| शब्द का अर्थ | 
					
				| उपादान-लक्षणा					 : | स्त्री० [सं० मध्य० स०] साहित्य में लक्षणा का वह प्रकार या भेद जिसमें मुख्य अर्थ ज्यों का त्यों बना रहने पर भी साथ में कोई और अर्थ अथवा किसी और का कर्तृत्व भी ग्रहण कर लेता अथवा सूचित करने लगता है। जैसे—वहाँ जमकर लाठियाँ चलीं। में ‘लाठियो’ ने चलाने वालों का कर्तृत्व ग्रहण कर लिया है। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| उपादान-लक्षणा					 : | स्त्री० [सं० मध्य० स०] साहित्य में लक्षणा का वह प्रकार या भेद जिसमें मुख्य अर्थ ज्यों का त्यों बना रहने पर भी साथ में कोई और अर्थ अथवा किसी और का कर्तृत्व भी ग्रहण कर लेता अथवा सूचित करने लगता है। जैसे—वहाँ जमकर लाठियाँ चलीं। में ‘लाठियो’ ने चलाने वालों का कर्तृत्व ग्रहण कर लिया है। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं |