| शब्द का अर्थ | 
					
				| उद्धत					 : | वि० [सं० उद्√हन्+क्त] [भाव० उद्धतता] जो अपने उग्र क्रोधी या रूखे स्वभाव के कारण हेय आचरण या व्यवहार करता हो। अक्खड़। पुं० साहित्य में 40 मात्राओं का एक छंद। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्धतता					 : | स्त्री० [सं० उद्धत+तल्-टाप्] उद्धत होने की अवस्था या भाव। उद्धतपन। औद्धत्य। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्धत-दंडक					 : | पुं० [सं० ] विजया नामक मात्रिक छंद का वह प्रकार या भेद जिसके प्रत्येक चरण का अंत एक गुरु और एक लघु से होता है। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्धतपन					 : | पुं० [सं० उद्धत+हिं० पन (प्रत्य)] उद्धत होने की अवस्था या भाव। उद्धतता। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उद्धति					 : | स्त्री० [सं० उद्√हन्+क्तिन्] =उद्धतता। | 
			
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				| उद्धत					 : | वि० [सं० उद्√हन्+क्त] [भाव० उद्धतता] जो अपने उग्र क्रोधी या रूखे स्वभाव के कारण हेय आचरण या व्यवहार करता हो। अक्खड़। पुं० साहित्य में 40 मात्राओं का एक छंद। | 
			
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				| उद्धतता					 : | स्त्री० [सं० उद्धत+तल्-टाप्] उद्धत होने की अवस्था या भाव। उद्धतपन। औद्धत्य। | 
			
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				| उद्धत-दंडक					 : | पुं० [सं० ] विजया नामक मात्रिक छंद का वह प्रकार या भेद जिसके प्रत्येक चरण का अंत एक गुरु और एक लघु से होता है। | 
			
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				| उद्धति					 : | स्त्री० [सं० उद्√हन्+क्तिन्] =उद्धतता। | 
			
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