| शब्द का अर्थ | 
					
				| उद्र					 : | पुं० [सं०√उन्द्(भिगोना)+रक्] ऊद-बिलाव। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्राव					 : | पुं० [सं० उद्√रू(शब्द)+घञ्] ऊँचा या घोर शब्द। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्रिक्त					 : | वि० [सं० उद्√रिच् (अलग करना, मिलाना)+क्त] १. उद्रेक से युक्त किया हुआ। २. प्रमुख। विशिष्ट। ३. बहुत अधिक। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उद्रेक					 : | पुं० [सं० उद्√रिच्+घञ्] [वि० उद्रिक्त] १. बहुत अधिक होने की अवस्था या भाव। अधिकता। प्रचुरता। २. प्रमुखता। ३. आरंभ। ४. रजोगुण। ५. साहित्य में, एक अलंकार जिसमें किसी वस्तु के किसी गुण या दोष के आगे कई गुणों या दोषों के मंद पड़ने का वर्णन होता है। | 
			
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				| उद्र					 : | पुं० [सं०√उन्द्(भिगोना)+रक्] ऊद-बिलाव। | 
			
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				| उद्राव					 : | पुं० [सं० उद्√रू(शब्द)+घञ्] ऊँचा या घोर शब्द। | 
			
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				| उद्रिक्त					 : | वि० [सं० उद्√रिच् (अलग करना, मिलाना)+क्त] १. उद्रेक से युक्त किया हुआ। २. प्रमुख। विशिष्ट। ३. बहुत अधिक। | 
			
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				| उद्रेक					 : | पुं० [सं० उद्√रिच्+घञ्] [वि० उद्रिक्त] १. बहुत अधिक होने की अवस्था या भाव। अधिकता। प्रचुरता। २. प्रमुखता। ३. आरंभ। ४. रजोगुण। ५. साहित्य में, एक अलंकार जिसमें किसी वस्तु के किसी गुण या दोष के आगे कई गुणों या दोषों के मंद पड़ने का वर्णन होता है। | 
			
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