| शब्द का अर्थ | 
					
				| उत्थान					 : | स० [सं० उद्√स्था (ठहरना)+ल्युट्-अन] १. ऊपर की ओर उठना। ऊँचा होना। उठान। (विशेष दे० उठना।) २. किसी निम्न या हीन स्थिति से निकलकर उच्च या उन्नत अवस्था में पहुँचने की अवस्था या भाव। उन्नत या समृद्ध स्थिति। जैसे—जाति या देश का उत्थान। ३. किसी काम या बात का आरंभ या आरंभिक अंश। उठान। जैसे—इस काव्य (या ग्रंथ) का उत्थान तो बहुत सुंदर हैं। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्थान-एकादशी					 : | स्त्री० [ष० त०] कार्तिक शुक्ला एकादशी। देवोत्थान। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्थानक					 : | वि० [सं० उत्थान+णिच्+ण्वुल्-अक] १. निम्न या साधारण स्तर से ऊपर की ओर ले जानेवाला। उत्थान करनेवाला। २. किसी को उन्नत या समृद्ध बनानेवाला। पुं० एक प्रकार का यंत्र जिसकी सहायता से लोग बहुत ऊँची-ऊँची इमारतों या भवनों में (बिना सीढ़ियाँ चढ़े-उतरे) ऊपर-नीचे आते जाते हैं (लिफ्ट) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्थान					 : | स० [सं० उद्√स्था (ठहरना)+ल्युट्-अन] १. ऊपर की ओर उठना। ऊँचा होना। उठान। (विशेष दे० उठना।) २. किसी निम्न या हीन स्थिति से निकलकर उच्च या उन्नत अवस्था में पहुँचने की अवस्था या भाव। उन्नत या समृद्ध स्थिति। जैसे—जाति या देश का उत्थान। ३. किसी काम या बात का आरंभ या आरंभिक अंश। उठान। जैसे—इस काव्य (या ग्रंथ) का उत्थान तो बहुत सुंदर हैं। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्थान-एकादशी					 : | स्त्री० [ष० त०] कार्तिक शुक्ला एकादशी। देवोत्थान। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उत्थानक					 : | वि० [सं० उत्थान+णिच्+ण्वुल्-अक] १. निम्न या साधारण स्तर से ऊपर की ओर ले जानेवाला। उत्थान करनेवाला। २. किसी को उन्नत या समृद्ध बनानेवाला। पुं० एक प्रकार का यंत्र जिसकी सहायता से लोग बहुत ऊँची-ऊँची इमारतों या भवनों में (बिना सीढ़ियाँ चढ़े-उतरे) ऊपर-नीचे आते जाते हैं (लिफ्ट) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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