये या फैलायें हुए हो। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्धार					 : | पुं० [सं० उद्√धृ (धारण)+घञ्] १. नीचे से उठाकर ऊपर ले जाना। २. निम्न या हीन स्थिति से उठाकर उच्च या उन्नत स्थिति में ले जाना। ३. किसी को कष्ट, विपत्ति, संकट आदि से उबारना या निकालना। मुक्त करना। ४. ऋण देन आदि से मिलनेवाला छुटकारा। ५. संपत्ति का वह भाग जो बँटवारे से पहले किसी विशेष रीति से बाँटने के लिए अलग कर दिया जाए। ६. लड़ाई में लूट का छठा भाग जो राजा का अंश माना जाता था। ७. दे० ‘उधार’। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उद्धारक					 : | वि० [सं० उद्√धृ+ण्वुल्-अक] १. किसी का उद्धार करनेवाला। २. उधार लेनेवाला। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्धारण					 : | पुं० [सं० उद्√धृ+णिच्+ल्युट-अन] १. ऊपर उठाना। उत्थापन। २. उबारना। बचाना। ३. बँटवारा। ४. कोई पद, वाक्य या शब्द कहीं से जान-बूझकर या किसी उद्देश्य से निकाल या अलग कर देना। (डिलीशन) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उद्धारणिक					 : | पुं० [सं० उद्धारण+ठक्-इक] वह व्यक्ति जिसने किसी से रूपया उधार लिया हो। ऋण या कर्ज लेनेवाला। (बॉरोवर) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उद्धारना					 : | स० [सं० उद्धार] विपत्ति या संकट से अथवा निम्न या हीन स्थिति से निकालकर अच्छी स्थिति में लाना। | 
			
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				| उद्धार-विक्रय					 : | पुं० [सं० तृ० त०] उधार बेचना। (क्रेडिट सेल) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उद्धित					 : | भू० कृ० [सं० उद्√धा (धारण करना)+क्त] १. ऊपर उठाया हुआ। २. अच्छी तरह बैठाया या रखा हुआ। स्थापित। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उद्धृत					 : | भू० कृ० [सं० उद्√धृ (धारण)+क्त] १. ऊपर उठाया हुआ। २. (किसी का कथन लेख आदि) जो कही से लाकर उदाहरण, प्रमाण या साक्षी के रूप में प्रस्तुत किया गया हो। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उद्धृति					 : | स्त्री० [सं० उद्√धृ+क्तिन्] १. उद्धृत करने या होने की अवस्था, क्रिया या भाव। २. उद्धरण। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उद्ध्वंस					 : | पुं० [सं० उद्√ध्वंस (नाश)+घञ्] १. ध्वसं। नाश। २. महामारी। मरी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उद्ध्वस्त					 : | भू० कृ० [सं० उद्√ध्वंस+क्त] गिरा-पड़ा। तोड़-फोड़कर नष्ट किया हुआ। ध्वस्त। | 
			
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				| उद्बल					 : | वि० [सं० उद्-बल, ब० स०] बलवान्। सशक्त। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उद्बाध्य					 : | वि० [सं० उद्-बाध्य, ब० स०] १. बाष्प से भरा हुआ या युक्त। २. (आँखें) जिनमें आँसू भरे हों। अश्रुपूर्ण। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उद्बाहु					 : | वि० [सं० उद्-बाहु, ब० स०] जो बाहु या बाँहें ऊपर उठाये हुए हो। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उद्बुद्ध					 : | वि० [सं० उद्√बुध्(जनाना)+क्त] १. जिसकी बुद्धि जाग्रत हुई हो। ज्ञानी। प्रबुद्ध। २. खिला या फूला हुआ। प्रफुल्लित। विकसित। ३. जो अपने आपको अच्छी तरह दृश्य या प्रत्यक्ष कर रहा हो। उदाहरण—उद्बुद्ध क्षितिज की श्याम घटा।—प्रसाद। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उद्बुद्धा					 : | स्त्री० [सं० उदबुद्ध+टाप्] उद्बोधिता। (नायिका) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उद्बोध					 : | पुं० [सं० उद्√बुध्+घञ्] १. जागना। जागरण। २. बोध होना। ज्ञान प्राप्त होना। ३. फिर से याद आना। अनुस्मरण। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उद्बोधक					 : | वि० [सं० उद्√बुध्+णिच्+ण्वुल्-अक] १. ज्ञान या बोध करानेवाला। २. जगानेवाला। ३. उद्दीप्त या उत्तेजित करनेवाला। पुं० सूर्य। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उद्बोधन					 : | पुं० [सं० उद्√बुध्+णिच्+ल्युट-अन] [वि० उद्बोधक, उदबोधनीय० उदबोधित] १. जागने या जगाने की क्रिया या भाव। २. ज्ञान या बोध कराने या होने की क्रिया या भाव। ३. उत्तेजित करना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उद्बोधिता					 : | स्त्री० [सं० उद्√बुध्+णिच्+क्त-टाप्] साहित्य में, वह नायिका जो अपने उपपति के प्रेम से प्रभावित होकर उससे प्रेम करती हो। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्भट					 : | वि० [सं० उद्√भट्(पोषण)+अप्] [भाव० उद्भटता] १. बहुत बड़ा। श्रेष्ठ। २. प्रचंड। प्रबल। पुं० १. सूप। २. कछुआ। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उद्भव					 : | पुं० [सं० उद्√भू(होना)+अप्] [वि० उद्भूत] १. किसी प्रकार उत्पन्न होकर अस्तित्व में आना। नये सिरे से उठकर प्रत्यक्ष होना या सामने आना। २. किसी पूर्वज के वंश में उत्पन्न होने अथवा किसी मूल से निकलने का तथ्य या भाव। (डिसेन्ट) ३. उत्पत्ति स्थान। ४. विष्णु। वि० [स्त्री० उद्भवा] जो किसी से उत्पन्न हुआ हो। (यौ० के अंत में) जैसे—प्रेमोदभव-प्रेम से उत्पन्न। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उद्भार					 : | पुं० [सं० उदक्√भू (धारण करना)+अण्, उद् आदेश] बादल। मेघ। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्भाव					 : | पुं० [सं० उद्√भू+घञ्] १. =उद्भव। २. =उद्भावना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्भावक					 : | वि० [सं० उद्√भू+णिच्+ण्वुल्-अक] १. उद्भव या उत्पत्ति करनेवाला। २. मन से कोई बात या विचार निकालनेवाला। उद्भावना करनेवाला। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्भावन					 : | पुं० [सं० उद्√भू+णिच्+ल्युट-अन] =उदभावना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्भावना					 : | स्त्री० [सं० उद्√भू+णिच्+युच्-अन-टाप्] १. उत्पन्न होना या अस्तित्व में आना। २. मन में उत्पन्न होनेवाली कोई अद्भुत या अनोखी और नई बात या सूझ। ३. कल्पना से निकली हुई कोई नई बात या विचार। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्भावयिता (तृ)					 : | वि० [सं० उद्√भू+णिच्-तृच्] =उद्भावक। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्भास					 : | पुं० [सं० उद्√भास् (दीप्ति)+घञ्] १. बहुत ही आकर्षक तथा चमकते हुए रूप में प्रकट होना या सामने आना। २. आभा। प्रकाश। ३. उद्भावना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्भासन					 : | पुं० [सं० उद्√भास्+ल्युट-अन] [भू० कृ० उद्भासित] प्रकाशित होना। चमकना। २. आभा या प्रकाश से युक्त करना। चमकाना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्भासित					 : | भू० कृ० [सं० उद्√भास्+क्त] १. जो सुंदर रूप में प्रकट हुआ हो। सुशोभित। २. चमकता हुआ। प्रकाशित। ३. उत्तेजित। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्भिज					 : | पुं०=उद्भिज्य। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्भिज्ज					 : | वि० [सं० उद्√भिद् (विदारण)+क्विप्√जन् (उत्पन्न होना)+ड] (पेड़, पौधे लताएँ आदि) जो जमीन फोड़कर उगती या निकलती हों। पुं० जमीन में उगनेवाले पेड़, पौधे, लताएँ आदि। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्भिज्ज-शास्त्र					 : | पुं० [ष० त०] वनस्पति-शास्त्र। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्भिद					 : | पुं० [सं० उद्√भिद्+क] =उद्भिज्ज। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्भिन्न					 : | वि० [सं० उद्√भिद्+क्त] १. विभक्त किया हुआ। २. तोड़ा-फोडा हुआ। खंडित। ३. उत्पन्न या उद्भूत। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्भूत					 : | भू० कृ० [सं० उद्√भू (होना)+क्त] १. जिसका उद्भव हुआ हो। जिसकी उत्पत्ति या जन्म हुआ हो। २. बाहर निकला या सामने आया हुआ। जो प्रत्यक्ष या प्रकट हुआ हो। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्भूति					 : | स्त्री० [सं० उद्√भू+क्तिन्] [वि, उद्भूत] १. उद्भूत होने की अवस्था, क्रिया या भाव। आविर्भाव। उत्पत्ति। २. उद्भूत होकर सामने आनेवाली चीज। ३. उन्नति। ४. विभूति। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्भेद					 : | पुं० [सं० उद्√भिद्+घञ्] १. =उदभेदन। २. एक काव्यालंकार जिसमें कौशल से छिपाई हुई बात किसी हेतु से प्रकाशित या लक्षित होना वर्णित होता है। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्भेदन					 : | पुं० [सं० उद्√भिद्+ल्युट-अन] १. किसी वस्तु को फोड़कर या छेदकर उससे दूसरी वस्तु का निकलना। २. तोड़-फोड़। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्भ्रम					 : | पुं० [सं० उद्√भ्रम् (घूमना)+घञ्] १. चक्कर काटना। घूमना। २. पर्यटन। भ्रमण। ३. उद्वेग। ४. पाश्चाताप। ५. ऐसा भ्रम जिसमें बुद्धि काम न करे। विभ्रम। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्भ्रमण					 : | पुं० [सं० उद्√भ्रम्+ल्युट-अन] चक्कर काटना या लगाना। भ्रमण करना। घूमना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्भ्रांत					 : | वि० [सं० उद्√भ्रम्+क्त] १. घूमता या चक्कर खाता हुआ। २. भ्रम में पड़ा हुआ। ३. चकित। भौचक्का। ४. उन्मत। पागल। ५. जो दुखी तथा विह्वल हो। पुं० तलवार का एक हाथ जिसमें चारों ओर तलवार घुमाते हुए विपक्षी का वार रोकते और उसे विफल करते हैं। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्यत					 : | वि० [सं० उद्√यम् (निवृत्ति, नियंत्रण)+क्त] १. उठाया या ताना हुआ। २. जो कोई काम करने के लिए तत्पर तथा दृढ़प्रतिज्ञ हो। कोई काम करने के लिए तैयार। मुस्तैद। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्यति					 : | स्त्री० [सं० उद्√यम्+क्तिन्] १. उद्यत होने की क्रिया या भाव। २. उद्यम। ३. उठाना। उत्थापन। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्यम					 : | पुं० [सं० उद्√यम्+घञ्] [कर्त्ता उद्यमी] १. कोई ऐसा शारीरिक कार्य या व्यापार जो जीविका उपार्जन के लिए अथवा कोई उद्देश्य सिद्ध करने के लिए किया जाता है। उद्योग। (स्ट्राइविंग) २. परिश्रम। मेहनत। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्यमी (मिन्)					 : | पुं० [सं० उद्यम+इनि] उद्यम या उद्योग करनेवाला व्यक्ति। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उद्यान					 : | पुं० [सं० उद्√या (जाना)+ल्युट्-अन] १. बाग। बगीचा। २. जंगल। वन। उदाहरण—नृपति पाइ यह आत्मज्ञान राज छाँडि कै गयौ उद्यान।—सूर। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्यानक					 : | पुं० [सं० उद्यान+कन्] छोटा उद्यान। वाटिका। बगीची। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्यान-करण					 : | पुं० [ष० त०] बाग-बगीचों में पौधे आदि लगाना और उनकी देख-रेख करना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्यान-कर्म (न्)					 : | पुं० [ष० त०] बगीचे में पेड़-पौधे लगाने तथा उनकी देख-भाल करने की कला या विधान। (हार्टिकल्चर) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्यान-गृह					 : | पुं० [मध्य० स०] किसी बडे़ बगीचें में बना हुआ छोटा सुंदर मकान। (गार्डन हाउस) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्यान-गोष्ठी					 : | स्त्री० [मध्य० स०] उद्यान में होनेवाली वह गोष्ठी या मित्रों का समागम जिसमें जलपान आदि हो। (गार्डन पार्टी)। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्यान-भोज					 : | पुं० [सं० मध्य० स०] उद्यान या बगीचें में होनेवाला भोज। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्यापन					 : | पुं० [सं० उद्√या+णिच्,पुक्+ल्युट-अन] १. विधिपूर्वक कोई काम पूरा करना। २. समाप्ति पर किया जानेवाला कुछ विशिष्ट धार्मिक कृत्य। जैसे—हवन, गोदान आदि। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्यापित					 : | वि० [सं० उद्√या+णिच्, पुक्+क्त] विधि-पूर्वक पूरा किया हुआ। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्युक्त					 : | वि० [सं० उद्√युज्(मिलना)+क्त] [स्त्री० उद्युक्ता] १. तत्पर। तैयार। २. किसी काम में लगा हुआ। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्योग					 : | पुं० [सं० उद्√युज्+घञ्] [कर्त्ता उद्योगी, वि० उद्युक्त, औद्योगिक] १. किसी काम में अच्छी तरह लगना। २. प्रयत्न। कोशिश। ३. परिश्रम। मेहनत। ४. कोई उद्देश्य या कार्य सिद्ध करने के लिए परिश्रम-पूर्वक उसमें लगना। (एन्डेवर) ५. दे० ‘उद्यम’। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्योग-धंधे					 : | पुं० बहु० [सं० उद्योग+हिं० धंधा] व्यापार आदि के लिए कच्चे माल से लोक व्यवहार के लिए पक्के माल या सामान बनाना या ऐसे सामान बनानेवाले कारखाने। (इंन्डस्ट्री) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्योग-पति					 : | पुं० [ष० त०] कच्चे माल से पक्का माल तैयार करने वाले किसी बड़े कारखाने का मालिक। (इंडस्ट्रियलिस्ट)। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्योगालय					 : | पुं० [उद्योग-आलय, ष० त०] वह स्थान जहाँ बिक्री के लिए बनाकर चीजें तैयार की जाती हो। कारखाना। (फैक्टरी) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्योगी (गिन्)					 : | वि० [सं० उद्योग+इनि] [स्त्री० उद्योगिनी] १. उद्योग या प्रयत्न करनेवाला। २. किसी काम के लिए ठीक प्रकार से परिश्रम और प्रयत्न करनेवाला। अध्यवसायी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्योगीकरण					 : | पुं० [सं० उद्योग+च्वि√कृ(करना)+ल्युट-अन] [भू० कृ० उद्योगीकृत] किसी देश में उद्योग-धंधों का विस्तार करने और नये-नये कल कारखाने स्थापित करने का काम। (इन्डस्ट्रियलाइजेशन) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्योत					 : | पुं० [सं० उद्द्योत] १. प्रकाश। २. चमक। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्योतन					 : | पुं० [सं० उद्योतन] १. चमकने या चमकाने का कार्य। प्रकाशन। २. प्रकट करना। सामने लाना। ३. भाषा विज्ञान में वह तत्त्व जो किसी शब्द या प्रत्यय में कोई नया अर्थ का भाव लगाकर उसकी द्योतकता बढ़ाता है। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्र					 : | पुं० [सं०√उन्द्(भिगोना)+रक्] ऊद-बिलाव। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्राव					 : | पुं० [सं० उद्√रू(शब्द)+घञ्] ऊँचा या घोर शब्द। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्रिक्त					 : | वि० [सं० उद्√रिच् (अलग करना, मिलाना)+क्त] १. उद्रेक से युक्त किया हुआ। २. प्रमुख। विशिष्ट। ३. बहुत अधिक। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्रेक					 : | पुं० [सं० उद्√रिच्+घञ्] [वि० उद्रिक्त] १. बहुत अधिक होने की अवस्था या भाव। अधिकता। प्रचुरता। २. प्रमुखता। ३. आरंभ। ४. रजोगुण। ५. साहित्य में, एक अलंकार जिसमें किसी वस्तु के किसी गुण या दोष के आगे कई गुणों या दोषों के मंद पड़ने का वर्णन होता है। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्वत्सर					 : | पुं० [सं० उद्-वत्सर, प्रा० स०,] वत्सर। वर्ष। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्वपन					 : | पुं० [सं० उद्√वप् (बोना काटना)+ल्युट्-अन] १. बाहर निकालना या फेंकना। २. हिलाकर गिराना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्वर्त					 : | वि० [सं० उद्√वृत्(बरतना)+घञ्] १. बरतने के उपरांत जो अधिक या शेष बच रहे। २. जितना आवश्यक हो उससे अधिक। व्यय,लागत आदि की अपेक्षा मान, मूल्य आदि के विचार से अधिक (आय, मूल्यन आदि)। जैसे—उद्वर्त आय-व्ययिक-ऐसा आय-व्ययिक जिसमें व्यय की अपेक्षा आय अधिक दिखाई गयी हो। (सरप्लस बजट) ३. अतिरिक्त। ४. फालतू। पुं० मूल्य, मान आदि के विचार से जितना आवश्यक हो या साधारणतः जितना चाहिए, उसकी तुलना में होनेवाली अधिकता। अववर्त्त का विपर्याय। बढ़ती। बचती। (सरप्लस, सभी अर्थों या रूपों में)। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्वर्तक					 : | वि० [सं० उद्√वृत्+ण्वुल-अक] १. उठानेवाला। २. उबटन लगानेवाला। ३. उद्वर्क। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्वर्तन					 : | पुं० [सं० उद्√वृत्+ल्युट-अन] १. ऊपर उठाना। २. उबटन, लेप आदि लगाना। ३. उबटन लेप आदि के रूप में लगाई जानेवाली चीज। ४. वर्द्धन। वृद्धि। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्वर्तित					 : | भू० कृ० [सं० उद्√वृत्+णिच्+क्त] १. ऊँचा किया या उठाया हुआ। २. जिससे उबटन या लेप लगाया गया हो। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्वर्धन					 : | पुं० [सं० उद्√बुध् (बढ़ना)+ल्युट्-अन] १. वर्द्वन। वृद्धि। २. किसी चीज में से निकलकर फैलना या बढ़ना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्वह					 : | पुं० [सं० उद्√वह् (ढोना, पहुँचाना)+अच्] १. पुत्र। २. सात वायुओं के अंतर्गत वह वायु जो तीसरे स्कंध पर स्थित मानी गई है। ३. उदान। वायु। ४. विवाह। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्वहन					 : | पुं० [सं० उद्√वह+ल्युट-अन] ऊपर की ओर उठाना, खींचना या ले जाना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्वांत					 : | पुं० [सं० उद्√वम् उगलना)+क्त] कै। वमन। वि० १. वमन किया हुआ। २. उगला हुआ। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्वापन					 : | पुं० [सं० उद्√वा (गति)+णिच्, पुक्+ल्युट-अन] आग बुझाना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्वाष्पन					 : | पुं० [सं० उद्-वाष्प, प्रा० स०+णिचे+ल्युट-अन] =वाष्पीकरण। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्वास					 : | पुं० [सं० उद्√वस् (बसना)+णिच्+घञ्] १. बंधन से मुक्त करना। स्वतंत्र करना। २. निर्वासन। ३. वध। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्वासन					 : | पुं० [सं० उद्√वस्+णिच्+ल्युट-अन] १. कहीं से हटाना या दूर करना। २. किसी का निवास स्थान नष्ट करके उसे वहाँ से भगाना। (डिस्प्लेसमेंट) ३. उजाड़ना। ४. मार डालना। वध करना। ५. यज्ञ के पहले आसन बिछाने और यज्ञ-पात्र आदि स्वच्छ करके उन्हें यथा स्थान रखना। ६. प्रतिमा या मूर्ति स्थापित करने से पहले उसे रात भर ओषधि मिले हुए जल में रखना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्वासित					 : | वि० [सं० उद्√वस्+णिच्+क्त] १. (व्यक्ति) जिसका निवास स्थान नष्ट कर दिया गया हो। २. (व्यक्ति) जिसे अपने निवास स्थान से मार-पीट या उजाड़कर भगा दिया गया हो। (डिस्प्लेस्ड) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्वाह					 : | पुं० [सं० उद्√वह् (ले जाना)+घञ्] १. ऊपर की ओर ले जाना। २. दूसरे स्थान पर या दूर ले जाना। जैसे—दुलहिन को उसके माता-पिता के घर ले जाना। ३. विवाह। ४. वायु के सात प्रकारों में से चौथा प्रकार। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्वाहन					 : | पुं० [सं० उद्√वह++णिच्+ल्युट] [भू० कृ० उद्वाहित] १. ऊपर की ओर उठाने या ले जाने का कार्य। २. दूर करना या हटाना। ३. एक बार जोते हुए खेत को फिर से जोतना। चास लगाना। ४. विवाह। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्वाहिक					 : | वि० [सं० उद्वाह+ठक्-इक] उद्वाह-संबंधी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उद्वाही (हिन्)					 : | वि० [सं० उद्√वह+णिनि] १. ऊपर की ओर ले जानेवाला। २. दूसरे स्थान पर या दूर ले जाने वाला। ३. विवाह करने के लिए उत्सुक। (व्यक्ति)। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उद्विग्न					 : | वि० [सं० उद्√विज् (भय, विचलित होना)+क्त] [भाव० उद्विग्नता] जो किसी आशंका, दुख आदि के कारण उद्वेग से युक्त या बहुत आकुल हो। चिंतित और विचलित। घबड़ाया हुआ। | 
			
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				| उद्विग्नता					 : | स्त्री० [सं० उद्विग्न+तल्-टाप्] उद्विग्न होने की अवस्था या भाव। | 
			
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				| उद्वेग					 : | पुं० [सं० उद्√विज्(भय़)+घञ्] १. तीव्र। वेग। तेज गति। २. चित्त की किसी वृत्ति की तीव्रता। आवेश। जोश। ३. विरह जन्य चिंता और दुःख जो साहित्य में एक संचारी भाव माना गया है। ४. किसी विकट या चिंताजनक घटना के कारण लोगों को होनेवाला वह भय जिसके फलस्वरूप लोग अपनी रक्षा के उपाय सोचने लगते हैं। (पैनिक)। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उद्वेगी (गिन्)					 : | वि० [सं० उद्वेग+इनि] उद्विग्न। | 
			
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				| उद्वेजक					 : | वि० [सं० उद्√विज्+णिच्+ण्वुल्-अक] उद्वेग उत्पन्न करने या उद्विग्न करनेवाला। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उद्वेजन					 : | पुं० [सं० उद्√विज्+णिच्+ल्युट-अन] किसी के मन में कुछ या कोई उद्वेग उत्पन्न करना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उद्वेलन					 : | पुं० [सं० उद्√वेल (चलाना)+ल्युट-अन] [भू० कृ० उद्वेलित] १. (नदी आदि के) बहुत अधिक भर जाने के कारण जल का छलककर इधर-उधर बहना। २. सीमा का अतिक्रमण या उल्लंघन करना। | 
			
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				| उद्वेल्लित					 : | वि० [सं० उद्√वेल्ल (चलाना)+क्त] १. उछलता हुआ। २. छलकता या ऊपर से बहता हुआ। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उद्वेष्टन					 : | पुं० [सं० उद्√वेष्ट् (घेरना, लपेटना)+ल्युट-अन] [भू० कृ० उद्वेष्टित] १. घेरा। बाड़ा। २. घेरने की क्रिया या भाव। ३. नितंब में होनेवाली पीड़ा। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उधकना					 : | अ०-१. =उधड़ना। २. =उधरना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उधड़ना					 : | अ० [सं० उद्वरण-उधड़ना] १. तितर-बितर होना। बिखरना। २. ऊपर की परत या चिपकी हुई चीज का अलग होना। ३. सीयन आदि खुलना या टूटना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उधम					 : | पुं०=ऊधम।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उधर					 : | अव्य० [सं० उत्तर अथवा पुं० हिं० ऊ (वह)+धर(प्रत्य)] १. उस तरफ जिधर वक्ता ने संकेत किया हो। वक्ता के विपक्ष में या सामने की ओर, कुछ दूरी पर। २. पर पक्ष की ओर या उसके आस-पास। ‘इधर’ का विपर्याय। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उधरना					 : | अ० [सं० उद्वरण] १. संकट आदि से उद्धार पाना या मुक्त होना। उदाहरण—अनायास उधरी तेहि काला।—तुलसी। स० [सं० उद्वरण] १. उद्धार करना। उबारना। २. पाठ की उद्वरणी करना। स०=उधड़ना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उधराणी					 : | -स्त्री० [सं० उद्धार, हिं,० उधार] उधार दिया हुआ धन वसूल करना। उगाही। वसूली। (राज०)(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उधराना					 : | अ० [सं० उद्वरण] १. हवा के झोंके में पड़कर इधर-उधर छितराना या बिखरना। जैसे—रुई उधराना। २. बहुत उद्दंड होकर उपद्रव या उधम मचाना। ३. नष्ट-भ्रष्ट हो जाना। न रह पाना। उदाहरण—कहै रत्नाकर पै सुधि उधिरानी सबै धूरि परि धीर जोग जुगति सँधाती पर।—रत्नाकर। स० १. किसी को उधरने में प्रवृत्त करना। २. दे० ‘उधेड़ना’। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उधलना					 : | अ० [हिं० उढ़रना] स्त्री का किसी अन्य पुरुष के साथ भाग जाना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उधसना					 : | स० [सं० उद्वसन, हिं० उधरना] बिखरना। फैलना। उदाहरण—उधसल केस कुसुम छिरिआएल।—विद्यापति। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उधार					 : | पुं० [सं० उद्धार] १. कोई चीज इस प्रकार खरीदना या बेचना कि उसका दाम कुछ समय बाद दिया या लिया जाए। २. वह धन या रकम जो उक्त प्रकार से खरीदने या बेचने के कारण किसी के जिम्मे निकलती हो या बाकी पड़ी हो। जैसे—हमारे तो हजारों रुपए उधार में ही डूब गये। पद-उधारखाता (क) पंजी या वही का वह अंश या विभाग जिसमें उधार दी या ली हुई रकमें लिखी जाती हैं। (ख) बिना तुरंत मूल्य चुकाये चीजे खरीदने या बेचने की परिपाटी। वि० जो किसी से कुछ समय तक अपने उपयोग में लाने के लिए और कुछ दिन बाद लौटा देने के वादे पर माँगकर लिया गया हो। जैसे— (क) इस समय किसी से दस रूपए उधार लेकर काम चला हो। (ख) अभी तो सौ रुपए के उधार आये हैं। विशेष—लोक-व्यवहार में ‘उधार’ का प्रयोग मुख्यतः धन के संबंध में ही प्रशस्त माना जाता है, वस्तुओं के संबंध में अधिकतर ‘मँगनी’ का ही प्रयोग होता है। मुहावरा—(किसी काम या बात के लिए) उधार खाये बैठना | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उधारक					 : | वि०=उद्धारक।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उधारन					 : | वि० [सं० उद्धार] उद्धार करनेवाला। उद्धारक। (यौ शब्दों के अंत में, जैसे—विपत्ति-उधारन)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उधारना					 : | स० [सं० उद्वरण] किसी को विपत्ति या संकट से निकालना या मुक्त करना। उद्धार करना। उदाहरण—कौने देव बराय बिरद हित हठि हठि अधम उधारे।—तुलसी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उधारी					 : | वि० [सं० उद्वारिन] उद्धार करनेवाला। स्त्री०-उधार। वि० उधार माँगनेवाला।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उधियाना					 : | अ० [हिं० ऊधम] बहुत उत्पात करना या ऊधम मचाना। अ०=उधड़ना। स०=उधेड़ना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उधेड़ना					 : | स० [सं० उद्वरण-उन्मूलन उखाड़ना] १. लगी हुई पर्तें अलग करना। उखाड़ना। मुहावरा—उधेड़कर रख देना (क) कच्चा चिट्ठा खोल देना। रहस्य भेदन करना। (ख) बहुत मारना-पीटना। २. सिलाई के टाँके खोलना। ३. छितराना। बिखेरना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उधेड़बुन					 : | स्त्री० [सं० उधेड़ना+बुनना] ऐसी मानसिक स्थिति जिसमें किसी काम या बात के लिए तरह-तरह के उपाय सोचे और फिर किसी कारण से व्यर्थ समझकर छोड़े और फिर उनके स्थान पर नये उपाय सोचे जाते हैं। बार-बार किया जानेवाला सोच-विचार। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उधेरना					 : | स०=उधेड़ना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उनंगा					 : | वि० [हिं० ऊन (कम)+अंग] [स्त्री,० उनंगी] नीचे की ओर झुका हुआ। नत। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उनंत					 : | वि० [सं० उन्नत] १. आगे झुका हुआ। उन्नत। २. ऊपर उठा हुआ। उदाहरण—भई उनंत प्रेम कै साखा।—जायसी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उन					 : | सर्व० १. हिं० ‘उस’ का (क) संख्यावाचक बहुवचन रूप। (ख) आदरार्थक बहुवचन रूप। २. प्रिय या प्रेमपात्र के लिए प्रयुक्त होनेवाला सांकेतिक सर्वनाम। उदाहरण—नैनन नींद गई है उन बिन तलफत मै दईमारी।—मदारीदास। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उनचन					 : | स्त्री० [सं० उदंचन-ऊपर उठाना या खींचना] खाट या चारपाई में पैताने की ओर बाँधी जाने वाली रस्सी जिसकी सहायता से वह ढीली होने पर कसी जाती है। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उनचना					 : | स० [हिं० उनचन] खाट या चारपाई के पैताने वाली रस्सी के फंदे इस प्रकार खींचना कि उसकी ढीली बुनावट कस जाए। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उनचास					 : | वि० [सं० एकोनपंचाशत, पा० एकोनपंचास, उनपंचास] जो गिनती में चालीस और नौ हो। पचास से एक कम। पुं० चालीस और नौ की संख्या या अंक जो इस प्रकार लिखा जाता है-49। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उनतिस (तीस)					 : | वि० [सं० एकोनत्रिंशत, पा० एकुनतीसा, उनतीसा] जो गिनती में बीस और नौ हो। तीस से एक कम। पुं० बीस और नौ की संख्या या अंक जो इस प्रकार लिखा जाता है-२9। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उनदा					 : | वि०=उनींदा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उनदौहा					 : | वि०=उनींदा।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उनना					 : | स०=बुनना। अ०=उनवना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उनमद					 : | वि०=उन्मत्त।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उनमना					 : | वि०=अनमना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उनमनी					 : | स्त्री० उन्मनी (योग की क्रिया)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उनमाथना					 : | स० [सं० उन्मथन] मथना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उनमाथी					 : | वि० [हिं० उनमाथना से] मथनेवाला। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उनमाद					 : | पुं०=उन्माद।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उनमादना					 : | अ० [हिं० उनमाद] उन्माद से युक्त होना। उन्मत होना। स० किसी को उन्मत्त करना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उनमान					 : | पुं० [सं० उद्-मान] १. नाप-तौल आदि का मान। परिमाण। २. गहराई गुरुत्व आदि का पता। थाह। ३. शक्ति। सामर्थ्य। ४. उपमा। तुलना। पुं०=अनुमान।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उनमानना					 : | स० [हिं० उनमान] अनुमान करना। अटकल लगाना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उनमाना					 : | अ० [सं० उन्मादन] १. उन्मत्त या पागल होना। २. प्रेम आदि से विह्वल होना। उदाहरण—ऋषिवर तहँ छंदवास गावत कल कंठ हास कीर्तन उनमाय काम क्रोध कंपिनी०-तुलसी। स० १. उन्मत या पागल करना। २. विभोर या विह्वल करना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उनमानि					 : | स्त्री० [हिं० उनमान] उपमा। तुलना। उदाहरण—कमलदल नैनन की उनमानि।—रहीम।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उनमीलन					 : | पुं०=उन्मीलन।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उनमुना					 : | वि० [हिं० अनमना] [स्त्री० उनमुनी] १. अन्य-मनस्क। अनमना। २. मौन। चुप।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उनमुनी					 : | स्त्री०=उन्मुनी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उनमूलना					 : | स० [सं० उन्मूलन] १. किसी वस्तु को जड़ से खोदना। उन्मूलन करना। २. पूर्ण रूप से नष्ट कर डालना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उनमेख					 : | पुं० [सं० उन्मेष] १. थोड़ा-सा खिलना या खुलना। २. मंद या हलका प्रकाश। उदाहरण—भ्रमर द्वै रविकरिन त्याए,करन जनु उनमेखु।—तुलसी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उनमेखना					 : | स० [सं० उन्मेष] १. आँखें खोलना। २. देखना। ३. (फूल आदि) खिलाना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उनमेद					 : | पुं० [सं० उद्जल+मेदचरबी] जलाशयों में, वर्षा काल के आरंभ में उठने वाली एक प्रकार की विषाक्त फेन, जिसे खा लेने से मछलियाँ मर जाती है। माँजा। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उनमोचन					 : | पुं०=उन्मोचन। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उनयना					 : | अ० [सं० उनमन] १. झुकना। लटकना। २. चारों ओर से घिर आना। छाना। उदाहरण—गहि मंदर बंदर भालु चले सो मनो उनये घन सावन के।—तुलसी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उनरना					 : | अ० [सं० उन्नरण-ऊपर जाना] १. ऊपर उठना या बढ़ना। उदाहरण—उनरत जोवनु देखि नृपति मन भावइ हो।—तुलसी। २. चारों ओर उमड़ना। घिरना या छाना। ३. उछलते या कूदते हुए आगे बढ़ना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उनवना					 : | अ, [सं० उन्नमन] १. झुकना। २. चारों ओर या ऊपर आ घिरना। उदाहरण—कजरारे दृग की घटा जब उनवै जिहि ओरा।-रसनिधि। ३. अकस्मात् प्रकट होना या सामने आना। स० १. झुकाना। २. घेरना। ३. प्रकट करना। सामने लाना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उनवर					 : | वि० [सं० ऊन-कम] १. कम। न्यून। २. तुच्छ। हीन।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उनवान					 : | पुं०=अनुमान।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उनसठ					 : | वि० [सं० एकोनषष्टि, प्रा० एकुन्नसट्ठि, उनसट्टठि] जो गिनती में पचास और नौ हो। साठ से एक कम। पुं० पचास और नौ की संख्या या अंक जो इस प्रकार लिखा जाता है-59। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उनहत्तर					 : | वि० [सं० एकोनसप्तति, प्रा० एकोनसत्तरि, उनसत्तरि, उनहत्तरि] जो गिनती में साठ और नौ हो। सत्तर से एक कम। पुं० साठ और नौ की संख्या या अंक जो इस प्रकार लिखा जाता है-69। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उनहानि					 : | स्त्री०=उन्हानि।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उनहार					 : | वि० [सं० अनुहार, प्रा० अनुहार] सदृश। समान। स्त्री० १. समानता। सादृश्य। २. किसी के अनुरूप बनी हुई कोई दूसरी वस्तु। प्रतिकृति।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उनहास					 : | वि० स्त्री०=उनहार। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उनाना					 : | स० [सं० उन्नयन] १. नीचे की ओर लाना। झुकाना। २. किसी की ओर अनुरक्त या प्रवृत्त करना। लगाना। ३. ध्यान देना। मन लगाना। ४. आज्ञा का पालन करना। अ० आज्ञा मानना। स०=बुनवाना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उनारना					 : | स० [सं० उन्नयन] १. ऊपर की ओर उठाना। २. आगे बढ़ाना। ३. दे० ‘उनाना’। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उनारी					 : | स्त्री० [हिं० उन्हला] रबी की फसल या बोआई। (बुदेल०)(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उनासी					 : | वि० पुं०=उन्नासी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उनाह					 : | पुं० [सं० ऊष्मा] भाप। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उनि					 : | सर्व०=उन्होंने।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उनिदौंही					 : | वि०=उनींदा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उनींद					 : | स्त्री० [सं० उन्निद्रा] बहुत अदिक निंद्रा आने पर या नींद से भरे होने की अवस्था। उदाहरण—लरिका स्रमित उनींद बस सयन करावहु जाइ।—तुलसी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उनींदा					 : | वि० [सं० उन्नद्रि] [स्त्री० उनींदी] १. (आँखें) जिसमें नींद भरी हो। २. (व्यक्ति) जिसे नींद आ रही हो। ऊँघता हुआ। उदाहरण—आजु उनीदें आय मुरारी।—तुलसी। ३. नींद के कारण अलसाया हुआ। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उनैना					 : | अ० दे० ‘उनवना’। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उन्नइस					 : | वि०=उन्नीस।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उन्नत					 : | वि० [सं० उद्√नम्(झुकना)+क्त] १. जो ऊपर की ओर झुका या नत हुआ हो। २. ऊपर की ओर ऊँठा हुआ। ऊँचा। ३. पद, मर्यादा, स्थिति के विचार से जो पहले से अथवा अपने वर्ग के अन्य सदस्यों से बहुत आगे बढ़ा हुआ हो। श्रेष्ठ। ४. दीर्घ, महान या विशाल। पुं० अजगर। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उन्नतांश					 : | पुं० [सं० उन्नत-अंश, कर्म० स०] १. किसी आधार, स्तर या रेखा से अथवा किसी की तुलना में ऊपर की ओर का विस्तार। ऊँचाई। (आल्टिट्यूड) २. फलित ज्योतिष में दूज के चंद्रमा का वह कोना या श्रृंग जो दूसरे कोने या श्रृंग से कुछ ऊपर उठा हुआ हो। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उन्नति					 : | स्त्री० [सं० उद्√नम्+क्तिन्] १. उन्नत होने की अवस्था, क्रिया या भाव। २. उच्चता। ३. किसी कार्य या क्षेत्र में अच्छी तरह और बराबर आगे बढ़ते रहने या विकसित होते रहने की अवस्था, क्रिया या भाव। (प्रोग्रेस) जैसे—यह लड़का पढ़ाई में अच्छी उन्नति कर रहा है। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उन्नति-शील					 : | वि० [ब० स०] (व्यक्ति या व्यापार) जिसमें उन्नति करते रहने की योग्यता हो अथवा जो बराबर उन्नति कर रहा हो। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उन्नतोदर					 : | पुं० [सं० उन्नत-उदर, कर्म० स०] वृत्त-खंड आदि का ऊपर उठा हुआ कोई अंश या तल। वि० दे० ‘उत्तल’। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उन्नद्ध					 : | वि० [सं० उद्√नह्(बंधन)+क्त] १. कसकर बँधा हुआ। २. बढ़ाया हुआ। ३. उठाया हुआ। ४. अभिमानी और उद्दंड। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उन्नमन					 : | पुं० [सं० उद्√नम्+ल्युट-अन] [भू० कृ० उन्नमित] १. ऊपर उठाना या ले जाना। २. उन्नत होना। उन्नति करना। ३. बनाकर तैयार या खड़ा करना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उन्नम्र					 : | वि० [सं० उद्√नम्+रन्] १. जो सीधा खड़ा हो। २. बहुत ऊँचा। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उन्नयन					 : | पुं० [सं० उद्√नी(लेजाना)+ल्युट-अन] [भू० कृ० उन्नति कर्त्ता, उन्नायक] १. ऊपर की ओर उठाना या ले जाना। २. ऐसा काम करना जिससे कोई आगे बढ़े या उन्नति करे। किसी की उन्नित का कारण बनना। ३. किसी को ऊँची कक्षा या वर्ग में अथवा ऊँचे पद पर पहुँचाना या भेजना। (प्रोमोशन) ४. ऊपर की ओर उठते हुए रूप में बनाना या रचना। जैसे—सीमन्तोन्नयन। ५. निष्कर्ष। सारांश। वि० [सं० उद्+नयन] जिसकी आँखें ऊपर की ओर उठी हों। | 
			
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				| उन्नयन-यंत्र					 : | पुं० [ष० त०] दे० ‘उत्थानक’। | 
			
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				| उन्नाद					 : | पुं० [सं० उद्√नद्(शब्द)+घञ्] १. शोर-गुल। हो-हल्ला। २. गुंजन। कल-रव। | 
			
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				| उन्नाब					 : | पुं० [अं०] बेर की जाति का एक प्रकार का सूखा फल जो दवा के काम आता है। | 
			
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				| उन्नाबी					 : | वि० [अ०] १. उन्नाव संबंधी। २. उन्नाब के दाने की रंगत का। कुछ गुलाबी या बैगनी झलक लिये हुए लाल। (लाइट मैरून) उक्त प्रकार का रंग। | 
			
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				| उन्नायक					 : | वि० [सं० उद्√नी+ण्वुल्-अक] १. उन्नयन करने या ऊपर चढ़ानेवाला। २. उन्नति की ओर ले जानेवाला। ३. आगे बढ़ानेवाला। ४. जिसकी प्रवृत्ति ऊपर उठने, चढ़ने या बढ़ने की ओर हो। (राइजिंग) जैसे—उन्नायक स्वर। ५. निष्कर्ष तक पहुँचानेवाला। | 
			
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				| उन्नासी					 : | वि० [सं० ऊनाशीति, प्रा० ऊनासी] जो गिनती में सत्तर और नौ हो। अस्सी से एक कम। पुं० सत्तर और नौ की संख्या या अंक जो गिनती में इस प्रकार लिखा जाता है-79। | 
			
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				| उन्नाह					 : | पुं० [सं० उद्√नह्+घञ्] १. उठाकर बाँधना। जैसे—स्तनोत्राह। २. अतिशयता। प्रचुरता। | 
			
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				| उन्निद्र					 : | वि० [सं० उद्-निद्रा, ब० स०] १. जिसे नींद न आती हो या न आ रही हो। २. खिला हुआ। विकसित। पुं० एक रोग जिसमें रोगी को बिलकुल नींद नहीं आती या बहुत कम नींद आती है। (इन्सोम्निया) | 
			
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				| उन्नीत					 : | भू० कृ० [सं० उद्√नी+क्त] १. ऊपर उठाया चढ़ाया या पहुँचाया हुआ। २. ऊपर की कक्षा में या पद पर पहुँचाया हुआ। (प्रोमोटेड) | 
			
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				| उन्नीस					 : | वि० [सं० एकोनविंशति, पा० एकोनवीसा, एकूनवीसा, प्रा० एकोन्नीस, उन्नीस] १. जो गिनती में दस और नौ हो। बीस में से एक कम। २. जो अपेक्षाकृत किसी से कम, घटकर या हीन हो। मुहावरा—(किसी से) उन्नीस होना (क) कुछ कम होना। थोड़ा घटना। (ख) गुण, योग्यता आदि में किसी से कुछ घटकर होना। (दो वस्तुओं का परस्पर) उन्नीस बीस होना-(क) दो वस्तुओं का प्रायः समान होने पर भी उन में से एक-दूसरे से कुछ घटकर और दूसरी का कुछ अच्छा होना। (ख) कोई ऐसी वैसी या साधारण अनिष्ट कर बात होना। जैसे—तुमने इस दोपहर में लड़के को वहाँ भेज दिया, कहीं कुछ उन्नीस-बीस हो जाए तो। पद-अन्नीस बीस का अंतर-बहुत ही थोड़ा या सामान्य और प्रायः नगण्य अंतर। पुं० उन्नीस की सूचक संख्या जो इस प्रकार लिखी जाती है-१९। | 
			
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				| उन्नीसवाँ					 : | वि [हिं० उन्नीस+वाँ (प्रत्य)] जो गिनती में उन्नीस के स्थान पर पड़ता हो। अठारहवें के बाद का। | 
			
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				| उन्नैना					 : | अ० [सं० उन्नयन] झुकना। स० झुकना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उन्मंथ					 : | पुं० [सं० उ√मनथ् (बिलोना) +घञ्] १. एक रोग जिसमें कान की लौ सूज जाती है और उसमें खुलजी होती है। २. बिलोड़ना। मथना। ३. कष्ट पहुँचाना। | 
			
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				| उन्मज्जन					 : | पुं० [सं० उद्√मस्ज् (शुद्धि)+ल्युट-अन] जल या नदी में से (स्नान आदि कर चुकने पर) बाहर निकालना। | 
			
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				| उन्मत					 : | भू० कृ० [सं० उद्√मद्(हर्ष)+क्त] १. जिसकी बुद्दि या मति में किसी प्रकार का विकार हो गया हो। जिसकी बुद्धि ठिकाने न हो। २. पागल। बावला। ३. मादक पदार्थ के सेवन से जिसका मानसिक संतुलन बहुत बिगड़ गया हो या बिल्कुल नष्ट हो गया हो। ४. जो किसी प्रकार के आवेश (जैसे—अभिमान, क्रोध आदि) से भरकर मानसिक दृष्टि से उक्त स्थिति में पहुँच गया हो। पुं० १. धतूरा। २. मुचकुंद का पेड़। पद-उन्मत्त पंचकवैद्यक में, धतूरा, बकुची, भंग, जावित्री तथा खसखस इन पाँच मादक द्रव्यों का समूह। उन्मत्त रस-वैद्यक में पारे, गंधक आदि के योग से बना हुआ एक प्रकार का रस जिसे सूँघने से सन्निपात दूर जाता है। | 
			
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				| उन्मत्तता					 : | स्त्री० [सं० उन्मत्त+तल्-टाप्] उन्मत्त होने की दशा या भाव। | 
			
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				| उन्मथन					 : | पुं० [सं० उद्√मथ्+ल्युट-अन] [भू० कृ० उन्मथित] १. मथना। २. हिलाना। ३. पीड़ा देना। ४. क्षुब्ध करना। | 
			
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				| उन्मथित					 : | भू० कृ० [सं० उद्√मथ्+क्त] १. मथा हुआ। २. हिलाया हुआ। ३. क्षुब्ध किया हुआ। ४. विक्षिप्त। ५. विकल। | 
			
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				| उन्मद					 : | वि०=उन्मत्त।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उन्मदिष्णु					 : | वि० [सं० उद्√मद्+इष्णुच्] १. मतवाला। उन्मत्त। २. (हाथी) जिसका मद बह या निकल रहा हो। | 
			
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				| उन्मध्य-प्रेरक					 : | वि० पुं० [सं० उद्-मध्य० अत्या० स० उन्मध्य० प्रेरक, कर्म० स०]=केंद्रापसारक। | 
			
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				| उन्मन					 : | वि० [सं० उन्मनस्] [स्त्री० उन्मना] १. अनमना। अन्यमनस्क। २. उन्मत्त। ३. उद्विग्न। पुं० हठयोग में, मन की वह अवस्था, जो उसकी उन्मनी मुद्रा के साधन के समय प्राप्त होती है। | 
			
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				| उन्मनस्क					 : | वि० [सं० उद्-मनस्, ब० स० कप्] =उन्मन्। | 
			
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				| उन्मना (नस्)					 : | वि० [सं० उद्-मानस्स० ब० स०] =उन्मन। | 
			
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				| उन्मनी					 : | स्त्री० [सं० उन्मस् ङीष्स, पृषो० सिद्धि] हटयोग की एक मुद्रा जिसमें भौहों को ऊपर चढ़ाकर नाक की नोक पर दृष्टि जमाई जाती है। | 
			
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				| उन्मर्दन					 : | पुं० [सं० उद्√मृद् (मलना)+ल्युट-अन] १. मलना। रगड़ना। २. वह तरल पदार्थ जो शरीर पर मला जाए। २. वायु शुद्ध करने की क्रिया या भाव। | 
			
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				| उन्माथ					 : | पुं० [सं० उद्√मथ् (मथना)+घञ्] १. हिलाने की क्रिया या भाव। २. मार डालना या वध करना। ३. वधिक। ४. कष्ट देना। पीड़ित करना। | 
			
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				| उन्माद					 : | पुं० [सं० उद्√मद् (गर्व करना)+घञ्] एक प्रकार का मानसिक रोग जिसमें मस्तिष्क का संतुलन बिगड़ जाता है और रोगी बिना-सोचे समझे अंड-बंड काम और बातें करने लगता है। चित्त-विभ्रम। पागलपन। साहित्य में यह एक संचारी भाव माना गया है जिसमें वियोग के कारण चित्त ठिकाने नहीं रहता। | 
			
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				| उन्मादक					 : | वि० [सं० उद्√मद्+णिच्+ल्युट अन] [स्त्री० उन्मादिनी] १. (बात, विषय या व्यक्ति) जो किसी को उन्मद करे। पागल करनेवाला० २. (खाने-पीने की चीज) जिससे नशा होता हो। पुं० धतूरा। | 
			
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				| उन्मादन					 : | पुं० [सं० उद्√मद्+णिच्+ल्युट अन] १. उन्मत्त करने की क्रिया या भाव। उन्माद उत्पन्न करना। २. कामदेव के पाँच वाणों में से एक। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उन्मादी (दिन्)					 : | वि० [सं० उन्माद+इनि] [स्त्री० उन्मादिनी] १. जो उन्माद रोग से ग्रस्त हो। २. उन्माद संबंधी। | 
			
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				| उन्मान					 : | पुं० [सं० उद्√मा (मापना)+ल्युट- अन] १. ऊँचाई नापने का एक माप या नाप। २. द्रोण नामक एक पुरानी तौल। ३. मूल्य या महत्त्व समझना। | 
			
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				| उन्मार्ग					 : | पुं० [सं० उद् | 
			
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				| उन्मार्गी (र्गिन्)					 : | वि० [सं० उन्मार्ग+इनि] १. बुरे रास्ते पर चलने वाला। कुमार्गी। २. जिसका आचरण बुरा हो। | 
			
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				| उन्मार्जन					 : | पुं० [सं० उद्√मार्ज (शुद्धि, मिटाना)+णिच्+ल्युट मार्ग, प्रा० स०] १. अनुचित या बुरा मार्ग। खराब रास्ता। २. अनुचित और निंदनीय आचरण। खराब चाल-चलन। | 
			
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				| उन्मित					 : | भू० कृ० [सं० उद्√मा+क्त] १. नापा या मापा हुआ। २. तौला हुआ। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उन्मिति					 : | स्त्री० [सं० उद्√मा+क्तिन्] १. नाप। माप। २. तौल। | 
			
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				| उन्मिष					 : | वि० [सं० उद्√मिष् (सींचना)+क] १. खुला हुआ। २. खिला हुआ। पुं०=उन्मेष। | 
			
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				| उन्मीलन					 : | पुं० [सं० उद्√मील्(पलक करना)+ल्युट अन] [वि० उन्मीलनीय, भू० कृ० उन्मीलित, कर्त्ता, उन्मीलक] १. (पलकें ऊपर उठाकर) आँखें खोलना। २. (फूल) खिलना। विकसित होना। ३. प्रकट उन्मीलन अभिराम। -प्रसाद। ४. चित्र-कला में खुलाई नाम की क्रिया। अ० विशेष दे० ‘खुलाई’।होना० सामने आना। उदाहरण—विश्व का | 
			
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				| उन्मीलना					 : | स० [सं० उन्मीलन] १. खोलना। २. विकसित करना। खिलाना। अ० १. खुलना। २. खिलना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उन्मीलित					 : | भू० कृ० [सं० उद्√मील्+क्त] १. (नेत्र) जो खुला हुआ हो। २. (फूल) जो खिला हुआ हो। पुं० साहित्य में, एक अलंकार समान गुण धर्मवाले दो पदार्थों के आपस में मिलकर एक हो जाने पर भी किसी विशेष कारण से दोनों का अंतर प्रकट होने का उल्लेख होता है। जैसे—चाँदनी रात में जानेवाली अभिसारिका नायिका के संबंध में यह कहना कि वह तो चाँदनी के साथ मिलकर एक हो गयी थी। और उसके शरीर से निकलनेवाली सुगंध के आधार पर ही उसकी सखी उसके पीछे-पीछे चली जा रही थी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उन्मुक्त					 : | भू० कृ० [सं० उद्√मुच् (खुलना, छोड़ना)+क्त] १. जिसे बंधन से छुटकारा मिला हो। मुक्त किया हुआ। २. खुला हुआ। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उन्मुक्ति					 : | स्त्री० [सं० उद्√मुच्+क्तिन्] १. उन्मुक्त करने या होने की अवस्था या भाव। छुटकारा। मुक्ति। २. किसी प्रकार के अभियोग, बंधन आदि से छोड़ा जाना। (डिस्चार्ज) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उन्मुख					 : | वि० [सं० उद्-मुख, ब० स०] [स्त्री० उन्मुखा, भाव० उन्मुखता] १. जो ऊपर की ओर मुँह उठाए हो। २. जो किसी की या किसी की ओर देख रहा हो। ३. जो उत्कंठापूर्वक प्रतीक्षा कर रहा हो। ४. उद्यत। प्रस्तुत। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उन्मुग्ध					 : | वि० [सं० उद्-मुग्ध, प्रा० स०] १. जो किसी पर बहुत अधिक आसक्त हो। २. बहुत अधिक मूर्ख। जड़। ३. व्याकुल। घबराया हुआ। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उन्मुद्र					 : | वि० [सं० उद्-मुद्रा, ब० स०] १. जिसपर मोहर न लगी हो। २. खिला या खुला हुआ। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उन्मुनि					 : | स्त्री०=उन्मनी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उन्मूलक					 : | वि० [सं० उद्√मूल्(रोपना)+णिच्+ण्वुल अक] उन्मूलन करने या जड़ से उखाड़ फेंकनेवाला। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उन्मूलन					 : | पुं० [सं० उद्√मूल्+णिच्+ल्युट अन] [वि० उन्मूलनीय, भू० कृ० उन्मूलित] १. मूल या जड़ से उखाड़कर फेंकने की क्रिया या भाव। समूल नष्ट करना। २. किसी चीज को इस प्रकार नष्ट-भ्रष्ट करना या हानि पहुँचाना कि वह फिर से उठ,पनप या विकसित न हो सके। (एक्सटर्मिनेशन) ३. किसी का अस्तित्व मिटाना। (एबालिशन) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उन्मूलित					 : | भू० कृ० [सं० उद्√मूल्+णिच्+क्त] १. जड़ से उखाड़ा हुआ। २. पूरी तरह से नष्ट किया हुआ। ३. जिसका अस्तित्व न रहने दिया गया हो। (एबॉलिश्ड) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उन्मेष					 : | पुं० [सं० उद्√मिष्+घञ्] [वि० उन्मिषित] १. (आँख का) खुलना। २. (फूल का) खिलना। ३. प्रकट होना। ४. थोड़ा, मंद या हलका प्रकाश। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उन्मेषी (षिन्)					 : | वि० [सं० उद्√मिष्+णइच्+णिनि] १. खोलनेवाला। जैसे—नेत्र उन्मेषी। २. खिलानेवाला। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उन्मोचन					 : | पुं० [सं० उद्√मुच्+णिच्+ल्युट-अन] [कर्त्ता, उन्मोचक] १. बंधन आदि से मुक्त करना। खोलना। २. कष्ट संकट आदि से छुड़ाना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उन्ह					 : | सर्व० हिं० उस का वह अवधी बहुवचन रूप जो उसे विभक्ति लगने पर प्राप्त होता है। उदाहरण—साँचेहु उन्ह कै मोह न माया।—तुलसी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उन्हानि					 : | स्त्री०=उन्हारि। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उन्हारि					 : | स्त्री० [सं० अनसार, हिं० अनुहार] १. बराबरी। समता। २. आकृति, रूप-रंग आदि में किसी के साथ होनेवाली समानता। ३. किसी के ठीक समान बनी हुई कोई दूसरी चीज़ या रूप। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उन्हारी					 : | स्त्री० [हिं० उन्हाला] रबी की फसल। (बुंन्देल०)। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उन्हाला					 : | पुं० [सं० उष्ण-काल] ग्रीष्म ऋतु। गरमी के दिन। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपंग					 : | पुं० [सं० उपांग] १. नसतरंग नाम का बाजा २. उद्वव के पिता का नाम। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपंगी					 : | वि० [सं० उपांग] जो उपंग या नसतरंग बजाता हो। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपंत					 : | वि० [सं० उत्पन्न, पा० उत्पन्न] उत्पन्न। पैदा। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उप-उप					 : | [सं०√पव्+क] एक संस्कृत उपसर्ग जो क्रियाओं और संज्ञाओं के पहले लगकर उनके अर्थों में अनेक प्रकार की विशेषताएँ उत्पन्न करता है। यथा-१. किसी की ओर या दिशा में। जैसे—उप-क्रमण, उपगमन। २. काल,रूप,मान,संख्या आदि के विचार से किसी के अनुरूप, लगभग या सदृश्य होने पर भी उससे कुछ घटकर, छोटी निम्न कोटि का या हलका। जैसे—उप-देवता, उप-धातु, उप-मंत्री, उप-विष, उपेंद्र (इंद्र का छोटा भाई)। ३. किसी के पास रहने या होनेवाला अथवा स्थित। जैसे—उप-कूप, उप-कूल, उप-तीर्थ। ४. कोई काम करने का विशिष्ट आयास,प्रकार या सामर्थ्य। जैसे—उपदेश, उपकार, उपार्जन। ५. किसी प्रकार की अधिकता या तीव्रता। जैसे—उप-तापन। ६. पूर्वता या प्राथमिकता। जैसे—उपज्ञा। ७. विस्तार या व्याप्ति। जैसे—उपकीर्ण। ८. अलंकारण या सजावट। जैसे—उपस्करण। ९. ऊपर की ओर होनेवाला। जैसे—उप-लेपन। आदि-आदि। विशेष—संस्कृत वैयाकरणों के अनुसार कभी-कभी यह आदेश, इच्छा, प्रयत्न, रोग, विनाश आदि के भावों से भी युक्त होता है। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपइया					 : | पुं०=उपाय।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उप-कंठ					 : | वि० [सं० अत्या० स०] जो समीप हो। पुं० १. सामीप्य। २. गाँव की सीमा के आसपास का स्थान। ३. घोड़े की सरपट चाल। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उप-कथन					 : | पुं० [सं० अत्या० स०] १. किसी के कथन के उत्तर के रूप में अथवा अपने पूर्व कथन की पुष्टि के लिए कही जानेवाली बात। जैसे—कथनोपथन। २. किसी कार्य, घटना, व्यक्ति आदि के संबंध में आलोचना या मत के रूप में कही या लिखी जानेवाली बात। टिप्पणी। (रिमार्क) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उप-कथा					 : | स्त्री० [सं० अत्या० स०] छोटी कथा या कहानी (विशेषतः किसी बड़ी कथा या कहानी के अन्तर्गत रहनेवाली)। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उप-कनिष्ठिका					 : | स्त्री० [सं० अत्या० स०] सबसे छोटी उँगली या कनिष्ठिका के पास की उँगली। अनामिका। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उप-कन्या					 : | स्त्री० [सं० अत्या० स०] कन्या या सखी की सहेली जो कन्या के समान ही मानी गई है। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उप-कर					 : | पुं० [सं० अत्या० स०] कुछ विशिष्ट स्थितियों में या कुछ विशिष्ट वस्तुओं पर लगनेवाला एक प्रकार का छोटा कर। (सेस)। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपकरण					 : | पुं० [सं० उप√कृ(करना)+ल्युट अन] १. वे वस्तुएँ जिनकी सहायता से कोई काम होता या चीज बनती हो। सामग्री। सामान। (मैटीरियल) २. वे चीजें या बातें जो किसी के अंगों, उपांगों आदि के रूप में आवश्यक हों। जैसे—प्राचीन भारत में छत्र, चँवर आदि राजाओं के उपकरण माने जाते थे। ३. कुछ बड़े और कई अंगों, उपांगों से युक्त वे औजार या यन्त्र जिनकी सहायता से कोई काम किया या चीजें बनाई जाती है। (इम्प्लीमेण्ट) जैसे—करघा, परेता आदि जुलाहों के और हल, पाटा आदि खेती के उपकरण हैं। ४. दे० ‘उपकार’। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपकरना					 : | स० [सं० उपकार] किसी के साथ उपकार या भलाई करना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपकर्णिका					 : | स्त्री० [सं० उप्√कर्ण (भेद करना)+ण्वुल्-टाप्, इत्व] जनश्रुति। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपकर्त्ता (तृ)					 : | पुं० [सं० उप√कृ(करना)+तृच्] १. दूसरों का उपकार या भलाई करनेवाला। २. अच्छे या उपकार के काम करनेवाला। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपकर्षण					 : | पुं० [सं० उप्√कृष् (खींचना)+ल्युट अन] अपनी ओर खींचना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपकल्प					 : | पुं० [सं० अत्या० स,०] १. धन-संपत्ति। २. सामग्री। सामान। ३. दे० ‘अनुकल्प’। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपकल्पन					 : | पुं० [सं० उप√कृप् (रचना करना)+ल्युट अन] कोई काम करने की तैयारी करना। (प्रिपरेशन) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपकल्पना					 : | स्त्री० [सं० उप√कृप्+णिच्+युच् अन टाप्] दे० ‘परिकल्पना’। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपकल्पित					 : | भू० कृ० [सं० उप√कृप्+क्त]=परिकल्पित। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपकार					 : | पुं० [सं० उप√कृ(करना)+घञ्] १. जीवों या प्राणियों के हित के लिए,उन्हें कष्ट, पीड़ा, संकट आदि से बचाने के लिए अथवा उनके सुख-सुभीते में वृद्धि करने के लिए किया जानेवाला कोई अच्छा या शुभ कार्य। ऐसा कार्य जिसमें दूसरों की भलाई हो। जैसे—दरिद्रों को धन देना, रोगियों की चिकित्सा करना आदि। २. कोई अच्छा या लाभदायक कार्य या फल। जैसे—इस दवा से बहुत उपकार हुआ है। ३. सेवा और सहायता। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपकारक					 : | वि० [सं० उप√कृ+ण्वुल्-अक] [स्त्री० उपकारिका] १. दूसरों का उपकार, भलाई या हित करनेवाला। २. (वस्तु) जिससे उपकार या भलाई होती हो। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपाकारिका					 : | स्त्री० [सं० उपकारक+टाप्, इत्व] १. राजभवन। २. खेमा। तम्बू। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपकारिता					 : | स्त्री० [सं० उपकारिन्+तल्-टाप्] उपकारी होने की अवस्था या भाव। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उपकारी (रिन्)					 : | वि० [सं० उप√कृ+णिनि] [स्त्री० उपकारिणी] १. दूसरों का उपकार, भलाई, या हित करनेवाला। २. फायदा पहुँचानेवाला। लाभदायक। जैसे—रोग के लिए उपकारी औषध। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपकार्य					 : | वि० [सं० उप√कृ+ण्यत्] जिसका उपकार किया जाने को हो अथवा किया जा सकता हो। उपकार का अधिकारी या पात्र। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपकीर्ण					 : | भू० कृ० [सं० उप√कृ+(बिखेरना)+क्त] १. छितराया या बिखेरा हुआ। २. ढका हुआ। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपकुर्वाण					 : | भू० कृ० [सं० उप√कृ+शानच्] वह ब्रह्मचारी जो स्वाध्याय पूरा करके गृहस्थाश्रम में प्रवेश कर रहा हो। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उप-कुल					 : | पुं० [सं० अत्या० स०] किसी कुल के अंतर्गत उसका कोई छोटा विभाग। (सब-फैमिली) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपकुल्या					 : | स्त्री० [सं० उप√कुल् (बंधन)+यत्, नि०] १. छोटी नहर। २. खाई। ३. पिप्पली। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उपकुश					 : | पुं० [सं० उप√कुश् (मिलना)+अच्] एक रोग जिसमें मसूड़े फूल जाते है और दाँत हिलने लगते हैं। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उप-कूल					 : | पुं० [सं० अव्य० स०] १. नदी आदि के कूल या तट के पास का स्थान। २. किनारा। तट। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उपकृत					 : | वि० [सं० उप√कृ(करना)+क्त] १. जिसका उपकार,भलाई या सहायता की गई हो। २. अपने प्रति किया हुआ उपकार माननेवाला। कृतज्ञ। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उपकृति					 : | स्त्री० [सं० उप√कृ+क्तिन्] १. उपकार। भलाई। २. सहायता। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उपकृती (तिन्)					 : | वि० [सं० उपकृत+इनि]=उपकारक। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उपक्रम					 : | पुं० [सं० उप√क्रम्(गति)+घञ्] १. चलकर किसी के पास पहुँचना। २. कोई कार्य आरंभ करने से पहले किया जाने वाला आयोजन। (प्रिपरेशन)। ३. भूमिका। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उपक्रमण					 : | पुं० [सं० उप√क्रम्+ल्युट-अन] १. चलकर पास आना। आगमन। २. किसी कार्य का अनुष्ठान। आरम्भ। ३. आयोजन। तैयारी। ४. ग्रन्थ आदि की भूमिका। ५. इलाज। चिकित्सा। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपक्रमणिका					 : | स्त्री० [सं० उपक्रमण+ङीष्+कन्-टाप्, हस्व] १. अनुक्रमणिका। २. वह वैदिक ग्रंथ जिसमें वेदों के मन्त्रों और सूक्तों के ऋषियों छंदों आदि का उल्लेख है। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपक्रमिता (तृ)					 : | वि० [सं० उप√क्रम+तृच्] उपक्रमण करनेवाला। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपक्रांत					 : | वि० [सं० उप√क्रम्+क्त] १. (कार्य) जो आरंभ किया जा चुका हो। २. (विषय) जिसकी पहले चर्चा हो चुकी हो। ३. (व्यक्ति) जिसकी चिकित्सा हो चुकी हो। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपक्रिया					 : | स्त्री० [सं० उप√कृ+श, इयङ्ट-टाप्] उपकार। भलाई। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उपक्रोश					 : | पुं० [सं० उप√कुश्+घञ्] [वि० उपकुष्ट] १. गाली। दुर्वचन। २. अपवाद। निन्दा। ३. तिरस्कार। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपक्रोष्टा (ष्ट्र)					 : | वि० [सं० उप√कुश् (शब्द करना)+तृच्] उपक्रोश करनेवाला। पुं० गधा। गर्दभ। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपक्षय					 : | पुं० [सं० उप√क्षि(नाश)+अच्] क्रमशः थोड़ा या धीरे-धीरे होनेवाला क्षय़। ह्स। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपक्षेप					 : | पुं० [सं० उप√क्षिप् (प्रेरणा)+घञ्] १. अभिनय के आरंभ में नाटक के वृत्तान्त का संक्षिप्त कथन। २. किसी काम या ठेका पाने के लिए उसके व्यय के विवरण सहित दिया जानेवाला आवेदन-पत्र। (टेण्डर) ३. दे०‘आक्षेप’। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उपखंड					 : | पुं० [सं० अत्या० स०] १. किसी खंड का कोई छोटा खंड या टुकड़ा। २. किसी धारा या उपधारा के अंश या खंड का कोई छोटा विभाग। (सब-क्लाँज) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपखान					 : | पुं० ‘उपाख्यान’।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपगंता					 : | पुं० [सं० उप√गम् (जाना)+तृच्] १. चलकर पास पहुँचनेवाला। २. मान्य या स्वीकृत करनेवाला। ३. जानकार। ज्ञाता। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपगत					 : | वि० [सं० उप√गम्+क्त] १. जो किसी के पास (प्रायः सहायता या शरण पाने के लिए) पहुँचा हो। २. जाना हुआ। ज्ञात। ३. अंगीकृत, गृहीत या स्वीकृत। ४. व्यय आदि के रूप में अपने ऊपर आया या लगा हुआ। (इन्कर्ड) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपगति					 : | स्त्री० [सं० उप√गम्+क्तिन्] १. किसी के पास जाने या पहुँचने की क्रिया या भाव। २. प्राप्ति। ३. स्वीकृति। ४. ज्ञान। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपगम					 : | पुं० [सं० उप√गम्+अप्] १. किसी के पास या समीप जाना। कहीं पहुँचना। २. भेंट करना। ३. प्राप्त या स्वीकृत करना। ४. वचन। वादा। ५. ज्ञान। जानकारी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपगमन					 : | पुं० [सं० उप√गम्+ल्युट-अन] १. पास जाने या पहुँचने की क्रिया या भाव। २. अंगीकार। स्वीकार। ३. प्राप्ति। लाभ। ४. ज्ञान। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपगामी (मिन्)					 : | वि० [सं० उप√गम्+णिनि] उपगमन करनेवाला। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपगार					 : | पुं०=उपकार।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उप-गिरि					 : | पुं० [सं० अव्य० स०] बड़े पहाड़ के आस-पास का वह बाहरी भाग जहाँ से उसकी चढ़ाई आरंभ होती है। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उप-गीति					 : | स्त्री० [सं० अत्या०स०] आर्या छन्द का एक भेद जिसके सम चरणों में १5-१5 और विषम चरणों में १२-१२ मात्राएँ होती हैं। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपगूहन					 : | पुं० [सं० उप√गुह् (छिपाना)+ल्युट-अन] १. छिपाना। २. गले लगाना। आलिंगन। ३. अनोखी घटना घटित होना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपग्रह					 : | पुं० [सं० उप√ग्रह(पकड़ना)+अप्] १. धरा या पकड़ा जाना। २. कैदी। बंदी। ३. कारावास। ४. [अत्या० स०] वह छोटा ग्रह जो किसी बड़े ग्रह की परिक्रमा करता हो। जैसे—चन्द्रमा हमारी पृथ्वी का उपग्रह है। ५. आज-कल कोई ऐसा यान्त्रिक गोला या पिड़ जो चन्द्रमा, पृथ्वी, सूर्य अथवा और किसी ग्रह की परिक्रमा करने के लिए आकाश में छोड़ा जाता है। (सैटेलाइट, उक्त दो अर्थों के लिए) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपग्रहण					 : | [सं० उप√ग्रह+ल्युट-अन] १. धरना या पकड़ना। २. अच्छी तरह हथेली या हाथ में लेना। ३. संस्कारपूर्वक वेदों का अध्ययन करना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपग्रह-संधि					 : | स्त्री० [सं० मध्य० स०] ऐसी संधि जो अपना सब कुछ देकर अपनी प्राणरक्षा के लिए की जाए। (कौं०) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपघात					 : | पुं० [सं० उप√हन् (हिंसा)+घञ्] [कर्त्ता, उपघातक, वि० उपघाती] १. आघात। धक्का। २. हानि पहुँचाना। ३. इंद्रियों का अपने कार्य करने के लिए योग्य न रह जाना। अशक्तता। ४. रोग। व्याधि। ५. उपद्रव। ६. स्मृति के अनुसार पाँच पातकों का समूह। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपघातक					 : | वि० [सं० उप√हन्+ण्वुल्-अक] १. उपघात या घात करनेवाला। २. पीड़क। ३. नाशक। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपघाती (तिन्)					 : | वि० [सं० उप√हन्+णिनि] १. उपघात करनेवाला। २. दूसरों को हानि पहुँचानेवाला। ३. पीड़क। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपध्न					 : | पुं० [सं० उप√हन्+क] १. सहारा। २. शरण-स्थान। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उप-चक्षु (स्)					 : | पुं० [सं० अत्या० स०] लाक्षणिक अर्थ में ऐनक या चश्मा। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपचना					 : | अ० [सं० उपचय] १. उन्नत होना। बढ़ना। २. अन्दर पूरी तरह से भर जाने के कारण बाहर निकलना। फूट-पड़ना। उमड़ना। उदाहरण—जीवन वियोगिन को मेघ अँचयो सो किधौं उपच्यौ पच्यौं नउर ताप अधिकाने में।—रत्ना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपचय					 : | पुं० [सं० उप√चि (चयन करना)+अच्] १. एकत्र या संचित करना। चयन। २. ढेर। राशि। ३. उत्सेध। ऊँचाई। ४. उन्नति। बढ़ती। समृद्धि। ५. जन्म-कुंडली में लग्न से तीसरा, छठा, दसवाँ या ग्यारहवाँ स्थान। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपचर					 : | पुं० [सं० उप√चर् (गति)+अच्] उपचार। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपचरण					 : | पुं० [सं० उप√चर्(गति)+ल्युट-अन] १. किसी के पास जाना या पहुँचना। २. पूजा। सेवा। ३. उपचार करना। ४. आये हुए व्यक्ति का अच्छी तरह आदर-सत्कार करना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपचरण					 : | स०=उपचारना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपचरित					 : | भू० कृ० [सं० उप√चर्+क्त] १. जिसका उपचार किया गया हो। २. जिसकी पूजा या सेवा की गई हों। ३. लक्षणों से जाना हुआ। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उप-चर्म (न्)					 : | पुं० [सं० अत्या० स०] त्वचा का ऊपरी या बाहरी भाग। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपचर्या					 : | स्त्री० [सं० उप√चर्+क्वप्-टाप्] =उपचार। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपचायी (यिन्)					 : | वि० [सं० उप√चाय(वृद्धि)+णिनि] १. उपचय करनेवाला। २. उन्नति या वृद्धि करनेवाला। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपचार					 : | पुं० [सं० उप√चर्+घञ्] [वि० औपचारिक] १. किसी के पास रहकर, सेवा आदि के द्वारा उसे सुखी और संतुष्ट करना। २. उत्तम आचरण और व्यवहार। ३. रोगी के पास रहकर उसे अच्छे करने के लिए किये जानेवाले कार्य। जैसे—चिकित्सा, सेवा-शश्रूषा आदि। ४. लोक-व्यवहार में ऐसा आचरण या काम जो आवश्यक, उचित और प्रशस्त होने पर भी केवल दिखाने अथवा नियम, परिपाटी आदि का पालन करने के लिए किया जाय। (फाँरमैलिटी) ५. रसायन, वैद्यक आदि के क्षेत्रों में, वह क्रिया या प्रक्रिया जो कोई चीज ठीक या शुद्ध करके उसे काम में लाने के योग्य बनाने के समय की जाती है। (ट्रीटमेण्ट) जैसे—औषधियों, धातुओं आदि का उपचार। ६. धार्मिक क्षेत्र में, (क) पूजन के अंग और विधान। आवाहन, मधुपर्क, नैवेद्य परिक्रमा, वन्दना आदि। (ख) छूआछूत का विचार। ७. तान्त्रिक क्षेत्र में, किसी विशिष्ट उद्देश्य की सिद्धि के लिए किया जानेवाला कोई अनुष्ठान या कृत्य। अभिचार। जैसे—उच्चाटन, मारण, मोहन आदि। ८. खुशामद। चाटुता। ९. घूस। रिश्वत। १. व्याकरण में एक प्रकार की संधि जिसमें विसर्ग के स्थान पर श या स हो जाता है। जैसे—निःचल से निश्चल या निःसार से निस्सार। ११. दे० उपचरण। (आदर-सत्कार ) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपचारक					 : | वि० [सं० उप√चर्+ण्वुल्-अक] [स्त्री० उपचारिका] १. उपचार करनेवाला। २. चिकित्सा और सेवा-शुक्षूषा करनेवाला। ३. विधान करने या बतलानेवाला। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपचार-च्छल					 : | पुं० [सं० तृ० त०] तर्क या न्याय में, किसी की कही हुई बात का अभिप्रेत, ठीक या प्रासंगिक अर्थ छोड़कर केवल तंग करने के लिए अपनी ओर से किसी नये या भिन्न अर्थ की कल्पना करके उस बात में दोष निकालना। जैसे—यदि कोई कहे-‘ये नवद्वीप से आये हैं’। तो यह कहना-‘वाह ये जिस द्वीप से आये है, वह नया कैसे हैं’। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपचारना					 : | स० [सं० उपचार] १. रोगी का उपचार या सेवा-शुक्षूषा करना। २. अनुष्ठान या विधान करना। ३. औपचारिक रूप से कोई काम करना। ४. आदर-सम्मान या पूजन करना। उदाहरण—भरत हमहिं उपचार न थोरा।—तुलसी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपचारात्					 : | क्रि० वि० [सं० विभक्ति प्रतिरूपक अव्यय] १. नियम, परिपाटी आदि के पालन के रूप में। २. केवल दिखावे या रसम आदा करने के रूप में। (फॉर्मली)। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपचारी (रिन्)					 : | वि० [सं० उप√चर्+णिनि] १. उपचार अर्थात् चिकित्सा तथा सेवा-शुक्षूषा करनेवाला। २. (काम) जो औपचारिक रूप से किया जाय। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपचार्य					 : | वि० [सं० उप√चर्+ण्यत्] (रोग या रोगी) जिसका उपचार होने को हो या किया जा सके। पुं० चिकित्सा। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपचित					 : | भू० कृ० [सं० उप√चि+क्त] १. इकट्ठा किया हुआ। संचित। संगृहीत। २. अच्छी तरह से खिला, फूला या बढ़ा हुआ। विकसित। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपचिति					 : | स्त्री० [सं० उप√चि+क्तिन्] १. उपचित होने की अवस्था या भाव। २. ढेर। राशि। ३. संचय। ४. बढ़ती। वृद्धि। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपचित्र					 : | पुं० [सं० अत्या० स०] एक वर्णार्द्ध समवृत्त जिसके विषम चरणों में तीन सगण, एक लघु और एक गुरु तथा सम चरणों में तीन भगण और दो गुरु होते हैं। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपचित्रा					 : | स्त्री० [सं० उपचित्र+टाप्] १. दन्ती वृक्ष। २. मूसाकानी का पौधा। ३. चित्रा नक्षत्र के पास के नक्षत्र हस्त और स्वाती। ४. १6 मात्राओं का एक छन्द। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उप-चेतन					 : | पुं० [प्रा० स०] आधुनिक मनोविज्ञान में वह अवस्था जिसमें अनुभवों, व्यवहारों आदि की पूरी और स्पष्ट चेतना या ज्ञान नहीं होता केवल अस्पष्ट या धूमिल चेतना या ज्ञान होता है। (सब-कॉन्शस) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उप-चेतना					 : | स्त्री० [सं० अत्या० स०] ऊपरी चेतना के भीतरी भाग या अन्तःकरण में स्थित चेतना। अंतःसंज्ञा। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपचेय					 : | वि० [सं० उप√चि+यत्] जो उपचय (चयन) के योग्य हो अथवा जिसका उपचय या चयन किया जाने को हो। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपच्छन्न					 : | वि० [उप√छद्+क्त] ढका या छिपाया हुआ। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपच्छद					 : | पुं० [सं० उप√छद्(ढकना)+णिच्+घ, ह्रस्व] १. परदा। २. चादर। ३. ढक्कन। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपच्छाया					 : | स्त्री० [सं० अत्या० स०] किसी वस्तु की मूल छाया के अतिरिक्त इधर-उधर पड़नेवाली उसकी कुछ आभा या हलकी काली झलक,जैसी ग्रहण के समय चंद्रमा या पृथ्वी की मुख्य छाया के अतिरिक्त दिखाई देती है। (पेनम्ब्रा) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपज					 : | स्त्री० [हिं० उपजना] १. वह जो उपजा या बनकर तैयार हुआ हो। २. पैदावार। (प्रोडक्शन) जैसे—कारखाने या खेत की उपज। ३. मन की कोई नई उद्भावना या सूझ। ४. संगीत में गाई जानेवाली चीज की सुंदरता बढ़ाने के लिए उसमें बँधी हुई तानों के सिवा कुछ नई तानें, स्वर आदि अपनी ओर से मिलाना। ५. सोचने या विचारने की शक्ति। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपजगती					 : | स्त्री० [सं० अत्या० स०] एक प्रकार का छन्द या वृत्त। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपजत					 : | स्त्री०=उपज।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपजनन					 : | पुं० [सं० उप√जन्+ल्युट-अन] १. उत्पादन। २. प्रजनन। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपजना					 : | अ० [सं० उपजन्, प्रा० उपज्जइ] १. उत्पन्न होना। जन्म लेना। उदाहरण—बूड़ा बंस कबीर का कि उपजा पूत कमाल।—कबीर। २. अंकुर निकलना या फूटना। उगना। ३. कोई नई बात सूझना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपजाऊ					 : | वि० [हिं० उपज+आऊ (प्रत्यय] १. (भूमि) जिसमें अधिक मात्रा में उत्पन्न करने की शक्ति हो। उर्वरता। (फटाईल) २. कृषि के लिए उपयुक्त। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपजाऊ-पन					 : | पुं० [हिं० उपजाऊ+पन (प्रत्यय)] भूमि की वह शक्ति जिससे उसमें फसल आदि उत्पन्न होती है। उर्वरता। (प्रॉडक्टिविटी) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपजात					 : | वि० [सं० उप√जन् (उत्पत्ति)+क्त] जो उत्पन्न हुआ हो। पुं० दे० ‘उपसर्ग’। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपजाति					 : | स्त्री० [सं० उप√जन्+क्तिन्] इन्द्रवज्रा और उपेन्द्रवज्रा तथा इन्द्रवंशा और वंशस्थ के मेल से बने हुए वृत्तों का वर्ग। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपजाना					 : | स० [हिं० उपजना का स० रूप] १. उत्पन्न या पैदा करना। २. उगाना। ३. कोई नई बात ढूँढ़ निकालना। जैसे—बातें उपजाना० ४. किसी के मस्तिष्क में कोई विचार धारा प्रवाहित करना। सुझाना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपजीवक					 : | वि० [सं० उप√जीव् (जीना)+ण्वुल्-अक] =उपजीवी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपजीवन					 : | पुं० [सं० उप√जीव्+ल्युट-अन] १. जीविका। रोजी। २. ऐसा जीवन जो दूसरों के सहारे चलता हो। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उप-जीविका					 : | स्त्री० [सं० अत्या० स०] आय के मुख्य साधन के अतिरिक्त और कोई गौण साधन। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपजीवी (विन्)					 : | वि० [सं० उप√जीव्+णिनि] [स्त्री० उपजीविनी] दूसरे के सहारे जीवन बिताने-वाला। दूसरों पर निर्भर रहनेवाला। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपजीव्य					 : | वि० [सं० उप√जीव्+ण्यत्] जिसके आधार पर उपजीवन चलता हो या चल सकता हो। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपज्ञा					 : | स्त्री० [सं० उप√ज्ञा (जानना)+अङ्-टाप्] १. प्राचीन भारत में, वह बुद्धिपरक प्रयत्न जो दिग्गज विद्वान अपने मौलिक चिन्तन से नये-नये शास्त्रों की उद्भावना के लिए करते थे। २. चिंतन द्वारा किसी चीज या बात का पता लगाना। ३. कार्य करने का कोई ऐसा नया ढंग निकालना अथवा कोई नया औजार या यन्त्र बनाना जिसका पता पहले किसी को न रहा हो। नई चीज या साधन निकालना। (इन्वेंशन) | 
			
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				| उपज्ञात					 : | पुं० [सं० उप√ज्ञा+क्त] प्राचीन भारत में किसी विशिष्ट आचार्य की उपज्ञा से आविर्भूत होनेवाला कोई नया ग्रंथ, विषय या साहित्य। भू० कृ० जिसका आविर्भाव उपज्ञा के द्वारा हुआ हो। (इन्वेंटिड) | 
			
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				| उपज्ञाता (तृ)					 : | पुं० [सं० उप√ज्ञा (जानना)+तृच्] वह जिसने उपज्ञा के द्वारा कोई नई बात या चीज ढूँढ़ निकाली हो। (इन्वेंटर) | 
			
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				| उपटन					 : | पुं० [हिं० उपटना] शरीर पर उत्पन्न होनेवाला आघात आदि का चिन्ह्र निशान या साँट। पुं० दे० ‘उबटन’। | 
			
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				| उपटना					 : | अ० [सं० उत्+पत्, उत+पट्, प्रा० उप्पट, उप्पड, गुं० उपडवूँ, सिं० उपटणु, मरा० उपट(णें)] १. शरीर पर आघात आदि का चिन्ह, दाग या निशान पड़ना। २. उखड़ना। ३. उभरना। | 
			
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				| उपटा					 : | पुं० [सं० उत्पतन=ऊपर आना] १. पानी की बाढ़। २. ठोकर।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उपटाना					 : | स० [सं० उत्पाटन] १. उखाड़ना। २. उखड़वाना। स० [हिं० उबटन] उबटन लगवाना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उपटारना					 : | स० [सं० उत्पाटन] १. किसी का मन कहीं से हटाना। उच्चाटन करना। २. उठाना। | 
			
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				| उपड़ना					 : | अ० [सं० उत्पटन] १. उखड़ना। २. दे० उपटना। ३. इस प्रकार प्रत्यक्ष या स्पष्ट होना कि दिखाई दे या समझ में आ सके। जैसे—चिट्ठी उपड़ना=चिट्ठी का पढ़ा जाना। | 
			
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				| उपढौकन					 : | पुं० [सं० उप√ढौंक(भेंट देना)+ल्युट] १. उपहार। भेंट। २. रिश्वत। | 
			
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				| उपतापन					 : | पुं० [सं० उप√तप्+णिच्+ल्युट-अन] [वि० उपतापी] १. अच्छी तरह से गरम करना या तपाना। २. कष्ट पहुँचाना। | 
			
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				| उपत्यका					 : | स्त्री० [सं० उप+त्यकन्-अन] पर्वत के पास की नीची भूमि या प्रदेश। तराई। | 
			
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				| उपदंश					 : | पुं० [सं० उप√दंश् (डँसना)+घञ्] १. दुष्ट मैथुन से उत्पन्न होनेवाला इन्द्रिय सम्बन्धी एक रोग। २. आतशक या गरमी नाम का रोग। | 
			
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				| उपदंशी (शिन्)					 : | वि० [सं० उपदंश+इनि] जिसे उपदंश (रोग) हुआ हो। | 
			
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				| उपदरी					 : | वि०=उपद्रवी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उपदर्शक					 : | पुं० [सं० उप√दृश्(देखना)+ण्वुल्-अन] १. पथ या मार्ग दिखलानेवाला। २. द्वारपाल। ३. साक्षी। | 
			
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				| उपदर्शन					 : | पुं० [सं० उप√दृश्+ल्युट-अन] १. दिखलाने या प्रदर्शन करने की क्रिया या भाव। २. अच्छी तरह बतलाना या समझाना। ३. टीका या व्याख्या करना। | 
			
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				| उपदा					 : | स्त्री० [सं० उप√दा (देना)+अङ्-टाप्] १. किसी बड़े अधिकारी को दी जानेवाली भेंट। २. रिश्वत। | 
			
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				| उप-दान					 : | पुं० [सं० अत्या० स०] १. भेंट। २. किसी कर्मचारी को अवकाश ग्रहण करने के समय उनकी लंबी सेवा के बदले में दिया जानेवाला धन। (ग्रेचुइटी) | 
			
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				| उपदि					 : | क्रि० वि० [?] १. अपनी इच्छा से। २. मनमाने ढंग से। उदाहरण—किधौं उपदि बरयो है यह सोभा अभिरत हौ।—केशव। | 
			
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				| उप-दित्सा					 : | स्त्री० [सं० अत्या० स०] वसीयतनामे के अन्त में परिशिष्ट के रूप में लिखा हुआ वह संक्षिप्त लेख जिसमें किसी बात या विषय का स्पष्टीकरण हो। | 
			
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				| उप-दिशा					 : | स्त्री० [सं० अत्या० स०] दो दिशाओं के बीच की दिशा। कोण। विदिशा। | 
			
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				| उपदिष्ट					 : | वि० [सं० उप√दिश् (बताना)+क्त] १. (व्यक्ति) जिसे उपदेश दिया गया हो। सिखलाया हुआ। २. (बात या विषय) जो उपदेश के रूप में कहा या बतलाया गया हो। | 
			
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				| उप-देव					 : | पुं० [सं० अत्या० स०] गौण या छोटा देवता। जैसे—गंधर्व, भूत, यक्ष आदि। | 
			
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				| उप-देवता					 : | पुं०=उपदेव। | 
			
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				| उपदेश					 : | पुं० [सं० उप√दिश्+घञ्] १. किसी को अच्छी दिशा में ले जाने के लिए अच्छी बात बतलाना। २. बड़ों या विद्वानों का लोगों को धर्म या नीति संबंधी अच्छी-अच्छी बातें बतलाना। लोगों को अच्छे आचरण तथा व्यवहार सिखाने के लिए कही जानेवाली बात या बातें। ३. निर्देश। ४. आज्ञा। ५. वह तत्त्व की बात जो गुरु किसी को अपना शिष्य बनाने के समय बतलाया है। गुरु-मन्त्र। | 
			
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				| उपदेशक					 : | पुं० [सं० उप√दिश्+ण्वुल्-अक] [स्त्री० उपदेशिका] १. वह व्यक्ति जो दूसरों को उपदेश देता हो। २. शिक्षक। ३. आजकल वह व्यक्ति जो किसी विशिष्ट धर्म या मत का प्रचार करने के लिए जगह-जगह घूमकर व्याख्यान आदि देता हो। जैसे—आर्य समाज या सनातन धर्म का उपदेशक। | 
			
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				| उपदेशन					 : | पुं० [सं० उप√दिश्+ल्युट-अन] उपदेश देने की क्रिया या भाव। | 
			
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				| उपदेशना					 : | स्त्री० [सं० उप√दिश्+णिच्+युच्-अन-टाप्] उपदेश के रूप में कही जानेवाली बात। उपदेश। | 
			
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				| उपदेश्य					 : | वि० [सं० उप√दिश्+ण्यत्] १. (व्यक्ति) जो उपदेश पाने का अधिकारी या पात्र हो। २. (विषय) जो उपदेश के योग्य हो। | 
			
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				| उपदेष्टा (ष्ट्र)					 : | पुं० [सं० उप√दिश्+तृच्] वह जो उपदेश देता हो। उपदेशक। | 
			
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				| उपदेस					 : | पुं०=उपदेश।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उपदेसना					 : | स० [सं० उपदेश+(प्रत्यय)] उपदेश करना या देना। लोगों को अच्छी-अच्छी बातें बतलाना। | 
			
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				| उपदोह					 : | पुं० [सं० उप√दुह्(पूर्ण करना)+घञ्] १. गाय की छीमी या स्तन। २. वह पात्र जिसमें दूध दुहा जाए। | 
			
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				| उपद्रव					 : | पुं० [सं० उप√द्रु(गति)+अप्] १. कोई कष्टप्रद या दुःखद घटना। दुर्घटना। २. उत्पात, ऊधम या हलचल मचाना। जैसे—बन्दरों या बच्चों का उपद्रव। ३. दंगा। फसाद। ४. किसी मुख्य रोग के बीच में होनेवाला दूसरा विकार। | 
			
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				| उपद्रवी (विन्)					 : | वि० [सं० उपद्रव+इनि] १. उपद्रव या उत्पात करने या मचानेवाला। २. नटखट। ३. फसादी। शरारती। | 
			
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				| उपद्रुष्टा (ष्ट्र)					 : | पुं० [सं० उप√दृश्+तृच्] १. वह जो दृश्य आदि देख रहा हो। २. निरीक्षण करनेवाला। ३. गवाह। साक्षी। | 
			
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				| उपद्रुत					 : | भू० कृ० [सं० उप√द्रु+क्त] जो किसी प्रकार के उपद्रव से पीड़ित हो। सताया हुआ। | 
			
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				| उप-द्वार					 : | पुं० [सं० अत्या० स०] द्वार या दरवाजे के पास कोई छोटा द्वार। | 
			
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				| उप-द्वीप					 : | पुं० [सं० अत्या० स०] छोटा द्वीप या टापू। | 
			
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				| उपधरना					 : | अ० [सं० उपधारण=अपनी ओर खींचना] १. ग्रहण या स्वीकार करना। २. शरण में लेना। | 
			
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				| उप-धर्म					 : | पुं० [सं० अत्या० स०] किसी धर्म के अंतर्गत या उसके साथ लगा हुआ कोई दूसरा गौण या छोटा धर्म। | 
			
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				| उपधा					 : | स्त्री० [सं० उप√धा (धारण करना)+अङ्-टाप्] [वि० औपधिक] १. किसी की निष्ठा, सत्यता आदि की परीक्षा लेना, विशेषतः राजा का अपने पुरोहित, मंत्री आदि की परीक्षा लेना। २. व्याकरण में किसी शब्द के अन्मित अक्षर के पहले का अक्षर। ३. कपट। छल। ४. आज-कल, आपराधिक रूप से वास्तविकता या सत्य को छिपाते हुए दूसरों की धन-संपत्ति, विधिक अधिकार आदि प्राप्त करने के लिए झूठीं बातें बनाना, बतलाना या प्रचारित करना। जालसाजी। (फॉड)। विशेष—यह कपट और छल का एक उत्कट और विशिष्ट प्रकार तथा विधिक दृष्टि से दण्डनीय अपराध है। | 
			
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				| उप-धातु					 : | स्त्री० [सं० अत्या० स०] १. ऐसी धातु जो मुख्य धातुओं से बढ़कर या निम्नकोटि की मानी गई हो। ये संख्या में सात कही गई हैं। यथा-स्वर्णमाक्षिक, तारमाक्षिक, तूतिया, काँसा, पित्तल, सिंदूर और शिलाजंतु। २. शरीर में रक्त आदि धातुओं से बने हुए दूध, चरबी, पसीना आदि छः पदार्थ। | 
			
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				| उपधान					 : | पुं० [सं० उप√धा+ल्युट-अन] १. ऊपर रखना या ठहराना। २. वह वस्तु जिसपर कोई चीज रखी जाय। ३. तकिया, विशेषतः पक्षियों के परों से भरा हुआ तकिया। ४. यज्ञ की वेदी की ईंटें रखते समय पढ़ा जानेवाला मन्त्र। ५. प्रेम। प्रणय। ६. विशेषता। | 
			
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				| उपधानी					 : | स्त्री० [सं० उपधान+ङीष्] १. पैर रखने की छोटी चौकी। २. तकिया। ३. गद्दा। | 
			
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				| उपधायी (यिन्)					 : | वि० [सं० उप√धा+णिनि] १. आश्रय या सहारा लेनेवाला। २. तकिया लगानेवाला। | 
			
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				| उपधारण					 : | पुं० [सं० उप√धृ (धारण करना)+णिच्+ल्युट-अन] १. नीचे रखना या उतारना। २. ऊपर रखी हुई वस्तु को लग्गी आदि से खींचना। | 
			
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				| उप-धारा					 : | स्त्री० [सं० अत्या० स०] नियम, विधान आदि में किसी धारा का कोई छोटा अंग या विभाग। (सब सेक्शन)। | 
			
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				| उपधावन					 : | वि० [सं० उप√धाव् (गति)+ल्यु-अन] १. पीछे-पीछे चलनेवाला। २. अनुगामी। अनुयायी। पुं० [उप√धाव्+ल्युट-अन] १. तेजी से किसी का पीछा करना। २. चिन्तन या विचार करना। | 
			
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				| उपधि					 : | पुं० [सं० उप√धा+कि] १. छल-कपट। जालसाजी। २. (मुकदमे में) सच्ची बात छिपाकर इधर-उधर की बातें कहना। ३. धमकी। ४. गाड़ी का पहिया। ५. आधार। नींव। (बौद्ध)। | 
			
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				| उपधिक					 : | वि० [सं० उपधा+ठन्-इक] छलकपट या जालसाजी करनेवाला। धोखेबाज। | 
			
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				| उपधूपित					 : | वि० [सं० उप√धूप् (दीप्ति, ताप)+क्त] १. धूप आदि से सुगंधित किया हुआ। २. मरणा-सन्न। ३. दुःखी। पीड़ित। | 
			
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				| उपधूमित					 : | वि० [सं० उपधूम, प्रा० स०+इतच्] जिस पर धूँआ लगाया गया हो। पुं० फलित ज्योतिष में, एक अशुभ योग जिसमें यात्रा आदि वर्जित है। | 
			
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				| उपधृति					 : | स्त्री० [सं० उप√धृ(धारण करना)+क्तिन्] प्रकाश की किरणें। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उपध्मान					 : | पुं० [सं० उप√ध्मा (शब्द)+ल्यु-अन] १. फूँकने की क्रिया या भाव। २. होंठ। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उपध्मानीय					 : | वि० [सं० उप√ध्या+अनीयर] उपध्मान-संबंधी। पुं० व्याकरण में, वह विसर्ग जिसका उच्चारण ‘प’ और ‘फ’ वर्णों से पहले होता है। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उपध्वस्त					 : | भू० कृ० [सं० उप√ध्वंस् (नाश)+क्त] १. ध्वस्त। २. पतति। | 
			
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				| उप-नंद					 : | पुं० [सं० अत्या० स०] १. नंद के छोटे भाई का नाम। २. मदिरा के गर्भ से उत्पन्न वसुदेव का एक पुत्र। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उप-नक्षत्र					 : | पुं० [सं० अताय० स०] छोटा या गौण नक्षत्र। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उप-नख					 : | पुं० [सं० अत्या० स०] नख या नाखून में होनेवाला गलका नामक रोग। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उप-नगर					 : | पुं० [सं० अत्या० स०] नगर के आस-पास बसा हुआ बाहरी भाग। (सबर्ब) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपनत					 : | भू० कृ० [सं० उप√नम् (झकुना)+क्त] १. झुकने हुआ। २. शरण में आया हुआ। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उपनति					 : | स्त्री० [सं० उप√नम्+क्तिन्] १. झुकने की क्रिया या भाव। २. नमस्कार। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उप-नदी					 : | स्त्री० [सं० अत्या० स०] किसी बड़ी नदी में मिलनेवाली कोई छोटी या सहायक नदी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उपनद्ध					 : | वि० [सं० उप√नह् (बन्धन)+क्त] १. कसकर बँधा हुआ। २. नाथा या नधा हुआ। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उपनना					 : | अ० [सं० उत्पन्न] उत्पन्न या पैदा होना। उपजना। स० [सं० उपनयन] १. उदाहरण देना। २. उपमा देना या तुलना करना।उदाहरण—कुटिल-भुकुटि, सुख की निधि आनन कलकपोल छबिन उपनियाँ। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उपनय					 : | पुं० [सं० उप√नी (ले जाना)+अच्] १. किसी की ओर या किसी के पास ले जाना। २. अपनी ओर लाना या अपने पास बुलाना। ३. बालक को गुरू के पास ले जाना। ४. उपनयन संस्कार। जनेऊ। यज्ञोपवीत। ५. न्याय में, वाक्य के चौथे अवयव का नाम। इसमें उदाहरण देकर उस उदाहरण के धर्म को फिर उपसंहार रूप से साध्य में घटाया जाता है। ६. अपने पक्ष का समर्थन करने या इसी प्रकार और किसी काम के लिए किसी उक्ति, सिद्धांत, विधि आदि का उल्लेख या कथन करना। उद्वरण। (साइटेशन) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उपनयन					 : | पुं० [सं० उप√नी+ल्यु-अन] [वि० उपनीत] वह संस्कार जिसमें बच्चों को यज्ञोपवीत पहनाकर ब्रह्मचर्य आश्रम में प्रविष्ट कराया जाता है। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उपना					 : | अ० [सं० उत्पन्न] १. उत्पन्न होना। पैदा होना। २. जन्म धारण करना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उपनागरिका					 : | स्त्री० [सं० अत्या० स०] साहित्य में, गद्य या पद्य लिखने की एक शैली जिसमें ट ठ ड ढ वर्णों को छोड़कर केवल मधुर वर्ण आते हैं। इसमें छोटे-छोटे और बहुत थोड़े समास होते हैं। काव्य में यह वृत्यनुप्रास का एक भेद माना गया है। यथा-रघुनंद आनँद कंद कौशलचन्द्र दशरथ नन्दनम्।—तुलसी। | 
			
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				| उपनाना					 : | स० [हिं० उपनना] उपजाना। पैदा करना। उदाहरण—अल्ला एक नूर उपनाया, ताकी कैसी निन्दा।—कबीर। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उप-नाम (न्)					 : | पुं० [सं० अत्या० स०] १. किसी व्यक्ति का उसके वास्तविक नाम से भिन्न कोई दूसरा ऐसा प्रसिद्ध नाम जो उसके माता-पिता आदि ने लाड़-प्यार से रखा होता है। जैसे—शीतलाप्रसाद उपनाम राजा भइया। २. किवियों, लेखकों आदि का स्वयं रखा हुआ दूसरा नाम जिससे वे साहित्यिक जगत् में प्रसिद्ध होते हैं। छाप० जैसे—पं० अयोध्यासिंह उपाध्याय का उपनाम हरिऔध तथा श्री जगन्नाथ का उपनाम ‘रत्नाकर’ था। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उप-नायक					 : | पुं० [सं० अत्या० स०] [स्त्री० उपनायिका] नाटकों या कथा-कहानियों में नायक का साथी जो उसके उद्देश्य की सिद्धि में सहायक होता है। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उपनायन					 : | पुं०=उपनयन। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उपनाह					 : | पुं० [सं० उप√नह्+घञ्] १. वीणा या सितार की वह खूँटी जिससे तार बाँधे जाते है। २. फोडे़ या घाव पर लगने वाला लेप। मलहम। ३. प्रलेप। ४. आँख का बिलनी नामक रोग। ५. गाँठ। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपनिक्षेप					 : | पुं० [सं० उप-नि√क्षिप् (प्रेरणा)+घञ्] किसी के पास बाँधकर तथा मुहरबन्द करके रखी जानेवाली धरोहर। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उपनिधाता (तृ)					 : | पुं० [सं० उप-नि√धा (धारण, रखना)+तृच्] किसी के पास अपनी चीज धरोहर रखनेवाला। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपनिधान					 : | पुं० [सं० उप-नि√धा+ल्युट-अन] किसी के पास अपनी चीज धरोहर रखना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपनिधायक					 : | वि० [सं० उप-नि√धा+ण्वुल्-अक] =उपनिधाता। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपनिधि					 : | स्त्री० [सं० उप-नि√धा+कि] १. अमानत। धरोहर। २. मुहरबंद जमानत। किसी के पास रखी जानेवाली विशेषतः मुहरबंद धरोहर। | 
			
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				| उपनिपात					 : | पुं० [सं० उप-नि√पत्(गिरना)+घञ्] १. अचानक पास आना। एकाएक आ पहुँचना। २. अचानक होनेवाला आक्रमण। ३. अग्नि,वर्षा,चोर आदि के कारण होनेवाली धन-हानि। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उप-निबंधक					 : | पुं० [सं० अत्या० स०] वह अधिकारी जो निबंधक के सहायक रूप में उसके अधीन रहकर काम करता है। (सब-रजिस्ट्रार) | 
			
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				| उप-नियम					 : | पुं० [सं० अत्या० स०] वह छोटा नियम जो किसी बड़े नियम के अंतर्गत होता है। (सब-रूल) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उप-निर्वाचन					 : | पुं० [सं० अत्या० स०] लोकतंत्री संस्थाओं में किसी निर्वाचित सदस्य का स्थान अवधि से पहले रिक्त होने पर उस स्थान की पूर्ति के लिए फिर से होनेवाला चुनाव। (बाइ-इलेक्शन) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उपनिविष्ट					 : | भू० कृ० [सं० उप-नि√विश् (घुसना, बैठना)+क्त] १. दूसरे स्थान से आकर बसा हुआ। २. खाते आदि में लिखा या दर्ज किया हुआ। पुं० अनुभवी और शिक्षित सेना। (कौटिल्य) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उपनिवेश					 : | पुं० [सं० उप-नि√विश्+घञ्] १. जीविका के लिए एक स्थान से हटकर दूसरे स्थान में जा बसना। २. कुछ व्यक्तियों का एक समुदाय जो दूसरे देश में जाकर स्थायी रूप से बस गया हो। ३. वह देश जहाँ दूसरे राष्ट्र के लोग जाकर बस गये हों और इसलिए उस राष्ट्र ने जिस पर अपना राजनीतिक अधिकार जमा लिया हो। ४. कीटाणुओं आदि का किसी अंग, शरीर या स्थान पर होनेवाला जमाव। (कालोनी उक्त सभी अर्थों में)। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपनिवेशन					 : | पुं० [सं० उप-नि√विश्+ल्युट-अन] उपनिवेश के रूप में कोई स्थान बसाना। उपनिवेश स्थापित करना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपनिवेशित					 : | भू० कृ० [सं० उप-नि√विश्+णिच्+क्त] १. उपनिवेश के रूप में बसा या बसाया हुआ। २. दूसरे स्थान से लाकर कहीं रखा या स्थापित किया हुआ। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उपनिवेशी (शिन्)					 : | वि० [सं० उपनिवेश+इनि] १. उपनिवेश संबंधी। औपनिवेशक। २. उपनिवेश में जाकर बसनेवाला। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उपनिषद्					 : | स्त्री० [सं० उप-नि√सद् (गति आदि)+क्विप् अथवा√सद्+णिच्+क्विप्] १. किसी के पास बैठना। २. ब्रह्म विद्या की प्राप्ति के लिए गुरु के पास जाकर बैठना। ३. वेदों के उपरांत लिखे गये वे ग्रंथ जिनमें भारतीय आर्यों के गूढ़ आध्यात्मिक तथा दार्शनिक विचार भरे हैं। ४. वेदव्रत ब्रह्मचारी के 40 संस्कारों में से एक जो केशान्त संस्कार के पूर्व होता था। ५. धर्म। ६. निर्जन स्थान। | 
			
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				| उपनिष्क्रमण					 : | पुं० [सं० उप-निस√क्रम् (गति)+ल्युट-अन] १. नवजात शिशु को पहली बार बाहर निकालना। निष्क्रमण संस्कार। २. राजमार्ग। ३. बाहर जाना। | 
			
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				| उपनिहित					 : | भू० कृ० [सं० उप-नि√धा+क्त] जो किसी के पास अमानत के रूप में रखा हुआ हो। | 
			
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				| उपनीत					 : | भू० कृ० [सं० उप√नी+क्त] १. जो किसी के पास आया, पहुँचा या लाया गया हो। २. उपार्जित या प्राप्त किया हुआ। उदाहरण—यह धरा तेरी न थी उपनीत।—दिनकर। ३. दान या भेंट रूप में दिया हुआ। ४. जिसका उपनयन संस्कार हो चुका हो। ५. (उल्लेख या चर्चा) जो अपने पक्ष के समर्थन अथवा इसी प्रकार के और किसी कार्य के लिए की गई हो। (साइटेड) | 
			
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				| उपनेत					 : | वि०=उत्पन्न।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उपनेता (तृ)					 : | पुं० [सं० उप√नी+तृच्] १. दूसरों को कहीं ले जाने या पहुँचानेवाला। २. उपनयन करानेवाला आचार्य। | 
			
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				| उपन्ना					 : | पुं०=उपरना। | 
			
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				| उपन्यस्त					 : | भू० कृ० [सं० उप-नि√अस् (क्षेपण)+क्त] १. पास रखा या लाया हुआ। २. अमानत या धरोहर के रूप में किसी के पास रखा हुआ। ३. उल्लिखित या कथित। ४. उपन्यास के रूप में लाया या लिखा हुआ। | 
			
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				| उपन्यास					 : | पुं० [सं० उप-नि√अस्+घञ्] १. वाक्य का उपक्रम। बंधान। २. अमानत। धरोहर। ३. प्रमाण। ४. वह बड़ी और लम्बी आख्यायिका जिसमें किसी व्यक्ति के काल्पनिक या वास्तविक जीवन-चरित्र का चित्र अंकित या उपस्थित किया जाता हैं। (नॉवेल)। | 
			
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				| उपन्यासकार					 : | पुं० [सं० उपन्यास√कृ (करना)+अण्] वह साहित्यकार जो उपन्यास लिखता हो। (नावेलिस्ट) | 
			
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				| उपन्यास-संधि					 : | स्त्री० [मध्य० स०] मंगलकारी उद्देश्यों की सिद्धि के लिए की जानेवाली संधि। (राजनीति) | 
			
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				| उप-पति					 : | पुं० [सं० अत्या० स०] १. साहित्य में, श्रृंगार रस का आलबन वह नायक जो आचारहीन होता और अनेक स्त्रियों से प्रेम करता है। २. अवैध पति। | 
			
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				| उपपत्ति					 : | स्त्री० [सं० उप√पद् (गति)+क्तिन्] १. घटित या प्रत्यक्ष होनेवाला। सामने आना। २. कारण। हेतु। ३. किसी को विश्वस्त करने के लिए उपस्थित किये हुए तथ्य, तर्क, प्रमाण अथवा किसी गवाह या विशेषज्ञ का साक्ष्य। (प्रूफ) ४. तर्क। युक्ति। ५. मेल बैठना या मिलना। संगति। | 
			
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				| उपपत्ति-सम					 : | पुं० [तृ० त०] न्याय में, वह स्थिति जब वादी किसी आधार पर कोई बात सिद्ध करता है, तब वह प्रतिवादी उसी प्रकार के दूसरे आधार पर उसी बात का खण्डन करता है। एक कारण से सिद्ध की हुई बात वैसे ही दूसरे कारण से असिद्द ठहराना। जैसे—यदि वादी उत्पत्ति-धर्म से युक्त होने के आधार पर शब्द को अनित्य बतलावे, तब प्रतिवादी का स्पर्श-धर्म से युक्त होने के आधार पर शब्द को नित्य ठहराना। | 
			
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				| उप-पत्नी					 : | स्त्री० [सं० अत्या० स०] वह स्त्री जिसे प्रायः पत्नी के समान (बिना उससे विवाह किये) बनाकर रखा गया हो। रखेली। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उपपद					 : | पुं० [सं० मध्य० स०] १. किसी स्थिति में लाना या पहुँचाना। २. पहले आया या कहा हुआ शब्द। ३. समास का आरम्भिक पद। ४. उपाधि। खिताब। | 
			
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				| उपपद-समास					 : | पुं० [ष० त०] कृदंत के साथ नाम। (संज्ञा) का होने वाला समास। जैसे—कुम्भकार, घर फूँक। | 
			
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				| उपपन्न					 : | वि० [सं० उप√पद्+क्त] १. पास आया हुआ। २. हाथ में आया या मिला हुआ। प्राप्त। ३. शरण में आया हुआ। शरणागत। ४. किसी के साथ लगा हुआ। युक्त। ५. उपयुक्त। ६. आवश्यक और उचित। ७. जिसे संपन्न करना अनिवार्य हो। (एक्सपीडिएण्ड) | 
			
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				| उपपात					 : | पुं० [सं० उप√पत्(गिरना)+घञ्] १. अप्रत्यशित घटना। २. दुर्घटना। ३. विपत्ति। ४. क्षय। नाश। | 
			
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				| उप-पातक					 : | पुं० [सं० अत्या० स०] गौण या छोटा पाप। जैसे—स्मृतियों में मारण, मोहन आदि अभिचारों की गणना उपपातकों में की गई है। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उपपादक					 : | वि० [सं० उप√पद्( गति)+णिच्+ण्वुल्-अक] उपपादन करनेवाला। (डिमान्स्ट्रेटर) | 
			
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				| उपपादन					 : | पुं० [सं० उप√पद्+णिच्+ल्युट्-अन] १. कार्य पूरा या संपन्न करना। २. युक्ति या प्रमाण द्वारा समझाते हुए कोई बात ठीक सिद्ध करना। (डिमान्स्ट्रेशन) | 
			
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				| उपपादनीय					 : | वि० [सं० उप√पद्+णिच्+अनीयर] जो सिद्ध किये जाने को हो अथवा सिद्ध किये जाने के योग्य हो। | 
			
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				| उपपादित					 : | भू०कृ० [सं० उप√पद्+णिच्+क्त] जिसका उपपादन हुआ हो। सिद्ध किया हुआ। | 
			
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				| उपपाद्य					 : | वि० [सं० उप√पद्+णिच्+यत्] जिसका उपपादन किया जाने को या किया जा सकता हो। | 
			
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				| उप-पाप					 : | पुं० [सं० अत्या०स०] गौण या छोटा पाप। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उप-पार्श्व					 : | पुं० [सं० अत्या० स०] १. स्कंध। कंधा। २. कोख। बगल। ३. छोटी पसलियाँ। ४. सामनेवाला पक्ष या पार्श्व। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उपपीड़न					 : | पुं० [सं० उप√पीड़ (दबाना)+ल्युट्-अन] १. दबाना। २. दबाव। ३. क्षति या चोट पहुँचाना। ४. विध्वंस-कार्य। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उप-पुर					 : | पुं० [सं० अत्या० स०] [वि० उपपौरिक] =उपनगर। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उप-पुराण					 : | पुं० [सं० अत्या० स०] अठारह मुख्य पुराणों के अतिरिक्त अन्य छोटे पुराण जो अठारह हैं। यथा-आदित्य, पुराण, नरसिंह पुराण, माहेश्वर पुराण, वरुण पुराण, वशिष्ठ पुराण, शिव पुराण आदि। | 
			
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				| उपप्रदान					 : | पुं० [सं० उप-प्र√दा (देना)+ल्युट्-अन] १. देना या हस्तान्तरित करना। २. घूस। रिश्वत। ३. उपहार। भेंट। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उप-प्रमेय					 : | पुं० [सं० अत्या० स०] प्रमेय या साध्य के साथ लगी हुई कोई ऐसी बात जो प्रमेय की सिद्ध के साथ-साथ आप ही सिद्ध हो जाती हो। (कॉरोलरी)। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उप-प्रश्न					 : | पुं० [सं० अत्या० स०] वह गौण प्रश्न जो किसी बड़े प्रश्न के साथ लगा हो या उसके बाद हो। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उपप्रेक्षण					 : | पुं० [सं० उप-प्र√ईक्ष् (देखना)+ल्युट्-अन] उपेक्षा करना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उपप्लव					 : | पुं० [सं० उप√प्लु (गति)+अप्] १. नदी आदि की बाढ़। २. प्राकृतिक उत्पात या उपद्रव। जैसे—आँधी, भूकम्प आदि। ३. विद्रोह। विप्लव। ४. लड़ाई-झगड़ा। ५. बाधा। विघ्न। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपप्लवी (विन्)					 : | वि० [सं० उप√प्लु+णिनि] १. बाढ़ आदि में डुबाने या बाढ़ लानेवाला। २. उत्पात, उपद्रव या हलचल मचानेवाला। ३. विद्रोही। विप्लवी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उपप्लुत					 : | भू० कृ० [सं० उप√प्लु+क्त] १. कष्ट या संकट में पड़ा हुआ। २. सताया हुआ। पीड़ित। ३. जिस पर आक्रमण हुआ हो। आक्रान्त। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उपबंध					 : | पुं० [सं० उप√बन्ध् (बाँधना)+घञ्] किसी प्रलेख या विधि का कोई ऐसा उपांग या धारा जिसमें किसी बात की सम्भावना को ध्यान में रखकर कोई अवकाश निकाला या प्रबन्ध किया गया हो। (प्राविजन) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपबंधित					 : | भू० कृ० [सं० उपबंध+इतच्] जो किसी प्रकार के उपबंधन से युक्त किया गया हो। (प्रोवाइडेड)(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उपबरहन					 : | पुं० [सं० उपबर्हण] तकिया।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उपबर्ह					 : | पुं० [सं० उप√बर्ह(फैलना)+घञ्] तकिया। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपबर्हण					 : | पुं० [सं० उप√बर्ह+ल्युट-अन] उपबर्ह। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उप-बाहु					 : | पुं० [सं० अत्या० स०] कलाई से कुहनी तक का भाग। पहुँचा। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपबृ-हण					 : | पुं० [सं० उप√बृह् (वृद्धि)+ल्युट-अन] [भू० कृ० उपबृहित] वृद्धि करना। बढ़ाना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपभंग					 : | पुं० [उप√भञ्ज् (तोड़ना)+घञ्, कुत्व] १. भाग जाना। पलायन। २. छन्द का एक भाग। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उप-भाषा					 : | स्त्री० [सं० अत्या० स०] किसी भाषा का वह अंग या विभाग जो किसी छोटे क्षेत्र या जनपद में रहनेवाले लोग बोलते हों। देशभाषा। बोली। (डायलेक्ट) जैसे—अवधी, भोजपुरी आदि हिंदी की उपभाषाएँ हैं। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपभुक्त					 : | वि० [सं० उप√भुज् (व्यवहार, खाना)+क्त] १. जिसका उपभोग हुआ हो। काम में लाया हुआ। २. उच्छिष्ट। जूठा। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपभुक्ति					 : | स्त्री० [सं० उप√भुज्+क्तिन्] =उपभोग। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपभृत					 : | स्त्री० [सं० उप√भृ (धारण, पोषण)+क्त] पास आया या लाया हुआ। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उप-भेद					 : | पुं० [सं० अत्या० स०] किसी भेद (प्रकार या वर्ग) के अन्तर्गत कोई गौण या छोटा भेद। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपभोक्तव्य					 : | वि० [सं० उप√भुज्+तव्यम्] उपभोग्य। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपभोक्ता (क्तृ)					 : | वि० [सं० उप√भुज्+तृच्] काम में लाने या व्यवहार करनेवाला। पुं० वह जो किसी विशिष्ट वस्तु या वस्तुओं का उपभोग करता या उन्हें काम में लाता हो। (कन्ज्यूमर) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपभोग					 : | पुं० [सं० उप√भुज्+घञ्] १. आनन्द या सुख प्राप्त करने के लिए किसी वस्तु का भोग करना या उसे व्यवहार में लाना। जैसे—धन या संपत्ति का उपभोग। २. अर्थशास्त्र में, किसी वस्तु को इस प्रकार व्यवहार में लाना कि उसकी उपयोगिता नष्ट या समाप्त हो जाए अथवा वह धीरे-धीरे क्षीण होती चले। (कंजम्पशन) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपभोगी (गिन्)					 : | वि० [सं० उप√भुज्+णिनि] उपभोग करनेवाला। उपभोक्ता। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपभोग्य					 : | वि० [सं० उप√भुज्+ण्यत्] जिसका उपभोग होने को हो या हो सकता हो। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपभोज्य					 : | वि० [सं० प्रा० स०] (पदार्थ) जिसका उपभोग किया जा सके या हो सके। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उप-मंडल					 : | पुं० [सं० अत्या० स०] १. किसी मंडल का कोई उपविभाग या खंड। २. जिले का कोई उप विभाग। तहसील। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपमंत्रण					 : | पुं० [सं० उप√मंत्र् (बुलाना)+ल्युट्-अन] १. आमंत्रण। न्योता। २. अनुरोध या आग्रह करना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उप-मंत्री (त्रिन्)					 : | पुं० [सं० अत्या० स०] वह छोटा मन्त्री जो किसी प्रधान या बड़े मंत्री (या कार्याधिकारी) के अधीन रहकर उसकी सहायता करता हो। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उप-मन्यु					 : | वि० [सं० अत्या० स०] १. बुद्धिमान। मेधावी। २. उत्साही। उद्यमी। पुं० एक गोत्र-प्रवर्तक ऋषि जो आयोदधौम्य के शिष्य थे। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपमर्दन					 : | पुं० [उप√मृद् (मलना)+ल्युट-अन] १. बुरी तरह से कुचलना, मसलना या रगड़ना। २. उपेक्षा या तिरस्कार करना। ३. नष्ट करना। ४. जोर से हिलाना। झकझोरना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपमा					 : | स्त्री० [सं० उप√मा (मापना)+अङ्+टाप्] १. समान गुणों के आधार पर एक वस्तु को दूसरी वस्तु के तुल्य या समान ठहराना या बतलाना। २. एक अर्थालंकार जिसमें उपमेय और उपमान दोनों भिन्न होते हुए भी उनमें किसी प्रकार की एकता या समानता दिखाई जाती है। जैसे—‘उसका मुख कमल के समान है’, में मुख और कमल दो भिन्न वस्तुएँ होने पर भी मुख की कमल से समानता बतलाई गई है। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपमाता (तृ)					 : | पुं० [सं० उप√मा+तृच्] वह जो किसी वस्तु को किसी दूसरी वस्तु के तुल्य या समान बतलावे। उपमा देनेवाला। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उप-माता					 : | स्त्री० [सं० अत्या० स०] १. सौतेली माँ। २. दाई। धाय। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपमान					 : | पुं० [सं० उप√मा+ल्युट्-अन] १. वह वस्तु या व्यक्ति जिसके साथ किसी की बराबरी की जाय या समानता बतलाई जाए। जैसे—‘मुख कमल के समान है’ में कमल उपमान है। २. उक्त प्रकार के सदृश्य के आधार पर माना जानेवाला प्रमाण जो न्याय में चार प्रकार के प्रमाणों में से एक है। ३. तेईस मात्राओं का एक छन्द जिसमें तेरहवीं मात्रा पर विराम होता है। उपमाना स० [?] एक वस्तु की दूसरी वस्तु से उपमा देना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उप-मालिनी					 : | स्त्री० [सं० अत्या० स०] एक प्रकार का छन्द या वृत्त। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपमित					 : | भू० कृ० [सं० उप√मा+क्त] [स्त्री० उपमिता] जिसकी किसी दूसरी वस्तु से उपमा दी गई हो। पुं० उपमावाचक कर्मधारय समान का एक भेद जिसमें उपमावाचक शब्द लुप्त रहता है। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपमेय					 : | वि० [सं० उप√मा+यत्] १. जिसकी किसी से उपमा दी जाए। २. उपमा दिये जाने के योग्य। पुं० साहित्य में वह वस्तु या व्यक्ति जिसकी उपमा उपमान से दी जाय। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपमेयोपमा					 : | स्त्री० [उपमेय-उपमा, कर्म० स०] उपमा अलंकार का एक भेद जिसमें उपमेय और उपमान आपस में एक दूसरे के उपमान और उपमेय कहे जाते हैं। उदाहरण—औधपुरी अमरावति सी अमरावती औधपुरी सी बिराजै। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपयंता (तृ)					 : | वि० [सं० उप√यम्(उपरम)+तृच्] उपयम (विवाह) करनेवाला। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उप-यंत्र					 : | पुं० [सं० अत्या० स०] शरीर में चुभा हुआ काँटा आदि निकालने की चिमटी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपयना					 : | अ० [हिं० उपजना का अ० रूप] उत्पन्न या पैदा होना। उदाहरण—सुनि हरि हिय गरब गूढ़ उपयो है।—तुलसी। स० उत्पन्न करना। उपजाना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपयम					 : | पुं० [सं० उप√यम्+अप्] १. विवाह। २. संयम। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपयमन					 : | पुं० [सं० उप√यम्+ल्युट्-अन] =उपयम। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपयाचना					 : | स्त्री० [उप√याच्(माँगना)+णिच्+युच्-अन,टाप्] मनौती। मन्नत। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपयान					 : | पुं० [सं० उप√या(जाना)+ल्युट्-अन] किसी के पास जाना या पहुँचना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपयाम					 : | पुं० [सं० उप√यम्+घञ्] विवाह। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपयायी (यिन्)					 : | वि० [सं० उप√या+णिनि] पास जानेवाला। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपयुक्त					 : | वि० [सं० उप√युज्(योग)+क्त] १. जो उपयोग या काम में लाया गया हो या लाया जा चुका हो। २. जो किसी विशिष्ट स्थिति में किसी के साथ पूरी तरह से ठीक बैठता या मेल खाता हो। जैसे—होना चाहिए वैसा। (फिट) जैसे—उपयुक्त आहार-विहार, उपयुक्त पद या स्थान। ३. जो किसी विशिष्ट अपेक्षा या आवश्यकता की पूर्ति के लिए हर तरह के योग्य या समर्थ हो। विधिक, सामाजिक आदि दृष्टियों से उचित और तर्क संगत। (प्रापर) जैसे—यह विषय उपयुक्त अधिकारी (या उपयुक्त न्यायालय) के सामने जाना चाहिए। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपयुक्तता					 : | स्त्री० [सं० उपयुक्त+तल्-टाप्] उपयुक्त होने की अवस्था या भाव। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपयोग					 : | पुं० [सं० उप√युज्+घञ्] १. किसी वस्तु का होनेवाला प्रयोग या व्यवहार। किसी चीज का काम में लाया जाना। जैसे—खाने-पीने की चीजों का उपयोग, अधिकार या शक्ति का उपयोग। २. आवश्यकता की पूर्ति या प्रयोजन की सिद्धि। (यूज, उक्त दोनों अर्थों में) जैसे—हमारे लिए आपकी इन बातों का कुछ भी उपयोग नहीं है। ३. साहित्य में, मानमोचन के दो उपचारों में से एक (विधेय से भिन्न) जिसमें मीठी बातें कहकर हाथ-पैर जोड़कर, प्रिय वस्तु भेंट करके या ऐसे ही दूसरे सौम्य उपचारों से रूठे हुए को मनाते हैं। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपयोग-वाद					 : | पुं० [ष० त०]=उपयोगितावाद। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपयोगिता					 : | स्त्री० [सं० उपयोगिन्+तल्-टाप्] १. उपयोगी या लाभकारी होने की अवस्था या भाव। २. किसी वस्तु का वह गुण या तत्त्व जिसमें उस वस्तु के उपभोक्ता का कोई प्रयोजन सिद्ध होता हो या उसे किसी प्रकार की तृप्ति होती हो। (यूटिलिटी उक्त दोनों अर्थो में) जैसे—(क) बालकों को हर चीज की उपयोगिता बतलानी चाहिए। (ख) अब इन नियमों या विधानों की उपयोगिता नष्ट हो चुकी है। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपयोगिता-वाद					 : | पुं० [ष० त०] एक आधुनिक पाश्चातात्य मत या सिद्धान्त, जिसमें नैतिक, सांस्कृतिक आदि गुणों या विशेषताओं का ध्यान छोड़कर प्रत्येक बात या वस्तु का अर्थ, महत्त्व या मान इस दृष्टि से आँका जाता है कि मानव समाज के कल्याण के लिए उसका कितना, कैसा और क्या उपयोग है अथवा हो सकता है। (यूटिलिटेरियनिज्म) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपयोगितावादी (दिन्)					 : | पुं० [सं० उपयोगितावाद+इनि] वह जो उपयोगितावाद के सिद्धांतों का अनुयायी, प्रतिपादक या समर्थक हो। (यूटिलिटेरिअन) | 
			
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				| उपयोगी (गिन्)					 : | वि० [सं० उप√युज्+घिनुण्] १. जो उपयोग में लाये जाने के योग्य हो। २. जिसमें ऐसे गुण या तत्त्व हों जिनसे किसी का प्रयोजन सिद्ध होता हो या लाभ होता हो। | 
			
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				| उपयोजन					 : | पुं० [सं० उप√युज्+ल्युट-अन] १. उपयोग या काम में लाना। २. दूसरे की वस्तु या धन को अनुचित रूप से लेकर अपने प्रयोग में लाना। (ऐप्रोप्रियेशन) | 
			
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				| उपरंजक					 : | वि० [सं० उप√रञज् (राग)+ण्वुल्-अक] १. रँगनेवाला। २. प्रभावित करने वाला। पुं० सांख्य में, वह वस्तु जिसका आभास या छाया पास की वस्तु पर पड़े। उपाधि। जैसे—लाल कपड़े के कारण पास रखे हुए स्फटिक का लाल दिखाई पड़ना। | 
			
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				| उपरंजन					 : | पुं० [सं० उप√रञ्ज्+ल्युट्-अन] [वि० उपरंजनीय, उपरंज्य, भू० कृ० उपरंजित] १. रंग से युक्त करना। रँगना। २. प्रभाव डालना। प्रभावित करना। | 
			
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				| उपर					 : | अव्य-ऊपर। उदाहरण—लंका सिखर उपर आगारा।—तुलसी। | 
			
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				| उपरक्त					 : | वि० [सं० उप√रञ्ज्+क्त] १. (ग्रह) जो उपराग से ग्रस्त हो। जिसे ग्रहण लगा हो। २. जिस पर आभास या छाया पड़ी हो। ३. जिस पर किसी प्रकार का प्रभाव पड़ा हो या रंगत चढ़ी हो। | 
			
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				| उपरक्षण					 : | पुं० [सं० उप√रक्ष् (रक्षा करना)+ल्युट-अन] १. रक्षा करने का कार्य। २. चौकी। पहरा। | 
			
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				| उपरत					 : | वि० [सं० उप√रम् (रमण करना)+क्त] १. जो रत न हो। २. जो किसी काम में लगा न हो। ३. विरक्त। उदासीन। ४. मरा हुआ। मृत। | 
			
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				| उपरति					 : | स्त्री० [सं० उप√रम्+क्तिन्] १. उपरत या विरक्त होने की अवस्था या भाव। उदासीनता। २. मृत्यु। मौत। | 
			
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				| उप-रत्न					 : | पुं० [सं० अत्या० स०] कम दाम या मूल्य के घटिया रत्न। ये गिनती में नौ माने गये हैं। यथा-वैक्रान्त मणि, सीप, रक्षस, मरकत मणि, लहसुनिया, लाजा, गारुड़ि मणि, (जहरमोहरा), शंख और स्फटिक मणि। | 
			
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				| उपरना					 : | पुं० [हिं० उपरा+ना (प्रत्यय)] शरीर के ऊपरी भाग में ओढ़ी जानेवाली चादर या दुपट्टा। उदाहरण—पिअर उपरना, काखा सोती।—तुलसी। अ० उखड़ना। | 
			
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				| उपरफट					 : | वि०=उपरफट्टू।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उपरफटू					 : | वि० [सं० उपरि+स्फुट] १. यों ही इधर-उधर या ऊपर से आया हुआ। २. इधर-उधर का और बिलकुल व्यर्थ। फालतू। उदाहरण—मेरी बाँह छाँड़ि दै राधा करत उपर-फट बातें। | 
			
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				| उपरम					 : | पुं० [सं० उप√रम्+घञ्] किसी चीज या बात से चित्त हटना। विरति। वैराग्य। | 
			
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				| उपरमण					 : | पुं० [सं० उप√रम्+ल्युट-अन] =उपराम। | 
			
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				| उपरला					 : | वि० [हि० ऊपर+ला (प्रत्यय)] जो ऊपर की हो। ऊपरवाला। ऊपरी। | 
			
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				| उपरवार					 : | स्त्री० [हिं० ऊपर+वारा (प्रत्यय)] बाँगर। जमीन। वि० ऊपर की ओर पड़नेवाला। उदाहरण—रामजस अपने उपरवार खेत का जौ उखाड़कर होला जला रहा है।—प्रसाद। | 
			
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				| उप-रस					 : | पुं० [सं० अत्या० स०] वैद्यक में गंधक, ईगुर, अभ्रक, तूतिया, चुम्बक पत्थर आदि पदार्थ जो रस अर्थात् पारे के समान गुणकारी माने गये हैं। | 
			
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				| उपरहित					 : | पुं०=पुरोहित। | 
			
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				| उपरहिति					 : | स्त्री०=पुरोहिती। | 
			
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				| उपराँठा-					 : | पुं०=पराँठा। | 
			
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				| उपरांत					 : | अव्य० [सं० ] किसी के अंत में। पीछे या बाद में। | 
			
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				| उपराग					 : | पुं० [सं० उप√रञ्ज्+घञ्] १. रंग। २. भोग-विलास या विषयों में होनेवाला अनुराग। ३. आस-पास की वस्तु पर पड़नेवाला आभास या छाया। ४. चंद्रमा, सूर्य आदि का छायाग्रस्त होना। ग्रहण। ५. व्यसन। ६. निद्रा। उदाहरण—भयउ परब बिनु रबि उपरागा।—तुलसी। | 
			
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				| उपरा-चढ़ी					 : | स्त्री०=चढ़ा-ऊपरी। | 
			
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				| उप-राज					 : | पुं० [सं० अत्या० स०] प्राचीन भारत में, राजा या राज्य की ओर से किसी अधीनस्थ प्रदेश का शासन करने के लिए नियुक्ति प्रतिनिधि। स्त्री०=उपज।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उपराजना					 : | स० [सं० उपार्जन] १. उत्पन्न या पैदा करना। उदाहरण—अग-जग मय जग मम उपराजा।—तुलसी। २. रचना। बनाना। ३. उपार्जन करना। कमाना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उपराना					 : | अ० [सं० उपरि] १. नीचे से ऊपर आना। २. प्रकट या प्रत्यक्ष होना। स०१. ऊपर करना या लाना। २. प्रकट या प्रत्यक्ष करना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उपराम					 : | पुं० [सं० उप√रम्+घञ्] १. विषयों के भोग आदि से होनेवाली विरक्ति। विराग। २. छुटकारा। निवृत्ति। ३. आराम। विश्राम। | 
			
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				| उपराला					 : | पुं० [हिं० ऊपर+ला (प्रत्यय)] पक्षग्रहण। सहायता। वि० १. ऊपर का। ऊपरी। २. ऊँचा। ३. बाहरी। | 
			
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				| उपरावटा					 : | वि० [सं० उपरि+आवर्त्त] १. ऊपर की ओर उठा हुआ। २. अभिमान आदि के कारण अकड़ा या तना हुआ। | 
			
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				| उपराहना					 : | स० [हिं० ऊपर+करना] १. औरों से ऊपर या बढ़कर मानना। २. प्रशंसा करना। सराहना। उदाहरण—आम जो परि कै नवैतराही। फल अमृत भा सब उपराहीं।—जायसी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उपराही					 : | क्रि० वि०=ऊपर। वि० उत्तम। श्रेष्ठ।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उपरि					 : | अव्य० [सं० ऊर्ध्व+रिल्, उपादेश] १. ऊपर। उदाहरण—सैलोपरि सर सुंदर सोहा।—तुलसी। २. उपरांत। बाद। | 
			
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				| उपरिचर					 : | वि० [सं० उपरि√चर्(गति)+ट] ऊपर चलनेवाला। पु० चिड़िया। पक्षी। | 
			
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				| उपरि-चित					 : | वि० [स० त०] १. ऊपर रखा हुआ। २. सजा हुआ। सज्जित। | 
			
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				| उपरिष्ट					 : | पुं० [सं० ] पराँठा नामक पकवान। | 
			
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				| उपरी-उपरा					 : | स्त्री० चढ़ा-ऊपरी। उदाहरण—रन मारि मक उपरी-उपरा भले बीर रघुप्पति रावन के।-तुलसी। | 
			
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				| उपरुद्ध					 : | वि० [सं० उप√रुध्(रोकना)+क्त] १. रोका हुआ। २. घेरा हुआ। ३. बंधन में डाला या पड़ा हुआ। बद्ध। | 
			
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				| उप-रूप					 : | पुं० [सं० अत्या० स०] वैद्यक में रोग का बहुत हल्का या नगण्य लक्षण। | 
			
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				| उप-रूपक					 : | पुं० [सं० अत्या० स०] साहित्य में, एक प्रकार का छोटा रूपक नाटक जिसके १8 भेद या प्रकार कहे गये है। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपरैना					 : | पुं० [स्त्री० उपरैनी] =उपरना (दुपट्टा)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उपरोक्त					 : | वि०=उपर्युक्त। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उपरोध					 : | पुं० [सं० उप√रुध् (रोकना)+घञ्] १. ऐसी बात जिससे होता हुआ कार्य रुक जाय। बाधा। २. आच्छादन। ढकना। | 
			
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				| उपरोधक					 : | वि० [सं० उप√रुध्+ण्वुल्-अक] रोकनेवाला। बाधा डालनेवाला। पुं० कोठरी के अंदर की कोठरी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उपरोधन					 : | पुं० [सं० उप√रुध्+ल्युट-अन] १. रोकना या बाधा डालना। २. रुकावट। बाधा। ३. घेरा। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपरोधी (धिन्)					 : | पुं० [सं० उप√रुध्+णिनि] बाधा डालनेवाला। रोकनेवाला। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उपरोहित					 : | पुं०=पुरोहति।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उपरोहिती					 : | स्त्री०=पुरोहिती। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उपरौछा					 : | क्रि० वि० [हिं० ऊपर+औछा (प्रत्य)] ऊपर की ओर। वि० ऊपर की ओर का। ऊपरी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपरौटा					 : | पुं० दे० ‘उपल्ला’। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपरौठा					 : | वि० -उपरौटा (उपल्ला)। पुं०=पराँवठा।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपरौना					 : | पुं०=उपरना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपर्युक्त					 : | वि० [सं० उपरि-उक्त, स० त०] १. ऊपर या पहले कहा हुआ। २. जिसका उल्लेख या चर्चा पहले या ऊपर हो चुकी हो। (एफोरसेड) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उपलंभक					 : | वि० [सं० उप√लभ् (पाना)+णिच्+ण्वुल्-अक, नुम्] १. ज्ञान या अनुभव करनेवाला। २. प्राप्ति या लाभ करानेवाला। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपलंभन					 : | पुं० [सं० उप√लभ्+ल्युट-अन, नुम्] १. ज्ञान। २. अनुभव। ३. प्राप्ति। लाभ। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपल					 : | पुं० [सं० उप√ला (लेना)+क] १. पत्थर। २. ओला। ३. बादल। मेघ। ४. जवाहर। रत्न। ५. बालू। रेत। ६. चीनी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपलक्ष					 : | पुं० [सं० उप√लक्ष् (देखना)+घञ्] =उपलक्ष्य। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपलक्षक					 : | वि० [सं० उप√लक्ष्+ण्वुल्-अक] १. निरीक्षण करनेवाला। २. अनुमान करनेवाला। पुं० साहित्य में किसी वाक्य के अंतर्गत वह शब्द जो उपादान लक्षणा से अपने वाक्य के सिवा अपने वर्ग की अन्य बातों या वस्तुओं का भी उपलक्ष्य या बोध कराता हो। जैसे—देखो बिल्ली दूध न पी जाए। में बिल्ली शब्द से कुत्ते, नेवले आदि की ओर भी संकेत होता है, अतः ‘बिल्ली’ यहाँ उपलक्षक है। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपलक्षण					 : | पुं० [सं० उप√लक्ष्+ल्युट-अन] १. ध्यान से देखना। २. किसी लक्षण के प्रकार या वर्ग का कोई गौण या छोटा लक्षण। ३. कोई ऐसी गौण बात जो किसी ऐसे तत्त्व की सूचक हो जिसका स्पष्ट उल्लेख या निर्देश हो चुका हो। ४. दे०‘उपलक्षक’। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपलक्षित					 : | भू० कृ० [सं० उप√लक्ष्+क्त] १. अच्छी तरह देखा-भाला हुआ। २. उपलक्ष्य के रूप में या संकेत से बतलाया हुआ। ३. अनुमान किया हुआ। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपलक्ष्य					 : | पुं० [सं० उप√लक्ष्+ण्यत्] १. वह बात जिसे ध्यान में रखकर कुछ कहा या किया जाए। पद-उपलक्ष्य मेंकोई काम या बड़ी बात होने पर उसका ध्यान रखते हुए। किसी बात के उद्धेश्य से और उसके संबंध में। जैसे—विवाह के उपलक्ष्य में होनेवाला प्रीति-भोज। २. किसी बात का चिन्ह, लक्षण या संकेत। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपलब्ध					 : | भू० कृ० [सं० उप√लभ्+क्त] १. प्राप्त या हस्तगत किया हुआ। मिला हुआ। २. अनुमान, निष्कर्ष आदि के आधार पर जाना या समझा हुआ। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपलब्धि					 : | स्त्री० [सं० उप√लभ्+क्तिन्] १. उपलब्ध या प्राप्त होने की अवस्था, क्रिया या भाव। प्राप्ति। २. ज्ञान। ३. बृद्धि। ४. (प्राप्त की हुई) सफलता या सिद्धि। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपलभ्य					 : | वि० [सं० उप√लभ् (पाना)+यत्] १. जो उपलब्ध या प्राप्त हो सकता हो। जो मिल सके। २. आदर या प्रशंसा के योग्य। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपला					 : | पुं० [सं० उत्पन्न] [स्त्री० उपली] गाय, भैंस आदि के गोबर का सूखा हुआ कंडा जो जलाने के काम आता है। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपलाना					 : | स०=उपराना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपलिंग					 : | पुं० [उप√लिंग(गति)+घञ्] १. अरिष्ट। २. उपद्रव। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपलेप					 : | पुं० [सं० उप√लिप्(लीपना)+घञ्] १. गीली वस्तु (विशेषतः गोबर आदि) से पोतना या लीपना। २. ऐसी वस्तु जिससे पोता या लीपा जाय। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपलेपन					 : | पुं० [सं० उप√लिप्+ल्युट-अन] १. पोतना। लीपना। २. लेप आदि के रूप में लगाना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपलेपी (पिन्)					 : | वि० [सं० उप√लिप्+णिनि] १. पोतने या लीपनेवाला। २. किये-कराये काम पर पानी फेरनेवाला। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उप-लौह					 : | पुं० [सं० अत्या० स०] एक प्रकार का गौण धातु। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपल्ला					 : | पुं० [हिं० ऊपर+ला (प्रत्यय) अथवा पल्ला] किसी वस्तु विशेषतः पहनने के दोहरे कपड़े की ऊपरी तह या परत। भितल्ला का विपर्याय। जैसे—रजाई का उपल्ला। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उप-वंग					 : | पुं० [सं० अत्या० स०] प्राचीन वंग (आधुनिक बंगाल) के पास का एक प्राचीन जनपद। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपवक्ता (क्तृ)					 : | पुं० [सं० उप√वच् (बोलना)+तृच्] यज्ञ का पर्यवेक्षण करनेवाला। ऋत्विज्। वि० प्रेरणा करनेवाला। प्रेरक। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उप-वट					 : | पुं० [सं० अत्या० स०] चिरौंजी का पेड़। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उप-वन					 : | पुं० [सं० अत्या० स०] १. छोटा वन या जंगल। २. ऐसा उद्यान जिसमें कई खुले मैदान हों। ३. बगीचा। बाग। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपवना					 : | अ० १. उपजना। उदाहरण—मोद भरी गोद लिए लालति सुमित्रा देखि देव कहै सबको सुकृत उपवियो है।—तुलसी। २. उड़ना। उदाहरण— देखत चुरै कपूर ज्यौ उपै जाय जनि लाल।—बिहारी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपवर्णन					 : | पुं० [सं० उप√वर्ण् (वर्णन करना)+घञ्] विस्तृत या ब्यौरेवार वर्णन। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपवर्ण्य					 : | वि० [सं० उप√वर्ण+ण्यत्] जिसका वर्णन किया जाने को हो या किया जा सके। पुं० वह जिसमें उपमा दी गई हो। उपमान। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपवर्त					 : | पुं० [सं० उप√वुत् (बरतना)+घञ्] एक बहुत बड़ी संख्या। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपवर्तन					 : | पुं० [सं० उप√वृत्+ल्युट-अन] १. निकट लाना। २. जनपद। ३. राज्य। ४. दलदल। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपवसथ					 : | पुं० [सं० उप√वस् (बसना)+अथ] १. बसा हुआ स्थान। बस्ती। २. यज्ञ आरंभ करने से पहले का दिन जिसमें व्रत आदि का विधान है। ३. उक्त दिनों होनेवाले धार्मिक कृत्य। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपवसन					 : | पुं० [सं० उप√वस् (रोकना, बसना)+ल्युट-अन] १. पास बसना या रहना। २. उपवास करना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपवस्ति					 : | स्त्री० [सं० उप√वस् (रोकना)+क्तिन्] जीवन-निर्वाह के लिए आवश्यक बातें। जैसे—खान-पीना, सोना आदि। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उप-वाक्य					 : | पुं० [सं० अत्या० स०] किसी बड़े वाक्य का वह अंश या भाग जिसमें कोई समापिका क्रिया हो। (क्लाज) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपवाद					 : | पुं० [सं० उप√वद् (बोलना)+घञ्] लोक में फैलनेवाला अपवाद या निंदा। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपवास					 : | पुं० [सं० उप√वस् (स्तंभन)+घञ्] दिन भर या रात-दिन भोजन न करना। भूखे रहना। फाका। विशेष—उपवास प्रायः धार्मिक दृष्टि से, अन्न से अभाव से, रोगी होने की दशा में अथवा किसी प्रकार के प्रायश्चित आदि के रूप में किया जाता है। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपवासक					 : | वि० [सं० उप√वस्+ण्वुल्-अक] उपवास करनेवाला। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपवासी (सिन्)					 : | वि० [सं० उप√वस्+णिनि] जो उपवास कर रहा हो। न खाने और भूखा रहनेवाला। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उप-विद्या					 : | स्त्री० [सं० अत्या० स०] १. गौण, छोटी या साधारण विद्या। २. लौकिक ज्ञान या विद्या। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उप-विधि					 : | स्त्री० [सं० अत्या० स०] १. गौण या अपेक्षया कम महत्त्व वाली विधि। २. किसी विधि के साथ लगी हुई उसी तरह की कोई छोटी विधि। (बाई लॉ) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उप-विभाग					 : | पुं० [सं० अत्या० स०] किसी विभाग के अंतर्गत उसका कोई गौण या छोटा विभाग। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उप-विष					 : | पुं० [सं० अत्या० स०] ऐसा हलका विष जो तुरंत या विशेष घातक न हो। जैसे—अफीम, धतूरा आदि। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उप-विषा					 : | स्त्री० [सं० ब० स० टाप्] अतीस। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपविष्ट					 : | भू० कृ० [सं० उप√वि्श् (बैठना)+क्त] बैठा हुआ। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपविष्टक					 : | पुं० [सं० उपविष्ट+कन्] ऐसा भ्रूण जो नियत समय के बाद भी ठहरा या बना रहे। (वैद्यक)। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपवीत					 : | पुं० [सं० उप-वि√इ (गति)+क्त] १. जनेऊ। २. उपनयन संस्कार। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपवीती (तिन्)					 : | वि० [सं० उपवीत+इनि] १. जिसका यज्ञोपवीत संस्कार हो चुका हो। २. जिसने जनेऊ पहना हो। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपवीणा					 : | स्त्री० [सं० अताय० स०] वीणा का निचला भाग, जिसमें तूँबा रहता है। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उपवृंहण					 : | पुं० [सं० उप√वृह्(वृद्धि)+ल्युट-अन] तकिया। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उप-वेद					 : | पुं० [सं० अत्या० स०] वेदों से ग्रहण की हुई लोकोपकारी विद्याएँ। इनमें चार मुख्य हैं-यजुर्वेद से ग्रहण किया हुआ धनुर्वेद, सामवेद लिया हुआ गंधर्ववेद, ऋग्वेद से निकाला हुआ आयुर्वेद और अर्थवेद से ली हुई स्थापत्यकला। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उपवेधक					 : | पुं० [सं० उप√वुध् (बेधना)+ण्वुल-अक] यात्रियों या राह चलतों को तंग करके उनका धन छीननेवाला। बटमार। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उपवेश					 : | पुं० [सं० उप√विश् (बैठना)+घञ्] १. बैठने की क्रिया या भाव। २. किसी कार्य में लगना। ३. सभा, समिति आदि की बैठक का होना। ४. मल-त्याग। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपवेशन					 : | पुं० [सं० उप√विश्+ल्युट-अन] [भू० कृ० उपविश्ट] बैठना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उपवेशित					 : | भू० कृ० [सं० उप√विश्+णिच्+क्त] बैठा हुआ। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उपवेशी (शिन्)					 : | वि० [सं० उप√विश्+णिनि] १. बैठनेवाला। २. जो काम में लगा हो। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपवेष्टन					 : | पुं० [सं० उप√वेष्ट (लपेटना)+ल्युट-अन] [भू० कृ० उपवेष्टित] चारों ओर से लपेटना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपशम					 : | पुं० [सं० उप√शम् (शांति)+घञ्] १. शांत होना। २. इंद्रियों या मनोविकारों को वश में करना। ३. उपद्रव आदि की शांति के लिए किया जानेवाला उपाय या प्रयत्न। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उपशमन					 : | पुं० [सं० उप√शम्+ल्युट-अन] १. शांत करना। २. दबाना। घटाना। ३. निवारण। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपशमित					 : | भू० कृ० [सं० उप√शम्+णिच्+क्त] १. शांत किया हुआ। २. दबाया हुआ। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपशय					 : | वि० [सं० उप√शी (सोना)+अच्] १. पास लेटने या सोने वाला। २. शांतिदायक। पुं० १. पास सोना। २. खान-पान, औषध आदि के कारण रोग पर पड़नेवाला प्रभाव और उसके आधार पर होनेवाला रोग का निदान। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपशल्य					 : | पुं० [सं० प्रा० स०] १. नगर या गाँव की सीमा। २. पहाड़ के पास की भूमि। ३. भाला। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपशांति					 : | स्त्री० [सं० उप√शम्+क्तिन्] उपशम। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उप-शाखा					 : | स्त्री० [सं० अत्या० स०] १. छोटी शाखा। २. किसी बड़ी शाखा की कोई छोटी शाखा। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपशामक					 : | वि० [सं० उप√शम्+णिच्+ण्वुल्-अक] उपशमन (निवारण या शांति) करनेवाला। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपशाय					 : | पुं० [सं० उप√शी (सोना)+घञ्] एक के बाद एक या बारी-बारी (पहरे आदि के विचार से चौकीदारों का) से सोना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपशायक					 : | वि० [सं० उप√शी+ण्वुल्-अक] =चौकीदार। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपशायी (यिन्)					 : | वि० [सं० उप√शी+णिनि] =उपशायक। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उप-शाल					 : | पुं० [सं० अत्या० स०] १. घर या गाँव के सामने की खुली जगह या मैदान। २. चौपाल। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उप-शिक्षक					 : | पुं० [सं० अत्या० स०] सहायक शिक्षक। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उप-शिष्य					 : | पुं० [सं० अत्या० स०] शिष्य का शिष्य। चेले का चेला। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उप-शीर्षक					 : | पुं० [सं० अत्या० स०] १. किसी बड़े शीर्षक के अंतर्गत होनेवाला कोई गौण या छोटा शीर्षक। २. एक रोग जिसमें सिर में छोटी-छोटी फुंसियाँ निकल आती है। चाईं-चूईं। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपशोभन					 : | पुं० [सं० उप√शोभ् (सोहना)+ल्युट-अन] सजाना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपश्रुत					 : | भू० कृ० [सं० उप√श्रु (सुनना)+क्त] १. सुना हुआ। स्वीकृति किया हुआ। २. जाना हुआ। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपश्रुति					 : | स्त्री० [सं० उप√श्रु+क्तिन्] १. सुनना। २. भविष्यवाणी। ३. स्वीकृति। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपश्लिष्ट					 : | वि० [सं० उप√श्लिष् (मिलता)+घञ्] १. पास रखा हुआ। २. लगा या सटा हुआ। ३. संपर्क में आया या लाया हुआ। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपश्लेष					 : | पुं० [सं० उप√श्लिष्+घञ्] १. पास आकर लगना या सटना। २. आलिंगन। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपसंगत					 : | वि० [सं० उप-सम्√गम् (जाना)+क्त] १. संयुक्त। २. संलग्न। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उप-संपदा					 : | स्त्री० [सं० अत्या० स०] बौद्ध धर्म में, घर-गृहस्थी छोड़कर भिक्षु बनना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उप-संपादक					 : | पुं० [सं० अत्या० स०] सहायक संपादक। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उप-संस्कार					 : | पुं० [सं० अत्या० स०] किसी संस्कार के अंतर्गत होनेवाला कोई गौण या छोटा संस्कार। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपसंहार					 : | पुं० [सं० उप-सम√हृ (हरण)+घञ्] १. परिहार। २. अंत। समाप्ति। ३. किसी प्रकरण, विषय आदि का वह अंतिम अंश जिसमें उक्त प्रकरण या विषय की मुख्य-मुख्य बातें फिर से अति संक्षेप में बतालाई जाती हैं। ४. सारांश। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपस					 : | स्त्री० [सं० उप+हिं० बास=महक] दुर्गन्ध। बदबू।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपसक्त					 : | वि० [सं० उप√सञ्ज्+क्त] १. आसक्त। २. संलग्न। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपसना					 : | अ० [सं० उप+हिं० बासमहक] ऐसी स्थिति में होना कि बदबू निकले। गल या सड़कर दुर्गध देना। स० गला या सड़ाकर बदबू उत्पन्न करना। अ० [सं० उपबसन] दूर होना। हटना। उदाहरण—दहुं कवि लास कि कहँ उपसई।—जायसी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपसन्न					 : | वि० [सं० उप√सद् (गति)+क्त] १. सहायता या सेवा के लिए आया हुआ। २. पास रखा या लाया हुआ। ३. प्राप्त। ४. दिया हुआ। प्रदत्त। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उप-सभापति					 : | पुं० [सं० अत्या० स०] किसी संस्था का वह अधिकारी जिसका पद सभापति के उपरांत या उससे छोटा होता है तथा जो सभापति की अनुपस्थिति में उसके सब काम करता है। (वाइस प्रेसिडेंट) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपसम					 : | पुं०=उपशम।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उप-समिति					 : | स्त्री० [सं० अत्या० स०] किसी बड़ी सभा या समिति द्वारा किसी विषय की जाँच करने अथवा उस पर सम्मति देने के लिए नियुक्त की हुई छोटी समिति। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपसरण					 : | पुं० [सं० उप√सृ (गति)+ल्युट-अन] १. किसी की ओर आना, जाना या पहुँचना। २. रक्त का तेजी से हृदय की ओर बहना। ३. शरण। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपसर्ग					 : | पुं० [सं० उप√सृज् (त्याग)+घञ्] १. वह अव्यय या शब्द जो कुछ शब्दों के आरंभ में लगकर उनके अर्थों का विस्तार करता अथवा उनमें कोई विशेषतः उत्पन्न करता है। जैसे—अ, अनु, अप, वि, आदि उपसर्ग है। २. बुरा लक्षण या अपशगुन। ३. किसी प्रकार का उत्पात, उपद्रव या विघ्न। ४. वह पदार्थ जो कोई पदार्थ बनाते समय बीच में संयोगवश बन जाता या निकल आता है। (बाई प्राडक्ट) जैसे—गुड़ बनाते समय जो शीरा निकलता है, वह गुड़ का उपसर्ग है। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपसर्जन					 : | पुं० [सं० उप√सृज्+ल्युट-अन] १. गढ़, ढाल या बनाकर तैयार करना। २. दैवी उत्पात या उपद्रव। ३. अप्रधान या गौण वस्तु। ४. त्याग। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपसर्पण					 : | पुं० [सं० उप√सृप्(गति)+ल्युट-अन] किसी की ओर या आगे बढ़ना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपसवना					 : | अ० [सं० उपसरना] कहीं से भाग या हटकर चले जाना। उदाहरण—लै उपसवा जलंधर जोगी।—जायसी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उप-सागर					 : | पुं० [सं० अत्या० स०] बड़े सागर का कोई छोटा अंश या भाग। समुद्र की खाड़ी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपसादन					 : | पुं० [सं० उप√सद्+णिच्+ल्युट-अन] १. सेवा में उपस्थित होना। २. सम्मान करना। ३. किसी काम का भार लेना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपसाना					 : | स० [सं० उपसना] गलाना या सड़ाना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उप-सुंद					 : | पुं० [सं० ब० स०] सुंद नामक दैत्य का छोटा भाई। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपसृष्ट					 : | भू० कृ० [सं० उप√सृज्+क्त] १. पकड़ा हुआ। २. प्रेत आदि द्वारा पकड़ा हुआ। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपसेक					 : | पुं० [सं० उप√सिच् (सींचना)+घञ्] १. छिड़कना। २. तर करना। सींचना। ३. बचाव। रक्षा। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपसेचन					 : | पुं० [सं० उप√सिच्+ल्युट-अन] १. पानी से तर करना या भिगोना। २. सींचना। ३. रसेदार व्यंजन। जैसे—तरकारी, दाल आदि। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपसेवन					 : | पुं० [सं० उप√सेव् (सेवा करना)+ल्युट-अन] १. सेवा करना। २. सेवन करना। ३. आलिंगन करना। गले लगाना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपस्कर					 : | पुं० [सं० उप√कृ(करना)+अप्, सुट्] १. चोट या हानि पहुँचाना। २. हिंसा करना। ३. जीवन-निर्वाह में सहायक होनेवाली चीजें या बातें। ४. सजावट या सजाने की सामग्री। उपस्कार। ५. कोई ऐसा यंत्र जिसमें अनेक छोटे-छोटे तथा पेचीले कल पुरजे हों। संयंत्र। (एपरेटस) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपस्करण					 : | पुं० [सं० उप√कृ+ल्युट-अन, सुट्] १. हानि या चोट पहुँचाना। २. सँवारना। सजाना। ३. विकार। ४. निंदा। ५. समूह। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपस्कार					 : | पुं० [सं० उप√कृ+घञ्, सुट्] १. रिक्त स्थान की पूर्ति करनेवाली चीज। २. सँवारना। सजाना। ३. घर-गृहस्थी आदि में सजावट की सामग्री। (फर्निचर) ४. आभूषण। गहना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपस्कृत					 : | भू० कृ० [सं० उप√कृ+क्त, सुट्] १. बनाया या प्रस्तुत किया हुआ। २. इकट्ठा किया हुआ। ३. बदला हुआ। ४. लांछित। ५. हत। ६. सँवरा या सजाया हुआ। ७. अलंकृत। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपस्तरण					 : | पुं० [सं० उप√स्तृ (फैलाना)+ल्युट-अन] १. फैलाना। बिछाना। २. बिछावन। बिछौना। ३. चादर। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उप-स्त्री					 : | स्त्री० [सं० अत्या० स०] बिना विवाह किये हुए रखी हुई स्त्री। रखेली। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपस्थ					 : | वि० [सं० उप√स्था (ठहरना)+क] बैठा हुआ। पुं० १. शरीर का मध्य भाग। २. पेड़ू। ३. पुरुष या स्त्री की जननेंद्रिय। लिंग या भग। ४. मल-त्याग का मार्ग। गुदा। ५. चूतड़। ६. गोद। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उप-स्थल					 : | पुं० [सं० अत्या० स०] [स्त्री० उपस्थली] १. चूतड़। २. रेड़ू। ३. कूल्हा। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपस्थली					 : | स्त्री० [सं० उपस्थल+ङीष्] कटि। कमर। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपस्थाता (तृ)					 : | वि० [सं० उप√स्था+तृच्] १. उपस्थित रहनेवाला। २. समीप रहनेवाला। ३. उपा-सक। पुं० नौकर। भूत्य। सेवक। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपस्थान					 : | पुं० [सं० उप√स्था+ल्युट-अन] १. किसी के समीप जाना या पहुँचना। २. उपस्थित होना। ३. अभ्यर्थना, पूजा आदि के लिए पास आना। ४. पूजा आदि का स्थान। ५. समाज। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपस्थापक					 : | पुं० [सं० उप√स्था+णिच्, पुक्+ण्वुल्-अक] १. प्रस्ताव आदि के रूप में किसी सभा या समिति के समक्ष विचार करने के लिय कोई प्रस्ताव या विषय उपस्थित करनेवाला। २. पेशकार। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपस्थापन					 : | पुं० [सं० उप√स्था+णिच्, पुक्+ल्युट-अन] १. उपस्थित करना। २. सभा, समिति आदि के समक्ष कोई विषय प्रस्ताव के रूप में विचारार्थ उपस्थित करना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपस्थापित					 : | भू० कृ० [सं० उप√स्था+णिच्, पुक्+क्त] जिसका उपस्थापन हुआ हो। उपस्थित किया हुआ। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपस्थित					 : | वि० [सं० उप√स्था+क्त] १. पास या समीप बैठा हुआ। २. जो दूसरों के समक्ष या उनकी उपस्थित में आया हो। ३. सामने आया हुआ। प्रस्तुत। ४. ध्यान या मन में आया हुआ। ५. स्मृति में वर्तमान। याद। जैसे—इन्हें तो सारी गीता उपस्थित है। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपस्थिता					 : | स्त्री० [सं० उपस्थित+टाप्] एक वर्णवृत्त जिसके प्रत्येक चरण में एक तगण, दो जगण और एक अन्त में एक गुरु होता है। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपस्थिति					 : | स्त्री० [सं० उप√स्था+क्तिन्] १. उपस्थित होने की अवस्था, क्रिया या भाव। मौजूदगी। २. हाजिरी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपस्थिति-अधिकारी (रिन्)					 : | पुं० [ष० त०] किसी संस्था, विशेषतः शिक्षा देनेवाली संस्था का वह अधिकारी जो शिक्षार्थियों की उपस्थिति संबंधी देख-भाल करता और उपस्थिति बढ़ाने का प्रयत्न करता है। (एटेण्डेण्टआफिसर) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपस्थिति-पंजी					 : | स्त्री० [ष० त०] वह पंजी जिसमें किसी कार्यालय, संस्था आदि में नित्य और नियमित रूप से उपस्थित होनेवाले लोगों की उपस्थिति का लेखा रहता है। (एटेण्डेन्स रजिस्टर) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपस्थिति-पत्र					 : | पुं० [सं० ष० त०] किसी को किसी अधिकारी के सामने किसी निश्चित समय पर उपस्थित होने के लिए भेजा हुआ आधिकारिक पत्र या सूचना। आकारक। (साइटेशन) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपस्पर्श					 : | पुं०=आचमन। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उप-स्मृति					 : | स्त्री० [सं० अत्या० स०] हिन्दुओँ में, स्मृतियों के वर्ग में माने जानेवाले कुछ गौण विधायक ग्रन्थ। जैसे—कर्पिजल, कात्यायन, जाबालि, विश्वामित्र या स्कंद की उप-स्मृति। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उप-स्वत्व					 : | पुं० [सं० अत्या० स०] १. जमीन या किसी जायदाद की पैदावार या आमदनी लेने का अधिकार या स्वत्व। २. लगान। ३. आय। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपस्वेद					 : | पुं० [सं० उप√स्विद् (पसीना निकलना)+घञ्] १. आर्द्रता। नमी। २. भाप। वाष्प ३. पसीना । स्वेद। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपहत					 : | वि० [सं० उप√हन् (हिंसा)+क्त] १. नष्ट किया हुआ। २. खराब किया या बिगाड़ा हुआ। ३. (सुरासव) जो कुछ विशिष्ट रासायनिक पदार्थों के योग से इतना विषाक्त कर दिया गया हो कि लोग उसे पी न सके। (मैथिलेटेड) ४. कष्ट या संकट में पड़ा हुआ। ५. अपवित्र या अशुद्ध किया हुआ। ६. दुःखी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपहत-चित्त					 : | स्त्री० [सं० ब० स०] १. विवेक से रहित या शून्य। २. पागल। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपहति					 : | स्त्री० [सं० उप√हन्+क्तिन्] १. उपहत होने की अवस्था या भाव। २. विनाश। ३. हानि। ४. अत्याचार। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपहरण					 : | पुं० [सं० उप√हृ (हरण करना)+ल्युट-अन] १. पास या समीप लाना या पहुँचाना। २. हरण करना। छीनना या लूटना। ३. उपहार। भेंट। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपहव					 : | पुं० [सं० उप√ह्वे (बुलाना)+अप्] आवाहन। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपहसित					 : | पुं० [सं० उप√हस् (हँसना)+क्त] साहित्य में हास्य का वह प्रकार जिसमें आदमी सिर हिलाते हुए, आँखे टेढ़ी करके, नाक फुला कर तथा कन्धे सिकोड़ कर हँसता है। (हास के छः भेदों में से एक है)। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपहार					 : | पुं० [सं० उप√हृ (हरण करना)+घञ्] १. प्रसन्न होकर सद्भावपूर्वक किसी मित्र, संबंधी आदि को कोई वस्तु देना। २. किसी विशिष्ट अवसर पर किसी को (स्मृति चिन्ह के रूप में) दी जानेवाली कोई वस्तु। भेंट। (गिफ्ट) जैसे—कन्या के विवाह में उपहार देना। ३. शैवों के उपासना के छः नियम (हसित, गीत, नृत्य डुडुक्कार, नमस्कार और जप) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपहार-संधि					 : | स्त्री० [मध्य० स०] किसी विरोधी या शत्रु को कुछ उपहार देकर उसके साथ की जानेवाली संधि। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपहारी (रिन्)					 : | वि० [सं० उपहार+इनि] उपहार देनेवाला। भेंट करनेवाला। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपहास					 : | पुं० [सं० उप√हस्+घञ्] १. हँसी। दिल्लगी। २. यों ही हँसते हुए किसी की खिल्ली या दिल्लगी उड़ाना। हँसते-हँसते किसी को तुच्छ या हीन ठहराना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपहासक					 : | वि० पुं० [सं० उप√हस्+ण्वुल्-अक] दूसरों का उपहास करने वाला। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपहासास्पद					 : | वि० [सं० उपहास-आस्पद, ष० त०] जो उपहास किये जाने के योग्य हो। जिसका उपहास किया जा सके। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपहासी (सिन्)					 : | वि० [सं० उप√हस्+णिनि] उपहास करनेवाला। स्त्री०=उपहास। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपहास्य					 : | वि० [सं० उप√हस्+ण्यत्] १. जिसका उपहास हो सकता हो या किया जा सकता हो। २. (इतना तुच्छ) जिसे देखकर हँसी आती हो। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपहित					 : | वि० [सं० उप√धा (धारण)+क्त-धाहि०] १. ऊपर रखा हुआ। स्थापित। २. धारण किया हुआ। ३. पास रखा या लाया हुआ। ४. मिला या मिलाया हुआ। सम्मिलित। ५. किसी प्रकार की उपाधि से युक्त। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उपही					 : | पुं० [सं० उपरि] १. बाहरी। २. परदेशी। विदेशी। ३. अपरिचित। ऊपरी। बाहरी। उदाहरण—प्रानहुँ ते प्यारे प्रीतम उपही।-तुलसी। ४. ऐसा आदमी जिसका प्रस्तुत विषय से कोई संबंध न हो।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उपहूति					 : | स्त्री० [सं० उप√ह्वे+क्तिन्] चुनौती। प्रचारणा। | 
			
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				| उपह्रत					 : | भू० कृ० [सं० उप√हृ (हरण करना)+क्त] १. पास लाया हुआ। २. अर्पण या भेंट किया हुआ। उपहार के रूप में दिया हुआ। | 
			
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				| उपांग					 : | पुं० [सं० उप-अंग, अत्या० स०] १. किसी वस्तु के किसी अंग या भाग का गौण या छोटा अंग। २. ऐसा छोटा अंग जिससे किसी बड़े अंग की पूर्ति होती हो। जैसे—धर्मशास्त्र, पुराण आदि वेदों के उपांग हैं। ३. टीका। तिलक। ४. एक प्रकार का पुराना बाजा। | 
			
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				| उपांजन					 : | पुं० [सं० उप√अञ्ज् (आँजना, चिकनाना)+ल्युट-अन] १. पोतना। लीपना। २. सफेदी करना। | 
			
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				| उपांत					 : | पुं० [सं० उप-अंत, अत्या० स०] १. वह जो अंतिम से ठीक पहले हो। २. अंतिम स्थान या अंत के आस-पास का भू-भाग या स्थान। ३. नदी या तट का किनारा। ४. सीमा। हद। ५. कपड़े का आँचल। ६. आज-कल, लिखने के समय कागज की दाहिनी या बाई ओर छोड़ा जानेवाला थोड़ा-सा खाली स्थान जिसमें आवश्यकता होने पर बाद में कुछ और बातें बढ़ाई या लिखी जा सकती है। हाशिया। (मार्जिन) | 
			
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				| उपांत-साक्षी (क्षिन्)					 : | पुं० [सं० ष० त०] वह साक्षी जिसने किसी लेख के उपांत पर हस्ताक्षर किया हो। (मार्जिन विटनेस) | 
			
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				| उपांतस्थ					 : | वि० [सं० उपांत√स्था(ठहरना)+क] १. उपांत पर होनेवाला। २. कागज के हाशिये पर लिखा हुआ। उपांतिक। | 
			
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				| उपांतिक					 : | वि० [सं० उप-अंतिक, प्रा० स०] १. पास या समीप का। २. उपांत में रहने या होनेवाला। (मार्जिनल) | 
			
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				| उपांतिका					 : | स्त्री० [सं० उपान्त] विधायिका सभाओं, संसदों आदि के अधिवेशन के कमरे के आस-पास का वह कमरा जिसमें जन-साधारण भी आ सकते हैं। (लाबी) | 
			
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				| उपांतिम					 : | वि० [उप-अंतिम, प्रा० स०] =उपांतिक। | 
			
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				| उपांत्य					 : | वि० [सं० उप-अंत्य० प्रा० स०] १. अंत के पास का। २. अंतिम से पहले का। | 
			
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				| उपाउ					 : | पुं०=उपाय।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उपाकरण					 : | पुं० [सं० उप-आ√कृ(करना)+ल्युट-अन] =उपक्रम। | 
			
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				| उपाकर्म (न्)					 : | पुं० [सं० उप-आ√कृ+मनिन्] १. श्रावणी पूर्णिमा को संस्कारपूर्वक वेदपाठ का आरम्भ करना। २. यज्ञोपवीत संस्कार। ३. =उपक्रम। | 
			
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				| उपाकृत					 : | वि० [सं० उप-आ√कृ+क्त] १. पास लाया हुआ। २. आरम्भ किया हुआ। ३. विपत्तिजनक। ४. (पशु) जिसे बलि चढ़ाया गया हो। | 
			
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				| उपाख्या					 : | स्त्री० [सं० उप-आ√ख्या (कहना)+अ-टाप्] १. कुछ जानने के लिए स्वयं देखना। २. शब्दों के द्वारा कुछ वर्णन करना। ३. विवरण बतलाना। ४. दूसरों की प्रतिभा में रस लेने या उसका फल ग्रहण करने की शक्ति। | 
			
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				| उपाख्यान					 : | पुं० [सं० उप-आ√ख्या+ल्युट-अन] १. विस्तारपूर्वक कही हुई कोई पुरानी कथा। २. किसी कथा के अंतर्गत आनेवाली कोई छोटी कथा उपकथा। ३. वर्णन। वृत्तान्त। | 
			
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				| उपागत					 : | भू० कृ० [सं० उप-आ√गम्(जाना)+क्त] १. आया या पहुँचा हुआ। २. जो घटित हुआ हो। ३. जिस पर किसी प्रकार का प्रतिबंध लगा हो। | 
			
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				| उपागम					 : | पुं० [सं० उप-आ√गम्+अप्] १. कहीं आना या पहुँचना। २. घटित होना। ३. किसी प्रकार के प्रतिबंध में होना। | 
			
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				| उपाग्रहण					 : | पुं० [सं० उप-आ√ग्रह(ग्रहण करना)+ल्युट-अ] =उपाकर्म। | 
			
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				| उपाचार					 : | पुं० [सं० उप-आचार, अत्या० स०] बहुत दिनों से चली आई हुई गौण परिपाटी या प्रथा जिसकी गणना आचार के अंतर्गत होती है। (यूसेज) | 
			
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				| उपाटना					 : | स० [सं० उत्पाटन] जड़ से नोचना। उखाड़ना। | 
			
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				| उपाठ					 : | वि० [सं० पुष्ठ, हिं० पाठ] १. पक्का। पुष्ट। २. पका हुआ।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उपाठना					 : | स० [हिं० उपाठ] १. दृढ़ या पक्का करना। २. पकाना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उपाड़					 : | पुं० [हिं० उपड़ना=उभरना] एक प्रकार का रोग जिसमें शरीर की खाल कुछ अलग होने लगती है।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उपाड़ना					 : | स० [सं० उत्पाटन] जड़ से उखाड़ना। स० [सं० उत+पठन ?] १. उच्चारण करना। २. पढ़ना। ३. अर्थ या भाव निकालना या समझना। स० उभारना। | 
			
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				| उपाती					 : | स्त्री०=उत्पत्ति।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उपात्यय					 : | पुं० [सं० उप-अति√इ(गति)+अच्] किसी प्रथा या रीति-रिवाज का होनेवाला उल्लंघन अथवा उसके विरुद्ध किया जानेवाला आचरण। | 
			
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				| उपादान					 : | पु० [सं० उप-आ√दा (देना)+ल्युट-अन] [वि० उपादेय] १. अपने लिए कुछ प्राप्त करना। २. किसी की कोई वस्तु अपने प्रयोग में लाना। ३. देखना,पढ़ना या सीखना। ज्ञान प्राप्त करना। ४. ज्ञान। बोध। ५. इंन्द्रियों का अपने भोग-विषयों की ओर से हट जाना। ६. न्याय में, ऐसा तत्त्व जो कोई और रूप धारण करके किसी वस्तु के बनने का कारण होता है। जैसे—मिट्टी वह उपादान है, जिससे घड़ा बनता है। ७. सांख्य में, चार प्रकार की आध्यात्मिक तुष्टियों में से एक जिसमें मनुष्य एक ही बात से पूर्ण फल की आशा करके अन्य प्रयत्न छोड़ देता है। ८. दे० ‘उपादान लक्षणा’। | 
			
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				| उपादान-कारण					 : | पुं० [कर्म० स०] दे० ‘उपादान’5। | 
			
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				| उपादान-लक्षणा					 : | स्त्री० [सं० मध्य० स०] साहित्य में लक्षणा का वह प्रकार या भेद जिसमें मुख्य अर्थ ज्यों का त्यों बना रहने पर भी साथ में कोई और अर्थ अथवा किसी और का कर्तृत्व भी ग्रहण कर लेता अथवा सूचित करने लगता है। जैसे—वहाँ जमकर लाठियाँ चलीं। में ‘लाठियो’ ने चलाने वालों का कर्तृत्व ग्रहण कर लिया है। | 
			
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				| उपादि					 : | स्त्री०=उपाधि।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उपादेय					 : | वि० [सं० उप-आ√दा+यत्] १. जो ग्रहण किया या लिया जा सकता हो। ग्रहण किये या लिये जाने के योग्य। २. अच्छा और काम में आने योग्य। उपयोगी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उपाधा					 : | स्त्री०=उपाधि। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उपाधि					 : | स्त्री० [सं० उप-आ√धा (धारण)+कि] १. वह जो किसी दूसरे स्थान पर काम आ सके या रखा जा सके। २. दूसरे का ऐसा वेश जो किसी को धोखा देने के लिए धारण किया गया हो। छद्य-वेश। ३. वह तत्त्व जिसके कारण कोई चीज़ और की और अथवा किसी विशेष रूप में दिखाई दे। जैसे—घडे़ के भीतर होने की दशा में आकाश का परिमित दिखाई देना। ४. उत्पात। उपद्रव। ५. कर्त्तव्य का विचार। ६. महत्त्व, योग्यता, सम्मान आदि का सूचक वह पद या शब्द जो किसी नाम के साथ लगाया जाता है। पदवी। खिताब। (टाइटिल) जैसे—आज-कल लोगों को पद्य-विभूषण, भारत रत्न आदि की उपाधियाँ मिलने लगी है। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपाधि-धारी (रिन्)					 : | पुं० [सं० उपाधि√धृ (धारण करना)+णिनि] वह व्यक्ति जिसे किसी प्रकार की उपाधि मिली हो। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उपाधी					 : | वि० [सं० उपाधि से] उत्पात करनेवाला। उपद्रवी। स्त्री०=उपाधि।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उपाध्यक्ष					 : | पुं० [सं० उप-अध्यक्ष, अत्या० स०] किसी संस्था, समिति में अध्यक्ष के सहायक रूप में परन्तु उसके अधीन काम करनेवाला पदाधिकारी। (वाइस चेयरमैन) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उपाध्या					 : | पुं०=उपाध्याय।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उपाध्याय					 : | पुं० [सं० उप-अधि√इ(अध्ययन)+घञ्] १. वेद-वेदागों का अध्ययन करनेवाला पण्डित। २. अध्यापक। शिक्षक। ३. कई वर्गों के ब्राह्मणों में एक भेद या उपजाति। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उपाध्याया					 : | स्त्री० [सं० उपाध्याय+टाप्] अध्यापिका। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उपाध्यायानी					 : | स्त्री० [सं० उपाध्याय+ङीष्, आनुक] उपाध्याय की स्त्री। गुरुपत्नी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपाध्यायी					 : | स्त्री० [सं० उपाध्याय+ङीष्] १. उपाध्याय की स्त्री। गुरुपत्नी। २. पढ़ानेवाली स्त्री। अध्यापिका। शिक्षिका। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उपान					 : | स्त्री० [हिं० ऊपर+आन(प्रत्य)] इमारत की कुरसी। २. खम्भे के नीचे आकार रूप में रहनेवाली चौकी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपानह					 : | पुं० [सं० उपानत्] १. जूता। २. खड़ाऊ। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उपाना					 : | स० [सं० उत्पादन, पा० उत्पन्न] उत्पन्न करना० पैदा करना। उदाहरण—(क) अखिल विस्व यह मोर उपाया।—तुलसी। (ख) भोग भुगुति बहु भाँति उपाईष-जायसी। स० [सं० उपाय] उपाय या मुक्ति निकालना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उपाय					 : | पुं० [सं० उप√अय् (गति)+घञ्] १. ऐसा प्रयत्न जिससे सार्विक रूप से अथवा साधारणतः कोई काम सिद्ध हो, अथवा वांछित फलकी प्राप्ति हो। २. तरकीब। युक्ति। ३. युद्ध की व्यूह रचना। ४. शासन-प्रबन्ध। व्यवस्था। ५. चिकित्सा। इलाज। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपायन					 : | पुं० [सं० उप√इ वा√अय्+ल्युट-अन] १. प्राचीन काल में, किसी राज द्वारा किसी महाराजा को दी जानेवाली भेंट। २. मित्रों आदि को परदेस या विदेश से लाकर भेंट की हुई कोई विलक्षण या सुन्दर वस्तु। सौगात। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपायिक					 : | वि० [सं० उपाय+ठन्-इक] उपाय करके उन्नति करने या बढाने वाला। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपायी (विन्)					 : | वि० [सं० उप√अय्+णिनि] उपाय करने या सोचनेवाला। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपायुक्त					 : | पुं० [सं० उप-आयुक्त, अत्या० स०] प्रतिआयुक्त। (डिप्टी कमिश्नर) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपारंभ					 : | पुं० [सं० उप-आ√रभ्+घञ्, नुम्] आरंभ। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपारना					 : | स०=उपाड़ना। (उखाड़ना) (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपार्जक					 : | वि० [सं० उप√अर्ज् (प्रयत्न)+ण्वुल्-अक] उपार्जन करने या कमाने वाला। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपार्जन					 : | पुं० [सं० उप√अर्ज्+ल्युट्-अन] १. प्राप्त या हस्तगत करने की क्रिया या भाव। २. उद्योग या प्रयत्नपूर्वक लाभ करना। कमाना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपार्जनीय					 : | वि० [सं० उप√अर्ज्+अनीयर] जो उपार्जन किये जाने के योग्य हो। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपार्जित					 : | भू० कृ० [सं० उप√अर्ज्+क्त] प्राप्त किया, कमाया या हस्तगत किया हुआ। जैसे—धन या यश उपार्जित करना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपार्थ					 : | वि० [सं० उप-अर्थ, ब० स०] थोड़े या महत्त्व मूल्य का। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपालंभ					 : | पुं० [सं० उप-आ√लभ्+घञ्, नुम्] [वि० उपालब्ध] किसी के अनुचित या अशिष्ट व्यवहार के कारण उससे की जानेवाली शिकायत। उलहना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपालंभन					 : | पुं० [सं० उप-आ√लभ्+ल्युट-अन, नुम्] उपालंभ देना। उलहना देना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपाव					 : | पुं०=उपाय।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपावर्तन					 : | पुं० [सं० उप-आ√वृत्(बरतना)+ल्युट-अन] [भू० कृ० उपावृत्त] १. फिर से आना। २. वापस आना। लौटना। ३. पास आना। ४. चक्कर देना। ५. विरत होना। छोड़ना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपाश्रय					 : | पुं० [सं० उप-आ√श्रि (सेवा)+अच्] १. वस्तु जिसके सहारे खड़ा हुआ जाय या रुका जाय। आश्रय। सहारा। २. छोटा या हलका आश्रय या सहारा। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपासंग					 : | पुं० [सं० उप-आ√सञ्ज् (मिलना)+घञ्] १. निकटता। सामीप्य। २. तूणीर। तरकश। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपास					 : | पुं०=उपवास।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपासक					 : | पुं० [सं० उप√आस् (बैठाना)+ण्वुल्-अक] [स्त्री० उपासिका] १. वह जो उपासना या पूजन करता हो। २. भक्त। वि० [हिं० उपवास से] उपवास करनेवाला। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपासन					 : | पुं० [सं० उप√आस्+ल्युट-अन] १. किसी के पास बैठना या आसन ग्रहण करना। २. उपासना करना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपासना					 : | स्त्री० [सं० उप√आस्+युच्-अन-टाप्] १. किसी के पास बैठना। २. ईश्वर, देवता आदि की मूर्ति के पास बैठकर किया जानेवाला आध्यात्मिक चिन्तन और पूजन। ईश्वर या देवता को प्रसन्न करने के लिए किया जानेवाला आराधन। ३. लाक्षणिक अर्थ में किसी वस्तु में होनेवाली अत्यधिक आसक्ति अथवा उसी में बराबर लगे रहने की भावना। जैसे—(क) धन या शक्ति की उपासना। (ख) मद्य, मांस आदि की उपासना। स० उपासना (आराधना, ध्यान और पूजन) करना। अ० [सं० उपवास] उपवास करना। निराहार रहना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपासनीय					 : | वि० [सं० उप√आस्+अनीयर] १. जिसकी उपासना करना आवश्यक या उचित हो। २. पूजनीय। पूज्य। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपासा					 : | स्त्री० [सं० उप√आस्+अ-टाप्] उपासना। वि० [सं० उपवास] [स्त्री० उपासी] १. जिसने उपवास किया हो। २. जो भोजन न मिलने के कारण भूखा रहता हो। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपासित					 : | भू० कृ० [सं० उप√आस्+क्त] जिसकी उपासना की गई हो। पुं० वह जो उपासना करता हो। उपासक। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपासी (सिन्)					 : | पुं० [सं० उप√आस्+णिनि] =उपासक। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपास्तमन					 : | पुं० [सं० उप-अस्तमन, प्रा० स०] १. सूर्य का अस्त होना। २. दे० ‘अस्तमन’। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपास्ति					 : | स्त्री० [सं० उप√आस्+क्तिन्] =उपासना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपास्त्र					 : | पुं० [सं० उप-अस्त्र, अत्या०स०] छोटा, साधारण या हलका अस्त्र। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपास्य					 : | वि० [सं० उप√आस्+ण्यत्] १. जिसकी उपासना की जाती हो। २. जो उपासना किये जाने के योग्य हो। जिसकी उपासना करना आवश्यक या उचित हो। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपास्य-देव					 : | पुं० [सं० कर्म० स०] वह देवता जिसकी उपासना कोई करता हो। इष्ट-देव। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपाहार					 : | पुं० [सं० उप-आहार, अत्या० स०] १. थोड़ा और हलका भोजन। २. जल-पान। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपाहित					 : | भू० कृ० [सं० उप-आ√धा (धारण करना)+क्त, हिं० आदेश] १. किसी स्थान में रखा हुआ। २. पहना हुआ। ३. सटा या लगा हुआ। ४. निश्चित किया हुआ। पुं० अग्निभय। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपेंद्र					 : | पुं० [सं० उप-इन्द्र, अत्या० स०] १. इन्द्र के छोटे भाई का नाम। २. श्रीकृष्ण। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपेंद्रवज्रा					 : | स्त्री० [सं० उप-इन्द्रवज्रा, अत्या० स०] ग्यारह वर्णों का एक छन्द, जिसके प्रत्येक चरण में क्रमशः जगण, तगण, जगण और अंत में दो गुरु होते हैं। जैसे—चला गया जीवित लोक सारा, बनी अजीवा-सम शून्य जीवा। पुनः वहाँ कौरवो-पांडवों की पड़ी सुनाई रण घोषणायें।—अंगराज। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपेक्षक					 : | पुं० [सं० उप√ईक्ष् (देखना)+ण्वुल्-अक] वह जो किसी की उपेक्षा करता हो। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपेक्षण					 : | पुं० [सं० उप√ईक्ष्+ल्युट-अन] उपेक्षा करते हुए अलग या दूर रहना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपेक्षणीय					 : | वि० [सं० उप√ईक्ष्+अनीयर] जो उपेक्षा किये जाने के योग्य हो। उपेक्षा का पात्र। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपेक्षा					 : | स्त्री० [सं० उप√ईक्ष्+अ+टाप्] १. देखना। २. देखते हुए भी ध्यान न देना। ३. किसी को अयोग्य या तुच्छ समझकर अथवा उसे नीचा दिखाने के लिए उसकी ओर ध्यान न देना। उचित ध्यान न देना। आदर या सम्मान न करना। ४. अवहेलना। ५. योग की एक भावना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपेक्षा-विहारी (रिन्)					 : | पुं० [सं० उपेक्षा-वि√हृ+णिनि] १. वह जो किसी के साथ उपेक्षापूर्वक व्यवहार करता हो। २. ऐसा साधक जो आध्यात्मिक शक्ति से सर्वोच्च स्थिति तक पहुँच गया हो। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपेक्षासन					 : | पुं० [सं० उपेक्षा-आसन, तृ० त०] प्राचीन भारतीय राजनीति में, शत्रु की उपेक्षा करते हुए चुपचाप बैठे रहना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपेक्षित					 : | भू० कृ० [सं० उप√ईक्ष्+क्त] जिसकी उपेक्षा की गई हो। जिसका आदर-सम्मान न किया गया हो अथवा जिसकी ओर उचित ध्यान न दिया गया हो। तिरस्कृत। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उपेक्ष्य					 : | वि० [सं० उप√ईक्ष्+ण्यत्] १. जिसकी उपेक्षा करना उचित हो। २. जिसकी उपेक्षा की जाती हो या की गई हो। | 
			
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				| उपेखना					 : | स०=उपेक्षा करना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उपेय					 : | वि० [सं० उप√इ(गति)+यत्] जिसकी कोई उपाय हो सकता हो या किया जा सकता हो। | 
			
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				| उपैना					 : | वि० [सं० उ+पह्नव] १. खुला हुआ। अनावृत्त। २. नंगा। अ० [?] १. गायब या लुप्त हो जाना। उदाहरण—देखत वुरै कपूर ज्यौं उपैनाइ जिनलाल।—बिहारी। २. न रह जाना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उपोद्घात					 : | पुं० [सं० उप-उद्√हन् (हिंसा, गति)+घञ्, कुत्व] १. पुस्तक के आरंभ का वक्तव्य। प्रस्तावना। भूमिका। २. वह व्यवस्था या कृत्य जो कोई आरंभ करने से पहले किया जाता है। ३. नव्य न्याय में 6 संगतियों में से एक। सामान्य कथन से भिन्न, निर्दिष्ट या विशिष्ट वस्तु के विषय में होनेवाला कथन। | 
			
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				| उपोषण					 : | पुं० [सं० उप√उष्+ल्युट-अन] उपवास करना। | 
			
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				| उपोषित					 : | वि० [सं० उप√उष्+क्त] जिसने उपवास किया हो। पुं०=उपवास। | 
			
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				| उपोसथ					 : | पुं० [सं० उपवसथ, प्रा० उपोसथ] उपवास। (जैन और बौद्ध)। | 
			
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				| उप्त					 : | भू० कृ० [सं०√वप्(बोना)+क्त] बोया हुआ। | 
			
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				| उप्पन्न					 : | वि०=उत्पन्न। | 
			
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				| उप्पम					 : | स्त्री० [देश] एक प्रकार की कपास। (दक्षिण भारत)। वि०=अनुपम।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उफ					 : | अव्य, [अ०] अपनी या किसी दूसरे की मानसिक या शारीरिक पीड़ा देखकर कोई भयानक दृश्य देखकर मुंह से निकलनेवाला एक शब्द। | 
			
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				| उफड़ना					 : | अ०=उबलना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उफनना					 : | अ० [सं० उत्+फेन] उबलना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उफनाना					 : | स०=उबालना। अ० उबलना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उफान					 : | पुं० [सं० उत्+फेन] उफनने या उबलने की क्रिया या भाव। उबाल। | 
			
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				| उफाल					 : | स्त्री०=फाल (डग) | 
			
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				| उबकना					 : | अ० [हिं० उबाक] उबाक आना या होना। मुँह से उबाक निकलना। जी मिचलाना या कै करने को जी चाहना। स० १. बाहर निकालना। २. दूर करना या हटाना। स०=बकना। | 
			
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				| उबका					 : | पुं० [सं० उद्वाहक, पा० उब्बाहक] डोरी या रस्सी का वह फन्दा जिसमें लोटे, गगरे आदि का मुँह बाँधकर कुएँ आदि से जल निकालने के लिए लटकाया जाता है। | 
			
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				| उबकाई					 : | स्त्री० [हिं० ओकाई] १. उलटी। कै। २. मिचली। मितली। | 
			
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				| उबछना					 : | स० [सं० उत्प्रेक्षण, प्रा० उप्पोक्खन, उप्पोच्छन] १. कपड़ा पछाड़ कर धोना। २. सिंचाई के लिए पानी खींचना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उबट					 : | पुं० [सं० उद्वाट] अट-पट मार्ग। विकट रास्ता। वि० ऊबड़-खाबड़।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उबटन					 : | पुं० [सं० उद्वर्तन, प्रा० उब्बउणं, पा० उब्बहन, पूर्वी० हिं० अबटन] १. शरीर की त्वचा को कोमल और स्वच्छ करने के लिए उस पर लगाया जानेवाला सरसों, चिरौंजी, तिल आदि का लेप। २. विवाह की एक रीति जिसमें विवाह के पूर्व वर-वधू के शरीर पर उबटन का लेप किया जाता है। | 
			
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				| उबटना					 : | अ० [सं० उद्वर्तन, पा० उब्बटन] उबटन मलना या लगाना। पुं०=उबटन। | 
			
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				| उबना					 : | स० [सं० उत्=ऊपर, वज् गम्=जाना] १. उगना। २. फलना-फूलना। ३. उन्नति करना। बढ़ना। अ०=ऊबना। | 
			
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				| उबरना					 : | अ० [सं० उद्वारण, पा० उब्बारन] १. उद्वार पाना। मुक्त होना। छूटना। २. बाकी बच रहना। ३. घात, फन्दे, संकट आदि से बचना या रक्षित रहना। उदाहरण—सो बनि पंडित ज्ञान सिखवत कूबरी हूँ ऊबरी जासो।—भारतेन्दु। | 
			
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				| उबराना					 : | स०=उबारना। | 
			
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				| उबलना					 : | अ० [सं० उद्=ऊपर+वलन=जाना] १. आग पर रखे हुए तरल पदार्थ का फेन के साथ ऊपर उठना। उबाल खाना। २. किनारे तक भर जाने के कारण आधार या पात्र से बाहर निकलना। ३. अन्दर भरे होने के कारण वेगपूर्वक बाहर निकलना। उभड़ना। ४. अन्दर के ताप के कारण शरीर के किसी अंग का फूल या सूजकर ऊपर उठना। उभरना। जैसे—आँखे उबलना। ५. बहुत अधिक अभिमान, क्रोध आदि के कारण अनुचित आचरण करना। मुहावरा—(किसी पर) उबल पड़ना =सहसा क्रोध में आकर खूब उलटी-सीधी या खरी-खोटी सुनाना। | 
			
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				| उबसन					 : | पुं० [सं० उद्वसन] नीरियल आदि की जटा जिससे रगड़कर बरतन आदि माँजे जाते हैं। गुझना। | 
			
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				| उबसना					 : | स० [सं० उद्वसन] बरतन माँजना। अ० [सं० उप+वास्गंध] १. बासी हो जाने के कारण खराब होना। जैसे—कचौरी या पूरी उबसना। २. अधीर या चंचल होना। ३. थककर शिथिल होना। | 
			
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				| उबसाना					 : | स० [हिं० उबसना] ऐसा काम करना जिससे कोई चीज उबसे। अ०=उबसना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उबहन					 : | स्त्री० [सं० उद्वहनी, पा० उब्बहनी] कुएँ से पानी निकालने की डोरी या रस्सी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उबहना					 : | स० [सं० उद्वहन, पा० उब्बहन-ऊपर उठना] १. हथियार उठाना या निकालना। २. उलीचकर पानी बाहर निकालना या फेंकना। ३. खेत जोतना। अ० ऊपर उठना। उभरना। वि० [सं० उपानह] जिसने जूता या पादुका न पहनी हो। जो नंगे पैर चल रहा हो।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उबहनी					 : | स्त्री०=उबहन। (डोरी या रस्सी)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उबाँत					 : | स्त्री० [सं० उद्वांत] उलटी। कै।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उबाक					 : | पुं० [अनु०] १. कै करने या मतली जाने की प्रवृत्ति। जी मिचलाना। २. मतली आने के फलस्वरूप मुँह से निकलनेवाला तरल पदार्थ। कै। वमन। | 
			
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				| उबाना					 : | पुं० [हिं० उबहनानंगा, वा० उ० नहीं+बाना] कपड़ा बुनने में राछ के बाहर रह जानेवाला सूत। स० [सं० उत्पादन] १. उगाना। २. बढ़ाना। वि० [सं० उपानह] जिसके पैर नंगे हो। जो जूता न पहने हो। | 
			
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				| उबार					 : | पुं० [सं० उद्वारण] १. उबरने या उबारने की क्रिया या भाव। उद्वार। छुटकारा। बचाव। पुं० दे० ‘ओहार’। | 
			
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				| उबारना					 : | स० [सं० उद्वारण] कष्ट या विपत्ति से उद्वार करना। संकट से छुड़ाना या मुक्त करना। | 
			
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				| उबारा					 : | पुं० [सं० उद्जल+वारणरोक] वह जल-कुंड जो कुओं आदि के निकट चौपायों के जल पीने के लिए बना रहता है। अहरी। | 
			
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				| उबाल					 : | पुं० [हिं० उबलना] १. उबलने की क्रिया या भाव। २. आग पर रखे हुए तरल पदार्थ का फेन छोड़ते हुए ऊपर उठना। उफान। ३. अस्थायी या क्षणिक आवेश, उद्वेग या क्षोभ। | 
			
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				| उबालना					 : | स० [सं० उद्वालन, पा० उब्बालन] १. तरल पदार्थ को आग पर रखकर इतना गर्म करना कि उसमें से फेन तथा बुलबुले उठने लगें। २. किसी कड़ी चीज को पानी में रखकर इस प्रकार खौलाना कि वह नरम हो जाय। जैसे—आलू या दाल उबालना। | 
			
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				| उबासी					 : | स्त्री० [सं० उश्वास] जँभाई। | 
			
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				| उबाहना					 : | स०=उबहना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उबिठना					 : | अ० [सं० अव+इष्ट, पा० ओइट्ठ] किसी चीज या बात से जी ऊबना। प्रवृत्ति या रुचि न रह जाना। उदाहरण—यह जानत हौं हृदय आपने सपनेउ न अघाइ उबीठे।—तुलसी। | 
			
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				| उबीधना					 : | अ० [सं० उद्विद्ध] १. उलझना। फँसना। २. गड़ना। धँसना। स०१. उलझाना। फँसाना। २. गड़ाना। धँसाना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उबीधा					 : | वि० [सं० उद्विद्ध] १. उलझाने या फँसानेवाला। २. उलझनों या झंझटो से भरा हुआ। ३. कँटीला। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उबेना					 : | वि०=उबहना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उबेरना					 : | स० १. =उभारना। २. =उबारना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उभइ					 : | वि०=उभय। | 
			
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				| उभटना					 : | अ० [हिं० उभरना] १. ऊपर उठना। उभरना। २. अहंकार या गर्व करना। शेखी करना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उभड़ना					 : | अ०=उभरना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उभना					 : | अ०=उठना (खड़े होना)। अ०=ऊबना। | 
			
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				| उभय					 : | वि० [सं० उभ+अयच्] जिन दो का उल्लेख हो रहा हो, वे दोनों। जैसे—उभय पक्षों ने मिलकर यह निश्चय किया है। | 
			
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				| उभय-चर					 : | वि० [सं० उभय√चर्(चलना)+ट] जल और स्थल दोनों में रहनेवाला। (जीव, जंतु)। | 
			
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				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उभयतः					 : | क्रि० वि० [सं० उभय+तसिल्] दोनों ओर से। दोनों पक्षों से। | 
			
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				| उभयतो-मुख					 : | वि० [सं० ब० स०] [स्त्री०उभयतो-मुखी] १. जिसके दोनों ओर मुँह हों। २. दोनों ओर अथवा दो विभिन्न दिशाओं में गति,नति या प्रवृत्ति रखनेवाला। | 
			
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				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उभय-मुखीवि					 : | १. =उभयतो-मुख। २. =गर्भवती। | 
			
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				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उभय-लिंग (नी)					 : | वि० [सं० ब० स०] १. जिसमें स्त्री और पुरुष दोनों के चिन्ह्र या लक्षण हों। २. (व्याकरण में ऐसा शब्द) जो दोनों लिगों के समान रूप से प्रयुक्त होता हो। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उभयवादी (दिन्)					 : | वि० [सं० उभय√वद् (बोलना)+णिनि] १. दोनों ओर से बोलने या दोनों तरह की बातें कहनेवाला। २. (बाजा) जिसमें स्वर भी निकलता हो और ताल भी। | 
			
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				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उभय-विध					 : | वि० [सं० ब० स०] दोनों प्रकारों या विधियों से संबंध रखनेवाला। दोनों प्रकार का। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उभय-व्यंजन					 : | वि० [सं० ब० स०] जिसमें स्त्री और पुरुष दोनों के चिन्ह या लक्षण वर्त्तमान हों। उभय-लिंगी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उभय-संकट					 : | पुं० [ष० त०] ऐसी स्थिति जिसमें दोनों ओर संकट की संभावना हो। धर्म-संकट। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उभय-संभव					 : | पुं० [ष० त०] ऐसी स्थिति जिसमें दोनों तरह की बातें हो सकती हो। वि०=उभय-संकट। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उभयात्मक					 : | वि० [सं० उभय-आत्मन्, ब० स० कप्] १. दोनों के योग से बना हुआ। जिसका संबंध दोनों से हो। २. दोनों प्रकारों या रूपों से युक्त। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उभयान्वयी (यिन्)					 : | वि० [सं० उभय-अन्वय, स० त०+इनि] जिसका अन्वय दोनों ओर या दोनों से हो सके। (व्या) जैसे—काव्य में उभयान्वयी पद या शब्द। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उभयार्थ					 : | वि० [सं० उभय-अर्थ, ब० स०] १. जिसके दो या दोनों अर्थ निकलते हों। द्वयर्थक। २. अस्पष्ट (कथन या बात) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उभयालंकार					 : | पुं० [सं० उभय-अलंकार, कर्म० स०] ऐसा अलंकार जिसमें शब्दालंकार और अर्थालंकार दोनों का योग हो। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उभरना					 : | अ० [सं० उद्भरण, प्रा० उब्भरण] १. नीचे के तल से उठ या निकलकर ऊपर आना। जैसे—अंकुर उभरना। २. किसी आधार या समतल स्तर से कुछ-कुछ या धीरे-धीरे ऊपर उठना या बढ़ना। जैसे—गिल्टी, फोड़ा या स्तन उभरना। ३. ऊपर उठकर या किसी प्रकार उत्पन्न होकर अनुभूत या प्रत्यक्ष होना। उठना जैसे—दरद उभरना, बात उभरना। ४. इस प्रकार आगे आना या बढ़ना कि लोगों की दृष्टि में कुछ खटकने लगे। जैसे—आज-कल कुछ नये गुंडे (या रईस) उबरे हैं। ५. उत्पात, उपद्रव, विद्रोह आदि के क्षेत्रों में प्रकट या प्रत्यक्ष होना। जैसे—किसी पर-तन्त्र देश या प्रजा का उभरना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उभरौहाँ					 : | वि० [हिं० उभार+औहाँ (प्रत्य)] जो ऊपर की ओर उठ या उभर रहा हो। २. उभरने की प्रवृत्ति रखनेवाला। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उभाड़					 : | पुं०=उभार। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उभाड़ना					 : | स०=उभारना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उभाना					 : | अ०=अमुआना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उभार					 : | पुं० [हिं० उभरना] १. उभरने की क्रिया या भाव। २. वह अंश जो कुछ उभर कर ऊपर की ओर उठा या निकला ह। ३. ऊँचाई। ४. वृद्धि। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उभारदार					 : | वि० [हिं० उभार+फा० दार] १. उभरा या उठा हुआ। २. जो अपने अस्तित्व का अनुभव कर रहा हो। जैसे—यह नगीना (या बेल-बूटा) कुछ और उभारदार होना चाहिए था। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उभारना					 : | स० [हिं० उभड़न] १. किसी को उभरने में प्रवृत्त करना। २. कुछ करने के लिए उत्तेजित या उत्साहित करना। जैसे—भाई के विरुद्ध भाई को उभारना। स०=उबारना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उभिटना					 : | अ० [हिं० उबीठना] १. ठिठकना। २. हिचकना। ३. भटकना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उभियाना					 : | स० [हिं० उभना=खड़ा होना] १. खड़ा करना। २. ऊपर उठाना। अ० १. =उभना। २. =उभरना। ३. =ऊबना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उभै					 : | वि० =उभय (दोनों)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उभ्भौं					 : | वि० =उभय। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उमंग					 : | स्त्री० [सं० उद्=ऊपर+मंग-चलना] १. आनंद, उत्साह आदि की ऐसी लहर जो मन में सहसा उत्पन्न होकर किसी को कोई काम करने में प्रवृत्त करे। झोंक। २. मन में होनेवाला आनंद और उत्साह। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उमंगना					 : | अ० [हि० उमग] उमंग से भरना या युक्त होना। उमंग में आना। अ०=उमड़ना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उमंड					 : | पु० [सं० उमंग] १. उमड़ने की क्रिया या भाव। २. आवेश। जोश। ३. तीव्रता। वेग। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उमंडना					 : | अ०=उमड़ना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उमकना					 : | अ० १. उमगना। २. =उखड़ना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उमग					 : | स्त्री०=उमंग।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उमगन					 : | स्त्री०=उमंग। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उमगना					 : | अ० [हिं० उमंग+ना] १. उमंग में आना। २. भरकर ऊपर उठना। उमड़ना। २. आवेश उत्साह आदि से भरकर अथवा किसी प्रकार के आधिक्य के कारण आगे बड़ना या किसी की ओर प्रवृत्त होना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उमगान					 : | स्त्री० [हिं० उमगना] उमगने की क्रिया या भाव। उमंग। उदाहरण—मुखनि मंद मुसकानि कृपा उमगानि बतावति।—रत्नाकर। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उमगाना					 : | सं० [हिं० उमगना का स०] किसी को उमंग से युक्त करना। उमंग में लाना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उमचना					 : | अ० [सं० उन्मञ्च-ऊपर उठना] १. चकित होना। चौंकना। २. चौकन्ना होना। अ०-१. =हुमचना। २. =चौकना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उमड़					 : | स्त्री० [सं० उन्मण्डन्] उमड़ने की क्रिया या भाव। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उमड़ना					 : | अ० [सं० उम-भरना या हिं० उमगना] १. जलाशय विशेषतः नदी में पूरी तरह से भर जाने पर जल का बाहर निकलकर चारों ओर फैलना। जैसे—(क) घटा या बादल उमड़ना। (ख) तमाशा देखने के लिए भीड़ उमडना। पद-उमड़ना-घुमड़ना-घुमड़कर इधर-उधर चक्कर लगाना और छितराना। ३. किसी कोमल मनोवेग के कारण दया आदि उत्पन्न होना। जी भर आना। जैसे—उसे विलाप करते देखकर मेरा मन भी उमड़ आया। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उमड़ाना					 : | स० [हिं० उमडना] किसी को उमड़ने में प्रवृत्त करना। अ०=उमड़ना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उमदगी					 : | स्त्री० =उम्दगी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उमदना					 : | अ० [सं० उन्मद] उन्मत होना। मस्ती पर आना। अ०=उमड़ना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उमदा					 : | वि०=उम्दा। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उमदाना					 : | अ० [सं० उन्मद] १. उमंग में आना। २. मस्त होना। स० किसी को उमंग में लाना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उमर					 : | स्त्री० [अ० उम्र] १. अवस्था। वय। २. सारा जीवन-काल। आयु। जैसे—उमर भर उन्होंने कोई काम नहीं किया। | 
			
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				| उपरण					 : | पुं० [हिं० सुमरण] (स्मरण) के अनुकरण पर बना हुआ एक निरर्थक शब्द। उदाहरण—तेरो हि उमरण तेरोहि सुमरण तेरोहि ध्यान धरूँ।—मीराँ।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उमरती					 : | स्त्री० [सं० अमृत] एक प्रकार का पुराना बाजा। | 
			
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				| उमरा					 : | पुं० [अ० अमीर का बहुवचन] अमीर या सरदार लोग। | 
			
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				| उमराव					 : | पुं० १. उमरा। २. अमीर। (रईस या सरदार)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उमरी					 : | स्त्री० [देश] एक पौधा जिसे जलाकर सब्जी बनाते हैं। मचोल। | 
			
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				| उमस					 : | स्त्री० [सं० ऊष्म] वर्षा ऋतु की ऐसी गरमी जो हवा बंद हो जाने पर लगती है। | 
			
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				| उमहना					 : | अ० [उन्मंथन, प्रा० उम्महन] १. भर कर ऊपर आना। उमड़ना। २. घिरना। छाना। ३. उमंग में आना। उदाहरण—को प्रति उत्तर देय सखि सुनि लोल विलोचन यों उमहे री।—केशव। | 
			
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				| उमहाना					 : | स० [क्रि० उमहना का स० रूप] उमहने में प्रवृत्त करना। उदाहरण—कथा गंगा लागी मोहिं तोरी उहि रस-सिंधु उमहायो।—सूर। | 
			
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				| उमा					 : | स्त्री० [सं० उ-मा, ष० त० या० उ√मो (मान करना)+क-टाप्] १. शिव जी की पत्नी, पार्वती। गौरी। २. दुर्गा। ३. कीर्ति। ४. कांति। ५. ब्रह्मज्ञान या ब्रह्मविद्या। ६. शांति। ७. चंद्रकांत मणि। ८. रात्रि। रात। ९. हलदी। १. अलसी का पौधा। ११. मदिरा नामक चंद का एक नाम। | 
			
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				| उमाकना					 : | स० [?] १. उखाड़ या खोदकर फेकना। उखाडना। २. नष्ट करना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उमाकांत					 : | पुं० [ष० त०] उमा अर्थात् पार्वती के पति, शिव। शंकर। | 
			
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				| उमाकी					 : | वि० [हिं० उमाकना] [स्त्री० उमाकिनी] उखाड़ या खोदकर फेंक देनेवाला। | 
			
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				| उमा-गुरु					 : | पुं० [ष० त०] हिमाचल। | 
			
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				| उमाचना					 : | स० [सं० उन्मञ्चन-ऊपर उठाना] १. ऊपर उठाना। २. उभारना। ३. निकालना। ४. हुमचना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उमा-जनक					 : | पुं० [ष० त० स०] हिमाचल। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उमाद					 : | पुं०=उन्माद।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उमा-घव					 : | पुं० [ष० त० स०] शिव। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उमा-नाथ					 : | पुं० [ष० त० स०] शिव। | 
			
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				| उमा-पति					 : | पुं० [ष० त० स०] शिव। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उमाव					 : | पुं०=उमाह (उमंग)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उमा-सुत					 : | पुं० [ष० त० स०] १. कार्तिकेय। २. गणेश। | 
			
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				| उमाह					 : | पुं० [सं० उद्+हिं० मह, उमगाना, उत्साहित करना] १. उत्साह। २. उमंग। | 
			
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				| उमाहना					 : | अ० [?] भर कर ऊपर आना। स०=उमहाना। अ०=उमहना। | 
			
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				| उमाहल					 : | वि० [हिं० उमाह+ल (प्रत्यय)] १. उमंग से भरा हुआ। २. उत्साहपूर्ण। | 
			
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				| उमेठना					 : | स्त्री० [सं० उद्वेष्टन] १. उमेठने की क्रिया या भाव। २. उमेठने से पड़ी हुई ऐठन या बल। | 
			
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				| उमेठना					 : | स० [सं० उद्वेष्टन] किसी वस्तु को इस प्रकार घुमाते हुए मरोड़ना कि उसमें बल पड़ जाय। ऐंठना। जैसे—किसी के कान उमेठना। अ० ऐंठ या रूठकर बैठना। उदाहरण—मानिक निपुन बनाय निलय मै धनु उपमेय उमेठी।—सूर। | 
			
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				| उमेठवाँ					 : | वि० [हिं० उमेठना] १. जो उमेठकर घुमाया या चलाया जाता हो। २. जिसमें किसी प्रकार का बल पड़ा हो। जिसमें ऐंठन घुमाव या चक्कर हो। | 
			
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				| उमेठी					 : | स्त्री० [हिं० उमेठना] १. उमेठने की क्रिया या भाव। २. दंड देने के लिए किसी का कान पक़ड़कर उसे जोर से उमेठने की क्रिया। जैसे—एक उमेठी देगें, अभी सीधे हो जाओगे। | 
			
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				| उमेड़ना					 : | स०=उमेठना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उमेदवार					 : | पुं०=उम्मेदवार। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उमेदवारी					 : | स्त्री०=उम्मेदवारी। | 
			
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				| उमेलना					 : | स० [सं० उन्मीलन] १. खोलना। २. प्रकट या स्पष्ट करना। ३. वर्णन करना, कहना या बतलाना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उमेह					 : | स्त्री० [हिं० उमाह] उमंग। उदाहरण—हँसि-हँसि कहै बात अधिक उमेह की।—हरिश्चन्द्र। | 
			
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				| उम्दगी					 : | स्त्री० [फा०] उम्दा (अच्छा या बढ़िया) होने की अवस्था या भाव। अच्छाई। खूबी। | 
			
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				| उम्दा					 : | वि० [अ० उम्दः] जो देखने में अथवा गुण, विशेषता आदि के विचार से अच्छा और बढ़िया हो। उत्तम। श्रेष्ठ। | 
			
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				| उम्मट					 : | पुं० [?] एक प्राचीन देश का नाम। | 
			
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				| उम्मत					 : | स्त्री० [अ०] १. सामाजिक वर्ग या समूह। २. किसी पैगंबर या मत के अनुयायियों का समाज या समूह। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उम्मना					 : | अ०=उमड़ना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उम्मस					 : | स्त्री०=उमस। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उम्मी					 : | स्त्री० [सं० उम्बी] गेहूँ आदि की बरी बाल। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उम्मीद					 : | स्त्री०=उम्मेद। | 
			
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				| उम्मेद					 : | स्त्री० [फा० उम्मीद] १. मन का यह भाव कि अमुक काम हो जायगा। आशा। २. आसरा। भरोसा। ३. (स्त्रियों की बोलचाल में) गर्भवती होने की अवस्था जिसमें संतान होने की आशा होती है। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उम्मेदवार					 : | पुं० [फा०] १. जिसे किसी प्रकार की आशा या उम्मेद हो। २. किसी पद पर चुने जाने या नियुक्त होने के लिए खड़ा होनेवाला या अपने आपको उपस्थित करनेवाला व्यक्ति। ३. काम सीखने या नौकरी पाने की आशा से कहीं बिना वेतन लिये या थोड़े वेतन पर काम करनेवाला व्यक्ति। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उम्मेदवारी					 : | स्त्री० [फा०] १. उम्मेदवार होने की अवस्था या भाव। २. आशा। आसरा। ३. गर्भवती होने की अवस्था जिसमें संतान होने की आशा होती है। (स्त्रियाँ)। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उम्र					 : | स्त्री० [अ०] १. काल-मान के विचार से जीवन का उतना समय जितना बीत चुका हो। अवस्था। जैसे—उनके बड़े लड़के की उम्र दस बरस है। २. सारा जीवन-काल। आयु। जैसे—इस पेड़ की उम्र सौ बरस होती है। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उयबानी					 : | अ० [सं० जृभण] जँभाई लेना। उदाहरण—उतनी कहत कुँवरि उयबानी।—नंददास। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उरंग					 : | पुं० [सं० उरस्√गम् (जाना)+ड, नि० सिद्ध] १. साँप। २. नागेकसर। | 
			
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				| उरंगम					 : | पुं० [सं० उरस्√गम् (जाना)+खच्-मुम्, सलोप।] साँप। | 
			
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				| उरःक्षय					 : | पुं० [ष० त० या ब० स०] फेफड़ों में होनेवाला क्षय नामक रोग। | 
			
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				| उर् (स्)					 : | पुं० [सं०√ऋ (गति)+असुन्] १. छाती। वक्षःस्थल। २. मन। हृदय। मुहावरा—उर आनना, धरना या लाना (क) हृदय में बसना या रखना। बहुत प्रिय समझना। (ख) किसी बात के विषय में मन में निश्चय करना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उरई					 : | स्त्री० [सं० उशीर] उशीर। खस। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उरकना					 : | अ०=रुकना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उरग					 : | पुं० [सं० उरस्√गम् (जाना)+ड, सलोप] [स्त्री० उरगी, उरगिनी] साँप। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उरगना					 : | स० [सं० ऊररीकरण] १. ग्रहण या स्वीकार करना। २. सहना। उदाहरण—जौ दुख देइ तो लै उरगो यह बात सुनो।—केशव।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उरग-भूषण					 : | पुं० [ब० स०] शिव। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उरग-राज					 : | पुं० [ष० त०] १. वासुकी। २. शेषनाग। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उरग-लता					 : | स्त्री० [मध्य० स०] नागवल्ली। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उरग-शत्रु					 : | पुं० [ष० त] १. गरुड़। २. मोर। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उरग-स्थान					 : | पुं० [ष० त०] पाताल। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उरगाद					 : | पुं० [सं० उरग√अद् (खाना)+अण्] १. गरुड़। २. मोर। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उरगाय					 : | वि० पुं०=उरुगाय।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उरगारि					 : | पुं० [सं० उरग-अरि, ष० त०] १. गरुड़। २. मोर। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उरगाशन					 : | पुं० [सं० उरग-अशन, ब० स०] १. गरुड़। २. मोर। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उरगिनी					 : | स्त्री०=उरगी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उरगी					 : | स्त्री० [सं० उरग+ङीष्] सर्पिणी। साँपिन। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उर-घर					 : | पुं० [सं० उर+हिं० घर] १. वक्षःस्थल। छाती। २. मन। हृदय। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उरज, उरजात					 : | पुं०=उरोज (स्तन)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उरझना					 : | अ०=उलझना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उरझाना					 : | स०=उलझाना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उरझेर					 : | पुं० [?] हवा का झोंका। उदाहरण—पानी को सो घेर किधौं पौन उरझेर किधौ।—सुंदर।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उरझेरी					 : | स्त्री० [सं० अवरुंधन-उलझन] १. उलझन। दुविधा। २. व्याकुलता। ३. दे० ‘उरझेर’।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उरण					 : | पुं० [सं०√ऋ (गमन)+क्युच्-अन] १. भेड़ा या मेढ़ा। २. सौर जगत का एक ग्रह जो शनि और वरुण के बीच में पड़ता है और जिसका पता सन् १78१ में लगा था। वारुणी। (यूरेनस) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उरणक					 : | पुं० [सं० उरण+कन्] १. भेड़ा। २. बादल। मेघ। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उरणी					 : | स्त्री० [सं० उरण+ङीष्] भेड़। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उरद					 : | पुं० [सं० ऋद्ध, पा० उद्ध] [स्त्री० अल्पा० उरदी] १. एक प्रसिद्ध पौधा जिसकी फलियों की दाल बनती है। २. उक्त पौधे की फलियाँ या उनमें निकलने वाले दाने, जिनकी दाल बनती है। माष। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उरदावन					 : | स्त्री०=उनचन।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उरदिया, खड़ी					 : | स्त्री० दे० ‘खडिया’। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उरदी					 : | स्त्री० ‘उरद’ का स्त्री० अल्पा० रूप। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उरध					 : | वि० अव्य० =ऊर्ध्व। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उरधारना					 : | स० [हिं० उधड़ना] १. छितराना। बिखेरना। २. उधेड़ना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उरन					 : | पुं०=उरण। (भेड़ा)। वि०=उऋण।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उरना					 : | अ०=उड़ना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उरप-तरप					 : | पुं० [?] नृत्य का एक अंग या अंग-संचालक का एक प्रकार। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उरबसी					 : | स्त्री० [हिं० उर+बसना] १. वह जो हृदय में बसी हो, अर्थात् प्रेमिका। २. एक प्रकार का गले का गहना। स्त्री० =उर्वशी (अप्सरा)। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उरबी					 : | स्त्री०=उर्वी (पृथ्वी)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उर-मंडन					 : | पुं० [सं० उरोमंडन] वह जो हृदय की शोभा बढ़ाता हो। अर्थात् परम प्रिय। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उरमना					 : | अ० [सं० अवलम्बन, प्रा० ओलंबन] लटकना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उरमाना					 : | स० [हिं० उरमना] लटकाना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उरमाल					 : | पुं०= रुमाल।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उरमी					 : | स्त्री०=ऊर्मी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उररना					 : | स० [अनु०] जोर से बुलाना। पुकारना। अ० १. घुसना या धँसना। २. चाव से आगे बढ़ना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उरल					 : | स्त्री० [देश०] पश्चिमी पंजाब की एक प्रकार की भेड़। वि० [सं० उर+कलच्] १. विशाल। २. विस्तीर्ण। ३. शांत। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उरला					 : | वि० [सं० अपर, अवर+हिं० ला (प्रत्यय)] १. इस ओर या तरफ का। इधर का। ‘परला’ का विपर्याय। २. पीछे का० पिछला। वि० [सं० विरल] अनोखा। अद्भुत। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उरविजा					 : | पुं०=उर्विज। (मंगलग्रह)। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उरश					 : | पुं० [सं० ] सिंधु और झेलम के बीच का वह प्रदेश जो पश्चिमी गंधार और अभिसार के बीच में था। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उरश्छद					 : | पुं० [सं० उरस्√छद्(छा लेना)+णइच्-च, त्, श्] =उरस्त्राण। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उरस					 : | वि० [सं० निरस] जिसमें रस न हो। बिना रस का। पुं० [सं० उरस्] १. छाती। वक्षःस्थल। २. हृदय। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उरसना					 : | स० [हिं० उड़सना] १. ऊपर-नीचे या उथल-पुथल करना। २. ढाँकना। उदाहरण—पट पटि उरसि संथजुत बंक निहारत।—लोकगीत। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उरसिज					 : | पुं० [सं० उरसि√जन् (उत्पन्न होना)+ड] उरोज। स्तन। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उरसि-रुह					 : | पुं० [सं० उरसि√रुह्(उत्पन्न होना)+क] स्तन। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उरस्क					 : | पुं० [सं० उरस्+कन्] १. छाती। वक्षःस्थल। २. हृदय। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उरस्त्राण					 : | पुं० [सं० उरस्√त्रा (रक्षा करना)+ल्युट-अन] युद्ध में छाती की रक्षा के लिए उस पर बाँधने का कवच। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उरस्य					 : | वि० [सं० उरस्+य] उर-संबंधी। पुं० १. औरस पुत्र। २. सेना का अगला भाग। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उरस्वान (स्वत्)					 : | वि० [सं० उरस्+मतुप्] जिसका उर या वक्षःस्थल चौड़ा हो। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उरहना					 : | पुं०=उलहना। स०=उरेहना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उरा					 : | स्त्री० [सं० उर-टाप् (उर्वी)] पृथिवी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उराउ					 : | पुं०=उराव। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उराट					 : | पुं० [सं० उरस्] छाती (डिं०)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उराना					 : | अ०=ओराना। (समाप्त होना)। स० दे० ‘उड़ाना’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उराय					 : | पुं०=उराव। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उरारा					 : | वि० [सं उरु] विस्तृत। वि०=उरला।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उराव					 : | पुं० [सं० उरस्+आव(प्रत्यय)] १. उमंग। २. चाव। चाह। ३. साहस। हिम्मत।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उराहना					 : | पुं०=उलाहना। स० उलाहना देना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उरिण					 : | वि०=उऋण। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उरिम					 : | वि०=उऋण।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उरु					 : | वि० [सं०√उर्णु (अच्छादन करना)+कु, णुलोप, ह्रस्व] १. लंबा-चौड़ा। विस्तीर्ण। २. बड़ा। विशाल। पुं० -जांघा। जाँघ। | 
			
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				| उरु-क्रम					 : | वि० [सं० उरु√क्रम्(डग भरना)+अच् या ब० स०] १. लंबे-लंबे डग भरनेवाला। २. पराक्रमी। पुं० १. वामन। (अवतार) का एक नाम। २. सूर्य। ३. शिव। | 
			
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				| उरुग					 : | पुं० [स्त्री० उरुगिनी] उरग। (साँप) | 
			
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				| उरुगाय					 : | वि० [सं० उर√गै(गान करना)+घञ्] १. गाये जाने के योग्य। गेय। २. जिसका गुणगान हुआ हो। प्रशंसित। ३. लंबा-चौड़ा। प्रशस्त। पुं० १. विष्णु। २. सूर्य। ३. इंद्र। ४. सोम। ५. प्रशस्त स्थान। | 
			
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				| उरुज					 : | पुं० उरोज (स्तन)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उरुजना					 : | अ० उलझना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उरु-जन्मा (न्मन्)					 : | वि० [सं० ब० स०] अच्छे वंश में उत्पन्न। कुलीन। | 
			
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				| उरुवा					 : | पुं० [सं० ] उल्लू की जाति का एक प्रकार का पक्षी। रुरुआ। | 
			
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				| उरु-विक्रम					 : | वि० [सं० ब० स०] पराक्रमी। | 
			
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				| उरूज					 : | पुं० [अ०] १. उन्नति। २. बढ़ती। वृद्धि। | 
			
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				| उरूसी					 : | पुं० [?] एक प्रकार का वृक्ष जिससे गोद और रंग निकलता है। एक जापानी वृक्ष जिसके तने से एक प्रकार का गोंद निकाला जाता है। उससे रंग और बारनिश बनाई जाती है। | 
			
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				| उरे					 : | अव्य० [सं० अवर] १. इस ओर। इधर। २. निकट। पास। उदाहरण—छगन-मगन वारे कंधैया उरे धौ आइ रे।—नंददास।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उरेखना					 : | स० दे० अवरेखना। स० [सं० आलेखन] १. चित्र बनाना या अंकित करना। २. दे० ‘अवरेखन’।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उरेझा					 : | पुं०=उलझन।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उरेब					 : | वि० [फा० औरेब] १. टेढ़ा। २. तिरछा। ३. छलपूर्ण। पुं० छल-कपट। धूर्त्तता।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उरेह					 : | पुं० [सं० उल्लेख] १. उरेहने की क्रिया या भाव। चित्रकारी। २. उरेर कर बनाई हुई चीज। चित्र। | 
			
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				| उरेहना					 : | स० [सं० उल्लेखन] १. चित्र अंकित करना, बनाना या लिखना। २. रँगना। जैसे—नयन उरेहना। | 
			
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				| उरैड़					 : | स्त्री० [हिं० उरैड़ना] १. उरैड़ने की क्रिया या भाव। २. बहुत अधिक मात्रा में आ पड़ना। ३. प्रवाह। बहाव।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उरैड़ना					 : | स० [हिं० उँड़ेलना] १. उँड़ेलना। २. गिराना। | 
			
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				| उरोगम					 : | पुं० [सं० उरस्√गम् (जाना)+अच्] सर्प। साँप। | 
			
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				| उरोग्रह					 : | पुं० [सं० उरस्-ग्रह, ब० स०] एक प्रकार का रोग जिसमें छाती और पसलियों में दरद होता है। (प्ल्यूरिसी)। | 
			
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				| उरोज					 : | पुं० [सं० उरस्√जन्+ड] स्त्री की छाती। कुच। स्तन। | 
			
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				| उरोरुह					 : | पुं० [सं० उरस्√रुह्(उत्पन्न होना)+क] उरोज (स्तन)। | 
			
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				| उर्जित					 : | वि० [सं० ऊर्जित] १. बलवान। २. प्रसिद्ध। विख्यात। ३. अंहकारी। ४. परित्यक्त। | 
			
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				| उर्ण					 : | पुं० [सं० ऊर्ण] दे० ऊर्ण। (उर्ण के यौ के लिए दे० ‘ऊर्ण’ के यौ०) | 
			
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				| उर्दू					 : | स्त्री० [तु०] १. छावनी का बाजार। २. हिंदी भाषा का वह रूप जिसमें अरबी फारसी के शब्द अधिक होते हैं तथा जो फारसी लिपि में लिखी जाती है। | 
			
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				| उर्ध					 : | वि०=ऊर्ध्व।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उर्फ-					 : | पुं० [अ०] उपनाम। (दे०) | 
			
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				| उर्मि					 : | स्त्री०=ऊर्मि (लहर)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उर्वर					 : | वि० [सं० उरु√ऋ (गति)+अच्] [स्त्री० उर्वरा०] १. (भूमि) जिसमें ऐसे तत्त्व निहित हो जो पौधों फसलों आदि के जीवन और विकास के लिए अत्यावश्यक और महत्वपूर्ण हों। उपजाऊ। (फर्टाइल) २. लाक्षणिक अर्थ में (तत्त्व) जिसकी उत्पादन-शक्ति बहुत अधिक हो। जैसे—उर्वर मस्तिष्क। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उर्वरक					 : | पुं० [सं० उर्वर+कन्] रासायनिक प्रक्रियाओं से प्रस्तुत की हुई ऐसी खाद जो खेतों में उन्हें उपजाऊ या उर्वर बनाने के लिए डाली जाती है। (फर्टिलाइजर) | 
			
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				| उर्वरता					 : | स्त्री० [सं० उर्वर+तल्-टाप्] १. उर्वर होने की अवस्था या भाव। उपाजऊपन २. उत्पादन शक्ति बहुत अधिक होने का भाव। | 
			
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				| उर्वरा					 : | स्त्री० [सं० उर्वर+टाप्] १. उपजाऊ या उर्वर भूमि। २. पृथ्वी। ३. एक अप्सरा का नाम। वि०=उर्वर। | 
			
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				| उर्वशी					 : | स्त्री० [सं० उरु√अश्(व्याप्त करना)+क-ङीष्] १. पुराणानुसार इंद्र लोक की एक अप्सरा, जिसका विवाह राजा पुरूरवा से हुआ था। २. महाभारत के अनुसार एक प्राचीन तीर्थ। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उर्वारु					 : | पुं० [सं० उरू√ऋ (गमन)+उण, वृद्धि, उपर, यण्] १. खरबूजा। २. ककड़ी। | 
			
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				| उर्विज					 : | पुं० [सं० उर्वीज] मंगल-ग्रह। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उर्विजा					 : | स्त्री०=उर्वीजा।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उर्वी					 : | वि० [सं०√ऊर्णु(आच्छादन करना)+कु, नलोप, ह्रस्व, ङीष्] १. विस्तृत। २. सपाट। स्त्री० १. विस्तृत क्षेत्र या तल। २. भूमि। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उर्वीजा					 : | वि० स्त्री० [सं० उर्वी√जन् (उत्पन्न करना)+ड-टाप्] जो पृथ्वी से उपजा हो। जिसका जन्म पृथ्वी से हुआ हो। स्त्री०=सीता। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उर्वी-धर					 : | पुं० [सं० त० स०] १. वह जिसने पृथ्वी को धारण किया हो, अर्थात् शेषनाग। २. पर्वत। पहाड़। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उर्वी-पति					 : | पुं० [ष० त० स०] पृथ्वी का स्वामी अर्थात् राजा। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उर्वी-रुह					 : | पुं० [सं० उर्वी√रूह् (उगना)+क] पेड़-पौधे। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उर्वीश					 : | पुं० [उर्वी-ईश,ष०त०] =उर्वी-पति। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उर्स					 : | पुं० [अ०] १. मुसलमानों में किसी की मरण-तिथि पर बाँटा जानेवाला भोजन। २. किसी की मरण-तिथि पर किये जानेवाले श्रद्धा-पूर्ण कार्य या कृत्य। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उलंग					 : | वि० [सं० उत्रग्न] नंगा। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उलंगना					 : | स०=उलंघना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उलंघन					 : | पुं०=उल्लंघन।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उलंघना					 : | स० [सं० उल्लघंन] १. किसी चीज को लाँघते हुए इधर से उधर जाना। २. किसी की आज्ञा या आदेश अथवा किसी परंपरा के विरुद्ध आचरण करना। उल्लघंन करना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उलका					 : | स्त्री०=उल्का।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उलगट					 : | स्त्री० [हिं० उलगना] कूद-फाँद।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उलगना					 : | अ० [सं० उल्लंघन] कूदना। फाँदना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उलगाना					 : | स० [हिं० उलगना] किसी को कूदने या फाँदने में प्रवृत्त करना। कुदाना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उलचना					 : | स०=उलीचना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उलच (छ) ना					 : | स०=उलीचना। अ०=उलछना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उलछा					 : | पुं० [हिं० उलचना] खेतों में हाथ से छितरा या बिखेरकर बीज डालने की एक रीति। छिटका बोना। पबेरा। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उलछारना					 : | स० =उछालना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उलझन					 : | स्त्री० [हिं० उलझना] १. उलझने की क्रिया या भाव। २. किसी कार्य में सामने आनेवाली ऐसी पेचीली या झंझट की स्थिति जिसमें किसी प्रकार का निराकरण या निश्चय करना बहुत कठिन हो। झगड़े-झंझट की स्थिति। ३. डोरी आदि में एक साथ जगह-जगह पड़नेवाली बहुत सी पेचीली गाँठें। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उलझना					 : | अ० [सं० अवसन्धन, पा० ओरुज्झन, पुं० हिं० अरुझना] १. किसी चीज का ऐसी परिस्थिति में पड़ना जहाँ चारों ओर अटकाने, फँसाने या रोक रखनेवाले तत्त्व या बाते हों। जैसे—काँटों में कपड़ा उलझना। उदाहरण—पाँख भरा तन उरझा कित मारे बिनु बाँच।—जायसी। मुहावरा—उलझ-पुलझ कर रह जाना=ऐंसी पेचीली स्थिति में पड़े रहना कि कोई अच्छा परिणाम या फल निकल सके। उदाहरण—उलझि पुलझि के मरि गए चारिउ वेदन माँहि।—कबीर। २. किसी चीज के अंगों का आपस में या दूसरी चीज के अंगों के साथ इस प्रकार फँसकर लिपटना कि सब गुथ या मिलकर बहुत कुछ एक हो जायँ और सहज में एक-दूसरे से अलग न हो सके। टेढ़े-मेढ़े होकर या बल खाते हुए जगह-जगह अटकना या फँसना। जैसे—पतंग की डोर उलझना। उदाहरण—मोहन नवल सिगार बिटप-सों उरझी आनँद बेल।-सूर। ३. घुमाव-फिराव की ऐसी पेचीली या विकट स्थिति में पड़ना कि जल्दी छुटकारा, निकास या बचाव न हो सके। उदाहरण—ज्यौं-ज्यौं सुरझि भज्यौं चहैं, त्यौं-त्यौं उरझत जात०-बिहारी। ४. झंझट या झगड़े-बखेड़े के काम में इस प्रकार फँसना कि जल्दी छुटकारा न हो सके। ५. ऐसी स्थिति में पड़ना जहाँ चारों ओर रोक रखनेवाली आकर्षक या मोहक बातें हों। उदाहरण—अँखियाँ श्यामसुदर सों उरझी,को सुरझावे हो गोइयाँ।—गीत। ६. किसी से जानबूझ कर इस प्रकार की बातें या व्यवहार करना अथवा उसके कामों में बाधक होना कि झगड़ा या बखेड़ा खड़ा हो और पर-पक्ष उससे निकलने या बचने न पावे। जैसे—हर किसी से उलझने की तुम्हारी यह आदत अच्छी नहीं है। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उलझा					 : | पुं० उलझन। उदाहरण—बीर वियोग के ये उलझा निकसै जिन रे जियरा हियरा तें।—ठाकुर।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उलझाना					 : | स० [हिं० उलझना का स० रूप] १. ऐसा काम करना जिससे कोई (वस्तु या व्यक्ति) कहीं उलझे। किसी को उलझने में प्रवृत्त करना। २. दो या कई चीजों को एक-दूसरे में अँटकाना या फँसाना। ३. किसी को किसी काम, बात-चीत आदि मे इस प्रकार फँसाये रखना कि दूसरे को उसका ध्यान न होने पावे। ४. दूसरों को आपस में लड़ाना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उलझाव					 : | पुं० [हिं० उलझना] १. उलझने की क्रिया या भाव। २. उलझन या उससे युक्त स्थिति। ३. झगड़ा। बखेड़ा। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उलझेड़ा					 : | पु० =उलझन या उलझाव। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उलझौहाँ					 : | वि० [हिं० उलझना] १. उलझने या उलझाने की प्रवृत्ति रखनेवाला। २. किसी प्रकार अपने साथ उलझाकर रखनेवाला। ३. लड़ाई-झगड़ा करने या कराने की प्रवृत्ति रखनेवाला। झगड़ालू। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उलटकंबल					 : | पुं० [देश] एक प्रकार की झाड़ी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उलटकटेरी					 : | स्त्री० [हिं० उष्ट्रकंट] ऊँट-कटारा। (पौधा) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उलटना					 : | अ० [सं० उद्+हिं० लु=लुढ़कना] १. सीधा की विपरीत दिशा या स्थिति में जाना य होना। उलटा होना। २. नियत साधारण या सीधे मार्ग से पीछे की ओर आना, मुड़ना या हटना। पीछे घूमना या पलटना। जैसे—रास्ता चलते समय उलटकर किसी की ओर देखना। मुहावरा—(किसी की किसी पर) उलट पड़ना (क) अचानक क्रुद्ध होकर किसी प्रकार का आक्रमण या आघात करना। जैसे—इस जरा-सी बात से बिगड़कर सारी सेना नगर पर उलट पड़ी। (ख) अचानक बिगड़ खड़े होना या भली-बुरी बातें कहने लगना। जैसे—आखिर मैने तुम्हारा क्या बिगाड़ा या जो तुमने अकारण मुझ पर ही उलट पड़ें। ३. ऐसी स्थित में आना या होना कि नीचे का भाग ऊपर और ऊपर का भाग नीचे हो जाय, अथवा सीधे खड़े न रहकर दाहिने या बाएँ बल गिरना। जैसे—गाड़ी या दवात उलटना। मुहावरा—कलेजा उलटनादे। कलेजा के अन्तर्गत। ४. अच्छी दशा से बुरी दशा में आना या होना। जैसे—इस वर्षा से सारी फसल उलट गई। ५. जैसे साधारणयतः रहना या होना चाहिए उसके ठीक विपरीत या विरुद्ध हो जाना। जैसे—(क) इस प्रकार का सारा अर्थ ही उलट जाता है। (ख) पहले तो ठीक तरह से बातें करता, पर तुम्हें देखते ही न जाने क्यों बिलकुल उलट गया। ६. अस्त-व्यस्त या नष्ट-भ्रष्ट होना। जैसे—अब तो दुनिया की सब बातें ही उलट रही है। मुहावरा—(किसी व्यक्ति का) उलट जानाभारी आघात, उग्र प्रभाव आदि के कारण, अचेत या बेसुध होकर गिर पड़ना। जैसे—(क) गाँजे का दम लगाते ही वह उलट गया। (ख) मंदी के एक ही धक्के में वह उलट गया। (परीक्षा, प्रयत्न आदि में) उलट जानाअनुत्तीर्ण या विफल होना। (मादा चौपाये का) उलट जानाभरे जाने के बाद अर्थात् पहले गर्भ धारण कर लेने पर भी तुरंत गर्भस्राव हो जाना। ७. बहुत अधिक मात्रा, मान या संख्या में आकर उपस्थित या एकत्र होना अथवा पहुँचना। (प्रायः संयोज्य क्रिया पडऩा के साथ प्रयुक्त) जैसे—(क) किसी के घर धन-संपत्ति उलट-पड़ना। (ख) कुछ देखने के लिए कहीं जन-समूह उलट पड़ना। स० १. जो सीधा हो उसके विपरीत दशा, दिशा या रूप में लाना। उलटा करना। जैसे—(क) पड़ा हुआ परदा या बिछी हुई चाँदनी उलटना। (ख) किसी से लड़ने के लिए आस्तीन उलटना। (चढ़ाना) २. नियत या सीधे मार्ग से हटाकर इधर-उधऱ या पीछे की ओर करना,मोड़ना या लाना। जैसे—चलता हुआ चक्कर या घड़ी की सुई उलटना। ३. ऐसी स्थिति में लाना कि नीचे का भाग ऊपर और ऊपर का भाग नीचे हो जाए, अथवा दाहिने या बाएँ किसी बल गिर पड़ना। जैसे—लाइन पर पत्थर रखकर गाड़ी उलटना। ४. पात्र आदि खाली करने के लिए मुँह इस प्रकार नीचे करना कि उसमें भरी हुई चीज नीचे गिर पड़े। जैसे—(क) पानी गिराने के लिए गिलास या घड़ा उलटना। (ख) रुपये आदि एकदम से निकालने के लिए थैली उलटना। विशेष—इस अर्थ में इस शब्द का प्रयोग आधार या पात्र के संबंध में भी होता है और उसमें भरी या रखी हुई चीज के संबंध में भी। जैसे—(क) स्याही की दावत उलटना,और दवात की स्याही उलटना। ५. एक तल या पार्श्व नीचे करके दूसरा तल या पार्श्व ऊपर लाना। जैसे—पुस्तक के पृष्ठ या बही के पन्ने उलटना। ६. आघात, प्रभाव आदि के द्वारा अचेत या बेसुध करना। अथवा किसी प्रकार गिराना या पटकना। जैसे—थप्पड़ मारकर (या शराब पिलाकर) किसी को उलटना। ७. (आज्ञा या बात) न मानना। अवज्ञा-पूर्वक किसी की बात की उपेक्षा करना। जैसे—तुम तो हमारी हर बात उसी तरह उलटा करते हो। ८. जैसी बात या व्यवहार हो, उसका उसी रूप में या वैसा ही उत्तर देना या प्रतिकार करना। (प्रायः अनिष्ट या मंद प्रसंगों में प्रयुक्त) उदाहरण—आवत गारी एक है, उलटत होय अनेक।—कबीर। ९. खेत या जमीन कि मिट्टी खोदकर नीचे से ऊपर करना। १. (माला जपने के समय उनके मन के) बार-बार आगे बढ़ाते हुए ऊपर नीचे करते रहना। मुहावरा—(किसी की) नाम उलटना बार-बार किसी का नाम लेते रहना। रटना। ११. उलटी, कै या वमन करना। जैसे—जो कुछ खाया पीया था, वह सब उलट दिया। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उलट-पलट					 : | स्त्री० [हिं० उलटना+पलटना] चीजें बार-बार उलटने या पलटने की क्रिया या भाव। | 
			
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				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उलटना-पलटना					 : | [हिं० उलट-पलट] १. (किसी वस्तु का) नीचे वाला भाग ऊपर अथवा ऊपरवाला भाग नीचे करना। नीचे-ऊपर या ऊपर-नीचे करना। २. अस्त-व्यस्त करना। इधर का उधर करना ३. कुछ जानने,देखने या समझने के लिए चीजें या उनके अंग कभी ऊपर और नीचे करना। जैसे—कागज-पत्र, चिट्ठियाँ या पुस्तकें (अथवा उनके पृष्ट) उलटना-पलटना। | 
			
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				| उलट-पलट					 : | स्त्री० =उलट-पलट। | 
			
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				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उलट-फेर					 : | पुं० [हिं० उलटना+फेर] ऐसा परिवर्तन जिसमें अधिकतर चीजें, बातें या उनके क्रम बदल जाएँ। हेर-फेर। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उलटवाँसी					 : | स्त्री० [हिं० उलटा+सं० वाचा] साहित्य में ऐसी उक्ति या कथन (विशेषतः पद्यात्मक) जिसमें असंगति, विचित्र, विभावना, विषम, विशेषोक्ति आदि अलंकारों से युक्त कोई ऐसी विलक्षण बात कही जाती है जो प्राकृतिक नियम या लोक-व्यवहार के विपरीत होने पर भी किसी गूढ़ आशय या तत्त्व से युक्त होती है। जैसे—(क) पहिले पूत पाछे भइ माई। चेला के गुरू लागै पाई।—कबीर। (ख) समंदर लागी आगी माइ। नदियाँ जरि कोइला भई।—कबीर। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उलटा					 : | वि० [हिं० उलटना] १. जिसका ऊपर का भाग या मुँह नीचे हो गया हो और नीचे का भाग पेंदा ऊपर आ गया हो। औंधा। जैसे—उलटा गिलास, उलटी कटोरी या थाली। मुहावरा—उलटे मुँह गिरना (क) सिर के बल नीचे गिरना। (ख) लाक्षणिक रूप में, भारी आघात, भूल आदि के कारण ऐसी स्थिति में पडना या पहुँचना कि सहज में छुटकारा न हो सके। उलटे होकर टंगना-अधिक से अधिक या सारी शक्ति लगाना। सभी प्रकार के उपाय करना। जैसे—चाहे तुम उलटे होकरटँग जाओ, पर यह काम तुम्हारे किये न होगा। पद-उलटी खोपड़ी ऐसी बुद्धि या मस्तिष्क जिसमें हर बात अपने विपरीत रूप में दिखाई देती हो। उलटा तवा-बहुत ही काल-कलूटा (व्यक्ति या उसका वर्ण) २. नियत या परंपरागत क्रम, गति, प्रवाह आदि के विचार से जो ठीक, नियमित या स्वाभाविक न होकर उसके विपरीत हो। जिसकी क्रिया या गति पीछे की ओर, विपरीत दिशा में या असंगत और अस्वाभाविक हो। जैसे—आजकल उलटा जमाना है, इसी से हमारी अच्छी बात भी तुम्हें बुरी लगती है। मुहावरा—उलटा घड़ा बाँधना-अपना काम निकालने के लिए ऐसा उपाय या युक्ति करना कि विपक्षी धोखे में रह जाय और कुछ भी समझ न सके। उलटी साँस चलना-मरने के समय रुककर और क्रमशः ऊपर की ओर की साँस चलना। उलटी आँते गले पड़ना-लाभ के बदले में उलटे और अधिक हानि होना या हानि की संभावना होना। उलटी गंगा बहना-परंपरा से चली आई प्रथा या रीति के विपरीत आचरण या कार्य होना। (किसी को उलटे छुरे से मूँड़ना-किसी को खूब मूर्ख बनाकर उससे धन ऐँठना या अपना काम निकालना। (किसी को) उलटी पट्टी पढ़ाना किसी को कोई विपरीत या हानिकारक बात ऐसे ढंग से या ऐसे रूप में बतलाना या समजाना कि या उसी को ठीक या लाभदायक मान या समझ ले। (किसी के नाम की या नाम पर) उलटी माला फेरनातांत्रिक उपचार के ढंग पर निरंतर किसी के अपकार या अहित की कामना करना। बुरा मनाना। उलटे पैर फिरना या लौटना कहीं पहुँचते ही वहाँ से तुरंत लौट आना। चटपट वापस आना। जैसे—उन्हें यह पत्र देकर उलटे पैर लौट आना। पद-उलटा-पलटा,उलटा-सीधा (देखें)। ३. जो काल, संख्या आदि के क्रमिक विचार से आगे या पीछे या पीछे या आगे हो। इधर का उधर और उधर का इधर। जैसे—(क) इस इतिहास में कई तिथियाँ उलटी दी गयी है। (ख) इस पुस्तक में कई पृष्ठ उलटे लगे हैं। ४. दाहिना का विपरीत। बायाँ। जैसे—यह लड़का उलटे हाथ से सब काम करता है। अव्य० उलटे के स्थान पर प्रायः बूल से प्रयुक्त होनेवाला शब्द। दे० उलटे। पुं० पीठी, बेसन आदि से बनने वाला एक प्रकार का पकवान जिसे चिलड़ा या चीला भी कहते हैं। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उलटाना					 : | स० [हिं० उलटना] १. उलटना। २. उलटवाना। | 
			
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				| उलटा-पलटा					 : | वि० [प्रा० उल्लट-पल्लट] १. जिसका नीचे का कुछ ऊपर अथवा ऊपर का कुछ अंश नीचे किया गया हो। २. जिसमें किसी प्रकार का क्रम न हो। क्रम-विहीन। बेसिर-पैर का। ३. इधर-उधर का। अंड-बंड। ४. दे० ‘उलटा-सीधा’। | 
			
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				| उलटा-पलटी					 : | स्त्री० [हिं० उलटना+पलटना] १. बार-बार उलटने-पलटने की क्रिया या भाव। २. बार-बार होनेवाली अदल-बदल। फेर-फार। हेर-फेर। | 
			
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				| उलटा-पुलटा					 : | वि० उलटा-पलटा। | 
			
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				| उलटाव					 : | पुं० [हिं० उलटना] १. उलटने या उलटे जाने की क्रिया या भाव। २. पीछे की ओर पलटने या लौटाने की क्रिया या स्थिति। जैसे—नदी का उलटाव। | 
			
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				| उलटा-सीधा					 : | वि० [हिं० उलटा+सीधा] [स्त्री०उलटी-सीधी] १. क्रम, बनावट आदि के विचार से जिसका कुछ अंश तो सीधा या ठीक हो और कुछ अंश उलटा या बे-ठिकाने हो। २. कुछ अच्छा और कुछ बुरा। मुहावरा—(किसी को) उलटी-सीधी समझाना अपना उद्देश्य या स्वार्थ सिद्ध करने के लिए ऐसी बाते बतलाना या समझाना जो अंशतः उचित और अंशतः अनुचित हों। (किसी को) उलटी सीधी सुनाना-क्रोध या रोषपूर्वक बातें कहना। | 
			
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				| उलटी					 : | स्त्री० [हिं० उलटा० का स्त्री] १. कै। वमन। २. मालखंभ की एक कसरत जिसमें खिलाड़ी बीच में उलट जाता है। ३. कलैया। कलाबाजी। | 
			
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				| उलटी-बगली					 : | स्त्री० [हिं० उलटी+बगली] व्यायाम में मुदगल को पीठ पर से छाती की ओर इस प्रकार घुमाना कि मुट्ठी हर हाल में ऊपर रहे। | 
			
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				| उलटी रुमाली					 : | स्त्री० [फा० रुमाल] मुगदल भाँजने का एक प्रकार, जिसमें रुमाली के समान मुगदल की मुठिया उलटी पकड़कर मुगदल आगे की ओर ले जाते है। | 
			
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				| उलटी सरसों					 : | स्त्री० [हिं० उलटी+सरसों] ऐसी सरसों जिसकी कलियों का मुँह नीचे होता है। विशेष—यह टोने-टोटके और यंत्र-मंत्र के काम आती है। | 
			
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				| उलटे					 : | अव्य [हिं० उलटा] १. विपरीत दिशा या स्थिति में। जैसे—उलटे चलना। २. क्रम, नियम, न्याय, प्रथा आदि के विपरीत या विरुद्ध। ३. जैसा होना चाहिए, उसके प्रतिकूल या विपरीत। जैसे—नहीं होना चाहिए, उस तरह से। जैसे—(क) उलटे चोर कोतवाल को डाँटे। (ख) अपनी भूल तो मानते नहीं, उलटे मुझे ही दोष देते हो। | 
			
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				| उलठना					 : | अ०, स०=उलटना। | 
			
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				| उलथना					 : | अ० [सं० उद्+स्थल-जमना या दृढ़ होना, उत्थलन] १. ऊपर-नीचे होना। उथल-पुथल होना। २. उछलना। ३. उमड़ना। स० ऊपर नीचे करना। उलटना-पलटना। | 
			
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				| उलथा					 : | पुं० [हिं० उलथना] १. नृत्य में, ताल के साथ उछलना। २. कलाबाजी। कलैया। ३. करवट। पुं० दे० ‘उल्था’। | 
			
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				| उलद					 : | स्त्री० [हिं० उलदना] १. उलदने या उँड़ेलने की क्रिया या भाव। २. वर्षा की झड़ी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उलदना					 : | स० [सं० उल्लोठन] १. उँड़ेलना। ढालना। २. उलीचना। ३. बरसाना। अ० अच्छी तरह से या खूब बरसना। | 
			
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				| उलप्य					 : | पुं० [सं० ] रुद्र। | 
			
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				| उलफत					 : | स्त्री० [अ० उल्फत] प्रेम। प्रीति। | 
			
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				| उलमना					 : | अ० [अवलम्बन, पा० ओलम्बन] १. टेक या सहारा लेना। उठँगना। २. झुकना। ३. लटकना। | 
			
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				| उलमा					 : | पुं० [अ० उल्मा, आलिमका बहुवचन रूप] पंडित तथा विद्वान लोग। | 
			
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				| उलरना					 : | अ० [सं० उद्+लर्व-डोलना या उल्ललन] १. उलार होना। (दे० ‘उलार’) २. कूदना। ३. किसी पर झपटना या टूट पड़ना। ४. बादलों का घिर आना। | 
			
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				| उललना					 : | अ० [हिं० उँड़ेलना] १. ढरकना या ढलना। २. उलट-पलट होना। स० उलट-पलट करना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उलवी					 : | स्त्री० [?] एक प्रकार की मछली। | 
			
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				| उलसना					 : | अ० [सं० उल्लसन] १. शोभित होना। २. उल्लास या हर्ष से युक्त होना। उल्लसित या प्रसन्न होना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उलहना					 : | अ० [सं० उल्लंभन] १. उमड़ना। २. उत्पन्न होना। ३. बाहर या सामने आना। ४. प्रस्फुटित होना। खिलना। उदाहरण—उलहे नये अँकुरवा, बिनु बल वीर। रहीम। ५. उमंग में आना। हुलसना। पुं० उलाहना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उलही					 : | स्त्री० उलाहना। | 
			
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				| उलाँक					 : | पुं० [हिं०=लाँघना] १. चिट्ठी-पत्री आने-जाने का प्रबंध। डाक। २. एक प्रकार की छतदार या पटी हुई नाव। पटैला। | 
			
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				| उलाँकी					 : | पुं० [हिं० उलाँक] डाक का हरकारा। | 
			
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				| उलाँघना					 : | स० [सं० उल्लंघन] १. ऊपर से होकर पार करना लाँघना। २. (आज्ञा या आदेश) अवज्ञापूर्वक अमान्य करना। न मानना। ३. घुड़-सवारी का अभ्यास करने के लिए घोड़े पर पहले-पहल चढ़ना। (चाबुक सवार)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उला					 : | स्त्री० [सं० ऊर्ण] भेड़ का बच्चा। मेमना। (डिं०)(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उलाटना					 : | अ० स०=उलटना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उलार					 : | वि० [हिं० उलारना] जो असंतुलित भार के कारण पीछे या किसी ओर झुका हो। जैसे—एक्का (नाव) उलार है। पुं० इस प्रकार पीछे की ओर होनेवाल झुकाव। | 
			
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				| उलारना					 : | स० [हिं० उलरना] १. किसी वस्तु पर रखा हुआ बोझ इस प्रकार असंतुलित करना कि वह पीछे की ओर झुक जाय। २. ऊपर की ओर फेंकना। उछालना। ३. ऊपर-नीचे करना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उलारा					 : | पुं० [हिं० उलरना] चौताल के अंत में गाया जानेवाला पद। | 
			
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				| उलालना					 : | स० [सं० उत्+लालन] १. पालन-पोषण या लालन पालन करना। पालना-पोसना। | 
			
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				| उलाहना					 : | पुं० [सं० उपालंभन, प्रा० उवालहन] अपकार या हानि होने पर उसके प्रतिकार या वारण के उद्देश्य से खेद या दुःखपूर्वक ऐसे व्यक्ति से उसकी चर्चा करना जो उसके लिए उत्तरदायी हो अथवा उसका प्रतिकार कर या करा सकता हो। जैसे—(क) लड़के की दुष्टता के लिए उसके माता-पिता को उलाहना मिलता है। (ख) उस दिन मैं उनके यहाँ नही जा सका था,उसका आज उन्होंने मुझे उलाहना दिया।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उलिंद					 : | पुं० [सं०√बल् (बल आदि देना)+किन्द, व-उ संप्रसा] १. शिव। २. एक प्राचीन देश का नाम। | 
			
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				| उलिचना					 : | अ० [हिं० उलीचना] (पानी का) उलीचा या बाहर फेंका जाना। उलीचा जाना। स०=उलीचना। | 
			
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				| उलीचना					 : | स० [सं० उल्लुंचन] १. किसी बड़े आधार या पात्र मे जल भर जाने पर उसे खाली करने के लिए उसमें का जल बरतन या हाथ से बाहर निकालना या फेंकना। जैसे—नाव में का पानी उलीचना। २. कोई तरल पदार्थ उक्त प्रकार से बाहर फेंकना। | 
			
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				| उलूक					 : | पुं० [सं०√वल् (एकत्रित होना)+ऊक] १. उल्लू नामक पक्षी। २. इंद्र। ३. उत्तर का एक पुराना पहाड़ी प्रदेश। ४. कणाद ऋषि का एक नाम। पद-उलूक दर्शनकणाद का वैशेषिक दर्शन। पुं० [सं० उल्का] आग की लपट। ज्वाला। | 
			
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				| उलूखल					 : | पुं० [सं० ऊर्ध्व-ख, पृषो० उलूख√ला(लेना)+क] १. ऊखल। ओखली। २. खरल। खल। ३. गुग्गुल। | 
			
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				| उलूत					 : | पुं० [सं०√उल् (हनन करना)+ऊतच्] एक प्रकार का अजगर (बड़ा साँप)। | 
			
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				| उलूपी					 : | स्त्री० [सं० ] एक नाग कन्या जो अर्जुन पर मुग्ध होकर उन्हें पाताल में ले गयी थी। इसके गर्भ से अर्जुन को इरावत नामक पुत्र हुआ था। | 
			
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				| उलेटना					 : | स० उलटना। | 
			
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				| उलेटा					 : | वि०=उलटा। | 
			
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				| उलेड़ना					 : | स० १. =उँड़ेलना। २. =उलेढ़ना। | 
			
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				| उलेढ़ना					 : | स० [हिं० उलटना ?] सिलाई में, कपड़े के छोर या सिरे को थोड़ा उलट या मोड़कर तथा अन्दर की ओर करके ऊपर से सीना। | 
			
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				| उलेढ़ी					 : | स्त्री० [हिं० उलेढ़ना] १. उलेढ़ने की क्रिया या भाव। २. उलेढ़कर की हुई सिलाई। | 
			
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				| उलेल					 : | स्त्री० [हिं० कुलेल] १. उमंग। उल्लास। २. आवेश। जोश। ३. पानी का बाढ़। वि० १. अल्लड़। २. चमकीला। ३. लहराता हुआ। | 
			
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				| उलैड़ना					 : | स० दे० ‘उलेड़ना’। स० १. =उलेढ़ना। २. =उँड़ेलना। | 
			
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				| उल्का					 : | स्त्री० [सं०√उप् (दाह करना)+क, ष्-ल, निपा०-टाप्] १. प्रकाश। २. रोशनी। तेज। ३. जलती हुई लकड़ी। लुआठी। ४. मशाल। ५. दीपक। दीया। ६. आकाशस्थ पिंड़ो से फटकर गिरनेवाले वे चमकीले छोटे खंड जो कभी-कभी रात को आकाश में इधर से उधर जाते या पृथ्वी पर गिरते हुए दिखाई देते हैं। (मीटिओर) | 
			
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				| उल्का-चक्र					 : | पुं० [ष० त०] १. दैवी उत्पात या उपद्रव। २. बाधा। विघ्न। ३. हलचल। ४. ज्योतिष में ग्रहों की एक विशिष्ठ स्थिति। | 
			
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				| उल्का-पथ					 : | पुं० [ष० त०] आकाश में वह बिन्दु या स्थान जहाँ से उल्काएं गिरती हुई अर्थात् तारे टूटकर गिरते हुए दिखाई देते हों। (रेडिएण्ट आफ मीटियोर्स) | 
			
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				| उल्का-पात					 : | पुं० [ष० त०] आकाश से उल्काओ का गिरना या टूटना। तारा टूटना। | 
			
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				| उल्कापाती					 : | वि० [हिं० उल्कापात] १. उत्पात, उपद्रव या दंगा फसाद करनेवाला। २. नटखट। शरारती। | 
			
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				| उल्का-पाषाण					 : | पुं० दे० ‘उल्काश्म’। | 
			
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				| उल्का-मुख					 : | पुं० [ब० स०] १. शिव के एक गण का नाम। २. मुँह से प्रकाश या आग फेंकनेवाला एक प्रकार का प्रेत। अगिया बैताल। ३. गीदड़। | 
			
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				| उल्काश्म (न्)					 : | पुं० [सं० उल्का-अश्मन्, कर्म० स०] पत्थर, लोहे आदि का वह ढोंका या पिंड जो आकाश से उल्का के रूप में पृथ्वी पर गिरता है। (मीटिओराइट) | 
			
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				| उल्था					 : | पुं० [हिं० उलथना] एक भाषा से दूसरी भाषा में किया हुआ अनुवाद। भाषातंर। | 
			
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				| उल्मुक					 : | पुं० [सं०√उष् (दाह करना)+मुक्, ष-ल] १. अग्नि। आग। २. अंगारा। ३. जलती हुई लकड़ी। लुकाठा। | 
			
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				| उल्लंघन					 : | पुं० [सं० उद्√लंघ् (लाँघना)+ल्युट-अन] १. किसी के ऊपर से होते हुए उधर या उस पार जाना। २. आज्ञा, नियम, प्रथा रीति आदि का पालन न करते हुए उसका अतिक्रमण करना। न मानना। जैसे—आज्ञा का उल्लंघन। ३. अपने अधिकार या क्षेत्र से बाहर जाना अथवा दूसरे क्षेत्र में अनुचित रूप से पहुँचना। जैसे—सीमा का उल्लंघन। | 
			
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				| उल्लंघना					 : | स०=उलँघना या उलाँघना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उल्लंघनीय					 : | वि० [सं० उद्√लंघ्+अनीयर] जो उल्लंघन किये जाने के योग्य हो अथवा जिसका उल्लंघन करना उचित हो। | 
			
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				| उल्लंघित					 : | भू० कृ० [सं० उद्√लंघ्+क्त] १. (पदार्थ) जो लाँघा गया हो। २. (आज्ञा या आदेश) जिसका जान-बूझकर पालन न किया गया हो। ३. (अधिकार या कार्यक्षेत्र) जिसमें अनुचित रूप से प्रवेश किया गया हो। | 
			
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				| उल्ललित					 : | वि० [सं० उद्√लंल् (इच्छा)+क्त] १. आदोलित या क्षुब्ध। २. उठा या बड़ा हुआ। | 
			
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				| उल्लस					 : | वि० [सं० उद्√लंस् (चमकना)+अच्] १. चमकदार। २. प्रसन्न। ३. प्रकट। | 
			
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				| उल्लसन					 : | पुं० [सं० उद्√लंस्+ल्युट-अन] १. उल्लास या हर्ष से युक्त होना। बहुत प्रसन्न होना। २. चमकना। ३. सुशोभित होना। ४. आनंद या हर्ष के कारण होनेवाला रोमांच। | 
			
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				| उल्लसित					 : | वि० [सं० उद्√लंस्+क्त] १. जो उल्लास से युक्त हो। प्रसन्न। २. चमकता हुआ। ३. म्यान से निकला हुआ (खड़ग)। ४. हिलता हुआ। | 
			
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				| उल्लाप					 : | पुं० [सं० उद्√लंप्+घञ्] १. बहलाना। २. न कहने योग्य बात। कुवाच्य। ३. आर्त्त-नाद। चीख-पुकार। ४. दे० ‘काकूक्ति’। | 
			
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				| उल्लापक					 : | वि० [सं० उद्√लप्+णिच्+ण्वुल्-अक] १. उल्लास करनेवाला। २. खुशामदी। चाटुकार। | 
			
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				| उल्लापन					 : | पुं० [सं० उद्√लप्+णिच्+ल्युट-अन] १. उल्लाप करने की क्रिया या भाव। २. खुशामद। | 
			
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				| उल्लापी (पिन्)					 : | वि० [सं० उद्√लप्+णिच्+णिनि] उल्लापक। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उल्लाप्य					 : | पुं० [सं० उद्√लप्+णिच्+यत्] १. एक प्रकार का उपरूपक जो एक ही अंक का होता है। २. एक प्रकार का गीत। वि० जिसका उल्लापन (खुशामद) किया जाय या किया जा सके। | 
			
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				| उल्लाल					 : | पुं० [सं० उद्√लल् (इच्छा)+घञ्] एक मात्रिक अर्द्ध समवृत्त जिसके पहले या तीसरे चरण या पद में १5-१5 और दूसरे तथा चौथे चरण या पद में १३-१३ मात्राएँ होती हैं। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उल्लाला					 : | पुं० [सं० उल्लाल] एक मात्रिक छंद जिसके प्रत्येक चरण या पद में १३-१३ मात्राएँ होती हैं। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उल्लास					 : | पुं० [सं० उद्√लस्+घञ्] १. प्रकाश। चमक। २. साधारण बातों से होनेवाला अस्थायी या क्षणिक तथा हल्का आनंद। ३. आनंद। प्रसन्नता। ४. ग्रंथ या अध्याय या प्रकरण। ५. साहित्य में एक अलंकार जिसमें किसी एक वस्तु या व्यक्ति के गुणों या दोषों के कारण दूसरे में गुण या दोष उत्पन्न होने का वर्णन होता है। | 
			
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				| उल्लासक					 : | वि० [सं० उद्√लस्+णिच्+ण्वुल्-अक] [स्त्री० उल्लासिका] उल्लास या प्रसन्नता उत्पन्न करनेवाला। | 
			
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				| उल्लासना					 : | स० [सं० उल्लासन] १. प्रकाशित करना। २. उल्लास से युक्त करना। अ०=उलसना (उल्लास से युक्त होना)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उल्लासित					 : | वि० [सं० उद्√लस् (मिलाना आदि)+णिच्-क्त, वा० उल्लास+इतच्] १. जो उल्लास से युक्त हो या किया गया हो। २. प्रसन्न। हर्षित। ३. चमकाया हुआ। ४. अंकुरित या स्फुटित। | 
			
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				| उल्लासी (सिन्)					 : | वि० [सं० उल्लासिन्, उत्√लस् (मिलाना आदि)+णिनि, दीर्घ, नलोप] (व्यक्ति) उल्लास से भरा हुआ। उल्लास से युक्त। | 
			
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				| उल्लिखित					 : | वि० [सं० उद्√लिख् (लिखना)+क्त] १. जिसका उल्लेख ऊपर या पहले हुआ हो। २. (पुस्तक लेख आदि में) जिसका कथन या वर्णन पहले हो चुका हो। (मेन्शण्ड) ३. उकेरा हुआ। उत्कीर्ण। | 
			
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				| उल्लू					 : | पुं० [सं० उलूक] १. प्रायः उजाड़ जगहों में रहनेवाला एक प्रसिद्ध पक्षी जिसे दिन में कुछ दिखाई नहीं देता, और जो बहुत ही अशुभ तथा निबुद्धि माना जाता है। मुहावरा—(किसी स्थानपर) उल्लू बोलना पूरी तरह से उजाड़ हो जाना। २. बहुत ही निर्बुद्धि और मूर्ख व्यक्ति। पद-उल्लू का पट्ठा-निरा मूर्ख। पूरा नासमझ या बेवकूफ। | 
			
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				| उल्लेख					 : | पुं० [सं० उद्√लिख् (लिखना)+घञ्] १. लिखने की क्रिया या भाव। लिखाई। २. लेख आदि के रूप में होनेवाली चर्चा। जिक्र। वर्णन। ३. चित्र आदि अंकित करना। अंकन या चित्रण। ४. साहित्य में, एक अलंकार जिसमें एक ही वस्तु का कई विभिन्न रूपों में दिखाई देने का वर्णन होता है। | 
			
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				| उल्लेखक					 : | वि० [सं० उद्√लिख् (लिखना)+ण्वुल्, (वु)-अक] उल्लेख करनेवाला। | 
			
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				| उल्लेखन					 : | पुं० [सं० उद्√लिख् (लिखना)+ल्युट-अन] १. लिखने या वर्णन करने की क्रिया या भाव। २. अंकन या चित्रण करना। | 
			
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				| उल्लेखनीय					 : | वि० [सं० उद्√लिख् (लिखना)+अनीयर] १. लिखे जाने के योग्य। २. जिसका उल्लेख करना आवश्यक या उचित हो। | 
			
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				| उल्लेखित					 : | भू० कृ०=उल्लिखित। | 
			
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				| उल्लेख्य					 : | वि० [सं० उद्√लिख्+ण्यत्] जिसका उल्लेख किया जाने को हो या किया जा सकता हो। उल्लेखनीय। | 
			
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				| उल्लोल					 : | पुं० [सं० उद्√लोल् (घोलना आदि)+णिच्+अच्] लहर। हिलोर। | 
			
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				| उल्व					 : | पुं० [सं०√वल् (एकत्रित होना)+वक्, व-उ] १. वह झिल्ली जिसमें बच्चा बंधा हुआ गर्भासय से निकलता है। २. गर्भाशय। | 
			
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				| उल्वण					 : | पुं० [सं० उद्√वण् (शब्दार्थ)+अच्, पृषो० द०ल०] उल्व (आँवल)। | 
			
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				| उवना					 : | अ०=उअना (उगना)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उवनि					 : | स्त्री० [हिं० उवना] १. उदित होने की अवस्था,क्रिया या भाव। २. आविर्भाव।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उशना (नस्)					 : | पुं० [सं०√वश् (क्रान्ति)+कनस् व=उ] शुक्राचार्य। | 
			
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				| उशबा					 : | पुं० [अ० उश्बः] १. एक प्रकार का वृक्ष जिसकी जड़ रक्त-शोधन मानी जाती है। २. उक्त जड़ से प्रस्तुत किया हुआ एक प्रकार का अरक या औषध। | 
			
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				| उशी					 : | स्त्री० [सं०√वश्(इच्छा करना)+ई, व० उ] इच्छा। चाह। | 
			
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				| उशी-नर					 : | पुं० [सं० ब० स०] १. गांधार देश का पुराना नाम। (आजकल का झंग और चनाव तथा रावी के बीच का भू-भाग।) २. उक्त देश का निवासी। ३. राजा शिवि के पिता का नाम। | 
			
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				| उशीर					 : | पुं० [सं०√वश्+ईरन्, व=उ] गाँड़र या कतरे की जड़। खस। | 
			
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				| उषः (षस्)					 : | स्त्री० [सं० उष्(नाश करना आदि)+असि] दे० ‘उषा’। | 
			
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				| उषःकाल					 : | पुं० [ष० त०]=उषा-काल। | 
			
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				| उषःपान					 : | पुं० [ष० त०] हठयोग की एक क्रिया जिसमें बहुत तड़के उठकर नाक के रास्ते जल पीकर मुँह से निकाला जाता है। अमृत-पान। | 
			
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				| उषप					 : | पुं० [सं०√उष् (दाह करना)+कपन्] १. अग्नि। २. सूर्य। | 
			
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				| उषमा					 : | स्त्री०=ऊष्मा। | 
			
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				| उषर्वुध					 : | पुं० [सं० उपस्√बुध् (जानना)+क] १. अग्नि। २. चित्रक नामक वृक्ष। चीता। | 
			
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				| उषस्					 : | स्त्री०=उषा। | 
			
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				| उषसी					 : | स्त्री० [सं० उस्√सो (नाश करना)+क-ङीष्] १. संध्या। २. संध्या समय का मर्द्धिम प्रकाश। | 
			
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				| उषा					 : | स्त्री० [सं०√उष्+क-टाप्] १. सूर्य के उदित होने से कुछ पहले मन्द प्रकाश। दिन निकलने से पहले का चाँदना। २. अरुणोदय की लाली। ३. सूर्यादय से पहले का समय। तड़का। प्रभात। ४. बाणासुर की कन्या जिसका विवाह अनिरुद्ध से हुआ था। ५. गाय। गौ। | 
			
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				| उषाकर					 : | पुं० [सं० उषा√कृ (करना)+अच्] चंद्रमा। | 
			
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				| उषा-काल					 : | पुं० [ष० त०] भोर की बेला। प्रभात। दिन निकलने से कुछ पहले का समय। सूर्य के उदित होने से पहले का समय। तड़का। | 
			
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				| उषा-पति					 : | पुं० [ष० त०] अनिरुद्ध। | 
			
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				| उषित					 : | वि० [सं० उष् (दाह आदि)+क्त] १. देर से पका हुआ। बासी। २. जला हुआ। ३. फुरतीला। ४. बसा हुआ। पुं० बस्ती। आबादी। | 
			
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				| उषी					 : | स्त्री० [सं० उष्णता से] लपट। उदाहरण—ते ऊसास अगिनि का उषी। कुँवरि क देवी ज्वालामुखी।—नंददास। ज्वाला। | 
			
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				| उषेश					 : | पुं० [उषा-ईश्, ष० त०]=उषापति। (अनिरुद्ध)। | 
			
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				| उष्ट्र					 : | पुं० [सं०√उष् (नाश करना)+ष्ट्रनु-कित] [स्त्री० उष्ट्री] १. ऊँट। २. भैसा। ३. ककुद या डिल्लेवाला साँड़। | 
			
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				| उष्ण					 : | वि० [सं०√उष् (दाह करना)+नक्] १. तपा हुआ। गरम। २. गरमी या ताप उत्पन्न करने वाला। ३. (पदार्थ) जिसे खाने से शरीर में गरमी या हलकी जलन हो। ४. तीक्ष्ण। तीखा। ५. मनोविकार, राग आदि से युक्त। ६. चतुर। चालाक। ७. फुरतीला। तेज। पुं० १. गरमी का मौसम। ग्रीष्म-ऋतु। २. गरमी। ३. धूप। ४. प्याज। ५. एक नरक का नाम। | 
			
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				| उष्णक					 : | पुं० [सं० उष्ण+कन्] १. गरमी का मौसम। ग्रीष्म ऋतु। २. ज्वर। बुखार। ३. सूर्य। वि० १. तपा हुआ। २. गरम। ३. गरमी या ताप उत्पन्न करनेवाला। गरमी या ताप पहुँचाने वाला। ४. फुरतीला। तेज। | 
			
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				| उष्ण-कटिबंध					 : | पुं० [ब० स०] पृथ्वी का वह क्षेत्र या भू-भाग जो कर्क और मकर रेखाओं के बीच में पड़ता है तथा जिसमें बहुत अधिक गरमी पड़ती है। (टॉरिड ज़ोन) | 
			
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				| उष्ण-कर					 : | पुं० [ब० स०] सूर्य। | 
			
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				| उष्णता					 : | स्त्री० [सं० उष्ण+तल्-टाप्] १. उष्ण होने की अवस्था, गुण या भाव। २. गरमी। ताप। | 
			
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				| उष्णत्व					 : | पुं० [सं० उष्ण+त्व] =उष्णता। | 
			
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				| उष्ण-वीर्य					 : | वि० [ब० स०] (पदार्थ) जो गुण या प्रभाव के विचार से गरम हो। (वैद्यक) | 
			
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				| उष्णांक					 : | पुं० [उष्ण-अंक, मध्य० स०] तापमान जानने या निश्चित करने की एक आधुनिक इकाई। (कैलरी)। | 
			
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				| उष्णा					 : | स्त्री० [सं० उष्ण-टाप्] १. गरमी। २. पित्त। ३. क्षय। | 
			
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				| उष्णालु					 : | वि० [सं० उष्ण+आलुच्] १. जो गरमी न सह सकता हो, उत्ताप सहन करने में असमर्थ। २. गरमी या ताप से व्याकुल। | 
			
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				| उष्णासह					 : | पुं० [सं० उष्ण-आ√सह् (सहन करना)+अच्] जाड़े का मौसम। शीतकाल। | 
			
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				| उष्णिक्					 : | पुं० [सं० उत्√स्निह् (चिकना होना)+क्विप्] एक वैदिक छंद जिसके प्रत्येक चरण में सात वर्ण होते हैं। | 
			
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				| उष्णिमा (मन्)					 : | स्त्री० [सं० उष्ण+इमानिच्] उष्ण होने की अवस्था, गुण या भाव। गरमी। ताप। | 
			
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				| उष्णीष					 : | स्त्री० [सं० उष्ण√ईष् (नाश करना)+क] १. पगड़ी। साफा। २. मुकुट। ताज। | 
			
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				| उष्णीषी (षिन्)					 : | वि० [सं० उष्णीय+इनि, दीर्घ, नलोप] जिसने पगड़ी बाँधी या मुकुट धारण किया हो। पुं० शिव का एक नाम। | 
			
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				| उष्णोष्ण					 : | वि० [सं० उष्ण-उष्ण, कर्म० स०] बहुत गरम। | 
			
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				| उष्म					 : | पुं० [सं०√उष् (उत्पन्न करना)+मक्] १. गरमी। ताप। २. गरमी की ऋतु। ३. धूप। ४. क्रोध। | 
			
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				| उष्मज					 : | पुं० [सं० उष्म√जन् (उत्पन्न करना)+ड] वे छोटे कीड़े जो पसीने, मैल आदि से पैदा होते हैं। जैसे—खटमल, मच्छर आदि। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उष्मप					 : | पुं० [सं० उष्म√पा (पीना)+क] पितर। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उष्म-स्वेद					 : | पुं० [कर्म० स०] दे० ‘उष्मा स्वेद’। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उष्मा					 : | स्त्री० [सं०√उष्+मनिन्] १. गरमी। ताप। २. धूप। ३. क्रोध। ४. बहुत तनातनी का वातावरण। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उष्मा-स्वेद					 : | पुं० [सं० उष्मस्वेद] वह प्रक्रिया जिसमें किसी वस्तु पर इस प्रकार ताप या भाप पहुँचाई जाती है कि वह गीला या तर हो जाय। (वेपर बाथ) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उस					 : | सर्व० उभ० [हिं० वह] हिंदी सर्वनाम वह का वह रूप जो उसे विभक्ति लगने से पहले प्राप्त होता है। जैसे—उसने, उसकी, उससे, उसमें आदि। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उसकन					 : | पुं० [सं० उत्कर्षण-खींचना, रगड़ना] वह छाल या घासपास जिससे बरतन आदि माँजते हैं। उबसन। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उसकना					 : | अ०=उकसना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उसकाना					 : | स०=उकसाना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उसकारना					 : | स०=उकसाना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उसठ					 : | वि० [?] नीरस। फीका। उदाहरण—उसठ न कर सठ बढ़ाओल पेम।—विद्यापति। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उसनना					 : | स० [सं० उष्ण]=उबालना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उसनीस					 : | पुं०=उष्णीश।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उसमा					 : | पुं० [अ० वसमा] उबटन। स्त्री०=उष्मा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उसमान					 : | पुं० [अ०] मुहम्मद के चार सखाओं में से एक। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उसमानिया					 : | पुं० [अ०] उसमान से चला हुआ तुर्क राजवंस। वि० उसमान संबंधी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उसरना					 : | अ० [सं० उद्+सरण-जाना] १. हटना। दूर होना। टलना। २. व्यतीत होना। बीतना। ३. छिन्न-भिन्न होना। उदाहरण—आज औधि-औसर उसासहि उसीर जै हैं।—घनानंद। ४. ऊपर उठना। जैसे—घर उसरना। ५. डूबते हुए का फिर से ऊपर आना। उतराना। अ० [सं० विस्मरण] विस्मृत होना। भूलना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उसलना					 : | अ०=उसरना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उससना					 : | अ० [सं० उच्छ्वसन] गहरा या ठंडा सांस लेना। अ० [सं० उत्सरण] खिसरना। टलना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उसाँस					 : | पुं०=उसास।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उसाना					 : | स०=ओसाना (अनाज बरसाना)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उसारना					 : | स० [सं० उद्+सरण-जाना] १. ऊपर उठाना या लाना। २. बनाकर खड़ा या तैयरा करना। जैसे—घर उसारना। ३. टालना। हटाना। ४. उखाड़ना। ५. बाहर निकालना या निकालकर सामने लाना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उसारा					 : | पुं० दे० ‘ओसारा’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उसालना					 : | स० [सं० उत्+शालन] १. उखाड़ना। २. दूर करना। हटाना। ३. भगाना। ४. टालना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उसास					 : | स्त्री० [सं० उत्-श्वास] १. गहरा या लंबा सांस। दीर्घनिश्वास। २. श्वास। साँस। ३. मानसिक कष्ट, पश्चाताप आदि के कारण लिया जानेवाला ठंढ़ा साँस। ४. अवकास। ५. विश्राम। उदाहरण—है हौ कोउ वीर जो उसास मोहिं दयो है।—सुधाकर द्विवेदी। | 
			
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				| उसासी					 : | स्त्री० [हिं० उसास] दम लेने की फुरसत। अवकाश। छुट्टी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उसिनना					 : | स०=उबालना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उसीर					 : | पुं०=उशीर (खश)। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उसीला					 : | पुं०=वसीला (द्वार)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उसीस					 : | पुं० [सं० उत्-शीर्ष] १. तकिया। २. सिरहाना। (पैताना का विपर्याय)। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उसीसा					 : | पुं०=उसीस।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उसूल					 : | पुं० [अ०] सिद्धान्त। वि०=वसूल।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| उसूली					 : | वि० [अ०] १. उसूल। (सिद्धांत) से संबंध रखनेवाला। सैद्धांतिक। २. उसूल (सिद्धांत) का पालन करनेवाला। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उसेना					 : | स० [सं० उष्ण] उबालना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उसेय					 : | पुं० [देश] असम प्रदेश में होनेवाला एक प्रकार का बहुत बड़ा बाँस। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उसेस					 : | पुं० [सं० उच्छीर्षक] [स्त्री० अल्पा० उसेसी] तकिया। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उस्कन					 : | पुं०=उसकन। | 
			
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				| उस्तरा					 : | पुं० [फा०] बाल मूँड़ने का छुरा। | 
			
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				| उस्तवा					 : | पुं० [अ० इस्तिवा] समतल होने की अवस्था या भाव। समतलता। | 
			
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				| उस्ताद					 : | पुं० [फा०] [भाव० उस्तादी] १. (क) वह जो किसी विषय में बहुत अधिक दक्ष या निपुण हो। प्रवीण। (ख) चुतर। चालाक। २. (क) वह जो विद्यार्थियों को कुछ बतलाता या सिखलाता हो। गुरु। शिक्षक। (ख) वेश्याओं को नृत्य, संगीत आदि की शिक्षा देनेवाला। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उस्तादी					 : | स्त्री० [फा०] १. उस्ताद होने की अवस्था या भाव। २. शिक्षक की वृत्ति। ३. दक्षता। निपुणता। ४. चालाकी। धूर्तत्ता। | 
			
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				| उस्तानी					 : | स्त्री० [फा० ‘उस्ताद’ का स्त्री] १. उस्ताद या गुरु की पत्नी। २. अध्यापिका। शिक्षिका। | 
			
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				| उस्वास					 : | स्त्री०=उसाँस।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उहदा					 : | पुं०=ओहदा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उहटना					 : | अ० १. दे० ‘उघड़ना’। २. दे० ‘हटना’। स०=उघाड़ना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उहवाँ					 : | क्रि० वि०=वहाँ।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उहाँ					 : | क्रि० वि०=वहाँ। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उहार					 : | पुं० दे० ‘ओहार’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उहास					 : | पुं० [सं० उद्भास] प्रकाश। रोशनी। उदाहरण—आणंद सुजु उदौ उहास हास अति।—प्रिथीराज। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उहि					 : | सर्व०=वह।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उही					 : | सर्व०=वही।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उहूल					 : | स्त्री० [सं० उल्लोल] तरंग। लहर। (डिं०)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उहै					 : | सर्व०=वही (वह ही)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं |