| शब्द का अर्थ | 
					
				| उपचित					 : | भू० कृ० [सं० उप√चि+क्त] १. इकट्ठा किया हुआ। संचित। संगृहीत। २. अच्छी तरह से खिला, फूला या बढ़ा हुआ। विकसित। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपचिति					 : | स्त्री० [सं० उप√चि+क्तिन्] १. उपचित होने की अवस्था या भाव। २. ढेर। राशि। ३. संचय। ४. बढ़ती। वृद्धि। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपचित्र					 : | पुं० [सं० अत्या० स०] एक वर्णार्द्ध समवृत्त जिसके विषम चरणों में तीन सगण, एक लघु और एक गुरु तथा सम चरणों में तीन भगण और दो गुरु होते हैं। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपचित्रा					 : | स्त्री० [सं० उपचित्र+टाप्] १. दन्ती वृक्ष। २. मूसाकानी का पौधा। ३. चित्रा नक्षत्र के पास के नक्षत्र हस्त और स्वाती। ४. १6 मात्राओं का एक छन्द। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपचित					 : | भू० कृ० [सं० उप√चि+क्त] १. इकट्ठा किया हुआ। संचित। संगृहीत। २. अच्छी तरह से खिला, फूला या बढ़ा हुआ। विकसित। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपचिति					 : | स्त्री० [सं० उप√चि+क्तिन्] १. उपचित होने की अवस्था या भाव। २. ढेर। राशि। ३. संचय। ४. बढ़ती। वृद्धि। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| उपचित्र					 : | पुं० [सं० अत्या० स०] एक वर्णार्द्ध समवृत्त जिसके विषम चरणों में तीन सगण, एक लघु और एक गुरु तथा सम चरणों में तीन भगण और दो गुरु होते हैं। | 
			
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				| उपचित्रा					 : | स्त्री० [सं० उपचित्र+टाप्] १. दन्ती वृक्ष। २. मूसाकानी का पौधा। ३. चित्रा नक्षत्र के पास के नक्षत्र हस्त और स्वाती। ४. १6 मात्राओं का एक छन्द। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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