| शब्द का अर्थ | 
					
				| उत्कर्ष					 : | पुं० [सं० उद्√कृष् (खींचना)+घञ्] १. ऊपर की ओर उठने, खिंचने या जाने की क्रिया या भाव। २. पद, मान, संपत्ति आदि में होनेवाली वृद्धि, संपन्नता या समृद्धि। ३. भाव, मूल्य आदि में होनेवाली अधिकता या वृद्धि। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्कर्षक					 : | वि० [सं० उद्√कृष्+ण्वुल्-अक] १. ऊपर की ओर उठाने या बढ़ानेवाला। २. उन्नति या समृद्धि करनेवाला। उत्कर्ष करनेवाला। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्कर्षता					 : | स्त्री० [सं० उत्कर्ष+तल्-टाप्] १. उत्तमता। श्रेष्ठता। २. अधिकता। ३. समृद्धि। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्कर्षी (र्षिन्)					 : | वि० [सं० उद्√कृष्+णिनि] =उत्कर्षक। | 
			
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				| उत्कर्ष					 : | पुं० [सं० उद्√कृष् (खींचना)+घञ्] १. ऊपर की ओर उठने, खिंचने या जाने की क्रिया या भाव। २. पद, मान, संपत्ति आदि में होनेवाली वृद्धि, संपन्नता या समृद्धि। ३. भाव, मूल्य आदि में होनेवाली अधिकता या वृद्धि। | 
			
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				| उत्कर्षक					 : | वि० [सं० उद्√कृष्+ण्वुल्-अक] १. ऊपर की ओर उठाने या बढ़ानेवाला। २. उन्नति या समृद्धि करनेवाला। उत्कर्ष करनेवाला। | 
			
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				| उत्कर्षता					 : | स्त्री० [सं० उत्कर्ष+तल्-टाप्] १. उत्तमता। श्रेष्ठता। २. अधिकता। ३. समृद्धि। | 
			
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				| उत्कर्षी (र्षिन्)					 : | वि० [सं० उद्√कृष्+णिनि] =उत्कर्षक। | 
			
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